विक्षनरी:हिन्दी-हिन्दी/सल
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हिन्दी शब्दसागर |
संकेतावली देखें |
⋙ सलंबा नोन
संज्ञा पुं० [सलंबा ? + हि० नोन] कचिया नोन। काच लवण।
⋙ सल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल। पानी।२. सरल वृक्ष। ३. एक प्रकार का कीड़ा जो प्रायः घास में रहता है। इसे बोंट भी कहते हैं।
⋙ सल (२)
संज्ञा स्त्री० [हि०] १. सिंकुड़न। सिलवट। २. तह। पर्त।
⋙ सलई
संज्ञा स्त्री० [सं० शल्लकी] १. शल्लकी वृक्ष। चीढ़। वि० दे० 'चीढ'। २. चीढ़ का गोंद। कुंदुर।
⋙ सलक
संज्ञा पुं० [अ०] चुकंदर। कंदशाक।
⋙ सलक्षण
वि० [सं०] १. समान लक्षणों से युक्त। २. चिह्न या लक्षणयुक्त(को०)।
⋙ सलखपात
संज्ञा पुं० [सं० शल्क + पद] कच्छप। कछुआ।
⋙ सलग †
वि० [सं० सलग्न] पूरा का पूरा। कुल। समग्र। जो टूटा न हो। उ०— कठिन समैया कलिकाल को कुटिल दैया सलग रुपैया भैया कापै दियो जाता है। — कविता कौ०, भा० १, पृ०३९०।
⋙ सलगम
संज्ञा पुं० [फ़ा० शलजम] दे० 'शलजम'।
⋙ सलगा
संज्ञा स्त्री० [सं० शल्लकी] शल्लकी। सलई। चीढ़।
⋙ सलग्नक
वि० [सं०] जो (ऋण) प्रतिभू अर्थात् जामिन देकर लिया गया हो [को०]।
⋙ सलज (१)
वि० [सं० सलज्ज] दे० 'सलज्ज'।
⋙ सलज (२)
संज्ञा पुं० [सं० सल (=जल)] पहाड़ी बरफ का पानी।
⋙ सलजम
संज्ञा पुं० [फ़ा० शंलजम] दे० 'शैलंजम'।
⋙ सलज्ज
वि० [सं०] जिसे लज्जा हो। शर्म और हयावाला। लज्जाशील।
⋙ सलटुक
संज्ञा पुं० [सं०] चौलाई का साग।
⋙ सलतंत †
संज्ञा स्त्री० [हि० सलतनत] १. सुभीता। आराम। २. व्यवस्ता। प्रबंध जुगाड़।
⋙ सलतनत
संज्ञा स्त्री० [अ० सल्तनत] १. राज्य। बादशाहत। २. साम्राज्य। ३. इंतजाम। प्रबंध। मुहा०— सलतनत बैठना = प्रबंध ठीक होना। इंतजाम बैठना। ४. सुभीता। आराम। जैसे, — पहले जरा सलतनत से बैठ लो, तब बातें होंगी।
⋙ सलना (१)
क्रि० अ० [सं०शल्य] १. साला जाना। छिदना। भिदना। २. किसी छेद में किसी चीज का डाला या पहनाया जाना। ३. गड़ना। चुभना।
⋙ सलना (२)
संज्ञा पुं० लकड़ी छेदने का बरमा।
⋙ सलना (३)
संज्ञा पुं० [सं०] मोती।
⋙ सलपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] दालचीनी। गुङत्वक्।
⋙ सलपन
संज्ञा पुं० [देश०] दो तीन हाथ ऊँची एक झाड़ी जिसकी टहनियों पर सफेद रोएँ होते हैं। विशेष— यह प्रायः सारे भारत, लंका, बरमा, चीन और मलाया में पाई जाती है। यह वर्षा ऋतु में फूलती है। इसका व्यवहार ओषधि के रुप में होता है।
⋙ सलफ
संज्ञा पुं० [अ० सलफ़] पूर्वपुरुष। पूर्वज। पुराने जमाने के पुरखे लोग [को०]।
⋙ सलब (१)
वि० [अ० सल्ब] नष्ट। बरबाद। जैसे, — साल ही भर में उन्होंने बाप दादा की सारी कमाई सलब कर दी।
⋙ सलब (२)
संज्ञा पुं० दे० 'सल्ब'।
⋙ सलम पुं
संज्ञा पुं० [सं० शलभ] दे० 'शलभ'।
⋙ सलमह
संज्ञा पुं० [फ़ा०] बथुवा नाम का साग।
⋙ सलमा
संज्ञा पुं० [अ० सलम ?] सोने या चांदी का बना हुआ चमकदार गाल लपटा हुआ तार जो टोपी, साड़ी आदि में बेलबूट बनाने क काम में आता है। बादला।
⋙ सलवट
संज्ञा स्त्री० [हि० सिलवट] दे० 'सिलवट'।
⋙ सलवन
संज्ञा पुं० [सं० शालिपर्ण] सरिवन।
⋙ सलवात
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. बरकत। २. रहमत। मेहरबानी। ३. गाली। दुर्वचन। कुवाच्य़। क्रि० प्र०— सुनाना।
⋙ सलवार
संज्ञा पुं० [फ़ा० शलवार] एक प्रकार का ढीला पायजामा जिसमें चुत्रटें रहती हैं।
⋙ सलसल बोल
संज्ञा पुं० [अ०] बहुमूत्र रोग या मधुप्रमेह नामक रोग।
⋙ सलसलाना (१)
क्रि० अ० [अनु०] १. धीरे धीरे खुजली होना। सरसराहट होना। २. गुदगुदी होना। ३. कीड़ों का पेट के बलचलना। सरसराना। रेंगना। ४. आर्द्र या गीला होने से कार्य के अनुपयुक्त होना।
⋙ सलसलाना (२)
क्रि० सं० १. खुजलाना। २. गुदगुदाना। ३. शीघ्रता से कोई कार्य करना।
⋙ सलसलाहट
संज्ञा स्त्री० [अनु०] १. सलसल शब्द या ध्वनि। २. सलसलाने का भाव या क्रिया। २. खुजली। खरिश। ४. गुदगुदी। कुलकुली।
⋙ सलसी
संज्ञा स्त्री० [देश०] माजूफल की जाति का एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो बूक भी कहलाता है। विशेष दे० 'बूक'।
⋙ सलहज
संज्ञा स्त्री० [सं० श्यालजाया] साले की पत्नी। सरहज।
⋙ सला
संज्ञा स्त्री० [क०] १. निमंत्रित करना। २. आवाज देना। बुलाना [को०]।
⋙ सलाई (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शलाका] १. धातु की बनी हुई कोई पतली छोटी छड़। जैसे, — सुरमा लगाने की सलाई। घाव में दवा भरने की सलाई। मोजा या गुलूबंद बुनने की लसाई। मुहा०— सलाई फेरना = (१) आँखों में सुरमा या औषध लगाना। (२) सलाई गरम करके अंधा करने के लिये आँखों में लगाना। आँखे फोड़ना। २. दियासलाई । माचिस।
⋙ सलाई (२)
संज्ञा स्त्री० [हि० सालना] १. सालने की क्रिया या भाव। २. सालने की मजदूरी।
⋙ सलाई (१)
संज्ञा स्त्री ०[सं० शल्लकी] १. सलई। शल्लकी। २. चीड़ की लकड़ी।
⋙ सलाक (१)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] सोने या चांदी की सलाई [को०]।
⋙ सलाक पुं (२)
संज्ञा स्त्री० [फा़० सलाख] बाण। तीर। उ० — शुद्ध सलाक समान लसी अति रोषमयो द्दग दोठि तिहारी। — केशव (शब्द०)।
⋙ सलाकना †
क्रि० अ० [सं० शलाका + हि० ना (प्रत्य०)] सलाई या इसी तरह की ओर किसी चीज से किसी दूसरी चीज पर लकीर खीचना। सलाई की सहायता से चिह्न करना।
⋙ सलाख
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० सलाख, मि० सं० शलाका] १. लोहे आदि धातु की बना हुई छड़। २. शलाका, सलाई। २. लकीर। खत।
⋙ सलाजित
संज्ञा स्त्री० [हि० शिलाजीत] दे० 'शिलाजीत'।
⋙ सलात
संज्ञा स्त्री० [अ०] नमाज [को०]।
⋙ सलातीन
संमज्ञा पुं० [अ० सुलतान का बहु व०] शासक वर्ग [को०]।
⋙ सलाद
संज्ञा पुं० [अ० सैलाड़] १. गाजर, मूली, राई, प्याज आदि पत्तों का अंगरेजी ढग से सिरक आदि में डाला अचार। २. एक विशिष्ट जात क कद क पत्त जा प्रायः कच्चे खाए जाते है ओर बहुत पाचक हात है। इसके कई भेद होती है।
⋙ सलाबत
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. कठोरता। सख्तो। २. प्रताप। शौर्य। वीरता [को०]।
⋙ सलाम
संज्ञा पुं० [अ०] प्रणाम करने की क्रिया। प्रणाम। बंदगी। आदाब। मुहा०— दूर से सलाम करना = किसी बुरी वस्तु के पास न जाना। किसी बुरे आदमी से दूर रहना। जैसे, — उनको तो हम दूर ही से सलाम करते हैं। सलाम है = हम दूर रहना चाहते हैं। बाज आए। जैसे, -अगर उनका यही रंग ढंग है, तो फिर हमारा तो यहीं से उनको सलाम है। सलाम लेना = सलाम का जवाब देना। सलाम कबूल करना। सलाम देना = (१) सलाम करना। (२) सलाम कहलाना। सलाम करके चलना = किसी से नाराज होकर चलना। अप्रसन्न होकर बिदा होना। सलाम फेरना = नमाज खतम करना। (२) किसी से अप्रसन्न होकर उसका प्रणाम न स्वीकार करना। यौ०— सलाम अलैक या सलाम अलैकम = अभिवादन। सलाम। तुम सलामत रहो, तुमपर सलामती हो इस प्रकार परस्पर अभिवादन। सलामो पयाम = (१) किसी का प्रणाम और संदेश आना या भेजना। (२) विवाह की बातचीत।
⋙ सलामकराई
संज्ञा स्त्री० [अ० सलाम + हि० कराई] १. सलाम करने की क्रिया या भाव। २. वह धन जो कन्या पक्षवाले मिलनी के समय पर वर पक्ष के लोगों को देते हैं। (मुसल०)।
⋙ सलामत (१)
वि० [अ०] १. सब प्रकार को आपत्तियों से बचा हुआ रक्षित। जैसे, — घर तक सलामत पहुँचे, तब समझना। यौ०— सही सलामत। २. जीवित और स्वस्थ। तंदुरुस्त और जिंदा। जैसे, -आप सलामत रहैं; हमें बहुतेरा मिला करेगा। ३. कायम। बरकरार। जैसे,— सिर सलामत रहे, टोपियाँ बहुत मिलेंगी। ४. अखंड। अक्षत।
⋙ सलामत (२)
क्रि० वि० कुशलपूर्वक। खैरियत से।
⋙ सलामत (३)
संज्ञा स्त्री० शामिल या पूरा होने का भाव। अखंडित और संपूर्ण होने का भाव।
⋙ सलामती
संज्ञा स्त्री० [अ० सलामत + ई (प्रत्य०)] १. तंदुरुस्ती। स्वस्थता। २. कुशल। क्षेम। जैसे, — हम तो हमेशा आपकी सलामती चाहते हैं। मुहा०— सलामती से = ईश्वर की कृपा से। पकमात्मा के अनुग्रह से। विशेष— इस मुहावरे का प्रयोग प्रायः स्तियाँ और विशेषतः मुसलमान स्त्रियाँ, कोई बात कहते सयय, शुभ भावना से करती हैं। जेसे, — सलामती से उनके दो दो लड़के हैं। ३. एक प्रकार का मोटा कपड़ा। ४. जीवन। जिंदगी।
⋙ सलामी (१)
संज्ञा स्त्री० [अ० सलाम + ई (प्रत्य०)] १. प्रणाम करने की क्रिया। सलाम करना। जैसे, — दूल्हे को सलामी में (१०) मिले थे। २. वर वधु को प्राप्त होनेवाली वह रकम जो सलामी की रस्म में दी जाती है। ३. शस्त्रों से प्रणाम करने की क्रियी। सैनिकों की प्रणाम करने की प्रणाली। सिपाहियानासलाम। जेसे, — सिपाहियों की सलामी, तोपखाने की सलामी। ४. नजराना। अकोर। भेट। ५. ढाल। ६. तोपों या बंदूकों की बाढ़ जो किसी बड़े आधिकारी या माननीय व्यक्ति के आने पर दागी जाती है। मुहा०— सलामी उतारना = किसी के स्वागतार्थ बंदूकों या तोपों की बाढ़ ढागना। क्रि० प्र०— दगना।— दागना। — होना।
⋙ सलामी (२)
वि० १. सलाम करनेवाला। प्रार्थना या अर्ज करनेवाला। २. ढालवाँ। ढालदार। क्रमशः झुकावदार।
⋙ सलार
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया। उ०— चकई चकवा और पिदारे। नकटा लेदी सोन सलारे। — जायसी (शब्द०)।
⋙ सलासत
संज्ञा स्त्री०[अ०] १.मृदुता। नम्रता।२. सरलता। सुग- मता। ३. शिष्टता। सभ्याता। ४. वह भाषा जो सरल और अक्लिष्ट शब्दों से युक्त हो। भाषा का अक्लिष्ट, गतिशील और सरल होना [को०]।
⋙ सलाह
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. संमति। परामर्श। राय। सशवरा। क्रि० प्र० — पूछना। देना। — बताना।— लेना। मुहा०— सलाह ठहरना = राय पक्क होना संमति निश्चित होना। जैसे, — सब लोगों की सलाह ठहरी है कि कल बाग चलें। २. अच्छाई। भलाई। ३. मेल। सुलह।
⋙ सलाहकार
संज्ञा पुं० [अ० सलाह+फ़ा० कार (प्रत्य०)] वह जो परामर्श देता हो। राय देनेवाला।
⋙ सलाही
संज्ञा पुं० [अ० सलाह] सलाहकार। परामर्शदाता। जेसे,— कानुनी सलाही। (भारतीय शासनपद्धति।) [क्व०]।
⋙ सलाहीयत
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. अच्छाई। खूबी। भलाई। २. योग्यता। पात्रता। ३. इंद्रियनिग्रह। पारसाई। सयम। ४. विद्धत्ता। ५. गभीरता [को०]।
⋙ सलिंग
वि० [सं० सलिङ्ग] समान लिंग से युक्त। समान चिह्नवाला। सदृश। अनुरुप [को०]।
⋙ सलिगी
वि० [सं० सलिङिगन्] जो केवल चिह्न धारण करता हो। पाखडी। ढोंगी [को०]।
⋙ सलि पुं
संज्ञा स्त्री० [सं० शर ?] चिता।
⋙ सलिता पुं
संज्ञा स्त्री० [सं० सरिता] नदी। सरिता। उ।— द्रप्पन सम आकाश श्रवत जल अमृत हिमकर। उज्जल जल सलिता सु सिद्धि सुंदर सरोज सर। पृ, रार०, ६१।४२।
⋙ सलिल
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल। पानी। २. उत्तराषाढ नक्षत्र [को०]। [को०]। ३. अश्रु। आँसू [को०]। ४. सलिल बात। एक प्रकार की हवा (को०)। ५. वर्षा का जल (को०)। ६. बहुत बड़ी संख्या (को०)।७. एक वृत्त (को०)।
⋙ सलिलकर्म
संज्ञा पुं० [सं० सलिलकर्मन्] पितारों के लिये दिया जानेवाला जल। तर्पण [को०]।
⋙ सलिलकुंतल
संज्ञा पुं० [सं० सलिलकुंतल] शैवाल। सिवार।
⋙ सलिलकुक्कुट
संज्ञा पुं० [सं०] एक जल पक्षी। जलकुक्कुट [को०]।
⋙ सलिलक्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रेत का तर्पण। जलांजलि। उदक- क्रिया। विशेष दे० 'उदकक्रिया'। २.मृतक क्रिया के समय शव को नहलाना (को०)।
⋙ सलिलनर्गरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पानी की गगरी [को०]।
⋙ सलिलगुरु
वि० [सं०] १. जलपूर्ण। पानी से भरा हुआ। २. अश्रु से परिपूर्ण [को०]।
⋙ सलिलचर
वि० [सं०] जल में विचरण करनेवाला जलचर। यौ०—सलिलचरकेतन=कामदेव का एक नाम।
⋙ सलिलज
संज्ञा पुं० [सं०] १. कमल। पद्म। २. वह जो जल से उत्पन्न हो। जलजात। जलजीव या वस्तुएँ।
⋙ सलिलजन्मा
संज्ञा पुं० [सं०सलिलजन्मन्] १. कमल। पद्मम। २.वह जो जल से उत्पन्न हो। जलजात।
⋙ सलिलद (१)
वि० [सं०] सलिल देनेवाला। जल देनेवाला। जो जल दे।
⋙ सलिलद (२)
संज्ञा पुं० मेघ। बादल।
⋙ सलिलधर
संज्ञा पुं० [सं०] १. मोथा। मुस्तक। २. बादल। मेघ (को०)। ३. अमृतपायी। देवता (को०)।
⋙ सलिलदायी
वि० [सं० सलिलदायिन्] जल बरसानेवाला। वर्षा करनेवाला [को०]।
⋙ सलिलनिधि
संज्ञा पुं० [सं०] १. जलनिधि। समुद्र। २. सरसी छंद का एक नाम।
⋙ सलिलनिपात
संज्ञा पुं० [सं०] जल गिरना। वर्षा होना (को०)।
⋙ सलिलनिषेक
संज्ञा पुं० [सं०] जलसिंचन। जल द्वारा सींचना [को०]।
⋙ सलिलपति
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल के स्वामी—वरुण। २. समुद्र। सागर।
⋙ सलिलप्रिय
संज्ञा पुं० [सं०] सूअर। शूकर।
⋙ सलिलभर
संज्ञा पुं० [सं०] ताल। झील। पोखरा [को०]।
⋙ सलिलमुच्
संज्ञा पुं० [सं०] मेघ। बादल।
⋙ सलिलयोनि
संज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्मा। २. वह वस्तु जो जल में उत्पन्न होती हो।
⋙ सलिलरय
संज्ञा पुं० [सं०] जल की धारा। सलिल का प्रवाह [को०]।
⋙ सलिलराज
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल का स्वामी, वरुण। २. समुद्र। सागर।
⋙ सलिलराशि
संज्ञा पुं० [सं०] १. जलाशय। जलाधार। २. समुद्र। सागर [को०]।
⋙ सलिलवात, सलिलवायु
संज्ञा पुं० [सं०] सलिल को संस्पर्श कर के आती हुई वायु।
⋙ सलिलस्तंभी
वि० [सं०सलिलस्तम्भिन्] जल की गति का अवरोध करनेवाला। जलस्तंभन करनेवाला [को०]।
⋙ सलिलस्थलचर
वि० [सं०] जो जल और स्थल दोनों में विचरण करता हो। जैसे, — हंस, साँप आदि।
⋙ सलिलांजलि
संज्ञा स्त्री० [सं०सलिलाञ्जलि] मृतक के उद्देश्य से दी जानेवाली जलांजलि।
⋙ सलिलाकर
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र। सागर।
⋙ सलिलाधिप
संज्ञा पुं० [सं०] जल के अधिष्ठाता देवता, वरुण।
⋙ सलिलार्णव
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र। सागर।
⋙ सलिलार्थी
वि० [सं०सलिलार्थिन्] जल का इच्छुक। प्यासा [को०]।
⋙ सलिलालय
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र।
⋙ सलिलाशन
वि० [सं०] केवल जल पीकर रहनेवाला।
⋙ सलिलाशय
संज्ञा पुं० [सं०] जलाशय। तालाब।
⋙ सलिलाहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो केवल जल पीकर रहता हो। २. केवल जल पीकर रहने का क्रिया।
⋙ सलिलेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० सलिलेन्द्र] जल के अधिष्ठाता देवता, वरुण।
⋙ सलिलेधन
संज्ञा पुं० [सं०सलिलेन्धन] बड़वानल।
⋙ सलिलेचर
संज्ञा पुं० [सं०] जल में रहनेवाला जीव। जलचर।
⋙ सलिलेश
संज्ञा पुं० [सं०] जल के अधिष्ठाता देवता — वरुण।
⋙ सलिलेशय
वि० [सं०] जल में सोनेवाला। जलशायी।
