सुभग (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुभङ्ग] नारियल का पेड़। नारिकेल वृक्ष।

सुभंग (२)
वि० सरलता से टूट जानेवाला [को०]।

सुभंत पु
वि० [प्रा० सोभन्त सं० शोभमान] शोभित। जो शोभायुक्त हो।

सुभ पु (१)
वि० [सं० शुभ, प्रा० सुभ] दे० 'शुभ'।

सुभ (२)
वि० [सं०] शुभ नक्षत्र या ग्रह [को०]।

सुभगंमन्य
वि० [सं० सुभगम्मन्य] दे० 'सुभगमानी' [को०]।

सुभग (१)
वि० [सं०] १. सुंदर। मनोहर। मनोरम। २. ऐश्वर्यशाली। ३. भाग्यवान्। खुशकिस्मत। ४. प्रिय। प्रियतम। ५. सुखद। आनंददायक।

सुभग (२)
संज्ञा पु० १. शिव। २. सोहागा। टंकण। ३. चंपा। चंपक। ४. अशोक वृक्ष। ५. पीली कटसरैया। पीतझिंटी। ६. लाल कटस- रया। रक्तझिटी। ७. भूरि छरीला। पत्थर का फूल। शौलेय। शैलाख्य। शिलापुष्प। ८. गंधक। गंधपाषाण। ९. सुबल के एक पुत्र का नाम। १०. जैनों अनुसार वह कर्म जिससे जीव सौभाग्यवान होता है। ११. अच्छा भाग्य। सौभाग्य (को०)।

सुभगता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुभग होने का भाव। २. सुंदरता। सौदर्य। खूबसूरती। उ०—जागै मनोभव मुएँहु मन बन सुभ- गता न परै कही।—मानस, १। ८६। ३. प्रेम। ४. स्त्री के द्रारा होनेवाला सुख।

सुभगदत्त
संज्ञा पुं० [सं०] भौमासुर का पुत्र।

सुभगमानी
वि० [सं० सुभगमानिन्] अपने को सौभाग्यशाली सम- झनेवाला [को०]।

सुभगसेन
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन राजा जो सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिम भारत के एक प्रांत में शासन करता था।

सुभगा (१)
वि० स्त्री० [सं०] १. सुंदरी। खूबसूरत (स्त्री)। २. (स्त्री) जिसका पति जीवित हो। सौभाग्यवती। सुहागिन।

सुभगा (२)
संज्ञा स्त्री० १. वह स्त्री जो अपने पति को प्रिय हो। प्रियतमा पत्नी। २. स्कंद की एक मातृका का नाम। ३. पाँच वर्ष की कुमारी। ४. एक प्रकार की रागिनी। ५. केवटी मोथा। कैवर्ती मुस्तक। ६. नीली दूब। नील दूर्वा। ७. हलदी। हरिद्रा। ८. तुलसी। सुरसा। ९. दहिंगना। प्रियंगु। बनिता। १०. कस्तुरी। मगनाभि। ११. सोना केला। सुवर्ण कदली। १२. बेला मोतिया। वनमल्लिका। १३. चमेली। जाति पुष्प। १४. आदरणीया माता। संमानित माँ (को०)। १५. सौभाग्य- वती नारी। सधवा स्त्री (को०)।

सुभगातनय
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुभगासुत'।

सुभगानंदनाथ
संज्ञा पुं० [सं० सुभगानन्दनाथ] तांत्रिकों के अनुसार एक भैरव का नाम। कालीपूजा के समय इनकी भी पूजा का विधान है।

सुभगासुत
संज्ञा पुं० [सं०] प्रियतमा पत्नी से उत्पन्न पुत्र [को०]।

सुभगाह्वया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कैवर्तिका लता। २. हलदी। ३. सरिवन। ४. तुलसी। ५. नीली दूब। ६. सोना केला।

सुभग्ग पु
वि० [सं० सुभग] दे० 'सुभग'। उ०—मालव भूप उदग्ग चलेउ कर खग्ग जग्ग जित। तन सुभग्ग आभरन मग्ग जगमग्ग नग्ग सित।—गि० दास (शब्द०)।

सुभट
संज्ञा पुं० [सं०] महान् योद्धा। अच्छा सैनिक। उ०—रुक्म और कलिंग को राउ मारयो प्रथम, बहुरि तिनके बहुत सुभट मारे।—सूर (शब्द०)।

सुभटवंत पु
वि० [सं० सुभट + वत्] अच्छा योद्धा। उ०—लख्यो बलराम यह सुभटवंत है कोऊ हल मुशल शस्त्र अपनो सँभारयो।—सूर (शब्द०)।

सुभट वर्मा
संज्ञा पुं० [सं० सुभटवर्मन्] एक हिंदू राजा जो ईस्वी १२ वीं शाताब्दी के अंत और १३ वीं के प्रारंभ में विद्य- मान था।

सुभट्ट (१)
संज्ञा पुं० [सं०] अत्यंत विद्रान् व्यक्ति। बहुत बड़ा पंडित।

सुभट्ट पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० सुभट] वीर। सुभट।

सुभड़ पु †
संज्ञा पुं० [सं० सुभट] सुभट। शूरवीर (डिं०)।

सुभद्र (१)
संज्ञा पुं [सं०] १. विष्णु। २. सनत् कुमार का नाम। ३. वसुदेव का एक पुत्र जो पौरवी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। ४. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। ५. इध्मजिह्व के एक पुत्र का नाम। ६. प्लक्ष द्विप के अंतर्गत एक वर्ष का नाम। ७. सौभाग्य। ८. कल्याण। मंगल। ९. एक पर्वत का नाम (को०)।

सुभद्र (२)
वि० १. भाग्यवान्। २. भला। सज्जन। ३. अत्यंत शुभ। मांगलिक (को०)।

सुभद्रक
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवरथ। २. बेल। बिल्वक वृक्ष।

सुभद्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. श्रीकृष्ण की बहन और अर्जुन की पत्नी जो अभिमन्यु की माता थी। विशेष—एक बार अर्जुन रैवतक पर्वत पर सुभद्रा को देखकर मोहित हो गया। यह देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुभद्रा का बलपूर्वक हरण कर उससे विवाह करने का आदेश दिया। तदनुसार अर्जुन सुभद्रा को द्रारका से हरण कर ले गया । २. दुर्गा का एक रूप। ३. पुराणानुसार एक गौ का नाम। ४. संगीत में एक श्रुति का नाम। ५. दुर्गम की पत्नी। ६. अनि- रुद्ध की पत्नी। ७. एक चत्वर का नाम। ८. बलि की पुत्री और अवीक्षित की पत्नी। ९. एक नदी। १०. सरिवन। अनंतमूल। श्यामलता। ११. गंभारी। काश्मरी। १२. मकड़ा घास। घृतमंडा।

सुभद्राणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] त्रायंती। त्रायमान। त्रायमाण लता।

सुभद्रिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. श्रीकृण्ण की छोटी बहन। २. एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में न न र ल ग (/?/) होता है। ३. त्रायंती लता (को०)। ४. वेश्या (को०)।

सुभद्रेश
संज्ञा पुं० [सं०] अर्जुन।

सुभर पु (१)
वि० [हिं० सु + भरा] अच्छी तरह भरा हुआ। सुपुष्ट।

सुभर पु (२)
वि० [सं० शुभ्र] दे० 'शुभ्र'। उ०—सुभर समुँद अस नयन दुह, मानिक भरे तरंग। आवहिं तीर फिरावहीं काल भवँर तेहि संग।—जायसी (शब्द०)।

सुभर (३)
वि० [सं०] १. ठोस। घना। २. अधिक। प्रचुर। ३. सरलतापूर्वक वहन करने या प्रयोग करने योग्य। ४. पूर्णतः मश्क या अभ्यस्त। ५. सुपोष [को०]।

सुभव (१)
वि० [सं०] उत्तम रूप से उत्पन्न।

सुभव (२)
संज्ञा पुं० १. एक इक्ष्वाकुवंशी राजा का नाम। २. साठ संवत्सरों में से अंतिम संवत्सर का नाम।

सुभसत्तरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो पति को अत्यंत प्रिय हो। सुभगा स्त्री।

सुभांजन
संज्ञा पुं० [सं० सुभाञ्जन] शुभांजन वृक्ष। सहिंजन।

सुभा
संज्ञा स्त्री० [सं० शुभा] १. अमृत। पीयूष। सुधा। २. शोभा। कांति। छवि। ३. परनारी। परस्त्री। ४. हरीतकी। हड़। उ०—सुधा सुभा सोभा सुभा सुभा सिद्ध पर नारि। बहुरी सुभा हरीतकी हरिपद की रजधार।—अनेकार्थ० (शब्द०)।

सुभाइ पु † (१)
संज्ञा पुं० [सं० स्वभाव] दे० 'स्वभाव'। उ०—कमल नाल सज्जन हियौ दोनौं एक सुभाइ।—रसनिधि (शब्द०)।

सुभाइ (२)
क्रि० वि० सहज भाव से। स्वभावतः। उ०—(क) कंटक सो कंटक कटयो अपने हाथ सुभाइ।—सूर (शब्द०)। (ख) अंग सुभाइ सुवास प्रकाशित लोपिहौ केशव क्यों करिकै।—केशव (शब्द०)।

सुभाउ पु †
संज्ञा पुं० [सं० स्वभाव] दे० 'स्वभाव'। उ०—मुख प्रसन्न शीतल सुभाउ, नित देखत नैन सिराइ।—सूर (शब्द०)।

सुभाग (१)
वि० [सं०] भाग्यवान्। खुशकिस्मत।

सुभाग पु ‡ (२)
संज्ञा पुं० [सं० सौभाग्य] दे० 'सौभाग्य'।

सुभागा
संज्ञा स्त्री० [सं०] रौद्राश्व की एक पुत्री का नाम।

सुभागी
वि० [सं० सुभाग] भाग्यवान्। भाग्यशाली। खुशकिस्मत। उ०—कौन होगा जो न लेगा उस सुधा का स्वाद। छोड़ प्रांतिक गर्व अपना और व्यर्थ विवाद। जो सुभागी चख सकेंगें वह रसाल प्रसाद। वे कदापि नहीं करेंगे नागरी प्रतिवाद।— सरस्वती (शब्द०)।

सुभागीन
संज्ञा पुं० [सं० सौभाग्य, हिं० सुभाग + ईन (प्रत्य०)] [स्त्री० सुभागिन] अच्छी भाग्यवाला। भाग्यवान्। सुभग। उ०—कोक कलान कै बेनी प्रवीन वहौ अबलानि मैं एक पढ़ी है। आजु ललै (लखै ?) विपरीत मैं आँगी, सुभागीन यों मुख ऐसी कढ़ी है।—सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)।

सुभाग्य (१)
वि० [सं० सु + भाग्य] अत्यंत भाग्यशाली। बहुत बड़ा भाग्यवान्।

सुभाग्य (२)
संज्ञा पुं० दे० 'सौभाग्य'।

सुभान
अव्य० [अ० सुबहान] धन्य। वाह वाह। जैसे,—सुभान तेरी कुदरत। यौ०—सुभान अल्ला = ईश्वर धन्य है। (प्रायः इस पद का व्यव- हार कोई अदभूत पदार्थ या अनोखी घटना देखकर किया जाता है।)

सुभाना पु †
क्रि० अ० [हिं० शोभना] शोभित होना। देखने में भला जान पड़ना। (क्व०)। उ०—भो निकुंज सुख पुंज सुभाना। मंडप मंडन मंडित नाना।—गोपाल (शब्द०)।

सुभानु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. चतुर्थ हुतास नामक युग के दूसरे वर्ष का नाम। २. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम।

सुभानु (२)
वि० सुंदर या उत्तम प्रकाश से युक्त। सुप्रकाशमान्।

सुभाय पु †
संज्ञा पुं० [सं० स्वभाव] दे० 'स्वभाव'। उ०—फल आए तरुवर झुके झुकत मेघ जल लाय। विभौ पाय सज्जन झुके यह परकाजि सुभाय।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)।

सुभायक पु
वि० [सं० स्वाभाविक] स्वाभाविक। स्वभावतः। उ०—अभिराम सचिक्कण श्याम सुगंध के धामहु ते जे सुभा- यक के। प्रतिकृल भए दुख शूल सबै किधौं शाल शृंगार के धायक के।—केशव (शब्द०)।

सुभाव पु †
संज्ञा पुं० [सं० स्वभाव] दे० 'स्वभाव'। उ०—(क) कहा सुभाव परयो सखि तेरो यह बिनवत हौं तोहिं।—सूर (शब्द०)। (ख) और कै हास विलास न भावत साधुन को यह सिद्ध सुभाव।—केशव (शब्द०)।

सुभावित
वि० [सं०] उत्तम रूप से भावना की हुई (औषध)।

सुभाषचंद्र (वसु)
संज्ञा पुं० 'नेता जी' नाम से विख्यात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय देशभक्त योद्धा। विशेष—इनका जन्म २३ जनवरी, १८९७ को बंगाल प्रांत में हुआ था। कहते हैं, १९४५ की एक विमान दुर्घटना में इनका निधन हुआ।

सुभाषण
संज्ञा पुं० [सं०] १. युयुधान के एक पुत्र का नाम। २. सुंदर भाषण।

सुभाषित (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक बुद्ध का नाम। २. उचित कथन। उपयुक्त कथन। ३. आनंदप्रदायक कथन या कवित्वमय उक्ति (को०)।

सुभाषित (२)
वि० १. सुंदर रूप से कहा हुआ। अच्छी तरह कहा हुआ। २. वाक्पटु। वाग्मी (को०)।

सुभाषी
वि० [सं० सुभाषिन्] उत्तम रूप से बोलनेवाला। मिष्ठभाषी।

सुभास (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुधन्वा के एक पुत्र का नाम। २. एक दानव (को०)।

सुभास (२)
वि० सुप्रकाशमान्। खूब चमकीला।

सुभास्वर (१)
वि० [सं०] देदीप्यमान्। चमकदार। चमकीला।

सुभास्वर (२)
संज्ञा पुं० [सं०] पितरों का एक गण।

सुभिक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऐसा काल या समय जिसमें भिक्षा या भोजन खूब मिले और अन्न खूब हो। सुकाल। उ०—पुनि पद परत जलद बहु बर्षे। भयो सुभिक्ष प्रजा सब हर्षे।—रघुराज (शब्द०)। २. दुर्भिक्ष की अवस्था न रहना। अन्न आदि की सुलभता (को०)।

सुभिक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] धौ के फूल। धातुपुष्पिका।

सुभिषज्
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम चिकित्सक। वह जो अच्छी चिकित्सा करनेवाला हो।

सुभी पु
वि० स्त्री० [सं० शुभ] शुभकारक। मंगलकारक। उ०— है जलधार हार मुकुता मनों बक पंगति कुमुदमाल सुभी। गिरा गंभीर गरज मनु सुनि सखी खानि के श्रवन देखु भी।— सूर (शब्द०)।

सुभीता
संज्ञा पुं० [देश०] १. सुगमता। आसानी। सहूलियत। २. सुअवसर। सुयोग। ३. आराम। चैन (क्व०)।

सुभीम (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक दैत्य का नाम।

सुभीम (२)
वि० [वि० स्त्री० सुभीमा] अत्यंत भीषण। बहुत भयावना।

सुभीमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] श्रीकृष्ण की एक पत्नी का नाम।

सुभीरक, सुभीरव
संज्ञा पुं० [सं०] ढाक का पेड़। पलाश वृक्ष।

सुभीरुक
संज्ञा पुं० [सं०] चाँदी। रजत।

सुभुज (१)
वि० [सं०] सुंदर भुजाओंवाला। सुबाहु।

सुभुज पु (२)
संज्ञा पुं० [सं०] सुबाहु नामक राक्षस। उ०—जो मारीच सुभुज मदमोचन।—मानस, १। २२१।

सुभुजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।

सुभूता
संज्ञा स्त्री० [सं०] उत्तर दिशा का नाम जिसमें प्राणी भले प्रकार स्थित होते हैं। (छांदोग्य०)।

सुभूति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कुशल। क्षेम। मंगल। २. उन्नति। तरक्की। ३. तित्तिर नाम का पक्षी (को०)।

सुभूतिक
संज्ञा पुं० [सं०] बेल का पेड़। बिल्ववृक्ष।

सुभूम
संज्ञा पुं० [सं०] कार्तवीर्य जो जैनियों के आठवें चक्रवर्ती थे।

सुभूमि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम।

सुभूमि (२)
वि० सुंदर भूमि। अच्छी जगह [को०]।

सुभूमिक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद का नाम जो महाभारत के अनुसार सरस्वती नदी के किनारे था।

सुभूमिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुभूमिक'।

सुभूमिय
संज्ञा पुं० [सं०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम।

सुभूषण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] उग्रसेन के एक पुत्र का नाम।

सुभूषण (२)
वि० सुंदर भूषणों से अलंकृत। जो अच्छे अलंकार पहने हो।

सुभूषित
वि० [सं०] उत्तम रूप से भूषित। भली भाँति अलंकृत।

सुभृत
वि० [सं०] १. सम्यक्प्रदत्त। भली भाँति प्रदत्त। २. सुर- क्षित। रक्षित। ३. अच्छी तरह लदा हुआ। जिसपर खूब बोझ लदा हो [को०]।

सुभृश, सुभृष
वि० [सं०] अत्यंत अधिक। बहुत अधिक।

सुभैक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम भिक्षा। श्रेष्ठ भिक्षा [को०]।

सुभोग्य
वि० [सं०] सुख से भोगने योग्य। अच्छी तरह भोगने के लायक।

सुभोज
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुंदर भोजन। इच्छा भर भोजन करना। भोजन से तृप्त होना [को०]।

सुभौटी पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० शोभा + वती या हिं० औटी (प्रत्य०)] शोभा। उ०—मौन ते कौन सुभौटी रहे, बिन बोले खुले घर को न किवारो।—हनुमान (शब्द०)।

सुभौम
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के एक चक्रवर्ती राजा का नाम जो कार्तवीर्य का पुत्र था। विशेष—जेन हरिवंश में लिखा है कि जब परशुराम ने कार्तवी- र्यार्जुन का वध किया, तब कार्तवीर्य की पत्नी अपने बच्चे सुभौम को लेकर कुशिकाश्रम में चली गई और वहीं उसका लालन पालन तथा शिक्षा दीक्षा हुई। बड़े होने पर सुभौम ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये २० बार पृथ्वीको ब्राह्मणशून्य किया और इस प्रकार क्षत्रियों का प्राधान्य स्थापित किया।

सुभ्र पु (१)
वि० [सं० शुभ्र] दे० 'शुभ्र'।

सुभ्र (२)
संज्ञा पुं० [सं० श्वभ्र; डिं०] जमीन में का बिल या गड्ढा।

सुभ्राज
संज्ञा पुं० [सं०] देवभ्राज के एक पुत्र का नाम।

सुभ्रु (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नारी। स्त्री। औरत। २. सुंदर नेत्रोंवाली नारी। ३. स्कंद की एक मातृका का नाम।

