सुटकन, सुटुकुन
संज्ञा स्त्री० [अनु०] बाँस की कैन।

सुटुकना (१)
क्रि० अ० [अनु०] १. दे० 'सुड़ुकना'। २. दे० 'सिकुड़ना'।

सुटुकना (२)
क्रि० स० [अनु०] सुटका मारना। चाबुक लगाना। उ०— नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु। चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु।—तुलसी (शब्द०)।

सुटुकना (३) †
क्रि० अ० [अनु०] चुपके या धीरी से भाग जाना। सरकना।

सुठ पु
वि [सं० सुष्ठु] दे० 'सुठि'। उ०—राम घनश्याम अभिराम सुठ कामहू ते ताते हो परशुराम क्रोध मत जोरिए।—हनु- मन्नाटक (शब्द०)।

सुठहर †
संज्ञा पुं० [सं० सु + स्थल, हिं० ठहर (= जगह)] अच्छा स्थान। बढ़िया जगह। उ०—बालि मुदित कपि बालिधि मिस से देखि पूत को साज सुठहर बन लायो।—देवस्वामी (शब्द०)।

सुठहरे †
क्रि० वि० [हिं० सुठहर] अच्छी जगह पर। अच्छे स्थान पर।

सुठान पु
क्रि० वि० [हिं० सु + ठान (= स्थान)] अच्छे ढंग से। भली प्रकार से। उ०—भौंह कमान सँधान सुठान जे नारि विलोकन बान ते बाँचे।—तुलसी ग्रं०, पृ० २२६।

सुठार पु †
वि० [सं० सुष्ठु, प्रा० सुठ्ठ] [वि० स्त्री० सुठारी] सुडौल। सुंदर। उ०—(क) सुठि सुठार ठोढ़ी अति सुंदर सुंदर ताको सार। चितवन चुअत सुधारस मानो रहि गई बूँद मझार।—सूर (शब्द०)। (ख) चपल नैन नासा बिच शोभा अधर सुरंग सुठार। मनो मध्य खंजन शुक बैठचो लुब्ध्यो बिंब बिचार।—सूर (शब्द०)। (ग) जावक रचित अँगुरियह मृदुल सुठारी हो। प्रभु कर चरन पछालत अति सुकुमारी हो।—तुलसी ग्रं०, पृ० ५।

सुठि † (१)
वि० [सं० सुष्ठु] १. सुंदर। बढ़िया। अच्छा। उ०—(क) तून सरासन बान धरे तुलसी बन मारग में सुठि सौ हैं।— तुलसी (शब्द०)। (ख) संग नारि सुकुमारि सुभग सुठि राजति बिन भूषन बसति।—तुलसी (शब्द०)। (ग) बहुत प्रकार किए सब व्यंजन अमित बरन मिष्ठान। अति उज्वल कोमल सुठि सुंदर देखि महरि मन मान।—सूर०, १०।८९। २. अतिशय। अत्यंत। बहुत। उ०—सुनि सुठि सहमेउ राजकुमारू। पाकें छत जनु लाग अँगारू।—मानस, २।१६१।

सुठि पु (२)
अव्य० [सं० सुष्ठु] पूरा पूरा। बिलकुल। उ०—हिए जो आखर तुम लिखे से सुठि लीन्ह परान।—जायसी (शब्द०)।

सुठोना पु †
वि० [हिं०] दे० 'सुठि'। उ०—रसखानि निहारि सकैं जु सम्हारि कै को तिय है वह रूप सुठोनो।—रसखान (शब्द०)।

सुड़कना
क्रि० स० [अनु०] १. किसी वस्तु जैसे, नस्य, जल आदि को नाक से भीतर खींचना। २. नाक की रेंट को बाहर छिनकने के बजाय ऊपर खींच लेना। जैसे—नाक सुड़क जाना। ३. किसी तरल पदार्थ को पी जाना।

सुड़सुड़
संज्ञा स्त्री० [अनुध्व०] नली आदि द्वारा जल में वायु के घुसने से होनेवाली आवाज। गुड़गुड़।

सुड़सुड़ाना
क्रि० स० [अनु०] सुड़सुड़ शब्द उत्पन्न करना। जैसे, नाक सुड़सुड़ाना। हुक्का सुड़सुड़ाना।

सु़डीन, सु़डीनक
संज्ञा पुं० [सं०] पक्षियों के उड़ने का एक ढंग या प्रकार।

सुड़ुकना
क्रि० स० [अनु०] दे० 'सुड़कना'।

सुडौल
वि० [सं० सु + हिं० डौल] सुंदर डौल या आकार का। जिसकी बनावट बहुत अच्छी हो। जिसके सब अंग ठीक और बराबर हों। सुंदर।

सुड्ढा †
संज्ञा पुं० [देश०] धोती की वह लपेट जिसमें रुपया पैसा रखते हैं। अंटी। आँट।

सुड्ढी
संज्ञा स्त्री० [देश०] दे० 'सुड्ढा'।

सुढंग (१)
संज्ञा पुं० [सं० सु + हिं० ढंग] १. अच्छा ढंग। अच्छी रीति। २. सुघड़ता। सुंदरता।

सुढंग (२)
वि० १. अच्छे रंग का। अच्छी चाल या स्वभाव का। २. उत्तम रीति या ढंग से युक्त। उ०—मिरदंग औ मुहचंग चंग सुढंग संग बजावहीं।—गिरधर (शब्द०)। ३. सुंदर। सुघड़। उ०—अंग उतंग सुढंग अति रंग देखि के दंग। सह उमंग अरि भंग कर जंग संग मातंग।—गिरधर (शब्द०)।

सुढर (१)
वि० [सं० सु + हिं० ढलना] प्रसन्न और दयालु। जिसकी अनुकंपा हो। अनुकूल। उ०—(क) तुलसी सराहै भाग कौसिक जनक जू के विधि के सुढर होत सुढर सुहाय के।— तुलसी (शब्द०)। (ख) तुलसी सबै सराहत भूपहिं, भले पैत पासे सुदर ढरे री।—तुलसी (शब्द०)।

सुढर (२)
वि० [हिं० सुघढ़] सुंदर। सु़डौल। उ०—भौंहन चढ़ाइ कोई कहूँ चित्त चढयो चढ़ी सुढर सिढ़ीनि मूढ़ चढ़ी ये सुहाती जे।—देव (शब्द०)।

सुढार पु †
वि० [सं० सु + हिं०, ढलना] [वि० स्त्री० सुढारी] १. सुंदर ढला या बना हुआ। उ०—गृह गृह रचे हिडोलना महिगच काच सुढार। चित्र विचित्र चहूँ दिसि परदा फटिक पगार।—तुलसी (शब्द०)। २. सुंदर। सुडौल। उ०—हिय मनिहार सुढार चार हय सहित सुरथ चढ़ि। निसित धार तर- वार धरि जिय जय विचार मढ़ि।—गिरधर (शब्द०)। (ख) दीरघ मोल कह्यो व्यापारी रहे ठगे से कौतुकहार। कर ऊपर लै राखि रहे हरि देत न मुक्ता परम सुढार।—सूर (शब्द०)। (ग) लखि बिँदुरी पिय भाल भाल तुअ खौरि निहारी। लखि तुअ जूरा उनकी बेनी गुही सुढारी।— अंबिकादत्त (शब्द०)।

सुढारु पु
वि० [हिं० सु + ढलना] दे० 'सुढार'। उ०—घर बारन असवारु चारु वखतर सुढारु तन। संग लसत चतुरंग करन रनरंग समुद मन।—गिरधर (शब्द०)।

सुणघड़िया
संज्ञा पुं० [हिं० सोना + घड़ना (= गढ़ना)] सुनार। (डिं०)।

सुणना पु †
क्रि० स० [हिं० सुनना] श्रवण करना। दे० 'सुनना'। उ०—महिमा नाँव प्रताप की सुणौ सरवण चित्त लाइ। राम- चरण रसना रटौ भ्रम सकल झड़ जाइ।

सुतंगम
संज्ञा पुं० [सं० सुतङ्गम] पुत्रवान् पिता [को०]।

सुतत पु
वि० [सं० स्वतन्त्र, प्रा० सु + तंत] स्वतंत्र। स्वाधीन। बंधनहीन। स्वच्छंद। उ०—बँधुआ को जैसे लखत कोई मनुष सुतंत।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)।

सुतंतर पु †
वि० [सं० स्वतन्त्र] दे० 'स्वतंत्र'।

सुतंतु
संज्ञा पुं० [सं० सुतन्तु] १. शिव। विष्णु। ३. एक दानव का नाम।

सुतंत्र पु (१)
वि० [सं० स्वतन्त्र] दे० 'स्वतंत्र'। उ०—(क) महावृष्टि चलि फटि कियारी। जिमि सुतंत्र भए बिगरहिं नारी।— तुलसी (शब्द०)। (ख) या ब्रज मैं हौं बसत ही हेली आइ सुतंत्र। हेरन मै कछु पढ़ि दियौ मोहन मोहन मंत्र।—रतन- हजारा (शब्द०)।

सुतंञ (२)
क्रि० वि० स्वतंत्रतापूर्वक। स्वच्छंदतापूर्वक। उ०—विधि लिख्यो शोधि सुतंत्र। जनु जपाजप के मंत्र।—केशव (शब्द०)।

सुतंत्र (३)
वि० [सं० सुतन्त्र] १. जिसका तंत्र, सेना आदि ठीक हो। जिसके पास अच्छा सैन्य बल हो। २. तंत्र का ज्ञाता। सिद्धांतों का जानकार।

सुतंत्रि
संज्ञा पुं० [सं० सुतन्त्रि, सुतन्त्री] १. वह जो तार के बाजे (वीणा आदि) बजाने में प्रवीण हो। वह जो तंत्र वाद्य अच्छी तरह बजाता हो। २. वह जो कोई बाजा अच्छी तरह बजाता हो। ३. वह जिसका स्वर मधुर और लय ताल से युक्त हो।

सुतंभर
संज्ञा पुं० [सं० सुतम्भर] एक प्राचीन वैदिक ऋषि का नाम।

सुत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुत्र। आत्मज। बेटा। लड़का। २. दसवें मनुका पुत्र। ३. जन्मकुंडली में लग्न से पाँचवाँ घर। ४. नरेश। भूपति। राजा (को०)। ५. निचोड़ा हुआ सोमरस (को०)। ६. सोम याग (को०)। ७. सोमबलि (को०)।

सुत (२)
वि० १. पार्थिव। २. उत्पन्न। जात। ३. उड़ेला हुआ (को०)। ४. निचोड़कर निकाला हुआ (को०)।

सुत † (३)
संज्ञा पुं० [?] बीस की संख्या। कोड़ी।

सतकारी †
संज्ञा स्त्री० [देश०] स्त्रियों के पहनने की जूती।

सुतजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] पौत्री। पोती [को०]।

सुतजीवक
संज्ञा पुं० [सं०] पुत्रजीव नाम का वृक्ष। पितिजिया। विशेष दे० 'पुत्रजीब'।

सुतड़ा
संज्ञा पुं० [हिं० सूत + ड़ा (प्रत्य०)] दे० 'सुतरा'।

सुतत्व
संज्ञा पुं० [सं०] सुत का भाव या धर्म।

सुतदा (१)
वि० स्त्री० [सं०] सुत या पुत्र देनेवाली।

सुतदा (२)
संज्ञा स्त्री० दे० 'पु़ञदा' (लता)।

सुतनय
वि० [सं०] उत्तम संतानवाला।

सुतना (१)
संज्ञा पुं० [?] दे० 'सूथन'।

सुतना (२)
क्रि० अ० [सं० शयन] दे० 'सूतना'।

सुतनिर्विशेष
वि० [सं०] पुत्रवत्। पुत्रकल्प। २. जिसका पुत्र के समान पालन पोषण किया गया हो [को०]।

सुतनु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक गंधर्व का नाम। २. उग्रसेन के एक पुत्र का नाम। ३. एक बंदर का नाम।

सुतनु (२)
वि० १. सुंदर शरीरवाला। २. अत्यंत सुकुमार। बहुत ही क्षीण। पतला (को०)। ३. कृशकाय। दुर्बलशरीर (को०)।

सुतनु (३)
संज्ञा स्त्री० १. सुंदर शरीरवाली स्त्री। कृशांगी। २. आहुक की पुत्री और अक्रूर की पत्नी का नाम। ३. उग्रसेन की एक कन्या का नाम। ४. वसुदेव की एक उपपत्नी का नाम।

सुतनुज
वि० [सं०] दे० 'सुतनय'।

सुतनुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुतनु होने का भाव। २. शरीर की सुंदरता।

सुतनू
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुतनु' (३) [को०]।

सुतप (१)
वि० [सं०] सोम पान करनेवाला।

सुतप (२)
संज्ञा पुं० [सं० सुतपस्] तप। तपश्चर्या [को०]।

सुतपस्वी
वि० [सं० सुतपस्विन्] अत्यंत तपस्या करनेवाला। बहुत अच्छा और बड़ा तपस्वी।

सुतपा (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुतपस्] १. सूर्य। २. एक मुनि का नाम। ३. रौच्य मनु के एक पुत्र का नाम। ४. विष्णु। ५. कठोर तपस्या। दीर्घ साधना (को०)।

सुतपा
वि० १. कठोर तपस्या की साधना करनेवाला वानप्रस्थाश्रमी। २. जो अतिशय तापयुक्त हो [को०]।

सुतपादिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटी जाति की एक प्रकार की हंसपदी नाम की लता।

सुतपेय
संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ में सोम पीने की क्रिया। सोमपान।

सुतयाग
संज्ञा पुं० [सं०] वह यज्ञ जो पुत्र की इच्छा से किया जाता है। पुत्रकाम यज्ञ। पुत्रेष्टि यज्ञ।

सुतर † (१)
संज्ञा पुं० [फा़० शुतुर] दे० 'शुतुर'। उ०—सबके आगे सुतर सवार अपार शृंगार बनाए। धरे जमूरक तिन पीठिन पर सहित निसान सुहाये।-रघुराज (शब्द०)। (ख) भरि चले सुतर रभ एक राह। बीसल तड़ाग दिय दारिगाह।—पृ० रा०, १।४२०।

सुतर (२)
वि० [सं०] सुख से तैरने या पार करने योग्य। जो सुख या आराम से पार किया जा सके। (नदी आदि)।

सुतरण
वि० [सं०] सरलता से पार करने योग्य।

सुतरनाल
संज्ञा स्त्री० [फा़० शुतुरनाल] दे० 'शुतरनाल'। उ०— तिमि घरनाल और करनालैं सुतरनाल जंजालै। गुरगुराव रहँकलै भले तहँ लागे विपुल बयालैं।—रघुराज (शब्द०)।

सुतरसवार
संज्ञा पुं० [फा़० शुतुरसवार] ऊँट सवार। साँड़नी सवार।

सुतरां
अव्य० [सं० सुतराम्] १. अतः। इसलिये। निदान। २. अपितु। और भी। किं बहुना। ३. अगत्या। लाचार। ४. अत्यंत। ५. अवश्य।

सुतरा
संज्ञा पुं० [हिं० सूत + रा (प्रत्य०)] नाखून के ऊपर या बगल के चमड़े का सूत की तरह महीन छोटा अंश।

सुतरी पु (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० तुरही] तुरही। तूर। उ०—नौबत झरत द्वार द्वारन में शंख सुतरि सहनाई। औरहु विविध मनोहर बाजे बजत मधुर सुर छाई।—रघुराज (शब्द०)।

सुतरी (२)
संज्ञा पुं० [देश० या फा़० शुतुर, हिं० सुतर (= ऊँट)] वह बैल जिसका ऊँट का सा रंग हो। (यह मध्यम श्रेणी का मजबूत और तेज माना जाता है)।

सुतरी (३)
संज्ञा स्त्री० [देश०] वह लकड़ी जो पाई में साँथी अलग करने के लिये साँथी के दोनों तरफ लगी रहती है। इसे जुलाहों की परिभाषा में 'सुतरी' कहते हैं।

सुतरी (४)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुत्रकार] दे० 'सुतारी' (१)।

सुतरी (५)
संज्ञा स्त्री० [हिं० सूत + री (प्रत्य०)]। 'सुतली'।

सुतरेशाही
संज्ञा पुं० [सुथरा शाह (= एक संत का नाम)] दे० 'सुथरे शाही'।

सुतर्कारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक लता। सौनैया। घघर बेल। बेदाल। विशेष दे० 'देवदाली'।

सुतर्दन
संज्ञा पुं० [सं० सुतर्द्दन] कोकिल पक्षी। कोयल।

सुतर्मा
वि० [सं० सुतर्मन्] तरम करने या पार करने योग्य [को०]।

सुतल
संज्ञा पुं० [सं०] १. सात पाताल लोकों में से एक (किसी पुराण के मत से दूसरा और किसी के मत से छठा) लोक। विशेष—भागवत के अनुसार इस पाताल लोक के स्वामी विरोचन के पुत्र बलि हैं। देवीभागवत में लिखा है कि विष्णु भगवान् ने बलि को पाताल भेजकर संसार की सारी संपदा दी थी और स्वयं उसके द्रार पर पहरा देते थे। एक बार रावण ने इसमें प्रवेश करना चाहा था, पर विष्णु भगवान् ने उसे अपने पैर के अँगूठे से हजारों योजन दूर फेंक दिया। विशेष दे० 'लोक (१)'। २. किसी बड़े भवन की नींव (को०)।

सुतली
संज्ञा स्त्री० [हिं० सूत + लो (प्रत्य०)] रूई, सन या इसी प्रकार के और रेशों के सूतों या डोरों को एक में बटकर बनाया हुआ लंबा और कुछ मोटा खंड जिसका उपयोग चीजें बाँधने, कुएँ से पानी खींचने, पलंग बुनने तथा इसी प्रकार के और कामों में होता है। रस्सी। डोरी। सुतरी।

सुतवत् (१)
वि० [सं०] १. पुत्रवाला। जिसके पुञ हो। २. पुत्र के समान। पुत्रतुल्य।

सुतवत् (२)
संज्ञा पुं० पुत्र का पिता।

सुतवत्सल
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सुतवत्सला] वह पिता जो पुत्र के प्रति वात्सल्य से युक्त हो [को०]।

सुतवस्करा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सात पुत्र प्रसव करनेवाली स्त्री। वह स्त्रो जिसके सात पुत्र है।

सुतवान्
वि०, संज्ञा पुं० [सं० सुतवत्] दे० 'सुतवत्'।

सुतवाना
क्रि० स० [हिं० सुताना] दे० 'सुलवाना'। उ०—फिर सेजचतुर को अच्छा बिछौना करवा पलंग पर सुतवाया।— लल्लू (शब्द०)।

सुतश्रेणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] मूसाकानी। मूषिकपर्णी। विशेष दे० 'मूसाकानी'।

सुतसुत
संज्ञा पुं० [सं०] पुत्र का लड़का। पौत्र [को०]।

सुततोम
संज्ञा पुं० [सं०] १. भीमसेन के एक पुत्र का नाम। वह जो सोम का सेवन करता हो। सोम तर्पण करनेवाला।

सुतसोमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] श्रीकृष्ण की एक पत्नी [को०]।

सुतस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] जन्मकुडली में लग्न से पंचम स्थान। विशेष—फलित ज्योतिष क अनुसार सुतस्थान पर जितने ग्रहों की दूष्टि रहती है, उतनी ही सतान होती हैं। पुल्लिग ग्रहों की दृष्टि से पुत्र और स्त्री ग्रहों की दृष्टि से कन्याए होती हैं।

सुतर
सज्ञा पुं० [सं० सूत्रधर, प्रा० सूत + हर] दे० 'सुतर'। उ०— सुधरि मुबारक तिय बदन परी अलक अभिराम। मनौ सौम पर सूत ह्वै राखी सुतहर काम।—मुबारक (शब्द०)।

सुतहा (१)
सज्ञा पुं० [हिं० सूत + हा (प्रत्य०)] सूत का व्यापारी सूत बेचनेवाला।

सुतहा (२)
वि० सूत का। सूत संबंधी।

सुतहा (३)
संज्ञा पुं० [सं० शुक्ति] दे० 'सुतही'।

सुतहार पु
संज्ञा [सं० सूत्रधार, प्रा० सुत्तधार, सुत्तहार] दे० 'सुतार (१)'। उ०—कनक रतनमय पलिनो रच्यो मनहुँ मार सुतहार। विविध खेलौना किंकिनी लागे मंजुल मुकुताहार।— तुलसी (शब्द०)।

सुतहिबुक योग
संज्ञा पुं० [सं०] विवाह का एक योग। विशेष—विवाह के समय लग्न में यदि कोई दोष हो और सुतहिबुक योग हो, तो सारे दोष दूर हो जाते हैं।