⋙ सलिलेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] सलिलेंद्र। वरुण [को०]।
⋙ सलिलोद्रुव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कमल। २. जल में उत्पन्न होनेवाली कोई चीज।
⋙ सलिलोद्रुव (२)
वि० जल में उत्पन्न [को०]।
⋙ सलिलोपजोवी (१)
वि० [सं० सलिलोपजीवन्] केवल जल पर निर्भर रहनेवाला। जलोपजीवी।
⋙ सलिलोपजीवी (२)
संज्ञा पुं० मल्लाह। मछुवा [को०]।
⋙ सलिलोपप्लव
संज्ञा पुं० [सं०] जलप्रलय जलप्लावन [को०]।
⋙ सलिलौका (१)
संज्ञा पुं० [सं० सलिलौकस्] जोंक। जलौका।
⋙ सलिलौका (२)
वि० जल में रहनेवाला [को०]।
⋙ सलिलौदन
संज्ञा पुं० [सं०] पकाया हुआ अन्न। ओदन।
⋙ सलीका
संज्ञा पुं० [अ० सलीक़ह्] १.काम करने का ठीक ठीक य़ा अच्छा ढग। शऊर। तमीज। २. हुनर। लियाकत। ३. चाल- चलन। बरताव। ४. तहजीव। सभ्याता। क्रि० प्र०— आना।— सिखाना।— सीखना।— होना।
⋙ सलीकामंद
वि० [अ० सलीकह् + फ़ा० मंद (प्रत्य०)] १. जिसे सलीका हो। शऊरदार। तमीजदार। २. हुनरमंद। ३. शिष्ट। सभ्य।
⋙ सलीकेदार
वि० [अ०सलीक़ह्दार] दे० 'सलीकामंद'।
⋙ सलीखा
संज्ञा पुं० [सं०शल्क (= छिलका)] तज। त्वकपत्न।
⋙ सलीता
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का बहुत मोटा कपड़ा जो प्रायः मारकीन या गजी की तरह का होता है।
⋙ सलिपर
संज्ञा पुं० [अं०स्लिपर] १. एक प्रकार का हलका जूता जिसके पहनने पर पंजा ढँका रहता है और एँड़ी खुली रहती है। आराम पाई। सलपट जुती। २. वह लकड़ी का तख्ता जो रेल की पटरियों के नीचे विछाया रहता हे। दे० 'स्लीपर'। ३. हाल जो पहिए पर चढ़ाई जाती है।
⋙ सलीब
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. प्राणदंड देने की टिकठी जिसपर ईसा मसीह को चढ़ाया गया था। २. ईसाइयों का धार्मिक चिह्न जीसे वे पहने रहते है। इसका आकार † ऐसा है। फाँसी। सूली [को०]।
⋙ सलीबी
संज्ञा पुं० [अ०] सलीब का आकार जिसका धार्मिक चिह्न हो, ईसाई [को०]।
⋙ सलीम (१)
वि० [अ०] १. गंभीर शांत। विनीत। २. ठीक। सही। ३. स्वस्थ [को०]।
⋙ सलीम (२)
संज्ञा पुं० अकबर के पुत्र जहाँगीर का नाम। यौ०— सलीमचिश्ती = अकबर के समय में फतहपुर सीकरी में रहनेवाले एक प्रसिद्ध मुसलमान फकीर। सलीमशाही = दिल्ली में बननेवाला एक तरह का सुंदर मखमली जूता। सलेमशाही पादत्राण।
⋙ सलीमी
संज्ञा स्त्री० [अ० सलीम] एक प्रकार का कपड़ा।
⋙ सलील (१)
वि० [सं०] क्रीड़ाशील। लीलायुक्त [को०]।
⋙ सलील (२)
अव्य १. खेल खेल में। २. स्नेहपूर्वक। सानुराग [को०]।
⋙ सलीलगजगामी
संज्ञा पुं० [सं०] बुद्ध का एक नाम।
⋙ सलीस
वि० [अ०] १. सहज। सुगम। आसान। २. जीसका तल बराबर हो। समतल। हमवार। ३. महावरेदार और चलती हुई (भाषा)। यौ०—सलीसजबान=सरल, मुहावरेदार और चलती हुई भाषा।
⋙ सलूक
संज्ञा पुं० [अ०] १. तौर। तरीका। ढंग। (क्व०)। २. बरताब। व्यवहार। आचरण। जैसे, — अपने साथियों के साथ उनका सलूक अच्छा नहीं होता। ३. मीलाप। मेल। सद्भाव। जैसे, — उनके घर में सब लोग सलूक से रहते हैं। ४. ईश्वर की प्राप्ति का प्रयत्न। भगवत्प्राप्ति की चेष्टा (को०)। ५. भलाई। नेकी। उपकार । जैसे — जहाँतक हो, गरीबों के साथ कुछ न कुछ सलूक करते रहना चाहिए।
⋙ सलूका
संज्ञा पुं० [फ़ा० शलूका] स्त्रियों के पहनने की एक प्रकार की कुर्ती। दे० 'शलूका'।
⋙ सलून (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शाङ्गधर संहिता के अनुसार एक प्रकार के बहुत छोट कीड़े। २. जूँ। लीख।
⋙ सलून (२)
वि० [सं० सलवण, प्रा० सलूण] लावणययुक्त। सलोना।
⋙ सलूना † (१)
संज्ञा पुं० [हि० स+लून (=नमक)] पकी हुई तरकारी या भाजी। (पश्चिम)।
⋙ सलूना (२)
वि० दे० 'सलोना'।
⋙ सलूनी
संज्ञा स्त्री० [हि० स+लोन (=नमक)] चूक या चूका शाक। चुक्रिका।
⋙ सलूनो पुं (१)
वि० [हि० स+लोन] दे० 'सलोना'।
⋙ सलूनो † (२)
संज्ञा पुं० [सं० श्रावण] एक त्यौहार। दे० 'सलोनी'।
⋙ सलेक
संज्ञा पुं० [सं०] तैत्तरीय संहिता के अनुसार एक आदित्य का नाम।
⋙ सलेप
वि० [सं०] लेपयुक्त। स्नेह पदार्थों से युक्त [को०]।
⋙ सलेश
वि० [सं०] संपूर्ण। समग्र [को०]।
⋙ सलैना †
संज्ञा पुं० [हि० सालना] काटकर और छीलकर दुरुस्त करना। दे० 'सालना'।
⋙ सलैया †
संज्ञा स्त्री० [सं० शल्लकी] शल्लकी। सलई।
⋙ सलोक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. नगर। शहर। २. वह जो नगर में रहता हो। नागरिक।
⋙ सलोक पुं (२)
संज्ञा पुं० [सं० श्लोक, प्रा० सलोक] १. प्रशंसा। कीर्ति।
⋙ सलोक (३)
वि० समान। तुल्य। सदृश।
⋙ सलोकता
संज्ञा स्त्री० [सं०] चार प्रकार की मुक्तियों में से एक मुक्ति जिसमें साधक अपने इष्टदेव के लोक में सहनिवास प्राप्त करता है। सलोक्य।
⋙ सलोट †
संज्ञा स्त्री० [हि० सिलवट] दे० 'सिलवट'।
⋙ सलोतर
संज्ञा पुं० [सं० शालिहोत्र] पशुओं, विशेषतः घोड़ों की चिकित्सा का विज्ञान।
⋙ सलोतरी
संज्ञा पुं० [सं० शालिहोत्री] पशुओं, विशेषतः घोड़ों की चिकित्सा करनेवाला। शालिहोत्री।
⋙ सलोन, सलोना
वि० [सं० सलवण, प्रा० सलूण, सलोण, हि० स + लोन (= नमक)] [वि० स्त्री० सलोनी] १. जिसमें नमक पड़ा हो। नमक मिला हुआ। नमकीन। २. जिसमें नमक या सौंदर्य हो। रसीला। सुंदर। जैसे, — तोरे नैनों श्याम सलोने, जादूभरी कि कटारी। (गीत)।
⋙ सलोनापन
संज्ञा पुं० [हि० सलोना + पन (प्रत्य०)] सलोना होने का भाव।
⋙ सलोनो
संज्ञा पुं० [सं० श्रावणी] हिंदुओं का एक त्योहर जो श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन पड़ता है। इस दिन लोग राखी बाँधते और बँधवाते हैं। रक्षाबंधन। राखी पूनो।
⋙ सलोल
वि० [सं०] अत्यंत चपल। चंचलतायुक्त।
⋙ सलोहित
वि० [सं०] १. रक्त वर्ण से युक्त। लाल रंग में रँगा हुआ। २. समान रक्त का। एक ही खून का [को०]।
⋙ सलौना पुं
वि० [सं० सलवण] दे० 'सलोन', 'सलोना'।
⋙ सल्तनत
संज्ञा स्त्री० [अ०] दे० 'सलतनत'।
⋙ सल्ब
संज्ञा पुं० [अ०] १. निवारण। दूर करना। २. विनाश। लोप। खात्मा। दे० 'सलब'। ३. छीनना। हरण करना। ४. आत्मसात् करना। डकार जाना [को०]।
⋙ सल्ल
संज्ञा पुं० [सं० सरल] सरल वृक्ष। सररद्रुम।
⋙ सल्लका, सल्ल्कि, सल्लिकी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शल्लकी वृक्ष। सलई। २. कुदरु। शल्लकी निर्यास।
⋙ सल्लक्षणतीर्थ †
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ का नाम।
⋙ सल्लक्ष्य
वि० [सं०] १. सदुद्देश्य। २. ठीक लक्ष्य या निशाना [को०]।
⋙ सल्लना पुं
क्रि० सं० [सं० शल्यन, हि० सालना] १. दुःख देना। कष्ट देना। चुभाना। २. दे० 'सालना'।
⋙ सल्लम
संज्ञा पुं० स्त्री० [देश०] एक प्रकार का मोटा कपड़ा। गजी। गाढा।
⋙ सल्लाह
संज्ञा स्त्री० [अ०] दे० 'सलाह'।
⋙ सल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं० शल्लकी] शल्लकी। सलई।
⋙ सल्लू (१)
वि० [देश०] मूर्ख। बेवकूफ।
⋙ सल्लू (२)
संज्ञा पुं० [हि० सलना] चमड़े की डोरी।
⋙ सल्लोक
संज्ञा पुं० [सं० सत्+लोक] शिष्ट या सज्जन व्यक्ति। भद्र पुरुष। सत्पुरुष [को०]।
⋙ सल्व
संज्ञा पुं० [सं० शल्व] दे० 'शल्व'।
⋙ सर्वशा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वृक्ष।
⋙ सव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल। पानी। २. पुष्परस। पुष्पद्रव। मकरंद। ३. यज्ञ। ४. सूर्य। ५. संतान। औलाद। ६. चंद्रमा। ७. सोमलता का रस निकालना (को०)। ८. बलि। तर्पण (को०)। ९. वह जो उत्पादन करता हो (को०)। १०. अर्क या मदार का पौधा (को०)। ११. अनुज्ञा। आज्ञा। आदेश (को०)। १२. प्रोत्साहन। उभारना। प्रेरणा करना (को०)।
⋙ सव (२)
वि० अज्ञ। मूर्ख। अनाड़ी।
⋙ सव (३)
संज्ञा पुं० [सं० शव] दे० 'शव'। उ०— फिरत सृगाल सज्यौ सव काटत चलत सो सिर लै भागि। — सूर०, ९।१५८।
⋙ सवगात †
संज्ञा स्त्री० [हि० सौगात] दे० 'सौगात'।
⋙ सवजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] बर्बरी। अजगंधा।
⋙ सवत †
संज्ञा स्त्री० [सं० सपत्नी] दे० 'सौत'।
⋙ सवति पुं
संज्ञा स्त्री० [हि० सौत] दे० 'सौत'। उ०— (क) जरि तुम्हारि चह सवति उखारी। —मानस, २। १७। (ख) सेबहि सकल सबति मोहि नीके। — मानस, २।१८।
⋙ सवत्स
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सवत्सा] बच्चे के सहित। जिसके साथ बच्चा हो। जैसे, — दान में सवत्स गौ दी जाती है।
⋙ सवधूक
वि० [सं०] वधू के साथ। पत्नीसहित [को०]।
⋙ सवन
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रसव। बच्चा जनना। २. श्योनाक वृक्ष। सोनापाठा। ३. यज्ञस्नान। ४. सोमपान। ५. यज्ञ। ६ चंद्रमा। ७. पुराणानुसार भृगु के एक पुत्र का नाम। ८. वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम। ९. रोहित मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ऋषि का नाम। १०. स्वायंभुव मनु के एक पुत्र का नाम। ११. अग्नि का एक नाम। १२. सोमलता को निचोड़कर रस निकालना (को०)। १३. उपहार। बलि (को०)। यौ०— सवनकाल = आहुति देने, तर्पण आदि का समय। सवनक्रम = यज्ञादि के विभिन्न कृत्यों का क्रम। सवनसंस्था = यज्ञ कर्म का अंत या समाप्ति।
⋙ सवनकर्म
संज्ञा पुं० [सं० सवनकर्मन्] यज्ञकार्य।
⋙ सवनमुख
संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ का आरंभ।
⋙ सवनिक
वि० [सं०] सवन संबधी। सवन का।
⋙ सवनीय
वि० [सं०] सोम तपर्ण से संबंधी। सवन संबंधित [को०]। यौ०— सवनीय पशु = वह पशु जिसकी यज्ञ में बलि चढ़ाई जाय। सवनीय पात्र=सोमरस पीने का पात्र।
⋙ सवपुष
वि० [सं० सबपुष्] शरीर के साथ। शरीर सहित। मूर्त [को०]।
⋙ सवयस
वि० [सं० सवयस्] दे० 'सवयस्क'।
⋙ सवयस्क
वि० [सं०] समान अवस्थावाले। बराबर की उम्रवाले।
⋙ सवया (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] सखी। सहचरी। सहेली।
⋙ सवया (२)
वि० [सं० सवयस्] हम उम्र। समान अवस्था का।
⋙ सवया (३)
संज्ञा पुं० सखा। सहचर। मित्र। वयस्य [को०]।
⋙ सवर
संज्ञा पुं० [सं०] १. जल। २. शिव का एक नाम।
⋙ सवररोध्र
संज्ञा पुं० [सं०] पठानी लोध। सफेद लोध।
⋙ सवर्ण (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सवर्णा] १. समान। सदृश। एक ही प्रकार का। समान वर्ण का। समान जाति का। ३. एक ही रंग का (को०)। ४. व्याकरण में अक्षरों के समान वर्ग से संबद्ध। एक ही स्थान से उच्चारित होनेवाला (को०)। ५. गणित में समान 'हर' वाली संख्या (को०)।
⋙ सवर्ण (२)
संज्ञा पुं० ब्राह्मण पिता और क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान। विशेष दे० 'माहिष्य' [को०]।
⋙ सवर्णन
संज्ञा पुं० [सं०] गणित में भिन्नो को समान हर वाली भिन्न के रुप में लाना [को०]।
⋙ सवर्णा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सूर्य की पत्नी छाया का एक नाम।
⋙ सवर्य
वि० [सं०] वर्य, श्रेष्ठ एवं अच्छे गुणों से युक्त [को०]।
⋙ सवहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] निसोथ। न्निवृत।
⋙ सवाँग †
संज्ञा पुं० [हि० स्वाँग] दे० 'स्वाँग'। उ०— हिलि मिलि करत सवाँग सभा रसकेलि हो। नाउनि मन हरखाइ सुगंधन मोलि हो। — तुलसी ग्रं०, पृ०६।
⋙ सवाँगना पुं
क्रि० अ० [हि० स्वाँगना] दे० 'स्वाँगना'।
⋙ सवा
संज्ञा स्त्री० [सं० स + पाद] चौथाई सहित। संपूर्ण और एक का चतुर्थाश। चतुर्थाश सहित। जैसे, — सवा चार, अर्थात् चार और एक का चतुर्थाश = ४ १/४।
⋙ सवाई (१)
संज्ञा स्त्री० [हि० सवा + ई (प्रत्य०)] १. ऋणा का एक प्रकार जिसमें मूल धन का चतुर्थाश ब्याज में देना पड़ता है। २. जयपुर के महाराजाओं की एक उपाधि। ३. मूत्रयंत्र संबंधी एक प्रकार का रोग।
⋙ सवाई (२)
वि० १. एक और चौथाई। सवा। २. किसी से वीस या और अधिक बढ चढ़कर उ०— सीसनि टिपारे, उपवीत, पीत पट कटि, दोना बाम करनि सलोने भे सवाई हैं। — तुलसी ग्र०, पृ०३०५।
⋙ सवाक्
वि० [सं० सवाच्] वाणीयुक्त। वाक्युक्त। बोलता हुआ। अवाक् का उलटा।
⋙ सवाक् चित्र
संज्ञा पुं० [सवाक्+चित्र] वह चित्र जिसमें पात्रों के बोलने, गाने आदि की ध्वनी भी सुनाई दे। बोलता हुआ सिनेमा (अ० टाँकी)।
⋙ सवागी
संज्ञा पुं० [हि० सुहागा] सुहागा। टंकण क्षार।
⋙ सवाती पुं
संज्ञा स्त्री० [सं० स्वाती] स्वाती नक्षत्र [को०]।
⋙ सवाद पुं
संज्ञा पुं० [हि० स्वाद] दे० स्वाद।
⋙ सवादिक
वि० [हि० सवाद + इक (प्रत्य०)] खाने में जिसका स्वाद अच्छा हो। स्वाद देनेवाला। स्वादिष्ट।
⋙ सवादिल पुं
वि० [हि० सवाद+इल (प्रत्य०)] दे० 'सवादिक'।
⋙ सवाब
संज्ञा पुं० [अ०] १. शुभ कृत्य का फल जो स्वर्ग में मिलेगा। पुराय। मुहा०— सबाब कमाना = ऐसा काम करना जिसमें पुराय हो। पुण्य कार्य करना। २. पलटा। प्रतिफल। बदला। ३. भलाई। नेकी।
⋙ सवाया
वि० [हि० सवा+या (प्रत्य०)] १. दे० 'सवाई'। २. अधिक बढ़ चढ़ कर। उ०— कहि रामानँद सबद सवाया और सबै घट रीता। — रमानंद०, पृ०१३।
⋙ सवार (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. वह जो घोड़े पर चढ़ा हो। अश्वारोही। २. अश्वारोही सैनिक। रिसाले का सिपाही। ३. वह जो किसी चीज, हाथी, घोड़ा, ऊँट यान आदि पर चढ़ा हो। ४. घुड़सवार सिपही।
⋙ सवार (२)
वि० १. किसी चीज पर चढ़ा या बैठा हूआ। जैसे,— वे गाड़ी पर सवार होकर घूमने निकलते हैं। २. नशे में मस्त या मतवाला।
⋙ सवार पुं (३)
संज्ञा पुं० [हि०] १. प्रभात। सुबह। भोर। २. शीघ्र।
⋙ सवारना
क्रि० स० [हि० सँबारना] दे० सँवारना।
⋙ सवारी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. किसी चीज पर विशेषतः चलने के लिये चढ़ने की क्रिया। २. वह चीज जिसपर यात्रा आदि के लिये चढ़ते हों। सवार होने की वस्तु। चढ़ने की चीज। जैसे, — घोड़ा, हाथी, मोटर, रेल आदि। मुहा०— सवारी लेना = सवारी के काम में लाना। सवार होना ३. वह व्यक्ति जो सवार हो। जैसे — एक्केवाले चार आने की सवारी माँगते हैं। ४. जलुस। जेसे, — राजा साहब की सवारी बहुत धूम से निकली थी। ५. कुश्ती में अपने विपक्षी को जमीन पर गिराकर उसकी पीठ पर बैठना और उसी दशा में उसे चित करने का प्रयत्न। क्रि० प्र० — कसना। ६. संभोग या प्रसंग के लिये लिये स्त्री पर चढ़ने की क्रिया। (बाजारु)। क्रि० प्र०— कसना।-गाँठना।
⋙ सवाल
संज्ञा पुं० [अ०] १. पूछने की क्रिया। २. वह जो कुछ पूछा जाय। प्रश्न। ३. अर्जी। दरखास्त। माँग। याचना।मुहा०— (किसी पर) सवाल देना = (किसी पर) नालिश करना। फरियाद करना। ४. विनती। निवेदन। प्रार्थना। ५. भिक्षा की याचना। ६. गणित का प्रश्न जो उत्तर निकालने के लिये दिया जाता है। क्रि० प्र०— करना।— निकालना।— देना।
⋙ सवालजबाब
संज्ञा पुं० [अ०] १. बहस। वादाविवाद। जैसे,—सब बातो में सवालजवाब मत किया करो, जो कहा जाय, वह किया करो। २. तकरार। हुज्जत। झगडा़।