सुभ्रु (२)
वि० सुंदर भौहोंवाला। जिसकी भँवें सुंदर हों।

सुभ्रू (१)
वि० [सं०] दे० 'सुभ्रु' (२)।

सुभ्रू (२)
संज्ञा स्त्री० तिरछी भौंहोंवाली सुंदरी। आकर्षक नारी [को०]।

सुमंगल (१)
वि० [सं० सुमङ्गल] १. अत्यंत शुभ। कल्याणकारी। २. सदाचारी। ३. यज्ञों से पूर्ण (को०)।

सुमंगल (२)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का विष। २. शुभ या मंगलप्रद वस्तु (को०)।

सुमंगला
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमङ्गला] १. मकड़ा नामक घास। २. स्कंद की एक मातृका का नाम। ३. एक अप्सरा का नाम। ४. एक नदी जो कालिकापुराण के अनुसार हिमालय से निकलकर मणिकूट (कामाक्षा) प्रदेश में बहती है।

सुमंगली
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमङ्गल + ई (प्रत्य०)] विवाह में सप्तपदी पूजा के बाद पुरोहित को दी जानेवाली दक्षिणा। विशेष—सप्तपदी पूजा के बाद कन्या पक्ष का पुरोहित वर के हाथ में सिंदूर देता है और वर उसे वधू के मस्तक में लगा देता है। इसके उपलक्ष में पुरोहित को जो नेग दिया जाता है, उसे सुमंगली कहते हैं।

सुमंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमङ्गा] पुराणानुसार एक नदी का नाम।

सुमंत
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्त्र] राजा दशरथ का मंत्री और सारथि। विशेष—जब रामचंद्र वन को जाने लगे थे, तब यही सुमंत (सुमंत्र) उन्है रथ पर बैठाकर कुछ दूर छोड़ आया था।

सुमंतु (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्तु] १. एक मुनि का नाम जो वेदव्यास के शिष्य, अथर्ववेद के शाखाप्रचारक तथा एक स्मृति या धर्मशास्त्र के प्रणेता थे। २. जह नु के एक पुत्र का नाम। ३. अच्छा सलाहकार। उत्कृष्ट मंत्री (को०)।

सुमंतु (२)
वि० १. अच्छी मंत्रण या सलाह देनेवाला। २. जो अत्यंत निंद्य हो। दोषावह। सापराध [को०]।

सुमंत्र
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्त्र] १. राजा दशरथ का मंत्री और सारथि। २. अंतरिक्ष के एक पुत्र का नाम। ३. कल्कि का बड़ा भाई। ४. आयव्यय का प्रबंध करनेवाला मंत्री। अर्थसचिव। विशेष—सुमंत्र का कर्तव्य यह बतलाया गया है कि वह राजा को सूचित करे कि इस वर्ष इतना द्रव्य संचित हुआ है, इतना व्यय हुआ, इतना शेष है, इतनी स्थावर संपत्ति है और इतनी जंगम संपत्ति है। ५. अच्छी सलाह। उत्तम मंत्रण। अच्छा मंत्र (को०)। ६. बाभ्रव गौतम नाम के आचार्य (को०)।

सुमंत्रक
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्त्रक] कल्कि का बड़ा भाई। विशेष—कल्किपुराण में लिखा है कि कल्कि ने अपने तीन बड़े भाइयों (प्राज्ञ, कवि और सुमंत्रक) के सहयोग से अधर्म का नाश और धर्म का स्थापन किया था।

सुमंत्रज्ञ
वि० [सं० सुमन्त्रज्ञ] धर्मशास्त्र का ज्ञाता।

सुमंत्रित (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्त्रित] अच्छी मंत्रण। उत्कृष्ट सलाह [को०]।

सुमंत्रित (२)
वि० १. जिसकी सलाह या मंत्रण सुविचारित हो। २. जिसे उत्तम मंत्रण या सलाह दी गई हो [को०]।

सुमंत्री
वि० [सं० सुमन्त्रिन्] जिसका मंत्री या अमात्य योग्य हो। सुयोग्य मंत्रीवाला।

सुमंथन पु
संज्ञा पुं० [सं० सु + मन्थ (=पर्वत)] मंदर पर्वत। उ०—श्रुति कदंब पय सागर सुंदर। गिरा सुमंथन शैल धुरंधर।—शं० दि० (शब्द०)।

सुमंद
वि० [सं० सुमन्द] अत्यंत सुस्त। काहिल।

सुमंदबुद्धि
वि० [सं० सुमन्दबुद्धि] मंदबुद्धि। कुंदजेहन। कूढ़मग्ज।

सुमंदभाज्
वि० [सं० सुमन्दभाज्] अत्यंत अभागा। बदकिस्मत [को०]।

सुमदमति
वि० [सं० सुमन्दमति] दे० 'सुमंदबुद्धि'।

सुमंदर
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्द्र] दे० 'सुमंद्र'।

सुमंदा
संज्ञा स्त्री० [सं० सं० सुमन्दा] एक प्रकार की शक्ति।

सुमंद्र
संज्ञा पुं० [सं० सुमन्द्र] एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १६ + ११ के विराम से २७ मात्राएँ तथा अंत में गुरु लघु होते हैं। यह सरसी नाम से प्रसिद्ध है। (होली में जी 'कबीर' गाए जाते हैं, वे प्रायः इसी छंद में होते हैं।)

सुम (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुष्प। कुसुम। २. चंद्रमा। ३. आकाश। व्योम। ४. कर्पूर (को०)।

सुम (२)
संज्ञा पुं० [फा़०] घोड़े या दूसरी चौपायों के खुर। टाप।

सुम (३)
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जो आसाम में होता है और जिसपर 'मूँगा' (रेशम) के कीड़े पाले जाते हैं।

सुमख (१)
वि० [सं०] जिसने उत्तम यज्ञ किए हों। उत्तम यज्ञों सें संपन्न।

सुमख (२)
संज्ञा पुं० उत्तम यज्ञ। आनंद समारोह।

सुमखारा
संज्ञा पुं० [फा़० सुम + खार] वह घोड़ा जिसकी एक (आँख की) पुतली बेकार हो गई हो।

सुमगधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] अनाथपिंडिका की पुत्री का नाम।

सुमणि
संज्ञा पुं० [सं०] १. स्कंद के एक पार्षद का नाम। २. श्रेष्ठ रत्न। उत्म रत्न। ३. वह जो उत्तम रत्नों से भूषित हो (को०)।

सुमत (१)
वि० [सं०] उत्तम ज्ञान से युक्त। ज्ञानवान्। बुद्धिमान्।

सुमत पु (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमति] दे० 'सुमति'।

सुमतराश
संज्ञा पुं० [फा़० सुम + तराश] घोड़े के नाखून या खुर काटने का औजार।

सुमतिंजय
संज्ञा पुं० [सं० सुमतिञ्जय] विष्णु।

सुमति (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक दैत्य का नाम। २. सावर्ण मन्वंतर के एक ऋषि का नाम। ३. सूत के एक पुत्र या शिष्य कानाम। ४. भरत के एक पुत्र का नाम। ५. सोमदत्त के एक पुत्र का नाम। ६. सुपार्श्व के एक पुत्र का नाम। ७. जनमेजय के एक पुत्र का नाम। ८. दृढ़सेन के एक पुत्र का नाम। ९. विदूरथ का एक पुत्र। १०. वर्तमान अवसर्पिणी के पाँचवें अर्हत् या गत उत्सर्पिणी के तेरहवें अर्हत् का नाम। ११. इक्ष्वाकु- वंशी राजा कुकुत्थ के पुत्र का नाम। १२. नृग के एक पुत्र का नाम (को०)।

सुमति (२)
संज्ञा स्त्री० १. सगर की पत्नी का नाम। (पुराणों के अनुसार यह ६०,००० पुत्रों की माता थी।) २. क्रतु की पुत्री का नाम। ३. विष्णुयश की पत्नी और कल्कि की माता। ४. सुंदर मति। सुबुद्धि। अच्छी बुद्धि। ५. मेल। ६. भक्ति। प्रार्थना। ७. सारिका पक्षी। मैना। ८. भाग्य की अनुकूलता। देव की कृपा (को०)। ९. शुभकामना। मंगलकामना। दुआ (को०)। १०. आकांक्षा। कामना। इच्छा (र्को०)।

सुमति (३)
वि० अच्छी बुद्धिवाला। अत्यंत बुद्धिमान्।

सुमति बाई
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमति+हिं० बाई] एक भक्तिन का नाम जो ओड़छा के राजा मधुकर शाह की रानी गणोशबाई की सहचरी थी।

सुमतिमेरु
संज्ञा पुं० [सं०] हल का एक भाग।

सुमतिरेणु
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक यक्ष का नाम। २. एक नागासुर का नाम।

सुमद (१)
वि० [सं०] मदोन्मत्त। मतवाला।

सुमद (२)
संज्ञा पुं० एक वानर जो रामचंद्र की सेना का सेना- पति था।

सुमदन
संज्ञा पुं० [सं०] आम का पेड़। आम्रवृक्ष।

सुमदना
संज्ञा स्त्री० [सं०] कालिकापुराण के अनुसार एक नदी का नाम।

सुमदनात्मजा, सुमदात्मजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।

सुमदुम
वि० [अनु० या देश०] मोटा। तोंदल। स्थूल।

सुमधुर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का शांक। जीव शाक। २. मधुर वचन। स्वीकरणीय कथन। मीठी बात (को०)।

सुमधुर (२)
वि० अत्यंत मधुर। बहुत मीठा।

सुमघ्यमा
वि० [सं०] सुंदर कमरवाली।

सुमध्या
वि० स्त्री० [सं०] दे० 'सुमध्यमा'।

सुमनःपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुमनः पत्रिका'।

सुमनःपत्रिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] जावित्री। जातीपत्री।

सुमनःफल
संज्ञा पुं० [सं०] १. कैथ। कपित्थ। २. जायफल। जातीफल।

सुमन (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुमनस्] १. देवता। पंडित। विद्रान्। ३. पुष्प। फूल। ४. गेहूँ। ५. धतूरा। ६. नीम। ७. घीकरंज। घृतकरंज। ८. एक दानव का नाम। ९. उरु और आग्नेयी के पुत्र का नाम। १०. उल्मुक के एक पुत्र का नाम। ११. हर्यश्व के पुत्र का नाम। १२. प्लक्ष द्रीप के अंतर्गत एख पर्वत का नाम (बौद्ध)। १४. मित्र। (डिं०)।

सुमन (२)
वि० १. उत्तम मनवाला। सहृदय। दयालु। २. मनोहर। सुंदर।

सुमन वाप
संज्ञा पुं० [सं० सुमन+चाप] कामदेव जिसका धनुष फूलों का माना गया है।

सुमनमाल
संज्ञा पुं० [सं० सुमन+हिं० माल] पुष्प की माला। फूलों का हार। उ०—सुरतरु सुमनमाल बहु बरषहिं। मनहुँ बलाक अवलि मनु करषहिं।—मानस, १।३४७।

सुमनराज पु
संज्ञा पुं० [सं० सुमन+राज] सुमन अर्थात् देवताओं का राजा देवराज—इंद्र।

सुमनस (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुमनस्] १. देवता। २. पुष्प। फूल।

सुमनस (२)
वि० प्रसन्नचित्त। उ०—अंधकार तब मिटचो निशानन। भए प्रसन्न देव मुनि आनन। बरषहिं सुमनस सुमनस सुमनस। जय जय करहिं भरे आनँद रस।—रघुराज (शब्द०)।

सुमनसधुज
संज्ञा पुं० [सं० सुमनस्+ध्वज] कामदेव। (डिं०)।

सुममस्क
वि० [सं०] प्रसन्न। सुखी।

सुमना (१)
संज्ञा पुं०, वि० [सं० सुमनस्] दे० 'सुमन'।

सुमना (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चमेली। जातीपुष्प। २. सेवती। शतपत्री। ३. कबरी गाय। ४. कैकेयी का वास्तविक नाम। ५. दम की पत्नी का नाम। ६. मधु की पत्नी और वीरव्रत की माता का नाम।

सुमनामुख
वि० [सं०] सुंदर मुखवाला।

सुमनायन
संज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम।

सुमनास्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम।

सुमनित
वि० [सं० सुमणि+त (प्रत्य०)] सुंदर मणि से युक्त। उत्तम मणियों से जड़ा हुआ। उ०—केशव कमल मूल अलि- कुल कुनितकि कंछौं प्रतिधुनित सुमनित निचयके।—केशव (शब्द०)।

सुमनोज्ञघोष
संज्ञा पुं० [सं०] बुद्धदेव।

सुमनोत्तरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजाओं के अंतः पुर में रहनेवाली स्त्री।

सुमनोदाम
संज्ञा पुं० [सं० सुमनोदामन्] पुष्पहार। पुष्पमाला [को०]।

सुमनोभर
वि० [सं०] फूलों से सजा हुआ।

सुमनोमुख
संज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम।

सुमनोरज
संज्ञा स्त्री० [सं० सुमनोरजस्] फूल का रज। पराग। पुष्पधूलि। पुष्परेणु [को०]।

सुमनौकस
संज्ञा पुं० [सं०] देवलोक। स्नर्ग।

सुमन्यु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक देनगंधर्व का नाम।

सुमन्यु (२)
वि० अत्यंत क्रोधी। गुस्सेवर।

सुमफटा †
संज्ञा पुं० [फा० सुम+हिं० फटना] एक प्रकार का रोग जो घोड़ों के खुर के ऊपरी भाग से तलवे तक होता है। यह अधिकतर अगले पाँवों के अंदर तथा पिछले पाँवों के खुरों में होता है। इससे घोड़ों के लँगड़े हो जाने की संभावना रहती है।

सुमर
संज्ञा पुं० [सं०] १. वायु। हवा। २. सहज मृत्यु।

सुमरन पु
संज्ञा पुं० [सं० स्मरण] दे० 'स्मरण'।

सुमरन (२)
संज्ञा स्त्री० दे० 'सुमरनी'।

सुमरना पु
क्रि० स० [सं० स्मरण] १. स्मरण करना। चिंतन करना। ध्यान करना। २. बारबार नाम लेना। जपना।

सुमरनी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुमरना+ई (प्रत्य०)] नाम जपने की छोटी माला जो सत्ताइस दानों की होती है।

सुमरा
संज्ञा स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली। विशेष—यह मछली भारत की नदियों और विशेषकर गरम झरनों में पाई जाती है। यह पाँच इंच तक लंबी होती है। इसे महुवा भी कहते हैं।

सुमरीचिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सांख्य के अनुसार पाँच प्रकार की बाह्यतुष्टियों में से एक।

सुमर्मग
वि० [सं०] मर्मस्थल तक बेधनेवाला (बाण)।

सुमल्लिक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद का नाम।

सुमसायक
संज्ञा पुं० [सं० सुमन+सायक] कामदेव। (डिं०)।

सुमसुखड़ा (१)
वि० [फा० सुम+हिं० सूखना] (घोड़ा) जिसके खुर सूखकर सिकुड़ गए हों।

सुमसुखड़ा (२)
संज्ञा पुं० एक प्रकार का रोग जिसमें घोड़े के खुर सूखकर सिकुड़ जाते हैं।

सुमह
संज्ञा पुं० [सं०] जह् नु के एक पुत्र का नाम।

सुमहाकपि
संज्ञा पुं० [सं०] एक दानव का नाम।

सुमहात्यय
वि० [सं०] अत्याधिक विनाश करनेवाला [को०]।

सुमात्रा
संज्ञा पुं० मलय द्रीपपुंज का एक बड़ा द्रीप जो बोनियो के पश्चिम और जावा के उत्तरपश्चिम में है।

सुमाद्रेय
संज्ञा पुं० [सं० माद्रेय] सहदेव (डिं०)।

सुमानस
वि० [सं०] अच्छे मन का। सहृदय।

सुमानिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सात अक्षर होते हैं जिनसें से पहला, तीसरा, पाँचवाँ और सातवाँ अक्षर लघु तथा अन्य अक्षर गुरु होते हैं।

सुमानी
वि० [सं० सुमानिन्] बड़ा अभिमानी। स्वाभिमानी।

सुमाय
वि० [सं०] १. अत्यंत बुद्धिमान्। २. मायायुक्त।

सुमार पु
संज्ञा पुं० [फा० शुमार] गिनती। गणना। दे० 'शुमार'।

सुमार्ग
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम मार्ग। अच्छा रास्ता। सुपथ। सन्मार्ग।

सुमार्त्स्न
वि० [सं०] १. अत्यंत सुंदर। २. बहुत छोटा। लुक्ष्म [को०]।

सुमाल
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन जनपद का नाम।

सुमालिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में छह वर्ण होते हैं। इनमें से दूसरा और पाँचवाँ लघु तथा अन्य वर्ण गुरु होते हैं। २. एक गंधर्वी का नाम।

सुमाली (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुमालिन्] १. एक वानर का नाम। २. एक राक्षस का नाम जो सुकेश राक्षस का पुत्र था। विशेष—इसी सुमाली की कन्या कैकसी के गर्भ से विश्रवा से रावण, कुंभकर्ण, शूर्पनखा और विभीषण उत्पन्न हुए थे।

सुमाली (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शुमाल] एक अरब जाति। विशेष— आफ्रिका के पश्चिमी किनारे पर तथा अदन में इस जाति का निवास है। गुलामों का व्यवसाय करनेवाला आफ्रिका से इन्हें ले आए थे।

सुमाली लैंड
संज्ञा पुं० [अं०] आफ्रिका का पूर्वी तटवर्ती एक देश।

सुमाल्य
संज्ञा पुं० [सं०] महापद्म के एक पुत्र का नाम।

सुमाल्यक
संज्ञा पुं० [सं०] पुराण के अनुसार एक पर्वत का नाम।

सुमावलि
संज्ञा [सं०] पुष्पहार।

सुमित्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। २. अभिमन्यु के सारथि का नाम। ३. मगध का एक राजा जो अर्हत् सुव्रत का पिता था। ४. गद के एक पुत्र का नाम। ५. श्याम का एक पुत्र। ६. शमीक का एक पुत्र। ७. वृष्णि का एक पुत्र। ८. इक्ष्वाकु वंश के अंतिम राजा सुरथ के पुत्र का नाम। ९. एक दानव का नाम। १०. सौराष्ट्र के अंतिम राजा का नाम। विशेष— कर्नल टाड के अनुसार ये विक्रमादित्य के समसामयिक थे। इन्हों ने राजपुताने में जाकर मेवाड़ के राणा वंश की स्थापना की थी। भागवत में इनका उल्लेख है। ११.अच्छा मित्र। सन्मित्र। वफादार दोस्त (को०)।

सुमित्र (२)
वि० उत्तम मित्रोवाला।

सुमित्रभू
संज्ञा पुं० [सं०] १. जैनियों के चक्रवर्ती राजा सगर का नाम। २. वर्तमान अवसर्पणी के बीसवें अर्हत् का नाम।

सुमित्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दशरथ की एक पत्नी जो लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न की माता थी। २. मार्कडेय की माता का नाम। ३. एक यक्षिणी का नाम (को०)।

सुमित्रातनय
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुमित्रानंदन'।

सुमित्रानंदन
संज्ञा पुं० [सं० सुमित्रानन्दन] १. लक्ष्मण। २. शत्रुध्न।

सुमित्राभू
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुमित्रानंदन'।

सुमित्र्य
वि० [सं०] उत्तम मित्रोंवाला। जिसके अच्छे मित्र हों।

सुमिरण पु
संज्ञा पुं० [सं० स्मरण] दे० 'स्मरण'।

सुमिरन
संज्ञा पुं० [सं० स्मरण] दे० 'सुमिरण'।

सुमिरना पु
कि० स० [सं० स्मरण] दे० 'समरना'। उ०—जेहिं सुमिरत सिधि होई गणनायक करिवर बदन।—तुलसी (शब्द०)।