सुनही
संज्ञा स्त्री० [सं० शुक्ति] दे० 'सुतुही'।

सुतहौनिया
संज्ञा पुं० [देश०] दे० 'सुथौनिया'।

सुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लड़की। कन्या। पुत्री। बेटी। २. सखी। सहेली। (डिं०)।

सुतात्मज
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० सुतात्मजा] १. लड़के का लड़का। पोता। २. लड़की का लड़का। नाती।

सुतादान
संज्ञा पुं० [सं०] कन्यादान [को०]।

सुतान
वि० [सं०] मधुर स्वरवाला। सुस्वर। सुकंठ [को०]।

सुताना †
क्रि० स० [हिं० सुलाना] दे० 'सुलाना'।

सुतापति
संज्ञा पुं० [सं०] कन्या का पति। दामाद। जामाता।

सुतार (१)
संज्ञा पुं० [सं० सूत्रकार, प्रा० सुत्तआर>सुत्तार] १. बढ़ई। २. शिल्पकार। कारीगर।

सुतार पु (२)
वि० [सं० सु + तार] अच्छा। उत्तम। उ०—कनक रतन मणि पालनी अति गढ़नो काम सुतार। विविध खिलौना भाँति भाँति के गजमुक्ता बहुधार।—सूर (शब्द०)।

सुतार † (३)
संज्ञा पुं० सुभीता। उपयुक्त समय। सुविधा। क्रि० प्र०—बैठना।

सुतार (४)
वि० [सं०] १. अत्यंत उज्वल। २. जिसकी आँख की पुतलियाँ सुंदर हो। ३. अत्यंत उच्च।

सुतार (५)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का सुगंधिद्रव्य। २. एक आचार्य का नाम। ३. सांख्य दर्शन के अनुसार एक प्रकार को सिद्धि। गुरु से पढ़े हुए अध्यात्मशास्त्र का ठीक ठीक अर्थ समझना।

सुतार
संज्ञा पुं० [देश०] हुदहुद नामक पक्षी।

सुतारका
संज्ञा स्त्री० [सं०] बोद्धों की चौबीस शासन देवियों में से एक देवी का नाम।

सुतारा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सांख्य के अनुसार नौ प्रकार की तुष्टियों में से एक। २. साख्य के अनुसार आठ प्रकार की सिद्धियों में से एक। दे० 'सुतार (५)'। ३. एक आभूषण।

सुतारा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सूत्रकार] १. मोचिया का सूआ जिससे वे जूता सात है। २. सुतार या बढ़इ का काम।

सुतारी (२)
संज्ञा पुं० [हिं० सुतार] शिल्पकार। कारीगर। उ०— हरिजन माण का कीठरा आप सुतारी आहि। मुएहू न त्यागत टकानज ताह त छो़डचा नाहि।—विश्राम (शब्द०)।

सुतार्थी
वि० [सं० सुताथिन्] पुत्र का कामना करनेवाला। जिसे पुत्र का अभिलाषा हो। पुत्राया।

सुताल
संज्ञा पुं० [सं०] सगीत मे ताल का भेद [को०]।

सुताली
संज्ञा स्त्री० [सं० सूत्रकार] दे० 'सुतारी' (१)।

सतासधु पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सिन्धुसुता] लक्ष्मी। सिंधुसुता। उ०— चक्रित होई नीर म बहुरि बुड़का दइ सहित सुतासिधु तहँ दरस पाए।—सूर० (राधा०), प० २५७७।

सुतासुत
संज्ञा पुं० [सं०] पुत्री का पुत्र। दोहित्र। नाती।

सुतितिडा, सुतितिडी
संज्ञा स्त्री० [सुतिन्तिडा, सुतिन्ति़डी] इमली [को०]।

सुति
संज्ञा स्त्री० [सं०] सोमरस का निष्कषण [को०]।

सुतिअ@
संज्ञा स्त्री० [स० सु + हिं० तिय] सुंदर स्त्री। उ०—भगति सुतिअ कल करन विभूषन।—मानस, १।२०।

सुतिक्त (१)
संज्ञा पुं० [सं०] पित्तपापड़ा। पर्पटक।

सुतिक्त (२)
वि० जो बहुत तिक्त हो। अधिक तीता।

सुतिक्तक
संज्ञा पुं० [सं०] १. चिरायता। २. फरहद। परिभद्र। ३. पित्तपापड़ा।

सुतिक्ता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. तोरई। कोशातकी। २. सल्लई। शल्लकी।

सुतिन पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सुतनु] सुंदर बाला। रूपवती स्त्री। (क्व०)। उ०—जो नहि देतौ अतन कहुँ दृगन हरबली आय। मन मानस जे सुतिन के को सर करतो जाय।—रतनहजारा। (शब्द०)।

सुतिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसके पुत्र हों। पुत्रवती।

सुतिय पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + हिं० तिया] सुंदर स्त्री।

सुतिया
संज्ञा स्त्री० [देश०] सोने या चाँदी का एक गहना जो स्त्रियाँ गले में पहनती हैं। हँसली।

सुतिया
संज्ञा पुं० [हिं० सु + तिया] सुंदर स्त्री।

सुतिहार पु †
संज्ञा पुं० [सं० सूत्रकार, सूत्रधार; प्रा सुत्तहार] दे० 'सुतार (१)'। उ०—(क) मोतिन झालरि नाना भाँति खिलौना रचे विश्वकर्मा सुतिहार। देखि देखि किलकत दँतिला दो राजत क्रीड़त विविध बिहारी।—सूर (शब्द०)। (ख) विश्व- कर्मा सुतिहार श्रुतिधरि सुलभ सिलय दिखावनो। तेहि देखे त्रय ताप नाशै ब्रजवधू मनभावनो।—सूर (शब्द०)।

सुती
संज्ञा पुं० [सं० सुतिन्] १. वह जो पुत्र की इच्छा करता हो। २. वह जिसे पुत्र हो। पुत्रवाला।

सुतीक्षण पु
संज्ञा पुं० [सं० सुतीक्ष्ण] दे० 'सुतीक्ष्ण (१)'। उ०— दरसन दियो सुतीक्षण गौतम पंचवटी पग धारे। तहाँ दुष्ट सूर्पनखा नारी करि बिन नाक उधारे।—सूर (शब्द०)।

सुतीक्षण पु
वि० अत्यंत तीक्ष्ण। अत्यंत नुकीला।

सुतीक्ष्ण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. अगस्त्य मुनि के भाई जो बनवास के समय श्रीरामचंद्र से मिले थे। २. सहिंजन वृक्ष। शोभांजन।

सुतीक्ष्ण (२)
वि० १. अत्यंत तीक्ष्ण। बहुत तेज। २. अत्यंत तीखा (को०)। ३. अत्यंत पीड़ाकारक।

सुतीक्ष्णक
संज्ञा पुं० [सं०] मुष्कक या मोखा नामक वृक्ष।

सुतीक्ष्णका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरसों। सर्षप।

सुतीक्ष्ण दशन
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम [को०]।

सुतीखन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुतीक्ष्ण, प्रा० सु + तिक्खन] दे० 'सुतीक्ष्ण'। उ०—तीखन तन को कियो सुतीखन को द्विज तुलसी।—सुधाकर (शब्द०)।

सुतीच्छन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुतीक्ष्ण] दे० 'सुतीक्ष्ण'।

सुतीर्थ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुपथ। २. स्नान का उत्तम स्थान। ३. शिव। ४. पूज्य पात्र। ५. योग्य आचार्य।

सुतीर्थ (२)
वि० [सं०] सहज में पार करने योग्य।

सुतीर्थराज
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम।

सुतुंग (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुतुङ्ग] १. नारियल का पेड़। २. ग्रहों का उच्चांश। विशेष—ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के सुतुंग स्थान पर रहने से शुभ फल होता है।

सुतुग (२)
वि० अत्यंत उच्च। बहुत ऊँचा।

सुतुआ
संज्ञा पुं० [हिं० सुतुही] [स्त्री० सुतुई] दे० 'सुतही'।

सुतुमुल
वि० [सं०] बहुत जोर का। अत्यंत घोर [को०]।

सुतुस
वि० [सं०] ठीक उच्चारण करने या बोलनेवाला [को०]।

सुतुही †
संज्ञा स्त्री० [सं० शुक्ति] १. सीपी, जिससे प्रायः छोटे बच्चों को दूध पिलाते हैं। वह सीप जिसके द्वारा पोस्ते से अफीम खुरची जाती है। सुतुआ। सुतहा। सूती। ३. वह सीप जिससे अचार के लिए कच्चा आम छीला जाता है। सीपी। विशेष—इसे बीच में घिसकर इसके तल में छेद कर लेते है; और उसी छेद के चारों ओर के तेज किनारों से आम, आलू आदि छीलते हैं।

सुतून
संज्ञा पुं० [फा़०] खंभा। स्तंभ।

सुतूर
संज्ञा स्त्री० [अ०] सतर का बहुवचन। लकीरें [को०]।

सुतेकर
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो यज्ञ करता हो। यज्ञकर्ता। यज्ञकारी। ऋत्विक्।

सुतेजन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. धामिन। धन्वन वृक्ष। २. बहुत नुकीला वाण या तीर।

सुतेजन
वि० १. नुकीला। २. तेज। धारदार।

सुतेजा (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुतेजस्] १. जैनों के अनुसार गत उत्सर्पिणी के दसवें अर्हत् का नाम। २. गृत्समद का पुत्र। ३. हुरहुर। आदित्यभक्ता।

सुतेजा (२)
वि० १. बहुत तेज या धारदार। २. अत्यंत दीप्त या ज्योतित (को०)। ३. अत्यंत शक्तिशाली (को०)।

सुतेजित
वि० [सं०] दे० 'सुतेजन'।

सुतेमन
संज्ञा पुं० [सं० सुतेमनस्] एक वैदिक आचार्य का नाम।

सुतैला
संज्ञा स्त्री० [सं०] महाज्योतिष्मती नामक एक लता। विशेष दे० 'मालकँगनी' [को०]।

सुतोत्पत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुत्रजन्म [को०]।

सुतोर
संज्ञा पुं० [फा़०] १. वृष। बैल। २. उष्ट्र। ऊँट। ३. अश्व। घोड़ा [को०]।

सुतोष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] संतोष। सब्र।

सुतोष (२)
वि० जिसका संतोष हो गया हो। संतुष्ट। प्रसन्न।

सुतोषण
संज्ञा पुं० [सं०] सम्यक् तोष या तुष्टि [को०]।

सुत्ता †
वि० [हिं० सोना] सोया हुआ। सुषुप्त। (पश्चिम)।

सुत्तुर †
संज्ञा पुं० [हिं० सूत या फा़० शुतुर] जुलाहों के केरघे का एक बाँस जिसमें कंघी बँधी रहती है। कुलवाँसा।

सुंत्थन सुत्थना
संज्ञा पुं० [देश०] दे० 'सूथन'।

सुत्य
संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ के लिये सोमरस निकालने का दिन।

सुत्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. जनन। उत्पति। प्रसव। २. दे० 'सूत्याँ'। यौ०—सुत्याकाल = दे० 'सुत्य'।

सुत्रामा
संज्ञा पुं० [सं० सुत्रामन्] १. इंद्र। २. पुराणानुसार एक मनु का नाम। ३. वह जो उत्तम रूप से रक्षा करता हो।

सुत्रामा
संज्ञा स्त्री० पृथ्वी [को०]।

सुथना
संज्ञा पुं० [देश०] दे० 'सूथन'।

सुथनिया †
संज्ञा स्त्री० [देश०] दे० 'सुथनी'।

सुथनो
संज्ञा स्त्री० [देश०] १. स्त्रियों के पहनने का एक प्रकार का ढोला पायजामा। सूथन। २. एक कंद। पिंडालु। रतालू।

सुथरा
वि० [सं० स्वच्छ, सुस्थल या स्वस्थ] [वि० स्त्री० सुथरी] स्वच्छ। निर्मल। साफ। उ०—(क) लरिकाई कहुँ नेक न छाँड़त सोई रहो सुथरी सेजरियाँ। आए हरि यह बात सुनत ही धाइ लिये यशुमति महतरियाँ।—सूर (शब्द०)। (ख) मोतिन माँग भरी सुथरी लसै कंठ सिरीगर सी अवगाही।—मुंदरीसर्वस्व (शब्द०)। विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः 'साफ' शब्द के साथ होता है। जैसे,—साफ सुथरा मकान। साफ सुथरी भाषा = परिष्कृत भाषा।

सुथराई
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुथरा + ई (प्रत्य०)] सुथ रापन। स्वच्छता निर्मलता। सफाई।

सुथरायन
संज्ञा पुं० [हिं० + पन (प्रत्य०)] दे० 'सुथराई'।

सुथराशाह
संज्ञा पुं० [हिं०] एक संत जो गुरुनानक के शिष्य थे।

सुथरेशाही
संज्ञा पुं० [सुथराशाह (महात्मा)] १. गुरु नानक के शिष्य सुथराशाह का चलाया संप्रदाय। २. उस संप्रदाय के अनुयायी या माननेवाले जो प्रायः सुथराशाह और गुरुनानक आदि के बनाए हुए भजन गाकर भिक्षा माँगते हैं।

सुथौनिया †
संज्ञा पुं० [देश०] मस्तूल के उपरी भाग में वह छेद या घर जिसमें पाल लगाने के समय उसकी रस्सी पहनाई जाती है। (लक्ष०)।

सुदंड
संज्ञा पुं० [सं० सुदण्ड] बेंत। बेत्र।

सुदंडिका
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदण्डिका] १. गोरख इमली। गोरक्षी। ब्रह्मदंडी। अजदंडी।

सुदंत (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुदन्त] १. वह जो अभिनय करता हो। नट। २. नर्तक। नाचनेवाला। ३. सुंदर दाँत (को०)।

सुदंत (२)
वि० सुंदर दाँतोंवाला।

सुदंता (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदन्ता] पुराणानुसार एक अप्सरा का नाम।

सुदता
वि० स्त्री० सुंदर दाँतोंवाली।

सुदती
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदन्ती] १. हथिनी। हस्तिनी। २. वायव्य कोण के एक दिग्गज (पुष्यदंन) की हथिनी का नाम।

सुदंभ
वि० [सं० सुदम्भ] दे० 'सुदम'।

सुदंशित
वि० [सं०] १. अच्छी तरह डँसा हुआ। २. शस्त्र आदि से युक्त। ३. बहुत सघन, घन [को०]।

सुदंष्ट्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कृष्ण का एक पुत्र। २. संबर का एक पुत्र। ३. एक राक्षस का नाम।

सुदष्ट्र (२)
वि० सुंदर दाँतोंवाला।

सुदंष्ट्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक किन्नरी का नाम।

सुदक्षिण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पौंड्रक राजा का पुत्र। २. विदर्भ का एक राजा।

सुदक्षिण (२)
वि० १. निष्कपट। खरा। २. उदार। यज्ञ में बहुत दक्षिणा- देनेवाला। ३. अत्यंत चतुर। ४. अत्यंत मृदुल स्वभाववाला [को०]।

सुदक्षिणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. राजा दिलीप की पत्नी का नाम। २. पुराणानुसार श्रीकृष्ण की एक पत्नी का नाम।

सुदग्धिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] कुरुह नामक वृक्ष। दग्धा।

सुदच्छिन
संज्ञा पुं० [सं० सुदक्षिण] दे० 'सुदक्षिण'। उ०—चलेउ सुदच्छिन दच्छ समर जुध दच्छिन दच्छिन।—गिरधर (शब्द०)।

सुदत्
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सुदती] सुंदर दाँतोंवाला।

सुदती
वि० [सं०] सुंदर दाँतोंवाली स्त्री। सुदंता। सुंदरी। उ०— (क) धीर धरो सोच न करो मोद भरो यदुराय। सुदति सँदेसे सनि रही अधरनि मैं मुसुकाय।—शृं० सत (शब्द०)। (ख) भौन भरी सब संपति दंपति श्रीपति ज्यों सुख सिंधु में सोवै। देव सो देवर प्राण सो पूत सुकौन दशा सुदती जिहि रोवै।—केवश (शब्द०)।

सुदम
वि० [सं०] जो सुकरता से पराजित या बशीभूत हो सके [को०]।

सुदमन
संज्ञा पुं० [सं०] आम। आम्रवृक्ष।

सुदरसन पु (१)
संज्ञा [सं० सुदर्शन] दे० 'सुदर्शन'। उ०—नकुल सुदरसन दरसनी क्षेमकरी चुपचाप। दस दिसि देखत सगुन सुभ पूजहि मन अभिलाष।—तुलसी (शब्द०)।

सुदरसन (२)
संज्ञा पुं० दे० 'सुदर्शन'।

सुदरसनपानि पु
संज्ञा पुं० [सं० सुदर्शनपाणि] दे० 'सुदर्शन पाणि'। उ०—ज्यों धाए गजराज उधारन सपदि सुदरसनपानि।— तुलसी (शब्द०)।

सुदर्भा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का तृण जिसे इक्षुदर्भा भी कहते हैं।

सुदर्श
वि० [सं०] १. दे० 'सुदर्शन'। २. जिसे सरलता से देखा जा सके [को०]।

सुदर्शन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु भगवान् के चक्र का नाम। २. शिव। ३. अग्नि का एक पुत्र। ४. एक विद्याधर। ५. मत्स्य। मछली। ६. जंबू वृक्ष। जामुन। ७. नौ बलदेवों में से एक। (जैन)। ८. वर्तमान अवसपिणी के अट्ठारहवें अर्हत् के पिता का नाम। (जैन)। ९. शंखन का पुत्र। १०. ध्रुवसंधि का एक पुत्र। ११. अर्थसिद्धि का पुत्र। १२. दधीचि का एक पुत्र। १३. अजमीढ का एक पुत्र। १४. भरत का एक पुत्र। १५. एक नाग असुर। १६. प्रतीक का जामाता। १७. सुमेरु। १८. एक द्वीप का नाम। १९. गिद्ध। २०. एक प्रकार की संगीतरचना। २१. संन्यासियों का एक दंड जिसमें छह गाँठें होती हैं। इसे वे भूत प्रेतों से अपना बचाव करने के लिये अपने पास रखते हैं। २२. मदनसस्त। २३. सोमवल्ली। विशेष दे० 'सुदर्शना'। २४. इंद्रनगरी। अमरावती (को०)।

सुदर्शन (२)
वि० जो १. जो देखने में सुंदर हो। प्रियदर्शन। सुखदर्शन। सुंदर। मनोरम। २. जो आसानी से देखा जा सके।

सुदर्शन चक्र
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का आयुध। विशेष—मत्स्य पुराण के अनुसार सूर्य के असह्य तेज को कम करने के लिये यंत्र के द्वारा उनका तेज विभक्त किया गया और उस विभक्त तेज से सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल और इंद्र के वज्र का निर्माण किया गया। पद्म पुराण के अनुसार सभी देवों के तेज में अपने तेज को मिलाकर शिव ने इस द्वादशारयुक्त सुदर्शन चक्र को बनाया और विष्णु को प्रदान किया।

सुदर्शन चूर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार ज्वर की एक प्रसिद्ध औषध। विशेष—इस चूर्ण के बनाने की विधि यह है—त्रिफला, दारुहल्दी, दोनों करियाली, कनेर, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, मूर्वा, गुड़च, धनियाँ, अडूसा, कुटकी, त्रायमान, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, कमलतंतु नीम की छाल, पोहकर मूल, मुँगने (सहिजन) के बीज, मुलहठी, अजवायन, इंद्रयव, भारंगी, फिटकरी, बच, तज, कमलगट्टा, पद्मकाष्ठ, चंदन, अतीस, खरेंटी, बायबिडंग, चित्रक, देवदारु, चव्य, लवंग, वंशलोचन, पत्राज, ये सब चीजें बराबर बराबर और इन सबकी तौल से आधा चिरायता लेकर सबको कूट पीसकर चूर्ण बनाते हैं। मात्रा एक टंक प्रति दिन सबेरे ठंढे जल के साथ है। कहते हैं, इसके सेवन से सब प्रकार के ज्वर, यहाँ तक कि विषमज्वर भी दूर हो जाता है। इसके सिवा खाँसी, साँस, पांडु, हृद्रोग, बवासीर, गुल्म आदि रोग भी नष्ट होते हैं।