⋙ सवालात
संज्ञा पुं० [अ०] सवाल का बहुवचन। अनेक प्रश्न।
⋙ सवालिया
वि० [अ०] जिसमें कोई बात पुछी गई हो। जैसे— सवालिया जुमला।
⋙ सवासा
वि० [स० सवासस्] वस्त्रयुक्त [को०]।
⋙ सविकल्प (१)
वि० [स०] १. विकल्प सहित। संदेहयुक्त। संदिग्ध। २. जो किसी विषय के दोनों पक्षों या मतों आदि को, कुछ निर्णाय न कर सकने के कारण, मानता हो। ३. ऐच्छिक। इच्छानुकूल (को०)। ४. जो विकल्प या अंतर (ज्ञाता और ज्ञेय में) मानता हो।
⋙ सविकल्प (२)
संज्ञा पुं० १. दो प्रकार की समाधियों में से एक प्रकार की समाधि। वह समाधि जो किसी आलंबन की सहायता से होती है। २. वेदांत के अनुसार ज्ञात और ज्ञेय के भेद का ज्ञान।
⋙ सविकल्पक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सविकल्प'।
⋙ सविकार
वि० [सं०] १. जिसमें विकार हो। विकार वा विकृति- युक्त। २. जो उन्मिषित या विकसित हो रहा हो। ३. (फल, खाद्य आदि) जो सड़ा गला हो। गलित। खराब [को०]।
⋙ सविकाश, सविकास
वि० [सं०] १. विकासयुक्त। विस्तारयुक्त। २.विकसित। खिला हुआ। कांतिमान [को०]।
⋙ सविग्रह
वि० [सं०] १. शरीरी। विग्रहयुक्त। मूर्तिमान्। देहधारी। २. अर्थवाला। सार्थक। ३. संघर्षरत। झगडालू [को०]।
⋙ सविचार
संज्ञा पुं० [सं०] चार प्रकार की सविकल्प समाधियों में से एक प्रिकार की समाधि।
⋙ सविज्ञान
वि० [सं०] १. विज्ञानयुक्त। विशिष्ट ज्ञान सहित। २. विवेकयुक्त। विचारवान्।
⋙ सविडालंभ
संज्ञा पुं० [सं० सविडालम्भ] नाटयशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का परिहास या मजाक।
⋙ सवितर्क (१)
संज्ञा पुं० [सं०] चार प्रकार की सविकल्प समाधियों में से एक प्रकार की समाधि।
⋙ सवितर्क (२)
वि० वितर्कयुक्त। विचारशील [को०]।
⋙ सविता (१)
संज्ञा पुं० [सं० सवितृ] १. सूर्य। दिवाकर। २. बारह की संख्या। ३. आक। अर्क। मदार। ४. शिव का एक नाम (को०)। ५. इंद्र (को०)। ६. जगत्स्रष्ट। संसार का रचयिता (को०)। ७. अट्ठाइस व्यासों में से एक (को०)।
⋙ सविता (२)
वि० [वि० स्त्री० सवित्री] जनक। उत्पादक। स्त्रष्या [को]।
⋙ सवितातनय
संज्ञा पुं० [सं० सवितृतनय] सूर्य के पुत्र हिरण्यपाणि, यमराज, शनि आदि।
⋙ सवितादैवत
संज्ञा पुं० [सं० सवितृदैवत] हस्त नक्षत्र जिसके अधिष्ठाता देवता सूर्य माने जाते हैं।
⋙ सवितापुत्र
संज्ञा पुं० [सं० सवितृपुत्र] सूर्य के पुत्र, हिरण्यपाणि, यम, शनि आदि।
⋙ सविताफल
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार मेरु के उत्तर के एक पर्वत का नाम।
⋙ सवितासुत
संज्ञा पुं० [सं० सवितृसुत] सूर्य के पुत्र, शनैश्चर।
⋙ सवितृल
वि० [सं०] दे० 'सवित्रिय' [को०]।
⋙ सवित्र
संज्ञा पुं० [सं०] प्रजनन। प्रसव करना। लड़का जनना।
⋙ सवित्रिय
वि० [सं०] सूर्य संबंधी। सविता या सूर्य का।
⋙ सवित्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रसव करनेवाली धाई। धात्री। दाई। २. प्रसव करनेवाली, माता। माँ। ३. गौ।
⋙ सविद्य
वि० [सं०] १. विद्वान्। पंडित। २. तुल्य या समान विषय का अध्ययन करनेवाला (को०)।
⋙ सविध (१)
वि० [सं०] १. निकट। पास। समीप। २. समान। सजातीय। एक ही वर्ग का (को०)।
⋙ सविध (२)
संज्ञा पुं० निकटता। सामीप्य [को०]।
⋙ सविध (३)
अ० विधिपूर्वक। विधिवत्।
⋙ सविधि
वि० [सं०] दे० 'सविध'।
⋙ सविनय
वि० [सं०] १. विनययुक्त। विनम्र। २. विनम्रता या शिष्टतापूर्वक [को०]।
⋙ सविनय अवज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०]दे० 'सविनय कानून भंग'।
⋙ सविनय कानून भंग
संज्ञा पुं० [सं० सविनय + फ़ा० कानून + हिं० भंग] नम्रता या भद्रतापूर्वक राज्य की किसी ऐसी व्यवस्था या कानून अथवा आज्ञा को न मानना जो अपमानजनक और अन्याय- मूलक प्रतीत हो। और ऐसी अवस्था में राज्य की ओर से होनेवाले पीड़न तथा कारादंड़ आदि को धीरतापूर्वक सहन करना। भद्र अवज्ञा। सविनय अवज्ञा। (सिविल डिसओबीडिएंस)।
⋙ सविभक्तिक
वि० [सं०] विभक्तियुक्त [को०]।
⋙ सविभाल
संज्ञा पुं० [सं०] नखी या हट्टविलासिनी नामक गंध द्रव्य।
⋙ सविभाल
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य का एक नाम।
⋙ सविभ्रम
वि० [सं०] दे० 'सविलास' [को०]।
⋙ सविमर्श
वि० [सं०] दे० 'सवितर्क' [को०]।
⋙ सविलास
वि० [सं०] १. भोग विलास करनेवाला। भोगी। विलासी। २. क्रीड़ा या प्रणययुक्त (को०)।
⋙ सविशंक
वि० [सं०] शंकित। शंकायुक्त [को०]।
⋙ सविशेष
वि० [सं०] १. विशिष्ट गुणों से युक्त। २. विशिष्ट असाधारण। खास। ३. अंतर करनेवाला। विशेषतासूचक (को०)। ४. विलक्षण [को०]।
⋙ सविशेषक (१)
वि० [सं०] १. जो विशेष गुणों से युक्त हो। २. सुविचा- रित [को०]।
⋙ सविशेषक (२)
संज्ञा पुं० विशेष गुण [को०]।
⋙ सविश्रंभ
वि० [सं०] दिली। अंतरंग। आभिन्नहृदय [को०]।
⋙ सविष
संज्ञा पुं० [सं०] एक नरक [को०]।
⋙ सविस्तर
अ० [सं०] विवरण के साथ। विस्तार के साथ [को०]।
⋙ सविस्मय
वि० [सं०] १. चकित। विस्मित। २. संदेहपूर्ण। ३. विस्मय- पूर्वक [को०]।
⋙ सवीर
वि० [सं०] वीरों से युक्त। अनुयायि जनों के साथ।
⋙ सवीर्य
वि० [सं०] १. समान शक्तिवाला। २. शक्तिशाली [को०]।
⋙ सवीर्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] सतावर। शतावरी।
⋙ सवृत्त
वि० [सं०] चरित्रवान् [को०]।
⋙ सवृद्धिक
वि० [सं०] ब्याज के साथ [को०]।
⋙ सवृष्टिक
वि० [सं०] वर्षा से युक्त। वृष्टियुक्त।
⋙ सवेग (१)
वि० [सं०] १. समान वेगवाला। २. उग्र [को०]।
⋙ सवेग (२)
क्रि० वि० वेगपूर्वक। शीघ्र गति से। उ०—चले सवेग राम तेहि काला।—मानस २।२४२।
⋙ सवेताल
वि० [सं०] बेताल से ग्रस्त [को०]।
⋙ सवेध
संज्ञा पुं० [सं०] समीपता [को०]।
⋙ सवेरा
संज्ञा पुं० [हिं० स + सं० वेला] १. सूर्य निकलने के लगभग का समय। प्रातःकाल। सुबह। २. निश्चित समय के पूर्व का समय। (क्व०)।
⋙ सवेरे
अव्य० [हिं०] तड़के। भोर में। सुबह।
⋙ सवेश
वि० [सं०] १. निकट। समीप। पास। २. विभूषित। अलंकृत (को०)।
⋙ सवेशीय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम।
⋙ सवेष
वि० [सं०] अलंकृत। सज्जित [को०]।
⋙ सवेष्टन
वि० [सं०] पगड़ीयुक्त। जिसपर पगड़ी हो [को०]।
⋙ सवैया
संज्ञा पुं० [हिं० सवा + ऐया (प्रत्य०)] १. तौलने का एक बाट जो सवा सेर का होता है। २. एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में सात भगण और एक गुरु होता है। इसे 'मालिनी' और 'दिवा' भी कहते हैं। विशेष—इस अर्थ में कुछ लोग इसे स्त्री लिंग भी बोलते हैं। ३. वह पहाड़ा जिसमें एक, दो, तीन आदि संख्याओं का सवाया रहता है। ४. दे० 'सवाई'।
⋙ सवैलक्ष्य
वि० [सं०] १. अप्राकृतिक। अस्वाभाविक। २. लज्जित। लज्जायुक्त। शर्मिदा [को०]। यौ०—सवैलक्ष्य स्मित = अस्वाभाविक मुस्कान। झेंपभरी हँसी।
⋙ सव्य (१)
वि० [सं०] १. वाम। बायाँ। २. दक्षिण। दाहिना। विशेष—सव्य शब्द का वाम और दक्षिण दोनों अर्थ में प्रयोग होता है। पर साधारणतः यह वाम के ही अर्थ में प्रयुक्त होता है। ३. प्रतिकूल। विरुद्ध। खिलाफ। ४. अनुकूल। उपयुक्त। दक्षिण (को०)। ५. जो घृत से सिंचित न हो। शुष्क। रूखा (को०)।
⋙ सव्य (२)
संज्ञा पुं० १. यज्ञोपवीत। २. चंद्र या सूर्यग्रहण के दस प्रकार के ग्रासों में एक प्रकार का ग्रास। ३. अंगिरा के पुत्र का नाम जो ऋग्वेद के कई मंत्रों के द्रष्टा थे। विशेष—कहते हैं कि अंगिरा के तपस्या करने पर इंद्र ने उनके घर पुत्र रूप में जन्म ग्रहण किया था, जिनका नाम सव्य पड़ा। ४. विष्णु। ५. अग्नि, जो किसी के मृत्युकाल में दीप्त की जाय (को०)।
⋙ सव्यचारी
संज्ञा पुं० [सं० सव्यचारिन्] १. अर्जुन का एक नाम। दे० 'सव्यसाची'। २. अर्जुन वृक्ष। कौह वृक्ष।
⋙ सव्यजानु
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध का एक ढंग [को०]।
⋙ सव्यथ
वि० [सं०] १. पीड़ा या व्यथा से ग्रस्त। २. शोकाकुल। दुःखान्वित [को०]।
⋙ सव्यपेक्ष
वि० [सं०] आसरा या अपेक्षायुक्त। किसी पर निर्भर या अवलंबित [को०]।
⋙ सव्यबाहु
संज्ञा पुं० [सं०] बाएँ हाथ से लड़ने का एक तरीका [को०]।
⋙ सव्यभिचार
संज्ञा पुं० [सं०] हेत्वाभास का एक भेद।
⋙ सव्यसाची
संज्ञा स्त्री० [सं०सव्यसाचिन्] अर्जुन। विशेष—कहते हैं कि अर्जुन दाहिने हाथ से भी तीर चला सकते थे और बाएँ हाथ से भी; इसी लिये उनका यह नाम पड़ा।
⋙ सव्यभिचरण
वि० [सं०] व्यभिचारी भाव से युक्त [को०]।
⋙ सव्यांत
संज्ञा पुं० [सं० सव्यान्त] युद्ध करने का एक प्रकार [को०]।
⋙ सव्याज
वि० [सं०] १. व्याज या छद्मयुक्त। २. कपटी। धूर्त। चालबाज [को०]।
⋙ सव्यापार
वि० [सं०] काम में लगा हुआ [को०]।
⋙ सव्येतर
वि० [सं०] दाहिना [को०]।
⋙ सव्येष्टा
स्त्रीं पुं० [सं० सव्येष्ट्ट]दे० 'सव्येष्ठ'।
⋙ सव्येष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] सारथी।
⋙ सव्येष्ठा, सव्येष्ठाता
संज्ञा पुं० [सं० सव्येष्ठृ, सव्येष्ठातृ] सारथी। दे० 'सव्येष्ठ' [को०]।
⋙ सव्रण
वि० [सं०] १. चोटैल। ब्रणयुक्त। २. घायल। ३. देषयुक्त। छिद्रयुक्त। सदोष (को०)।
⋙ सव्रणशुक्र
संज्ञा पुं० [सं०] आँख का एक रोग जिसमें आँख की पुतली पर सूई से किए हुए छोटे छेद के समान गहरी फूली पड़ती है और आँखों से गरम आँसू निकलते हैं।
⋙ सव्रती
वि० [सं० सव्रतिन्] १. व्रतयुक्त। २. समान ढंग से काम करनेवाला। समान रीतिरिवाज वाला [को०]।
⋙ सव्रीड
वि० [सं०] ब्रीड़ा या लज्जायुक्त। लज्जित [को०]।
⋙ सशंक
वि० [सं० सशङ्क] १. जिसे शंका हो। शंकायुक्त। २. भयभीत। डरा हुआ। ३. भयकारी। भयानक। ४. शंका उत्पन्न करनेवाला। भ्रामक।
⋙ सशंकना पु
क्रि० अ० [सं० सशड्क + हिं० ना (प्रत्य०)] १. शंका- युक्त होना। शंकित होना। २. भयभीत होना। डरना।
⋙ सशक्तिक
वि० [सं०] बलयुक्त। शक्तिशाली।
⋙ सशब्द
वि० [सं०] १. ध्वनियुक्त। शब्द करता हुआ। २. चिल्ला कर कहा हुआ। जोरों से घोषित। ३. नादयुक्त। नाद के साथ [को०]।
⋙ सशय़न
वि० [सं०] समीपवर्ती। पास पड़ोस का।
⋙ सशरीर
वि० [सं०] १. शरीरयुक्त। देहधारी। मूर्त। २. अस्थि- युक्त। ३. शरीर के साथ।
⋙ सशल्क (१)
वि० [सं०] जिसमें शल्क हो। शल्कयुक्त।
⋙ सशल्क (२)
संज्ञा पुं० एक प्रकार का मत्स्य [को०]।
⋙ सशल्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] रीछ। भालू।
⋙ सशल्य (२)
वि० १. शल्ययुक्त। काँटेदार। २. काँटे या नोकदार अस्त्रों से बिंधा हुआ। ३. कठिन। मुश्किल। कष्टमय [को०]।
⋙ सशल्यव्रण
संज्ञा पुं० [सं०] व्रण रोग का एक भेद। विशेष—काँटे आदि के चुभ जाने से यह व्रण उत्पन्न होता है। इसमें विद्ध स्थान में सूजन होती है और कालांतर में वह पक जाता है।
⋙ सशल्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] नागदंती। हाथी शुंडी।
⋙ सशवी
संज्ञा पुं० [?] काला जीरा। कृष्ण जीरक।
⋙ सशस्त्र
वि० [सं०] १. शास्त्रयुक्त। शास्त्रसज्ज। हथियारों से लैस। २. जिसमें शस्त्रों, हथियारों का उपयोग हुआ हो [को०]।
⋙ सशस्य
वि० [सं०] १. अन्न से युक्त। २. जिसमें आनाज पैदा हो। उपजाऊ [को०]।
⋙ सशस्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] नागदंती [को०]।
⋙ सशाक
संज्ञा पुं० [सं०] अदरक। आदी।
⋙ सशाद्वल
वि० [सं०] हरी हरी घासों से पूर्ण [को०]।
⋙ सशुक्र
वि० [सं०] दीप्तियुक्त। चमकदार [को०]।
⋙ सशूक (१)
वि० [सं०] टूँड़वाला [को०]।
⋙ सशूक (२)
संज्ञा पुं० ईश्वरविश्वासी। आस्तिक [को०]।
⋙ सशेष
वि० [सं०] जिसमें शेष हो। २. अपूर्ण। अधूरा।
⋙ सशोथ
वि० [सं०] सूजा हुआ।
⋙ सशोथपाक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का नेत्र रोग। विशेष—इस रोग में आँखों में से आँसू निकलते हैं और उनमें खुजली तथा शोथ होता है। आँखें लाल भी हो जाती हैं।
⋙ सश्मश्रु (१)
वि० [सं०] श्मश्रुयुक्त। दाढी मूँछवाला।
⋙ सश्मश्रु (२)
संज्ञा स्त्री० वह स्त्री जिसे दाढी़ मूँछ उग आई हो [को०]।
⋙ सश्रद्ध
वि० [सं०] १. श्रद्धायुक्त। आस्थावान्। २. विश्वास करने योग्य। सच्चा [को०]।
⋙ सश्रम
वि० [सं०] १. श्रमयुक्त। २. थका हुआ। ३. श्रमपूर्वक।
⋙ सश्रीक
वि० [सं०] १. समृद्धियुक्त। भाग्यशाली। २. शोभायुक्त। सुंदर [को०]।
⋙ सश्रीवृक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का घोड़ा, जिसके वक्षस्थल पर भँवरी हो [को०]।
⋙ सश्लेष
वि० [सं०] श्लेषयुक्त। द्वयर्थक। श्लिष्ट [को०]।
⋙ सश्वास
वि० [सं०] जीवित। जो श्वासयुक्त हो [को०]।
⋙ ससंक पु
वि० [सं० सशङ्क] शंकित। शंकायुक्त।
⋙ ससंकना पु
क्रि० अ० [सं० सशङ्क + हिं० ना] दे० 'सशंकना'। उ०—शिवहिं विलोकि ससंकेउ मारू।—मानस, २।८६।
⋙ ससंकेत
वि० [सं० ससङ्केत] जिसके साथ कोई संकेत या गुप्त समझौता हुआ हो [को०]।
⋙ ससंग
वि० [सं० ससङ्ग] संबद्ध। संगयुक्त। संलग्न [को०]।
⋙ ससंततिक
वि० [सं० ससन्ततिक] संततियुक्त। बाल बच्चेदार [को०]।
⋙ ससंदेह (१)
वि० [सं० ससन्देह] संशय युक्त।
⋙ ससंदेह (२)
संज्ञा पुं० संदेह नामक अलंकार।
⋙ ससंध्य
वि० [सं० ससन्ध्य] संध्या संबंधी [को०]।
⋙ ससंपद्
वि० [सं० ससम्पद्] संपद्युक्त। सुखी। समृद्धिशील [को०]।
⋙ ससंभ्रम (१)
वि० [सं० ससम्भ्रम] व्याकुल। घबड़ाया हुआ [को०]।
⋙ ससंभ्रम (२)
अव्य० १. हड़बड़ी में। शीघ्रतापूर्वक। घबड़ाहट में। २. अभ्यर्थनापूर्वक। सादर [को०]।
⋙ ससंरंभ
वि० [सं० ससंरम्भ] संरंभ युक्त। कुद्ध [को०]।
⋙ ससंवाद
वि० [सं०] समान राय। एकमत [को०]।
⋙ ससंवित्क
वि० [सं०] समझदार। विवेकशील [को०]।
⋙ ससंविद्
वि० [सं०] जिसके साथ कोई समझौता हुआ हो [को०]।
⋙ ससंशय (१)
वि० [सं०] अनिश्चित। संदेहयुक्त [को०]।
⋙ ससंशय (२)
संज्ञा पुं० एक क्व्यदोष। संदिग्धता [को०]।
⋙ ससंहार
वि० [सं०] संहार या निरोध शक्ति से युक्त [को०]।
⋙ सस (१)
संज्ञा पुं० [सं० शशि] चंद्रमा। शशि।
⋙ सस (२)
संज्ञा पुं० [सं० शस्य] खेती बारी। उ०—सपने के सौतुख सुख सस सुर सींचत देत बिराई के।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सस (३)
संज्ञा पुं० [सं० शश] खरगोश।
⋙ ससक † (१)
संज्ञा पुं० [सं० शशक] खरहा। खरगोश।
⋙ ससक † (२)
संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'सिसक'।
⋙ ससकना †
क्रि० अ० [हिं० ससङ़कना] घबडाना। भिझकना।
⋙ ससत्व
वि० [सं०] १. शक्तियुक्त। साहसपूर्ण। २. सत्वयुक्त। गर्भयुक्त। ३. पशु, पक्षियों, जंतु, जीवों से पूर्ण [को०]।
⋙ ससत्वा
संज्ञा स्त्री० [सं०] गर्भवती स्त्री। गर्भिणी।
⋙ ससदल पु
संज्ञा पुं० [सं० शशधर] चंद्रमा। उ०—भीसुर ससदल भाल।—ढोला०, दू० ४७९।
⋙ ससधर पु
संज्ञा पुं० [सं० शशधर] चंद्रमा।
⋙ ससन
संज्ञा पुं० [सं०] पशु का वध [को०]।