सुमिरनी पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुमिरन + ई(प्रत्य०)] दे० 'सुमरनी'। उ०—अथवा सुमिरनी डारि दीन्ह्यो तुरत ही धारा बढ़ी।— रगुराज (शब्द०)।

सुमिरिनिया पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुमिरनी + इया (प्रत्य०)] दे० 'सुमिरनी'। उ०—पीतय हक सुमिरिनिया मुहि देइ जाहु।—रहीम (शब्द०)।

सुमुख (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. गणेश। ३. गरूड़ के पुत्र का नाम। ४. द्रोण के एक पुत्र का नाम। ५. एक नागासुर। ६. एक असुर।७. किन्नरों का राजा। ८. एक ऋषि। ९. एक वानर।१०. पंडित। आचार्य।११. एक प्रकार का जलपक्षी। १२. एक प्रकार का शाक। १३. एक राजा का नाम।१४.राई। राजिंका। राजसर्षप।१५. वनबबरी। जंगली बर्खरी। १६. श्वेत तुलसी।१७. सुंदर मुख।१३. एक प्रकार का भवन (को०)।१४. नख की खरोंच। नखक्षत (को०)।

सुमुख (२)
वि० १. सुंदर। मुखवाला। २. सुंदर। मनोरम। मनोहर। ३. प्रसन्न।४. अनुकूल। कपालु।५. जिसकी नोक अच्छी हो। धारदार। अनीवाला। जैसे, वाण (को०)। ६. जिसके दरवाजे सुंदर हों। सुंदर द्वारवाला (को०)।

सुमुखा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुंदर मुखवाली स्त्री। सुंदरी स्त्री।

सुमुखी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री जिसका मुख सुंदर हो। सुंदर मुखवाली स्त्री। २. दर्पण। आईना। ३. संगीत में एक प्रकार की मूर्छना। ४. एक अप्सरा का नाम। ५. एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ११अक्षर होते हैं। इनमें से पहला, आठवाँ तथा ग्यारहवाँ लघु और अन्य अक्षर गुरू होते हैं। ६. नील अपराजिता। नीली कोयल। ७. शंखपुष्पी। शंखाहुली। कौडियाली।

सुमुष्टि
संज्ञा पुं० [सं०] बकायन। विषमुष्टि। महानिंब।

सुमूर्ति
संज्ञा पुं० [सं०] शिव के एक गण का नाम।

सुमूल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सफेद सहिंजन। श्वेत शिग्र। २. उत्तम मूल।

सुमूल (२)
वि० उत्तम मूलवाला। जिसकी जड़ अच्छी हो।

सुमूलक
संज्ञा पुं० [सं०] गाजर।

सुमूला
संज्ञा स्त्री०[सं०] १. सरिवन। शालपर्णी। २. पिठवन। पृष्णिपर्णी।

सुमृग
संज्ञा पुं० [सं०] वह भूमि जहाँ बहुत से जंगली जानवर हों। शिकार खेलने के लिये अच्छा मैदान।

सुमृत (१)
वि० [सं०] मृत। मरा हुआ [को०]।

सुमृत पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० स्मृति] दे० 'स्मृति'।उ०—श्रृति गुरू साधु सुमृत संमत यह दृश्य सदा दुखकारी।—तुलसी (शब्द०)।

सुमृति पु
सज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति] दे० 'स्मृति'। उ०— देव कवितान पुण्य कीरति वितान, तेरे सुमृति पुराण गुणवान श्रुति भरिए।— देव (शब्दि०)।

सुमेखल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सूँज। मुंजतृण।

सुमेखल (२)
वि० जिसकी मेखला सूंदर हो। सुंदर मेखलावाला।

सुमेध
संज्ञा पुं० [सं०] रामायण के अनुसार एक पर्वत का नाम।

सुमेड़ी †
संज्ञा स्त्री० [दंश०] खाट बुनने का बाध।

सुमेध
वि० [सं० सुमेधस्] दे० 'सुमेधा'। उ०— ताहि कहत आच्छेय हैं भूषन सुकवि सुमेध। — भुषण (शब्द०)।

सुमेधा (१)
वि० [सं० सुमेधस्] उत्तम बुद्धिवाला। सुबुद्धि। बुद्धिमान्।

सुमेधा (२)
संज्ञा पुं० १. चाक्षुष मन्वंतर के एक ऋषि का नाम। २. वेदमित्र के एक पुत्र का नाम। ३. पाँचवें मन्वेतर के विशिष्ट देवता। ४. पितरों का एक गण या भेद।

सुमेधा (३)
संज्ञा स्त्री० सालकंगनी। ज्योतिष्मती लता।

सुमेध्य
वि० [सं०] अत्यंत पवित्र। बहुत पवित्र।

सुमेर पु
संज्ञा पुं० [सं० सुमेरु] १. सुमेरु पर्वत। उ० — (क) शोभित सुंदर केशव कामिनि। जिमि सुमेर पर घन सहगामिनी।— गिरिधर (शब्द०)। (ख) संपति सुमेर की कुबेर की जु पावै ताहि, तुरत लुटावत विलंब उर धारै ना। — पद्माकर (शब्द०)।२. गंगाजल रखने का बड़ा पात्र।

सुमेरु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक पुराणोक्त पर्वत जो सोने का कहा गया है। विशेष— भागवत के अनुसार सुमेरु पर्वतों का राजा है। यह सोने का है। चइस भूमंडल के सात द्वीपों में प्रथम द्वीप जंबू द्वीप के— जिसकी लंबाई ४० लाख कोस और चौड़ाई चार लाख कोस है—नौ वर्षों में से इलावृत नामक अभ्यंतर वर्ष में यह स्थित है। यह ऊँचाई में उक्त द्वीप के विस्तार के समान है। इस पर्वत का शिरोभाग १२८ हजार कोस, मूल देश ६४ हजार कोस और मध्यभाग चार हजार कोस का है। इसके चारों ओर मंदर, मेरुमंदर, सुपार्श्र्व और कुमुद नामक चार आश्रित पर्वत हैं। इनमें प्रत्येक की ऊँचाई और फैलाव ४० हजार कोस है। इन चारों पर्वतों पर आम, जामुन, कदंब और बड़ के पेड़ हैं जिनमें से प्रत्येक की ऊँचाई चार सौ कोस है। इनके पास ही चार हृद भी हैं जिनमें पहला दूध का, दूसरा मधु का, तीसरा ऊख के रस का और चौथा शुद्ध जल का है। चार उद्यान भी हैं जिनके नाम नंदन, चैत्ररथ, वैभ्राजक औऱ सर्वतोभद्र हैं। देवता इन उद्यानों में सुरांगनाओं के साथ विहार करते हैं। मंदरा पर्वत के देवच्युत वृक्ष और मेरुपर्वत के जंबु वृक्ष के फूल, बहुत स्थुल औऱ विराट्काय होते हैं। इनसे दो नदिय़ाँ — अरुणोदा और जंबू नदी — बन गई हैं। जंबू नदी के किनारे की जमीन का मिट्टी तो रस से सिक्त होने का कारण सोना ही हो गई चहै। सुपार्श्र्व पर्वत के महाकंदब वृक्ष से जी मधुधारा प्रवाहित होती है, उसकी पान करनेवाले के मुँह से निकली हुई सुगंध चार सौ कोस तक जाति है। कुमुद पर्वत का वट वृक्ष तो कल्पतरु ही है। यहाँ के लोग आजीवन सुख भोगते हैं। सुमेरु के पूर्व जठर और देवकूट, पश्चिम में पवन और परियात्र, दक्षिण में कैलास और करवीर गिरि तथा उत्तर में त्रिशृंग और मकर पर्वत स्थित हैं। इन सबकी ऊँचाई कई हजार कोस है। सुमेरु पर्वत के ऊपर मध्यभाग में ब्रह्म की पुरी है, जिसका विस्तार हजारों कोस है। यह पूरी भी सोने की है। नृसिंहपुराण के अनुसार सुमेरु के तीन प्रधान शृंग हैं, जो स्फटिक, वैदुर्य और रत्नमय हैं। इन शृंगों पर २१ स्वर्ग हैं जिनमें देवता लोग निवास करते हैं। २. शिव जी का एक नाम। ३. जपमाला के बीच का बड़ा दाना जो और सब दोनों के ऊपर होता है। इसी से जप का आरंभ और इसी पर इसकी समाप्ति होती हैं। ४. उत्तर ध्रुव। विशेष दे० 'ध्रुव'। ५. एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में १२+५ के विश्राम से १७ मात्राएँ होती हैं, अंत में लघु गुरु नहीं होते, पर यगण अत्यंत श्रुतिमधुर होता है। इसकी १, ८ और १५ वीं मात्राएँ लघु होती हैं। किसी किसी ने इसके एकचरण में १९ और किसी ने २० मात्राएँ मानी हैं। पर यह सर्वसंमत नहीं है। ६. एक विद्याधर (को०)।

सुमेरु (२)
वि० १. बहुत ऊँचा। २. बहुत सुंदर।

सुमेरुजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुमेरु पर्वत से निकली हुई नदी।

सुमेरुवृत्त
संज्ञा पुं० [सं०] वह रेखा जो उत्तर ध्रुव से २३।। आक्षांश पर स्थित है।

सुमेरुसमुद्र
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तर महासागर।

सुम्न
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऋचा। मंत्र। २. आनंद। प्रसन्नता। ३. कृपा। अनुग्रह। रक्षण। ४. यज्ञ [को०]।

सुम्नी
वि० [सं० सुम्निन्] १. दयालु। कृपालु। मेहरबान। २. अनुकूल।

सुम्मा
संज्ञा पुं० [देश०] १. बकरा (बाजारू)। २. दे० ' सुंबा'।

सुम्मी
संज्ञा स्त्री० [देश०] १. सुनारों का एक औजार जिससे वे घुंडी और बरेखी की नोक उभाड़ते हैं। २. दे० 'सुंबी'।

सुम्मीदार सबरा
संज्ञा पुं० [हिं० सुम्मी + फ़ा० दार (प्रत्य०) + सबरा (=औजार)] वह सबरा जिससे कसेरे परात में बुँदकी निकालते हैं।

सुम्ह (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुम्भ] एक जाति का नाम।

सुम्ह (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा सुम] दे० 'सुम'।

सुम्हार
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का धान जो उत्तर प्रदेश में होता है।

सुयं पु
अव्य० [सं० स्वयम्] दे० 'स्वयम्'।

सुयंत्रित
वि० [सं० सुयन्त्रित] १. भली प्रकार कीलित। आरक्षित। २. भली प्रकार बँधा हुआ। सुबद्ध। ३. संयत। जितेंद्रिय आत्मनिग्रही।

सुयंवर पु
संज्ञा पुं० [सं० स्वयम्वर] दे० 'स्वयंवर'।

सुयजु
संज्ञा पुं० [सं० सुयजुष्] महाभारत के अनुसार भूमंजु के एक पुत्र का नाम।

सुयज्ञ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. रूचि प्रजापति के एक पुत्र का नाम जो आकृति के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। २. वसिष्ठ के एक पुत्र का नाम। ३. ध्रुव के एक पुत्र का नाम। ४. उशीनर के एक राजा का नाम। ५. उत्तम यज्ञ।

सुयज्ञ (२)
वि० उत्तमता या सफलता से यज्ञ करनेवाला। जिसने उत्त- मता से यज्ञा किया हो।

सुयज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०] महाभौम की पत्नी का नाम।

सुयत
वि० [सं०] १. उत्तम रुप से संयत। सुसंयत। २. जितेंद्रिय।

सुयम
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार देवताओं का एक गण जिनका जन्म सुयज्ञ की पत्नी दक्षिणा के गर्भ से हुआ था।

सुयमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] प्रियंगु।

सुयवस
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तम गोचर भूमि। २. हरी हरी उत्तम घास (को०)।

सुयश (१)
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छा यश। अच्छी कीर्ति। सुख्याति। सुकीर्ति। सुनाम। जैसे, — आजकल चारों ओर उनका सुयश फैल रहा है।

सुयश (२)
वि० [सं० सुयशम्] उत्तम यशवाला। यशस्वी कीर्तिमान्।

सुयश (३)
संज्ञा पुं० भागवत के अनुसार अशोकवर्धन के पुत्र का नाम।

सुयशा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दिवोदास की पत्नी का नाम। २. एक अर्हत् की माता का नाम। ३. परीक्षित की एक स्त्री का नाम। ४. एक अप्सरा का नाम। ५. अवसर्पिणी।

सुयष्टव्य
संज्ञा पुं० [सं०] रैवत मनु के एक पुत्र का नाम।

सुयाति
संज्ञा पुं० [सं०] हरिवंश के अनुसार नहुष के एक पुत्र का नाम।

सुयाम
संज्ञा पुं० [सं०] ललितविस्तर के अनुसार एक देवपुत्र का नाम।

सुयामुन
संजा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. राजभवन। राजप्रसाद। ३. एक प्रकार का मेघ। ४. एक पर्वत का नाम। ५. वत्सराज (उदयन) का एक नाम (को०)।

सुयुक्त
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम [को०]।

सुयुक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अच्छई युक्ति। उत्तम तर्क। २. उत्तम उपाय।

सुयुद्ध
संज्ञा पुं० [सं०] १. धर्मयुद्ध। न्यायसंमत युद्ध। २. अच्छी तरह लड़ना। जमकर लड़ना (को०)।

सुयोग
संज्ञा पुं० [सं०] सुंदर योग। संयोग। सुअवसर। अच्छा मौका। जैसे, — बड़े भाग्य से यह सुयोग हाथ आया है।

सुयोग्य
वि० [सं०] बहुत योग्य। लायक। काबिल। जैसे, — उनके दोनों पुत्र सुयोग्य हैं।

सुयोधन
संज्ञा पुं० [सं०] धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योंधन का एक नाम।

सुरंग (१)
वि० [सं० सुरङ्ग] १. जिसका रंग सुंदर हो। सुंदर रंग का। २. सुंदर। सुडौल। उ।— (क) सब पुर देखि धनुषपुर देख्यो देखे महल सुरंग। — सूर (शब्द०)। (ख) अलकवलि मुक्तावालि गूँथी डोर सुरंग बिराजै। सूर (शब्द०)। (ग) गति हेरि कुरंग कुरंग फिरै चतुरंग तुरंग सुरंग बने। — गि० दास (शब्द०)। ३. रसपूर्ण। उ०— रसनिधि सुंदर मीत के रंग चुचौहें नैन। मन पट कौं कर देत हैं तुरत सुरंग ये नैन। — रस- निधि (शब्द०)। ४. लाल रंग का। रक्तवर्ण। उ।— पहिरे बसन सुरंग पावकयुत स्वाहा मनो। — केशव (शब्द०)। ५. निर्मल। स्वच्छ। साफ। उ०— अति बदन शोभ सरसी सुरंग। तहै कमल नयन नासा तरंग। — केशब (शब्द०)।

सुरंग (२)
संज्ञा पुं० १. शिंगरफ। हिंगुल। २. पतंग। बक्कम। ३. नारंगी। नागरंग। ४. रंग के अनुसार घोड़ों का एक भेद।

सुरंग (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्ग] १. जमीन या पहाड़ के नीचे खोदकर या बारुद से उड़ाकर बनाया हुआ रास्ता जो लोगों के आने जाने के काम में आता है। जैसे, — इस पहाड़ में रेल कई सुरंगें पार करके जाती हैं। २. किले या दीवार आदि के नीचे जमीन के अंदर खोदकर बनाया हुआ वह तंग रास्ता जिसमें बारुद आदि भरकर उसमें आग लगाकर किला या दीवार उड़ते हैं। उ०— भरि बारुद सुरंग लगावै। पुरी सहित जदु भटन उड़वै।—गोपाल (शब्द०)।क्रि० प्र० —उड़ाना। लगाना। ३. एक प्रकार का यंत्र जिसमें बारुद से भरा हुआ एक पीपा होता हैं और जिसके उपर एक तार निकला हुआ होता हैं। विशेष— यह यंत्र समुद्र में डुबा दिया जाता है और इसका तारा उपर की ओर उठा रहता हैं। जब किसी जहाज का पैदा इस तार से छु जाता है, तो अपनी भीतरी विद्युत् शक्ति की सहायता से बारुद में आग लग जाती है जिसके फूटने से ऊपर का जाहाज फटकर डूब जाता है। इसका व्यवहार प्रायः शत्रुओं के जहाजों को नष्ट करने में होता है। ४. वह सुराख जो चोर लोग दीवार में बनाते हैं। सेंघ। क्रि० प्र० —लगाना। मुहा०—सुरंग मारना = सेंध लगाकर चोरी करना।

सुरंगद
संज्ञा पुं० [सं० सुरङ्गद] पतंग। बख्कम। आल।

सुरंगधातु
संज्ञा पुं० [सं० सुरङ्गधातु] गेरु मिट्टी।

सुरंगधूलि
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्गधूलि] नारंगी का पराग [को०]।

सुरंरगभुक
संज्ञा पुं० [सं० सुरङ्गभुज्] सेंघ लगानेवाला। चोर।

सुरंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्गा] १. कैवर्तिका लता। २. सेंध।

सुरंगिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्गिका] १. मूर्वा। मुहँरी। चुरनहार। २. उपोदिका। पोई का साग। ३. श्वेत काकमाची। सफेद मकोय।

सुरंगी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्गी] १. काकनासा। कौआठोठी। २. पुन्नाग। सुलतान चंपा। ३. रक्त शोभांदन। लाल सहिंजन। ४. आल का पेड़ जिससे आल का रंग बनता है।

सुरंजन
संज्ञा पुं० [सं० सुरञ्जन] सुपारी का पेड़।

सुरंधक, सुरंध्र
संज्ञा [सं० सुरन्धक, सुरन्ध्र] १. एक प्राचीन जनपद का नाम। २. उस जनपज का निवासी।

सुर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवता। २. सूर्य। ३. पंडित। विद्वान। ४. मुनि। ऋषि। ५. पुराणनुसार एक प्राचीन नगर का नाम जो चंद्रप्रभा नदी के तट पर था। ६. अग्नि का एक विशेष्ट रुप। ७. देवविग्रह। देवप्रतिमा (को०)। ८. ३३ की संख्या (को०)।

सुर (२)
संज्ञा पुं० [सं० स्वर] स्वर। ध्वनि। आवाज। विशेष दे० 'स्वर'। यौ०— सुरतान। सुरटीप। क्रि० प्र०—छेडना।—देना।—भरना।—मिलाना। मुहा०—सुर में सुर मिलाना = हाँ में हाँ मिलाना। चापलूसी करना। सुर चभरना = किसी गाने या बजानेवाले को सहारा देने के लिये उसके साथ कोई एक सुर अलापना या बाजे आदि से निकालना।

सुरकंत पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर+कान्त] इंद्र। उ०— मतिमंत महा छितिकंत मनि चढि द्विदंत सुरकंत सम। — गि० दास (शब्द०)।