सुदर्शन दंड
संज्ञा पुं० [सं० सुदर्शनदण्ड] वैद्यक के अनुसार ज्वर की एक औषध।

सुदर्शन द्वीप
संज्ञा पुं० [सं०] जंबू द्वीप का एक नाम।

सुदर्शनपाणि
संज्ञा पुं० [सं०] (हाथ में सुदर्शनचक्र धारण करनेवाले) श्री विष्णु।

सुदर्शना (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सोमवल्ली। चक्रांगी। मधुपर्णिका। विशेष—यह क्षुप जाति की वनस्पति है। यह रोएँदार होती है। पते तीन से छह इंच के घेरे में गोलाकार तथा त्रिकोणाकार से होते हैं। इसमें गोल फूलों के गुच्छे लगते हैं जिनका रंग नारंगी का सा होता है वैद्यक के अनुसार इसका गुण मधुर, गरम और कफ, सूजन तथा वातरक्त दूर करनेवाला है। २. एक प्रकार की मदिरा। ३. एक गंधर्वी का नाम। ४. पद्मम- सरोवर। ५. जंबू वृक्ष। ६. इंद्रपुरी। अमरावती। ७. शुक्ल पक्ष की रात्री। ८. आज्ञा। आदेश। हुक्म। ९. सुंदर स्त्री। प्रियदर्शना स्त्री (को०)। १०. स्त्री। औरत। नारी (को०)। ११. एक प्रकार की औषध।

सुदर्शना (२)
वि० स्त्री जो देखने में सुदर हो। सुंदरी।

सुदर्शनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. इंद्रपुरी। अमरावती। सुंदरी स्त्री।

सुदल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मोरट या क्षीरमोरट नाम की लता। २. मुचकुंद। ३. सेना। दल।

सुदल (२)
वि० अच्छे दलों या पत्तोंवाला।

सुदला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सरिवन। शालपर्णी। २. सेवती।

सुदशन
वि० [सं०] [वि० स्त्री० सुदशना] सुंदर दाँतोंवाला। जिसके सुंदर दाँत हों। सुदंत।

सुदांत (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुदान्त] १. शाक्यमुनि के एक शिष्य का नाम। २. एक प्रकार की समाधि। ३. शतधन्वा का पुत्र।

सुदांत (२)
वि० अति शांत। बहुत सोधा। सधा हुआ। (घोड़ा)।

सुदाम
संज्ञा पुं० [सं०] १. श्रीकृष्ण के सखा एक गोप का नाम। २. महाभारत के अनुसार एक प्राचीन जनपद। ३. दे० 'सुदामा'।

सुदामन
संज्ञा पुं० [सं०] १. जनक के एक मंत्री का नाम। २. एक प्रकार का दैवास्त्र।

सुदामा (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुदामन्] १. एक दरिद्र ब्राह्मण जो श्रीकृष्ण का सहपाठी और परम सखा था और जिसे पीछे श्रीकृष्ण ने ऐश्वर्यवान् बना दिया था। २. श्रीकृष्ण का एक गोपसखा। ३. कंस का एक माली जो श्रीकृष्ण से उस समय मथुरा में मिला था, जब वे कंस के बुलाने से वहाँ गए थे। ४. एक पर्वत। ५. इंद्र का हाथी। ऐरावत। ६. समुद्र। सागर। ७. मेघ। बादल। ८. एक गंधर्व का नाम।

सुदामा (२)
संज्ञा स्त्री० १. स्कंद की एक मातृका। २. रामायण के अनुसार उत्तर भारत की एक नदी का नाम।

सुदामा (३)
वि० उत्तम रूप से दान करनेवाला। खूब देनेवाला।

सुदामिना
संज्ञा स्त्री० [सं०] भागवत के अनुसार शमीक की पत्नी का नाम।

सुदाय
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तम दान। २. यज्ञोपवीत संस्कार के समय ब्रह्मचारी को दी जानेवाली भिक्षा। ३. विवाह के अवसर पर कन्या या जामाता को दिया जानेवाला दान। दहेज। ४. वह जो उक्त प्रकार के दान करे। (अर्थात् पिता, माता आदि)।

सुदारु
संज्ञा पुं० [सं०] १. देवदारु। देवदार। २. धूप। सरल। सरल वृक्ष। ३. सुंदर काष्ठ। अच्छी लकड़ी। ४. विंध्य पर्वत का एक अंश। पारियात्र पर्वत।

सुदारुण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का दैवास्त्र।

सुदारुण (२)
वि० अत्यंत क्रूर या भयानक।

सुदावन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुदामन] जनक का एक मंत्री। दे० 'सुदामन'। उ०—जाय सुदावन कह्यो जनक सों आवत रघुकुल नाहा। देखन को धाए पुरवासी भरि उमाह मन माँहा—रघुराज (शब्द०)।

सुदास (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. दिवोदास का पुत्र तथा त्रित्सु का राजा। २. ऋतुपर्ण का पुत्र। ३. सर्वकाम का पुत्र। ४. च्यवन का पुत्र। ५. बृहद्रथ का एक पुत्र। ६. एक प्राचीन जनपद। ७. अच्छा दास या सेवक।

सुदाप (२)
वि० ईश्वर की सम्यक् रूप से पूजा या आराधना करनेवाला।

सुदि (१)
क्रि० वि० [सं०] शुक्ल पक्ष में।

सुदि (२)
संज्ञा स्त्री० दे० 'सुदी'।

सुदिन
संज्ञा पुं० [सं० सु + दिन] शुभ दिन। अच्छा दिन। मुबारक दिन। उ०—(क) मुनि तथास्तु कहि सुदिन विचारी। कारवाई मख राख तयारी।—रघुराज (शब्द०)। (ख) तहाँ तुरंत सुमंत गणक गण ल्यायो ललकि लिवाई। गुरु वशिष्ठ आज्ञानुसार ते दीन्ह्यो सुदिन बनाई रघुराज (शब्द०)। (ग) अस कहि कौशिक सुदिन बनायो। तहँ तुरंत प्रस्थान पठायो।—रघुराज (शब्द०)। मुहा०—सुदिन बनाना, सुदिन बिचारना, सुदिन तोधना = किसी शुभ काम के लिये ज्योतिष शास्त्रानसार अच्छा मुहूर्त निकालना।

सुदिनता
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुदिन का भाव।

सुदिनाह
संज्ञा पुं० [सं०] पुण्य दिन पुण्याह। शुभ दिन। प्रशस्त दिन।

सुदिव्
वि० [सं०] बहुत दीप्तिमान्। चमकीला।

सुदिवस
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुदिन'।

सुदिवातंति
संज्ञा पुं० [सं० सुदिवातन्ति] एक प्राचीन ऋषि का नाम।

सुदिह्
वि० [सं०] १. सुतीक्ष्ण। (जैसे, दाँत)। २. बहुत चिकना या उज्वल।

सुदी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदिव (= शुक्ल या शुद्ध) या सुदि] किसी मास का उजाला पक्ष। शुक्ल पक्ष। जैसे—चैत सुदी १, सावन सुदी ६।

सुदीक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] लक्ष्मी।

सुदीति (१)
संज्ञा पुं० [सं०] आंगिरस गोत्र के एक ऋषि का नाम।

सुदीति (२)
संज्ञा स्त्री० सुदीप्ति। उज्वल दीप्ति।

सुदीति (३)
वि० बहुत दीप्तिमान्। चमकीला।

सुदीपति पु
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदीप्ति] दे० 'सुदीप्ति'। उ०—बाजतु है मृदु हास मृदग सुदीपति दीपनि को उजियारो—केशव (शब्द०)।

सुदीप्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुत अधिक प्रकाश। खूब उजाला।

सुदीर्घ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] चिचड़ा। चिचिंडक।

सुदीर्घ (२)
वि० बहुत अधिक लंबा। अति विस्तृत।

सुदीर्घधर्मा
संज्ञा स्त्री० [सं०] अपराजिता। कोयल लता। असनपर्णी।

सुदीर्घजीवफला
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुदीर्घराजीवफला' [को०]।

सुदीर्घफलका
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुदीर्घफलिका' [को०]।

सुदीर्घफला
संज्ञा स्त्री० [सं०] ककड़ी। कर्कटी।

सुदीर्घफलिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का बैंगन।

सुदीर्घराजीवफला
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की ककड़ी।

सुदीर्घा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] चीना ककड़ी।

सुदीर्घा (२)
वि० स्त्री० अति दीर्घ। बहुत लंबी।

सुदुःख (१)
संज्ञा पुं० [सं०] अत्यंत कष्ट, पीड़ा या शोक।

सुदुःख (२)
वि० अति दारुण। कष्टकर।

सुदुःखित
वि० [सं०] अति पीड़ित। शोकातुर। व्यथित।

सुदुश्रव
वि० [सं०] जो सुनने में बुरा हो। कानों को अप्रिय। जैसे,—अपशब्द निंदा, गाली, कर्कश शब्द आदि।

सुदुःसह
वि० [सं०] असह्य। जो सहने में कठिन हो।

सुदुकूल
वि० [सं०] उत्तम वस्त्र से निर्मित।

सुदुधा
वि० [सं०] अच्छा दूध देनेवाली। खूब दूध देनेवाली (गौ)।

सुदुराचार
वि० [सं०] अत्यंत बुरे आचरणवाला। निहायत बद- चलन [को०]।

सुदुराधर्ष
वि० [सं०] १. जिसकी प्राप्ति अत्यंत कठिन हो। २. २. अत्यंत असह्य [को०]।

सुदुरावर्त
वि० [सं०] जिसे समझाना अत्यंत कठिन हो [को०]।

सुदुरासद
वि० [सं०] जिस तक पहुँच बहुत कठिन हो। पहुँच के बाहर [को०]।

सुदुर्जय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्यूह [को०]।

सुदुर्जय (२)
वि० जिसे जीतना बड़ा कठिन हो [को०]।

सुदुर्जया
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों के अनुसार सिद्धि की दस अवस्थाओं में से एक [को०]।

सुदुर्जर
वि० [सं०] जिसका पाक कठिन हो। गुरुपाक [को०]।

सुदुर्दृश
वि० [सं०] जिसे देखना कष्टदायक हो। अत्यंत विरूप। जो प्रियदर्शन न हो [को०]।

सुर्दुभग
वि० [सं०] अत्यंत भाग्यहीन। अभागा [को०]।

सुदुर्भिद
वि० [सं०] जिसका भेदन कठिन हो। उभेद्य [को०]।

सुदुर्मनस्
वि० [सं०] १. अत्यंत दुष्ट हृदयवाला या खोटे स्वभाव का। २. विक्षुब्ध मनवाला। परेशानियों में पड़ा हुआ [को०]।

सुदुर्मर्ष
वि० [सं०] जो सहनशक्ति से बाहर हो। एकदम असह्म [को०]।

सुदुर्लभ
वि० [सं०] १. जो अत्यंत दुर्लभ हो। अद्वितीय। नायाब। २. जिसका पाना प्रायः असंभव हो। अप्राप्य [को०]।

सुदुर्वच
वि० [सं०] जिसकी बात का जवाब न हो [को०]।

सुदुर्विद, सुदुर्वेद
वि० [सं०] अत्यंत दुर्बोध। जो समझने में बहुत ही कठिन हो [को०]।

सुदुश्चर
वि० [सं०] १. जिसका करना अत्यंत कठिन हो। २. जो अत्यंत दुर्गम हो [को०]।

सुदुष्कर
वि० [सं०] अत्यंत कठिन। अत्यंत कष्टसाध्य [को०]।

सुदुष्चिकित्स
वि [सं०] जिसका इलाज बहुत कठिन हो।

सुदुष्प्रभ
संज्ञा पुं० [सं०] नकुल। नेवला [को०]।

सुदुष्प्राप
वि० [सं०] जिसकी प्राप्ति कठिन हो। जो दुष्प्राप्य हो [को०]।

सुदुस्तर, सुदुस्तार
वि० [सं०] जिसे पार करना बड़ा कठिन हो [को०]।

सुदुस्त्यज
वि० [सं०] जिसे त्यागना बहुत कठिन हो [को०]।

सुदूर (१)
वि० [सं०] बहुत दूर का। अति दूरवर्ती। जैसे—सुदूर पूर्व में।

सुदूर (२)
अव्य० बहुत दूर। अतिदूर।

सुदूर पराहत
वि० [सं०] १. जो बहुत पहले नष्ट हो चुका हो। पूर्ण ध्वस्त। २. जो पू्र्वनिर्णीत हो। पूर्वनिराकृत।

सुदूरपूर्व
संज्ञा पुं० [सं०] अति दूरस्थ पूर्वीय देश।

सुदूरमूल
संज्ञा पुं० [सं० सुदृढमूल] धमासा। हिंगुआ।

सुदृढ़
वि० [सं० सुदृढ] बहुत दृढ़। खूब मजबूत। जैसे,—सुदृढ़ बंधन।

सुदृढ़त्वचा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुदृढत्वचा] गंभारी। गम्हार।

सुदृश (१)
वि० [सं०] २. सुंदर नेत्रोंवाला। २. पैनी या तीक्ष्ण दृष्टिवाला। ३. जो सुंदर हो [को०]।

सुदृश (२)
संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों का एक देववर्ग [को०]।

सुदृश (३)
संज्ञा स्त्री० [सं०] रूपवती स्त्री [को०]।

सुदृष्टि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] गिद्ध।

सुद्दष्टि (२)
संज्ञा स्त्री० उत्तम दृष्टि।

सुदृष्टि (३)
वि० १. दूरदर्शी। २. तीक्ष्णदृष्टि। तीखी चितवनवाला।

सुदेल्ल
संज्ञा पुं० [सं०] सुदेष्ण पर्वत का एक नाम। (महाभारत)।

सुदेव
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तम देवता। २. उत्तम क्रीड़ा करनेवाला। ३. एक काश्यप। ४. अक्रूर का एक पुत्र। ५. पौंड्र वासुदेव का एक पुत्र। ६. देवल का पुत्र। ७. विष्णु का एक पुत्र। ८. अंबरीष का एक सेनापति। ९. एक ब्राह्मण जिसने दमयंती के कहने से राजा नल का पता लगाया था। १०. परावसु गंधर्व के नौ पुत्रों में से एक जो ब्रह्मा के शाप से हिरण्याक्ष दैत्य के घर उत्पन्न हुआ था। ११. हर्यश्व का पुत्र और काशी का राजा।

सुदेवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अरिह की पत्नी। २. विकुंठन की पत्नी।

सुदेवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] भागवत के अनुसार नाभि की पत्नी और ऋषभ की माता।

सुदेव्य
संज्ञा पुं० [सं०] श्रेष्ठ देवताओं का समूह।

सुदेश (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुंदर देश। उत्तम देश। अच्छा मुल्क। २. उपयुक्त स्थान। उचित स्थान। उ०—छूटि जात लाज तहाँ भूषण सुदेश केश टूट जात हार सब मिटत शृंगार है।—भूषण (शब्द०)।

सुदेश (२)
वि० सुंदर। उ०—(क) श्याम सुंदर सुदेश पीत पट शीश मुकुट उर माला। जनु घन दामिनि रवि तारागण उदित एक ही काला।—सूर (शब्द०)। (ख) लटकन चारु भृकुटिया टेढ़ी मेढ़ी सुभग सुदेश सुभाए।—तुलसी (शब्द०)। (ग) सीय स्वयंवरु जनकपुर मुनि सुनि सकल नरेश। आए साज समाज सजि भूषन वसन सुदेश।—तुलसी (शब्द०)।

सुदेशिक
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम पथप्रदर्शक [को०]।

सुदेष्ण
संज्ञा पुं० [सं०] १. रुक्मिणी के गर्भ से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक पुत्र। २. एक प्राचीन जनपद का नाम। ३. पुराणानुसारएक पर्वत का नाम। सुदेल्ल पर्वत। ४. राजा सगर के ज्येष्ठ पुत्र असमंजस का दत्तक पुत्र।

सुदेष्णा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बलि की पत्नी। २. विराट की पत्नी और कीचक की बहन।

सुदेष्णु
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुदेष्णा'।

सुदेस पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुदेश] दे० 'सुदेश'।

सुदेश (३)
संज्ञा पुं० [सं० स्वदेश] अपना देश। स्वदेश।

सुदेस (२)
वि० सुंदर। उ०—अति सुदे समृदु हरत चिकुर मन मोहन मुख बगराइ। मानों प्रगट कंज पर मंजुल अलि अवली फिर आइ। सूर०, १०।१०८।

सुदेसी †
वि० [सं० स्व + देश; हिं० सुदेस + ई (प्रत्य०)] स्वदेशी। अपने देश का।

सुदेह (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सुंदर देह। सुंदर शरीर।

सुदेह (२)
वि० सुंदर। कमनीय। उ०—चले विदेह सुदेह हृदय हरि नेह बसाए। जरासंध बल अंध सैन सन बंध मिलाए।—गिरधर (शब्द०)।

सुदैव
संज्ञा पुं० [सं०] १. सौभाग्य। अच्छा भाग्य। अच्छी किसमत। २. अच्छा संयोग।

सुदोग्ध्री
वि० [सं०] अधिक दूध देनेवाली (गौ आदि)।

सुदोघ (१)
वि० स्त्री० [सं०] बहुत दूध देनेवाली (गौ)।

सुदोघ (२)
वि० दानशील। उदार।

सुदोह, सुदोहना
वि० [सं०] सुख या आराम से दूहने योग्य। जिसे दूहने में कोई कष्ट न हो।

सुदौसी पु
वि० [?] शीघ्रतापूर्वक। त्वरित।

सुद्दा
संज्ञा पुं० [अ० सुद्दह्] दे० 'सुद्दी'।

सुद्दी
संज्ञा स्त्री० [अ० सुद्दह्] पेट का जमा हुआ वह सूखा मल जो फुलाकर निकाला जाय।

सुद्ध पु
वि० [सं० शुद्ध, प्रा० सुद्ध] दे० 'शुद्ध'।

सुद्धाँ †
अव्य० [सं० सह] सहित। समेत। मिलाकर। जैसे,—उसके सुद्धाँ सात आदमी थे।

सुद्धांत
संज्ञा स्त्री० [सं० शुद्धान्त] जनाना। (डिं०)।

सुद्धा †
अव्व० [सं० सह] दे० 'सुद्धाँ'।

सुद्धि (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शुद्ध (बुद्धि)] दे० 'सुध'। उ०—(क) हिम्मति गई वजीर की ऐसी कीनी बुद्धि। होनहार जैसी कछू तैसीयै मन सुद्धि।—सूदन (शब्द०)। (ख) जैसी हो भवितव्यता तैसी उपजै बुद्धि। होनहार हिरदे बसै बिसर जाय सब सुद्धि।— लल्लू (शब्द०)।

सुद्धि (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० शुद्धि] दे० 'शुद्धि'।

सुद्यु
संज्ञा पुं० [सं०] पुरुवंशी राजा चारुपद के पुत्र का नाम।

सुद्युत्
वि० [सं०] खूब प्रकाशामान। सुदीप्त।

सुद्युम्न
संज्ञा पुं० [सं०] वैवस्वत मनु का पुत्र जो इड़ नाम से प्रसिद्ध हैं। विशेष—अग्निपुराण में इसकी कथा इस प्रकार दी है—एक बार हिमालय में महादेव जी पार्वती जी के साथ क्रीड़ा कर रहे थे। उस समय वैवस्वत मनु का पुत्र इड़ शिकार के लिये वहाँ जा पहुँचा। महादेव जी ने उसे शाप दिया, जिससे वह स्त्री हो गया। एक बार सोम का पुत्र बुध उसे देख कामासक्त हो गया और उसके सहवास से उसके गर्भ से पूरुरवा का जन्म हुआ। अंत को बुध की आराधना करने पर महादेव जी ने उसे शाप- मुक्त कर दिया और वह फिर पुरुष हो गया।

सुद्रष्ट
वि० [सं० सदृष्ट] सौम्य दृष्टिवाला। जो दयावान हो। कृपा युक्त कृपालु। (डिं०)।

सुद्रष्टा
वि० [सं० सुद्रष्ट्ट] जिसकी दृष्टि तीक्ष्ण या पैनी हो।

सुद्विज
वि० [सं०] सुंदर दाँतोंवाला।

सुद्विजानन
वि० [सं०] जिसका मुख सुंदर दंतपंक्तियों से युक्त हो।

सुधंग
संज्ञा पुं० [हिं० सीधा+अंग या सु+ढंग ?] अच्छा ढंग। उ०—(क) नृत्य करहिं नट नदी नारि नर अपने अपने रंग। मनहुँ मदनरति विविध वेष धरि नटत सुदेहु सुधंग।—तुलसी (शब्द०)। (ख) कबहुँ चलत सुधंग गति सों कबहुँ उघटत बैन। लोल कुंडल गंडमंडल चपल नैननि सैन।—सूर (शब्द०)।