⋙ ससना †
क्रि० अ० [हिं०] दे० 'ससकना'।
⋙ ससरना †
क्रि० अ० [सं० सम् + सरण] सरकना। खिसकना। घसकना।
⋙ ससहर पु
संज्ञा पुं० [सं० शशधर, प्रा० ससहर] चंद्रमा। उ०—सोइ सूर तुम ससहर आनि मिलावौं सोह। तस दुख महँ सुख उपजै रैनि माँह दिन होइ।—जायसी (शब्द०)।
⋙ ससहाय
वि० [सं०] सहायकों, साथियों के साथ [को०]।
⋙ ससा †
संज्ञा पुं० [सं० शशा] १. खरगोश। शशक। २. खीरा।
⋙ ससाध्वस
वि० [सं०] चकित। भयभीत। डरा हुआ [को०]।
⋙ ससाना †
क्रि० अ० [हिं०] दे० 'ससकना'।
⋙ ससार्थ
वि० [सं०] सार्थयुक्त। जिसमें वणिक् अपने बनिज के साथ हो (काफिला)।
⋙ ससि (१)
संज्ञा पुं० [सं० शशि] शशि। चंद्रमा। उ०—वीण अलापी देखि ससि, रमणी नाद सलीण। ढोला०, दू० ५७०।
⋙ ससि पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० सस्य] धान्य।—उ०—ससि संपन्न सोह महि कैसी। उपकारी कै संपति जैसी।—मानस, ४।५५।
⋙ ससित
वि० [सं०] सिता या शर्करायुक्त [को०]।
⋙ ससिद्ध
संज्ञा पुं० [सं०] बड़ा शाल। सर्ज वृक्ष।
⋙ ससिधर पु
संज्ञा पुं० [सं० शशधर] शशि। चंद्रमा।
⋙ ससिरिपु पु
संज्ञा पुं० [सं० शशिरिपु] दिन। उ०—ससिरिपु बरष सूररिपु जुग हररिपु कीन्हीं घात।—सूर०, १०।३९७६।
⋙ ससिहर पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० शशधर] चंद्रमा।—उ०—ससिहर मृगरस्थ मोहियउ तिण हसि मेल्ही वीण, ढोला० दू० ५७०।
⋙ ससिहर पु (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० शशि + धर] शिशिर ऋतु। उ०— कहि नारि पीय बिनु कामिनी रिति ससिहर किम जीजइय।—पृ० रा०, ६१।६४।
⋙ ससी पु
संज्ञा पुं० [सं० शशि] शशि। चंद्रमा।
⋙ ससील पु
वि० [सं० सशील] शीलयुक्त। सुशील।
⋙ ससुर (१)
संज्ञा पुं० [सं० श्वशुर] जिसके पुत्री या पुत्र से ब्याह हुआ हो। पति या पत्नी का पिता। श्वशुर। दे० 'श्वसुर'।
⋙ ससुर (२)
वि० [सं० स + सुर] १. देवगणों के साथ। देवताओं से युक्त। २. मदमत्त। मतवाला नशे में चूर। ३. सुरा या मदिरायुक्त [को०]।
⋙ ससुरा
संज्ञा पुं० [सं० श्वसुर] १. श्वशुर। ससुर। २. एक प्रकार की गाली। जैसे,—वह ससुरा हमारा क्या कर सकता है। ३. दे० 'ससुराल'। उ०—कित यह रहसि जो आउब करना। ससुरेइ अंत जनम दुख भरना।—जायसा (शब्द०)।
⋙ ससुरार, ससुरारि पु
संज्ञा स्त्री० [सं० श्वसुरालय] दे० 'ससुराल'। उ०—ससुरारि पिआरि लगी जबते। रिपुरूप कुटुब भए तबतें।—मानस, ७।१०१।
⋙ ससुराल
संज्ञा स्त्री० [सं० श्वशुरालय] १. श्वसुर का घर। पति या पत्नी के पिता का घर। २. जेलखाना। वंदोगृह। (बदमाश)।
⋙ ससेन, ससैन
वि० [सं०] सेना से युक्त। सेना या वाहिनी के साथ।
⋙ सस्तर (१)
वि० [सं०] आस्तरण या पत्ते आदि के बने हुए बिछौने से युक्त [को०]।
⋙ सस्तर पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० शस्त्र] दे० 'शस्त्र'।
⋙ सस्ता
वि० [सं० स्वस्थ] [वि० स्त्री० सस्ती] १. जो महँगा न हो। जिसका मूल्य साधारण से कुछ कम हो। थोड़े मूल्य का। जैसे,— उन्हें यह मकान बहुत सस्ता मिल गया। २. जिसका भाव बहुत उत्तर गया हो। जैसे,—आजकल सोना सस्ता हो गया है। यौ०—सस्ता समय = ऐसा समय जब कि सब चीजें सस्ती हों। सस्ता माल = घटिया दर्जेका माल। मुहा०—सस्ता लगना = कम दाम पर बेचना। दाम या भाव कम कर देना। सस्ते छूटना = जिस काम में अधिक व्यय, परिश्रम या कष्ट आदि होने को हो, वह काम थोड़े व्यय, परिश्रम या कष्ट में हो जाना। ३. जो सहज में प्राप्त हो सके। जिसका विशेष आदर न हो। ४. घटिया। साधारण। मामूली। (क्व०)।
⋙ सस्ताना (१)
क्रि० अ० [हिं० सस्ता + ना (प्रत्य)] किसी वस्तु का काम दाम पर बिकना। सस्ता हो जाना।
⋙ सस्ताना (२)
क्रि० स० किसी चीज का भाव सस्ता करना। सस्ते दामों पर बेचना।
⋙ सस्ती
संज्ञा स्त्री० [हिं० सस्ता + ई (प्रत्य०)] १. सस्ता होने का भाव। सस्तापन। अल्पमूल्यता। महँगी का अभाव। २. वह समय जब कि सब चीजें सस्ते दाम पर मिला करती हों। जैसे,—सस्ती में यही कपड़ा तीन आने गज मिला करता था।
⋙ सस्ञीक
वि० [सं०] जिसके साथ स्त्री हो। स्त्री या पत्नी के सहित। जैसे,—वे सस्ञीक यहाँ आनेवाले हैं।
⋙ सस्नेह
वि० [सं०] १. स्नेहयुक्त। प्रेमपूर्वक। प्रेमपूर्ण। २. स्नेह या तैलयुक्त [को०]।
⋙ सस्पृह
वि० [सं०] स्पृहायुक्त। इच्छायुक्त [को०]।
⋙ सस्पेंड
वि० [अं०] जो किसी काम से, किसी अभियोग के संवंध में, जाँच पूरी न होने तक अलग कर दिया गया हो। जो किसी काम से, किसी अपराध पर, कुछ समय के लिये छुड़ा दिया गया हो। मुअत्तल। जैसे,—उसपर घूस लेने का अभियोग है; इसलिये वह सस्पेंड कर दिया गया है। क्रि० प्र०—करना।
⋙ सस्फुर
वि० [सं०] १. स्पंदनशील। २. जीवित [को०]।
⋙ सस्मय
वि० [सं०] १. आश्चर्ययुक्त। चकित। २. हँसता हुआ। सस्मित। ३. घमंडी। अभिमानी [को०]।
⋙ सस्मित
वि० [सं०] हँसता हुआ। मुसकान युक्त [को०]।
⋙ सस्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. धान्य। २. शास्त्र। ३. उत्तम गुण। ४. वृक्षों का फल। ५. दे० 'शस्य'। ६. एक कीमती पत्थर (को०)। विशेष—'सस्य' के यौगिक आदि शब्दों के लिये दे० 'शस्य' के यौगिक शब्द।
⋙ सस्यक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बृहत्संहिता के अनुसार एक प्रकार की मणि। २. तलवार। ३. शालि। ४. साधु। ५. नारियल की गिरी (को०)। ६. शस्त्र (को०)।
⋙ सस्यक (२)
वि० १. सत्य से युक्त। २. जो योग्यता, सद्विचार, अच्छाई आदि सद्गुणों से युक्त हो [को०]।
⋙ सस्यप्रद
वि० [सं०] उपजवाला। जो उपजाऊ हो [को०]।
⋙ सस्यमंजरी
संज्ञा स्त्री० [सं० सस्यमञ्जरी] दे० 'शस्यमंजरी'।
⋙ सस्यमारी (१)
संज्ञा पुं० [सं० सस्यमारिन्] मूसा। चूहा।
⋙ सस्यमारी (२)
वि० शस्य या अनाज का नाश करनेवाला।
⋙ सस्यमाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] धान्य से पूर्ण धरती [को०]।
⋙ सस्यशीर्षक
संज्ञा पुं० [सं०] अनाज की बाल। शस्यमंजरी।
⋙ शस्यशूक
संज्ञा पुं० [सं०] यव, धान आदि की बालों का नुकीला अगला भाग या टूँड़ [को०]।
⋙ सस्यसंवत्सर
संज्ञा पुं० [सं०] शाल। साखू।
⋙ सस्यसंवर
संज्ञा पुं० [सं० सस्यसम्वर] १. सलई। शल्लकी। २. शाल का वृक्ष।
⋙ सस्यसंवरण
संज्ञा पुं० [सं० सस्यसम्वरण] शाल या अश्वकर्ण वृक्ष। साखू।
⋙ सस्यहंता, सस्यहा
वि०, संज्ञा पुं० [सं० सस्यहन्तृ, सस्यहन्] दे० 'शस्यहंता'।
⋙ सस्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] अरनी। गणिकारिका। गनियल।
⋙ सस्याद
वि० [सं०] अनाज या खेत चर जानेवाला। शस्यभक्षक [को०]।
⋙ सस्येष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] फसल के पकने पर किया जानेवाला एक प्रकार का यज्ञ [को०]।
⋙ सस्वेद
वि० [सं०] पसीने से युक्त। पसीने से लथपथ [को०]।
⋙ सस्वेदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह कुमारी कन्या जिसका कौमार्य सद्यः भंग हुआ हो [को०]।
⋙ सहंडुक
संज्ञा पुं० [सं० सहण्डुक] एक प्रकार का मांस का रसा या शोरबा। विशेष—बकरे आदि पशुओं के मांसभरे अंगों के टुकड़ों को धोकर घी में हींग आदि का तड़का देकर धीमी आँच में भून ले। अनंतर उसे छानकर पानी, नमक, मसाला आदि डाले और पक जाने पर उतार ले। भावप्रकाश में यह शोरबा शुक्रवर्धक, बलकारक, रुचिकर, अग्निदीपक, त्रिदोष शांति के लिये श्रेष्ठ और धानुपोषक बताया गया है।
⋙ सहँगा
वि० [देश०] जो महँगा न हो। सस्ता। महँगा शब्द के साथ यौगिक रूप में प्रयुक्त। जैसे—महँगासहँगा। उ०—मनि मनिक मँहगे किए सँहगे तृन, जल, नाज। तुलसी ऐसी जानिए राम गरीबनेवाज।—तुलसी ग्रं०, पृ० १५२।
⋙ सह (१)
अव्य० [सं०] १. सहित। समेत। २. एक साथ। युगपत्।
⋙ सह (२)
वि० [सं०] १. विद्यमान। उपस्थित। मौजूद। २. सहिष्णु। सहनशील। ३. समर्थ। योग्य सशक्त। ४. पराभूत या वशीभूत करनेवाला (को०)।
⋙ सह (३)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सादृश्य। समानता। बराबरी। २. सामर्थ। बल। शक्ति। ३. अगहन का महीना। ४. महादेव का एक नाम। ५. रेह का नोन। पांशु लवण। ६. अग्नि (को०)। ७. कृष्ण के एक पुत्र का नाम जिसकी माता का नाम माद्री था (को०)। ८. मनु का एक पुत्र। ९. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। १०. प्राचीन काल की एक प्रकार की वनस्पति या बूटि जिसका व्यवहार यज्ञों आदि में होता था।
⋙ सह (४)
संज्ञा स्त्री० समृद्धि।
⋙ सहक
वि० [सं०] सहनशील। सहिष्णु। क्षमाशील [को०]।
⋙ सहकरण
संज्ञा पुं० [सं०] कोई काम साथ साथ साथ करना।
⋙ सहकर्ता
संज्ञा पुं० [सं० सहकर्तृ] जो काम करने में मददगर या सहायक हो [को०]।
⋙ सहकार (१)
संज्ञा पुं [सं०] १. सुगंधियुक्त पदार्थ। २. आम का पेड़। ३. कलमी आम। ४. आम की मंजरी या बौर (को०)। ५. आम्र का रस (को०)। ६. सहायक। मददगार। ७. साथ मिलकर काम करना। सहयोग।
⋙ सहकार (२)
वि० हकार की ध्वनी से युक्त [को०]।
⋙ सहकारता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सहायता। मदद।
⋙ सहकारभंजिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सहकारभञ्जिका] प्राचीन काल की एक प्रकार की क्रीड़ या अभिनय।
⋙ सहकारिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहकारी होने का भाव। सहायक होने का भाव। २. सहायता। मदद।
⋙ सहकारी
संज्ञा पुं० [सं० सहकारिन्] [वि० स्त्री० सहकारिणी] १. साथ काम करनेवाला। साथी। सहयोगी। २. सहयोगात्मक। सहयोगयुक्त। ३. सहायक। मददगार। सहायता करनेवाला।
⋙ सहकृत
वि० [सं०] दे० 'सहकारी'।
⋙ सहगमन
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ जाने की क्रिया। २. पति के शव के साथ पत्नी के सती होने का व्यापार। सती होने की क्रिया।
⋙ सहगवन पु
संज्ञा पुं० [सं० सहगमन, प्रा० सहगवण] दे० 'सहगमन'।
⋙ सहगामिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री जो पति के शव के साथ सती हो जाय। पति की मृत्यु पर उनके साथ जल मरनेवाली स्त्री। उ०—मंगल सकल सोहाहिँ न कैसे। सहगामिनिहि विभूषन जैसे।—मानस, २।३७। २. स्त्री। पत्नी। सहचरी। साथिन।
⋙ सहगामी
वि०, संज्ञा पुं० [सं० सहगामिन्] [स्त्री० सहगामिनी] १. साथ चलनेवाला। साथी। २. अनुकरण करनेवाला। अनुयायी।
⋙ सहगौन पु
संज्ञा पुं० [सं० सहगमन, प्रा० सहगवन] दे० 'सहगमन'।
⋙ सहचर
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सहचरी] १. वह जो साथ चलता हो। साथ चलनेवाला। साथी। हमराही। २. सेवक। दास। भृत्य। नौकर। ३. दोस्त। सखा। मित्र। ४. कटसरैया। ५. पति (को०)। ६. प्रतिबंधक। जामिन (को०)।
⋙ सहचरण
संज्ञा पुं० [सं०] साथ साथ जाना या लगे रहना।
⋙ सहचरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली कटसरैया।
⋙ सहचराद्य तैल
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार का तेल। विशेष—यह तैल बनाने के लिये नीले फूलवाली कटसरैया, धमास, कत्था, जामुन की छाल, आम की छाल, मुलेठी, कमलगट्टा सब एक टके भर लेते हैं और उनका चूर्ण बनाकर १६ सेर जल में डालकर औटाते हैं। जब चौथाई रह जाता है,तब उसे तेल या बकरी के दूध में पकाते हैं । कहते हैं कि इसके सेवन से दाँत मजबूत हो जाते हैं।
⋙ सहचरित
वि० [सं०] १. साथ जाने या रहनेवाला। २. संगत। अनुरूप। युक्त [को०]।
⋙ सहचरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहचर का स्त्री० रूप। २. पत्नी। भार्या, जोरू। ३. सखी। सहेली। ४. पीली कटसरैया। पीत झिंटी (को०)।
⋙ सहचार
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो सदा साथ रहता हो। सहचर। संगी। साथी। २. साथ। संग। सोहबत। ३. समन्वय। सामंजस्य। संगति (को०)। ४. न्याय में हेतु के साथ साध्य का अनिर्वाय होना (को०)।
⋙ सहचार उपाधि लक्षणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की लक्षणा। जिसमें जड़ सहचारी के कहने से चेतन सहचारी का बोध होता है। जैसे,—'गद्दी को नमस्कार करो, यहाँ गद्दी शब्द से गद्दी पर बैठनेवाले का बोध होता है।
⋙ सहचारिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. साथ में रहनेवाली। सहचरी। सखी। २. पत्नी। स्त्री। जोरू।
⋙ सहचारिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सहचारी होने का भाव।
⋙ सहचारित्व
संज्ञा पुं० [सं०] सहचारी होने का भाव।
⋙ सहचारी
संज्ञा पुं० [सं० सहचारिन्] [सं० सहचारिणी] १. संगी। साथी। दे० 'सहचर'। २. सेवक। नौकर।
⋙ सहज (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सहजा] १. सहोदर भाई। सगा भाई। एक माँ का जाया भाई। २. निसर्ग। स्वभाव। ३. ज्योतिष में जन्म लग्न से तृतीय स्थान। भाइयों और बहनों आदि का विचार इसी स्थान को देखकर किया जाता है। ४. जीवन्मुक्ति (को०)।
⋙ सहज (२)
वि० स्वभाविक। स्वभावोत्पन्न। प्राकृतिक। जैसे,—काटना तो साँपों का सहज स्वभाव है। २. साधारण। ३. जन्मजात। ४. सरल। सुगम। आसान। जैसे,—जब तुमसे इतना सहज काम भी नहीं हो सकता, तब तुम और क्या करोगे। ५. साथ साथ उत्पत्र होनेवाला।
⋙ सहजअरि प्रकृति
संज्ञा पुं० [सं०] वह राजा जो विजेता का पड़ोसी और स्वभावतः शत्रुता रखनेवाला हो।
⋙ सहजकृति
संज्ञा पुं० [सं०] सोना। स्वर्ण।
⋙ सहजकलैव्य
संज्ञा पुं० [सं०] नपुंसकता रोग का एक भेद। वह नपुंसकता जो जन्म से ही हो।
⋙ सहजजन्मा
वि० [सं० सहजजन्मन्] १. यमज। यमल। जुड़वाँ। २. सगा। सहोदर [को०]।
⋙ सहजता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहज होने का भाव। २. सरलता। स्वाभाविकता।
⋙ सहजधार्मिक
वि० [सं०] जो स्वभावतः धर्मनिष्ठ हो [को०]।
⋙ सहजन
संज्ञा पुं० [हिं० सहिंजन] दे० 'सहिजन'।
⋙ सहजन्मा
वि० [सं० सहजन्मन्] १. एक गर्भ से एक साथ ही होनेवाली संतानें। यमज। यमल। जोड़ा। २. एक ही गर्भ से उत्पन्न। सहोदर। सगा (भाई आदि)। ३. जन्मना या स्वभावतः प्राप्त।
⋙ सहजन्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम।
⋙ सहजन्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।
⋙ सहजपंथ
संज्ञा पुं० [हिं० सहज + पंथ] गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय का निम्न वर्ग। विशेष—इस संप्रदाय के प्रवर्तकों के मतानुसार भजन साधन के लिये पहले एक नवयौवलमंपन्न सुंदर परकीया रमणी की आवश्यकता होती है। बाद रसिक भक्त या गुरु से सम्यक् रूप से उपदेश लेकर उस नायिका के प्रति तन मन अर्पणकर साधन भजन करने से अविलंव ब्रजनंदन रसिकाशिरोमणि श्रीकृष्ण की प्राप्ति होती है। सहजियों का कहना है कि इस प्रकार की लीला महाप्रभु सर्वसाधारण को न दिखाकर गुप्त रूप से राय रामानंद और स्वरूप दामोदर आदि कई मार्मिक भक्तों को बता गए हैं।
⋙ सहजमलिन