सुरक (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुर] नाक पर का वह तिलक जो भाले की आकृति का होता है। उ०— खौरि पनिच भृकुटी धनुष बधिकु समरु, तजि कानि। हनतु तरुन मृग तिलकसर सुरक भाल, भरि तानि। — बिहारी (शब्द०)।

सुरक (२)
संज्ञा स्त्री० [हि० सुरकना] सुरकने की क्रिया या भाव।

सुरकना
क्रि० [अनु०] १. किसी तरल पदार्थ को धीरे धीरे हवा के साथ खींचते हुए पीना। हवा के साथ ऊपर की ओर धीरे धीरे खींचना।

सुरकरींद्र
संज्ञा पुं० [सं० सुरकरीन्द्र] देवहस्ती। ऐरावत [को०]। यौ०— सुरकरींद्रदपीपहा=गंगा का एक नाम।

सुरकरी
संज्ञा पुं० [सं० सुरकरिन्] देवताओं का हाथी। सुरराज का हाथी। ऐरावत दिग्गज। उ०— जु तू इच्छा वाके करि विमल पानी पियन की। झुके आधो लंबे तन गगन में ज्यों सुरकरी।— राजा लक्ष्मण सिंह (शब्द०)।

सुरकली
संज्ञा स्त्री० [हि० सुर+कलि] एक रागिनी का नाम।

सुरकाज पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरकार्य] देवताओं का काम या हित। वह काम जो देवताओं को इष्ट हो। उ०— (क) सुरकाज धरि कर राज तनु चले दलन खल निसिचर अनी।—मानस, २।१२६। (ख) उठे हरखि सुरकाजु सँबारन। — मानस, ३।२१।

सुरकानन
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के बिहार करने का वन। नंदन कानन।

सुरकामिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवांगना। सुरांगना। अप्सरा [को०]।

सुरकारु
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के शिल्पकार, विश्वकर्मा।

सुरकार्मुक
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रधनुष।

सुरकार्य
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं की तुष्टि के लिये किया हुआ कर्म। देवकार्य। जैसे, — पूजन हवन आदि।

सुरकाष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] देवदारु। देवकाष्ठ।

सुरकुदाव पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर (=स्वर), सं० कु+हिं० दाँव (=धोखा)] स्वर के द्वारा धोखा देना। स्वर बदलकर बोलना, जिससे लोग धोखे में आ जायँ। उ०— चौक चारु करि कूप ढारु धरियार बाँधि घर। मुक्ति मोल करि खड्ग खोलि सिंघिहि निचोल वर। हय कुदाव दे सुरकुदाव गुन गान रंग को। जानु भाव शिवधाम धाव धन ल्याउ लंक की। — केशव (शब्द०)।

सुरकुनठ
संज्ञा पुं० [सं०] बृहत्संहिता के अनुसार ईशानकीण में स्थित एक देश का नाम।

सुरकुल
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का निवासस्थान।

सुरकृत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] विश्वामित्र् के एक पुत्र का नाम।

सुरकृत (२)
वि० देवताओं द्वारा किया हुआ।

सुरकृता
संज्ञा स्त्री० [सं०] गिलोय। गुडुची।

सुरकेतु
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं या इंद्र की ध्वजा। २. इंद्र। उ०— द्वारपाल के वचन सुनत नृप उठे समाज समेतू। लेन चले मुनि की अगुवाई जिमि विधि कहँ सुरकेतू। — रघुराज (शब्द०)।

सुरक्त
वि० [सं०] १. सूंदर रंगा हुआ। अच्छी तरह रंगा हुआ। २. गाढ़ रक्त वर्ण का। ३. प्रभावित। वशीभूत। ४. अनुरक्त। ५. मधुर् ध्वनियुक्त। ६. अत्यंत सुंदर। बहुत खूबसूरत [को०]।

सुरक्तक
संज्ञा पुं० [सं०] १. कोशम। कोशाभ्र। विशेष दे० 'कोशम'। २. एक प्रकार का आम्रफल (को०)। ३. सोन गेरु। स्वर्ण- गैरिक।

सुरक्ष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक मुनि का नाम। २. पुराणानुसार एक पर्वत का नाम।

सुरक्ष (२)
वि० उत्तम रुप से रक्षित। जिसकी भली भाँति रक्षा की गई हो।

सुरक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम रुप से रक्षा करने की क्रिया। रखवाली। हिफाजत।

सुरक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुरक्षण। सम्यक् रक्षा [को०]।

सुरक्षित
वि० [सं०] जिसकी भली भाँति रक्षा की गई हो। उत्तम रुप से रक्षित। अच्छी तरह रक्षा किया हुआ।

सुरक्षी
संज्ञा पुं० [सं० सुरक्षिन्] उत्तम या विश्वास्त रक्षक। अच्छा अभिभावक या रक्षक।

सुरक्ष्य
वि० [सं०] १. जो सम्यक् रक्षणीय हो। २. सरलतापूर्वक जिसकी रक्षा की जा सके [को०]।

सुरखंडनिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरखण्डनिक] एक प्रकार की वीणा जो 'सुरमंडलिका' भी कहलाती हैं।

सुरख पु
वि० [फ़ा० सुर्ख] दे० 'सुर्ख'। उ०— हरषि हिये पर तिय धरयो सुरख सीप को हार। — पद्माकर (श्बद०)।

सुरखा (१)
वि० [फ़ा० सुर्ख] दे० 'सुर्ख'। उ०— सुरखा अरु सँजाब सुरमई अबलख भारी। — सूदन (शब्द०)।

सुरखा (२)
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का लंबा पौधा जिसमें पत्ते बहुत कम होते हैं।

सुरखाब (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुरखाब] चकवा। मुहा०— सुरखाब का पर लगना = विलक्षणता या विशेषता होना। अनोखापन होना। जैसे — तुम में क्या कोई सुरखाब का पर है, जो पहले तुम्हें दें।

सुरखाब (२)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० सुरखा़ब] एक नदी का नाम जो बलख में बहती हैं।

सुरखिया
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुर्ख + इया (प्रत्य०)] एक प्रकार का पक्षी। विशेष— यह सर से गरदन तक लाल होता है। इसकी पीठ भी लाल होती है, पर चोंच पीली और पैर काले होते हैं।

सुरखिया बगला
संज्ञा पुं० [हि० सुर्ख+बगला] १. एक प्रकार का बगला जिसे गाय बगला भी कहते हैं।

सुरखी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० सुर्ख] १. ईँटों का बनाया हुआ महीन चूरा जो इमारत बनाने के काम में आता है। २. दे० 'सुर्खी'। यौ०— सुरखी चूना।

सुरखुरु
वि० [फ़ा० सुर्खरु] दे० 'सुर्खरु'। उ०— अलबदार भल तेहि कारगुरु। दीन दुनि रोसन सुरखुरु — जायसी (शब्द०)।

सुरगंड
संज्ञा पुं० [सं० सुरगण्ड] एक प्रकार का फोड़ा।

सुरग पु †
संज्ञा पुं० [सं० स्वर्ग] दे० 'स्वर्ग'। उ०— जीत्यौ सुरग जीति दिसि चारयो। — लाल कवि (शब्द०)।

सुरगज
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं यो इंद्र का हाथी।

सुरगण
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. देवगण। देवताओं का वर्ग या समूह।

सुरगति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दैवी गति। भावी। २. देवताओं की स्थिति या अवस्था (को०)।

सुरगन पु
संज्ञा [सं० सुरगण] देवताओं का समूह। देवसण। सुरगण। उ०— सुरगन सहित सभय सरराज। — मानस, २।२६४।

सुरगबेसाँ
संज्ञा स्त्री० [सं० स्वर्गवेश्या] अप्सरा (डिं०)।

सुरगर्भ
संज्ञा पुं० [सं०] देवसंतान।

सुरगाय
संज्ञा स्त्री० [पुं० सुर+गो] कामधेनु।

सुरगायक
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के गायक। गंधर्व।

सुरगायन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरगायक'।

सुरगिरि
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के रहने का पर्वत, सुमेरु।

सुरगी पु
संज्ञा पुं० [सं० स्वर्गीय] देवता। (डिं०)।

सुरगी नदी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० स्वर्गीय+नदी] स्वर्नदी। देवनदी। गंगा। (डिं०)।

सुरगुरु
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के गुरु, बृहस्पति। चउ०— बचन सुनत सुरगुरु सुमकाने। — मानस, २।२१७।

सुरगुरुदिवस
संज्ञा पुं० [सं०] बृहस्पतिवार।

सुरगृह
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का मंदिर। सुरकुल।

सुरगैया पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर+हि० गैया] कामधेनु।

सुरग्रामणी
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का नेता, इंद्र।

सुरचाप
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रधनुष।

सुरच्छन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरक्षण] दे० 'सुरक्षण'। उ०— रन परम विचच्छन गरम तर धरम सुरच्छन करम कर। — गि० दास (शब्द०)।

सुरजःफल
संज्ञा पुं० [सं०] कटहल। पनस।

सुरज (१)
वि० [सं० सुरजस्] (फूल) जिसमें उत्तम या प्रचुर पराग हो।

सुरज पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० सूर्य] दे० 'सूर्य'।

सुरजन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का वर्ग। देवसमूह।

सुरजन पु (२)
वि० [सं० सज्जन] १. सज्जन। सुजन। २. चत्तुर। चालाक। उ०— कहो नैक समुझाइ मुहिं सुरजन प्रीतम आप। बस मन मैं मन कौ हरौ क्यों न बिरह संताप। — रसनिधि। (शब्द०)।

सुरजनपन
संज्ञा पुं० [हिं० सुरजन+पन(प्रत्य०)] १. सज्जनता। भलमनसत। २. चालाकी। होशियारी। चतुराई।

सुरजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक अप्सरा का नाम। २. पुराणनुसार एक नदी का नाम।

सुरजेठो पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरज्यष्ठ] ब्रह्मा। (डि०)।

सुरज्येष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं में बड़े, ब्रह्मा।

सुरझन पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुलझना] दे० 'सुलझन'। उ०—गरजन मैं पुनि आप चही बरसन मैं पुनि आप। सुरझन मै पुनि आप त्यों उरझन मैं पुनि आप। — रसनिधि (शब्द०)।

सुरझना
क्रि० अ० [हिं०] दे० 'सुलझना'। उ०— अरी करेजै नैन तुव सरसि करेजे वार। अजहूँ सुरझत नाहिं ते सुर हित चकरत पुकार। — रसनिधि (शब्द०)।

सुरझाना
क्रि० स० [हि० सुलझना] दे० 'सुलझना'। उ०— क्यों सुरझाऊँ री नँदलाल सों अरुझि रह्नो मन मेरो। — सूर (शब्द०)।

सुरझावना पु
क्रि० सं० [हिं० सुलझना] दे० 'सुलझना'। उ०— उरझ्यो काहू रुख में कहूँ न वल्कल चीर। सुरझावन के मिस तऊ ठिठकी मोरि शरीर। — लक्ष्मणसिंह (शब्द०)।

सुरटीप
संज्ञा स्त्री० [हि० सुर+टीप] स्वर का आलाप। सुर की तान।

सुरत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. रतिक्रीड़ा। कामकेलि। संभोग। मैथुन। उ०— मुरत ही सब रैन बीती कोक पूरण रंग। जलद दामिनि संग सोहत भरे आलस संग। — सूर (शब्द०)। यौ०— सुरतकेलि, सुरतक्रीड़ा=रतिक्रीड़ा। सुरतगुप्ता। सुरत- गुरु=पति। शौहर। सुरतगोपना। सुरतग्लानि। सुरत- तांडव=तीव्रतम कामवेग। प्रचंड संभोग। सुरतताली। सुरत- प्रसंग=कामक्रीड़ा में आसक्ति। सुरतभेद =एक प्रकार का रतिबंध। सूरतमृदित = रतिक्रीड़ा में मसल दिया हुआ। सुरतरंगी =संभोग चमें आसक्त। सुरतवाररात्रि=सुरतक्रीड़ा की रात। सुरतविशेष =एक रतिबंध। सुरतस्थ। २. उत्कृष्ट आनंद की अनूऊति (को०)। ३. एक बौद्ध भिक्षु का नाम।

सुरत (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति] ध्यान। याद। सुध। उ।— (क) धीर मढ़त चमन धन नहीं कढ़त चबदन में बैन। तुरत सुरत की सुरत चकै जुरत मुरत हंसि नैन। — शृंगार सतसई (शब्द०)। (ख) करत महातम विपिन वधि चलो गयो करतार। तहँ अखेड लगी सुरत तथा तैल की धार। — रघुराज (शब्द०)। क्रि० प्र० —करना।—दिलाना।— होना।—लगना। मुहा०— सुरत बिसारना = भूल जाना। विस्मृत होना। सुरत सँभालना =होश सँभालना।

सुरतगुप्त, सुरतगोपना
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुरतिगोपा' [को०]।

सुरतग्लानि
संज्ञा स्त्री० [सं०] रति या संभोगजनित थकान, ग्लानि या शिथिलता।

सुरतताली
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दूती। २. शिरोमाल्य। सेहरा।

सुरतबंध
संज्ञा पुं० [सं०] संभोग का एक प्रकार।

सुरतरंगिणी
संज्ञा स्त्री०[सं० सुरतरङ्गिणी] गंगा।

सुरतरु
संज्ञा पुं० [सं०] देवतरु। कल्पवृक्ष।

सुरतरुवर
संज्ञा पुं० [सं०] कल्पवृक्ष।

सुरतस्थ
वि० [सं०] स्त्रीप्रसंग में रत। संभोगरत [को०]।

सुरतांत
संज्ञा पुं० [सं० सुरतान्त] रति या संभोग का अंत।

सुरता (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुर या देवता का भाव या कार्य। २. देवत्व। २. सुरसमुह। देवसमूह। देव जाति। ३. संभोग का आनंद। ४. पत्नी। स्त्री० ५. एक अप्सरा का नाम।

सुरता (२)
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार की बाँस की नली जिसमें से दाना छोड़कर बोया जाता है।

सुरता (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति, हिं० सुरत] १. चिंता। ध्यान। २. चेत। सुध। उ।— छाँड़ि शासना बौध की अरहंत की ना मानि। सुरता छाँड़ि पिशाचता काहै को करि बानि। — (शब्द०)।

सुरता पु (४)
वि० ध्यान लगानेवाला। ध्यानी।

सुरता † (५)
वि०, संज्ञा पुं० [सं० श्रोता] दे० 'श्रोता'।

सुरता (६)
वि० [हिं० सुरत] समझदार। होशियार। बुद्धिमान्। सयाना। चालाक।

सुरतात
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं के पिता, कश्यप। २. देवताओं के अधिपति, इंद्र।

सुरतान (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुर+तान] स्वर का अलाप। सुर टीप।

सुरतान (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुलतान] दे० 'सुलतान'।

सुरताल
संज्ञा पुं० [सं० स्वर+ताल] स्वर और ताल (संगीत)।

सुरति (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सु+रति] विहार। भोगविलास। कामकेलि। संभोग। उ०— विरची सुरति रघुनाथ कुंजधाम बीच, काम बस नाम करे ऐसे भाव थपनो। जघनि सो मसकै सिकोरै नाक, ससकै मरोरै भौह हंस कै सरीर डारै कपनो।— काव्यकलाधर (शब्द०)।

सुरति (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति] स्मरण। सुधि। चेत। उ०— छिनछिन सुरति करत यदुपति की परत न मन समुझायो। गोकुलनाथ हमारे हित लगि लिखिहू क्यों न पठायो। — सूर (शब्द०)। क्रि० प्र० —करना।—दिलाना।—लगना।—होना।

सुरति (३)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० सूरत] दे० 'सूरत'। उ०— सोवत जागत सपनबस रस रिस चैन कुचैन। सुरति श्यामवन की सुरति बिसरेहू बिसरै न। — बिहारी (शब्द०)।

सुरतिगोपना
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह नायिका जो रतिक्रीड़ा करके आई हो और अपन सखियों आदि से यब बात छिपाती हो।

सुरतिरव
संज्ञा पुं० [सं०] रतिक्रिड़ा के समय होनेवाली भूषणों की ध्वनि।

सुरतिवंत पु
वि० [सं० सुरत+वान] कामातुर। उ०— हरि हँसि भामिनी उर लाइ। सुरतिवंत गुपाल रीझे जानी अति सुखदाई। — सूर (शब्द०)।

सुरतिविचित्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] मध्या के चार भेदों में से एक। वह मध्या जिसकी रतिक्रिया विचित्र हो। उ०— मध्या आरुढ़यौवना प्रगलभवचना जान। प्रादुर्भूत मनोभवा सुरति- विचित्रा नाम। — केशव (शब्द०)।

सुरती
संज्ञा स्त्री० [सुरत (नगर)+ई] खाने के तंबाकू के पत्तों का चूरा जो पान के साथ या यों ही चूना मिलाकर खाया जाता है। खैनी। विशेष— अनुमान किया जाता है कि पुर्तगालवालों ने पहले पहल इसका प्रचार सूरत नगर में किया था; इसी से इसका यह नाम पड़ा।

सुरतुंग
संज्ञा पुं० [सं० सुरतुङ्ग] सुरपुत्राग नामक वृक्ष।

सुरतोषक
संज्ञा पुं० [सं०] १. कौस्तुभ मणि। २. वह जो देवताओं को तुष्ट करता है (को०)।

सुरत्न (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सीना। स्वर्ण। २. माणिक्य। लाल।

सुरत्न (२)
वि० १. सर्वश्रेष्ठ। २. उत्तम रत्नों से युक्त।

सुरत्राण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरत्राता'। उ०— बाजत घोर निसान सान सरत्रान लजावत। — गि० दाम (शब्द०)।

सुरत्राण पु (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुलतान] दे० 'सुलतान'।

सुरत्राता
संज्ञा पुं० [सं० सुर+त्रातृ] १. विष्णु श्रीकृष्ण। २. इंद्र।

सुरथ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक चंद्रवंशी राजा। विशेष— पुराणों के अनुसार ये स्वारोचिष मन्वतर में हुए थे और इन्होंने पहले पहल दुर्गा की आराधना की थी। दुर्गा के वर से ये सावर्णि के नाम से प्रसिद्ध हुए। दुर्गा सप्तशती में इनका विस्तृत वृतांत है। २. द्रुपद के एक पुत्र का नाम। ३. जयद्रथ के एक पुत्र का नाम। ४. सुदेव के एक पुत्र का नाम। ५. जनमेजय के एक पुत्र का नाम। ६. अधिरथ के एक पुत्र का नाम। ७. कुंडक के एक पुत्र का नाम। ८. रणक के एक पुत्र का नाम। ९. चंपकपुरी के राजा हंसध्वज का पुत्र। १०. सुंदर रथ। अनूप रथ (को०)। ११. पुराणनुसार एक पर्वत का नाम।

सुरथ (२)
सुंदर रथ से युक्त [को०]।

सुरथ (३)
संज्ञा पुं० [सं० सुरथम्] कुश द्वीप के अंदर्गत एक वर्ष।

सुरथा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक अप्सरा का नाम। २. पुराणनुसार एक नदी का नाम।