सुध (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शुद्ध (बुद्धि) मा सु+धी] १. स्मृति। स्मरण। याद। चेत। क्रि० प्र०—करना। रखना। होना। मुहा०—सुध दिलाना=याद दिलाना। स्मरण करना। सुध न रहना=विस्मृत हो जाना। भूल जाना। याद न रहना। जैसे,—तुम्हारी तो किसी को सुध ही नहीं रह गई थी। सुध बिसरना=विस्मृत होना भूल जाना। सुध्र बिसराना या बिसारना=किसी को भूल जाना। किसी को स्मरण न रखना। उ०—तुम्हें कौन अनरीत सिखाई, सजन सुध बिसराई।—गीत (शब्द०)। सुध भूलना= दे० 'सुध बिसरना'। सुध भुलाना= दे० 'सुध बिसराना'। २. चेतना। होश। यौ०—सुध बुध=होश हवास। मुहा०—सुध बिसरना=अचेत होना। होश में न रहना। सुध बिसराना=अचेत करना। होश में न रहने देना। सुध न रहना =होश न रहना। अचेत हो जाना। उ०—सुध न रही देखतु रहै काल न लखै बिनु तोहिं। देखै अनदेखै तुहे कठिन दुहूँ विधि मोहिं।—रतनहजारा (शब्द०)। सुध सँभालना=होश सँभालना। होश में आना। ३. खबर। पता। मुहा०—सुध लेना=पता लेना। हालचाल जानना। सुध रखना=चौकसी रखना। उ०—(क) जब प्रसमन कौ बिलँब भयौ तब सत्राजित सुध लीन्हीं।—सूर (शब्द०)। (ख) दरदहिं दै जानत लला सुध लै जानत नाहि। कहो बिचारे नेहिया तव घाले किन जाहिं।—रतनहजारा (शब्द०)।

सुध (२)
वि [सं० शुद्ध] दे० 'शुद्ध'। उ०—सुकृत नीर में नहाय ले भ्रम भार टरे सुध होय देह।—कबीर (शब्द०)।

सुध (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुधा] दे० 'सुधा'। उ०—जाके रस को इंद्रहु तरसत सुधहु न पावत दाँज।—देव स्वामी (शब्द०)।

सुधन (१)
सज्ञा पुं० [सं०] परावसु गंधर्व के नौ पुत्रों में से एक जो ब्रह्मा के शाप से (कोलकल्प में) हिरण्याक्ष दैत्य के नौ पुत्रों में से एक हुआ था।

सुधन (२)
वि० [सं०] बहुच धनी। बड़ा अमीर।

सुधना पु
क्रि० अ० [हिं० शोधना] शुद्ध होना। ठीक होना। सूधा होना।

सुधनु
संज्ञा पुं० [सं० सुधनुस्] १. राजा कुरु का एक पुत्र जो सूर्य की पुत्री तपती के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। २. गौतम बुद्ध के एक पूर्वज।

सुधन्वा
वि० [सं० सुधन्वन्] १. उत्तम धनुष धारण करनेवाला। २. अच्छा धनुर्धर।

सुधन्वा (२)
संज्ञा पुं० १. विष्णु। २. विश्वकर्मा। ३. आंगिरस। ४. वैराज का एक पुत्र। ५. संभूत का एक पुत्र। ६. कुरु का एक पुत्र। ७. शाश्वत का एक पुत्र। ८. विदुर। ९. एक राजा जिसे मांधाता ने परास्त किया था। १०. व्रात्य वैश्य और सवर्णा स्त्री से उत्पन्न एक जाति। ११. अनंत। शेषनाग (को०)।

सुधन्वाचार्य
संज्ञा पुं० [सं०] व्रात्य वैश्य और सवर्णा स्त्री से उत्पन्न एक संकर जाति।

सुध बुध
संज्ञा स्त्री० [सं० सु+धी+बुद्धि] होश हवास। चेत। ज्ञान। दे० 'सुध'। मुहा०—सुध बुध जाती रहना=होश हवास जाता रहना। सुध बुध ठिकाने न होना=बुद्धि ठिकाने न होना। होश हवास दुरुस्त न होना। सुध बुध न रहना, सुध बुध मारी जाना= बुद्धि का लोप हो जाना। होश हवास न रहना। सुध बुध बिसराना=अचेत करना। होश में न रहने देना। उ०—कान्हा ने कैसी बाँसुरी बजाई, मेरी सुध बुध बिसराई।—गीत। (शब्द०)।

सुधमना पु †
वि० [हिं० सुध (=होश)+मन] [वि० स्त्री० सुधमनी] जिसे होश हो। सचेत। उ०—जब कबहूँ कै सुधमनी होति तब सुनौ एहो रधुनाथ गात तकि पाए परिकै। भावते की मूरति को ध्यान आए ल्यावति है आँखै मूँदि गावति है आँसुन सों भरिकै।—रघुनाथ (शब्द०)।

सुधर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक अर्हत् का नाम। (जैन)।

सुधर (२)
संज्ञा पुं० [डिं०] बया नामक पक्षी।

सुधरना
क्रि० अ० [सं० शोधन; हिं० सुधना] बिगड़े हुए का बनना। दोष या त्रुटियों का दूर होना। संशोधन होना। संस्कार होना। जैसे,—काम सुधरना, भाषा सुधरना, चाल सुधरना, घर सुधरना। सयो० क्रि०—जाना।

सुधरवाना
क्रि० स० [हिं० सुधरना] सुधार कराना। सुधार करने के लिये किसी को प्रेरित करना।

सुधराई
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुधरना+आई (प्रत्य०)] १. सुधारने की क्रिया। सुधारने का काम। सुधार। २. सुधारने की मजदूरी।

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सुधराव
संज्ञा पु० [हिं० सुधरना+आव (प्रत्य०)] सुधराई। बनाव। संशोधन।

सुधर्म (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्म धर्म। पुण्य कर्तव्य। २. जैन तीर्थंकर महावीर के दस शिष्यों में से एक। ३. किन्नरों के एक राजा का नाम। ४. देवताओं का एक वर्ग (को०)।

सुधर्म (२)
वि० धर्मपरायण। धर्मनिष्ठ।

सुधर्मनिष्ठ
वि० [सं०] अपने धर्म पर दृढ़ रहनेवाला। सुधर्मी।

सुधर्मा (१)
वि० [सं० सुधर्म्मन्] अपने धर्म पर दृढ़ रहनेवाला। धर्मपरायण।

सुधर्मा (२)
संज्ञा पुं० १. गृहस्थ। कुटुंबपालक। कुटुंबी। २. क्षत्रिय। ३. दशार्णें का एक राजा। ४. दृढ़नेमि का पुत्र। ५. जैनों के एक गणाधिप। ६. एक विश्वेदेव (को०)।

सुधर्मा (३)
संज्ञा स्त्री० १. इंद्र का सभाकक्ष। देवसभा। २. द्वारकापुरी का एक नाम (को०)।

सुधर्मी (१)
वि० [सं० सुधर्मिन्] धर्मपरायण। धर्मनिष्ठ।

सुधर्मी (२)
संज्ञा स्त्री० १. देवसभा। २. द्वारकापुरी (को०)।

सुधवाना
क्रि० स० [ हिं० सुधरना या सं० शोधन, हिं० सोधना का प्रेर० रूप] दोष या त्रुटि दूर कराना। शोधन कराना। ठीक कराना। दुरुस्त कराना।

सुधाँ
अव्य० [सं० सार्ध] दे० 'सुद्धाँ'। उ०—हाथी सुधाँ सब्ब हाथी परयो खेत। संग्राम में स्वामि के काम के हेत।—सूदन (शब्द०)।

सुधांग
संज्ञा पुं० [सं० सुधाङ्ग] चंद्रमा।

सुधांशु
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. कपूर।

सुधांशुतैल
संज्ञा पुं० [सं०] कपूर का तेल।

सुधंशुरत्न
संज्ञा पुं० [सं०] मोती। मुक्ता।

सुधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अमृत। पीयुष। अमी। २. मकरंद। ३. गंगा। ४. जल। ५. दूध। ६. रस। अर्क। ७. मूर्विका। मरोड़फली। ८. आँवला। आमलकी। ९. हर्रे। हरीतकी १०. सेहुँड़। थूहर। ११. सरिवन। शालपर्णी। १२. बिजली। विद्युत्। १३. पृथ्वी। धरती। जमीन। १४. विष। जहर। हला- हल। १५. चूना। १६. ईंट। इष्टका। १७. गिलोय। गुड़ुची। १८. रुद्र की स्त्री। १९. एक प्रकार का वृत्त। २०. पुत्री। २१. वधू। २२. धाम। घर। २३. मधु। शहद। २४. श्वेतता। सफेदी (को०)।

सुधाई पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुधा (=सीधा)] सीधापन। सिधाई। सरलता। उ०—(क) सूधी सुहाँसी सुधाकर सों मुख शोध लई वसुधा की सुधाई। सुधे स्वभाव बसै सजनी वश कैसे किए अति देढ़े कन्हाई।—केशव (शब्द०)। (ख) सीख सुधाई तीर तैं तन गति कुटिल कमान। भावे छिल्ला बैठ तूँ भावै बिच मैदान।—रतनहजारा (शब्द०)।

सुधाकंठ
संज्ञा पुं० [सं० सुधाकण्ठ] कोकिल। कोयल।

सुधाकर
संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा।

सुधाकार
संज्ञा पुं० [सं०] १. चूना पोतनेवाला। सफेदी करनेवाला। २. मिस्तरी। राज। मजूर। ३. सुधाकर। चंद्रमा (को०)।

सुधाक्षार
संज्ञा पुं० [सं०] चूने का खार।

सुधाक्षालित
वि० [सं०] सफेदी किया हुआ। जिसपर चूना पुता हुआ हो।

सुधागेह पु
संज्ञा पुं० [सं० सुधा+गेह (=घर)] चंद्रमा। उ०— देह सुधागेह ताहि मृगहु मलीन कियो ताहु पर बाहु बिनु राहु गहियतु है।—तुलसी (शब्द०)।

सुधाघट
संज्ञा पुं० [सं० सुधा+घट] चंद्रमा। उ०—मुकता माल नंदनंदन उर अर्ध सुधाघट कांति। तनु श्रीकंठ मेघ उज्वल अति देखि महाबल भाँति।—सूर (शब्द०)।

सुधाजीवी
संज्ञा पुं० [सं० सुधाजीविन्] वह जो चूना पोतकर जीविका निर्वाह करता हो। सफेदी करनेवाला। मजदूर।

सुधात
वि० [सं०] अत्यंत स्वच्छ [को०]।

सुधाता
वि० [सं० सुधातृन्] सजानेवाला। संयोजित और सुव्यवस्थित करनेवाला।

सुधातु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] सोना। स्वर्ण।

सुधातु (२)
वि० जिसके पास स्वर्ण हो। धनी।

सुधातुदक्षिण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो यज्ञादि में सुवर्ण दक्षिणा देता हो। २. वह जिसे यज्ञयागादि में बहुत अधिक दक्षिण मिली हो।

सुधादीधिति
संज्ञा पुं० [सं०] सुधांशु। चंद्रमा।

सुधाद्रव
संज्ञा पुं० [सं०] १. अमृत तुल्य एक प्रकार का द्रव पदार्थ। २. एक प्रकार की चटनी। ३. सफेदी (को०)।

सुधाधर (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुधा+धर (=धारण करनेवाला)] चंद्रमा। उ०—(क) श्री रघुवीर कह्मो सुन वीर ब्झ शशी कीधौ राहु डरायो। नाउँ सुधाधर है विष को घर ल्याई विरंचि कलंक लगायो।—हनुमन्नाटक (शब्द०)। (ख) धार सुधार सुधाधर तें सुमनो बसुधा में सुधा ढरकी परै।— सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)।

सुधाधर (२)
वि० [सं० सुधा+अधर] जिसके अधरों में अमृत हो। उ०—वासो मृग अंक कहै तोसों मृगनैनी सबै वासो सुधाधर तोहूँ सुधाधर मानिए।—केशव (शब्द०)।

सुधाधरण
संज्ञा पुं० [सं० सुधा+धरण (=धारणकर्ता)] चंद्रमा। (डिं०)।

सुधाधवल
वि० [सं०] १. सुधा या चूने के समान सफेद। २. चूना पुता हुआ। सफेदी किया हुआ।

सुधाधवलित
वि० [सं०] दे० 'सुधाधवल'।

सुधाधाम पु
संज्ञा पुं० [सं० सुधा+धाम] चंद्रमा। उ०—धूमपुर के निकेत मानों धूमकेतू की शिखा की धूमयोनि मध्य रेखा सुधाधाम की।—केशव (शब्द०)।

सुधाधामा
संज्ञा पुं० [सं० सुधाधामन्] चंद्रमा। चाँद।

सुधाधार
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. सुधा का आधार। अमृतपात्र।

सुधाधी पु
वि० [सं० सुधा+धी] सुधा के समान। सुधायुक्त। अमृत के तुल्य। उ०—या कहि कौशिल्यहि वह आधी। देत भए नृप खीर सुधाधी।—पद्माकर (शब्द०)।

सुधाधौत
वि० [सं०] चूना किया हुआ। सफेदी किया हुआ।

सुधानजर
वि० [सं० सुधा या हिं० सूधा (=सीधी) +अ० नजर] दयावान्। कृपालु।(डिं०)।

सुधाना पु (१)
क्रि० स० [हिं० सुध (=स्मृति)] सुध कराना। चेत कराना। स्मरण कराना। याद दिलाना।

सुधाना (२)
क्रि० स० १. शोधने का काम दूसरी से कराना। दुरुस्त कराना। ठीक कराना। २. (लग्न या कुंडली आदि) ठीक कराना। उ०—(क) पालनौ आन्यौ बनाइ, अति मन मान्यौ सुहाइ। नीकौ सुभ दिन सुधाइ झूलौ हो झुलौया। सूर०, १०। ४१। (ख) लिय तुरंत ज्योतिषी बुलाई। लग्न घरी सब भाँति सुधाई।—रघुराज (शब्द०)।

सुधानिधि
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। उ०—मनहुँ सुधानिधि वर्षत घन पर अमृत धार चहुँ ओर।—सूर (शब्द०)। २. समुद्र। उ०—श्रीरामानुज उदार सुधानिधि अवनि कल्पतरु।—नाभा- दास (शब्द०)। ३. कपूर (को०)। ४. दंडक वृत्त का एक भेद, जिसमें ३२ वर्ण होते हैं और १६. बार क्रम से गुरु लघु आते हैं।

सुधानिधि रस
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार का रस जो पारे, गंधक, सोनामक्खी और लोहै आदि के योग से बनता है। इसका व्यवहार रक्तपित्त में किया जाता है।

सुधापय
संज्ञा पुं० [सं० सुधापयस्] थूहर का दूध। स्नुहीक्षीर।

सुधापाणि
संज्ञा पुं० [सं०] धन्वंतरी। पीयुषपाणि। विशेष—पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन के समय धन्वंतरी जी हाथ में सुधा या अमृत लिए हुए निकले थे; इसी से उनका नाम सुधापाणि या पीयूषपाणि पड़ा।

सुधापाषाण
संज्ञा पुं० [सं०] सफेद खली। सेतखरी।

सुधापूर
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत का प्रवाह या धारा।

सुधाभवन
संज्ञा पुं० [सं०] अस्तरकारी किया हुआ मकान।

सुधाभित्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सफेदी की हुई दीवार। २. इष्टका- निर्मित भित्ति। ईंटे की दीवाल (को०)। ३. पाँचवें मुहूर्त की आख्या या नाम (को०)।

सुधाभुज
संज्ञा पुं० [सं० सुधाभुक्] अमृत भोजन करनेवाले, देवता।

सुधाभृति
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. कपूर (को०)। ३. यज्ञ।

सुधाभोजी
संज्ञा पुं० [सं० सुधाभोजिन्] अमृत भोजन करनेवाले, देवता।

सुधाम
संज्ञा पुं० [सं० सुधामन्] १. चंद्रमा। २. एक प्राचीन ऋषि का नाम। ३. रैवतक मन्वंतर के देवताओं का एक गण। ४. पुराणानुसार क्रौंच द्वीप के अंतर्गत एक वर्ष के राजा का नाम।

सुधामय (१)
वि० [सं०] [वि० सुधामयी] १. सुधा से भरा हुआ। अमृतस्वरूप। २. चूने का बना हुआ।

सुधामय (२)
संज्ञा पुं० १. राजभवन। राजप्रासाद। २. ईंट या प्रस्तर से बना हुआ मकान (को०)।

सुधामयूख
संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा।

सुधामुखो
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।

सुधामूली
संज्ञा स्त्री० [सं०] सालम मिस्त्री। सालब मिस्त्री।

सुधामोदक
संज्ञा पुं० [सं०] १. यवास शर्करा। शीर खिश्त। २. कपूर। कर्पूर (को०)। ३. बंसलोचन। वंशकर्पूर। विशेष दे० 'बंसलोचन'।

सुधामोदकज
संज्ञा पुं० [सं०] तुरंजविन की खाँड़। तवराज खंड।

सुधाय
संज्ञा पुं० [सं०] सुख शांति। आराम चैन [को०]।

सुधायोनि
संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा।

सुधार (१)
संज्ञा पुं० [हिं० सुधरना] सुधरने की किया या भाव। दोष या त्रुटियों का दूर किया जाना। संशोधन। संस्कार। इस- लाह। क्रि० प्र०—करना। होना।

सुधार (२)
वि० तीक्ष्ण धारवाला जिसकी धार या नोक अत्यंत तीक्ष्ण हो; जैसे, वाण [को०]।

सुधारक
संज्ञा पुं० [हिं० सुधार+क (प्रत्य०)] १. वह जो दोषों या त्रुटियों का संशोधन या सुधार करता हो। संस्कारक। संशोधक। २. वह जो धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक सुधार या उन्नति के लिये प्रयत्न या आंदोलन करता हो।

सुधारना (१)
क्रि० स० [हिं० सुधरना] १. दोष या बुराई दूर करना। बिगड़े हुए को बनाना। दुरुस्त करना। संशोधन करना। २. संस्कार करना। सँवारना। उ०—दुहु कर कमल सुधारत बाना।—मानस, ६।११।

सुधारना (२)
वि० [वि० स्त्री० सुधारनी] सुधारनेवाला। ठीक करनेवाला। (क) उ०—भगति गोपाल को सुधारनो है नर देहँ, जगत अधारनी है जगत उधारनी।—गिरधर (शब्द०)।

सुधारश्मि
संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा।

सुधारस
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुधा। अमृत। २. दुग्ध। दूध [को०]।

सुधारा पु
वि० [हिं० सूधा+आरा (प्रत्य०)] सीधा। सरल। निष्कपट। उ०—आयो घोष बड़ो व्यापारी। लादि पेखि गुणगान योग की ब्रज में आनि उतारी। फाटक दै के हाटक माँगत भोगे निपट सुधारी। इनके कहे कौन डहकावै ऐसो कौन अनारी।—सूर (शब्द०)।

सुधारू †
संज्ञा पुं० [हिं० सुधार +ऊ (प्रत्य०)] सुधारनेवाला। संस्कार करनेवाला। संशोधक।

सुधालता
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की गिलोय।

सुधावदात (१)
वि० [सं० सुधा+अवदात] दे० 'सुधाधवल'।

सुधावदात (२)
संज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम।

सुधावर्ष
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत की वर्षा [को०]।

सुधावर्षी (१)
वि० [सं० सुधावर्षिन्] अमृत बरसानेवाला।

सुधावर्षी (२)
संज्ञा पुं० १. ब्रह्मा। २. कपूर (को०)। ३. चंद्रमा (को०)। ४. एक बुद्ध का नाम।

सुधावास
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. कर्पूर। कपूर (को०)। ३. खीरा। त्रपुषी।

सुधावृष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] अमृत की वर्षा। सुधा की वर्षा। उ०— सुधावुष्टि भै दुहु दल ऊपर।—मानस, ६। ११३।

सुधाशर्करा
संज्ञा स्त्री० [सं०] खली। खरी। सेतखरी।

सुधाशुभ्र
वि० [सं०] १. सुधा सदृश श्वेत। सुधासित। २. जो सुधा द्वारा शुभ्र हो। सफेदी किया हुआ [को०]।

सुधाश्रवा पु
संज्ञा पुं० [सं०सुधा+श्रवा(=प्रवाह), स्त्रव, स्त्रवण (=गिराना, बहाना)] अमृत बरसानेवाला। उ०—चल्यो तवा सो तप्त दवा भूरिश्रवा भट। सुधाश्रवा सिर छत्र हवा जब सुरथ नवा पट। —गोपालचंद (शब्द०)।

सुधामदन
संज्ञा पुं० [सं०सुधा+सदन] चंद्रमा। उ०—सरद सुधा- सदन छबिहि निदै बदन अरुन आयत नव नलिन लोचन चारु। —तुलसी (शब्द०)।