वि० [सं०] प्रकृत्या मलिन। स्वभावतः गंदा।
⋙ सहजमित्र
संज्ञा पुं० [सं०] स्वभाविक मित्र। विशेष—शास्त्रों में भानजा, मौसेरा भाई और फुफेरा भाई सहज- मित्र और वैमात्रेय तथा चचेरे भाई सहज शत्रु बताए गए हैं। भानजे आदि से संपत्ति का कोई संबंध नहीं होता; इसी से ये सहज मित्र हैं। परंतु चचेरे भाई संपत्ति के लिये झगड़ा कर सकते हैं, इससे वे सहज शत्रु कहे गए हैं।
⋙ सहजमित्र प्रकृति
संज्ञा पुं० [सं०] वह राजा जो विजेता का पड़ोसी, कुलीन तथा स्वभाव से ही मित्र हो।
⋙ सहजवत्सल
वि० [सं०] स्वभावतः कोमल हृदयवाला [को०]।
⋙ सहजशत्रु
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रों के अनुसार बैमात्रेय या चचेरा भाई जो संपत्ति के लिये झगड़ा कर सकता है। विशेष दे० 'सहजमित्र'।
⋙ सहजसुहृद पु
वि० [सं० सहजसुहृद्] सहजमित्र। स्वभाव या प्रकृति से जो मित्र हो। उ०—सहज सुहृद गुरु स्वामि मिख जो न करइ सिर मानि। सो पछिताइ अधाइ उर अवसि होइ हित हानि।—मानस, २।६३।
⋙ सहजांधद्दक्
वि० [सं० सहजान्धदृश्] जो जन्म से ही अंधा हो।
⋙ सहजात
वि० [सं०] १.सहोदर। २. यमज। ३. स्वाभाविक। प्राकृतिक (को०)। ४. एक ही काल में उत्पन्न (को०)।
⋙ सहजाधिनाथ
संज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली के तीसरे या सहज स्थान का अधिपति ग्रह।
⋙ सहजानि (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] पत्नी। स्त्री। जोरू।
⋙ सहजानि (२)
वि० स्त्री के साथ। जोरू के साथ। सपत्नी्क।
⋙ सहजारि
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रों के अनुसार वैमात्रेय या चचेरा भाईजो समय पड़ने पर संपत्ति आदि के लिये झगड़ा कर सकता है। सहज शत्रु।
⋙ सहजार्श
संज्ञा पुं० [सं०] वह अर्श या बवासीर जिसके मस्से कठोर, पीले रंग के और अंदर की ओर मुँहवाले हों।
⋙ सहजिया
संज्ञा पुं० [हिं० सहज (= पंथ + इया (प्रत्य०)] वह जो सहजपंथ का अनुयायी हो। सहजपंथ को माननेवाला। विशेष दे० 'सहजपंथ'।
⋙ सहजीवी
वि० [सं० सहजीविन्] एक साथ जीवन धारण करनेवाले। साथ रहनेवाले।
⋙ सहजेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० सहजेन्द्र] फलित ज्योतिष के अनुसार जन्म- कुंड़ली के तीसरे या सहज स्थान के अधिपति ग्रह।
⋙ सहजेतर
वि० [सं०] सहज अर्थात् प्राकृतिक या जन्मजाज से इतर अथवा भिन्न [को०]।
⋙ सहजै पु
अव्य० [हिं० सहज + ही] स्वभावतः सरलतापूर्वक। आसानी से।
⋙ सहजोदासीन
वि० [सं०] जो प्रकृत्या या स्वभाविक रूप मित्र या शत्रु न हो [को०]।
⋙ सहत (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शहद] दे० 'शहद'।
⋙ सहत † (२)
वि० [हिं० सस्ता] दे० 'सस्ता'।
⋙ सहतमहत
संज्ञा पुं० [सं० श्रावस्ती] दे० 'श्रावस्ति'।
⋙ सहतरा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहतरह्] पित्त पापड़ा। पर्पटक।
⋙ सहता (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सहत्व' [को०]।
⋙ सहता † (२)
वि० [हिं० सस्ता] कम दाम का। सस्ता।
⋙ सहताना पु (१)
क्रि० अ० [हिं० सुसताना] श्रम मिटना। थकावट दूर करना। विश्राम करना। आराम करना। सुस्ताना। उ०—सहतात कहाँ नर वे जग में जिन मीत के कारज सीस धरे।—लक्ष्मण सिंह (शब्द०)।
⋙ सहताना † (२)
क्रि० अ० [हिं० सस्ता + ना (प्रत्य०)] सस्ता होना। अपेक्षाकृत कम मूल्य का होना।
⋙ सहती †
संज्ञा स्त्री० [हिं० सस्ती] सस्तापन। दे०'सस्ती'।
⋙ सहतूत
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहतूत, शहतूत] एक फल। दे० 'शहतूत'।
⋙ सहत्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. 'सह' का भाव। २. एक होने का भाव। एकता। ३. मेलजोल।
⋙ सहदंड
वि० [सं० सहदण्ड] दंड के साथ। सेना से युक्त।
⋙ सहदइया
संज्ञा स्त्री० [हिं० सहदेई] दे० 'सहदेई'।
⋙ सहदान
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत से देवताओं के उद्देश्य से एक साथ ही या एक में किया जानेवाला दान। २. तर्पण। जलदान।
⋙ सहदानी पु
संज्ञा स्त्री० [सं० संज्ञान] निशानी। पहचान। चिह्न। उ०—सारँगपाणि मूँदि मृगनैनी मणि मुख माँह समानी। चरण चापि महि प्रगटि करी पिय शेष शीश सहदानी।— सूर (शब्द०)।
⋙ सहदार
वि० [सं०] १. सपत्नीक। स्त्री के साथ। २. जिसका विवाह हो चुका हो। विवाहित [को०]।
⋙ सहदीक्षित
वि० [सं०] जिन्होंने एक साथ दीक्षा प्राप्त की हो।
⋙ सहदीक्षिती
वि० [सं० सहदीक्षितिन्] एक साथ दीक्षा लेनेवाले [को०]।
⋙ सहदूल पु
संज्ञा पुं० [सं० शार्दूल] सिंह। शार्दूल।
⋙ सहदेई
संज्ञा स्त्री० [सं० सहदेवी] क्षुप जाति की एक वनौषधि जो पहाड़ी भूमि में अधिक उपजती है। विशेष—यह तीन चार फुट ऊँचि होती है। इसके पत्ते बथुए के पत्तों के समान होते हैं। वर्षा ऋतु में यह उगती है। बढ़ने के साथ साथ इसके पत्ते छोटे होते जाते हैं। पत्तों की जड़ में फूलों की कलियाँ निकलती हैं। ये फूल बरियारे के फूलों की भाँति पीले रंग के होते हैं। इसके पौधे चार प्रकार के पाए जाते हैं।
⋙ सहदेव
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजा पांडु के पाँच पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र। विषेश—कहते हैं कि माद्री के गर्भ और अश्विनी कुमारों के औरस से इनका जन्म हुआ था; और ये पुरुषोचित सौंदर्य के आदर्श माने जाते थे। द्रौपदी के गर्भ से इन्हें श्रुतसेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। ये बड़े विद्वान थे। विशेष दे० 'पांडु'। २. जरासंध का पुत्र। महाभारत युद्ध में इसनें पांडवों के विपक्षियों का साथ दिया था। यह अभिमन्यु के हाथ से मारा गया था। ३. हरिवंश के अनुसार हर्यश्व के एक पुत्र का नाम।
⋙ सहदेवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहदेई। पीतपुष्पी। विशेष दे० 'सहदेई'। २. बरियारा। बला। ३. दंडोत्पल। ४. अनंतमूल। शारिवा। ५. सहहँटी। सर्पाक्षी। ६. प्रियंगु। ७. नील। ८. सोनबली नामक वनस्पति जो भारतवर्ष में प्रायः सभी प्रांतों में पाई जाती है। विशेष—यह क्षुप जाति की वनस्पति है। इसकी ऊँचाई दो फुट तक होती है। इसकी डंड़ी के नीचे के भाग में पत्ते नहीं होते। पत्ते दो से चार इंच तक चौड़े, गोल और सिरे पर कुछ तिकोने होते है। इनकी डंडियाँ १-२ इंच लंबी होती हैं। फूल छोटे होते हैं। यह वनस्पति औषध के काम में आती है। ९. भागवत के अनुसार देवक की कन्या और वसुदेव की पत्नी का नाम।
⋙ सहदेवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १.सहदेई। पीतष्पुपी। विशेष दे० 'सहदेई'। २. सर्पाक्षी। सरहँटी। ३. बरियारा। बला (को०)। ४. अनंतमूल (को०)। ५. महानीली। ६. प्रियंगु। ७. सहदेव की एक पत्नी का नाम (को०)।
⋙ सहदेवीगण
संज्ञा पुं० [सं०] सहदेई, बला, शतमूली, शतावर, कुमारी, गुड़ुच, सिंही और व्याघ्री आदि ओषधियों का समूह जिनसे देवप्रतिमाओं को स्नान कराया जाता है।
⋙ सहधर्म
संज्ञा पुं० [सं०] समान धर्म, आचार, कर्तव्य आदि।
⋙ सहधर्मचर
वि० पुं० [सं०] सहधर्म का पालन करनेवाला [को०]।
⋙ सहधर्मचरण
संज्ञा पुं० [सं०] स्वामी या पति के साथ कर्तव्य का पालन करना [को०]।
⋙ सहधर्मचरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्त्री। पत्नी। जोरू।
⋙ सहधर्मचरिणी
संज्ञा स्त्री० १. स्त्री। पत्नी। भार्या। २. सहकार्मिणी।
⋙ सहधर्मचारी
संज्ञा पुं० [सं० सहधर्मचारिन्] १. वह जो साथ साथ कर्तव्य, धर्म का पालन करता हो। २. खाविंद। पति।
⋙ सहधर्मिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पत्नी। स्त्री [को०]।
⋙ सहधर्मी
वि० [सं० सहधर्मिन्] समान कर्तव्य या धर्मयुक्त [को०]।
⋙ सहन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सहने की क्रिया। बरदाश्त करना। २. क्षमा। शांति। तितिक्षा। ३. दे० 'सहनशील'।
⋙ सहन (२)
वि० सहनशील। सहिष्णु। २. शक्तियुक्त। शक्तिशाली। २. क्षमा करनेवाला। क्षमाशील [को०]।
⋙ सहन (३)
संज्ञा पुं० [अ० सह्न] १. मकान के बीच का खुला छोड़ा हुआ भाग। अँगनाई। अजिर। आँगन। चौक। २. मकान के सामने का खुला छोड़ा हुआ समतल भाग। द्वार प्रकोष्ठ। प्रघण। प्रघाण। (अं पोर्टिको, पोर्च)। उ०—बाहर सहन में दो गाड़ियाँ खड़ी थीं।—कंठहार, पृ० ३८२। यौ०—सहनदार = मकान जिसमें सहन हो। ३. एक प्रकार का बढ़िया रेशमी कपड़ा। ४. एक प्रकार का मोटा, गफ, चिकना सूती कपड़ा जो मगहर में अच्छा बनता है। गाढ़ा।
⋙ सहनक
संज्ञा पुं० [अ० सह्नक] १. एक प्रकार की छिछली रकाबी जिसका व्यवहार प्रायः मुसलमान लोग करते हैं। छोटा तबक। २. बीबी फातिमा की नियाज या फातिहा (मुसल०)।
⋙ सहनची
संज्ञा स्त्री० [अ० सह्नची] सहन की बगल में बनाया हुआ छोटा दालान या कमरा [को०]।
⋙ सहनभंड़ार, सहनभँडार पु
संज्ञा पुं० [अ० सहन + सं० भण्डार] १. कोष। खजाना। निधि। २. धनराशि। दौलत। उ०—रनिन दिए बसन मनि भूषण राजा सहनभँडार। मागध सूत भाट नट जाचक जहँ जहँ करहिं कबार।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सहनर्तन
संज्ञा पुं० [सं०] साथ में नाचना। साथ साथ नृत्य करना [को०]।
⋙ सहनशील
वि० [सं०] १. जिसका स्वभाव सहन करने का हो। जो सरलता से सह लेता हो। बरदाश्त करनेवाला। सहिष्णु। २. संतोषी। धैर्य धारण करनेवाला। सब्र करनेवाला।
⋙ सहनशीलता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहनशील होने का भाव। २. धीरता। संतोष। सब्र।
⋙ सहना
क्रि० स० [सं० सहन] १. बरदाश्त करना। झेलना। भोगना। जैसे,—(क) अपने पाप के कारण ही तुम इतना दुःख सहते हो। (ख) अब तो यह कष्ट नहीं सहा जाता। (ग) तुम क्यों उसके लिये बदनामी सहते हो। २. परिणाम भोगना। अपने ऊपर लेना। फल भोगना। जैसे,—इस काम में जो घाटा होगा, वह सब तुम्हें सहना पड़ेगा। ३. बोझ बरदाश्त करना। भार वहन करना। जैसे,—भला यह लकड़ी इतना बोझ कहाँ से सहेगी। संयो० क्रि०—जाना।—लेना।
⋙ सहनाई
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शहनाई]दे० 'शहनाई'। उ०—सूर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई।—मानस, १।३०२।
⋙ सहनायन पु †
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शहनाई + हिं० आयन (प्रत्य०)] शहनाई बजानेवाली स्त्री। उ०—नटनी डोमिन ढारिन, सह- नायन परकार। निरतत नाद बिनोद सो, बिहसत खेलत बार।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सहनिर्वाप
संज्ञा पुं० [सं०] वह दान तर्पण आदि जो साथ साथ किया जाय [को०]।
⋙ सहनिवास
संज्ञा पुं० [सं०] साथ निवास करना। एक साथ रहना।
⋙ सहनीय
वि० [सं०] सहन करने के योग्य। जो असह्ना न हो। जो सहा जा सके। सह्य।
⋙ सहनृत्य
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहनर्तन'।
⋙ सहपंथा
संज्ञा पुं० [सं० सहपन्था] वह जो साथ साथ यात्रा करे। सह- यात्री [को०]।
⋙ सहपति
संज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मा का एक नाम।
⋙ सहपत्नीक
वि० [सं०] सपत्नीक। सस्त्नीक।
⋙ सहपथी
संज्ञा पुं० [सं० सहपथिन्] यात्रा में साथ देनेवाला व्यक्ति। हमराही। सहयात्री [को०]।
⋙ सहपांशुकिल
संज्ञा पुं० [सं०] लंगोटिया मित्र। बचपन का साथी [को०]।
⋙ सहपांशुक्रिडी
संज्ञा पुं० [सं० सहपांशुक्रीडिन्] साथ साथ धूलमिट्टी में खेलनेवाला बचपन का साथी [को०]।
⋙ सहपाठी
संज्ञा पुं० [सं० सहपाठिन्] वह जो साथ में पढा हो। वह जिसने साथ में विद्या का अध्यनन किया हो। सहाध्यायी।
⋙ सहपान, सहपानक
संज्ञा पुं० [सं०] साथ साथ आसव आदि पीने की क्रिया।
⋙ सहपिंड
संज्ञा पुं० [सं० सहपिण्ड] सपिंड नाम की क्रिया। विशेष दे० 'सपिंडी'।
⋙ सहपिंडक्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं० सहपिण्डक्रिया] साथ साथ पिंडदाना [को०]।
⋙ सहप्रयायी
संज्ञा पुं० [सं० सहप्रयायिन्] साथ साथ यात्रा करनेवाला। सहयात्री [को०]।
⋙ सहप्रस्थायी
संज्ञा पुं० [सं० सहप्रस्थायिन्] सहयात्री [को०]।
⋙ सहबाला †
संज्ञा पुं० [फ़ा शहबाला, शाहबाला] दे० 'शहबाला'।
⋙ सहभार्य
वि० [सं०] सपत्नीक। सभार्य। सस्त्रीक [को०]।
⋙ सहभाव
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथीपन। मित्रता। सख्यता। २. सह- जीवन या युगपत् स्थिति की भावना। सह अस्तित्व की भावना [को०]।
⋙ सहभावी
संज्ञा पुं० [सं०सहभाविन्] १. वह जो सहायता करता हो। सहायक। मददगार। २. सहोदर। ३. वह जो साथ रहता हो। सखा। सहचर।
⋙ सहभू
वि० [सं०] एक साथ उत्पन्न। सहज।
⋙ सहभूत
वि० [सं०] जो साथ हो। सबंद्ध। युक्त [को०]।
⋙ सहभोज
संज्ञा पुं० [सं० सहभोजन] विभिन्न वर्ण के लोगों का एक साथ बैठकर भोजन करना। सामूहिक भोज जिसमें विभिन्न जाति और संप्रदाय के लोग एक साथ संमिलित हों।
⋙ सहभोजन
संज्ञा पुं० [सं०] एक साथ बैठकर भोजन करना। मित्रों के साथ खाना।
⋙ सहभोजी
संज्ञा पुं० [सं० सहभोजिन्] वे जो एक साथ बैठकर खाते हों। साथ भोजन करनेवाले।
⋙ सहम
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. डर। भय। खौफ। मुहा०—सहम चढ़ना = डर होना। भय होना। २. संकोच। लिहाज। मुलाहजा। यौ०—सहमनाक = खौफनाक। भयानक। डरावना।
⋙ सहमत
वि० [सं०] जिसका मत दूसरे के साथ मिलता हो। एक मत का। जैसे,—मैं इस विषय में आपसे सहमत हूँ कि वह बड़ा भारी झूठा है।
⋙ सहमना (१)
क्रि० अ० [फ़ा० सहम + हिं० ना (प्रत्य०)] भय खाना। भयभीत होना। शंकित होना। डरना। उ०—सहमी सभा सकल जनक भए विकल राम लखि कौशिक असीस आज्ञा दई है।—तुलसी (शब्द०)। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना।
⋙ सहमना (२)
वि० [सं० सहमनस्] चतुरता या बुद्धिमत्तापूर्ण [को०]।
⋙ सहमरण
संज्ञा पुं० [सं०] स्त्री का पति के साथ मरने का व्यापार। सती होने की क्रिया। दे० 'सहगमन'।
⋙ सहमातृक
वि० [सं०] जो माता के साथ हो। माता सहित [को०]।
⋙ सहमान
संज्ञा पुं० [सं०] १. ईश्वर का एक नाम। २. वह जो मान या गर्वयुक्त हो। मानी। अभिमानी व्यक्ति।
⋙ सहमाना
क्रि० स० [हिं० सहमना का सक०] किसी को सहमने में प्रवृत्त करना या घबडा़हट में डाल देना। भयभीत करना। डराना। संयो० क्रि०—देना।
⋙ सहमृता
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो अपने मृत पति के शव के साथ जल मरे। सहमरण करनेवाली स्ञी। सती।
⋙ सहयायी
संज्ञा पुं० [सं० सहयायिन्] दे० 'सहपंथा', सहयात्री [को०]।
⋙ सहयोग
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ मिलकर काम करने का भाव। सहयोगी होने का भाव। २. साथ। संग। ३. मदद। सहायता। ४. आधुनिक भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में सरकार के साथ मिलकर काम करने, उसकी काउंसिलों आदि में संमिलित होने और उसके पद आदि ग्रहण करने का सिद्धांत।
⋙ सहयोगवाद
संज्ञा पुं० [सं०] राजनीतिक क्षेत्र में सरकार से सहयोग अर्थात् उसके साथ मिलकर काम करने का सिद्धांत।
⋙ सहयोगवादी
संज्ञा पुं० [सं० सहयोग + वादिन्] राजनीतिक क्षेत्र में सरकार से सहयोग करने अर्थात् उसके साथ मिलकर काम करने के सिद्धांत को माननेवाला।
⋙ सहयोगी
संज्ञा पुं० [सं०] १. सहायक। मददगार। २. वह जो किसी के साथ मिलकर कोई काम करता हो। सहयोग करनेवाला। साथ काम करनेवाला। ३. हमउमर। समवयस्क। ४. वह जो किसी के साथ एक ही समय में वर्तमान हो। समकालीन। ५. आधुनिक भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में सब कामों में सरकार के साथ मिले रहने, उसकी काउंसिलों आदि में संमिलित होने और उसके पद तथा उपाधियाँ आदि ग्रहण करनेवाला व्यक्ति।
⋙ सहर (१)
संज्ञा पुं० [अ०] प्रातःकाल। भोर। सबेरा।
⋙ सहर (२)
संज्ञा पुं० [अ० सेह्ल] जादू। टोना।
⋙ सहर (३)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शहर, शह्ल]दे० 'शहर'।
⋙ सहर † (४)
संज्ञा पुं० [हिं० सिहोर]दे० 'सिहोर' (वृक्ष)।
⋙ सहर † (५)
क्रि० वि० [हिं० सहारना (= सहना) यह सहताना (= सुसताना)]। धीरे। मंद गति से। रुक रुक कर। जैसे,— तुम तो सब काम सहर सहर कर करते हो।
⋙ सहरई †
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शहर, हिं० सहर + ई] नागरिकता। शहरी होने का भाव। शहरीपन। यो०—सहरईपन = सहरई। शहरीपन।
⋙ सहरक्षा
संज्ञा पुं० [सं० सहरक्षस्] तीन प्रकार की यज्ञाग्नियों में से में से एक [को०]।
⋙ सहरगही
संज्ञा स्त्री० [अ० सहर + फ़ा० गह] वह भोजन जो किसी दिन निर्जल व्रत करने के पहले बहुत तड़के या कुछ रात रहे ही किया जाता है। सहरी। विशेष—इन प्रकार का भोजन प्रायः मुसलमान लोग रमजान के दिनों में रोजा रखने पर करते हैं। वे प्रायः ३ बजे रात की उठकर कुछ भोजन कर लेने हैं; और तब दिन भर निर्जल और निराहार रहते हैं। हिंदुओं में स्त्रियाँ प्रायः हरतालिका तीज का व्रत रखने से पहले भी इसी प्रकार बहुत तड़के उठकर भोजन कर लिया करती हैं। और इसे 'सरगही' कहती हैं। दे० 'सरगई'। क्रि० प्र०—खाना।
⋙ सहरना
क्रि० अ० [हिं० सिहरना] दे० 'सिहरना'।
⋙ सहरसा
संज्ञा स्त्री० [सं०] बन मूँग। जंगली मूँग। मुद्गपर्णी।
⋙ सहरा
संज्ञा पुं० [अ०] जंगल। बन। अरण्य। २. सिपाहगोश नामक जंतु। ३. चटियल मैदान। रेगिस्तान। मरुभूमि। यौ०—सहरा आजम = अफ्रीका की विशाल मरुभूमि और जंगल। सहरागर्द = वनेचर। काननचारी। सहरागर्दी = बन परिभ्रमण।वनचर होना। वनेचरत्व। सहरानशी = (१) जंगल का निवासी। जंगली। (२) तपसी।
⋙ सहराई (१)
वि० [अ० सहरा + हिं० आई] जंगली। वन्य। आरण्यक।
⋙ सहराई † (२)
संज्ञा स्त्री० [हिं० सहर (= शहर) + आई]दे० 'सहरई'।
⋙ सहराती †
वि० [फ़ा० शहर + हिं० आती (प्रत्य०)] दे० 'शहराती'। यौ०—सहरातीपन = दे० 'सहरई'।
⋙ सहराना (१)
क्रि० स० [हिं० सहलाना] धीरे धीरे हाथ फेरना। सहलाना। मलना। उ०—बाघ बछानि को गाई जिआवत बाधिन पै सुरभी सुत चोषै। न्योरनि को सहरावत साँप अहारनि दै बेड़है प्रतिपोषै।—गुमान (शब्द०)।
⋙ सहराना पु (२)
क्रि० अ० [हिं० सिहरना] डर से काँपना। सिहर उठना।
⋙ सहरि
संज्ञा पुं० [सं०] १. सूर्य। २. वृष। साँड़।
⋙ सहरिया
संज्ञा पुं० [अ० सहरगही] एक प्रकार का गेहूँ।
⋙ सहरी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शफरी] शफरी मछली। शफरी। उ०— पात भरी सहरी सकल सुत बारे बारे केवट की जाति कछु वेद न पढाइहौं। सब परिवार मेरो याही लागे राजा जू हौं दीन वित्त हीन कैसे, दूसरी गढाइहौं।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सहरी (२)
संज्ञा स्त्री० [अ०] व्रत के दिन बहुत तड़के किया जानेवाला भोजन। सरगही। विशेष दे० 'सहरगही'।
⋙ सहरी (३)
वि० [अ०] प्राभातिक। प्रातःकालीन [को०]।
⋙ सहरुण
संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा के एक घोड़े का नाम।
⋙ सहर्ष
वि० [सं०] हर्षयुक्त। आनंदयुक्त। प्रसन्नतापूर्वक।
⋙ सहल
वि० [अ०, मि० सं० सरल] जो कठिन न हो। सरल। सहज। आसान। उ०—टहल सहल जन महल महल जागत चारिउ जुग जाम सो। देखत दोष न खीझत रीझत सुनि सेवक गुनग्रास सो।—तुलसी (शब्द०)। यौ०—सहल इनकार = काहिल। सुस्त। सहल इनकारी = ढिलाई। आलस्य। सुस्ती।
⋙ सहलगी ‡
संज्ञा पुं० [हिं० साथ + लगना] वह जो साथ हो ले। रास्ते का साथी। हमराही।
⋙ सहलाना (१)
क्रि० स० [हिं० सहर (= धीरे) या अनु०] १. धीरे धीरे किसी वस्तु पर हाथ फेरना। सहराना। सुहराना। जैसे,— तलवा सहलाना, पैर सहलाना। उ०—वारी फेरी होके तलवे सहलाने लगी।—इंशाप्रल्ला खाँ (शब्द०)। २. मलना। ३. गुदगुदाना। संयो० क्रि०—देना।
⋙ सहलाना (२)
क्रि० अ० गुदगुदी होना। खुजलाना। जैसे—बड़ी देर से पैर का तलुआ सहला रहा है।
⋙ सहलोकधातु
संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों के अनुसार एक लोक का नाम। वह लोक जहाँ मनुष्य बसते है। पृथिवी।
⋙ सहवन
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का तेलहन जिससे तेल निकाला जाता है।
⋙ सहवर्ती
वि० [सं० सहवर्तिन्] जो साथ हो। साथ लगा हुआ। साथ का।
⋙ सहवसति
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक साथ रहना [को०]।
⋙ सहवसु
संज्ञा पुं० [सं०] एक असुर का नाम जिसका उल्लेख ऋग्वेद में आता है।
⋙ सहवाच्य
वि० [सं०] जो साथ साथ वाच्य हो या कहा गया हो।
⋙ सहवाद
संज्ञा पुं० [सं०] आपस में होनेवाला तर्क वितर्क। वाद- विवाद। बहस।
⋙ सहवास
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ रहने का व्यापार। संग। साथ। २. मैथुन। रति। संभोग।
⋙ सहवासिक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहवासी' [को०]।
⋙ सहवासी
संज्ञा पुं० [सं० सहवासिन्] १. साथ रहनेवाला। संगी। साथी। मित्र। दोस्त। २. प्रतिवेशी। पड़ोसी।
⋙ सहवीर्य
संज्ञा पुं० [सं०] ताजा नवनीत। सद माखन [को०]।
⋙ सहव्रत
वि० [सं०] समान व्रत या कर्तव्ययुक्त [को०]।
⋙ सहव्रता
संज्ञा स्त्री० [सं०] पत्नी। भार्या। जोरू।
⋙ सहशय
वि० [सं०] साथ में शयन करनेवाला [को०]।
⋙ सहशयान
वि० [सं०] जो साथ में सोया हुआ हो।
⋙ सहशय्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] एकत्र या पास सोने का भाव [को०]।
⋙ सहशिष्ट
वि० [सं०] एक साथ सीखा या शिक्षा पाया हुआ [को०]।
⋙ सहसंजात
वि० [सं० सहसञ्जात] साथ जनमा हुआ [को०]।
⋙ सहसंभव
वि० [सं० सहसम्भव] जो एक साथ उत्पन्न हुए हों। सहज।
⋙ सहसंवाद
संज्ञा पुं० [सं०] परस्पर बातचीत। गपशप।
⋙ सहसंवास
संज्ञा पुं० [सं०] एकत्र रहने का भाव। साथ रहना [को०]।
⋙ सहसंवेग
वि० [सं०] संवेगों से युक्त। उत्तेजनायुक्त। उत्तेजित।
⋙ सहसंसर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] शरीर का संसर्ग। शारीरिक लगाव [को०]।
⋙ सहस पु
वि० [सं० सहस्र] दे० 'सहस्र'।
⋙ सहसकर, सहसकिरन पु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रकिरण] रवि। सूर्य। मरीचिमाली। उ०—सहसकिरनि रूप मन भूला। जहँ जहँ द्दष्टि कमल जनु फूला।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सहसगो पु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रगु] सूर्य। सहस्रांशु।
⋙ सहसजीभ
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रजिह्व] शेषनाग।
⋙ सहसदल
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रदल] कमल। शतपत्र।
⋙ सहसनयन
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रनयन] सहस्र आँखोंवाला, इंद्र। उ०— सहसनयन बिनु लोचन जाने।—मानस, २२१७।
⋙ सहसपत्र
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रपत्र] कमल।
⋙ सहसफण
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रफण] हजार फणोंवाला, शेषनाग।
⋙ सहसबदन
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रवदन] हजार मुखोंवाला, शेषनाग।
⋙ सहसबाहु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रबाहु] दे० 'सहस्त्रबाहु'। उ०—सहस- बाहु सुरनाथ त्रिसंकू। केहि न राजमद दीन्ह कलंकू।—मानस, २।२२८।
⋙ सहसमुख
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रमुख] शेषनाग।
⋙ सहसवदन
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रवदन] शेषनाग।
⋙ सहससीस पु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रशीर्ष] शेषनाग। उ०—जो सहस- सीस अहीस महिधर लखन सचराचर धनी।—मानस, २।१२६।
⋙ सहसा
अव्य० [सं०] एक दम से। एकाएक। अचानक। अकस्मात्। जै़से,—सहसा आँधी आई और चारों ओर अंधकार छा गया। २. बलपूर्वक। बलात्। जबरदस्ती (को०)। ३. उतावली के साथ। बिना विचारे (को०)। ४. हँसता हुआ। मुस्कराता हुआ (को०)।
⋙ सहसाक्षि पु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्राक्ष] सहस्र आँखोंवाला, इंद्र।
⋙ सहसाखी पु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्राक्ष] इंद्र। सहस्राक्ष। उ०—जे पर दोष लखहिं सहसाखी। परहित घृत जिनके मन माखी।—मानस, १।४।
⋙ सहसादृष्ट
संज्ञा० पुं० [सं०] १. दत्तक पुत्र। गोद लिया हुआ लड़का। २. वह जो एकाएक दिखाई पड़ जाय। अकस्मात् दिखाई पड़नेवाला व्यक्ति।
⋙ सहसान (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मयूर। मोर पक्षी। २. यज्ञ।
⋙ सहसान (२)
वि० सहनशील [को०]।
⋙ सहसानन
संज्ञा पुं० [सं० सहस्रानन] सहस्त्र मुखोंवाला, शेषनाग।
⋙ सहसानु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मोर पक्षी। २. धर्मानुष्ठान। यज्ञ [को०]।
⋙ सहसानु (२)
वि० जो सहन करे। चुपचाप सहन कर जानेवाला। क्षमावान् [को०]।
⋙ सहसिद्ध
वि० [सं०] स्वाभाविक। प्राकृतिक। सहज [को०]।
⋙ सहसेवी
वि० [सं० सहसेविन्] किसी के साथ संभोग या मैथुन करनेवाला [को०]।
⋙ सहस्त
वि० [सं०] १. हाथवाला। बाहुयुक्त। २. जो शरत्रास्त चलाने में कुशल हो [को०]।
⋙ सहस्थ, सहस्थित
वि० [सं०] १. साथी। २. साथ रहनेवाला [को०]।
⋙ सहस्य
संज्ञा पुं० [सं०] पूस का महीना। पौष मास।
⋙ सहस्त्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] दस सौ की संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है—१०००।
⋙ सहस्त्र (२)
वि० जो गिनती में दस सौ हो। पाँच सौ का दूना। यौ०—सहस्रगुण = हजार गुना। सहस्त्रघाती। सहस्त्रजलधार = एक पर्वत का नाम। सहस्त्रजिह्न = जिनको हजार जीभ हैं शेषनाग। सहस्त्रधामा। सहस्त्रपरम = हजारों में एक। सहस्त्र- बुद्धि। सहस्त्रभानु। सहस्त्रमरीचि। सहस्त्ररोम। सहस्त्रवदन। सहस्त्रहस्त।
⋙ सहस्त्रक
वि० [सं०] एक हजार तक या एक हजारवाला [को०]।
⋙ सहस्त्रकर
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहस्त्रकांडा
संज्ञा स्त्री० [सं० सहस्त्रकाणडा] सफेद दूब। श्वेत दूर्वा।
⋙ स्त्रहस्त्रकिरण
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य। सहस्त्ररशिम।
⋙ सहस्त्रकेतु
वि० [सं०] हजार केतु या पताकायुक्त [को०]।
⋙ सहस्त्रगु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सूर्य। सहस्त्ररश्मि। २. इंद्र। शक्र जिसे सहस्त्र नेत्र हैं।
⋙ सहस्त्रगु (२)
वि० [सं०] १. हजार गौ वाला। २. सहस्त्र किरणों से युक्त। ३. जिसको हजार नेत्र हों [को०]।
⋙ सहस्त्रगुण
वि० [सं०] हजार गुना [को०]।
⋙ सहस्त्रघाती
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रघातिन्] एक प्रकार का विशेष युद्ध- यंत्र जो हजारों को मारने की शक्ति से युक्त था।
⋙ सहस्त्रचक्षु
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रचक्षुस्] हजार आँखोंवाला, इंद्र।
⋙ सहस्त्रचरण
संज्ञा पुं० [सं०] जिसे हजार पैर हों, सहस्त्रपाद्। विष्णु।
⋙ सहस्त्रचित्त
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।
⋙ सहस्त्रजित्
संज्ञा पुं० [सं०] १. मृगमद। कस्तूरी। २. कृष्ण की पटरानी जांबवती के दस पुत्रों में से एक। ३. विष्णु का एक नाम। ४. वह जो हजार यौद्धाओं को जीतने की शक्ति से युक्त हो [को०]।
⋙ सहस्त्रणी
संज्ञा पुं० [सं०] हजार रथियों की रक्षा या नेतृत्व करनेवाले, भीष्म पितामह।
⋙ सहस्त्रतय (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सहस्त्रतयी] हजार गुना।
⋙ सहस्त्रतय (२)
संज्ञा पुं० एक हजार की संख्या [को०]।
⋙ सहस्त्रदंष्ट्र
संज्ञा पुं० [सं०] पाठीन मछली।
⋙ सहस्त्रदंष्ट्री
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रदंष्ट्रिन्] एक मत्स्य। बोदाल। बेआरी।
⋙ सहस्त्रद
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत बड़ा उदार या दानी व्यक्ति। हजारों गौएँ आति दान करनेवाला। २. बोआरी मछली। पाठीन। पहिना। ३. शिव (को०)।
⋙ सहस्त्रदक्षिण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ जिसमें हजार गौएँ या हजार मोहरें दान दी जाती हैं।
⋙ सहस्त्रदल
संज्ञा पुं० [सं०] पद्म। कमल।
⋙ सहस्त्रदीधिति
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहस्त्रद्दश्
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. इंद्र।
⋙ सहस्त्रदोस्
संज्ञा पुं० [सं०] जिसको हजार भुजाएँ हों, कार्तवीर्यार्जुन का एक नाम [को०]।
⋙ सहस्त्रधा
अव्य० [सं०] १. हजार तरह से। हजार भागों में। २. हजारगुना।
⋙ सहस्त्रवामा
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रधामन्] सूर्य का एक नाम [को०]।
⋙ सहस्त्रधार (१)
वि० [सं०] १. जिसमें हजार धाराएँ हों। हजार धाराओं में बहनेवाला। २. जिसमें हजार धार हों [को०]।
⋙ सहस्त्रधार (२)
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का चक्र [को०]।
⋙ सहस्त्रधारा
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवताओं आदि को स्नान कराने का एक प्रकार का पात्र जिसमें हजार छेद होते हैं। इन्हीं छेदों से जल निकलकर देवता पर पड़ता है।
⋙ सहस्त्रधी
वि० [सं०] बहुत बड़ा बुद्धिमान्। खूब समझदार।
⋙ सहस्त्रधौत
वि० [सं०] हजार बार धोया हुआ (घृत आदि जो ओषधि के काम में आता है।)
⋙ सहस्त्रनयन
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. इंद्र।
⋙ सहस्त्रनाम
संज्ञा पुं० [सं०] वह स्तोत्र जिसमें किसी देवता के हजार नाम हों। जैसे,—विष्णु सहस्त्रनाम, शिव सहस्त्रनाम आदि।
⋙ सहस्त्रनामा
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रनामन्] १. विष्णु। २. शिव। ३. अमलबेंत।
⋙ सहस्त्रनेत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र। २. विष्णु।
⋙ सहस्त्रपति
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो हजार गाँवों का स्वामी और शासक हो।
⋙ सहस्त्रपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. कमल। कमलपत्र। २. एक पहाड़ का नाम।
⋙ सहस्त्रपर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] १. शर। तीर। २. एक प्रकार का वृक्ष।
⋙ सहस्त्रपर्वा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सफेद दूब। श्वेत दूर्वा।
⋙ सहस्त्रपाद्
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. पुरुष (को०)। ३. शिव। ४. ब्रह्मा (को०)। ५. एक ऋषि का नाम जिसका उल्लेख महाभारत में है।
⋙ सहस्त्रपाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. सूर्य। २. विष्णु। ३. सारस। कारंडव पक्षी।
⋙ सहस्त्रबाहु
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. कार्त्तवीर्यार्जुन, जिसके विषय में पुराणों में कई कथाएँ हैं। विशेष—यह क्षत्रिय राजा कृतवीर्य का पुत्र था। इसका दूसरा नाम हैहय था। इसकी, राजधानी माहिष्मती में थी। एक बार यह नर्म्दा में स्त्रियों सहित जलक्रीड़ा कर रहा था। उस समय इसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नदी की धारा रोक दी जिसके कारण समीप में शिवपूजा करते हुए रावण की पूजा में विध्न पड़ा। उसने क्रोद्ध होकर इससे युद्ध किया, पर परास्त हुआ। एक बार यह अपनी सेना सहित जमदग्नि मुनि के आश्रम के निकट ठहरा था। मुनि के पास कपिला कामधेनु थी। उन्हों ने कार्त्तिकेय का अच्छी तरह से आदर किया। राजा ने लालच में आकर मुनि से कामधेनु छीन ली। जमदग्नि ने राजा को रोका और वे मारे गए। कार्त्तिकेय गौ लेकर चला पर वह स्वर्ग चली गई। परशुराम उस समय आश्रम में नहीं थे। लौटने पर उन्होंने अपने पिता के मारे जाने का हाल सुना, तो उन्होंने कार्त्तिकेय को मार डालने की प्रतिज्ञा की और अंत में मार भी डाला। ३. विष्णु का एक नाम (को०)। ४. राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर का नाम।
⋙ सहस्त्रबुद्धि
वि० [सं०] सहस्त्रधी। अत्यंत चतुर [को०]।
⋙ सहस्त्रभागवती
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवी की एक मूर्ति का नाम।
⋙ सहस्त्रभानु
संज्ञा पुं० [सं०] जिसे हजारों किरण हो। सहस्त्र किरणों वाला, सूर्य [को०]।
⋙ सहस्त्रभित्
संज्ञा पुं० [सं०] १. अमलबेंत। २. कस्तूरी। मृगमद।
⋙ सहस्त्रभुज
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसे हजार भुजाएँ हों। दे० 'सहस्त्रबाहु'। २. विष्णु (को०)।
⋙ सहस्त्रभुजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवी का वह रूप जो उन्होंने महिषासुर को मारने के लिये धारण किया था। उस समय उनकी हजार भुजाएँ हो गई थीं। इसी से उनका यह नाम पड़ा था।
⋙ सहस्त्रमरीचि
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहस्त्रमूर्ति
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।
⋙ सहस्त्रमूर्द्धा
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रमूर्द्धन्] १. विष्णु। २. शिव।
⋙ सहस्त्रमूलिका, सहस्त्रमूली
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कांड पत्री। २. बड़ी दंती। ३. मूसाकानी। ४. बड़ी शतावर। ५. बनमूँग। मद्गपर्णी।
⋙ सहस्त्रमौलि
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. अनंतदेव का एक नाम।
⋙ सहस्त्रयाजी
वि० [सं० सहस्त्रयाजिन्] सहस्त्र गौ की दक्षिणा से युक्त यज्ञ करानेवाला।
⋙ सहस्त्रयुग
संज्ञा पुं० [सं०] एक हजार युगों की अवधि या काल।
⋙ सहस्त्ररश्मि
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहस्त्ररुच्
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहस्त्ररश्मि' [को०]।
⋙ सहस्त्ररोम
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्ररोमन्] ऊर्ण वस्त्र। कंबल [को०]।
⋙ सहस्त्रलोचन
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र। २. विष्णु [को०]।
⋙ सहस्त्रवक्त्र
वि० [सं०] जिसे हजार मुख हों।
⋙ सहस्त्रवदन
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम [को०]।
⋙ सहस्त्रवाक
संज्ञा पुं० [सं०] वह (ग्रंथ आदि) जिसमें हजार छंद हों [को०]।
⋙ सहस्त्रवाच्
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम।
⋙ सहस्त्रवीर्य
वि० [सं०] बहुत बड़ा बलवान्। बहुत ताकतवर।
⋙ सहस्त्रवीर्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दूब। २. बड़ी शतावर।
⋙ सहस्त्रवेध
संज्ञा पुं० [सं०] १. चूक नामक खटाई। २. काँजी। ३. हींग।
⋙ सहस्त्रवेधिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] कस्तूरी।
⋙ सहस्त्रवेधी (१)
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रवेधिन्] १. हींग। २. अम्लबेंत। ३. कस्तूरी।
⋙ सहस्त्रवेधी (२)
वि० हजारों का वेध करनेवाला।
⋙ सहस्त्रशः
अव्य० [सं० सहस्त्रशस्] हजारों की संख्या में [को०]।
⋙ सहस्त्रशाख
संज्ञा पुं० [सं०] वेद जिसकी हजार शाखाएँ हैं।
⋙ सहस्त्रशिखर
संज्ञा पुं० [सं०] विध्य पर्वत का एक नाम।
⋙ सहस्त्रशिर
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रशिरस्] दे० 'सहस्त्रशीर्ष'।
⋙ सहस्त्रशीर्ष
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रशीर्षन्] सहस्त्र शिरोंवाला। जिसे हजार शिर हों। परम पुरुष। विष्णु।
⋙ सहस्त्रशीर्षा
वि० [सं० सहस्त्रशीर्षन्] दे० 'सहस्त्रशीर्ष'।
⋙ सहस्त्रश्रवण
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु।
⋙ सहस्त्रश्रुति
संज्ञा पुं० [सं०] पुरुणानुसार जंबू द्वीप के एक वर्ष पर्वत का नाम।
⋙ सहस्त्रसम
वि० [सं०] सहस्त्र वर्ष पर्यंत चलने या रहनेवाला।
⋙ सहस्त्रसाव
संज्ञा पुं० [सं०] अश्वमेध यज्ञ।
⋙ सहस्त्रसाव्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का अयन।
⋙ सहस्त्रसीस पु
वि० पुं० [सं० सहस्त्र + शीर्ष, प्रा० सीस] हजार शिरवाला। जिसे हजार शिर हों। उ०—सेस सह्स्त्रसीस जगकारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन।—मानस, १।१७।
⋙ सहस्त्रस्तुति
संज्ञा स्त्री० [सं०] भागवत के अनुसार एक नदी का नाम।
⋙ सहस्त्रस्त्रोत
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार वर्ष पर्वत का नाम।
⋙ सहस्त्रहर्यश्व, सहस्त्रर्याश्व
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र का रथ।
⋙ सहस्त्रहस्त
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक रूप [को०]।
⋙ सहस्त्रांक
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्राङ्क] सूर्य [को०]।
⋙ सहस्त्रांगी
संज्ञा स्त्री० [सं० सहस्त्राङ्गिन्] १. मोरशिखा। मयूरशिखा। २. मधुपीलु वृक्ष। पीलू।
⋙ सहस्त्रांशु
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहस्त्रांशुज
संज्ञा पुं० [सं०] शनि ग्रह।
⋙ सहस्त्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मात्रिका। अंबष्ठा। मोइया। २. मोर- शिखा। मयूरशिखा।
⋙ सहस्त्राक्ष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सहस्त्र आँखोंवाला, इंद्र। २. परम पुरुष। विष्णु। ३. देवी भागवत के अनुसार एक पीठस्थान। इस स्थान की देवी उत्पलाक्षी कही गई हैं।
⋙ सहस्त्राक्ष (२)
वि० १. जिसे हजार नेत्र हों। हजार आखोंवाला। २. सावधान। सतर्क [को०]।
⋙ सहस्त्राख्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम। विंध्य पर्वत [को०]।
⋙ सहस्त्रात्मा
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रत्मन्] ब्रह्मा।
⋙ सहस्त्राधिपति
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो किसी राजा की ओर से एक हजार गाँवों का शासन करने के लिये नियुक्त हो।
⋙ सहस्त्रानन
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. शेषनाग। सहस्त्रसीस।
⋙ सहस्त्रानीक
संज्ञा पुं० [सं०] राजा शतानीक के पुत्र का नाम।
⋙ सहस्त्राब्द, सहस्त्राब्दी
संज्ञा पुं० [सं०] हजार वर्षों का काल। एक हजार वर्ष का समय। सहस्त्रायुष्।
⋙ सहस्त्रायु
वि० [सं०] सहस्त्र वर्षों की आयु पानेवाला। सहस्त्र वर्ष का।
⋙ सहस्त्रायुतीय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम।
⋙ सहस्त्रार
संज्ञा पुं० [सं०] १. हजार दलोंवाला एक प्रकार का कल्पित कमल?। कहते हैं कि यह कमल मनुष्य के मस्तक में उलटा लगा रहता है; और इसी में सृष्टि, स्थिति तथा लयवाला परविंदु रहता है। २. जैनों के अनुसार बारहवें स्वर्ग का नाम।
⋙ सहस्त्रारज
संज्ञा पुं० [सं०] जैनों के एक देवता का नाम।
⋙ सहस्त्रार्चिस्
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव का नाम। २. सहस्त्र किरणोंवाला, सूर्य।
⋙ सहस्त्रावर
संज्ञा पुं० [सं०] १. हजार पण से नीचे का जुरमाना। २. वह अर्थदंड या जुरमाना जो ५०० से एक हजार पण के अंदर हो [को०]।
⋙ सहस्त्रावर्तक
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम।
⋙ सहस्त्रावर्ता
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवी की एक मूर्ति का नाम।
⋙ सहस्त्रास्य
संज्ञा पुं० [सं०] हजार मुखवाले, विष्णु। २. शेषनाग या अनंत का एक नाम।
⋙ सहस्त्री (१)
संज्ञा पुं० [सं० सहस्त्रिन्] १. वह वीर या नायक जिसके पास हजार योद्धा, घोड़ा या हाथी आदि हों। २. हजार व्यक्तियों का समूह या दल (को०)।
⋙ सहस्त्री (२)
वि० १. हजारवाला। जिसके पास हजार हो। २. जिसने सहस्त्रावर अर्थदंड अदा किया हो। ३. एक सहस्त्र तक का। जिसकी सीमा एक सहस्त्र हो [को०]।
⋙ सहस्त्रक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] हजार आँखोंवाला—इंद्र। सहस्त्राक्ष [को०]।
⋙ सहस्वान्
वि० [सं० सहस्वत्] शक्तिशील। ताकतवर।
⋙ सहांपति
संज्ञा पुं० [सं० सहाम्पति] १. ब्रह्मा। पितामह। २. एक नाग का नाम। ३. एक बोधिसत्व [को०]।
⋙ सहा (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. घीकुआर। ग्वारपाठा। २. बनमूँग। ३. दंडोत्पल। ४. सफेद कटसरैया। ५. ककही या कंघी नाम का वृक्ष। ६. सर्पिणी। ७. रासना। ८. सत्यानाशी। ९. सेवती। १०. हेमंत ऋतु। ११. अगहन मास। १२. मषवन। १३. देवताड़ वृक्ष। १४. मेंहदी।
⋙ सहा (२)
संज्ञा [सं० सहस्] १. धरित्री। पृथिवी। २. धृतकुमारी। घी- कुआर [को०]।
⋙ सहाइ पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० सहाय्य] सहायक। मददगार।
⋙ सहाइ पु (२)
संज्ञा स्त्री० सहायता। मदद। उ०—(क) दीन्ही है रजाइ राम पाइ सो सहाइ लाल लषन समर्थ बीर हेरि हेरि मारि है। —तुलसी ग्रं०, पृ० २३३। (ख) हरि जू ताकी करी सहाइ।—सूर०, ७।२।
⋙ सहाई पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० सहाय्य] सहायक। मददगार। उ०— अति आरति कहि कथा सुनाई। करहु कृपा करि होहु सहाई।—मानस, १।१३२।
⋙ सहाई पु (२)
संज्ञा स्त्री० सहायता। मदद।
⋙ सहाउ पु
संज्ञा पुं० [सं० सहाय, प्रा० सहाउ] दे० 'सहाय'।
⋙ सहाचर
संज्ञा पुं० [सं०] १. पीली कटसरैया। पीली झिंटी। २. दे० 'सहचर'।
⋙ सहाद्वय
संज्ञा पुं० [सं०] बनमूँग। जंगली मूँग।
⋙ सहाध्ययन
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ साथ या मिलकर पढ़ना। २. साथ साथ पढ़ने का भाव। सहपाठी होना। ३. समान विषय या अध्ययन [को०]।
⋙ सहाध्यायी
संज्ञा पुं० [सं० सहाध्यायिन्] १. वह जो साथ पढ़ा हो। सहपाठी। २. वह जो समान या एक ही विषय का अध्ययन करता हो।
⋙ सहाना (१)
संज्ञा पुं० [सं० शोभन या फ़ा० शाह] एक प्रकार का राग। विशेष दे० 'शहाना' (१)।
⋙ सहाना पु (२)
वि० [फ़ा० शहानह्, शहाना] शाही। राजसी।
⋙ सहाना † (३)
क्रि० स० [सं० सहन, हिं० सहना] बर्दाश्त करना। सहने के लिये प्रेरित करना।
⋙ सहानी (१)
वि० [फ़ा० शाहाना] पीलापन लिए हुए लाल रंग का जैसे,—सहानी चूड़ियाँ। दे० 'शहाना' के यौ०।
⋙ सहानी (२)
संज्ञा पुं० एक प्रकार का रंग जो पीलापन लिए लाल होता है।
⋙ सहानुगमन †
संज्ञा पुं० [सं०] स्त्री का अपने पति के शव के साथ जल मरना। सती होना। सहगमन।
⋙ सहानुसरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ साथ अथवा समान रूप से अनुसरण करना। २. सहगमन।
⋙ सहानुभूति
संज्ञा स्त्री० [सं०] किसी को दुःखी देखकर स्वयं दुःखी होना। दूसरे के कष्ट से दुःखी होना। हमदर्दी। क्रि० प्र०—करना।—दिखाना।—रखना।
⋙ सहान्य
संज्ञा पुं० [सं०] पर्वत [को०]।
⋙ सहापवाद
वि० [सं०] अपवाद युक्त। अहमति युक्त [को०]।
⋙ सहाब (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शहाब] एक प्रकार का गहरा लाल रंग। दे० 'शहाब'।
⋙ सहाब (२)
संज्ञा पुं० [अ०] मेघ। पर्जन्य [को०]।
⋙ सहावत
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. मैत्री। दोस्ती। मित्रता। २. सहायता। मदद [को०]।
⋙ सहाय
संज्ञा पुं० [सं०] १.सहायता। मदद। सहारा। २. आश्रय। भरोसा। ३. सहायक। मददगार। ४. मित्रता। मैत्री (को०)। ५. एक प्रकार की वनस्पति या गंध द्रव्य। ६. एक प्रकार का हंसा या चक्रवाक पक्षी। ७. शिव का एक नाम (को०)। ८. मित्र। साथी (को०)। यौ०—सहायकरण = सहायता करना। सहायकृत् = संगी। जो मदद करे। सहायकृत्य = सहायता करना।
⋙ सहायक
वि० [सं०] १. सहायता करनेवाला। मददगार। २. (वह छोटी नदी) जो किसी बड़ी नदी में मिलती हो। जैसे,—यमुना भी गंगा की सहायक नदियों में से एक है। ३. किसी की अधीनता में रहकर काम में उसकी सहायता करनेवाला। जैसे,—सहायक संपादक।
⋙ सहायता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसी के कार्यसंपादन में शारीरिक या और किसी प्रकार योग देना। ऐसा प्रयत्न करना जिसमें किसी का काम कुछ आगे बढ़े। मदद। सहाय। जैसे,—मकान बनाने में सहायता देना, किताब लिखने में सहायता देना। २. मित्रों का समूह (को०)। ३. वह धन जो किसी कार्य को आगे बढ़ाने के लिये दिया जाय। मदद। जैसे,—उन्हें लड़की के ब्याह में कई जगहों से सौ सौ रुपए की सहायता मिली। क्रि० प्र०—करना।—पाना।—देना।—मिलना।—होना।
⋙ सहायत्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. मित्रता। मैत्री। २. मित्र मंडल। मित्र- समूह। ३. सहायता मदद [को०]।
⋙ सहायन
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ देना या रहना। २. अनुगमन। साथ जाना [को०]।
⋙ सहायवान्
वि० [सं० सहायवत्] १. मित्रवाला। संगी साथी से युक्त। २. सहायताप्राप्त। जिसे मदद मिली हो [को०]।
⋙ सहायी (१)
वि० [सं० सहायिन्] [वि० स्त्री० सहायिनी] साथ जाने या अनुगमन करनेवाला।
⋙ सहायी (२)
संज्ञा पुं० [सं० सहाय + ई (प्रत्य०)] १. सहायक। मददगार। सहायता करनेवाला। २. सहायता। मदद। सहाय।
⋙ सहार (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. आम का पेड़। आम्रवृक्ष। सहकार। २. महाप्रलय।
⋙ सहार (२)
संज्ञा पुं० [हिं० सहना] १. बर्दाश्त। सहनशीलता। २. सहन करने की क्रिया।
⋙ सहारना †
क्रि० स० [सं० सहन, हिं० सँभाल या सहाय] १. सहन करना। बर्दाश्त करना। सहना। उ०—कठिन बचन सुनि श्रवन जानकी सकी न बचन सहार। तृण अंतर दै दृष्टि निरौंछी दई नैन जलधार।—सूर (शब्द०)। २. अपने ऊपर भार लेना। सँभालना। ३. गवारा करना।
⋙ सहारा
संज्ञा पुं० [सं० सहाय] १. मदद। सहायता। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना।—लेना। २. जिसपर बोझ डाला जा सके। आश्रय। आसरा। २. भरोसा। ४. इतमीनान। मुहा०—सहारा पाना = मदद पाना। सहारा देना = (१) मदद देना। (२) टेक देना। (३) आसरा देना। (४) रोकना। सहारा ढूँढ़ना = आसरा ताकना। वसीला ढूँढ़ना।
⋙ सहारोग्य
वि० [सं०] स्वस्थ। रोगरहित [को०]।
⋙ सहार्थ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सहयोग। २. साधारण या समान विषय। ३. आनुषंगिक विषय [को०]।
⋙ सहार्थ (२)
वि० १. समान अर्थ युक्त। २. समान उद्देश्य, वस्तु या विषयवाला [को०]।
⋙ सहार्द
वि० [सं०] हृदयवाला। स्नेही [को०]।
⋙ सहार्ध
वि० [सं०] आधे के साथ। जिसमें आधा और हो [को०]।
⋙ सहालग
संज्ञा पुं० [सं० साहित्य (= संबंध)] १. वह वर्ष जो हिंदू ज्योतिषियों के कथनानुसार शुभ माना जाता है। २. वे मास या दिन जिसमें विवाह के मुहूर्त हों। ब्याह शादी के दिन।
⋙ सहालाप
संज्ञा पुं० [सं०] किसी के साथ बातचीत [को०]।
⋙ सहाव
वि० [सं०] १. 'हाव' से युक्त। २. कामासक्त। विलासी [को०]।
⋙ सहावल
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाकूल] लोहे या पत्थर का वह लटकन जिसे तागे से लटकाकर दीवार की सिधाई नापी जाती हैं। शाकूल। लटकन। सनसाल। विशेष दे० 'साहुल'।
⋙ सहासन
संज्ञा पुं० [सं०] एक ही आसन पर बैठना [को०]।
⋙ सहासिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] साथ साथ बैठना। सहगोष्ठी [को०]।
⋙ सहिंजन
संज्ञा पुं० [सं० शोभाञ्जन] दे० 'सहिजन'।
⋙ सहिजन
संज्ञा पुं० [सं० शोभाञ्जन] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो भारत के प्रायः सभी प्रांतों में उत्पन्न होता है, पर अवध में अधिक देखा जाता है। शोभांजन। मुनगा। विशेष—इसकी पाल मोटी होती है, पर लकड़ी अधिक कड़ी नहीं होती। पत्ते गुलतुर्रा के पत्तों की तरह होते हैं। कर्तिक मास से वसंत ऋतु के आरंभ तक इसमें फूल रहते हैं। इसके फूल एक इंच के घेरे में गोलाकार सफेद रंग के होते हैं और बहुत से एक साथ गुच्छे में लगते हैं। इसके फल दस इंच से बीस इंच लंबी फलियों के आकार के होते हैं जिनकी मोटाई एक अंगुल से अधिक नहीं होती। ये फल तरकारी के काम में आते हैं। इसके बीज सफेद रंग के और तिकोने होते हैं। बीजों से उत्पन्न होने के अतिरिक्त यह डाल लगा देने से भी लग जाता है और शीघ्र फलने लगता है। यह ओषधि के काम में भी लाया जाता है। कहीं कहीं नीले रंग के फूलोंवाला सहिजन भी पाया जाता है।
⋙ सहिजानी पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० संज्ञान] निशानी। चिह्न। पहचान।
⋙ सहित (१)
अव्य० [सं०] १. साथ। समेत। संग। युक्त। जैसे,—सीता और लक्षमण सहित रामजी वन गए थे।
⋙ सहित (२)
वि० १. युक्त। साथ। २. बर्दाश्त या सहन किया हुआ। झेला या भोगा हुआ। ३. (ज्यौतिष) किसी के साथ लगा हुआ या संयुक्त [को०]।
⋙ सहित (३)
संज्ञा पुं० वह धनुष जो ३०० पल का वजन सँभाल सकता हो [को०]।
⋙ सहितत्व
संज्ञा पुं० [सं०] सहित का भाव या धर्म।
⋙ सहितव्य
वि० [सं०] सहन करने के योग्य। जो सहा जा सके।
⋙ सहिता
वि० [सं० सहितृ] सहनेवाला। सहनशील [को०]।
⋙ सहित्र
संज्ञा पुं० [सं०] सहन करने की क्षमता। धीरता। धैर्य [को०]।
⋙ सहिथो पु
संज्ञा स्त्री० [सं० शक्ति, हिं० सैथी, सैंहथी] बरछी। साँग।
⋙ सहिदान पु †
संज्ञा पुं० [सं० संज्ञान] चिह्न। पहचान। निशान।
⋙ सहिदानी पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० संज्ञान] चिह्न। पहचान। निशान। उ०—(क) सुनो अनुज इह बन इतननि मिली जानकि प्रिया हरी। कुछ इक अंगनि की सहिदानी मेरी दृष्टि परी। कटी केहरि कोकिल वाणी अरु शशि मुख प्रभा खरी। मृग मूसी नैनन की शोभा जाहि न गुप्त करी।—सूर (शब्द०)। (ख) जारि वारि कै विधूम वारिधि बुताई लूम नाइ माथो पगनि भो ठा्ढो कर जोरि कै। मातु कृपा कीजै सहिदानी दीजै सुनि सिय दीन्ही है असीस चारु चूड़ामनि छोरि कै।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सहिबाला †'
संज्ञा पुं० [फ़ा० शहबाला] दे० 'शहबाला'।
⋙ सहिम
वि० [सं०] बर्फ युक्त। बर्फ के समान ठंढा [को०]।
⋙ सहिर
संज्ञा पुं० [सं०] पर्वत। पहाड़ [को०]।
⋙ सहिरिया †
संज्ञा स्त्री० [देश०] बसंत की वह फसल जो बिना सींचे होती है, सींची नहीं जाती।
⋙ सहिष्ठ
वि० [सं०] बलवान्। ताकतवर।
⋙ सहिष्णु (१)
वि० [सं०] जो कष्ट या पीड़ा आदि सहन कर सके। सहनशील। बरदाश्त करनेवाला।
⋙ सहिष्णु (२)
संज्ञा पुं० १. विष्णु। उपेंद्र। २. हरिवंश में उल्लिखित एक ऋषि। ३. पुलह के एक पुत्र का नाम। ४. छठे मन्वंतर के सप्तर्षियों में एक का नाम [को०]।
⋙ सहिष्णुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सहिष्णु होने का भाव। सहनशीलता। २. क्षमा।
⋙ सहिष्णुत्व
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहिष्णुता'।
⋙ सही पु (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सखी, प्रा० सही] सखी। सहेली।
⋙ सही (२)
वि० [फ़ा०] सीधा। ऋजु। सरल। जैसे,—सहीकद = सीधा। सीधे आकार का [को०]।
⋙ सही (३)
वि० [फ़ा० सहीह] १. स्त्य। सच। २. प्रामाणिक। ठीक। यथार्थ। ३. जो पलत न हो। शुद्ध। ठीक। ४. स्वस्थ। तंदुरुस्त। चंगा (को०)। ५. पूर्ण। पूरा। समूचा। साबित (को०)। मुहा०—सही पड़ना = ठीक उतरना। सच होना। प्रमाणित होना। सही भरना = तसलीम करना। मान लेना। उ०— बानी बिधि गौरि हर सेसहूँ गनेस कही सही भरी लोमस भुसुंडिबहु वारिषो।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सही (४)
संज्ञा स्त्री० [सं० साक्ष्य या साक्षी, प्रा० सक्खी ?] (स्वीकृति- सूचक) हस्ताक्षर। दस्तखत। उ०—मुदित माथ नावत बनी तुलसी अनाथ की, परी रघुनाथ सही है।—तुलसी ग्रं०, पृ० ५९५। क्रि० प्र०—करना।—लेना।
⋙ सहीसबूत
संज्ञा पुं० [फ़ा० सहीसाबित] साक्षी। प्रमाण। सबूत।
⋙ सहीसलामत
वि० [फ़ा०] १. स्वस्थ। आरोग्य। भला चंगा। तंदुरुस्त। २. जिसमें कोई दोष या न्यूनता न आई हो।
⋙ सहीह
वि० [फ़ा०] दे० 'सही' [को०]।
⋙ सहीसालिम
वि० [फ़ा०] १. दे० 'सहीसलामत'। २. जैसे का तैसा। ज्यों का त्यों। जैसा था वैसा ही। उ०—बर्छी टूटी हुई थी लेकीन राइफल सहीसालिम थी।—रजिया०, पृ० ३७८।
⋙ सहुँ
अव्य० [सं० सम्मुख] १. संमुख। सामने। २. ओर। तरफ। उ०—जा सहुँ हेर जाइ सो मारा। गिरिवर ठरहिं भौंह जो टारा।—जायसी (शब्द०)।
⋙ सहुरि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य।
⋙ सहुरि (२)
संज्ञा स्त्री० पृथ्वी। धरित्री।
⋙ सहूर †
संज्ञा पुं० [अ० शुऊर, शऊर] दे० 'शऊर'।
⋙ सहूलत
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] दे० 'सहूलियत'।
⋙ सहूलियत
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. आसानी। सुगमता। जैसे,—अगर आप आ जायँगे, तो मुझे अपने काम में और सहूलियत हो जायगी। २. अदब। कायदा। शऊर। जैसे,—अब तुम बड़े हुए कुछ सहूलियत सीखो।
⋙ सहृदय (१)
वि० [सं०] १. जो दूसरे के दुःख सुख आदि समझने की योग्यता रखता हो। समवेदनायुक्त पुरुष। २. दयालु। दया- वान्। ३. रसिक। ४. सज्जन। भला आदमी। ५. सुस्वभाव। अच्छे मिजाजवाला। ६. प्रसन्नचित। खुशदिल।
⋙ सहृदय (२)
संज्ञा पुं० १. विद्वान् व्यक्ति। २. गुणों की समझ रखने और सराहना करनेवाला व्यक्ति [को०]।
⋙ सहृदयता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सहृदय होने का भाव। २. सौजन्य। ३. रसिकता। ४. दयालुता।
⋙ सहृल्लेख (१)
वि० [सं०] संदेहास्पद। आपत्तिजनक। संदिग्ध [को०]।
⋙ सहृल्लेख (२)
संज्ञा पुं० संदिग्ध खाद्य [को०]।
⋙ सहेज †
संज्ञा पुं० [देश०] वह दही जो दूध को जमाने के लिये उसमें छोड़ा जाता है। जामन।
⋙ सहेजना
क्रि० स० [अ० सही ?] १. भली भाँति जाँचना। अच्छी तरह से देखना कि ठीक या पूरा है या नहीं। सँभालना। जैसे,—रुपए सहेजना। कपड़े सहेजना। संयो० क्रि०—देना।—लेना। २. अच्छी तरह कह सुनकर सिपुर्द करना। क्रि० प्र०—देना।
⋙ सहेज्वाना †
क्रि० स० [हिं० सहेजना का प्रेर० रूप] सहेजने का काम दूसरे से करवाना।
⋙ सहेट पु
संज्ञा पुं० [हिं० सहेत, सहेट] मिलने की जगह। दे० 'सहेत'। उ०—भौंन ते निकसि वुषभानु की कुमारी देख्यो ता समै सहेट को निकूंज गिरयो तीर को—मतिराम (शब्द०)।
⋙ सहेटी पु
वि० स्त्री० [हिं० सहेट] १. संकेत स्थल की ओर जाती रहनेवाली। घुमक्कड़। घूमनेवाली। उ०—आड़ न मानति चाड़ भरी उधरी ही रहै अति लाग लपेटी। ढीठि भई मिलि ईठि सुजान न देहि क्यौं पीठि जु दिठि सहेटी।—घनानंद, पृ० १३। २. संकेतस्थल पर जानेवाली। अभिसार करनेवाली।
⋙ सहेत पु †
संज्ञा पुं० [सं० सङ्केत] वह निर्दिष्ट स्थान जहाँ प्रेमी प्रेमिका मिलते हैं। अभिसार का पूर्वनिर्दिष्ट या निश्च्ति स्थान। मिलने की जगह। .
⋙ सहेतु
वि० [सं०] हेतु युक्त। सहेतुक। कारणयुक्त। हे्तु सहित। सकारण [को०]।
⋙ सहेतुक
वि० [सं०] जिसका कोई हेतु हो। जिसका कुछ उद्देश्य या मतलब हो। जैसे,—यहाँ यह पद सहेतुक आया है, निरर्थक नहीं है।
⋙ सहेरवा ‡
संज्ञा पुं० [देश०] हरसिंगार या पारिजात का वृक्ष।
⋙ सहेल † (१)
संज्ञा पुं० [देश०] वह सहायता जो असामी या काश्तकार अपने जमींदार को उसके खुदकाश्त खेत को काश्त करने के बदले में देता है। यह सहायता प्रायः बेगारी और बीज आदि के रूप में होती है।
⋙ सहेल (२)
वि० [सं०] क्रीड़ायुक्त। हेलायुक्त। चिंतारहित। लापर- वाह [को०]।
⋙ सहेलरी पु †
संज्ञा स्त्री० [हिं० सहेली] दे० 'सहेली'।
⋙ सहेलवाल
संज्ञा पुं० [देश०] वैश्यों की एक जाति।
⋙ सहेली
संज्ञा स्त्री० [सं० सह + हिं० एली (प्रत्य०)] साथ में रहनेवाली स्त्री। संगिनी। सखी। २. अनुचरी। पारिचारिका। दासी।
⋙ सहैया पु † (१)
संज्ञा पुं० [हिं० सहाय] सहायता करनेवाला। सहायक।
⋙ सहैया (२)
वि० [सं० सहन] सहनेवाला। सहन करनेवाला।
⋙ सहोक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का काव्यालंकार जिसमें 'सह', 'संग', 'साथ' आदि शब्दों का व्यवहार होता है और अनेक कार्य साथ ही होते हुए दिखाए जाते हैं। प्रायः इन अलंकारों में क्रिया एक ही होती है। जैसे,—बल प्रताप वीरता बड़ाई। नाक, पिनाकहिं संग सिधाई।—तुलसी (शब्द०)।
⋙ सहोजा
संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि। २. इंद्र।
⋙ सहोटज
संज्ञा पुं० [सं०] पर्णकुटी। ऋषियों आदि के रहने की पर्णकुटी।
⋙ सहोढ़
संज्ञा पुं० [सं० सहोढ] १. बारह प्रकार के पुत्रों में से एक प्रकार का पुत्र। गर्भ की अवस्था में ब्याही हुई कन्या का पुत्र। वह पुत्र जिसकी माता विवाह से पूर्व ही गर्भवती रही हो। २. वह चोर जो चोरी के माल के साथ पकड़ा गया हो (को०)।
⋙ सहोढ़ज
संज्ञा पुं० [सं० सहोढज] दे० 'सहोढ़'-१।
⋙ सहोणी पु †
संज्ञा स्त्री० [सं०] सखी। सहेली।
⋙ सहोत्थ
वि० [सं०] जो सहज या स्वाभाविक हो [को०]।
⋙ सहोत्थायी
वि० [सं० सहोत्थायिन्] साथ साथ उठने या उन्नति करनेवाला [को०]।
⋙ सहोदक
वि० [सं०] साथ साथ तर्पण करनेवाला। दे० 'समा- नोदक' [को०]।
⋙ सहोदर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सहोदरा] एक ही उदर से उत्पन्न संतान। एक माता के पुत्र।
⋙ सहोदर (२)
वि० १. सगा। अपना। खास (क्व०)। २. जो एक माता उदर से पैदा हों।
⋙ सहोपमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का अलंकार। उपमा। अलंकार काएज भेद।
⋙ सहोबल
संज्ञा पुं० [सं०] भयंकर क्रूरता या बर्बरता [को०]।
⋙ सहोर (१)
संज्ञा पुं० [सं० शाखोट] एक प्रकार का वृक्ष। सिहोर। शाखोट। विशेष—इसका वृक्ष प्रायः जंगली प्रदेशों में होता है और विशेषतः शुष्क भूमि में अधिक उत्पन्न होता है। यह अत्यंत गठीला और झाड़दार होता है। प्रायः यह सदा हराभरा रहता है पत- झड़ में भी इसके पत्ते नहीं गिरते। इसकी छाल मोटी होती है और रंग भूरा खाकी होता है। इसकी लकड़ी सफेद और साधारणतः मजबूत होती है। इसके पत्ते हरे छोटे और खुर्दुर होते हैं। फाल्गुन मास तक इसका वृक्ष फूलता फलता है और वैशाख से आष्ढ़ तक फल पकते हैं। फूल आध इंच लंबे, गोल और सफेद या पीला- पन लिए होते हैं। इसके गोल फल गूदेदार होते हैं और बीज गोलाकार होते हैं। इसकी टहनियों को काटकर लोग दातून बनाते हैं। चिकित्साशास्त्र के अनुसार यह रक्तपित्त, बवासीर, वात, कफ और अतिसार का नाशक है। पर्या०—शाखोट। भूतावास। पीतफलक। पिशाचद।
⋙ सहोर (२)
वि० [सं०] अच्छा। उत्कृष्ट। उत्तम [को०]।
⋙ सहोर (३)
संज्ञा पुं० महात्मा। साधु। संत [को०]।
⋙ सहोवर ‡
संज्ञा पुं० [सं० सहोदर] सगा भाई। एक माता के पुत्र।
⋙ सहोवल
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहोबल'।
⋙ सह्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. दक्षिण देश में स्थित एक पर्वत। विशेष दे० 'सह्याद्रि'। २. स्वाथ्स्य। आरोग्यलाभ (को०)। २. मदद। सहायता (को०)। ३. युक्तता। पर्याप्ति (को०)।
⋙ सह्य (२)
वि० १. सहने योग्य। सहने लायक। बर्दाश्थ करने लायक। जो सहन करने में समर्थ हो। २. आरोग्य। ३. प्रिय। प्यारा। ४. झेलने, भोगने या वहन करने योग्य (को०)। ५. समर्थ। शक्तिशाली (को०)।
⋙ सह्य (३)
संज्ञा पुं० साम्य। समानता। बराबरी।
⋙ सह्यकर्म
संज्ञा पुं० [सं० सह्यकर्मन्] मदद। सहायता। सहारा।
⋙ सह्यवासिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा की एक मूर्ति।
⋙ सह्यात्मजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सह्य नामक पर्वतसे निकलनेवाली नदी। कावेरी [को०]।
⋙ सह्याद्रि
संज्ञा पुं० [सं०] दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध पर्वत। जो बंबई (महाराष्ट्र) प्रांत में है। विशेष—पश्चिमीय घाट का वह भाग जो मलयाचल पर्वत के उत्तर नीलगिरी तक है, सह्याद्रि कहलाता है। पूना से बंबई जानेवाली रेल इसी को पार करती हुई गई है। शिवाजी प्रायः अपने शत्रुओं से बचने के लिये इसी पर्वतमाला में रहा करते थे।
⋙ सह्न
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़। पर्वत [को०]।
⋙ सह्व
संज्ञा पुं० [अ०] अनवधानता। प्रमाद।
⋙ सह्वम्
अव्य० [अ०] प्रमाद के कारण। गलती से।