सुरथाकार
संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्ष का नाम।

सुरथान
संज्ञा पुं० [सं० सुर+स्थान] स्वर्ग। (डिं०)।

सुरदार
वि० [हि० सुर+फ़ा दार] जिसके गले के स्वर सुंदर हों। सुस्वर। सुरीला।

सुरदारु
संज्ञा पुं० [सं०] देवदार। देवदारु वृक्ष।

सुरदीर्धिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] आकाशगंगा।

सुरदुंदुभी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरदुन्दुभि] १. देवताओं का नगाड़ा। २. तुलसी।

सुरदेवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] योगमाया जिसने यशोदा के गर्भ में अवतार लिया था और जिसे कंस पटकने चला था।

सुरदेश
संज्ञा पुं० [सं० सुर+देश] स्वर्ग। देवलोक।

सुरदोषी पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरद्विष] देवद्रोही, असुर।

सुरद्रु
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवदारु। २. सुरद्रुम।

सुरद्रुम
संज्ञा पुं० [सं०] १. कल्पवृक्ष। २. देवदारु (को०)। ३. देव- नल। बड़ा नरकट। बड़ा नरसल।

सुरद्विप
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं का हाथी। देवहस्ती। २. इंद्र का हाथी। ऐरावत।

सुरद्विष्
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं का शत्रु। असुर। दानव। राक्षस। २. राहु।

सुरधनु, सुरधनुष
संज्ञा पुं० [सं० सुरधनुस्] १. इंद्रधनुष। २. नख- क्षत का चिह्न [को०]।

सुरधाम
संज्ञा पुं० [सं० सुरधामन्] देवलोक। स्वर्ग। उ०— तनु परिहारि रघुवर बिरह राउ गएउ सुरधाम। — मानस, २।१५५। मुहा०— सुरधाम सिधारना = मर जाना।

सुरधुनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा।

सुरधूप
संज्ञा पुं० [सं०] धूना। राल। सर्जरस।

सुरधेनु
संज्ञा स्त्री० [सं०सुर+धेनु] देवताओं की गाय, कामधेनु।

सुरध्वज
संज्ञा पु० [सं०] सूरकेतु। इंद्रध्वज।

सुरनंदा
संज्ञा स्त्री०[सं० सुरनन्दा] एक नदी का नाम।

सुरनगर
संज्ञा पुं० [सं०] स्वर्ग।

सुरनदी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गंगा। २. आकाशगंगा।

सुरनाथ
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र।

सुरनायक
संज्ञा पुं० [सं०] सुरपति। इंद्र।

सुरनारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवांगना। देवबाला। देववधू।

सुरनाल
संज्ञा पुं० [सं०] बड़ा नरसल। देवनल।

सुरनाह पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरनाथ] देवराज इंद्र। उ०— परिघा कहँ जादव हेरि हयो। सुरनाह तबे गत चेत भयो। — गिरिधर (शब्द०)।

सुरनिम्नगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा।

सुरनिर्गंध
देश० पुं० [सं० सुरनिर्गन्ध] तेजपत्ता। तेजपत्र। पत्रज।

सुरनिर्झरिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आकाशगंगा।

सुरनिलय
संज्ञा पुं० [सं०] सुमेरु पर्वत, जहां देवता रहते हैं।

सुरप पु
संज्ञा पुं० [सं० मुरपति] इंद्र। उ०— या कहि सुरप गयहु सुरधाम। — पद्माकर (शब्द०)।

सुरपति
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवराज, इंद्र। उ०— सूरपति निज रथु तुरत पठावा। — मानस, २।८८। २. विष्णु का एक नाम। उ०— सुरपति गति मानी, सासन मानी, भृगुपति को सुख भारी।—केशव (शब्द०)।

सुरपतिगुरु
संज्ञा पुं० [सं०] बृहस्पति।

सुरपतिचाप
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रधनुष।

सुरपतितनय
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र का पुत्र, जयंत। २. अर्जुन।

सुरपतित्व
संज्ञा पुं० [सं०] सुरपति का भाव या पद।

सुरपतिपुर
संज्ञा पुं० [सं०] देवलोक। स्वर्ग। उ०— भूपति सुरपति- पुर पगु धारेउ। — मानस, २।१६०।

सुरपतिसुत
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र का पुत्र, जयंत। उ०— सुरपतिसुत धरि बाइस बेख। — मानस, ३। १।

सुरपथ
संज्ञा पुं० [सं०] आकाश।

सुरपन
संज्ञा पुं० [सं०सुरपुत्राग] पुत्राग। सुरंगी। सुलताना चंपी।

सुरपर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सुगंधित शाक। पर्या०— देवपर्ण। सुगंधिक। माचीपत्र। गंधपत्रक। विशेष— यह क्षुप जाति की सुगंधित बनस्पति है। वैद्यक के अनुसार यह कटु, उष्ण तथआ कृमि, श्वास और कास की नाशक तथ दीपन है।

सुरपर्णिक
संज्ञा पुं० [सं०] पुत्राग वृक्ष।

सुरपर्णिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुत्राग। सुलताना चंपा।

सुरपर्णी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पलासी। पलाशी। २. पुत्राग। पुलाक।

सुरपर्वत
संज्ञा पुं० [सं०] सुमेरु।

सुरपांसुला
संज्ञा स्त्री० [सं०] अप्सरा।

सुरपादप
संज्ञा पुं० [सं०] देवद्रुम। कल्पतरु।

सुरपाल
संज्ञा पुं० [सं० सुर+पालक] इंद्र। उ।— सुरन सरित तहँ आइ कै वज्र हन्यो सुरपाल। — गिरिधर (शब्द०)।

सुरपालक
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। उ०— आनंद के कंद, सुरपालक के बालक ये। केशव (शब्द०)।

सुरपुन्नाग
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पुन्नाग जिसके गुण पुन्नाग के समान ही होते हैं।

सुरपुर
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सुरपुरी] १. देवताओं की पुरी, अमरा- वती।२. देवलोक। स्वर्ग। उ०— नृप कर सुरपुर गवनु सुनावा। — मानस, २।२४६। मुहा०— सुरपुर सिधारना = मर जाना, गत हो जाना।

सुरपुरकेतु
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। उ०— नृप केतु बल के केतु सुर- पुरकेतु छन महं मोहहीं। — गि० दास (शब्द०)।

सुरपुरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुरपुर'।

सुरपुरोधा
संज्ञा पुं० [सं० सुररुपोधस्] देवताओं के पुरोहित, वृहस्पति।

सुरपुष्प
संज्ञा पुं० [सं०] देवकुसुम। स्वर्गीय पुष्प।

सुरप्रतिष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवमूर्ति की स्थापना।

सुरप्रवीर
संज्ञा पुं० [सं०] एक अग्नि।

सुरप्रिय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र। २. बृहस्पति। ३. एक प्रकार का पक्षी। ४. अगस्त्य। अगस्त्यि। ५. एक पर्वत का नाम।

सुरप्रिय (२)
वि० जो देवताओं को प्रिय हो।

सुरप्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक अप्सरा का नाम। २. चमेली। जाती पुष्प। ३. सोना केला। स्वर्णरंभा।

सुरफाँक ताल
संज्ञा पुं० [हि० सुर+फाँक (=खाली)+ताल] मृदंग का एक ताल। इसमें तीन आघात और एक खाली होता + ० २ + है। जैसे,— धा घेड़े, नागध, घेड़े नाग, गद्दी, घेड़े नाम धा।

सुरबहार
संज्ञा पुं० [हि० सुर+फ़ा० बहार] सितार की तरह का एक प्रकार का बाजा।

सुरबाला
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवता की स्त्री। देवांगना।

सुरबुली
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरवल्ली ?] एक पौधा जिसकी जड़ से लाल रंग निकालते हैं। चिरवल। विशेष— यह पौधा बंगाल और उडीसा से लेकर मद्रास और सिंहल तक होता है। इसकी जड़ की छाल से एक प्रकार का सुंदर लाल रंग निकलता है जिससे मछलीपट्टन्, नेलोर आदि स्थानों में कपड़े रंगे जाते हैं।

सुरबृच्छ पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरवृक्ष] कल्पवृक्ष। दे० 'सुरवृक्ष'। उ०— मुख ससि सरगर अधिक वचन श्री अमृत ऐसी। सुर सुरभी सुरबृच्छ देनि करतल मँह वैसी। — गि० दास (शब्द०)।

सुरबेल
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर=बल्ली] कल्पलता।

सुरभंग
संज्ञा पुं० [सं० स्वरभङ्ग] प्रेम, आनंद, भय आदि में होने— वाला स्वर का विपर्यास जो सात्विक भावों के अंदर्गत है। उ०— (क) स्तंभ स्वर रोमांच सुरभंग कंप वैवर्ण। अश्रु प्रलाप बखानिए आठो नाम सुवर्ण—केशव (शब्द०)। (ख) निसि जागे पागे अमल हित की दरसन पाइ। बोल पातरो होत जा सो सुरभंग बताइ। — काव्यकलाधर (शब्द०)। (ग) क्रोध हरख मद भीत तें वचन और विधि होय। ताहि कहत सुरभंग हैं कवि कोविद सब कोय। — मतिराम (शब्द०)।

सुरभवन
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं का निवासस्थान। मंदिर। २. सुरपुरी। अमरावती।

सुरभानु पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर=भनु] १. इंद्र। उ०— राधे सो रस बरनि न जाइ। जा रस को सुरभानु, शीश दियो, सो तै पियो अकुलाइ। — सूर (शब्द०)। २. सूर्य। उ०— सुनि सजनी सुरभानु है अति मलान मतिमंद। पूनो रजनी मैं जु गिलि देत उगिलि यह चंद। — शृंगार सतसई (शब्द०)।

सुरभि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुगंध। २. वसंत काल। चैत्र मास। ३. सोना। स्वर्ण। ४. गंधक। ५. चंपक। चंपा। ६. जायफल। ७. कदंब। ८. बकुल। मौलसिरी। ९. शमी। सफेद कीकर। १०. कणगुग्गुल। ११. गंधतृण। रोहिस घाम। १२. राल। धूना। १३. कपित्थ। गंधफल। १४. बर्बर चंदन। १५. वह अग्नि जो यज्ञयूप की स्थापना में प्रज्वलित की जाती है। १६. जातीफल। जायफल (को०)। १७. सुगंधित वस्तु (को०)।

सुरभि (२)
संज्ञा स्त्री० १. पृथ्वी। २. गौ। ३. गाय़ों की अधिष्ठात्री देवी तथा गो जाति की आदि जननी। ४. कार्तिकेय की एक मातृका का नाम। ५. सुरा। शराब। ६. गंगापत्री।७. वन- मल्लिका। सेवती। ८. तुलसी। ९. शल्लकी। सलई।१०. रुद्र- जटा। ११. एलवालुक। एलुवा। १२. सुगंधि। खुशबु। १३. पूर्व दिशा (को०)।

सुरभि (३)
वि० १. सुगंधित। सुवासित। २. मनोरम। सुंदर। प्रिय। ३. ख्यात। प्रसिद्ध मशहूर (को०)। ४. बुद्धिमान। ज्ञानवान्।विद्वान् (को०)। ५. उत्तम। श्रेष्ठ। बढ़िया। ६. सदाचारी। सदभावयुक्त। गुणवान्।

सुरभिकंदर
संज्ञा पुं० [सं० सुरभिकन्दर] एक पर्वत का नाम।

सुरभकांता
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरभिकान्ता] वासंती पुष्प वृक्ष। नेवारी।

सुरभिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्वर्ण कदली। सोना केला।

सुरभिगंध (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुरभिगन्ध] तेजपत्ता।

सुरभिगंध (२)
वि० सुगंधित। सुवासित। खुशबूदार।

सुरभिगंधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] चमेली।

सुरभिगंधि
वि० [सं० सुरभिगन्धि] सुगंधियुक्त [को०]।

सुरभिगंधी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरभिगनिधी] सुगंधित वस्तु।

सुरभिगोत्र
संज्ञा पुं० [सं०] गाय बैलों का झुंड। पशुसमूह [को०]।

सुरभिधृत
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छी तरह तपाया हुआ सुगंधित घी। गोघृत [को०]।

सुरभिचूर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] सुवासित बुकनी या चूरा।

सुरभिच्छद
संज्ञा पुं० [सं०] १. कैथ। कपित्थ। २. सुगंधित जंबूफल।

सुरभित
वि० [सं०] १. सुगंधित। सुवासित। २. विख्यात। प्रसिद्ध। मशहूर [को०]।

सुरभितनय
संज्ञा पुं० [सं०] बैल। सांड़।

सुरभितनया
संज्ञा स्त्री० [सं०] गाय।

सुरभिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुरभि का भाव। २. सुगंधि। खुशबू।

सुरभित्रिफला
संज्ञा स्त्री० [सं०] जायफल, सुपारी और लौंग इन तीनों का समूह।

सुरभित्वक्
संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी इलायची।

सुरभिदारु
संज्ञा पुं० [सं०] धूप सरल। विशेंष— वैद्यक के अनुसार यह सरल, कटु, तिक्त, उष्ण तथा कफ, वात, त्वचा रोग, सूजन और व्रण का नाशक है। यह कोठे को भी साफ करता है।

सुरभिदारुक
संज्ञा पुं० [सं०] सरलवृक्ष। विशेष दे० 'सुरभिदारु'।

सुरभिपत्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजजंबू वृक्ष। गुलाब जामुन। विशेष दे० 'गुलाब जामुन'।

सुरभिपुत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. सांड़। २. बैल।

सुरभिबाण
संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव [को०]।

सुरभिमंजरी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरभिमञ्जरो] श्वेत तुलसी।

सुरभिमान् (१)
वि० [सं० सुरभिमत्] सुगंधित। सुवासित।

सुरभिमान् (२)
संज्ञा पुं० अग्नि।

सुरभिमास
संज्ञा पुं० [सं०] चैत्र मास। चैत का महीना।

सुरभिमुख
संज्ञा पुं० [सं०] वसंत ऋतु का आरंभ।

सुरभिवल्कल
संज्ञा पुं० [सं०] दालचीनी। गुड़त्वक्।

सुरभिवाण
संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव का एक नाम।

सुरभिशाक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सुगंधित शाक।

सुरभिषक्
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के वैद्य, अश्वनीकुमार।

सुरभिसमय
संज्ञा पुं० [सं०] वसंतकाल।

सुरभिस्त्रग्धर
वि० [सं०] सुगंधित माला धारण करनेवाला।

सुरभिस्त्रवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शल्लकी। सलई।

सुरभी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर+भी (=भय)] देवताओं का डर या भय। आधिदैविक भीति [को०]।

सुरभी (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुगंधि। खुशबू। २. गाय। ३. सलई। शल्लकी। ४. किवांछ। कौंच। कपिकच्छु। ५. बबई तुलसी। ६. रुद्रजटा। शंकर जटा। ७. एलुवा। एलवालुक। ८. मात्रिका शाक। पौइया। ९. सुगंधित शालिध्न्य। १०. मुरामांसी। एकांगी। ११. रासन। रास्ना। १२. चंदन।

सुरभीगंध
संज्ञा पुं० [सं०सुरभीगन्ध] तेजपत्ता [को०]।

सुरभीगोत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. बैल। २. साँड़।

सुरभीपट्टन
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन नगर।

सुरभीपत्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजजंबू। दे० 'सुरभिपत्रा' [को०]।

सुरभीपुर
संज्ञा पुं० [सं०] गोलोक। उ०— अज विष्णु अनादि मुकुंद प्रभो। सुरभीपुर नायक विश्व विभो। — गिरिधर (शब्द०)।

सुरभीमूत्र
संज्ञा पुं० [सं०] गोमूत्र। गोमूत।

सुरभीरसा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सलई। शल्लकी।

सुरभीरुह
संज्ञा पुं० [सं०] देवदारु का वृक्ष [को०]।

सुरभूप (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र। २. विष्णु। उ०— सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा। — तुलसी (शब्द०)।

सुरभूय
संज्ञा पुं० [सं०] किसी देवता के साथ एकाकार होना। देवत्व या देवलीनता की प्राप्ति होना [को०]।

सुरभूरुह
संज्ञा पुं० [सं०] देवतरु। कल्पतरु। २. देवदारु का वृक्ष। देवदार।

सुरभूषण
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के पहनने का मोतियों का हार जो चार हाथ लंबा होता है और जिसमें १,००८ दाने होतै हैं।

सुरभोग
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत। उ०— सोम सुधा पीयूष मधु अगदकार सुरभोग। अमी अमृत जहँ हरि कथा मते रहत सब लोग। — नंददास (शब्द०)।

सुरभौन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरभवन] दे० 'सुरभवन'।

सुरमंडल
संज्ञा पुं० [सं० सुरमण्डल] १. देवताओं का मंडल। २. एक प्रकार का बाज; इसमें एक तख्ते में तार जड़े होते है। इसे जमीन पर रखकर मिजराब से बजाते हैं।

सुरमंडलिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरमण्डलिका] दे० 'सुरखंडनिका'।

सुरमंत्री
संज्ञा पुं० [सं० सुरमन्त्रिन्] देवगुरु बृहस्पति।

सुरमंदिर
संज्ञा पुं० [सं० सुरमन्दिर] देवताओं का स्थान। मंदिर। देवालय।

सुरमई (१)
वि० [फ़ा०] सुरमे के रंग का। हलका नीला। सफेदी लिए नीला या काला।

सुरमई (२)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का रंग जो सुरमे के रंग से मिलता जुलता या हलका नीला होता है। २. इस रंग में रंगा हुआ एक प्रकार का कपड़ा जो प्रायः अस्तर आदि के काम में आता है। ३. इस रंग का कबूतर।

सुरमई (३)
संज्ञा स्त्री० एक प्रकार की चिड़िया जो बहुत काली होती हैं तथा जिसकी गरदन हरे रंग की और चमकदार होती है।

सुरमई कलम
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] सुरमा लगाने की सलाई। सुरमचू।

सुरमचू
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुरमह् + चू (प्रत्य०)] सुरमा लगाने की सलाई।

सुरमणि
संज्ञा पुं० [सं०] चिंतामणी। उ०— लोयन नील सरोज से भूपर मसि विंदु विराज। जनु विधु मुखछवि अमिय को रच्छक राख्यो रसराज। — तुलसी (शब्द०)।

सुरमण्य
वि० [सं०] बहुत अधिक रमणीय। बहुत सुंदर।

सुरमनि पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरमणि] चिंतामणि। कौस्तुभमणि। उ०— परिहरि सुरमुनि सुनाम गुंजा लखि लटत। — तुलसी ग्रं०, पृ०१२९।

सुरमा (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुरमह्] एक प्रकार का प्रसिद्ध खनिज पदार्थ जो प्रायः नीले रंग का होता है और जिसका महीन चूर्ण स्त्रियाँ आँखों में लगाती हैं। विशेष— यह फारस में लहौल, पंजाब में झेलम तथा बरमा में टेनासरिम नामक स्थान पर पाया जाता है। यह बहुत भारी, चमकीला और भुरभुरा होता है। इसका व्यवहार कुछ औषधों और कुछ धातुओं को द्दढ़ करने में होता है। प्रायः छापे के सीसे के अक्षरों में उन्हें मजबूत करने के लिये इसका मेल दिया जाता है। आजकल बाजारों में जो सुरमा मिलता हैं, वह प्रायः काबुल और बुखारे के गलोना नामक धातु का चूर्ण होता है। यौ०— सुरमा सुलेमानी= सुलेमान का सुरमा। वह सुरमा जिसे लगाने पर निधियाँ दिखाई पड़ें। सुरमे का डोरा = आँखों में लगी हुई सुरमें की रेखा। सुरमे की कलम=पेंसिल। २. आँखों में लगाने की सूखी और पीसी हुई दवा। रसा- जन (को०)। क्रि० प्र० — देना।— लगाना। यौ०— सफेद सुरमा = दे० 'सुरमा सफेद'।