सुधासमुद्र
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत का समुद्र।

सुधासागर
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत का समुद्र।

सुधासिंधु
संज्ञा पुं० [सं०सुधासिन्धु] दे० 'सुधासागर' [को०]।

सुधासिक्त
वि० [सं०] अमृत से सिंचित।

सुधासित
वि० [सं०] १. सफेदी किया हुआ। चूना पुता हुआ। २. चूना या अमृत की तरह दीप्त और श्वेत (को०)।

सुधासू
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत उत्पन्न करनेवाला, चंद्रमा।

सुधासूति
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा। २. यज्ञ। ३. कमल।

सुधास्पर्धी
वि० [सं०सुधास्पर्धिन्] अमृत की बराबरी करनेवाला। अमृत के समान मधुर (भाषण आदि)।

सुधास्त्रवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गले के अंदर की घंटी। छोटी जीभ। कौवा।२. रुद्रवंती। रुदंती।

सुधाहर
संज्ञा पुं० [सं०] गरूड़।

सुधाहर्ता
संज्ञा पुं० [सं० सुधाहर्तृ] गरुड़ का नाम [को०]।

सुधाहृत्
संज्ञा पुं० [सं०] गरुड़।

सुधाह्नद
संज्ञा पुं० [सं०] अमृत का सरोवर।

सुधि
संज्ञा स्त्री० [सं० शुद्ध (बुद्धि)या सु+धी (=बुद्धि)] दे० 'सुध'। उ०—(क) वह सुधि आवत तोहिं सुदामा। जब हम तुम बन गए लकरियन पठए गुरु की भामा। —सूर (शब्द०)। (ख) रामचंद्र विख्यात नाम यह सुर मुनि की सुधि लीनी।—सूर (शब्द०)।

सुधित
वि० [सं०] १. सुव्यवस्थित। सुरक्षित।२. अच्छी तरह सिद्ध। जैसे, अन्न आदि (को०)।३. सुधा या अमृत के समान। ४. सदय। कृपालु। साधु। भद्र (को०)। ५. लक्ष्य पर ठीक ठीक साधा हुआ। जैसे, वाण, कुंत आदि (को०)।

सुधिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कुठार। कुल्हाड़ी। परशु। २. वज्र।

सुधी (१)
संज्ञा पुं० [सं०] विद्वान् व्यक्ति। पंडित। शिक्षक।

सुधी (२)
संज्ञा स्त्री० १. सदबुद्धि। सुबुद्धि [को०]।

सुधी (३)
वि० १. उत्तम बुद्धिवाला। बुद्धिमान्। चतुर। २. धार्मिक।

सुधीर
वि० [सं०] जिसमें यथेष्ट धैर्य हो। धैर्यवान्।

सुधुम्नानी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणनुसार पुष्कार द्विप के सात खंडों में से एक। उ०—एक सुधुम्नानी कहै और मनोजल जानु। चित्त्ररेफ है तीसरो चौथो गणि पवमानु। पंचम जानि पुरोज- वहि छठो विमल बहु रूप। विश्वधातु है सात जो यह खंडनि को रूप। —केशव (शब्द०)। विशेष—यह शब्द संस्कृत के कोशों में नहीं मिलता।

सुधूपक
संज्ञा पुं० [सं०] श्रीवेष्ट नामक गंधद्रव्य।

सुधूम्य
संज्ञा पुं० [सं०] स्वादु नामक एक गंधद्रव्य।

सुधूम्रवर्णा
संज्ञा स्त्री० [सं०] अग्नि की सात जिह् वाओं में से एक जिह् वा का नाम।

सुधृति
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक राजा का नाम जो मिथिला के महावीर का पुत्र था। २. राज्यवर्धन का पुत्र।

सुधोद्भव
संज्ञा पुं० [सं०] धन्वंतरि। विशेष— समुद्रमंथन के समय धन्वंतरि सुधा लिए हुए निकले थे; इसी से इन्हें 'सुधोदभव' कहते हैं।

सुधोद्भवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] हरीतकी। हर्रे। हड़।

सुधौत
वि० [सं०] १. अच्छी तरह साफ किया हुआ। धुला हुआ। स्वच्छ [को०]।

सुध्युपास्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. परमेश्वर, जो सुधी जनों के उपास्य हैं। २. एक प्रकार का राजप्रासाद। ३. कृष्ण का एक सखा। ४. बलदेव का मूसल [को०]।

सुध्युपास्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. औरत। नारी। स्त्री। २. पार्वती। उमा। ३. पार्वती की एक सखी। ४. एक प्रकार का रंग।

सुनंद (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुनन्द] १. एक देवपुत्र। २. श्रीकृष्ण का एक पार्षद्। ३. बलराम का मूसल। ४. कुंजृंभ दैत्य का मूसल जो विश्वकर्मा का बनाया हुआ माना जात है। ५. बारह प्रकार के राजभवनों में से एक। विशेष—यह सुनंद नामक राजप्रासाद राजाओं के लिये विशेष शुभकर माना गया है। कहते है, इसमें रहनेवाले राजा को कोई परास्त नहीं कर सकता। 'युक्तिकल्पतरु' के अनुसार इस भवन की लंबाई राजा के हाथ के परिमाण से २१ हाथ और चौड़ाई४० हाथ होनी चाहिए। ६. एक बौद्ध श्रावक।

सुनंद (२)
वि० आनंददायक।

सुनंदक
संज्ञा पुं० [सं० सुनन्दन] शिव का एक गण।

सुनंदन
संज्ञा पुं० [सं०सुनन्दक] १. पुराणानुसार कृष्ण के एक पुत्र का नाम। २. पुरीषभीरु का एक पुत्र। ३. भूनंदन का भाई।

सुनंदा
संज्ञा स्त्री० [सं० सुनन्दा] १. उमा। गौरी। २. उमा की एक सखी। ३. कृष्ण की एक पत्नी। ४. बाहु और बालि की माता। ५. चेदि के राजा सुबाहु की बहन। ६. सार्वभौम दिग्गज की पत्नी। ७. दुष्यंत के पुत्र भरत की पत्नी। ८. प्रतीप की पत्नी। ९. एक नदी का नाम। १०. सर्वांर्थसिद्धि नंद की बड़ी स्त्री। ११. सफेद गौ। १२. गोरोचना। गोरोचन। १३. अर्क- पत्री। इसरौल। १४. एक तिथि। १५. नारी। स्त्री। औरत।

सुनंदिनी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुनन्दिनी] १. आरामशीतला नामक पत्नशाक। २. एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में 'स ज स ज ग' रहते हैं। इसे प्रबोधिता और मंजुभाषिणी भी कहते हैं।

सुन †
वि०, संज्ञा पुं० [सं० शुन्य] दे० 'सुन्न'।

सुनका †
संज्ञा पुं० [देश०] चौपायों का एक रोग जो उनके कंठ में होता है। गरारा। घुरकवा।

सुनकातर
संज्ञा पुं० [सं० स्वन, हिं० सोन+कातर] १. एक प्रकार का साँप।

सुनकिरवा
संज्ञा पुं० [हिं० सोना+किरवा (=कीड़ा)] एक प्रकार का कीड़ा जिसके पर पन्ने के रंग के होते हैं। उ०—गोरी गदकारी परे हँसत कपोलनि गाड़। कैसी लसति गँवारि यह सुनकिरवा की आड़।—बिहारी (शब्द०)। २. † एक प्रकार का क्षुप।

सुनक्षत्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तम नक्षत्र। २. एक राजा का नाम जो मरुदेव का पुत्र था। ३. निरमित्र का पुत्र।

सुनक्षत्र (२)
/?/उत्तम नक्षत्रवाला।

सुनक्षत्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कर्म मास का दूसरा नक्षत्र। २. कार्तिकेय की एक मातृका।

सुनखर्चा †
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का धान जो आश्विन के अंत और कार्तिक के प्रारंभ में होता है।

सुनगुन
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनना+अनु+गुन] १. किसी बात का भेद। टोह। सुराग। क्रि० प्र०—मिलना।—लगना। २. कानाफूसी। अस्पष्ट चर्चा।

सुनजर
वि० [सं० सु+फा० नजर] दयावान्। कृपालु। (डिं)।

सुनत (१)
संज्ञा स्त्री० [अ० सुन्नत] दे० 'सुन्नत'।

सुनत (२)
वि० [सं०] अत्यंत नम्र या झुका हुआ।

सुनति †
संज्ञा स्त्री० [अ० सुन्नत] दे० 'सुन्नत'। उ०—(क) जो तुरुक तुरुकिनी जाया। पेटै काहे न सुनति कराया।—कबीर (शब्द०)। (ख) कासिहु ते कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होते तो सुनति होत सब की।—भूषण (शब्द०)।

सुनना
क्रि० स० [सं० श्रवण तुल० प्रा० सुनोतिं] १. श्रवणोंद्रिय के द्वारा शब्द का ज्ञान प्राप्त करना। कानों के द्वारा उनका विषय ग्रहण करना। श्रवण करना। जैसे,—फिर आवाज दो, उन्होंने सुना नहोगा। संयो० क्रि०—पड़ना।—रखना।मुहा०—सुनी अनसुनी कर देना=कोई बात सुनकर भी उसपर ध्यान न देना। किसी बात को टाल जाना। सुनी सुनाई= जिसे केवल सुनकर जाना गया हो, प्रत्यक्ष देखा न गया हो। जैसे, सुनी सुनाई बात। २. किसी के कथन पर ध्यान देना। किसी की उक्ति पर ध्यान- पूर्वक विचार करना। कान देना जैसे,—कथा सुनना, पाठ सुनना, मुकदमा सुनना। ३. भली बुरी या उलटी सोधी बातें श्रवण करना। जैसे,—(क) मालूम होता है, तुम भी कुछ सुनना चाहते हो। (ख) जो एक कहेगा, वह चार सुनेगा।

सुनफा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ज्योतिष का एक योग। विशेष—सूर्य के अतिरिक्त जब कोई ग्रह चंद्रमा के बाद द्वितीय स्थिति में आ बैठता है तब 'सुनफा योग' होता है।

सुनबहरा †
वि० [हिं० सुनना+बहरा] पूरी तरह सुनकर या श्रवण करके भी बधिर का सा आचरण करना। सुनकर भी न सुनने का भाव व्यक्त करना।

सुनबहरी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुन्न+बहरी ?] १. एक प्रकार का रोग जिसमें पैर फूल जाता है। श्लीपद। फोलपा। २. एक प्रकार का कुष्ठ रोग जिसमें रोग से आक्रांत अंग या शरीर का भाग सुन्न हो जाता है और वहाँ स्पर्श या आघात की अनुभूति नहीं होती।

सुनय
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुनीति। उत्तम नीति। २. सदाचार। सदव्यबहार (को०)। ३. परिप्लव राजा का पुत्र। ४. ऋत का एक पुत्र। ५. खनित्र का पुत्र।

सुनयन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] मूग। हरिन।

सुनयन (२)
वि० [स्त्री० सुनयना] सुंदर आँखोंवाला। सुलोचन।

सुनयना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. राजा जनक की पत्नी। २. नारी। स्त्री। औरत। ३. सुंदर नेत्रोंवाली स्त्री (को०)।

सुनर
संज्ञा पुं० [सं० सु+नर] १. अर्जुन। (डिं०)। २. सुंदर पुरुष।

सुनरिया ‡
संज्ञा स्त्री० [सं० सुन्दरी, सु+नरी+इया (प्रत्य०)] सुंदर नारि। सुंदर स्त्री। उ०—प्यारे की पियरिया जगत से नियरिया सुनरिया अनुठी चोरी चाल।—बलबीर (शब्द०)।

सुनरी †
संज्ञा स्त्री० [सं० सुन्दरी] दे० 'सुनरिया'।

सुनर्द
वि० [सं०] गंभीर गर्जन या नाद करनेवाला [को०]।

सुनवाई
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनना+वाई (प्रत्य०)] १. सुनने की क्रिया या भाव। २. मुकदमे आदि का पेश होकर सुना जाना। ३. किसी शिकायत, फरियाद आदि का सुना जान। जैसे, तुम लाख चिल्लाया करो; वहाँ कुछ सुनवाई ही नहीं होगी।

सुनवैया पु
वि० [हिं० सुनना+वैया (प्रत्य०)] १. सुननेवाला। २. सुनानेवाला। उ०—मंगल सदा ही करै राम ह्ने प्रसन्न, सदा राम रसिकावली सुनैया सुनवैया को।—रघुराज (शब्द०)।

सुनस
वि० [सं०] सुंदर नाकवाला।

सुनसर
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का गहना।

सुनसान (१)
वि० [सं० शून्य+स्थान] १. जहाँ कोई न हो। खाली। निर्जन। जनहीन। उ०—(क) ये तेरे वनपंथ परे सुनसान उजारू।—श्रीधर पाठक (शब्द०)। (ख) स्वामी हुए बिना सेवक के नगर मनुष्यों बिन सुनसान।—श्रीधर पाठक (शब्द०)। (ग) सुनसान कहुँ गंभीर बन कहुँ सोर वन पशु करत हैं।—उत्तररामचरित्र (शब्द०)। २. उजाड़ । वीरान।

सुन मान (२)
संज्ञा पुं० सन्नाटा। उ०—निशा काल अतिशय अँधियारा छाय रहा सुनसान।—क्षीधर पाठक (शब्द०)।

सुनह
संज्ञा पुं० [सं०] जन्हु का एक पुत्र।

सुनहरा
वि० [हिं० सोना] [वि० स्त्री० सुनहरी] दे० 'सुनहला'।

सुनहला
वि० [हिं० सोना + हला (प्रत्य०)] [स्त्री० सुनहली] सोने के रंग का। सोने का सा। जैसे,—सुनहला काम। सुनहला रंग।

सुनाई
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनना + आई (प्रत्य०)] दे० 'सुनवाई'।

सुनाकुत, सुनाकृत
संज्ञा पुं० [सं०] काली हलदी। कचूर। कर्पूरक।

सुनाद (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शंख। २. सुंदर नाद या ध्वनि।

सुनाद (२)
वि० सुंदर नाद या शब्दवाला।

सुनादक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुनाद'।

सुनाना
क्रि० स० [हिं० सुनना का प्रेर० रूप] १. दूसरे को सुनने में प्रवृत्त करना। कर्णगोचर कराना। श्रवण कराना। २. खरी- खोटी करना। जैसे,—तुमने भी उसे खूब सुनाया। संयो० क्रि०—डालना।—देना।

सुनानी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनना + आनी (प्रत्य०)] दे० 'सुनावनी'।

सुनाभ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुदर्शन चक्र। २. मैनाक पर्वत। ३. धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम। ४. वरुण का एक मंत्री। ५. गरुड़ का एक पुत्र। ६. पर्वत। महीधर (को०)। ७. एक प्रकार का मंत्र जिसका प्रयोग अस्त्रों पर किया जाता था।

सुनाभ (२)
वि० १. सुंदर नाभि या मध्य भागवाला।

सुनाभक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुनाभ'।

सुनाभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] कटभी। करही। हरिमल।

सुनाभि
वि० [सं०] सुंदर नाभिवाला।

सुनाम
संज्ञा पुं० [सं०] यश। कीर्ति। ख्याति।

सुनाम द्वादशी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एत व्रत जो वर्ष की बारहों शुक्ला द्रादशियों को किया जाता है। विशेष—अगहन महीने की शुक्ला द्रादशी को इस व्रत का आरंभ होता है। अग्निपुराण में इसका बड़ा माहात्म्य लिखा है।

सुनामा (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुनामन्] १. कंस के आठ भाइयों में से एक। २. सुकेतु के एक पुत्र का नाम। ३. स्कंद का एक पार्षद। ४. वैनतेय का एक पुत्र।

सुनामा (२)
वि० १. यशस्वी। कीर्तिशाली। २. सुंदर नामवाला (को०)।

सुनामिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] त्रायमाणा लता। त्रायमान।

सुनामी
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवक की पुत्री और वसुदेव की पत्नी।

सुनायक
संज्ञा पुं० [सं०] १. कार्तिकेय के एक अनुचर का नाम। २. एक दैत्य का नाम। ३. वैनतेय के एक पुत्र का नाम। ४. वह व्यक्ति जो अच्छा या गोग्य नायक हो।

सुनार (१)
संज्ञा पु० [सं० स्वर्णकार] [स्त्री० सुनारिन, सुनारी] सोने, चाँदी के गहने आदि बनानेवाली जाति। स्वर्णकार।

सुनार (२)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुतिया का दूध। २. साँप का अंडा। ३. चटक पक्षी। गोरा। गौरैया।

सुनार †
संज्ञा स्त्री० [हिं० सु + नार (=नारी)] सुंदर स्त्री।

सुनारी (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनार + ई (प्रत्य०)] १. सुनार का काम। २. सुनार की स्त्री। उ०—धाइ जनी नायन नटी प्रकट परोसिन नारि। मालिन बरइन शिल्पिनी चुरहेरनी सुनारि।—केशव (शब्द०)।

सुनारी (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + नारी] सुंदर स्त्री।

सुनाल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] रक्त कमल। लाल कमल। लामज्जक।

सुनाल (२)
वि० जिसकी नाल सुंदर हो [को०]।

सुनालक
संज्ञा पुं० [सं०] अगस्त। वकपुष्प का वृक्ष।

सुनावनी
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुनना + आवनी (प्रत्य०)] १. कहीं विदेश से किसी संबंधी आदि की मृत्यु का समाचार आना। क्रि० प्र०—आना। २. वह स्नान आदि कृत्य जो परदेश से किसी संबंधी की मृत्यु का समाचार आने पर होता है। क्रि० प्र०—में जाना।

सुनाशीर
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुनासीर'।

सुनास (१)
वि० [सं०] वि० 'सुनस'।

सुनासा (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुंदर एवं सुडौल नासिका। २. कौआ- ठोठी। काकनासा।

सुनासिक
वि० [सं०] जिसकी नाक सुंदर हो। सुंदर नाकवाला। सुनास।

सुनासिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कौआठीठी। काकनासा। २. सुंदर नासिका।

सुनासीर
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र। उ०—सुनासीर सत सरिस सो संतत करै बिलास।—मानस, ६। १०। २. देवता। अमर।

सुनाहक पु
क्रि० वि० [हिं० सु + फा़० ना + अ० हक] दे० 'नाहक'।

सुनिगूढ
वि० [सं०] जो अत्यंत निगूढ़ हो। सुनिभृत [को०]।

सुनिग्रह
वि० [सं०] जो भली प्रकार नियंत्रित हो। २. जो सरलता से नियंत्रण के योग्य हो। दुर्निग्रह का उलटा।

सुनिद्र
वि० [सं०] जिसे अच्छी नींद आई हो। अच्छी तरह सोया हुआ। सुनिद्रित।

सुनिद्रित
वि० [सं०] दे० 'सुनिद्र'।

सुनिनद, सुनिनाद
वि० [सं०] १. सुंदर नाद या शब्द करनेवाला। २. जिसका स्वर सुंदर हो।

सुनिभृत
वि० [सं०] अत्यंत निभृत या एकांत। अत्यंत गूढ़।

सुनिमय
वि० [सं०] जो सरलता से विनिमय के योग्य हो।

सुनियत
वि० [सं०] १. सुव्यवस्थित। सुनिर्धारित। सुनिश्चित। २. जिसके रखने में सावधानी बरती गई हो।

सुनियम
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छी व्यवस्था। उत्तम नियम या मर्यादा।

सुनियाना †
क्रि० अ० [हिं० सुन्न + इयाना (प्रत्य०)] (फसल का) रोग से सुख जाना या मारा जाना (रुहेलखंड)।

सुनिरुहन
संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का वस्तिकर्म।

सुनिरूढ
वि [सं०] जिसे ओषाधि से अच्छी तरह रेचन कराया गया हो [को०]।

सुनिरूहण
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम जुलाब या रेचन। दे० 'सुनि- रूहन'।

सुनिर्णिवत
वि० [सं०] सम्यक् परिष्कार किया हुआ। अच्छी तरह प्रमृष्ट [को०]।

सुनिर्यास
संज्ञा पुं० [सं०] लिंगिनी नामक वृक्ष।

सुनिर्यासा
संज्ञा स्त्री० [सं०] जिंगिनी वृक्ष। विशेष दे० 'जिगिन' [को०]।

सुनिश्र्चय
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छा निश्चय। २. दृढ़ निश्चय।

सुनिश्र्चल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम [को०]।

सुनिश्र्चल (२)
वि० अचल। अटल [को०]।

सुविश्र्चत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक बुद्ध का नाम।

सुनिश्र्चित (२)
वि० दृढ़ता से निश्चय किया हुआ। भली भाँति निश्चित किया हुआ।

सुनिश्र्चितपुर
संज्ञा पुं० [सं०] काश्मीर का एक प्राचीन नगर।

सुनिषण्ण
संज्ञा पुं० [सं०] चौपतिया या सुसना नाम का साग। शिग्यिरी। उटंगन। विशेष—कहते हैं, यह साग खाने से अच्छी नींद आती है; इसी से इसका नाम सुनिषण्ण (जिससे अच्छी नींद आवे) पड़ा है।

सुनिषण्णक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुनिषण्ण'।

सुनिष्टप्त
वि० [सं०] १. जो खूब निष्टप्त किया गया हो। अच्छी तरह तपाया या गलाया हुआ। २. खूब पकाया हुआ [को०]।

सुनिस्त्रिंस
संज्ञा पुं० [सं०] तेज धारवाली तलवार।

सुनीच
संज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिष के अनुसार किसी ग्रह का किसी राशि के किसी विशेष अंश में अवस्थान। जैसे,—रवि यदि मेष और तुला राशि में हो तो नीचस्थ कहलाता है; और इसी तुला राशि के किसी विशेष अंश में पहुँच जाने पर 'सुनीच'।

सुनीत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बुद्धिमत्ता। समझदारी। २. नीतिमत्ता। ३. शिष्टता। विनम्रता (को०)। ४. एक राजा का नाम जो सुबल का पुत्र था।

सुनीत (२)
वि० भद्र। शिष्ट। विनम्र [को०]।

सुनीति (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. उत्तम नीति। २. राजा उत्तानपाद की पत्नी और ध्रुव की माता।विशेष—विष्णुपुराण में लिखा है कि राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं—सुनीति और सुरुचि। सुरुचि को राजा बहुत चाहता था और सुनीति से बहुत घृणा करता था। सुनीति को 'ध्रुव' नामक एक पुत्र हुआ जिसने तप द्वारा भगवान् को प्रसन्न कर राजसिंहासन प्राप्त किया। विशेष दे० 'ध्रुव'।

सुनीति (२)
संज्ञा पुं० १. शिव। २. विदूरथ का एक पुत्र।

सुनीति (३)
वि० अच्छा नीतिज्ञ या नीतियुक्त [को०]।

सुनीथ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कृष्ण का एक पुत्र। २. संतति का पुत्र। ३. सुषेण का एक पुत्र। ४. सुबल का एक पुत्र। ५. शिशुपाल का एक नाम। ६. एक दानव का नाम। ७. एक प्रकार का वृत्त। ८. ब्राह्मण (को०)।

सुनीथ (२)
वि० न्यायपरायण। नीतिमान्।

सुनीथा
संज्ञा स्त्री० [सं०] मृत्यु की पुत्री और अंग की पत्नी।

सुनील (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. अनार का पेड़। दाड़िम वृक्ष। २. लामज्जक। लाल कमल।

सुनील (२)
वि० अत्यंत नील वर्ण। बहुत नील रंग।

सुनीलक
संज्ञा पुं० [सं०] १. नील भृंगराज। काला भँगरा। २. नीलकांत मणि। नीलम। ३. पियासाल का वृक्ष। नीला- सन (को०)।

सुनीला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चणिका तृण। चनिका घास। २. नीलापराजिता। नीली अपराजिता। नीली कोयल। ३. अतसी। अलसी। तीसी।

सुनु
संज्ञा पुं० [सं०] जल।

सुनेत्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। २. तेरहवें मनु का एक पुत्र। ३. बौद्धों के अनुसार मार का एक पुत्र। ४. चक्रवाक। चकवा।

सुनेत्र (२)
वि० [वि० स्त्री० सुनेत्रा] सुंदर नेत्रोंवाला। सुलोचन।

सुनेत्रा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] सांख्य के अनुसार नौ तुष्टियों में से एक।

सुनेत्रा (२)
वि० स्त्री० सुंदर नेत्रोंवाली। सुलोचना।

सुनैया पु
वि० [हिं० सुनना + ऐया (प्रत्य०)] १. सुननेवाला। जो सुने। उ०—द्रौपदी विचारै रघुराज आज जाति लाज सब हैं घरैया पै न टेर की सुनैया है।—रघुराज (शब्द०)। २. सुनानेवाला।

सुनोची
संज्ञा पुं० [देश०] एक प्रकार का घोड़ा। उ०—जरदा औ जाग जिरही से जग जाहर, जवाहर हुकुम सौं जवाहर झलक के। मंगसी मुजंनस सुनोची स्यामकर्न स्याह, सिरग सजाए जे न मंदिर अलक के।—सूदन (शब्द०)।

सुनौ (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] अच्छी नौका या नाव।

सुनौ (२)
संज्ञा पुं० १. जल। २. वह जिसके पास अच्छी नौका हो [को०]।

सुन्न (१)
वि० [सं० शून्य, प्रा० सुन्न] निर्जीव। स्पंदनहीन। निस्तब्ध। जड़वत्। निश्चेष्ट। निश्चल। जैसे,—ठंढ के मारे उसके हाथ पैर सुन्न हो गए। उ०—(क) यह बात सुनकर भाग्यवती सुन्न सी हो गई।—श्रद्धाराम (शब्द०)। (ख) तहाँ लगी विरहागि नाहिं क्यों चलि कै पेखत। सुकवि सुन्न ह्वै जाय न प्यारी देखत देखत।—अंबिकादत (शब्द०)। (ग) निरखि कंस की छाती धड़की। सुन्न समान भई गति धड़की।—गिरधर (शब्द०)।

सुन्न (२)
संज्ञा पुं० शून्य। सिफर। उ०—(क) यथा सुन्न दस गुन्न बिन अंक गने नहिं जात।—श्रद्धाराम (शब्द०)। (ख) अगनित बढ़त उदोत लखउ इक बेंदी दीने। कह्मो सुन्न को ऐसों गुन को गनित नवीने।—अंबिकादत्त (शब्द०)।

सुन्न (३)
वि० दे० 'सुन्नसान', 'सुनसान'।

सुन्नत
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. मुसलमानों की एक रस्म जिसमें लड़के की लिंगेंद्रिय के अगले भाग का बढ़ा हुआ चमड़ा काट दिया जाता है। खतना। मुसलमानी। २. तरीका। पद्धति। कायदा (को०)। ३. प्रकृति। स्वभाव (को०)। ४. मार्ग। राह। सरणि (को०)। ४. वह पद्धति या मार्ग जिसपर मुहम्मद चले (को०)।

सुन्नति पु
संज्ञा स्त्री० [अ० सुन्नत] खतना। मुसलमानी। दे० 'सुन्नत'। उ०—(क) सकति सनेह करि सुन्नति करिए मैं न बढ़ौगा भाई।—कबीर ग्रं०, पृ० ३३१। (ख) सुन्नति किए तुरक जे होइगा औरत का क्या करिए।—कबीर ग्रं०, पृ० ३३१।

सुन्नसान
वि० [सं० शून्य + स्थान] दे० 'सुनसान'।

सुन्ना (१)
क्रि० स० [हिं० सुनना] दे० 'सुनना'।

सुन्ना (२)
संज्ञा पुं० [सं० शून्य] बिंदी। सिफर; जैसे,—(१) पर सुन्ना (०) लगाने से (१०) होता है।

सुन्नी
संज्ञा पुं० [अ०] मुसलमानों का एक भेद जो चारों खलीफाओं को प्रधान मानता है। चारयारी।

सुपंख
वि० [सं० सुपङ्ख] १. सुंदर तीरों से युक्त। २. सुंदर परों से युक्त।

सुपंथ
संज्ञा पुं० [सं० सुपन्था?] १. उत्तम मार्ग। सुमार्ग। सत्रथ। सन्मार्ग। २. सीधा रास्ता। सही रास्ता। उ०—सखहि सनेह बिबस मग भूला। कहि सुपंथ सुर बरसहि फूला।—मानस, २। २३७।

सुपक पु
वि० [सं० सुपक्व] अच्छी तरह पका हुआ। सुपक्व। उ०— गोपाल राइ दधि माँगत अरु रोटी। माखन सहित देहि मेरि जननी सुपक सुमंगल मोटी।—सूर (शब्द०)।

सुपक्व (१)
वि० [सं०] १. अच्छी तरह पका हुआ (फल आदि)। २. जिसे अच्छी तरह पकाया गया हो। जैसे, अन्न (को०)।

सुपक्व (२)
संज्ञा पुं० [सं०] सुगंधित आम।

सुपक्ष
वि० [सं०] जिसके सुंदर पंख हों। सुंदर पंखोंवाला।

सुपक्ष्मा
वि० [सं० सुपक्ष्मन्] जिसकी पलकें सुंदर हों। सुंदर पलकोंवाला।

सुपच पु
संज्ञा पुं० [सं० श्वपच] १. चांडल। डोम। उ०—तुलसी भगत सुपच भलो भजै रइनि दिन राम। ऊँचो कुल केहि काम को जहाँ न हरि को नाम।—तुलसी (शब्द०)। २. भंगी। (डिं०)।

सुपट (१)
वि० [सं०] सुंदर वस्त्रों से युक्त। अच्छे वस्त्रोंवाला।

सुपट (२)
संज्ञा पुं० सुंदर वस्र।

सुपठ
वि० [सं०] सुपाठ्य। जो सरलता से पढ़ा जा सके।

सुपड़ा †
संज्ञा पुं० [देश०] लंगर का अँकुड़ा जो जमीन में धँसता जाता है।

सुपत पु
वि० [सं० सु + हिं० पत (=प्रतिष्ठा)] प्रतिष्ठायुक्त। मानयुक्त। उ०—वह जूठो शशि जानि वदन विधु रच्यो विरंचि इहै री। सौंप्यो सुपत विचारि श्याम हित सु तूँ रही लटि लैरी।—सूर (शब्द०)।

सुपतिक
संज्ञा पुं० [देश०] रात को पड़नेवाला डाका (डिं०)।

सुपत्थ पु
संज्ञा पुं० [सं० सुपन्थ] दे० 'सुपथ'। उ०—इत अवध में श्रीराम लछमन वृद्ध पितु दशरुत्थ की। सेवा करत नित रहत भे गहि रीति निगम सुपत्थ की।—पद्माकर (शब्द०)।

सुपत्नी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह महिला जिसका पति खूबसूरत हो। २. सुंदर पत्नी। सुगृहिणी [को०]।

सुपत्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. तेजपत्ता। २. आदित्यपत्र। हुर- हुर का एक भेद। ३. पल्लिवाह नाम की घास। ४. इंगुदी। गोंदी। हिंगोट। ५. एक पौराणिक पक्षी।

सुपत्र (२)
वि० १. सुंदर पत्तों से युक्त। २. जिसके पंख या डैने सुंदर हों। सुंदर पंखोंवाला। ३. सुंदर पक्ष या पंख से युक्त। जैसे, वाण (को०)।

सुपत्रक
संज्ञा पुं० [सं०] सहिंजन। शिग्रु।

सुपत्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. रुद्रजटा। २. शतावरी। सतावर। ३. शालपर्णी। सरिवन। ४. शमी। छोंकर। सफेद कीकर। ५. पालक का साग।

सुपत्रिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] जतुका। पर्यटी।

सुपत्रित
वि० [सं०] पंखों या तीरें से युक्त। जिसमें पंख या तीर हों।

सुपत्री (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पौधा। गंगापत्री।

सुपत्री (२)
वि० [सं० सुपत्रिन्] पंखों या तीरों से भली भाँति युक्त।

सुपथ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तम पथ। अच्छा रास्ता। २. सन्मार्ग। सदाचरण। ३. एक वृत्त का नाम जो एक रगण, एक नगण, एक भगण और दो गुरु का होता है।

सुपथ पु (२)
वि० [सं० सु + पथ] १. समतल। हमवार। (जमीन)। उ०—किधौं हरि मनोरथ रथ की सुपथ भूमि मीनरथ मनहूँ की गति न सकति छ्वै।—केशव (शब्द०)। २. सुंदर पथ या मार्गवाला।

सुपथी (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुपथिन्] अच्छी राह। सन्मार्ग।

सुरथी (२)
वि० सन्मार्गगामी। सुपथयुक्त [को०]।

सुपथ्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह आहार या भोजन जो रोगी के लिये हितकर हो। अच्छा पथ्य। २. आम। ३. अच्छा पथ या मार्ग।

सुपथ्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सफेद बथुवा। बड़ा बथुवा। श्वेत चिल्ली। २. लाल बथुवा। लघु वास्तूक।

सुपद्
वि० [सं०] सुंदर पैरोंवाला।

सुपद
वि० [सं०] १. सुंदर पैरोंवाला। २. तेज चलनेवाला। ३. सुंदर पद, शब्द या वाक्ययुक्त। †४. पद के अनुकूल। वाजिब। उचित।

सुपद्मा
संज्ञा स्त्री० [सं०] बच। बचा।

सुपनंतर पु
संज्ञा पुं० [सं० स्वप्नान्तर] निद्रा या स्वप्न की अवस्था। उ०—सुपनंतर की प्यास ज्यौं भजै मही किहि भंति। जब दैहौं तब पूजिहै मो मन मझ्झह खंति।—पृ० रा०, १७। २७।

सुपन †
संज्ञा पुं० [सं० स्वप्न] दे० 'स्वप्न'। उ०—(क) सुपन सुफल दिल्ली कथा कही चंद बरदाय।—पृ० रा०, ३।५८। (ख) नित के जागत मिटि गयो वा सँग सुपन मिलाप। चित्र दरशहू कों लग्यों आँखिन आँस पाप।—लक्ष्मणसिंह (शब्द०)। (ग) आज मैं निहारे कारे कान्ह कों सुपन बीच उठि कै सकारे जमुना पैं जल कों गई। तबही तें दीनद्याल ह्वै रही मनीखा लटू एरी भटू मेरी भटभेटी मग मैं भई।—दीनदयाल (शब्द०)।

सुपनक
वि० [सं० स्वप्न] स्वप्न देखनेवाला। जिसे स्वप्न दिखाई देता हो।

सुपना
संज्ञा पुं० [सं० स्वप्न] दे० 'स्वप्न'। उ०—तहाँ भूप देख्यो अस सुपना। पकरचौ पैर गादरी अपना।—निश्चल (शब्द०)।

सुपनाना पु (१)
क्रि० स० [हिं० सुपना या सं० स्वप्नायते] स्वप्न देना। स्वप्न दिखाना। (क्व०)। उ०—बिह्वल तन मन चकित भई सुनि सा प्रतच्छ सुपनाए। गदगद कंठ सूर कोशल- पुर सोर सुनत दुख पाए।—सूर (शब्द०)।

सुपनाना (२)
क्रि० अ० स्वप्न देखना। सपना देखना।

सुपरकास †
संज्ञा पुं० [सं० सुप्रकाश] ताप। गरमी। (डिं०)।

सुपरडंट
संज्ञा पुं० [अं० सुपरिंटेंडेंट] दे० 'सुपरिंटेंडेंट'।

सुपरण
संज्ञा पुं० [सं० सुपर्ण] दे० 'सुपर्ण'।

सुपरन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुपर्ण, हि० सुपरण] दे० 'सुपर्ण'।

सुपरमतुरिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों की एक देवी का नाम।

सुपररायल
संज्ञा पुं० [अं०] छापेखाने में कागज आदि की एक नाप जो २२ इंच चौड़ी और २९ इंच लंबी होती है।

सुपरवाइजर
संज्ञा पुं० [अं०] वह जो किसी काम की देखभाल या निगरानी करता हो। निरीक्षण करनेवाला। निगरानी करनेवाला।

सुपरस पु
संज्ञा पुं० [सं० सुस्पर्श] दे० 'स्पर्श'। उ०—राम सुपरस मय कौतुक निरखि सखी सुख लटै।—सूर (शब्द०)।

सुपरिंटेंडेंट
संज्ञा पुं० [अं०] निरीक्षण करनेवाला। निगरानी करनेवाला। प्रधान निरीक्षक। जैसे,—पुलिस विभाग का सुपरिं- टेंडेंट, तार विभाग का सुपरिंटेंडेंट। यौ०—सुपरिंटेंडेंट पुलिस = जिले का प्रधान पुलिस अधिकारी।

सुपरीक्षित
वि० [सं०] जो अच्छी तरह जाँचा गया हो [को०]।

सुपर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] १. गरुड़। २. मुरण। ३. पक्षी। चिड़िया। ४. किरण। ५. विष्णु। ६. एक असुर का नाम। ७. देवगंधर्व। ८.एक पर्वत का नाम। ९. घोड़ा। अश्व। १०. सोम। ११. वैदिक मंत्रों की एक शाखा का नाम। १२. अंत- रिक्ष का एक पुत्र। १३. सेना की एक प्रकार की व्यूहरचना। १४. नागकेसर। नागपुष्प । १५. अमलतास। स्वर्णपुष्प। १६. ज्ञानस्वरूप (को०)। १७. कोई दिव्य पक्षी (को०)। १८. सुंदर पत्र या पत्ता। विशेष—सुंदर किरणों से युक्त होने के कारण इस शब्द का प्रयोग चंद्रमा और सूर्य के लिये भी होता है।

सुपर्ण (२)
वि० [वि० स्त्री० सुपर्णा, सुपर्णी] १. सुंदर दलों या पत्तोंवाला। २. सुंदर परोंवाला।

सुपर्णक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. गरुड़ या कोई दिव्य पक्षी। २. अमल- तास। स्वर्णपुष्प। आरग्वध। ३. सतवन। सतोना। सप्तपर्ण।

सुपर्णक (२)
वि० १. सुंदर पत्तोंवाला। २. सुंदर पंखोंवाला।

सुपर्णकुमार
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के एक देवता।

सुपर्णकेतु
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। विशेष—विष्णु भगवान् की ध्वजा या केतु में गरुड़ जो विराजते हैं, इसी से विष्णु का नाम सुपर्णंकेतु पड़ा। २. श्रीकृष्ण।

सुपर्णपातु
संज्ञा पुं० [सं०] एक दैत्य का नाम।

सुपर्णराज
संज्ञा पुं० [सं०] पक्षिराज। गरुड़।

सुपर्णसद् (१)
वि० [सं०] पक्षी पर चढ़नेवाला।

सुपर्णसद् (२)
संज्ञा पुं विष्णु।

सुपर्णांड
संज्ञा पुं० [सं० सुपणण्डि] शुद्रा माता और सूत पिता से उत्पन्न पुत्र।

सुपर्णा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पद्मिनी। कमलिनी। २. गरुड़ की माता का नाम। ३. एक नदी का नाम।

सुपर्णाख्य
संज्ञा पुं० [सं०] नागकेसर। नागपुष्प।

सुपर्णिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. स्वर्ण जीवंती। पीली जीवंती। २. रेणुका बीज। २. पलाशी। ४. शालपर्णी। सरिवन। ५. बकुची। बाकुची।

सुरर्णी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गरुड़ की माता। सुपर्णा। २. मादा चिड़िया। ३. कमलिनी। पद्मिनी। ४. एक देवी जिसका उल्लेख कद्रु के साथ मिलता है। (इसे कुछ लोग छंदों की माता या वाग्देवी भी मानते हैं)। ५. अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। ६. रात्रि। रात। ७. पलाशी। ८. रेणुका। रेणुक बीज।

सुपर्णी (२)
संज्ञा पुं० [सं० सुपर्णिन्] गरुड़।

सुपर्णीतनय
संज्ञा पुं० [सं०] सुपर्णी के पुत्र, गरुड़।

सुपर्णेंय
संज्ञा पुं० [सं०] सुपर्णी के पुत्र, गरुड़।

सुपर्यवदात
वि० [सं०] अत्यंत स्वच्छ, साफ [को०]।

सुपर्याप्त
वि० [सं०] १. सम्यक् प्रशस्त। सुविस्तृत। सावकाश। २. अच्छी तरह युक्त। पूर्णतः उपयुक्त या ठीक [को०]।

सुपर्व (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुपर्व्वन्] १. देवता। २. पर्व। शुभ मुहूर्त। शुभ काल। ३. बाँस। वंश। ४. वाण। तीर। ५. धूम्र। धुआँ। ६. विशेष प्रकार की चांद्र तिथि या दिवस—अमावास्या और पूर्णिमा तथा प्रत्येक पक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी (को०)।

सुपर्व (२)
[सं०] १. सुंदर जोड़ोंवाला। जिसका जोड़ या गाँठें सुंदर हों। २. सुंदर पर्व या अध्यायवाला (ग्रंथ)।

सुपर्वा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] श्वेत दूर्वा। सफेद दूब।

सुपर्वा (२)
संज्ञा पुं, वि० [सं० सुपर्वन्] दे० 'सुपर्व'।

सुपलायित
वि० [सं०] १. युक्तिपूर्वक हट जाना या हटा देना। २. जो सर पर पैर रखकर भाग जाय [को०]।