सुरमा (२)
वि० अत्यंत बारीक पीसा हुआ।

सुरमा (३)
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी। वि० दे० 'सूरमा'।

सुरमा (४)
संज्ञा स्त्री० एक नदी जो आसाम के सिलह्ट जिले में बहती है।

सुरमाकश
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. वह जो सुरमा लगाता हो। सुरमा लगानेवाला। २. सुरमा लगाने की सलाई।

सुरमादान
संज्ञा पुं० [फ़ा०] दे० 'सुरमादानी'।

सुरमादानी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० सुरमह्=दान (प्रत्य०)] लकड़ी या धातु का शीशीनुमा पात्र जिसमें सुरमा रखा जाता है।

सुरमानी
वि० [सं० सुरमानिन्] अपने को देवता समझनेवाला।

सुरमा सुफेद
संज्ञा पुं० [फ़ा] १. एक प्रकार का खनिज पदार्थ जो 'जिपसम' नाम से प्रसिद्ध है। विशेष—इसका रंग पीलापन लिए सफेद होता है। इससे 'पेरिस प्लास्टर' बनाया जा सकता है जिससे एलक्ट्रो टाइप और रबड़ की मोहर के साँचे बनाए जाते हैं। यह मुख्यतः शीशे और धातु की चीजें जोड़ने के काम में आता है। २. एक खनिज पदार्थ जो फिटकरी के समान होता है और काबुल के पाहाड़ों पर पाया जाता है। आँखों की जलन, प्रमेह, आदि रोगों में इसका प्रयोग होता है।

सुरमृत्तिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] गोपीचदन। सौराष्ट्रमृत्तिका।

सुरमेदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] महामेदा।

सुरमै पु
वि० [फ़ा० सुरमई] दे० 'सुरमई'।

सुरमौर पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर + हिं० मौर] विष्णु। उ०—जाके बिलोकत लोकप होत बिसोक लहैं सुरलोक सुठौरहि। सो कमला तजि चंचलता अरू कोटि कला रिझवै सुरमौरहि।—तुलसी (शब्द०)।

सुरम्य
वि० [सं०] अत्यंत मनोरम। अत्यंत रमणीय। बहुत सुंदर।

सुरया
संज्ञा स्त्री० [देश०] एक प्रकार की दाँती जो झाड़ी काटने के काम में आती है।

सुरयान
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं की सवारी का रथ।

सुरयुवती
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरयुवित] अप्सरा।

सुरयोषा, सुरयोषित्
संज्ञा स्त्री० [सं०] अप्सरा।

सुरराई पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरराज १. इंद्र। २. बिष्णु। उ०— रानी ते बुझेउ सुरराई। माँगी जो कुछ वाको भाई। रमानाथ नारी ते भाषा। माँगहु वर जो मन अभिलाषा।— विश्राम (शब्द०)।

सुरराज्, सुरराज, सुरराट्
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। यौ०—सुरराज शरासन = इंद्रधनुष।

सुरराजगुरू
संज्ञा पुं० [सं०] बृहस्पति।

सुरराजता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुरराज होने का भाव या पद। इंद्रत्व। इंद्रपद।

सुरराजमंत्री
संज्ञा पुं० [सं० सुरराजमन्त्रिन्] दे० 'सुरराजगुरू'।

सुरराजवस्ति
संज्ञा पुं० [सं०] पिंडली। इंद्रवस्ति।

सुरराजवृक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] पारिजात तरू। परजाता।

सुरराजा
संज्ञा पुं० [सं० सुरराजन्] इंद्र।

सुरराम पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरराज, प्रा० सुरराय] दे० 'सुरराज'।

सुरराव पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरराज, प्रा० सुरराय] दे० 'सुरराज'। उ०—नल कृत पुल लखि सिंधु में भए चकित सुरराव।— पद्माकर (शब्द०)।

सुररिपु
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के शत्रु, असुर। राक्षस।

सुररूख, सुररूष पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर + हिं० रूख (वृक्ष)] कल्पवृक्ष। उ०— (क) नव पल्लब फल सुमन सुहाए। निज संपति सुररूख लजाए— मानस, १।२२७। (ख) राम नाम सज्जन सुररूषा। राम नाम कलि मृतक पिषूषा।— रघुराज (शब्द०)।

सुरर्षभ
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं में श्रेष्ठ, इंद्र। २. शिव। महादेव।

सुरर्षि
संज्ञा पुं० [सं० सुर + ऋषि] देवऋषि। देवर्षि।

सुरलता
संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी मालकंगनी। महाज्योतिष्मती लता।

सुरललना
संज्ञा स्त्री० [सं०] देववाला। देवांगना।

सुरला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गंगा। २. एक नदी का नाम।

सुरलासिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वंशी। २. वंशी की ध्वनि।

सुरली
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + हिं० रली] सुदंर कीड़ा। उ०—लखि सु उदर रोमावली अली चली यह बात। नाग लली सुरली करै मनु त्रिवली के पात।—शृंगार सतसई (शब्द०)।

सुरलोक
संज्ञा पुं० [सं०] स्वर्ग। देवलोक। यौ०—सुरलोकराज्य = देवलोक का राज्य।

सुरलोक सुंदरी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरलोक सुन्दरी] १. अप्सरा। देवां- गना।२. दुर्गा का एक नाम [को०]।

सुरवधू
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवताओं की पत्नी। देवांगना।

सुरवर
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं में श्रेष्ठ, इंद्र।

सुरवर्त्म
संज्ञा पुं० [सं० सुरवर्त्मन्] देवताओं का मार्ग। आकाश।

सुरवल्लभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] श्वेत दूर्वा। सफेद दूब।

सुरवल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं०] तुलसी।

सुरवस
संज्ञा पुं० [देश०] जुलाहों की वह पतली हलकी छड़ी,पतला बाँस या सरकंडा जिसका व्यवहार ताना तैयार करने में होता है। विशेष—ताना तैयार करने के लिये जो लकड़ियाँ जमीन में गाड़ी जाती हैं, उनमें से दोनों सिरों पर रहनेवाली लकड़ियाँ तो मोटी और मजबूत होती हैं जिन्हें 'पारिया' कहते हैं; और इनके बीच में थोड़ी दूर पर जो चार चार पतली लकड़ियाँ एक साथ गाड़ी जाती हैं, वे 'सुरवस' या 'सुरत' कह- लाती हैं।

सुरवा (१)
संज्ञा पुं० [सं० श्रुवस्] छोटी करछी के आकार का लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का पात्र जिससे हवन आदि में घी की आहुति देते हैं। श्रुवा।

सुरवा (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शोरबा]दे० 'शोरबा'।

सुरवाड़ी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सूअर + वाड़ी (प्रत्य०)] सु्अरों के रहने का स्थान। सुअरबाड़ा।

सुरवाणो
संज्ञा स्त्री० [सं०] देववाणी। संस्कृत भाषा।

सुरवाल (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शलवार] पायजामा। पैजामा।

सुरवाल (२)
संज्ञा पुं० [देश०] सेहरा।

सुरवास
संज्ञा पुं० [सं०] देवस्थान। स्वर्ग।

सुरवाहिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा।

सुरविटप
संज्ञा पुं० [सं०] कल्पवृक्ष।

सूरविद्विष
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरवैरी'।

सुरविलासिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] अप्सरा [को०]।

सुरवीथी
संज्ञा स्त्री० [सं०] नक्षत्रों का मार्ग।

सुरवीर
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। उ०—गने पदाती वीर सब अरिघाती रनधीर। दोउ आँखै राती किए लखि मोहे सुरवीर।—गि० दास (शब्द०)।

सुरवृक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] कल्पतरु।

सुरवेला
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नदी का नाम।

सूरवेश्म
संज्ञा पुं० [सं० सुरवेश्मन्] स्वर्ग। देवलोक।

सुरवैद्य
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के वैद्य, अश्विनीकुमार।

सुरवैरी
संज्ञा पुं० [सं० सुरवैरिन्] देवताओं के शत्रु, असुर।

सुरशत्रु
संज्ञा पुं० [सं०] असुर।

सुरशत्रुहन्
संज्ञा पुं० [सं०] असुरों का नाश करनेवाले, शिव।

सुरशयनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकदशी। विष्णुशयनी एकादशी।

सुरशाखी
संज्ञा पुं० [सं० सुरशाखिन्] कल्पवृक्ष।

सुरशिल्पी
संज्ञा पुं० [सं० सुरशिल्पिन्] विश्वकर्मा।

सुरश्रेष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो देवताओं में श्रेष्ठ हो। २. विष्णु। ३. शिव। ४. गणेश। ५. धर्म। ६. इंद्र।

सुरश्रेष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ब्राह्मी।

सुरश्वेता
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक जाति की श्वेत छिपकली। बम्हनी।

सुरसंघ
संज्ञा पुं० [सं० सुरसङ्घ] देववर्ग। देवसमूह।

सुरमंत पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सरस्वती] दे० 'सरस्वती'।

सुरसंभवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] हुरहुर। आदित्यभक्ता।

सुरस (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बोल। हीरा। बोल। बर्बर रस। २. दालचीनी। गुड़त्वक्। ३. तेजपत्ता। तेजपत्र। ४. रूसा घास। गंधतृण। ५. तुलसी। ६. सँभालू। सिंधुवार। ७. शाल्मली। वृक्ष का निर्यास। मोचरस। ८. पीतशाल। ९. एक असुर नाग (को०)। १०. धूना। राल (को०)।

सुरस (२)
वि० १. सरस। रसीला। २. स्वादिष्ट। मधुर। ३. सुंदर। उ०—हरि श्याम घन तन परम सुंदर तड़ित बसन बिराजई। अँग अंग भूषण सुरस शशि पूरणकला जनु भ्राजई।—सूर (शब्द०)।

सुरस (३)
संज्ञा पुं० [देश०] दे० 'सुरवस'।

सुरसख
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं के सखा इंद्र। २. गंधर्व।

सुरसत पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सरस्वती] सरस्वती। (डिं०)।

सुरसतजनक
संज्ञा पुं० [सं० सरस्वती + जनक] ब्रह्मा। (डिं०)।

सुरसती पु
संज्ञा पुं० [सं० सरस्वती] १. सरस्वती। उ०— उर उर- वी सुरसरि सुरसती जमुना मिलहिं प्रयाग जिमि।—गि० दास (शब्द०)। २. एक प्रकार की नाव।विशेष—यह नाव तीस हाथ लंबी होती है और इसका आगा तथा पीछा आठ हाथ चौड़ा होता है। इस नाव के पेंदे में एक कुंड बना रहता है जिसमें उतरकर लोग स्नान कर सकते हैं।

सुरसत्तम
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं में श्रेष्ठ, विष्णु।

सुरसदन
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के रहने का स्थान, स्वर्ग।

सुरसद्म
संज्ञा पुं० [सं० सुरसद्मन्] स्वर्ग।

सुरसमित
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवमंडली। देवसभा [को०]।

सुरसमिध
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवदारु।

सुरसर (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुर + सर] मानसरोवर। उ०—सुरसर सुभग बनज बन चारी। डाबर जोग कि हंसकुमारी।—तुलसी (शब्द०)।

सुरसर (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित्] दे० 'सुरसरि'।

सुरसरसुता पु
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरयू नदी। उ०—तुलसी उर सुर- सरसुता लसत सु़थल अनुमानि।—तुलसी (शब्द०)।

सुरसरि (१)
संज्ञा स्त्री [सं० सुरसरित्] १. गंगा। उ०—सुरसरि जब भुव ऊपर आवै। उनको अपनो जल परसावै।—सूर (शब्द०)। २. गोदावरी नदी। उ०—सुरसरि ते आगे चले मिलिहैं कपि सुग्रीव। देहैं सीता की खबरि बाढ़ै सुख अति जीव।—केशब (शब्द०)।

सुरसरि (२)
संज्ञा स्त्री० १. कावेरी नदी। (डिं०)। २. दे० 'सुरसुरी'।

सुरसरित्
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा। यौ०—सुरसरित्सुत = भीष्म।

सुरसरिता
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर + सरिता] दे० 'सुरसरित्'। उ०— मानहुँ सुरसरिता विमल, जल उछलत जुग मीन।—बिहारी (शब्द०)।

सुरसरी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित] दे० 'सुरसरि'।

सुरसर्षपक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की सरसों। देवसर्षपक।

सुरसा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रसिद्ध नागमाता जो समुद्र में रहती थी और जिसने हनुमान् जी को समुद्र पार करने के समय रोका था। विशेष—जिस समय हनुमान् जी सीता जी की खोज में लंका जा रहे थे, उस समय देवताओं ने सुरसा से, जो समुद्र में रहती थी, कहा कि तुम विकराल राक्षस का रूप धारण कर उनको रोको। इससे उनकी बुद्धि और बल का पता लग जायगा। तदनुसार सुरसा ने विकराल रूप धारण कर हनुमान् जी को रोककर कहा कि मैं तुम्हें खाऊँगी। यह कहकर उसने मुँह फैलाया। हनुमान् जी ने उससे कहा कि जानकी जी की खबर राम जी को देकर मैं तुम्हारे पास आऊँगा। सुरसा ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। पहले तुम्हें मेरे मुँह में प्रवेश करना होगा, क्योंकि मुझे ऐसा वर मिला है कि सबको मेरे मुँह में प्रवेश करना पड़ेगा। यह कह वह मुँह फैलाकर हुनुमान् जी के सामने आई। हनुमान् जी ने अपना शरीर उससे भी अधिक बढ़ाया। ज्यों ज्यों सुरसा अपना मुँह बढ़ाती गई, त्यों त्यों हनुमान् जी भी अपना शरीर बढ़ाते गए। अंत में हनुमान् जी ने बहुत छोटा रूप धारण करके उसके मुँह में प्रवेश किया और बाहर निकल कर कहा देवि, अब तो तुम्हारा वर सफल हो गया। इसपर सुरसा ने हनुमान् जी को आशीर्वाद दिया और उनकी सफलता की कामना की। (रामायण)। २. एक अप्सरा का नाम। ३. एक राक्षसी का नाम। ४. तुलसी। ५. रासन। रास्ना। ६. सौंफ। मिश्रेया। ७. ब्राह्मी। ८. बड़ी शतावर। सतावर। ९. जूही। श्वेत यूथिका। १०. सफेद निसोथ। स्वेत त्रिवृत्ता। ११. सलई। शल्लकी। १२. नील सिंधुवार। निर्गुंडी। १३. कटाई। बनभंटा। बृहती। वार्ताकी। १४. भटकटैया। कटेरी। कंटकारी। १५. एक प्रकार की रागिनी। १६. दुर्गा का एक नाम। १७. रुद्राश्व की एक पुत्री का नाम। १८. पुराणनुसार एक नदी का नाम। १९. अंकुश के नीचे का नुकीला भाग। २०. बोल नामक एक गंधद्रव्य (को०)। १९. एक वृत्त का नाम।

सुरसाईँ पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर + हिं० साई (= स्वामी)] १. इंद्र। उ०—आपु लसैं जैसे सुरसाईं। सब नरेश जनु सुर समुदाई।—सबलसिंह (शब्द०)। २. शिव। उ०—सब विद्या के ईश गुसाई। चरण वंदि बिनवों सुरसाई।—शंकरदिग्विजय (शब्द०)। ३. विष्णु। उ०—बोले मधुर बचन सुरसाई। मुनि कहँ चले विकल की नाईँ। तुलसी (शब्द०)।

सुरसाग्र
संज्ञा पुं० [सं०] संभालू की मंजरी। सिंधुवार मंजरी।

सुरसाग्रज
संज्ञा पुं० [सं०] श्वेत तुलसी।

सुरसाग्रणी
संज्ञा पुं० दे० 'सुरसाग्रज'।

सुरसाच्छद
संज्ञा पुं० [सं०] सुरक्य का पत्ता। श्वेत तुलसी का पत्र [को०]।

सुरसादिवर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक में कुछ विशिष्ट ओषधियों का एक वर्ग। विशेष—इस वर्ग में तुलसी (सुरसा), श्वेत तुलसी, गंधतृण, गंधेज घास (सुगंधक), काली तुलसी, कसौंधी (कासमर्द), लटजीरा (अपामार्ग), वायबिडंग (बिडंग), कायफल (कट- फल), सम्हालू (निर्गुंडी), बम्हनेटी (भारंगी), मकोय (काकमाची), बकायन (विषमुष्टिक), मूसाकानी (मूषाकर्णी), नीला सम्हालू (नील सिंधुवार), भुई कदंब (भूमी कदंब), नाम की ओषधियाँ आती हैं। वैद्यक के अनुसार यह प्रयोग कफ, कृमि, सर्दी, अरुचि, श्वास, खाँसी आदि का नाश करनेवाला और व्रणशोधक है। इसी नाम से आयुर्वेद में एक दूसरा वर्ग भी है जो इस प्रकार है— सफेद तुलसी, काली तुलसी, छोटे पत्तोंवाली तुलसी, बबई (वर्वरी), मूसाकानी, कायफल, कसौंधी, नकछिकनी (छिक्कनी), सम्हालू, भारंगी, भुईकदंब, गंधतृण, नीला सम्हालू, मीठी नीम (कैडर्य), और अतिमुक्तलता (मालती लता)।

सुरसारी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित्] दे० 'सुरसरी'।

सुरसाल, सुरसालु पु
वि० [सं० सुर + हिं० सालना] देवताओं को सतानेवाला। उ०—राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलि कालु। जायक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसालु।—तुलसी (शब्द०)।

सुरसाष्ट
संज्ञा पुं० [सं० सुरस + अष्ट] सम्हालू, तुलसी, ब्राह्मी, बन- भंटा, कंटकारी और पुनर्नवा इन सबका समूह।

सुरसाहिब पु
संज्ञा [सं० सुर + फ़ा० साहब] देवताओं के स्वामी। दे० 'सुरसाई'। उ०—ब्रह्म जो व्यापक वेद कहै गम नाहीं गिरा गुन ज्ञान गुनी को। जो करता, भरता, हरता सुरसाहिब साहिब दीन दुनी को।—तुलसी (शब्द०)।

सुरसिंधु
संज्ञा पुं० [सं० सुरसिन्धु] गंगा।

सुरसुंदर (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुरसुन्दर] १. सुंदर देवता। २. कामदेव।

सुरसुंदर (२)
वि० देवता के समान सुंदर। अत्यंत सुंदर।

सुरसुंदरी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसुन्दरी] १. अप्सरा, उ०—सुरसुंदरी करहि कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना।—मानस १।६१। २. दुर्गा। ३. देवकन्या। ४. एक योगिनी का नाम।

सुरसुंदरी गुटिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसुन्दरी गुटिका] वैद्यक के अनुसार वाजीकरण या बलवीर्य बढ़ाने की एक ओषधि। विशेष—यह ओषधि अभ्रक, स्वर्णमाक्षिक, हीरा, स्वर्ण और पारे को सम भाग में लेकर हिज्जल (समुद्रफल) के रस में घोटकर पुटपाक के द्वारा प्रस्तुत की जाती है।

सुरसुत
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सुरसुता] देवपुत्र।

सुरसुरभी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर + सुरभी] देवताओं की गाय। कामधेनु। उ०—मुख ससि सरगर अधिक वचन श्री अमृत जैसी। सुरसुरभी सुरबृच्छ देनि करतल मँह वैसी।—गि० दास (शब्द०)।

सुरसुराना
क्रि० अ० [अनु०] १. कीड़ों आदि का रेंगना। २. खुजली होना।

सुरसुराहट
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुरसुराना + आहट (प्रत्य०)] १. सुर- सुर होने का भाव। २. खुजलाहट। ३. गुदगुदी।

सुरसुरी पु (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित्] गंगा। सुरसरी।

सुरसुरी (२)
संज्ञा स्त्री० [अनु०] १. दे० 'सुरसुराहट'। २. एक प्रकार का कीड़ा जो चावल, गेहूँ आदि में होता है। ३. एक प्रकार की आतिशबाजी जिसे छछूँदर भी कहते हैं। ४. एक प्रकार का कीड़ा जिसके शरीर पर रेंगने से खुजली और जलन पैदा होती है।

सुरसेनप
संज्ञा पुं० [सं० सुर + सेनापति] देवताओं के सेनापति कार्तिकेय। उ०—सुरसेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू।—मानस, १।३१७।

सुरसेना
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवताओं की सेना।

सुरसैया पु
संज्ञा पुं० [सं० सुर + हिं० सैयाँ(स्वामी)] इंद्र। दे० 'सुरसाई'। उ०—तुलसी बाल केलि सुख निरखत बरषत सुमन सहित सुरसैंयाँ।—तुलसी (शब्द०)।

सुरसैनी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरशयनी] विष्णुशयनी।दे०, 'सुरशयनी'।

सुरस्कंध
संज्ञा पुं० [सं० सुरस्कन्ध] एक असुर का नाम।

सुरस्त्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] अप्सरा। दे० 'सुरसुंदरी'।

सुरस्त्रीश
संज्ञा पुं० [सं०] अप्सराओं के स्वामी इंद्र।

सुरस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के रहने का स्थान। स्वर्ग। सुरलोक।

सुरस्त्रवंती
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरस्तरवन्ती] आकाशगंगा।

सुरस्त्रोतस्विनी
संज्ञा पुं० [सं० सुरस्वामिन्] देवताओं के स्वामी, इंद्र। दे० 'सुरसाई'।

सुरहना पु
क्रि० अ० [?] घाव का सूखना। जख्म भरना।

सुरहरा
वि० [अनु०] जिसमें सुरसुर शब्द हो। सुरसुर शब्द से युक्त। उ०— फेरि दृग फीके मुख लेति फुरहरी देव साँसै सुरहरी भुज चुरी झहरैबै की। — देव (शब्द०)।

सुरहित (१)
संज्ञा स्त्री० [देश०] दे० 'सुरही'।

सुरहित (२)
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का कल्याण।

सुरही (१)
संज्ञा स्त्री० [हि० सोलह+ई (=सोरही)] १. एक प्रकार की सोलह चित्तीकौड़ियाँ जिनसे जूआ खेलते हैं। २. सौलह चित्ती कौड़ियों से होनेवाला जुआ। विशेष— इस जूए में कौड़ियां मुट्ठी में उठाकर जमीन पर फैंकी जाती हैं और उनकी चित्त पट की गिनती से हार जीत होती है। प्रायः बड़े जुआरी लोग इसी से जुआ खेलते हैं।

सुरही (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरभी] १. चमरी गाय। २. गौ। गाय। एक प्रकार की घास जो पड़ती जमीन में होती हैं।

सुरहुरी †
संज्ञा स्त्री० [हि० सुरसुरी ?] १. श्वासनलिका में अन्न के टुकड़े, जल आदि का चढ़ जाना। २. उससे होनेवाली एक प्रकार की पीड़ा या वेदना।

सुरहोनी
संज्ञा पुं० [कर्ना० सुरुहोनेय] पुन्नाग जाति का एक पेड़ जो पश्चिमी घाट में होता है। यह प्रायः डेढ़ सौ फुट तक ऊँचा होता है।

सुरांगना
संज्ञा स्त्री० [सं० सुराङ्गना] १. देवपत्नी। देवांगना। २. अप्सरा।

सुरांत
संज्ञा पुं० [सं० सुरान्त] एक राक्षस का नाम।

सुरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मद्य। मदिरा। वारुणी। शराब। दारु। विशेष— दे० 'मदिरा'। २. जल। पानी। ३. पीने का पात्र। ४. सर्प। ५. सोम (को०)।

सुराई पुं०
संज्ञा स्त्री० [सं० शूर+आई (प्रत्य०)] शूरता। वीरता। बहादुरी। उ०— सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई। — तुलसी (शब्द०)।

सुराकर
संज्ञा पुं० [सं०] १. भट्ठी जहां शराब चुआई जाती है। २. नारियल का पेड़। नारिकेल वृक्ष।

सुराकर्म
संज्ञा पुं० [सं० सुराकर्मन्] वह यज्ञकर्म या संस्कार जो सुरा द्वारा किया जाता है।

सुराकार
संज्ञा पुं० [सं०] शराब चुआनेवाला। शराब बनानेवाला। शौंडिक। कलवार।

सुराकुंभ
संज्ञा पुं० [सं० सुराकुम्भ] वह पात्र या घड़ा जिसमें मद्य रखा जाता है। शराब रखने का घड़ा।

सुराख (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० सूराख] छेद। छिद्र।

सुराख (२)
संज्ञा पुं० [अ० सुराग] दे० 'सुराग'।

सुराग (१)
संज्ञा पुं० [सं० सु+राग] १. गाढ़ प्रेम। अत्यंत प्रेम। अत्यंत अनुराग। उ०— मुनि बाजति बीन प्रवीन नवीन सुराग हिये उपजावति सी। — केशव (शब्द०)। २. सुंदर रंग या वर्ण। ३. सुंदर राग। उ०— गाय गोरी मोहनी सुराग बाँसुरी के बीच कानन सुहाय मारयंत्र कों सुनायगी। — दीनदयाल (शब्द०)।

सुराग (२)
संज्ञा पुं० [अ० सुराग] १. सूत्र। टोह। पता। २. खोज। तलाश (को०)। ३. पाँव का निशान। पदचिह्न (को०)। ४. लकीर। लीक (को०)। ५. वृक्ष। पेड़ (को०)। क्रि० प्र०— देना।— पाना।— मिलना।— लगना।— लगाना। यौ०—सुरागरसाँ = (१) टोह या पता लेनेवाला। (२) भेदिया। गुप्तचर। सुरागरसी = अन्वेषण। तलाश। खोज। टोह।

सुरागाय
संज्ञा स्त्री० [सं० सुर + गाय] एक प्रकार को दोनस्ली गाय जिसकी पूंछ गुप्फेदार होती है और जिससे चँवर बनता है। चमरी गाय। विशेष— यह प्रकार के जंगली साँड — जो तिब्बत और हिमा- लय में होते हैं और जिनके बाल लंबे और मुलायम होते हैं, और भारतीय गाय के संयोग से उत्पन्न है। यह प्रायः पहाड़ों पर ही रहती है। मैदान की जलवायु इसके अनुकूल नहीं होती।

सुरागार
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ मद्य विकता हो। कल- वरिया। शराबखाना। २. देवगृह।

सुरागी
संज्ञा पुं० [अ० सुराग] १. टोह लेनेवाला। २. मुखबिर। ३. इकबाली गवाह [को०]।

सुरागृह
संज्ञा पुं० [सं०] शराबखाना। सुरागाऱ।

सुराग्रह
संज्ञा पुं० [सं०] मद्य पीने का एक प्रकार का पात्र।

सुराग्य
संजा पुं० [सं०] अमृत।

सुराधट
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुराकुंभ'।

सुरावार्य
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के आचार्य बृहस्पति।

सुराज पु
संज्ञा पुं० [सं० सुराज्य] १. दे० 'सुराज्य'। २. दे० 'स्वराज्य'।

सुराजक
संज्ञा पुं० [सं०] भृंगराज। भँगरा।

सुराजा (१) पुं
संज्ञा पुं० [सं० सुराजन्] उत्तम राजा। अच्छा राजा।

सुराजा (२) पुं
संज्ञा पुं० दे० 'सुराज्य'।

सुराजिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] गृह गोधा। छिपकली।

सुराजी †
संज्ञा पुं० [सं० स्वराज्य, हि० सुराज+ई] स्वराज्य की कामना करने एवं उसके लिये आंदोलन करनेवाला। भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष में भाग लेनेवाला।

सुराजीव
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।

सुराजीवी
संज्ञा पुं० [सं० सुराजीविन्] शराब चुआने या बेचनेवाला। शौंडिक। कलवार।

सुराज्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वह राज्य जिसमें प्रधानतः शासितों के हित पर दृष्टि रखकर शासन कार्य किया जाता हो। वह राज्य या शासन जिसमें सुख और शांति विराजती हो। अच्छा और उत्तम राज्य।

सुराज्य (२)
संज्ञा पुं० [सं० स्वराज्य] दे० 'स्वराज्य'।

सुराद्दत
संज्ञा पुं० [सं०] वह स्थान जहाँ मद्य बिकता हो। शराब- खाना। कलवरिया।

सुराद्दति
संज्ञा स्त्री० [सं०] चमड़े का वह पात्र या कुप्पा जिसमें मदिरा रखी जाती है।

सुराथी †
संज्ञा स्त्री० [हि० सु+रेतना] लकड़ी का वह डंडा या लबेदा जिससे अनाज के दान निकालने के लिये बाल आदि पीटते हैं।

सुराद्रि
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का पर्वत, सुमेरु।

सुराधम (१)
वि० [सं०] देवताओं में निकृष्ट।

सुराधम (२)
संज्ञा पुं० निकृष्ट देवता।

सुराधर
संज्ञा पुं० [सं०] एक राक्षस।

सुराधा (१)
वि० [सं० सुराधस्] १. उत्तम दान देनेवाला। बहुत बड़ा दाता। उदार। २. धनी। अमीर।

सुराधा (२)
संज्ञा पुं० एक ऋषि का नाम।

सुराधानी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह कुंभी या छोटा घड़ा जिसमें मदिरा रखी जाती है। शराब रखने की गगरी।

सुराधिप
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के स्वामी, इंद्र।

सुराधीश
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुराधिप'।

सुराध्यक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा। २. श्रीकृष्ण। ३. शिव।

सुराध्वज
संज्ञा पुं० [सं०] मद्यपात्र का वह चिह्न जो प्राचीनकाल में मद्यपान करनेवालों के मस्तक पर लोहे से दागकर किया जाता था। विशेष— मनु ने मद्यपान की गणना चार महापातकों में की है, और कहा है कि राजा को उचित है कि मद्यपान करनेवाले के मस्तक पर मद्यपात्र का चिह्न लोहे से दागकर अंकित करा दे। यही चिह्न सुराध्वज कहलाता था।

सुरानक
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का नगाड़ा।

सुरानीक
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं की सेना।

सुराप
वि० [सं०] १. सुरा या मद्यपान करनेवाला। मद्यप। शराबी। २. बुद्धिमान्। मनीषी। ३. आनंदप्रद। सुखपूर्वक ग्राह्न (को०)।

सुरापगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवताओं की नदी। गंगा।

सुरापाण, सुरापान
संज्ञा पुं० [सं०] १. मदयपान करने की क्रिया। शराब पीना। २. मद्यपान करने के समय खाए जानेवाले चटपटे पदार्थ। चाट। अवदंश।

सुरापात्र
संज्ञा पुं० [सं०] मदिरा रखने या पीने का पात्र।

सुरापाना
संज्ञा पुं० [सं० सुरापाना?] पूर्व देश के लोग। विशेष— सुरापान करने के कारण इस देश के लोगों का यह नाम पड़ा है।

सुरापी
वि० [सं०] १. दे० 'सुराप'। २. जिसके यहाँ शराबी लोग रहते हो (को०)।

सुरापीत
वि० [सं०] जिसने मदिरापान किया हो [को०]।

सुरापीथ
संज्ञा पुं० [सं०] सुरापान। मद्यपान। शराब पीना।

सुराप्रिय
वि० [सं०] जिसे मदीरा प्रिय हो [को०]।

सुराबलि
वि० [सं०] जिसे मदिरा अर्पण की जाय (को०)।

सुराबीज
संज्ञा पुं० [सं०] मद्य बनाने में प्रयुक्त एक पदार्थ या तत्व। दे० 'सुरासार' [को०]।

सुराब्धि
संज्ञा पुं० [सं०] सुरा का समुद्र। विशेष— पुराणों के अनुसार यह सात समुद्रों में से तीसरा है। मार्कडेयपुराण में लिखा है कि लवणसमुद्र से दुना इक्षुसमुद्र और इक्षुसमुद्र से दूना सुरासमुद्र है।

सुराभांड
संज्ञा पुं० [सं० सुराभाणड] दे० 'सुरापात्र' [को०]।

सुराभाग
संज्ञा पुं० [सं०] शराब की माँड़।

सुराभाजन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुरापात्र'।

सुरामंड
संज्ञा पुं० [सं० सुरामण्ड] शराब की माँड़।

सुरामत्त
वि० [सं०] शराब के नशे में चूर। मदोन्मत्त। मतवाला।

सुरामद
संज्ञा पुं० [सं०] शराब का नशा [को०]।

सुरामुख
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसके मुँह में शराब हो। २. एक नागासुर का नाम।

सुरामूल्य
संज्ञा पुं० [सं०] मदिरा का मूल्य। शराब का दाम [को०]।

सुरामेह
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार प्रमेह रोग का एक भेद। विशेष— कहते हैं, इस रोग में रोगी को शराब के रंग का पेशाब होता है। पेशाब शीशी में रखने से नीचे गाढ़ा और ऊपर पतला दिखलाई पड़ता है। पेशाब का रंग मटमैला या लाली लिए होता है।

सुरामेही
वि० [सं० सुरमेहिन्] सुरामेह रोग से पीड़ित। जिसे सुरामेह रोग हुआ हो।

सुराय पु
संज्ञा पुं० [सं० सु + हि० राय (=राजा)] श्रेष्ठ नृपति। अच्छा राजा। उ०— बहु भाँति पूजि सुराय। कर जोरि कै परिपाय। केशव (शब्द०)।

सुरायुध
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं का अस्त्र।

सुरारणि
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवताओं की माता, अदिति।

सुरारि
संज्ञा पुं० [सं०] १. असुर। राक्षस। २. एक दैत्य का नाम। ३. झिल्ली की झनकार। टिड्डा या झींगुर का आह्मा- दक स्वर (को०)।

सुरारिघ्न
संज्ञा पुं० [सं०] असुरों का नाश करनेवाले, विष्णु।

सुरारिहता
संज्ञा पुं० [सं० सुरारिहन्तृ] असुरों का नाश करनेवाले, विष्णु।

सुरारहिन्
संज्ञा पुं० [सं०] असुरो का नाश करनेवाले, शिव।

सुरारी
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार की बरसाती घास जो राजपूताने और बुंदेलखंड में होती है। यह चारे के लिये बहुत अच्छी समझी जाती है। इसे लव भी कहते हैं।

सुरार्चन
संज्ञा पुं० [सं०] देवार्चन। देवारधन [को०]।

सुरार्चावेश्म
संज्ञा पुं० [सं० सुरार्चावेश्मन्] वह स्थान या मंदिर जहाँ अनेक देवताओं की प्रतिमा हो। देवकुल [को०]।

सुरार्दन
संज्ञा पुं० [सं०] सुरों या देवाताओं को पीड़ा देनेवाले, राक्षस या असुर।

सुरार्ह
संज्ञा पुं० [सं०] १. हरिचंदन। २. स्वर्ण। सोना। ३. कुंकुमागरु चंदन।

सुरार्हक
संज्ञा पुं० [सं०] १. बर्बरक। बबई। २. वैजयंती। तुलसी।

सुराल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] धुना। राल।

सुराल (२)
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार की लता जिसकी जड़ बिलाई- कंद कहलाती है। विशेष दे० 'घोड़ा बेल'।

सुरालय
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवाताओं के रहने का स्थान। स्वर्ग। २. सुमेरु। ३. देवमंदिर। ४. वह स्थान जहाँ सुरा मिलती हो। शराबखाना। कलवरिया।

सुरालिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सातला या सप्तला नाम की बेल जो जंगलों में होती है। विशेष—इसके पत्ते खैर के पत्तों के समान छोटे छोटे होते हैं। इसका फल पीला होता है और इसमें एक प्रकार की पतली चिपटी फली लगती है। फली में काले बीज होते हैं जिसमें से पीले रंग का दुध निकलता है। वैद्यक के अनुसार यह लघु, तिक्त, कटु तथा कफ, पित्त, विस्फोट, व्रण और शोथ को नाश करनेवाली है।

सुराव
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का घोड़ा।२. उत्तम ध्वनि।

सुरावट
संज्ञा पुं० [सं० स्वरावर्त] १. स्वर का माधुर्य। २. स्वरों का उतार चढ़ाव या आरोह अवरोह।

सुरावती
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरावनि] कश्यप की पत्नी और देवताओं की माता, अदिति। उ०—विनतासुत खगनाथ चंद्र सोमावति केरे। सुरावती के सूर्य रहत जग जासु उजेरे।—विश्राम (शब्द०)।

सुरावनि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. देवताओं की माता, अदिति। २. पृथिवी। भूमि। धरती।

सुरावारि
संज्ञा पुं० [सं०] सुरा का समुद्र। विशेषदे०'सुराब्धि'।

सुरावास
संज्ञा पुं० [सं०] सुमेरु।

सुरावृत्त
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।

सुराश्रय
संज्ञा पुं० [सं०] सुमेरु।

सुराष्ट्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश का नाम जो भारत के पश्चिम में था। किसी के मत से यह सूरत और किसी के मत से काठियावाड़ है)। २. राजा दरशरथ के एक मंत्री का नाम।

सुराष्ट्र (२)
वि० जिसका राज्य अच्छा हो।

सुराष्ट्रज (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. गोपीचंदन। सौराष्ट्रमृत्तिका।२. काली मूँग। कृष्ण मृदग। ३. लाल कुलथी। रक्त कुलत्थ। ४. एक प्रकार का विष।

सुराष्ट्रज (२)
वि० सुराष्ट्र देश में उत्पन्न।

सुराष्ट्रजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] गोपीचंदन।

सुराष्ट्रीद्भव
संज्ञा स्त्री० [सं०] फिटकरी।

सुरासंधान
संज्ञा पुं० [सं० सुरासन्धान] शराब चुआने की क्रिया।

सुरासमुद्र
संज्ञा पुं० [सं०]दे० 'सुराब्धि'।

सुरासव
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का आसव जो तीक्ष्ण, बलकारक, मूत्रवर्धक, कफ ओर वायुनाशक तथा मुख- प्रिय कहा गया है।

सुरासार
संज्ञा पुं० [सं०] मद्य का सार जो अंगुर या माड़ी के खमीर से बनता है। इसके बिना शराब नहीं बनती। इसी में नशा होता है।

सुरासुर
संज्ञा पुं० [सं०] सुर और असुर। देवता और दानव। यौ०—सुरासुरगुरु। सुरासुरविमर्द=देवासुर संग्राम।

सुरासुरगुरु
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. कश्यप।

सुरास्पद
संज्ञा पुं० [सं०] देवाताओं का घर। देवगृह। मंदिर।

सुराही
संज्ञा स्त्री० [अ०] जल रखने का एक प्रकार का प्रसिद्ध पात्र जो प्रायः मिट्टी का और कभी कभी पीतल या जस्ते आदि धातुओं का भी बनता है। विशेष—यह पात्र बिलकुल गोल हंडी के आकार का होता है, पर इसका मुँह ऊपर की ओर कुछ दूर तक निकला हुआ गोल नली के आकार का होता है। प्रायः गरमी के दिनों में पानी ठंढा करने के लिये इसका उपयोग होता है। इसे कहीं कहीं कुज्जा भी कहते हैं। यौ०—सुराहीदार। सुराहीनुमा=सुराही जैसा। सुराही के समान। कुज्जे के आकार का। २. बाजु, जोशन या बरेखी के लटकते हुए सुत में घुंडी के ऊपर लगनेवाला सोने या चाँदी का सुराही के आकार का बना हुआ छोटा लंबोतरा टुकड़ा। ३. कपड़े की एक प्रकार की काट जो पान के आकार की होती है। इसमे मछली की दुम की तरह कुछ कपड़ा तिकोना लगा रहता है। (दर्जी)। ४. नैचे में सबसे ऊपर की ओर वह भाग जो सुराही के आकार का होता है और जिसपर चिलम रखी जाती है।

सुराहीदार
वि० [अ० सुराही+ फा० दार] सुराही के आकार का। सुराही की तरह का गोल और लंबोतरा। जैसे,—सुराहीदार गरदन। सुराहीदार घुँघरु। सुराहीदार मोती।

सुराह्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवदारु। २. मरुआ। मरुवक। ३. हल- दुआ। हरिद्र।

सुराह्वय
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार ता पौधा। २. देवदारु।

सुरि
वि० [सं०] बहुत धनी। बड़ा अमीर।

सुरियं
संज्ञा पुं० [सं० सुर] इंद्र। (ड़िं०)।

सुरियाखार
संज्ञा पुं० [फ़ा० शोरा + हि० खार] शोरा।

सुरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवपत्नी। देवांगना।

सुरोला
वि० [हि० सुर + ईला (प्रत्य०)] [वि० स्त्री० सुरीली] मीठे सुरवाला। मधुर स्वरवाला। जिसका सुर मीठा हो। सुस्वर। सुकंठ। जैसे — सुरीला गला, सुरीला बाजा, सुरीला गवैया, सुरीली तान।

सुरुंग
संज्ञा पुं० [सं० सुरुङ्ग] १. सहिंजन। शोभांजन वृक्ष। २. दे० 'सुरंग'।

सुरुंगयुक्
संज्ञा पुं० [सं० सुरुङ्गयुक्]दे० 'सुरंगयुक्'।

सुरुंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरङ्गा]दे० 'सुरंग'।

सुरुंगाहि
संज्ञा पुं० [सं० सुरुङ्गाहि] सेंध लगानेवाला चोर। सेंधिया चोर।

सुरुंदला
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरुन्दला] एक प्राचिन नदी का नाम।

सुरुक्म
वि० [सं०] अच्छी तरह प्रकाशित। प्रदीप्त।

सुरुख (१)
वि० [सं० सु + फ़ा० रुख (=प्रवृत्ति] अनुकू। सदय। प्रसन्न। उ०— सुरुख जानकी जानि कपि कहे सकल संकेत।— तुलसी (शब्द०)।

सुरुख (२)
वि० [फ़ा० सुर्ख]दे० 'सुर्ख'। उ०— रंच न देरि करहु सुरुख अब हरि हेरि परै न। बिनय बचन मा सुनि भए सुरुख तरुनि के नैन। — शृंगार सतसई (शब्द०)।

सुरु्खुरु
वि० [फ़ा० सुर्खरु] जेसे किसी काम में यश मिला हो। यशस्वी। उ०— अलहदाद भल तेहिकर गुरु। दीन दुनी रोसन सुरुखुरु। — जायसी (शब्द०)।

सुरुच (१)
संज्ञा पुं० [सं०] उज्वल प्रकाश। अच्छी रोशनी।

सुरुच (२)
वि० सुंदर प्रकाशवाला।

सुरुचि (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. राजा उत्तानपाद की दो पत्नियों में से एक जो उत्तम की माता थी। ध्रुव की विमाता। २. उत्तम रुचि। ३. सुंदर दीप्ति। ४. अत्यंत प्रसन्नता।

सुरुचि (२)
वि० १. उत्तम रुचिवाला। जिसकी रुचि उत्तम हो। २. स्वाधीन।(डिं०)।

सुरुचि (३)
संज्ञा पुं० १. एक गंधर्व राजा का नाम। २. एक यक्ष का नाम।

सुरुचिर
वि० [सं०] १. सुंदर। दिव्य। मनोहर। २. उज्वल। प्रकाशमान्। दीप्तिशाली।

सुरुज (१)
वि० [सं०] बहुत बीमार। अस्वस्थ। रुग्ण।

सुरुज पु ‡ (२)
संज्ञा पुं० [सं० सूर्य़] दे० 'सूर्य'। उ०— तहँ ही से सब ऊपजे चंद सुरुज आकाश। — दादू (शब्द०)।

सुरुजमुखी पु
संज्ञा पुं० [सं० सूर्यमुखी] दे० 'सूर्यमुखी'। उ०— विचरि चहूं दिसि लखत हैं वर पूजै वृजराज। चंद्रमुखी को लखि सखी सुरुजमुखी सी आज। — शृंगार सतमई (शब्द०)।

सुरुद्रि
संज्ञा स्त्री० [सं०] शतद्रु या वर्तमान सतलज नदी का एक नाम।

सुरुल
संज्ञा पुं० [देश०] मूँगफली पौधे का एक रोग।विशेष— मूँगफली के इस रोग में कुछ कीड़ों के खाने का कारण उसके पत्ते और डंठल टेढ़े हो जाते हैं। इस पौधे में यह रोग प्रायः सभी जगहों में होता है और इससे बड़ी हानि होती है।

सुरुवा (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शोरबा]दे० 'शोरबा'।

सुरवा (२)
संज्ञा पुं० [सं० श्रृवा] दे० 'सुरवा'।

सुरूप (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सुरूपा] १. सुंदर रूपवाला। रूपवान्। खूबसूरत २. विद्वान्। बुद्धिमान्।

सुरूप (२)
संज्ञा पुं० १. शिव का एक नाम। २. एक असुर का नाम। ३. कपास। तूल। ४. पलास पीपल। परिषाश्वत्थ। ५. कुच्छ विशिष्ट देवता और व्यक्ति। विशेष—कामदेव, दोनों अश्विनीकुमार, नकुल, पुरूरवा, नलकूबर और शांब ये सुरूप कहलाते हैं।

सुरूप (३)
संज्ञा पुं० [सं० स्वरूप] दे० 'स्वरूप' (१)। उ०—रूप सवाई दिन दिन चढ़ा। बिधि सुरूप जग ऊपर गढ़ा।—जायसी (शब्द०)।

सुरूपक
वि० [सं०]दे० 'स्वरूप'। (२)।

सुरूपता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुरूप होने का भाव। सुंदरता। खूबसूरती।

सुरूपा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सरिवन। शालपर्णी। २. बमनेठी। भारंगी। ३. सेवती। वनमल्लिका। ४. बेला। वार्षिकी मल्लिका। ५. पुराणानुसार एक गौ का नाम। ६. एक नागकन्या और एक अप्सरा का नाम (को०)।

सुरूपा (२)
वि० स्त्री० सुंदर रूपवाली। सुंदरी।

सुरूर
संज्ञा पुं० [फा़०] दे० 'सरूर'। मुहा०—दे० 'सरूर' के मुहा०। यौ०—सुरूर अंगेज = हलका नशा लानेवाला। मादक।

सुरूहक
संज्ञा पुं० [सं०] खच्चर। गर्दभाश्व।

सुरेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्र] १. सुरराज। इंद्र। २. लोकपाल। राजा। ३.विष्णु। उपेंद्र (को०)।

सुरेंद्रकंद
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रकन्द] दे० 'सुरेंद्रक'।

सुरेंद्रक
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रक] कटु शूरण। काटनेवाला जमींकंद। जंगली ओल।

सुरेंद्रगोप
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रगोप] बीरबहूटी। इंद्रगोप नामक कीड़ा।

सुरेंद्रचाप
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रचाप] इंद्रधनुष।

सुरेंद्रजित्
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रजित्] इंद्र को जीतनेवाला, गरूड।

सुरेंद्रता
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रता] सुरेंद्र होने का भाव या धर्म। इंद्रत्व।

सुरेंद्रपूज्य
संज्ञा पुं० [सं० सुरेन्द्रपूज्य] बृहस्पति।

सुरेंद्रमाला
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रमाला] एक किन्नरी का नाम।

सुरेंद्रलुप्त
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रलुप्त] इंद्रलुप्त। बाला झडने का रोग। गंजापन [को०]।

सुरेंद्रलोक
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रलोक] इंद्रलोक।

सुरेंद्रवज्रा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रवज्रा] एक वर्णवृत का नाम जिसमें दो तगण, एक जगण और दो गुरू होते हैं। इंद्राणी।

सुरेंद्रवती
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रवती] शची। इंद्राणी।

सुरेंद्रा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेन्द्रा] एक किन्नर का नाम।

सुरेख
वि० [सं०] १. सुंदर रेखांकन करनेवाला [को०]।

सुरेखा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुंदर रेखा। २. हाथ पाँव में होनेवाली वे रेखाएँ जिनका रहना शुभ समझा जाता है।

सुरेज्य
संज्ञा पुं० [सं०] बृहस्पति।

सुरेज्ययुग
संज्ञा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति का युग जिसमें पाँच वर्ष हैं। इन पाँचों वर्षों के नाम ये हैं— अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा और धाता।

सुरेज्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. तुलसी। २. ब्राह्मी।

सुरेणु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. त्रसरेणु। २. एक प्राचीन राजा का नाम।

सुरेणु (२)
संज्ञा स्त्री० १. त्वाष्ट्री की पुत्री और विवस्वान् की पत्नी। २. एक नदी का नाम जो सप्त सरस्वतियों में समझी जाती है।

सुरेणुपुष्पध्वज
संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों अनुसार कित्ररों के एक राजा का नाम।

सुरेतना †
क्रि० स० [देश०] खराब अनाज से अच्छे अनाज को अलग करना।

सुरेतर
संज्ञा पुं० [सं०] असुर।

सुरेता
वि० [सं० सुरेतस्] बहुत वीर्यवान्। अधिक सामर्थ्यवान्।

सुरेतोधा
वि० [सं० सुरेतोधस्] वीर्यवान्। पौरुषसंपन्न।

सुरेथ
संज्ञा पुं० [देश०] सूँस। शिंशुमार। उ०— रथ सुरेथ भुज मीन समाना। शिरकच्छप गजग्राह प्रमाना। — विश्राम (शब्द०)।

सुरेनुका पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरेणु] दे० 'सुरेणु'। उ०— सोमनाथ त्रिरंत ह्मँ आलनाथ एकंग। हरिक्षेत्र नैमिष सदा अंशतीशु चित्रंग। प्रगट प्रभासु सुरेनुका हर्म्य जापु उज्जैनि। शंकर पूरनि पुष्करु अरु प्रयाग मृगनैनि। — केशव (शब्द०)।

सुरेभ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुरहस्ती। देवहस्ती। २. दिन (को०)।

सुरेभ (२)
वि० सुस्वर। सुरीला।

सुरेवट
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सुपारी का पेड़। रामपूग।

सुरेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं के स्वामी इंद्र। २. शिव। ३. विष्णु। ४. कृष्ण। ५. लोकपाल। ६. अग्नि का एक नाम (को०)।

सुरेशलोक
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रलोक।

सुरेशी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा।

सुरेश्वर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं के स्वामी, इंद्र। २. ब्रह्मा। ३. शिव। ४. रुद्र। ५. विष्णु (को०)।

सुरेश्वर (२)
वि० देवताओं में श्रेष्ठ।

सुरेश्वरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. देवताओं की स्वामिनी, दुर्गा। २. लक्ष्मी। ३. राधा। ४. स्वर्गगंगा।

सुरेश्वराचार्य
संज्ञा पुं० [सं०] मंड़न मिश्र का संन्यास आश्रम का नाम।

सुरेष्ट
संज्ञा पुं० [सं०] १. सफेद अगस्त का वृक्ष। २. लाल अगस्त। ३. सुरपुत्राग। ४. शिवमल्ली। बड़ी मौलसिरी। ५. साल वृक्ष। साखू।

सुरेष्टक
संज्ञा सं० [सं०] शाल। साखू। अश्वकर्ण।

सुरेष्टा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ब्राह्मी।

सुरेस पु
संज्ञा पुं० [सं० सुरेश] दे० 'सुरेश'।

सुरै (१)
संज्ञा स्त्री० [देश०] एक प्रकार की अनिष्टकारी घास जो गर्मी के मौसम में पैदा होती है।

सुरै (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरभी] गाय।(डि०)।

सुरै (३)
वि० बहुत धनी। प्रचुर संपत्तियुक्त [को०]।

सुरैत
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरति] वह स्त्री जिससे विवाह संबंध न हुआ हो बल्कि जो यों ही घर में रख ली गई हो। सुरैतिन। उपपत्नी रखनी। रखेली।

सुरैतवाल
संज्ञा पुं० [हि० सुरैत + वाल] सुरैत का लड़का।

सुरैतवाला
संज्ञा पुं० [हि०] दे० 'सुरैतवाल'।

सुरैतिन
संज्ञा स्त्री० [सं० सुरति] दे० 'सुरैत'।

सुरैया
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. तीसरा नक्षत्र। कृत्तिका। २. कान में पहनमे का झुमका। ३. रोशनी का झाड़ [को०]।

सुरोचन
संज्ञा पुं० [सं०] १. यज्ञबाहु के एक पुत्र का नाम। २. एक वर्ष का नाम।

सुरोचना
संज्ञा स्त्री० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम।

सुरोचि
वि० [सं० सुरुचि] सुंदर। उ०— गिरी जात न जानत पान न खात बिरी कर पंकज के दल की। बिहँसी सब गोप- सुता हरि लोचन मूंदि सुरोचि दृगंचल की। — केशव (शब्द०)।

सुरोची
संज्ञा पुं० [सं० सुरोचिस्] वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम।

सुरोत्तम
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवताओं में श्रेष्ठ, विष्णु। २. सूर्य। ३. इंद्र (को०)। ४. सुरा का फेन (को०)।

सुरोत्तमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।

सुरोत्तर
संज्ञा पुं० [सं०] चंदन।

सुरोद (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सुरासमुद्र। मदिरा का समुद्र।

सुरोद (२)
संज्ञा पुं० [सं० स्वरोद] दे० 'सरोद'।

सुरोद (३)
संज्ञा पुं० [फ़ा०] गायन। गाना [को०]।

सुरोदक
संज्ञा पुं० [हि० सुरोदक] दे० 'सुरोद'।

सुरोदय
संज्ञा पुं० [सं० स्वरोदय] दे० 'स्वरोदय'।

सुरोध
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार तंसु के एक पुत्र का नाम।

सुरोधा
संज्ञा पुं० [सं०सुरोधस्] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम।

सुरोपम
वि० [सं०] सुरतुल्य। देवता के समान।

सुरोपयाम
संज्ञा पुं० [सं०] मदिरापात्र [को०]।

सुरोमा (१)
वि० [सं०सुरोमन्] सुंदर रोमवाला। जिसके रोम सुंदर हों।

सुरोमा (२)
संज्ञा पुं० १. एक यज्ञ का नाम। २. एक असुरनाग (को०)।

सुरोषण
संज्ञा पुं० [सं०] देवताओं के एक सेनापति का नाम।

सुरौका
संज्ञा पुं० [सं० सुरौकस्] १. स्वर्ग। २. देवमंदिर।

सुर्ख (१)
वि० [फ़ा०सुर्ख] रक्त वर्ग का। लाल।

सुर्ख (२)
संज्ञा पुं० गहरा लाल रंग।

सुर्ख (३)
संज्ञा स्त्री० १. घुँघुची। गुंजा। एक रत्ती। २. गंजीफा की एक क्रीड़ा [को०]। यौ०—सुर्खचश्म =जिसकी आँखें लाल हों। सुर्खपोश = रक्तांबर। लाल कपड़े पहनेवाला। सुर्खपोशी = लाल वस्त्र पहनना। सुर्खरंग = लाल रंग का। रक्तवर्णवाला।

सुर्खरू
वि० [फ़ा०] १. जिसके मुख पर तेज हो। तेजस्वी। कांतिमान्। २. प्रतिष्ठित। संमान्य। ३. किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने के कारण जिसके मुँह की लाली रह गई हो।

सुर्खरूई
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. सुर्खरू होने का भाव। २. यश। कीर्ति। ३. मान। प्रतिष्ठा।

सुर्खा
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुर्ख] १. एक प्रकार का कबूतर जो लाल रंग का होता है। २. सुर्ख रंग का अश्व।३. सुर्ख रंग का आम।

सुर्खाब
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुर्खाब]दे० 'सुरखाब'।

सुर्खी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०सुर्खी] १. लाली। ललाई। अरूणता। २. लेख आदि का शीर्षक, जो प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों में प्रायः लाल स्याही से लिखा जाता था। लेख, समाचार आदि का शीर्षक। ३. रक्त। लहू। खून। ४. दे०'सुरखी'।

सुर्खीदार सुरमई
संज्ञा पुं० [फ़ा०] एक प्रकार का सुरमई या बैंजनी रंग जो कुछ लाली लिए होता है।

सुर्खी मायल
वि० [फा़०] लालिमायुक्त। ललौहाँ। उ०—ओंठ पतले तथा गुलाबी रंग में रँगे मालूम होते थे गाल भरे तथा सुर्खी मायल थे।—कंठ०, पृ०५०।

सुर्जना
संज्ञा पुं० [देश०]दे० 'सहिजन'।

सुर्ता पु
वि० [ह० सुरवि (= स्मृति)] समझदार। होशियार। बुद्धिमान्। उ०—हीरा लाल की कोठरी मोतिया भरे भंड़ार। सुर्ता सुर्ता चूनिया मूरख रहे झख मार।—कबीर (शब्द०)।

सुर्ती
संज्ञा स्त्री० [हिं०]दे० 'सुरती'।

सुर्मा
संज्ञा पुं० [फ़ा० सुर्मह्] दे० 'सुरमा'।

सुर्रा (१)
संज्ञा पुं० [देश०] १. प्रकार एक की मछली। २. थैली। बटुआ।

सुर्रा † (२)
संज्ञा पुं० [सुर्र से अनु०] तेज हवा। क्रि० प्र०—चलना।