सुपवित्र
संज्ञा पुं० [सं०] एक वृत्त या छंद।

सुपश्चात्
अव्य० [सं०] बहुत देर के बाद। बहुत रात बीतने पर।

सुपह पु
संज्ञा पुं० [सं० सु + प्रभु ?] राजा। (डिं०)।

सुपाकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आम्रहरिद्रा। आँबा हलदी। आमिया हलदी।

सुपावत
संज्ञा पुं० [सं०] विड्लवण। बिरिया या साँचर नोन। कटीला नमक।

सुपाठ्य
वि० [सं०] जो पढ़ने में सुगम हो।

सुपात्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो किसी कार्य के लिये योग्य या उपयुक्त हो। सुयोग्य व्यक्ति। जैसे,—सुपात्र को दान देना। सुपात्र को कन्या देना। २. अच्छा पात्र। अच्छा बर्तन (को०)।

सुपात्र (२)
वि० उपयुक्त। योग्य। अधिकारी [को०]।

सुपाद्
वि० सुंदर चरणोंवाला [को०]।

सुपान
वि० [सं०] पीने में सुखद। पीने के योग्य [को०]।

सुपार
वि० [सं०] सहज में पार होने योग्य। जिसे पार करने में कोई कठिनता न हो। २. लक्ष्य या सफलता की ओर अग्रसर करनेवाला (को०)। ३. जल्दी जानेवाला। शीघ्रतापूर्वक गुजर जानेवाला (को०)।

सुपारक्षत्र
संज्ञा पुं० [सं०] अपने क्षत्र या राज्य को शीघ्र पार कर जानेवाला (वरुण) [को०]।

सुपारग (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शाक्य मुनिं।

सुपारग (२)
वि० उत्तम रूप से पार करनेवाला। अत्यंत पारग।

सुरारण
वि० [सं०] जो पाठ या पारायण करने में सुगम हो।

सुपारा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सांख्य के अनुसार नौ तुष्टियों में से एक।

सुपारी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुप्रिय] नारियल की जाति का एक पेड़। कसैली। छालिया। डली। पुंगीफल। विशेष—यह वृक्ष ४० ते १०० फुट तक ऊँचा होता है। इसके पत्ते नारियल के समान ही झाड़दार और एक से दो फुट तक लंबे होते हैं। सींका ४-६ फुट लंबा होता है। इसमें छोटे छोटे फूल लगते हैं। फल १।।-२ इंच के घेरे में गोलाकार या अंडाकार होते हैं और उनपर नारियल के समान ही छिलके होते हैं। इसके पेड़ बंगाल, आसाम, मैसूर, कनाड़ा, मालाबार तथादक्षिण भारत के अन्य स्थानों में होते हैं। सुपारी (फल) टुकड़े करके पान के साथ खाई जाती है। यों भी लोग खाते है। यह औषध के काम में भी आती है। वैद्यक के अनुसार यह भारी, शीतल, रुखी, कसैली, कफ-पित्त-नाशक, मोहकारक, रुचिकारक दुर्गंध तथा मुँह की निरसता दूर करनेवाली है। पर्या०—घोंटा पूग। क्रमुक। गुवाक। खपुर। सुरंजन। पूग वृक्ष। दीर्घपादप। वल्कतरु। दृढ़वल्क। चिक्वण। पूणी। गोपदल। राजताल। छटाफल। क्रमु। कुमुकी। अकोट। तंतुसार। यौ०—चिकनी सुपारी = एक प्रकार की बनाई हुई सुपारी। विशेष दे० 'चिकनी सुपारी'। मुहा०—सुपारी लगना = सुपारी का कलेजे में अटकना। सुपारी खाते समय, कभी कभी पेट में उतरते समय अटक जाती है। इसी को सुपारी लगना कहते हैं। उ०—राधिका झाँकि झरो- खन ह्वै कवि केशव रीझि गिरे सुबिहारी। सोर भयो सकुचे समुझे हरवाहि कह्मो हरि लागि सुपारी।—केशव (शब्द०)। २. लिंग का अग्र भाग जो प्रायः सुपारी (फल) के आकार का होता है। (बाजारू)।

सुपारी का फूल
संज्ञा पुं० [हिं० सुपारी + फूल] मोचरस या सेमर का गोंद।

सुपारी पाक
संज्ञा पुं० [हिं० सुपारी + सं० पाक] एक पौष्टिक औषध। विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है—पहले आठ टके भर चिकनी सुपारी का चूर्ण आठ टके भर गौ के घी में मिलाकर तीन बार गाय के दूध में डालकर धीमी आँच में खोवा बनाते हैं। फिर बंग, नागकेसर नागरमोथा, चंदन, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, आँवला, कोयल के बीज, जायफल, धनिया, चिरौंजी, तज, पत्रज, इलायची, सिंघाड़ा, वंशलोचन, दोनों जीरे (प्रत्येक पाँच पाँच टंक) इन सब का महीन कपड़छान चूर्ण उक्त खोवे में मिलाकर ५० टंक भर मिस्त्री की चाशनी में डालकर एक टके भर की गोलियाँ बना ली जाती हैं। एक गोली सबेरे और एक गोली संध्या को खाई जाती है। इसके सेवन से शुक्रदोष, प्रमेह, प्रदर, जोर्ण ज्वर, अम्लपित्त, मंदाग्नि और अर्श का निवारण होकर शरीर पुष्ट होता है।

सुपार्श्व (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. परास पीपल। गजदंड। गर्दभांड। २. पाकर। प्लक्ष वृक्ष। ३. रुक्मरथ का एक पुत्र। ४. श्रुतायु का पुत्र। ५. दृढ़नेमि का पुत्र। ६. एक पर्वत का नाम। ७. एक राक्षस का नाम। ९. संपाति (गिद्ध) का बेटा। ९. देवी भागवत के अनुसार एक पीठस्थान। यहाँ की देवी का नाम नारायणी है। १४. जैनियों के २४ जिनों या तीर्थंकरों में से सातवें तीर्थंकर। १५. सुंदर पार्श्व (को०)।

सुपार्श्व (२)
वि० सुंदर पार्श्ववाला।

सुपार्श्वक
संज्ञा पुं० [सं०] १. चित्रक के एक पुत्र का नाम। २. भावी उत्सर्पिणी के तीसरे अर्हत् का नाम। ३. श्रुतायु का एक पुत्र। ४. गर्दभांड वृक्ष। परास पीपल [को०]।

सुपालि
वि० [सं०] ज्ञान। प्रतिबोधित [को०]।

सुपास
संज्ञा पुं० [देश०] सुख। आराम। सुभीता। उ०—(क) चलौ बसी वृंदावन माहीं। सकल सुपास सहित सो आहीं।—विश्राम (शब्द०)। (ख) जाया ताकी सघन निहारी। बैठा सिमिटि सुपास बिचारी।—विश्राम (शब्द०)। (ग) यात्रियों के लिये सब तरह का सुपास और आराम है।—गदाधर सिंह (शब्द०)।

सुपासी
वि० [हिं० सुपास + ई (प्रत्य०)] १. सुख देनेवाला। आनंददायक। उ०—(क) बालक सुभग देखि पुरबासी। होत भए सब तासु सुपासी।—रघुराज (शब्द०)। (ख) षोडश भक्त अनन्य उपासी। पयहारी के शिष्य सुपासी। रघुराज (शब्द०)। २. सुखी। सुपास युक्त। सुखयुक्त। उ०—कहत पुरान रची केशव निज कर करतूति कलासी। तुलसी बसि हरपुरी राम जपु जो भयो तहै सुपासी।—तुलसी ग्रं०, पृ० ४६५।

सुपिंगला
संज्ञा स्त्री० [सं० सुपिड़्गला] १. जीवंती। डोडी शाक। २. ज्योतिष्मती। मालकंगनी।

सुपीड़न
संज्ञा पुं० [सं० सुपीडन] १. अंगमर्दन। शरीर दबाना। मालिश। चंपी। २. जोर से दबाना (को०)।

सुपीत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. गाजर। गर्जर। २. पीली कटसरैया। पीत झिंटी। ३. पीतसार या चंदन। ४. ज्योतिष में पाँचवें मुहूर्त्त का नाम।

सुपीत (२)
वि० १. उत्तम रूप से पीया या पान किया हुआ। २. बिलकुल पीला। गहरा पीला।

सुपीन
वि० [सं०] बहुत मोटा या बड़ा।

सुपीवा
वि० [सं० सुपीवन्] अच्छी तरह पीनेवाला [को०]।

सुपुंख
वि० [सं० सुपुङ्ख] जिसमें भली प्रकार पंख लगे हों [को०]।

सुपुंसी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति सुपुरुष हो।

सुपुंट (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कोलकंद। चमार आलू। २. विष्णुकंद।

सुपुट (२)
वि० सुंदर पुट या नथुनोंवाला [को०]।

सुपुटा
संज्ञा स्त्री० [सं०] सेवती। वनमल्लिका।

सुपुत्र (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुपुत्र] १. जीवक वृक्ष। २. उत्तम पुत्र।

सुपुत्र (२)
वि० जिसका पुत्र सुंदर और उत्तम हो। अच्छे पुत्रवाला।

सुपुत्रिका (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] जतुका लता। पपड़ी।

सुपुत्रिका (२)
वि० सुंदर या उत्तम पुत्रवाली।

सुपुर
संज्ञा पुं० [सं०] सुदुढ़ दुर्ग।

सुपुरुष
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुंदर पुरुष। २. सत्पुरुष। सज्जन। भलामानस।

सुपुर्द
संज्ञा पुं० [फा़०] दिया हुआ। सौंपा हुआ। हवाले किया हुआ।

सुपुर्दगी
संज्ञा स्त्री० [फा़०] सुपुर्द करने का भाव। सुपुर्द करना।

सुपुष्करा †
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्थल कमलिनी। स्थल पदि्मनी।

सुपुष्प (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. लौँग। लवंग। २. आहुल्य। तरवट। तरवड। ३. प्रपौंडरीक। पुंडेरिया। पुंडेरी। ४. परिषा- श्वत्थ। परास पीपल। ५. मुचकुंद वृक्ष। ६. शहतूत। तूत। ७. ब्रह्मदारु। ८. पारिभद्र। फरहद। ९. शिरीष। सिरिस। १०. हरिद्रु। हलदुआ। ११. बड़ी सेवती। राजतरुणी। १२. श्वेतार्क। सफेद आक। १३. देवदारु। देवदार। १४. स्त्री का रज (को०)।

सुपुष्प (२)
वि० सुंदर पुष्पों या फूलोंवाला। जिसमें सुंदर फूल हों।

सुपुष्पक
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिरीष वृक्ष। सिरिस। २. मुचकुंद। ३. श्वेतार्क। सफेद आक। ४. हरिद्रु। हलदुआ। ५. गर्दभांड। परास पीपल। ६. राजतरुणी। बड़ी सेवती।

सुपुष्पा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कोशातकी। तरोई। तुरई। २. द्रोण- पुष्पी। गूमा। ३. शतपुष्पा। सौंक। ४. शतपत्री। सेवती।

सुपुष्पिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार का विधारा। जीर्णदारु। २. शतपुष्पी। सौंफ। ३. मिश्रेया। सोआ। ४. पाटला। पाढ़र। ५. माहिषवल्ली। पाताल गारुड़ी। ६. शतपुष्पी। बनसनई।

सुपुष्पित
वि० [सं०] जो अच्छी तरह पुष्पयुक्त हो। जिसमें खूब फूल खिले हों [को०]।

सुपुष्पी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. श्वेत अपराजिता। सफेद कोयल लता। २. शतपुष्पी। सौंफ। ३. मिश्रेया। सोआ। ४. कदली। केला। ५. द्रोणपुष्पी। गूमा। ६. वृद्धदारु। विधारा।

सुपूत (१)
वि० [सं०] अत्यंत पूत या पवित्र।

सुपूत (२)
वि० [सं० सु + पुत्र; प्रा० पुत्त, हिं० पूत] अच्छा पुत्त। सुपुत्र। सपूत।

सुपूती
संज्ञा स्त्री० [हिं० सुपूत + ई (प्रत्य०)] १. सुपूत होने का भाव। सपूतपन। उ०—करे सुपूती सोइ सुत ठीको।—कबीर (शब्द०)। २. अच्छे पुत्रवाली स्त्री।

सुपूर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] बीजपूर। बिजौरा नीबू।

सुपूर (२)
वि० सहज में पूर्ण होने या भरा जाने योग्य।

सुपूरक
संज्ञा पुं० [सं०] १. अगस्त। बकवृक्ष। २. बिजौरा नीबू।

सुपेत †
वि० [फा़० सुफै़द] दे० 'सफेद'।

सुपेती
संज्ञा स्त्री० [फा़० सुफै़दी] १. दे० 'सफेदी'। २. बिछाने की चादर या तोशक। उ—सुभग सुरभि पय फेनु समाना। कोमल कलित सुपेती नाना।—मानस, १।३५६।

सुपेद
वि० [फा़० सुफै़द] दे० 'सफेद'।

सुपेदी †
संज्ञा स्त्री० [फा़० सुफै़दी] १. सफेदी। उज्वलता। २. ओढ़ने की रजाई। ३. बिछाने की तोशक। ४. बिछौना। बिस्तर।

सुपेली
संज्ञा स्त्री० [हिं० सूप + एली (प्रत्य०)] १. छोटा सूप। २. दे० 'सुपलिया'।

सुपेश
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तम बुना हुआ वस्त्र। बारीक बुना हुआ कपड़ा [को०]।

सुपेशल
वि० [सं०] अत्यंत सलोना या श्लक्ष्ण [को०]।

सुपेशस्
वि० [सं०] सलोना। अत्यंत सुदर [को०]।

सुपैदा
संज्ञा पुं० [फा़० सुफै़दह्] दे० 'सफेदा'।

सुपोष
वि० [सं०] जो सुगमता से पालने पोसने योग्य हो [को०]।

सुप्त (१)
वि० [सं०] १. सोया हुआ। निद्रित। शयित। २. सोने के लिये लेटा हुआ। ३. ठिठुरा हुआ। ४. बंद। मुँदा हुआ। मुद्रित। जैसे—फूल। ५. अकर्मण्य। बेकार। ६. सुस्त। ७. सुन्न। संज्ञा रहित (को०)। ८. अविकसित। जिसका विकास न हुआ हो। जैसे, शाक्ति (को०)।

सुप्त (२)
संज्ञा पुं० गहरी नींद। गाढ़ी निद्रा।

सुप्तक
संज्ञा पुं० [सं०] निद्रा। नींद।

सुप्तघातक
वि० [सं०] १. निद्रित अवस्था में हनन या बध करनेवाला। २. हिंस्त्र। खूँखार।

सुप्तघ्न (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक राक्षस का नाम।

सुप्तघ्न (२)
वि० दे० 'सुप्तघातक'।

सुप्तच्युत
वि० [सं०] जो नींद के कारण नीचे गिर पड़ा हो [को०]।

सुप्तजन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अर्धरात्रि (इस समय प्रायः लोग सोए रहते हैं)। २. सुप्त आदमी। सोया हुआ आदमी (को०)।

सुप्तज्ञान
संज्ञा पुं० [सं०] स्वप्न। विशेष—निद्रितावस्था में जो स्वप्न दिखाई देता है, वह जाग्रत अवस्था के समान ही जान पड़ता है; इसी से उसे सुप्तज्ञान कहते हैं।

सुप्तता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुप्त होने का भाव। २. निद्रा। नींद।

सुप्तत्व
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुप्तता'।

सुप्तत्वक्
वि० [सं० सुप्तत्वच्] जिसके अंग सुन्न हों। जिसे लकवा मार गया हो [को०]।

सुप्तप्रबुद्ध
वि० [सं०] जो अभी सोकर उठा हो।

सुप्तप्रलपित
संज्ञा पुं० [सं०] निद्रितावस्था में होनेवाला प्रलाप। सोए सोए बकना या बर्राना।

सुप्तमांस
वि० [सं०] संज्ञाशुन्य। चेतनाशून्य। सुन्न। निश्चेष्ट।

सुप्तमाली
संज्ञा पुं० [सं० सुप्तमालिन्] पुराणानुसार तेईसवें कल्प का नाम।

सुप्तमीन
वि० [सं०] तालाब जिसमें मछलियाँ सोई हों [को०]।

सुप्तवाक्य
संज्ञा पुं० [सं०] निद्रित अवस्था में कहे हुए शब्द या वाक्य।

सुप्तविग्रह
वि० [सं०] १. निद्रित। सोया हुआ। २. जिसका विग्रह या शरीर निद्रा की तरह हो। कृष्ण के लिये प्रयुक्त विशे- षण [को०]।

सुप्तविज्ञान
संज्ञा पुं० [सं०] स्वप्न। सुपना। ख्वाब।

सुप्तविनिद्रक
वि० [सं०] निद्रा त्याग करनेवाला। जाग्रत होनेवाला। जागनेवाला [को०]।

सुप्तस्थ
वि० [सं०] निद्रित। सोया हुआ।

सुप्तस्थित
वि० [सं०] दे० 'सुप्तस्थ'।

सुप्तांग
संज्ञा पुं० [सं० सुप्ताङ्ग] वह अंग जिसमें चेष्टा न हो। निश्चेष्ट अंग।

सुप्तांगता
संज्ञा स्त्री० [सं० सुप्ताङ्गता] सुप्तांग का भाव। अंगों की निश्चेष्टता।

सुप्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. निद्रा। नींद। २. निदास। उँघाई। ३. अंग की निश्चेष्टता। सुप्तांगता। ४. प्रत्यय। विश्वास। एत- बार। ५. सपना। स्वप्न (को०)।

सुसोत्थित
वि० [सं०] निद्रा से जागरित। जो अभी अभी सोकर उठा हो।

सुप्रकाश
वि [सं०] १. अत्यंत प्रकाशित। २. अत्यंत गोचर। प्रत्यक्ष। ३. विख्यात। प्रसिद्ध [को०]।

सुप्रकेत
वि० [सं०] १. ज्ञानवान्। बुद्धिमान। २. जो अत्यंत साव- धान हो (को०)।

सुप्रचार
वि० [सं०] १. उचित मार्ग पर चलनेवाला। २. भला दिखाई पड़नेवाला [को०]।

सुप्रचेता
वि० [सं० सुप्रचेतस्] बहुत बुद्धिमान्। बहुत समझदार।

सुप्रज
वि० [सं०] दे० 'सुप्रजा'।

सुप्रजा (१)
वि० [सं० सुप्रजस्] उत्तम और बहुत संतान से युक्त। उत्तम और अधिक संतानवाला।

सुप्रजा (२)
संज्ञा स्त्री० १. उत्तम संतान। अच्छी औलाद। २. उत्तम प्रजा। अच्छी रिआया।

सुप्रजात
वि० [सं०] बहुत सी संतानोंवाला। जिसके बहुत से बाल- बच्चे हों।

सुप्रज्ञ
वि० [सं०] बहुत बुद्धिमान्।

सुप्रज्ञान
वि० [सं०] जिसका प्रज्ञान या बोध सरलता से हो सके [को०]।

सुप्रतर
वि० [सं०] सहज में पार होने योग्य (नदी आदि)।

सुप्रतर्क
संज्ञा पुं० [सं०] युक्तियुक्त एवं प्रौढ़ विचार [को०]।

सुप्रतर्दन
संज्ञा [सं०] एक राजा।

सुप्रतार
वि० [सं०] दे० 'सुप्रतर'।

सुप्रतिकार
वि० [सं०] जिसका सरलता से प्रतिकार हो सके [को०]।

सुप्रतिज्ञ
वि० [सं०] जो अपनी प्रतिज्ञा से न हटे। दृढ़प्रतिज्ञ।

सुप्रतिपन्न
वि [सं०] सदाचारी। धार्मिक [को०]।

सुप्रतिभ
वि० [सं०] प्रतिभासंपन्न। प्रखर प्रतिभावाला।

सुप्रतिभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मदिरा। मद्य। शराब। २. अच्छी या सुंदर प्रतिभा (को०)।

सुप्रतिम
संज्ञा पुं० [सं०] एक राजा का नाम।

सुप्रतिष्ठ (१)
वि० [सं०] १. उत्तम प्रतिष्ठावाला। जिसकी लोग खूब प्रतिष्ठा या आदर संमान करते हों। २. बहुत प्रसिद्ध। सुवि- ख्यात। मशहूर। ३. सुंदर टाँगों या पैरोंवाला। ४. दृढ़ता से स्थित रहनेवाला (को०)।

सुप्रतिष्ठ (२)
संज्ञा पुं० १. सेना की एक प्रकार की व्यूहरचना। २. एक प्रकार की समाधि। (बौद्ध)।

सुप्रतिष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में पाँच वर्ण होते हैं। इनमें से तीसरा और पाँचवाँ गुरु तथा पहला, दूसरा और चौथा वर्ण लधु होता है। २. मंदिर या प्रतिमा आदि की स्थापना। ३. स्कंद की एक मातृका का नाम। ४. अभिषेक। ५. उत्तम स्थिति। ६. सुनाम। प्रसिद्धि। शोहरत। ७. उत्तम प्रतिष्ठा। स्थापना।

सुप्रतिष्ठित (१)
वि० [सं०] १. उत्तम रूप से प्रतिष्ठित। २. दृढ़तापूर्वक स्थित या स्थापित (को०)। सुंदर टाँगोंवाला। ३. अभिषिक्त (को०)। ४. विख्यात। प्रसिद्ध (को०)।

सुप्रतिष्ठित (२)
संज्ञा पुं० १. गूलर। उदुंबर। २. एक प्रकार की समाधि। ३. एक देवपुत्र (को०)।

सुप्रतिष्ठितचरण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की समाधि। सुप्रति- ष्ठित समाधि।

सुप्रतिष्ठितचरित्र
संज्ञा पुं० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम।

सुप्रतिष्ठिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम।

सुप्रतिष्ठितासन
संज्ञा पुं० [सं०] समाधि का एक भेद।

सुप्रतिष्णात
वि० [सं०] १. किसी विषय का अच्छा जानकार या पंडित। निष्णात। २. जिसकी खूब ऊहापोह की गई हो। आलोचित। सुनिश्चित। ३. सुस्नात। भली प्रकार शुद्ध किया हुआ।

सुप्रतीक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. कामदेव। ३. ईशान कोण का दिग्गज। ४. विश्वसनीय व्यक्ति (को०)। ५. एक यक्ष (को०)।

सुप्रतीक (२)
वि० १. सुरुप। सुंदर। खूबसूरत। २. साधु। सज्जन। ३. सुंदर स्कंधवाला (को०)।

सुप्रतीकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सुप्रतीक नामक दिग्गज की स्त्री।

सुप्रददि
वि० [सं०] बहुत उदार। बड़ा दानी। दाता।

सुप्रदर्श
वि० [सं०] जो देखने में सुंदर हो। प्रियदर्शन। खूबसुरत।

सुप्रदोहा
वि० [सं०] सहज में दृही जानेवाली (गाय)। जिस (गाय) को दूहने में कठिनाई न हो।

सुप्रधृष्य
वि० [सं०] जो सहज में अभिभूत या परजित किया जा सके। आसानी से जीता जानेवाला।

सुप्रबुद्ध (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शाक्य बुद्ध।

सुप्रबुद्ध (२)
वि० जिसे यथेष्ट बोध या ज्ञान हो। अत्यंत बोधयुक्त।

सुप्रभ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक दानव का नाम। २. जैनियों के नौ बलों (जिनों) में से एक। ३. पुराणानुसार शाल्मली द्विप के अंतर्गत एक वर्ष।

सुप्रभ (२)
वि० १. सुंदर प्रभा या प्रकाशयुक्त। २. सुंदर। सुरुप। खूबसूरत।

सुप्रभदेव
संज्ञा पुं० [सं०] शिशुपालवध महाकाव्य के प्रणेता महाकवि माघ के पितामह का नाम।

सुप्रभा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बकुची। सोमराजी। २. अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। ३. स्कंद की एक मातृका का नाम। ४. सात सरस्वतियों में से एक। ५. सुंदर प्रकाश।

सुप्रभा (२)
संज्ञा पुं० एक वर्ष का नाम जिसके देवता सुप्रभ माने जाते हैं।

सुप्रभात
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुंदर प्रभात या प्रातःकाल। २. मंगल- सूचक प्रभात। ३. प्रातःकाल पढ़ा जानेवाला स्तोत्र।

सुप्रभाता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पुराणानुसार एक नदी का नाम। २. वह रात जिसका प्रभात सुंदर हो।

सुप्रभाव
संज्ञा पुं० [सं०] १. जिसमें सब प्रकार की शक्तियाँ हों। सर्वशक्तिमान्। २. सर्वसामर्थ्य। अनंतशक्तियुक्त होना। सर्व- शक्तिता (को०)।

सुप्रमय
वि० [सं०] जो सरलता से मापा जा सके। जो सरलतापूर्वक मापने योग्य हो।

सुप्रमाण
वि० [सं०] बड़े आकार का। विशाल [को०]।

सुप्रयुक्त
वि० [सं०] १. सुपठित। २. सुंदर ढंग से चलाया हुआ। सुचालित। ३. सुविचारित योजनावाला (षढ्यंत्र आदि)। ४. जो सुव्यवस्थित हो।५. भली प्रकार संबद्ध [को०]।

सुप्रयुक्तशर
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो बाण चलाने में सिद्धहस्त हो। अच्छा धनुर्धर।

सुप्रयोग (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुंदर प्रबंध। उत्तम व्यवस्था। २. उत्तम उपयोग करना। अच्छे ढंग से काम में लाना। ३. निकट संपर्क। ४. दक्षता। निपुणता। पाटव [को०]।

सुप्रयोग (२)
वि० १. जिसका प्रयोग या अभिनय अच्छे ढंग से हो। २. जो ठीक ढंग से प्रयुक्त किया गया हो।

सुप्रयोगविशिख
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुप्रयुक्तशर'।

सुप्रयोगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वायु पुराण के अनुसार दाक्षिणात्य की एक नदी का नाम।

सुप्रलंभ
वि० [सं० सुप्रलम्भ] १. जो अनायास प्राप्त किया जा सके। सहज में मिल सकनेवाला। सुलभ। २. जो सरलता से घोखे में आ जाय। जिसे सरलतापूर्वक वंचित किया जा सके (को०)।

सुप्रलाप
संज्ञा पुं० [सं०] १. सुवचन। २. वाग्मिता। सुंदर भाषण।

सुप्रवेदित
वि० [सं०] भली भाँति उदघोषित। पूर्णतः प्रकटित [को०]।

सुप्रशस्त
वि० [सं०] १. खूब प्रशंसित। २. सुप्रसिद्ध [को०]।

सुप्रश्न
संज्ञा पुं० [सं०] कुशलप्रश्न। कुशलक्षेम संबंधी जिज्ञासा [को०]।

सुप्रसन्न (१)
संज्ञा पुं० [सं०] कुबेर का एक नाम।

सुप्रसन्न (२)
वि० १. अत्यंत प्रफुल्ल। २. अत्यंत निर्मल। ३. हर्षित। बहुत प्रसन्न। ४. जो प्रतिकूल न हो। अनुकूल (को०)।

सुप्रसन्नक
संज्ञा पुं० [सं०] जंगली बर्बरी। वन वर्वरिका। कृष्णर्जक।

सुप्रसरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] प्रसारिणी लता। गंधप्रसारिणी। पसरन।

सुप्रसव
संज्ञा पुं [सं०] सहज प्रसव। वह प्रसव जो बिना कष्ट का हो।

सुप्रसाद (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. विष्णू। ३. स्कद का एक पार्षद। ४. एक असुर का नाम। ५. अत्यंत प्रसन्नता।

सुप्रसाद (२)
वि० १. अत्यंत प्रसन्न या कृपालु। २. सरलता से अनुकूल या प्रसन्न करने योग्य (को०)।

सुप्रसादक
वि० [सं०] दे० 'सुप्रसाद'।

सुप्रसादा
संज्ञा स्त्री० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम।

सुप्रसारा
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सुप्रसरा'।

सुप्रसिद्ध
वि० [सं०] बहुत प्रसिद्ध। सुविख्यात। बहुत मशहूर।

सुप्रसू
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरलता से प्रसव करनेवाली स्त्री [को०]।

सुप्राकृत
वि० [सं०] ग्राम्य। असभ्य। अशिष्ट [को०]।

सुप्राप
वि० [सं०] जो सरलता से प्राप्त हो। सुलभ [को०]।

सुप्रिय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों के अनुसार एक गंधर्व का नाम।

सुप्रिय (२)
वि० [वि० स्त्री० सुप्रिया] अत्यंत प्रिय। बहुत प्यारा।

सुप्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक अप्सरा का नाम। २. सोलह मात्राओं का एक वृत्त जिसमें अंतिम वर्ण के अतिरिक्त शेष सब वर्ण लघु होते हैं। यह एक प्रकार की चौपाई है। यथा—तबहुँ न लखन उतर कछु दयऊ। ३. मनोहारिणी स्त्री। सुंदर स्त्री (को०)। ४. प्रियतमा। प्रेमिका। प्रेयसी (को०)।

सुप्रीम
वि० [अं०] सर्वोच्च। सबसे ऊँचा [को०]।

सुप्रीम कोर्ट
संज्ञा पुं० [अं०] १. प्रधान या उच्च न्यायालय। २. सबसे बड़ी कचहरी। सर्वोंच्च न्यायालय। विशेष—ईस्ट इंडिया कंपनी के राजत्वकाल में कलकत्ते में सुप्रीम कोर्ट था, जिसमें तीन जज बैठते थे। अनंतर महारानी विक्टो- रिया के राजत्वकाल में यह सुप्रीम कोर्ट तोड़ दिया गया और इसके स्थान पर हाई कोर्ट की स्थापना की गई। इंगलैंड में प्रिवी कौंसिल था जो सर्वोच्च माना जाता था। भारत के स्वतंत्र होने पर दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई जिसे सुप्रीम कोर्ट भी कहते हैं।

सुप्रौढा
संज्ञा स्त्री० [सं०] विवाह के योग्य कन्या [को०]।

सुफरा
संज्ञा पुं० [देश०] टेबुल पर बिछाने का कपड़ा।

सुफल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. छोटा अमलतास। कर्णिकार। २. बादाम। ३. अनार। दाड़िम। ४. बैर। बदर। ५. मूँग। मुद्ग। ६. कैथ। कपित्थ। ७. बिजौरा नीबू। मातुलुंग। ८. सुंदर फल। ९. अच्छा परिणाम।

सुफल (२)
वि० १. सुंदर फलवाला (अस्त)। २. सुंदर फलों से युक्त। ३. सफल। कृतकार्य। कृतार्थ। कामयाब।

सुफलक
संज्ञा पुं० [सं०] एक यादव जो अक्रुर का पिता था।

सुफलकमुत
संज्ञा पुं० [सं०] अक्रूर।

सुफला (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. इंद्रायण। इंद्रवारुणी। २. पेठा कुम्हड़ा। कुष्मांड। ३. गंभारी। काश्मरी। ४. केला। कदली। ५. मुनक्का। कपिला द्राक्षा।

सुफला (२)
वि० १.सुंदर या बहुत फल देनेवाली। अधिक फलोंवाली। २. सुंदर फलवाली। जैसे,—तलवार।

सुफुल्ल
वि० [सं०] फूलों से संपन्न। सुंदर फूलों से युक्त।

सुफेद
वि० [अ० सुफै़द] दे० 'सफेद'।

सुफेदी
संज्ञा स्त्री० [अ० सुफै़दी] दे० 'सफेदी'।

सुफेन
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्रफेन।

सुबत
वि० [सं० सुबन्त] जिसके अंत में सुप् विभक्ति हो। संस्कृत व्याकरण में विभक्तियुक्त (शब्द, संज्ञा)।

सुबंतपद
संज्ञा पुं० [सं० सुबन्तपद] विभक्तियुक्त संज्ञा या शब्द।

सुबंध (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुबन्ध] तिल।

सुबध (२)
वि० अच्छी तरह बँधा हुआ।

सुबधविमोचन
संज्ञा पुं० [सं० सुबन्धविमोचन] शिव का एक नाम [को०]।

सुबंधु (१)
संज्ञा पुं० [सं० सुबन्धु] १. एक प्राचीन ऋषि का नाम। २. अच्छा भाई। उ०—होहि कुठायँ सुबंधु सहाए।—मानस, २।३०५। ३. वाणभट्ट का समकालीन संस्कृत गद्यकाव्य 'वासवदत्ता' का प्रख्यात रचयिता।

सुबंधु (२)
वि० उत्तम बंधुओंवाला। जिसके अच्छे बंधु या मित्र हों।

सुबड़ा
संज्ञा पुं० [देश०] टलही चाँदी। ताँबा मिली हुई चाँदी।

सुबभ्रु
वि० [सं०] १. धूसर। २. चिकनी भौंहवाला।

सुबर पु
संज्ञा पुं० [सं० सुवल] वीर। योद्धा। सुभट।

सुबरन पु
संज्ञा पुं० [सं० सुवर्ण] १. सोना। २. सुंदर अक्षर। ३. सुंदर रंग। उ०—सुबरन को खोजत फिरैं कबि व्यभि- चारी चोर।

सुबरनी
संज्ञा स्त्री० [सं० सुवर्ण ?] छड़ी।

सुबल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शिव जी का एक नाम। २. एक पक्षी (वैनतेय की संतान)। ३. सुमति के एक पुत्र का नाम। ४. गांधार का एक राजा जो शकुनि का पिता और धृतराष्ट्र का ससुर था। ५. पुराणानुसार भौत्य मनु के पुत्र का नाम। ६. श्रीकृष्ण का एका सखा।

सुबल (२)
वि० अत्यंत बलवान। बहुत मजबूत।

सुबलपुत्र
संज्ञा पुं० [सं०] रजा सुबल का पुत्र, शकुनि [को०]।

सुबलपुर
संज्ञा पुं० [सं०] कीकट राज्य का एक प्राचीन नगर।

सुबह
संज्ञा स्त्री० [अ०] प्रातःकाल। सबेरा।

सुबहान पु
संज्ञा पुं० [अ० सुबहान] दे० 'सुभान'। उ०—आब आतश अर्श कुरसी सूरते सुबहान। सिर्रः सिफत करदा बूदंद मारफत मुकाम।—दादू (शब्द०)।

सुबहान अल्ला
अव्य० [अ०] अरबी का एक पद जिसका प्रयोग किसी बात पर हर्ष या आश्चर्य प्रकट करते हुए किया जाता है। वाह वाह ! क्यों न हो ! धन्य है !

सुबांधव
संज्ञा पुं० [सं० सुबान्धव] १. शिव। २. उत्तम मित्र।

सुबाल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक देवता। २. एक उपनिषद् का नाम। ३. उत्तम बालक।

सुबाल (२)
वि० बालक के समान निर्बोध। अज्ञान।

सुबालिश
वि० [सं०] बच्चों जैसा अज्ञ या अबोध।

सुबास (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + वास] अच्छी महक। सुगंध।

सुबास (२)
संज्ञा पुं० एक प्रकार का धान जो अगहन महीने में होता है और जिसका चावल वर्षों तक रहता है। २. सुंदर निवासस्थान।

सुबासना पु (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + वास] सुगंध। खुशबू। अच्छी महक। उ०—क्रहि लहि कौन सकै दुरी सोनजुही मैं जाइ। तन की सहज सुबासना देती जो न बहाइ।—बिहारी (शब्द०)।

सुबासना (२)
क्रि० स० सुवासित करना। सुगंधित करना। महकाना।

सुबासिक
वि० [सं० सु + वास] सुवासित। सुगंधित। खुशबूदार। उ०—रहा जो कनक सुवासिक ठाऊँ। कस न होए हीरा मनि नाऊँ।—जायसी (शब्द०)।

सुबासित पु
वि० [सं० सुवासित] दे० 'सुवासित'।

सुबाहु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. नागासुर। २. स्कंद का एक पार्षद। ३. एक दानव का नाम। ४. एक राक्षस का नाम। ५. एक यक्ष का नाम। ६. धृतराष्ट्र का पुत्र और चेदि का राजा। ७. पुराणानुसार श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। ८. शत्रुघ्न का एक पुत्र। ९. प्रातिबाहु का एक पुत्र। १०. कुवलयाश्व का एक पुत्र। ११. एक बोधिसत्व का नाम। १२. एक वानर का नाम।

सुबाहु (२)
वि० दृढ़ या सुंदर बाहोंवाला। जिसकी बाहें अच्छी और मजबूत हों।

सुबाहु (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० सुवाहुस्] एक अप्सरा का नाम।

सुबाहु पु (४)
संज्ञा स्त्री० [सं० सु + बाहु] सेना। फौज। उ०—रैयत राज समाज कर तन धन धरम सुबाहु। शांत सुसचिवन सौंपि सुख बिलसहि नित नरनाहु।—तुलसी (शब्द०)।

सुबाहुक
संज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम।

सुबाहुशत्रु
संज्ञा पुं० [सं०] श्रीरामचंद्र का एक नाम।

सुबिस्ता †
संज्ञा पुं० [देश०] दे० 'सुभीता'।

सुबिहान पु
संज्ञा पुं० [अ० सुबहान] दे० 'सुभान'।

सुबीज (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। महादेव। २. पोस्तदाना। खस- खस। ३. उत्तम बीज।

सुबीज (२)
वि० उत्तम बीजवाला। जिसके बीज उत्तम हों।

सुबीता
संज्ञा पुं० [देश०; तुल० 'सुविधा'] दे० 'सुभीता'।

सुबुक
वि० [फा़०] १. हलका। कम बोझ का। भारी का उलटा। २. सुंदर। खूबसूरत। उ०—बसन फटे उपटे सुबुक निबुक ददोरे हाय।—रामसहाय (शब्द०)। यौ०—सुबुक रंग = सोना रँगने का एक प्रकार। ३. कोमल। नाजुक। मृदु (को०)। ४. तेज। फुर्तीला। चुस्त। जैसे, सुबुक रफ्तार।

सुबुक (२)
संज्ञा पुं० घोड़े की एक जाति।विशेष—इस जाति के घोड़े मेहनती और हिम्मती होते हैं। इनका कद मझोला होता है। दौड़ने में ये बड़े तेज होते हैं। इन्हें दौड़ाक भी कहते हैं।

सुबुकदस्त
वि० [फा़०] फुर्तीले हाथोंवाला [को०]।

सुबुकदस्ती
संज्ञा स्त्री० [फा़०] हाथों का फुर्तीलापन। हस्तला- घव [को०]।

सुबुक रंदा
वि० [फा़० सुबुक + हिं० रंदा] लोहे का एक औजार जो बढ़इयों के पेचकश की तरह का होता है। इसकी धार तेज होती है। इससे बर्तनों की कोर आदि छीलते हैं।

सुबुक रफ्तार
वि०[फा़० सुबुक रफ्तार] द्रुतगामी। तेज चालवाला।

सुबुकी
संज्ञा स्त्री० [फा़०] १. हलकापन। २. सुंदरता। ३. तेजी। ४. अप्रतिष्ठा।

सुबुद्धि (१)
वि० [सं०] उत्तम बुद्धिवाला। बुद्धिमान्।

सुबुद्धि (२)
संज्ञा स्त्री० उत्तम बुद्धि। अच्छी अक्ल।

सुबुध (१)
संज्ञा पुं० [सं० बुद्धि] बुद्धि। अक्ल। (डि०)।

सुबुध (२)
वि० [सं०] १. बुद्धिमान्। अक्लमंद। २. सावधान। सतर्क।

सुबू (१)
संज्ञा पुं० [फा़० सुब्ह] दे० 'सुबह'। उ०—जो निसि दिवस न हरि भजि पैए। तदपि न साँझ सुबू बिसरैए।—विश्राम (शब्द०)।

सुबू (२)
संज्ञा पुं० [फा़०] कुंभ। घट। मटका [को०]।

सुबूचा
सज्ञा पुं० [फा़० सुबूचह्] ठिलिया। गगरी [को०]।

सुबूत
संज्ञा पुं० [अ०] १. वह जिससे कोई बात साबित हो। प्रमाण। साक्ष्य सबूत। २. तर्क। दलील। ३. उदाहरण। मिसाल [को०]।

सुबोध (१)
वि० [सं०] १. अच्छी बुद्धिवाला। २. जो कोई बात सहज में समझ सके। जिसे अनायास समझाया जा सके।

सुबोध (२)
संज्ञा पुं० अच्छी बुद्धि। अच्छी समझ।

सुब्रह्मण्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव। २. विष्णु। ३. कार्तिकेय। ४. उद्गाता पुरोहित या उसके तीन सहकारियों में से एक। ५. दक्षिण भारत का एक प्राचीन प्रांत।

सुब्रह्मण्य (२)
वि० ब्रह्मण्ययुक्त। जिसमें ब्रह्मण्य हो।

सुब्रह्मण्य क्षेत्र
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ जो मद्रास प्रदेश के दक्षिण कनारा जिले में है।

सुब्रह्मण्य तीर्थ
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सुबह्मण्य क्षेत्र'।

सुब्रह्मवासुदेव
संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण।