विक्षनरी:हिन्दी-हिन्दी/शे
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⋙ शेख (१)
संज्ञा पुं० [अ० शेख] [स्त्री० शेखानी] १. पैगंबर मुहम्मद के वंशजों की अपाधि। २. मुसलमानों के चार वर्गों में सबसे पहला वर्ग। ३. मुसलमान उपदेशक। इसलाम धर्म का आचार्य। ४. पीर। बड़ा बूढ़ा।
⋙ शेख पु (२)
संज्ञा पुं० वि० [सं० शेष] वि० 'शेष'।
⋙ शेख (३)
संज्ञा पुं० [सं० शैख] पतित ब्राह्मण की संतति। शैख।
⋙ शेखचिल्ली (१)
संज्ञा पुं० [अ० शख + हिं० चिल्ली] १. एक कल्पित मूर्ख व्यक्ति जिसके संबंध में बहुत सो विलक्षण और हँसानेवाली कहानियाँ कही जाती हैं। २. बैठे बैठे बड़े बड़े मंसूबै बाँधनेवाला। झूठमूठ बड़ी बड़ी बातों हाँकनेवाला। ३. मूर्ख मसखरा।
⋙ शेखचिल्ली (२)
वि० चंचल। शरारती। नटखट।
⋙ शेखड़ा
संज्ञा पुं० [सं० शैख + हिं० ड़ा (प्रत्य०)] शेख का छाकड़ा। पतित ब्राह्मण का पुत्र।
⋙ शेखर
संज्ञा पुं० [सं०] १. शीर्ष। सिर। माथा। २. सिर का आभूषण। मुकुट। किरीट। ३. सिर पर धारण की जानेवाली माला। ४. सिरा। चोटी। शिखर (पर्वत आदि का)। ५. श्रेष्ठतावाचक शब्द। सबसे श्रेष्ठ या उत्तम व्यक्ति या वस्तु। ६. टगण के पाँचवें भेद की संज्ञा (IISI)। यथा, व्रजनाथ। ७. लवग। लौंग (को०)। ८. शिग्रु मूल। सहिंजन की जड़ (को०)। ९. संगीत में ध्रुव या स्थायी पद का एक भेद।
⋙ शेखरापोड़ योजन
संज्ञा पुं० [सं० शेखरापीडयोजन] चौंसठ कलाओ में से एक कला का नाम। सिर पर या केशों में फूलों से अनेक प्रकार की रचना करना।
⋙ शेखरित
वि० [सं०] १. शेखरयुक्त। चूड़ायुक्त। २. जिससे शेखर या चुड़ा निर्मित हो। शेखर या चूड़ा के लिये उपयुक्त [को०]।
⋙ शेखरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बंदा। बंदाक। २. लौंग। देवी पुष्प ३. सहिंजन की जड़।
⋙ शेखसद्दो
संज्ञा पुं० [अ० शेख + देश० सद्दो] मुसलमान स्त्रियों के उपास्य एक पीर जो कभी कभी भूत की तरह उनके सिर पर आते हैं।
⋙ शेखावत
संज्ञा स्त्री० [अ० शेख ?] क्षत्रियों की एक जाति। कछवाहे राजपूतों की एक शाखा। उ०—शेखावत राजा रह्मो, रह्मो पुरोहित तास। करमैती दुहिता रही, ताही की छबिरास।— रघुराज (शब्द०)। विशेष—कहते हैं, किसी मुसलमान शेख या फकीर की दूआ से इस वंश के प्रवर्तक उत्पन्न हुए थे जिनका नाम इसी कारण शेखाजी पड़ा। जयपुर राज्य के अंतर्गत शेखावाटी नामक स्थान में इस शाखा के राजपूत बसते हैं।
⋙ शेखी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शेखी] १. गर्व। अहंकार। घमंड। २. शान। ऐंठ। अकड़। ३. अभिमान भरी बात। डींग। मुहा०—शेखी बधारना, हाँकना या मारना = बढ़ बढ़कर बातें करना। अभिमान से भरी बातें बालना। डींग मारना। शेखी झड़ना या निकलना = गर्व चूर्ण होना। मान ध्वस्त होना। ऐसा दंड पाना या हानि सहना कि अभिमान दूर हो जाय। शेखी की बोलना = दे० 'शेखी बधारना'। उ०—अच्छा अच्छा, बस बहुत शेखी की न बोली।—फिसाना०, भा० २, पृ० ३४।
⋙ शेखीबाज
वि० [फ़ा शेखी + बाज़] १. अभिमानी। घमंडी। २. डींग मारनेवाला (व्यक्ति)।
⋙ शेज †
संज्ञा पुं० [देश०] अधीरी नामक वृक्ष। (बुंदेल०)।
⋙ शेठ †
संज्ञा पुं० [हिं० सेठ] दे० 'सेठ'। उ०—तब ही शेठ साम जी आए। प्रेमभाव से शीश नवाए।—कबीर सा०, पृ० ४७४।
⋙ शेड
संज्ञा पुं० [अं०] १. छाया। छाजन। जैसे, टिन का शेड। २. लैप का ढक्कन। उ०—पास ही टेबिल पर रखे हुए लैप का नीलवर्ण 'शेड' उतारकर, चिमनी निकालकर, जयंती एक झाड़न से उसे साफ करने लगी।—संन्यासी, पृ० २७।
⋙ शेणघंटा
संज्ञा स्त्री० [सं० शोणघणटा] दंती। उदुंबरपर्णी।
⋙ शेप
संज्ञा पुं० [सं०] १. पुरूष की इंद्रिय। लिंग। शिश्न। २. अंड- कोश। फोता (को०)। ३. दुम। पूँछ। लांगूल (को०)।
⋙ शेपाल
संज्ञा पुं० [सं०] सेवार। शैवाल।
⋙ शेफ
संज्ञा पुं० [सं०] १. लिंग। शिश्न। २. मूष्क। अंडकोश (को०)। ३. पुच्छ। दुम (को०)।
⋙ शेफालि, शेफालिका, शेफाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] निर्गुंडी। नील सिंधुवार का पौधा।
⋙ शेयर
संज्ञा पुं० [अं०] १. हिस्सा। भाग। साझा। बाँट। २. किसी कारबार में लगी हुई पूँजी का हिस्सा जो उसमें शामिल होनेवाला हर एक आदमी लगावे।
⋙ शेयर होल्डर
संज्ञा पुं० [अं०] वह जिसके पास संमिलित मूलधन या पूंजी से चलनेवाले किसी कारबार या कंपनी के 'शेयर' या 'हिस्से' हों। हिस्सेदार। अंशी। जैसे,—बैंक के 'शेयर होल्डर', कंपनी के 'शेयर होल्डर'।
⋙ शेर
संज्ञा पुं० [फ़ा०] [स्त्री० शेरनी] १. बिल्ली की जाति का सबसे भयंकर प्रसिद्ध हिंसक पशु। बाघ। व्याघ्र। नाहर। यौ०—शेरबबर, शेरबच्चा, शेरमर्द। मुहा०—शेर का कान = भाँग छानने का कपड़ा। (भंगड़)। (चिराग) शेर करना = बत्ती बढ़ाकर रोशनी तेज करना। शेर का बाल = सिंह की मूँछ के बाल। शेर की खाला या मौसी = बिल्ली। मार्जार। शेर के मुँह में जाना = प्राणसंकट की जगह जाना। शेर के मुँह से शिकार छीनना = अत्यंत बहादुरी करके अपने से प्रबल से कोई वस्तु जबरन् ले लेना। शेर बकरी का एक घाट पर या एक साथ पानी पीना = गरीब अमीर सबके साथ समान न्याय करना। ठीक ठीक इंसाफ करना। शेर होना = निभय और धृष्ट होना। डर या दाब में न रहना। स्वेच्छाचारी और उद्दंड होना। २. अत्यंत वीर और साहसी पुरुष। बड़ा बहादुर आदमी। (लाक्षणिक)।
⋙ शेर (२)
संज्ञा पुं० [अ०] फारसी, उर्दू आदि की कविता के दो चरण।
⋙ शेर गुलाबी
संज्ञा पुं० [फ़ा०] गहरा गुलाबी रंग।
⋙ शेरदरवाजा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेरदरवाजा] सिंहद्वार।
⋙ शेरदहाँ (१)
वि० [फ़ा०] १. जिसका मुँह शेर का सा हो। २. जिसके छोरों पर शेर का मुँह बना हो।
⋙ शेरदहाँ (२)
संज्ञा पुं० १. वह जिसकी घुंडी शेर के मुँह के आकार की बनी हो। २. वह मकान जो आगे की ओर चौड़ा और पीछे की ओर पतला और संकरा हो। ३. पुराने ढंग की एक प्रकार की बंदूक।
⋙ शेरदिल
वि० [फ़ा०] बहादुर। साहसी। निर्भय [को०]।
⋙ शेरनर
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेर + सं० नर] वीर पुरुष। उ०—नेकबख्त दिलपाक सखी जवाँमर्द शेरनर।—अकबरी०, पृ० २५।
⋙ शेरपंजा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेर + हिं० पंजा] शेर के पंजे के आकार का एक अस्त्र। बघनहा।
⋙ शेरबकरी
संज्ञा स्त्री० [हिं०] बच्चों का एक खेल।
⋙ शेरबचा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेरबचह्] दे० 'शेरबच्चा'।
⋙ शेरबच्चा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेर + हिं० बच्चा] १. शेर का बच्चा। २. वीरपुत्र। पराक्रमी पुरुष। बहादुर आदमी। ३. एक प्रकार की छोटी बंदुक।
⋙ शेरबबर
संज्ञा पुं० [फ़ा०] सिंह। केसरी। उ०—चूहा शेरबबर से विरुद्धता कर सके ऐसे ही ये मूर्ख मनुष्यों के ध्यान हैं।—कबीर मं०, पृ० २०६।
⋙ शेरमर्द
वि० [फ़ा०] बहादुर। वीर।
⋙ शेरमर्दी
संज्ञा स्त्री० [फा़०] बहादुरी। वीरता।
⋙ शेरवानी
संज्ञा स्त्री० [देश०] अंग्रेजी ढंग की काट का एक प्रकार का अंगा। विशेष—यह घुटनों तक लंबा होता है। इसमें बालाबर, कली और चौबगले काट काटकर नहीं लगाए जाते। आगे जिस ओर बटन लगाया जाता है, उसके नीचे का आधा भाग अधिक चौड़ा होता है जिसमें बंद या हुक लगाकर दूसरे भाग के नीचे करके बांधते या बंद करते हैं। मुसलमानों में इसका रिवाज अधिक है।
⋙ शेल पु
संज्ञा पु० [सं० शल्य] दे० 'सेल'।
⋙ शेलक
संज्ञा पुं० [सं०] लिसोड़ा। लिभेरा। बहुवार वृक्ष।
⋙ शेलमुख
संज्ञा पुं० [सं०] १. श्रीफल। बिल्व वृक्ष। २. एक प्रकार का फल।
⋙ शेलु
संज्ञा पुं० [सं०] १. लिसोड़ा। लभेरा। २. बनमेथी नामक शाक।
⋙ शेलुक
संज्ञा पुं० [सं०] १. लिसोड़ा। २. मेथी। ३. लोध्र वृक्ष।
⋙ शेलुका
संज्ञा पुं० [सं०] बनमेथी।
⋙ शेलुष
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का लिसोड़ा।
⋙ शेवंतिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] गुलदाउदी।
⋙ शेव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] अभ्युदय। उन्नति। वृद्धि। २. ऊँचाई। ३. धन संपत्ति। ४. शिश्न। लिंग। ५. मछली। ६. सर्प। ७. अग्नि का एक नाम। ८. सोम का एक नाम (को०)।
⋙ शेव (२)
संज्ञा पुं० [अं०] हजामत बनाने का काम। क्षौर कर्म। क्रि० प्र०—करना।—कराना।—होना।
⋙ शेवधि
संज्ञा पुं० [सं०] १. निधि। खजाना। २. कुवेर की नौ निधियों में एक का नाम (को०)।
⋙ शेवल
संज्ञा पुं० [सं०] सेवार। शैवाल।
⋙ शेवलिनि, शेवलिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] (जिसमें सेवार हो) नदी। शैवलिनी।
⋙ शेवा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] लिंग का आकार। लिंग [को०]।
⋙ शेवा (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शेवह] ढंग। तरीका। उ०—ये मातम की खिजाँ का देख शेवा। उरूसे बाग हो गई आज बेवा।— दक्खिनी०, पृ० १९१।
⋙ शेवाल
संज्ञा पुं० [सं०] सेवार। शैवाल।
⋙ शेवाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] आकाशमांसी। जटामासी का एक भेद।
⋙ शेष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो कुछ भाग निकल जाने पर रह गया हो। बची हुई वस्तु। वाकी। २. वह शब्द जो किसी वाक्य का अर्थ करने के लिये ऊपर से लगाया जाय। अध्याहार। ३. बड़ी संख्या में से छोटी संख्या घटाने से बची हुई संख्या। बाकी। ४. समाप्ति। अंत। खातमा। ५. परिणाम। फल। ६. स्मारक वस्तु। यादगार की चीज। ७. मरण। नाश। ८. पुराणानुसार सहस्त्र फनों के सर्पराज जो पाताल में हैं और जिनके फनों पर पृथ्वी ठहरी है। विशेष—ये 'अनंत' कहे गए हैं और विष्णु भगवान् क्षीर सागर में इन्हीं के ऊपर शयन करते हैं। विष्णुपुराण में शेष, वासुकिऔर तक्षक तीनों कद्रु के पुत्र माने गए हैं। पाताल के राजा कहीं वासुकी कहे गए हैं और कहीं शेष। कुछ पुराणों के अनुसार गर्ग ऋषि ने ज्योतिष विद्या इन्हीं से पाई थी। लक्ष्मण और बलराम शेष के अवतार कहे गए हैं। ९. लक्ष्मण। उ०—सोहत शेष सहित रामचंद्र कुश लव जीति कै समर सिंधु साँचेहु सुधारचो है।—केशव (शब्द०)। १०. बलराम। ११. एक प्रजापति का नाम। १२. दिग्गजों में से एक। १३. अनन। परमेश्वर। १४. पिंगल में टगण के पाँचवें भेद का नाम। १५. छप्पय छंद के पचीसवें भेद का नाम जिसमें ४६ गुरु, ६० लघु, कुल १०६ वर्ण या १५२ मात्राएँ होती हैं। १६. हनन। घातन। वध (को०)। १७. प्रसाद (को०)। १८. हाथी। १९. जमालगोटा।
⋙ शेष (२)
वि० १. जो कुछ भाग निकल जाने पर रह गया हो। बचा हुआ। बाकी। उ०—यह जीवन का निमेष था, पर आगे यह काल शेष था।—साकेत, पृ० ३४९। २. अंत को पहुँचा हुआ। समाप्त। खतम। जैसे,—कार्य शेष होना। उ०—(क) बातैं करत शेष निशि आई ऊधो गए असनान।—सूर (शब्द०)। (ख) कर स्नान शेष, उन्मुक्त केश, सासु जो रहस्य स्मित सुवेश, आईं करने को बातचीत।—अनामिका, पृ० १२५। ३. अतिरिक्त। और दूसरे।
⋙ शेषक
संज्ञा पुं० [सं०] शेषनाग [को०]।
⋙ शेषकाल
संज्ञा पुं० [सं०] अंतिम समय। मृत्युकाल [को०]।
⋙ शेषजाति
संज्ञा स्त्री० [सं०] गणित में बचे हुए अंक को लेने की क्रिया।
⋙ शेषता
संज्ञा स्त्री० [सं०] शेष का भाव या क्रिया। शेषत्व [को०]।
⋙ शेषत्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. उपकारिता। २. दे० 'शेषता' [को०]।
⋙ शेषधर
संज्ञा पुं० [सं०] (शेष अर्थात् सर्प को धारण करनेवाले) शिव जी। उ०—शेषधरु नाग मुख ब्रह्म विष्णु इनकी कलेवर तौ काल को कवरु है।—केशव (शब्द०)।
⋙ शेषनाग
संज्ञा पुं० [सं०] सर्पराज। शेष। विशेष दे० 'शेष'—८।
⋙ शेषपति
संज्ञा पुं० [सं०] व्यवस्थापक। मैनेजर [को०]।
⋙ शेषभुक्
वि० [सं०] उच्छिष्टभोजी। भोजन से बचे अंश को खानेवाला।
⋙ शेषभूषण
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम [को०]।
⋙ शेषभोजन
संज्ञा पुं० [सं०] उच्छिष्ट वस्तु का भक्षण [को०]।
⋙ शेषर पु †
संज्ञा पुं० [सं० शेखर] दे० 'शेखर'।
⋙ शेषराज
संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में दो मगण होते हैं। विद्युल्लेखा।
⋙ शेषरात्रि
संज्ञा स्त्री० [सं०] रात का पिछला पहर। रात्रि का अंतिम याम।
⋙ शेषव
संज्ञा पुं० [सं०] कार्य द्वारा कारण का निश्चय। एक अनुमान [को०]।
⋙ शेषवत्
संज्ञा पुं० [सं०] न्याय में अनुमान का एक भेद। कार्य को देखकर कारण का निश्चय। जैसे—नदी की बाढ़ देखकर ऊपर हुई वर्षा का अनुमान।
⋙ शेषशयन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शेषशायी'। उ०—लख शंकाकुल हो गए अतुल बल शेषशयन।—अपरा०, पृ० ४१।
⋙ शेषशायी
संज्ञा पुं० [सं० शेषशायिन्] शेष नाग पर शयन करनेवाले विष्णु। विशेष—पुराणों के अनुसार प्रलय काल में विष्णु भगवान् तीनों लोकों को अपने पेट में धारण कर क्षीर सागर में शेषनाग की शैया बनाकर उसपर शयन करते हैं। कुछ काल के उपरांत उनकी नाभि से एक कमल निकलता है जिसपर ब्रह्मा की उत्पति होती है और सृष्टि का क्रम फिर से चलता है।
⋙ शेषांश
संज्ञा पुं० [सं०] १. बचा हुआ अंश। अवशिष्ट भाग। २. अंतिम अंश। आखिरी भाग।
⋙ शेषा
संज्ञा स्त्री० [सं०] देवता को चढ़ी हुई वस्तु जो दर्शकों या उपा- सकों को बाँटी जाय। प्रसाद।
⋙ शेषाचल
संज्ञा पुं० [सं०] दक्षिण का पर्वत। उ०—मुरि मुनीश शोषाचल माही। बैठे आगे धरि पटकाहीं।—रघुराज (शब्द०)।
⋙ शेषावस्था
संज्ञा स्त्री० [सं०] वृद्धावस्था [को०]।
⋙ शेषाहि
संज्ञा पुं० [सं०] शेषनाग [को०]।
⋙ शेषोक्त
वि० [सं०] अंत में कहा या लिखा हुआ।
⋙ शेष्य
वि० [सं०] उपेक्षणीय। त्याज्य [को०]।
⋙ शै
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. चीज। वस्तु। पदार्थ द्रव्य। उ०—(क) सब करामत उस कँकर ते है मुझे। जे मँगूँ सो होवे हाजिर शै मुझे।—दक्खिनी०, पृ १८४। (ज) लगा के बर्फ में साकी सुराहिए मै ला। जिगर की आग बुझे जल्द जिससे वह शैला।—कविता कौ० भा० ४, पृ० २६६। २. बात (को०)। ३. अभिवृद्धि। बढ़ती (को०)।
⋙ शैक्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिक्य। २. झोका, सिकहर। छीका। २. बर्तन जो छीके पर लटकाया हुआ हो (को०)।
⋙ शैक्य (२)
वि० १. जो सिकहर पर लटकाया हो। २. धारदार। चोखा। नोकदार। नुकीला [को०]।
⋙ शैक्यायस
संज्ञा पुं० [सं०] इसपात लोहा।
⋙ शैक्ष (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. आचार्य के निकट रहकर शिक्षा प्राप्त करनेवाला मनुष्य। २. शिक्षा देने योग्य। वह शिष्य जो प्रारंभिक शिक्षाप्राप्त कर रहा हो।
⋙ शैक्ष (२)
वि० शस्त्रशास्त्रादि शिक्षा संपन्न। शिज्ञा के अनुकूल व्यवहार- युक्त [को०]।
⋙ शैक्षिक
संज्ञा पुं० [सं०] शिक्षा विषय को जाननेवाला। 'शिक्षा' का ज्ञाता।
⋙ शैक्ष्य
संज्ञा पुं० [सं०] पांडित्य। पाटव। नैपुण्य [को०]।
⋙ शैख (१)
संज्ञा पुं० [सं०] पतित ब्राह्मण की संतान। व्रात्य (स्मृति)।
⋙ शैख (२)
संज्ञा पुं० [अ० शेख्] दे० 'शख (१)' [को०]।
⋙ शैखरिक, शैखरेय
संज्ञा पु० [सं०] ओंगा। अपामार्ग। चिचड़ा। लटजीरा।
⋙ शैखिन
वि [सं०] शिखी संबधी। मयूरसंबंधी। मयूर का [को०]।
⋙ शैख्य
वि० [सं०] जिसमें शिखा अर्थात् नोक हो। नोकदार। नुकीला [को०]।
⋙ शैग्रव
संज्ञा पुं० [सं०] सहिजन के बीज। शिग्रुबीज।
⋙ शैघ्र, शैघ्य्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शीघ्रता। जल्दी।
⋙ शैघ्र, शैघ्य्र (२)
वि० ज्योतिष के योग से संबंध रखनेवाला।
⋙ शैतान
संज्ञा पुं० [अ०] १. ईश्वर के समान सन्मार्ग का विरोध करनेवाली शक्ति या देवता। तमोगुणमय देवता जो मनुष्यों को बहकाकर धर्ममार्ग से भ्रष्ठ करने के प्रयत्न में रहा करता है। विशेष—यहूदी, ईसाई और इसलाम तीनों पैगंबरी मतों में दो परस्पर विरुद्ध शक्तियाँ मानी गई हैं-एक सत् दूसरी असत्। सत्स्वरूप ईश्वर के मंगलविधान में, असत् शक्ति सदा विघ्न डालने में तत्पर रहती है। आदि पैगंबर मूसा ने 'तौरेत' में लिखा है के पहले आदम और हौवा ईश्वर की आज्ञा में रहकर बड़े आनंद से स्वर्ग के उद्यान में रहा करते थे। शैतान ने हौवा को बहकाकर ज्ञान का वह फल खाने के लिये कहा जिसका ईश्वर ने निषेध किया था। इस अपराध पर आदम और हौवा स्वर्ग से निकाल दिए गए और इस पृथ्वी पर आए। इन्हीं से यह मनुष्यसृष्टि चली। ऐसा लिखा है कि शैतान भी पहले ईश्वर या खुदा का एक फरिश्ता (पारिषद) था। जब ईश्वर ने आदम या मनुष्य उत्पन्न किया तब वह ईर्ष्यावश ईश्वर से विद्रीही हो गया और उसकी सृष्टि में उत्पात करने लगा। ईश्वर ने उसे स्वर्ग से निकालकर नरक में भेज दिया जहाँ का वह राजा हुआ। सत् और असत् इन दो नित्य शक्तियों की भावना यहूदियों के पैगंबर मूसा को खाल्दियों (बाबुलवालों) और पारसीकों आदि प्राचीत सभ्य जातियों से मिली थी। जरतुश्त ने भी अवस्ता में अहुरमज्द (सत् शक्ति) और अह्नमान (असत् शक्ति) दो शक्तियाँ कही हैं। मुहा०—शैतान का कान में फूँकना = शैतान का बहकाना। शैतान का धक्का = दुवृत्ति। बुरी प्ररण। शैतान का बच्चा = बहुत दुष्ट आदमा। शंतान की आँत = बहुत लंबी वस्तु। शैतान की खाला = बहुत दुष्ट या पाजी औरत। (गाली)। शैतान की सूरत = अघ रूप। राक्षस की आकृति का। २. दुष्ट देवयोनि। भूत। प्रेत। मुहा०—शैतान उतरना = (१) भूतप्रेतादि का आवेश शांत होना। (२) क्रोधावेश दूर होना। (३) शरारतीपन न रहना। शैतान चढ़ना या लगना = (१) भूत प्रेत का आवेश होना। प्रेत का भाव पड़ना। (२) क्रोधावेश से आगबबूला हो जाना। शैतान का कान काटना = शैतान से भी बढ़ जाना। (सिर पर) शैतान सवार होना। (१) किसी का अत्यंत क्रुद्ध होना। (१) किसी बात की हठ पकड़ना। जिद चढ़ना। (३) शैतानी करना। यौ०—शैतानसीरत = शैतान की प्रकृतिवाला। महादुष्ट। शैतान सूरत = शैतान की आकृति का। ड़रावना। ३. बहुत ही दुष्ट या क्रूर मनुष्य। घोर अत्याचारी। (लाक्षणिक)। ४. बहुत ही नटखट मनुष्य। बहुत शरारती आदमी। (लाक्षाणिक)। ५. क्रोध। तामस। गुस्सा। ६. झगड़ा। टंटा। फसाद। उपद्रव। मुहा०—शैतान उठाना = झगड़ा खड़ा करना। उपद्रव मचाना।
⋙ शैतानी (१)
संज्ञा स्त्री० [अ० शैतान] दुष्टता। शरारत। पाजीपन।
⋙ शैतानी (२)
वि० १शैतान संबंधी। शैतान का। जैसे,—सैतानी गोल। २. नटखटी से भरा। दुष्टतापूर्ण। जैसे,—सैतानी हरकत। ३. निकृष्ट। बुरा। पापमय (को०)।
⋙ शैत्य
संज्ञा पुं० [सं०] शीत। ठंढक।
⋙ शैथिलिक
वि० [सं०] आलसी। मंद। ढीलाढाला [को०]।
⋙ शैथिल्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिथिल होने का भाव। शिथिलता। ढिलाई। २. तत्परता का अभाव। फुरती का न होना। सुस्ती। ३. दीर्घसूत्रता (को०)। ४. दुर्बलता। भीरुता (को०)। ५. अस्थिरता। चंचलता (को०)। ६. द्दष्टि की शून्यता या रिक्तता (को०)। ७. अवहेला। अवज्ञा। उपेक्षा (को०)।
⋙ शैदा
वि० [फा़०] आशिक। आसक्त। मुग्ध। उ०—तुझ हुश्न आलमताब का जो अशिको शैदा हुआ। हर खूबरू के हुस्न के जलवा सूँ बेपरदा हुआ।—कविता कौं०, भा० ४, पृ० ८। २. बहुत धिक इच्छुक या आतुर (को०)। ३. उन्मत्त। पागल (को०)। यौ०—शैदाए इल्म = ज्ञान प्राप्त करने का अभिलाषी। शैदाए वतन = देशभक्त। शैदाए हुस्न = सौंदर्य प्रेमी।
⋙ शैनेय
संज्ञा पुं० [सं०] शिनि का पुत्र सात्यकि नामक वीर यादव, जो कृष्ण का सारथी था। विशेष—यह अर्जुन का शिष्य था और महाभारत की लड़ाई में भूरिश्रवा को इसी ने मारा था। यादवों के पारस्परिक मुसलयुद्ध में यह मारा गया था।
⋙ शैन्य
संज्ञा पुं० [सं०] शिनि के वंशज जो क्षत्रिय से ब्राह्मण हो गए थे।
⋙ शैब्य
वि० संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शैव्य' [को०]।
⋙ शैरस
संज्ञा पुं० [सं०] पलंग या चारपाई का सिरहाना [को०]।
⋙ शैरिक
संज्ञा पुं० [सं०] नीले फूल की कटसरैया।
⋙ शैरीयक, शैरेयक
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शैरिक' [को०]।
⋙ शैल (१)
वि० [सं०] १. शिला सबंधी। पत्थर का। २. पथरीला। चट्टानी। ३. कड़ा। कठोर।
⋙ शैल (२)
संज्ञा पुं० १. पर्वत। पहाड़। उ०—दीन्हों डारि शैल ते भू पर पुनि जल भीतर डारयो।—सूर (शब्द०)। २. चट्टान। शिला। ३. छरीला। शैलेय। ४. रसौत। रसवत। ५. शिला- जीत। ६. लिसोड़ा। बहुवार। ७. बाँध। बंधा (को०)।८. एक प्रकार का अंजन। सुरमा (को०)। ९. पत्थरों का ढेर। प्रस्तरनिचय। प्रस्तरसमूह (को०)। १०. सात की संख्या का बोधक शब्द (को०)।
⋙ शैलकंपी
संज्ञा पुं० [सं० शैलकम्पिन्] १. स्कंद का एक अनुचर।
⋙ शैलक
संज्ञा पुं० [सं०] १. छरीला। शैलैय। २. गूगुल (को०)।
⋙ शैलकटक
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ की ढाल।
⋙ शैलकन्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती।
⋙ शैलकुमारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती। उ०—पूनि चढ़ि नंदी चले पुरारो। पाणि जोरि तब शैलकुमारी।—रघुराज (शब्द०)।
⋙ शैलकूट
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ की चोटी [को०]।
⋙ शैलगंग, पु शैलगंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० शैलगड़्गा] गोवर्धनपर्वत की एक नदी जिसमें श्रीकृष्ण ने सब तीर्थो का अ वाहन किया था। उ०—इन्हहिं आदि तीरथ सकल शैलगंग प्रति आँहिं। जेहि दरसे परसे परम गति कहँ मानव जाहिं।—गोपाल (शब्द०)।
⋙ शैलगंध
संज्ञा पुं० [सं० शैलगन्ध] शबर चंदन। बर्बर चंदन।
⋙ शैलगर्भाह्वा।
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सिंहली पीपल। २. पखानभेद। पत्थरचूर।
⋙ शैलगुरु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय [को०]।
⋙ शैलगुरु (२)
वि० पहाड़ जैसा भारी [को०]।
⋙ शैलज
संज्ञा पुं० [सं०] १. पथरफूल। छरीला। २. शिलाजतु। शैलाज।
⋙ शैलजन
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ी मनुष्य [को०]।
⋙ शैलजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पर्वत से उत्पन्न। पार्वती। दुर्गा। २. सिंहपिप्पली। ३. गजपिप्पली। ४. पाषाणभेद।
⋙ शैलजात
संज्ञा पुं० [सं०] छरीला। पथरफूल।
⋙ शैलजाता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गोल मिर्च। काली मिर्च। २. गज- पिप्पली।
⋙ शैलतटी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पहाड़ की तराई। उ०—जब वह मेरे साथ टहलने शैलतटी में जाता था। अपनो अमृतमय वाणी से प्रेमसुधा बरसाता था।—श्रीधर (शब्द०)।
⋙ शैलतनया
संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती [को०]।
⋙ शैलता
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० ' शैलत्व'।
⋙ शैलत्व
संज्ञा स्त्री० [सं०] शैल होने का भाव [को०]।
⋙ शैलदुहिता
संज्ञा स्त्री० [सं० शैलदुहितृ] पार्वती।
⋙ शैलधन्वा
संज्ञा पुं० [सं० शैलधन्वन्] महादेव। शिव।
⋙ शैलधर
संज्ञा पुं० [सं०] गिरिधर। श्रीकृष्ण।
⋙ शैलधातु
संज्ञा पुं० [सं०] खनिज द्रव्य। धातु [को०]। यौ०—शैलधातुज = शिलाजतु।
⋙ शैलधानुक, शैलधानुज
संज्ञा पुं० [सं०] शिलाजतु। शिलाजीत।
⋙ शैलनंदिनी
संज्ञा स्त्री० [सं० शैलनन्दिनि] पार्वती।
⋙ शैलनिर्यास
संज्ञा स्त्री० [सं०] शिलाजतु। शिलाजीत।
⋙ शैलपति
संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पहाड़।
⋙ शैलपत्र
संज्ञा स्त्री० [सं०] बेल। बिल्व वृक्ष।
⋙ शैलप्रतिमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शिला पर चित्रित, अंकित वा टंकित आकृति [को०]।
⋙ शैलपुत्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पार्वती। २. नौ दुर्गाओं में से एक दुर्गा का नाम। ३. गंगा नदी।
⋙ शैलपुष्प
संज्ञा पुं० [सं०] शिलाजतु। शिलाजीत।
⋙ शैलबाला
संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटा झरना। निर्धरिणी। निर्झरी।
⋙ शैलबीज
संज्ञा पुं० [सं०] भिलावाँ। भेला।
⋙ शैलभित्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] पत्थर को तोड़ने या काटने का औजार। टाँकी। छेनी (को०)।
⋙ शैलभेद
संज्ञा पुं० [सं०] पखानभेद।
⋙ शैलमल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं०] कुटज। कोरैया।
⋙ शैलमृग
संज्ञा पुं० [सं०] जंगली बकरा [को०]।
⋙ शैलरंध्र
संज्ञा पुं० [सं० शैलरन्ध्र] गुफा।
⋙ शैलराज
संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय। पर्वत। यौ०—शैलराजतनया, शैलराजपुत्री, शैलराजसुता = पार्वती।
⋙ शैलरोही
संज्ञा पुं० [सं०] मोगरा चावल।
⋙ शैलवल्कला
संज्ञा पुं० [सं०] पाषाणभेद। श्वेत पाषाण।
⋙ शैलशिखर
संज्ञा पुं० [सं०] पर्वती की चोटी [को०]।
⋙ शैलशिविर
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र। सागर। विशेष—कहते हैं, जब इंद्र ने पर्वतों पर चढाई की थी, तब कुछ पर्वत समुद्र में जा छिपे थे। इसी समुद्र का यह नाम पड़ा है।
⋙ शैलशेशर
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ की चो़टी।
⋙ शैलशृंग
संज्ञा पुं० [सं० शैलश्रृङ्ग]दे० 'शैलकूट' [को०]।
⋙ शैलसंधि
संज्ञा पुं० [सं० शैलसन्धि] पर्वत के बीच की संधि। दर्रा। घाटी [को०]।
⋙ शैलसंभव
संज्ञा पुं० [सं० शैलसम्भव] शिलाजीत।
⋙ शैलसंभूत
संज्ञा पुं० [सं० शैलपसम्भूत] गेरू।
⋙ शैलसार
वि० [सं०] पर्वत के समान अचल वा स्थिर। द्दढ [को०]।
⋙ शैलसुता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पार्वती। २. ज्योतिष्मती (को०)।
⋙ शैलसेतु
संज्ञा पुं० [सं०] प्रस्तर निर्मित पुल या बाँध [को०]।
⋙ शैलांश
संज्ञा पुं० [सं०] एक देश का नाम [को०]।
⋙ शैलाख्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. पथरफूल। छरीला। २. शिलाजीत।
⋙ शैलाग्र
संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ की चोटी [को०]।
⋙ शैलाज
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शैलज'।
⋙ शैलाट
संज्ञा पुं० [सं०] १. पहाड़ी। आदमी। परबतिया। २. किरात। ३. सिंह। ४. देवलक। देवल का पुजारी (को०)। ५. स्फटिक। बिल्लौर।
⋙ शैलादि
संज्ञा पुं० [सं०] शिव के गण, नंदी।
⋙ शैलाधार
संज्ञा स्त्री० [सं०] पर्वतों का आधार, पृथिवी [को०]।
⋙ शैलाधिप, शैलाधिराज
संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय पर्वत। यौ०—शैलाधिपतनय, शैलाधिराजतनया = पार्वती।
⋙ शैलाभ
संज्ञा पुं० [सं०] विश्वेदेव में से एक।
⋙ शैलाली
संज्ञा पुं० [सं०] शिलाली। नट।
⋙ शैलासन
संज्ञा पुं० [सं०] १. बैठने का एक छंग। २. लकड़ी या पत्थर का बना हुआ एक प्रकार का आसन [को०]।
⋙ शैलासा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शैलपुत्री। पार्वती [को०]।
⋙ शैलाह्व
संज्ञा पुं० [सं०] शिलाजीत।
⋙ शैलिक
संज्ञा पुं० [सं०] शिलाजीत।
⋙ शैलिक्य
संज्ञा पुं० [सं०] सर्वलिंगी। वह व्यक्ति जिसके मन, वचन, कर्म में ऐक्य न हो। पाखंड़ो व्यक्ति।
⋙ शैली
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चाल। ढब। ढंग। २. परिपाटी। प्रणाली। तर्ज। तरीका। ३. रीति। प्रथा। रस्म रिवाज। ४. लिखने का ढंग। वाक्यरचना का प्रकार। विचारों या भावों को अभिव्यक्त करने की रीति या कौशल। उ०—शैली श्रेष्ट कवीन की, गुरु को गुरु है जौन। ताको चरित बखानि कै, वहै होय मति तौन।—रघुराज (शब्द०)। ५. कठोरता। कड़ाई। सख्ती। ६. व्याकरण संबंधी या व्याकरण के सूत्र वा वचनों की संक्षिप्त विवृति (को०)। ७. प्रस्तरमूर्ति। शिला- प्रतिमा (को०)।
⋙ शैलीकार
संज्ञा पुं० [सं० शैली + कार] कला, साहित्य में विशिष्ट शैली का निर्माण या उनकी विशेष ढंग से आभिव्यक्ति करनेवाला व्यक्ति।
⋙ शैलू (१)
संज्ञा पुं० [देश०] लिसोड़ा। लभेरा।
⋙ शैलू (२)
संज्ञा स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चटाई जिसका व्यवहार दक्षिण और गुजरात में होता है।
⋙ शैलूक
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुवार वृक्ष। लिसोड़ा। लभेरा। २. कमलकंद। भसींड़।
⋙ शैलूकी
संज्ञा स्त्री० [सं०] कमलकंद। भसोंड़।
⋙ शैलूष
संज्ञा पुं० [सं०] १. अभिनय करनेवाला। नाटक खेलनेवाला। सूत्रधार। नट। २. गंधवोँ का स्वामी, रोहितण। (रामायण)। ३. धूर्त। ४. बिल्व वृक्ष। बेल। ५. वह जो संगीत में ताला देता हो (को०)। ६. तालधारक (को०)।
⋙ शैलूषभूषण
संज्ञा पुं० [सं०] हरताल।
⋙ शैलूषिक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शैलूषिकी] नट वृत्ति से जीवन निर्वाहि करनेवाली एक जाति। शिलाली। नट।
⋙ शैलूषिकी
संज्ञा स्त्री० [सं०] नटो। शैलूष जाति की स्त्री [को०]।
⋙ शैलेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० शैलेन्द्र] हिमालय। यौ०—शैलेंद्रज, शैलेंद्रदुहिता, शैलेंद्रसुता—(१) हिमालय की पुत्री। पार्वती। (२) गंगा।
⋙ शैलेंद्रस्थ
संज्ञा पुं० [सं० शैलेद्रस्थ] भोजपत्र। भूर्जपत्र का वृक्ष।
⋙ शैलेय (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री शैलेयी] १. पत्थर का। पथरीला। २. पहाड़ी। ३. पत्थर से उत्पन्न। ४. शिलातुल्य। पत्थर की तरह कठोर (को०)। ५. जो डिगाया न जा सके। अचल।
⋙ शैलेय (२)
संज्ञा पुं० १. दे० 'छरीला'। २. शिलाजीत। ३. मूसली। तालपर्णी। ४. सेंधा नमक। ५. सिंह। ६. भ्रमर।
⋙ शैलेयक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शैलेय'।
⋙ शैलेयी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती। शैलपुत्री।
⋙ शैलेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] शिव। महादेव।
⋙ शैलोदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वाल्मीकि रामायण और महाभारत में वर्णित उत्तर दिशा की एक नदी।
⋙ शैलोद्भवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] पाषाणभेद। क्षुद्र पाषाण।
⋙ शैल्य (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शैल्या] १. पत्थर का। २. पथरीला। ३. कड़ा। कठोर।
⋙ शैल्य (२)
संज्ञा पुं० शिलापान। कड़ापन। कठोरता। [को०]।
⋙ शैव (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शैवी] शिव संबंधी। शिव का। जैसे,— शैव दर्शन।
⋙ शैव (२)
संज्ञा पुं० १. शिव का अनन्य उपासक। महादेव का भक्त। विशेष—उपासनाभेद से आधुनिक हिंदू धर्म में तीन मुख्य संप्रदाय प्रचलित हैं—शैव, शाक्त और वैष्णव। शैव लोग परमेश्वर को शिवरूप ही मानते हैं। उनके अनुसार शिव ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार तीनों करते हैं। पूजा के लिये शिव की प्रतिमा नहीं बनाई जाती, लिंग ही उनका प्रतीक माना जाता है। (विशेष दे० 'लिंग')। शैव लींग शरीर में भस्म लगाते, गले में रुद्राक्ष की माला पहनते और माथे पर त्रिपुंड़ (तीन आड़ी रेखाएँ) लगाते हैं। शैवों के अनेक भेद हैं जो अधिकतर दक्षिण में पाए जाते हैं। कश्पीर में भी शैव मत का विशेष रूप से प्रचार था। शंकराचार्य के अनुयायी अद्वैतवादी भी अपामनाक्षेत्र में शैव ही होते हैं। शिव को उपासना भारत तथा उसके निकटवर्ती देशों में बहुत प्राचीन काल में भी प्रचलित थी। नैपाल, तिब्बत आदि में बौद्ध धर्म के साथ उसमें मिली हुई शिव की उपासना बहुत दिनों से प्रचलित चली आती है। ईसा के पूर्व के सिक्कों में भी त्रिशूल, नंदी आदि पाए जाते हैं। ऐसे सिक्के खुरासान तक में पाए गए हैं। शकों और हुणों में भी शैव धर्म प्रचलित था। २. पाशुपत अस्त्र। ३. धतूरा। ४. वासक। अड़ूसा। ५. शुभ। कल्याण। शुभता (को०)। ६. आचारभेद तंत्र के अनुसार देवी की उपासना का एक विशेष आचार (को०)। ७. शिवपुराण (को०)। ८. तँय का एक ग्रंथ (को०)। ९. शैवाल। १०. पाँचवें कृष्ण। वासुदेव। (जैन)।
⋙ शैवपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] बिल्व वृक्ष, जिसकी पत्तियाँ शिव पर चढती हैं। बेल।
⋙ शैवपुराण
संज्ञा पुं० [सं०] शिवपुराण।
⋙ शैवमल्लिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] लिंगिनी नाम की लता। पँचगुरिया।
⋙ शैवल
संज्ञा पुं० [सं०] १. पद्माख। पद्मकाष्ठ। पदुमाख। २. सेवार। ३. एक पर्व। ४. एक नाग का नाम। (बौद्ध)।
⋙ शैवलिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] नदी।
⋙ शैवाल
संज्ञा पुं० [सं०] सिवार। सेवार।
⋙ शैवी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पार्वती। २. मनसा नाम की देवी। ३. कल्याण। मंगल।
⋙ शैवी (२)
वि० स्त्री० शिव संबंधिनी। शिव की। जैसे,—शैवी उपासना, शैवी शक्ति।
⋙ शैव्य (१)
वि० [सं०] १. शिव संबंधी। २. शिवी नरेश या जनपद संबंधी।
⋙ शैव्य (२)
संज्ञा पुं० १. पांडवों का एक सेनापति। २. श्रीकृष्ण का एक घोड़ा। ३. अश्व। घोड़ा (को०)।
⋙ शैव्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. चंडकौशिक के अनुसार अयोध्या के सत्य- व्रती राजा हरिश्र्चंद की रानी का नाम। २. महाभारत के अनुसार प्रतीप नरेश की पत्नी का नाम (को०)। ३. सूर्यवंशी राजा सगर की पत्नी जिसका पुत्र असमंज था (को०)।
⋙ शैशव (१)
वि० [सं०] १. शिशु संबंधी। बच्चों का। २. बाल्यावस्था संबंधी।
⋙ शैशव (२)
संज्ञा पुं० १. अनजान बालक की अवस्था। बचपन। २. बच्चों का सा व्यवहार। लड़कपन।
⋙ शैशिर (१)
वि० [सं०] १. शिशिर संबंधी। २. शिशिर में उत्पन्न। ३. बर्फ से युक्त। हिमम्य। बर्फीला (को०)।
⋙ शैशिर (२)
संज्ञा पुं० १. ऋग्वेद की एक खाखा के प्रवर्तक एक ऋषि का नाम। २. कृष्ण चातक पक्षी। काले रंग का पपीहा।
⋙ शैशिरीय
वि० [सं०] दे० ' शौशिर (१)'।
⋙ शैशिरीय (शाखा)
संज्ञा स्त्री० [सं०] ऋग्वेद की साकल शाखाओं में से एक।
⋙ शैशुनाग
संज्ञा पुं० [सं०] मगध के प्राचीन राजा शिशुनाग का वंशज।
⋙ शैशुमार
संज्ञा पुं० [सं०] शिशुमार संबंधी।
⋙ शैश्न्य
संज्ञा पुं० [सं०] संभोग। मैथुन। रति [को०]।
⋙ शैष
संज्ञा पुं० [सं०] शिशिर ऋतु। ठंढ का मौसिम [को०]।
⋙ शैषिक
वि० [सं०] शेष या शेषांश संबंधी [को०]।
⋙ शैसीक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रचीन जाति का नाम।
⋙ शोक
संज्ञा पुं० [सं०] इष्ट के नाश और अनिष्ट की प्रप्ति से उत्पन्न मनोविकार। किसी प्रिय व्यक्ति के अभाव या पीड़ा आदि से अथवा दुःखदायी घटना से उत्पन्न क्षोभ। रंज। गम। विशेष—साहित्य में 'शोक' नौ स्थायी भावों में से एक है और करुण रस का मूल है। पुराणों में 'शोक' मृत्यु का पुत्र कहा गया है। यौ०—शोकर्षित। शोकचर्या। शोकनाश। शोकनिहित, शोकपरायण, शोकपरिप्लुत, शोकपीड़ित, शोकविकल, शोकविह्लल, शोकरुम्ण, शोक संतत्प = शोक से ग्रस्त। शोक से व्याकुल।
⋙ शोककर्षित
वि० [सं०] शोक से पीड़ित। शोक से दुखी [को०]।
⋙ शोककारक
वि० [सं०] शोक उत्पन्न करनेवाला।
⋙ शोकघ्न
संज्ञा पुं० [सं०] अशोक वृक्ष।
⋙ शोकचर्चा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शब्द की चरचा करना। शोक व्यक्त करना [को०]।
⋙ शोकनाश, शोकनाशक, शोकाशन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अशोक वृक्ष। २. वह जिससे शोक का नाश हो।
⋙ शोकसारण
वि० [सं० शोक + सारण] शोक या दुःख क दूर करनेवाला। उ०—शोकसारण करण कारण, तरण तारण विष्णु शंकर।—अर्चना, पृ० ८८।
⋙ शोकसूचक
वि० [सं०] शोक या दुःख को बतानेवाला। शोक को व्यक्त करनेवाला।
⋙ शोकस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] शोक का कारण [को०]।
⋙ शोकहर
संज्ञा पुं० [सं०] एक छंद का नाम जिसके प्रत्येक पद में ८, ८, ८, ६ के विश्राम से (अंत गुरु सहित) तीस मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद से दूसरे, चौथे और छठे चौकल में जगण न पड़े। इसके शुभांगी भी कहते हैं।
⋙ शोकहारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] बन बर्बरी। अजगंधा।
⋙ शोकाकुल
वि० [सं०] शोक से व्याकुल।
⋙ शोकातुर
वि० [सं०] शोक से विह्वल वा व्याकुल।
⋙ शोकापनोद, शोकापनोदन
संज्ञा पुं० [सं०] शोक को दूर करना। शोक का निवारण करना [को०]।
⋙ शोकाभिभूत
वि० [सं०] शोकार्त। शोकातुर।
⋙ शोकारि
संज्ञा पुं० [सं०] कदम। कदंब वृक्ष।
⋙ शोकार्त
वि० [सं०] शोक से आर्त। शोक से विकल।
⋙ शोकाविष्ट
वि० [सं०] जो शोक में अत्यंत संतप्त और व्याकुल हो।
⋙ शोकावेग
संज्ञा पुं० [सं०] बार बार या रह रहकर शोक का अनुभव होना [को०]।
⋙ शोकी
संज्ञा स्त्री० [सं०] रात्रि। रात।
⋙ शोकोपहत
वि० [सं०] शोक से विकल।
⋙ शोख
वि० [फा़० शोख] १. ढीठ। धृष्ट। प्रगल्भ। २. शरीर। नट- खट। ३. चंचल। चपल। ४. जो मंद या धूमिल न हो। गहरा और चमकदार। चटकीला। जैसे,—शोख रंग। यौ०—शोकबयानी = चटपटा या धृष्टतापूर्ण बयान। उ०— चरब जुबानी हाय हाय। शोखबयानी हाय हाय।—भारतेंदु ग्रं०, भा० २, पृ० ६७८।
⋙ शोखी
संज्ञा स्त्री० [फा़० शोखी] १. धृष्टता। ढिठाई। २. नटखटपना। ३. चंचलता। चपलता। ४. तेजी। चटकीलापन। जैसे,—रंग की शोखी।
⋙ शोग पु
संज्ञा पुं० [सं० शोक] दे० 'सोग'। उ०—आज्ञा भई फिरयो सब लोगा। सब कहँ भयो राम कर शोगा।—कबीर सा०, पृ० ३९।
⋙ शोच
संज्ञा पुं० [सं० शोचन] १. दुःख। रंज। शोक। अफसोस। २. पीड़ा। वेदना (को०)। ३. चिंता। फिक्र। खटका।
⋙ शोचन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० शोचनीय, शोचितव्य, शोच्य] १. शोक करना। रंज करना। २. चिंता करना। ३. शोक। रंज।
⋙ शोचनीय
वि० [सं०] १. शोक करने योग्य। जिसकी दशा देखकर दुःख हो। २. जिससे दुःख उत्पन्न हो। दुःखोत्पादक। ३. जो बहुत हीन या बुरा हो।
⋙ शोचि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लौ। लपट। २. दीप्ति। चमक। ३. वर्ण। रंग।
⋙ शोचितव्य
वि० [सं०] दे० 'शोचनीय' [को०]।
⋙ शोचिष्केश
संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि। २. सूर्य। ३. चित्रक वृक्ष। चीता।
⋙ शोच्य
वि० [सं०]दे० 'शोचनीय' [को०]।
⋙ शोटीर्य
संज्ञा पुं० [सं०] बल वीर्य। पराक्रम।
⋙ शोठ
वि० [सं०] १. मूर्ख। बेवकूफ। २. नीच। खोटा। ३. आलसी। निकम्मा। ४. धूर्त। ठग।
⋙ शोण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. लाल रंग। २. लाली। अरुणता। ३. अग्नि। आग। ४. सिंदूर। सेंदुर। ५. रक्त। रुधिर। खून। ६. पद्मराग मणि। मानिक। ७. रक्त पुनर्नवा। लाल गदह- पूरना। ८. सोना पाठा। ९. लाल गन्ना। १०. एक नद का नाम। विशेष दे० 'सोन'। ११. ललाई लिए भूरे रंग का, पिंग वर्ण का घोड़ा (को०)। १२. मंगल ग्रह (को०)।
⋙ शोण (२)
वि० १. लाल। गहरा लाल। २. लाख के रंग का। लालिमा युक्त भूरा। ३. पीत। पीला [को०]।
⋙ शोणक
संज्ञा पुं० [सं०] १. सोनापाठा। २. लाल गदहपूरना। ३. लाल गन्ना।
⋙ शोणगिरि
संज्ञा पुं० [सं०] एक पहाडी़ का नाम जिसपर मगध देश की पुराणी राजधानी 'राजगृह' थी।
⋙ शोणझिंटिका, शोणझिंटी
संज्ञा स्त्री० [सं० शोणझिण्टिका, शोणझिटी] पीली कटसरैया।
⋙ शोणपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] रक्त पुनर्नवा। लाल गदहपूरना।
⋙ शोणसद्म
संज्ञा पुं० [सं०] लाल कमल।
⋙ शोणपुष्प
संज्ञा पुं० [सं०] कचनार। कोविदार वृक्ष।
⋙ शोणपुष्पक
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'शोणपुष्प'। २. वह जिसके फूल शोण वर्ण के हों [को०]।
⋙ शोणपुष्पी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सिंदूरपुष्पी। सेंदुरिया।
⋙ शोणभद्र
संज्ञा पुं० [सं०] सोन नदी।
⋙ शोणमणि
संज्ञा स्त्री० [सं०] पद्मराग मणि। मानिक [को०]।
⋙ शोणरत्न
संज्ञा पुं० [सं०] मानिक। लाल।
⋙ शोणसंभव
संज्ञा पुं० [सं० शोणसम्भव] पिपलामूल। पिप्पलोमूल।
⋙ शोणहय
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार द्रोणाचार्य का एक नाम। [को०]।
⋙ शोणांबु
संज्ञा पुं० [सं० शोणाम्बु] प्रलय काल के मेघों में से एक मेघ का नाम।
⋙ शोणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री जिसका वर्ण शोण हो (को०)। २. सोन नदी। ३. लाल कटसरैया। ४. श्योनाक। सोना- पाठा (को०)।
⋙ शोणाक
संज्ञा पुं० [सं०] स्योनाक वृक्ष [को०]।
⋙ शोणाश्म
संज्ञा पुं० [सं० शोणाश्म] १. लाल पत्थर। २. पद्मराग। मानिक [को०]।
⋙ शोणित (१)
वि० [सं०] लाल। रक्त वर्ण का।
⋙ शोणित (२)
संज्ञा पुं० १. रक्त। रुधिर। खून। उ०—आहत जन के शोणित पर हो गिरी भरत रोदन धारा।—साकेत, पृ० ३८१। २. पौधों का रस। ३. केसर। जाफरान। ४. ईंगुर। शिंग- रफ। ५. ताम्र धातु। ताँबा। ६. तृणकोशर।
⋙ शोणितचंदन
संज्ञा पुं० [सं० शोणितचन्दन] लाल चंदन।
⋙ शोणितप
वि० [सं०] रक्त पीनेवाला [को०]।
⋙ शोणितपारणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] उपवास आदि के बाद खून या मांस का भोजन [को०]।
⋙ शोणितपित्त
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमें रक्तवाहिनी शिराएँ फट जाती हैं और रक्तस्राव होने लगता है [को०]।
⋙ शोणितपुर
संज्ञा पुं० [सं०] वाणासुर की राजधानी।
⋙ शोणितभृत्
संज्ञा पुं० [सं०] शरीरधारी। शरीरवाला। शरीरी [को०]।
⋙ शोणितमेह
संज्ञा पुं० [सं०] लाल प्रमेह।
⋙ शोणितमेही
संज्ञा पुं० [सं० शोणितमेहिन्] शोणित मेह का रोगी। प्रमेह का रक्त रोगी [को०]।
⋙ शोणितशर्करा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शहद की चीनी।
⋙ शोणितशोण
वि० [सं०] खून से लाल। यौ०—शोणितशोणपाणि = खून से लाल लाल हाथोंवाला।
⋙ शोणितार्बुद
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का शूक रोग जिसमें लिंग पर फुंसियाँ निकलती हैं।
⋙ शोणितार्श
संज्ञा पुं० [सं०] आँख की पलक का एक रोग जिसमें पलकों की कोर पर कोमल और लाल रंग का मांस का अंकुर उत्पन्न होता है।
⋙ शोणिताह्वय
संज्ञा पुं० [सं०] केसर। कुंकुम।
⋙ शोणितोत्पल
संज्ञा पुं० [सं०] लाल कमल। कोकनद [को०]।
⋙ शोणितोपल
संज्ञा पुं० [सं०] १. मानिक। लाल। शोणाष्म। २. लाल वर्णा का पत्थर (को०)।
⋙ शोणिमा
संज्ञा स्त्री० [सं० शोणिमन्] अरुणिमा। लालिमा [को०]।
⋙ शोणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह स्त्री जिसके शरीर का रंग लाल कमल के समान हो। रक्तोत्पल वर्ण की स्त्री। २. शोण वर्ण की वडवा [को०]।
⋙ शोणोपल
संज्ञा पुं० [सं०] १. मानिक। लाल। २. लाल वर्ण का पत्थर [को०]।
⋙ शोथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. किसी अंग का फूलना। सूजन। वरम। २. अंग में सूजन होने का रोग। वरम। विशेष—जब दूषित रक्त, पित्त या कफ कुपित वायु से नसों में रुद्ध हो जाता है, तब सूजन होती है। शोथ तीन प्रकार का कहा गया है—वातज, पित्तज और कफज। आमाशय में दोष होने से छाती के ऊपर, पक्वाशय में होने से छाती के नीचे और मलाशय में होने से कमर से पैर तक सारे शरीर में शोथ होता है। शरीर के मध्य भाग या सर्वांग का शोथ कष्टसाध्य कहा गया है। जो शोथ केवल अर्धांग में उत्पन्न होकर ऊपर की ओर बढ़ता हो, वह प्रायः घातक होता है। पर पांडु आदि रोगों में पैर से ऊपर की ओर बढ़नेवाला शोथ घातक नहीं होता। स्त्रियों की कुक्षि, उदर, गर्भस्थान या गले का शोथ असाध्य होता है। जो शोथ बहुत भारी और कड़ा हो और जिसमें श्वास, प्यास, दुर्बलता, अरुचि आदि उपद्रव भी उत्पन्न हो, वह भी असाध्य कहा गया है।
⋙ शोथक
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'शोथ'। २. मुरदासंग।
⋙ शोथघ्न
संज्ञा पुं०, वि० [सं०] दे० 'शोथजित्' [को०]।
⋙ शोथघ्नी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गदहपूरना। पुनर्नवा। २. शालपर्णो। सरिवन।
⋙ शोथजित् (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. भिलावाँ। भल्लातक। २. पुनर्नवा।
⋙ शोथजित् (२)
वि० शोथ दूर करनेवाला। जिससे शोथ रोग दूर हो।
⋙ शोथजिह्म
संज्ञा पुं० [सं०] पुनर्नवा। गदहपूर्णा।
⋙ शोथरोग
संज्ञा पुं० [सं०] शोथ या सूजन का रोग।
⋙ शोथह्वत्
संज्ञा पुं० [सं०] भिलावाँ। भल्लातक।
⋙ शोथारि
संज्ञा पुं० [सं०] पुनर्नवा। गदहपूरना।
⋙ शोद्धव्य
वि० [सं०] जिसे शुद्ध करना हो। शोधने योग्य।
⋙ शोध
संज्ञा पुं० [सं०] १. शुद्धि संस्कार। सफाई। २. ठीक किया जाना। दुरुस्ती। ३. चुकता होना। अदा होना। बेबाक होना। जैसे,—ऋण का शोध होना। ४. जाँच। परीक्षा। ५. प्रतिकार। प्रतिशोध। बदला (को०)। ६. खोज। ढूँढ़। तलाश। अनुसंधान। अन्वेषण। उ०—करते हैं ज्ञानी विज्ञानी नित्य नए सत्यों का शोध।—साकेत, पृ० ३७३।
⋙ शोधक (१)
वि० [वि० स्त्री० शोधका, शोधिका] शोध करनेवाला। शुद्ध करनेवाला।
⋙ शोधक (२)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शोधनेवाला। शुद्ध या साफ करनेवाला। उ०—संसार को बहुधा विरोध कुचित्त शोधक जानि। ठाढ़ी भई तह शांति सो करुणा सखी सुख मानि।—केशव (शब्द०)। २. सुधार करनेवाला। सुधारक। संशोधक। ३. ढूँढनेवाला। खोजनेवाला। अनुसंधान करनेवाला। ४. गणित में वह संख्या जिसे घटाने से ठीक वर्गमूल निकल। ५. रेचक। रेचन करनेवाला। जैसे, मलशोधक (को०)।
⋙ शोधन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० शोधित, शीधनीय, शोध्य, शोद्धव्य] १. शुद्ध करना। साफ करना। २. दुरुस्त करना। ठीक करना। सुधारना। जैसे,—लेखशोधन। ३. धातुओं का औषध रूप में व्यवहार करने के लिये संस्कार। जैसे,—पारद का शोधन। ४. छानबीन। जाँच। ५. खोजना। ढूँढ़ना। तलाश करना। अनुसंधान करना। ६. ऋण चुकाना। अदा करना। बेबाक करना। ७. किसी पाप से शुद्ध होने का संस्कार। प्रायश्चिचत्त। ८. चाल सुधारने के लिये दंड। सजा। ९. हटाकर साफ करना। सफाई के लिये दूर करना। साफ करना। १०. दस्त लाकर कोठा साफ करना। विरेचन। ११. मुरदासंग। कंकुष्ठ। १२. मल। विष्ठा। १३. घटाना। निकालना। (गणित)। १४. नीबू। १५. हीरा कसीस। १६. जैसे, उन्मूलन। उत्पादन। हटाना। दूर करना। जैसे,—कंटकशोधन। १७. ज्योतिष के अनुसार किसी शुभ कार्य के लिये शुभाशुभ दिन, मास योगादि का विचार। जैसे,—लग्नशोधन (को०)। १८. बदला। प्रतिशोध। जैसे,—वैरशोधन (को०)।
⋙ शौधन (२)
वि० शुद्धि करनेवाला। साफ करनेवाला [को०]।
⋙ शोधनक
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल के न्यायालय या धर्मसभा का स्थान साफ और ठीक करनेवाला अधिकारी, कर्मचारी।
⋙ शोधना
क्रि० स० [सं० शोधन] १. शुद्ध करना। साफ करना। मैला आदि निकालकर स्वच्छ करना। २ दुरुस्त करना। ठीक करना। त्रुटि या दोष दूर करना। सुधारना। जैसे,—लेख शोधना। ३. औषध के लिये धातु का संस्कार करना। जैसे,— पारा शोधना। ४. ढूँढ़ना। खोजना। अन्वेषण करना। तलाश करना। उ०—ग्रहबल, लग्न नक्षत्र शोधि कीनी वेदध्वनि।—सूर (शब्द०)।
⋙ शोधनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मार्जनी। झाड़ू। बुहारी। २. ताम्रवल्ली। ३. नील। ४. ऋद्धि नामक अष्टवर्गीय ओषधि।
⋙ शोधनीबीज
संज्ञा पुं० [सं०] जमालगोटे का बीज।
⋙ शोधनीय
वि० [सं०] १. शुद्ध करने योग्य। २. चुकाने योग्य। ३. ढूँढ़ने योग्य।
⋙ शोधवाना
क्रि० स० [सं० शोधना का प्रे० रूप] १. शोधने का काम कराना। शुद्ध कराना। दुरुस्त कराना। २. ढुँढ़वाना। तलाश कराना।
⋙ शोधवैया †
संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'शोधैया'।
⋙ शौधा
वि० [सं० शोधक] धातु शोधन करनेवाला। शुद्ध करनेवाला।
⋙ शोधित
वि० [सं०] १. शुद्ध किया हुआ। स्वच्छ। संस्कृत। ३. छाना हुआ। ४. संशोधित। जिसका सुधार किया गया हो। ५. जो चुकता कर दिया गया हो। जैसे, कर्ज। ६. जिसका अन्वेषण किया गया हो। अन्वेषित। ७. हटाया हुआ। दूर किया हुआ [को०]।
⋙ शौधैया
संज्ञा पुं० [हिं० शोध + ऐसा (प्रत्य०)] शोधनेवाला। सुधारक। उ०—मंगल सदा ही करै राम युगलेश कहैं राम रसिकावली शौधैया औ बोधैया को।—रघुराज (शब्द०)।
⋙ शोध्य (१)
वि० [सं०] शोधन करने योग्य़ [को०]।
⋙ शोध्य (२)
संज्ञा पुं० १. वह व्यक्ति जो अपने ऊपर लगाए गए अभियोग के संबंध में सफाई दे। वह जिसपर अभियोग लगाया गया हो। अभियुक्त [को०]।
⋙ शोफ
संज्ञा पुं० [सं०] शोथ। सूजन। अर्बुद।
⋙ शोफघ्नी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शोथघ्नी। रक्त पुनर्नवा। लाल गदहपूरना। २. शालपर्णी। सरिवन (को०)।
⋙ शोफजित्
संज्ञा पुं० [सं०] भल्लातक। भिलावाँ [को०]।
⋙ शोफनाशन
संज्ञा पुं० [सं०] १. शोथनाशन। नील का वृक्ष। २. लाल गदहपूरना। रक्त पुनर्नवा (को०)।
⋙ शोफर
संज्ञा पुं० [फार> अं० शोफ़र] मोटर चलानेवाला। मोटर का ड्राइवर। उ०—यह कहकर राजा साहब मोटर पर जो बैठे और शोफर से मिस्टर जिम के बँगले पर चलने को कहा।—काया०, पृ० २५८।
⋙ शोफहारी
संज्ञा पुं० [सं० शोफहारिन्] जंगली बर्बरी का पौधा।
⋙ शोफहृत्
संज्ञा पुं० [सं०] भिलावाँ। भल्लातक वृक्ष।
⋙ शोफारि
संज्ञा पुं० [सं०] हाथीकंद। हस्तिकंद।
⋙ शोफित
वि० [सं०] जिसे सूजन हो।
⋙ शोब
संज्ञा पुं० [फा़०] १. उष्णीश। २. धोना [को०]।
⋙ शोबदा
संज्ञा पुं० [अं०] १. जादू। इंद्रजाल। माया। नजरबंदी। बाजीगरी। २. छल। धोखा। फरेब। (को०)। यौ०—शोबदाबाज = (१) बाजीगर। (२) धूर्त [को०]।
⋙ शौबा
संज्ञा पुं० [अ० शोबह्] १. टूकड़ा। खंड। हिस्सा। २. डाली। शाख। शाखा। ३. महकमा। विभाग [को०]।
⋙ शोभ (१)
वि० [सं०] शोभायुक्त। सुंदर। सजीला।
⋙ शोभ (२)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार के देवता। २. एक प्रकार के नास्तिक। ३. (यौगिक शब्दों में प्रयुक्त) शोभा। कांति।—जैसे— शोभाकृत्।
⋙ शोभ पु (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० शोभा] दे० 'शोभा'।
⋙ शोभक
वि० [सं०] सुंदर। कांतियुक्त। सजीला।
⋙ शोभकृत्
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो शोभाकारक हो। २. बृहस्पति। के ६० वर्षों के चक्र में ३७ वाँ अथवा ३६ वाँ संवत्। एक संवत्सर का नाम [को०]।
⋙ शोभन (१)
वि० [सं०] १. शोभायुक्त। दीप्त। सुंदर। सजीला। २. सुहावना। रमणीय। ३. उत्तम। अच्छा। भला। श्रेष्ठ। ४. सदाचारी। पुणयात्मा। ५. उचित। उपयुक्त। सुहाता हुआ। ६. शुभ। मंगलदायक।
⋙ शोभन (२)
संज्ञा पुं० १. अग्नि का नाम। २. शिव का नाम। ३. इष्टि योग। ४. ज्योतिष में विष्कंभक आदि सत्ताइस योगों में से पाँचवाँ योग। ५. ग्रह। ६. बृहस्पति का ग्यारहवाँ संवत्सर। ७. २४ मात्राओं का एक छंद जिनमें १४ और १० मात्रा पर यति होती है और अंत में जगण होता है। इसका दूसरा नाम 'सिंहिका है। ८. मालकोश राग का पुत्र। एक राग। ९. कमल। १०. राँगा। ११. आभूषण। गहना। १२. मंगल। कल्याण। शुभ। १३. धर्म। पुण्य। १४. दीप्ति। सौंदर्य। १५. सिंदूर। सेँदुर। १६. कंकुष्ट। १७. अच्छे फल की प्राप्ति के लिये अग्नि में दी हुई आहुति (को०)।
⋙ शोभनक
संज्ञा पुं० [सं०] सहिंजन या शोभांजन का वृक्ष।
⋙ शोभनतम
वि० [सं० शोभन + तम (प्रत्य०)] अत्यंत सुंदर। उ०— अचल हिमालय का शोभनतम, लता कलित शुचि सानु शरीर।—कामायनी, पृ० २९।
⋙ शोभना (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सुंदरी स्त्री। २. हलदी। हरिद्रा। ३. गोरोचन। ४. स्कंद की अनुचरी एक मातृका।
⋙ शोभना पु (२)
क्रि० स० [सं० शोभन] शोभित होना। सोहना। उ०—फूल की झालर बनी है शोभती, गंध सौरभ वायु मंडल की तहें।—झरना, पृ० ३५।
⋙ शोभनिक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का नट या अभिनयकर्ता।
⋙ शोभनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक रागिनी जो मालकोश राग की स्त्री कही जाती है।
⋙ शोभनीय
वि० [सं०] सुंदर। मनोहर [को०]।
⋙ शोभनीया
संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी।
⋙ शोभांजन
संज्ञा पुं० [सं० शोभाञ्जन] सहिंजन का पेड़।
⋙ शोभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दीप्ति। कांति। चमक। २. छवि। सुंदरता। छटा। सजीलापन। रुचिरता। मुहा०—शोभा देना = अच्छा लगना। सुंदर लगना। शोभा बरसना = शोभा या सौंदर्य की अधिकता होना। ३. सजावट। ४. उत्तम गुण। ५. वर्ण। रंग। ६. बीस अक्षरों का एक वर्णंवृत्त जिसमें क्रम से यगण, मगण, दो नगण, दो तगण और दो गुरु होते हैं तथा ६, ७ और ९ पर यति होती है। ७. हलदी। हरिद्रा। ८. गोरोचन। ९. फारसी संगीत में मुकाम की स्त्रीयाँ जो चौबीस होती हैं। १०. काव्य के दस गुणों में से एक (को०)। ११. एक काव्यालंकार (को०)।
⋙ शोभाकर (१)
वि० [सं०] सौंदर्यकारक। शोभित करनेवाला।
⋙ शोभाकर (२)
संज्ञा पुं १. शोभा की खान। २. अत्यंत सुंदर व्यक्ति। सौंदर्य का आकर।
⋙ शोभातिशायी
वि० [सं० शोभा + अतिशायिन्] शोभावर्धक। सौंदर्य बढ़ानेवाला। उ०—आचार्यों ने भी अलंकारों को काव्यशोभाकर, शोभातिशायी आदि ही कहा है।—रस०, पृ० ५२।
⋙ शोभाधर
वि० [सं०] मनोहर [को०]।
⋙ ज्ञोभाधायक
वि० [सं०] उपकारक। जिससे सौदर्य में वृद्धि हो। शोभाकर। उ०—किंतु वामन ने उस व्यंगार्थ को भी वाच्यार्थ का उपकारक (शोभाधायक) बनाकर अलंकारों की कृक्षि (कोख) में ही रख दिया था।—पोद्दार अभि० ग्रं०, पृ० ४४२।
⋙ शोभाधारक
वि० [सं०] दे० 'शोभाधर' [को०]।
⋙ शोभानक
संज्ञा पुं० [सं०] शोभांजन वृक्ष। सहिंजन।
⋙ शोभान्वित
वि० [सं०] शोभा से युक्त। सुंदर। सजीला।
⋙ शोभामय
वि० [सं०] सुंदरता से पूर्ण [को०]।
⋙ शोभायमान
वि० [सं०] सोहता हुआ। सुंदर।
⋙ शोभित
वि० [सं०] १. शोभा से युक्त। सुंदर। सजीला। २. अच्छा लगता हुआ। सजा हुआ। ३. विद्यमान। उपस्थित। विराजता हुआ। जैसे,—सिंहासन पर शोभित होना।
⋙ शोभिनी
वि० [सं०] शोभा देनेवाली। सुंदरी [को०]।
⋙ शोभी
वि० [सं० शोभिन्] १. दीप्तिमान्। कांतिमान्। २. शोभा- युक्त। सुंदर। मनोहर [को०]।
⋙ शोर
संज्ञा पुं० [फा़०] १. जोर की आवाज। हल्ला। गुल गपाड़ा। कोलाहल। उ०—(क) जहाँ तहाँ शोर भारी भीर नर नारिन की सबही की छूटि गई लाज यहि भाइ कै।—केशव (शब्द०)। (ख) धननि की घोर सुनि मोरनि के शोर सुनि सुनि केशव अलाप आली जन को।—केशव (शब्द०)। २. धूम। प्रसिद्धि। जैसे,—उसके बड़प्पन का शोर हो गया है। उ०— आप द्धारका शोर कियो उन हरि हस्तिनापुर जान। प्रद्युम्न लरे सप्त दश दो दिन रंच हार नहिं माने।—सूर (शब्द०)। क्रि० पु०—करना।—मचना।—मचाना। यौ०—शोरगुल = हल्ला। कोलाहल। धमाचौकड़ी। ३. खारी नमक (को०)। ४. ऊसर भूमि (को०)। ५. उन्माद। पागलपन (को०)।
⋙ शोरबा
संज्ञा पुं० [फा़०] १. किसी उबाली हुई वस्तु का पानी। झोल। जूस। रसा। २. पके हुए मांस का पानी।
⋙ शोरा
संज्ञा पुं० [फा़० शोरह्] एक प्रकार का क्षार जो मिट्टी से निकलता है। विशेष—यह बहुत ठंढा होता है और इसीलिये पानी ठंडढा करने के काम में आता है। बारूद में भी इसका योग रहता है और सुनार इससे गहने भी साफ करते हैं। खारी मिट्टी में क्यारियाँ बनाकर इसे जमाते हैं। साफ किए हुए बढ़िया शारे की कलमो शोरा कहते हैं। मुहा०—शोरे की पुतली = बहुत गोरी स्त्री।
⋙ शोरा आलू
संज्ञा पुं० [हिं० शोरा + आलू] बन आलू।
⋙ शोरापुश्त
वि० [फा़०] लड़ाका। झगड़ालू। फसादी।
⋙ शोरिश
संज्ञा स्त्री० [फा़०] १. खलबली। हवचल। २. बलवा। बगावत। उपद्रव। दंगा।
⋙ शोरी
संज्ञा पुं० [फा़० शोर] १. फारसी संगीत में एक मुकाम का पुत्र। २. एक पंजाबी प्रसिद्ध गवैया जिसने टप्पा नाम का गीत निकाला था।
⋙ शोला (१)
संज्ञा पुं० [देश०] एक छोटा पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत हल्की होती है। विशेष—पानी पर तैरनेवाले जाल में इसकी लकड़ी लगाई जाती है। लकड़ी का सफेद हीर फूल, खिलौने तथा विवाह के मुकुट बनाने के काम में आता है।
⋙ शोला (२)
संज्ञा पुं० [अं०] आग की लपट। ज्वाला। यौ०—शोलाबारी = अग्निवर्षा। आग बरसना। शोलामिजाज = अत्यधिक क्रोधी स्वबाव का। गुस्सैल। शोलारुख, शोलारू = लाल लाल गालोंवाला। रक्ताम कपोलवाला।
⋙ शोली
संज्ञा स्त्री० [सं०] बनहलदी। वनहरिद्रा।
⋙ शोलेष
संज्ञा पुं० [सं०] वाल्मीकि रामयण में वर्णित एक प्रकार का अस्त्र।
⋙ शोशा
संज्ञा पुं० [फा़० शोशह्] १. निकली हुई नोक। २. अरबी फारसी के सोन या शोन अक्षर का दंदाना या नौक (को०)। ३. अदभूत् या अनाखी बात। चुटकुला। ४. झगड़ा खड़ा करनेवाली बात। ५. लगती बात। व्यंग्य। क्रि० प्र०—छोड़ना। ६. खंड। टुकड़ा (को०)। ७. सोने या चाँदी का डला (को०)।
⋙ शोष
संज्ञा पुं० [सं०] १. सूखने का भाव। खुश्क होना। रस या गीलापन दूर होने का भाव। २. छीजने का भाव। क्षय। ३. शरीर का घुलना या क्षोण होना। ४. एक रोग जिसमें शरीर सूखता या क्षीण होता जाता है। राजयक्ष्मा का भेद। क्षयी। विशेष—वैद्यक में शोष रोग के छहु कारण बताए गए हैं— अधिक शोक, जरावस्था, अधिक मार्ग चलना, अधिक व्यायाम, अधिक स्त्रीप्रसंग और हृदय में चोट लगना। इस रोग में शरीर क्षीण होता जाता है, मंद ज्वर और खाँसी रहती है, पसली, छाती और कमर में पीड़ा रहती है तथा अतिसार भी हो जाता है। ५. बच्चों का सुखंडी रोग। ६. खुश्की। सूखापन।
⋙ शोषक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शोषिका] १. जल, रस या तरी खींचनेवाला। सोखनेवाला। २. सुखानेवाला। खुशक करनेवाला। ३. घुलानेवाला। क्षीण करनेवाला। ४. नाश करने वाला। ५. दूर करनेवाला। ६. समाज का वह व्यक्ति या वर्ग जो स्वलपतम मूल्य देकर परिश्रम करनेवालों के परिश्रम का फल भोगता हो। विशेष—मार्क्सवाद के अनुसार समाज दो वर्गों में विभक्त है। शोषक और शोषित। शोषक वह वर्ग है जो पैसा लगाकर दूसरों से काम कराकर मुनाफा कमाता है और सभी सुविधाओं का उपभोग करता है। जो वर्ग मजदूर है, मेहनत करता है और सुविधा से वंचित रहता है वह शोषित वर्ग है।
⋙ शोषकवर्ग
संज्ञा पुं० [सं० शोषक + वर्ग] शोषकों का समूह। दे० 'शोषक'—५।
⋙ शोषघ्न
संज्ञा पुं० [सं०] बनप्याज।
⋙ षोषण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० शोषी, शोषित, शोषणीय] १. जल या रस खींचना। सीखना। २. सुखाना। खुश्क करना। तरी या गोलापन दूर करना। ३. हरापन या ताजापन दूर करना। ४. घुलाना। क्षीण करना। क्षय करना। ५. नाश करना। दूर करना। न रहने देना। ६. कामदेव के एक बाण कानाम। ७. सोंठ। शुंठि। ८. श्योनाक वृक्ष। सोनापाठा। ८. पिप्पली। पीपल। १०. एक प्रकार की अग्नि (को०)। ११. किसी के श्रम का अनुचित लाभ उठाना (को०)।
⋙ शोषण (२)
वि० शोष करनेवाला। शोषण करनेवाला।
⋙ शोषणीय
वि० [सं०] सोखने योग्य।
⋙ शोषयितव्य
वि० [सं०] १. जो सोखा जानेवाला हो। २. जिसे सुखाना हो।
⋙ शोषयिता
वि० [सं० शोषयितृ] सुखानेवाला [को०]।
⋙ शोषयित्नु
संज्ञा पुं० [सं०] सूर्य [को०]।
⋙ शोषसंभव
संज्ञा पुं० [सं० शोषसम्भव] पिपलामूल।
⋙ शोषहा
संज्ञा पुं० [सं० शोषहन्] (शोष रोग का नाश करनेवाला)] ओंगा। अपामार्ग। चिचड़ा।
⋙ शोषापहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] मुलेठी।
⋙ शोषिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] आकाश। तेज वहन करनेवाला [को०]।
⋙ शोषित
वि० [सं०] १. सोखा हुआ। सुखाया हुआ। ३. क्षीण किया हुआ (को०)। ४. नष्ट किया हुआ (को०)। ५. थका हुआ। हारा हुआ (को०)।
⋙ शोषितवर्ग
संज्ञा पुं० [सं० शोषित + वर्ग] समाज का वह वर्ग जिसका शोषण किया गया हो। विशेष दे० 'शोषक'—५।
⋙ शोषी
वि० संज्ञा पुं० [सं० शोषिन्] [स्त्री० शोषिणी] १. सोखनेवाला। २. सुखानेवाला।
⋙ शोषु
संज्ञा पुं० [सं०] जलादि की पिपासा। पियास। प्यास [को०]।
⋙ शोष्य
वि० [सं०] जिसे सोखा या सुखाया जाय। सुखाने या शोषित करने के योग्य।
⋙ शोहदा
संज्ञा पुं० [अ०। मि० सं० + सुभद्र? ] १. व्यभिचारी। लंपट। २. गुंडा। बदमाश। लुच्चा। ३. छैल चिकनिया। बहुत बनाव सिंगार करनेवाला।
⋙ शोहदापन
संज्ञा पुं० [हिं० शोहदा + पन (प्रत्य०)] १. गुंडापन। २. छैलापन।
⋙ शोहरत
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. नामवरी। ख्याति। प्रसिद्धि। २. खूब फैली हुई खबर। धूम। जनरव। जैसे,—शहर में शोहरत तो ऐसी ही है।
⋙ शोहरा
संज्ञा पुं० [अ० शोहरत] १. ख्याति। प्रसिद्धि। २. धूम से फैली हुई खबर। जनरव। उ०—भनै रघुराज दूत लागत अचर्ज माहिं, तोरिबो पिनाकी को पिनाक सुने शोहरा।— रघुराज (शब्द०)।
⋙ शौंग
संज्ञा पुं० [सं० शौङ्ग] भरद्धाज् ऋषि का एक नाम जो शुंग के अपत्य थे।
⋙ शौंगिपुत्र
संज्ञा पुं० [सं० शौङ्गपुत्र] एक वैदिक आचार्य का नाम।
⋙ शौगेय
संज्ञा पुं० [सं० शौङ्गेय] १. गरुड़। २. श्येन पक्षी। बाज।
⋙ शौंड (१)
संज्ञा पुं० [सं० शौण्ड] १. मुर्गा। कुक्कुट पक्षी। २. पुनेरा। देवधान्य। ३. वह जो मद्य पीकर मतवाला हुआ हो। मस्त। मत्त।
⋙ शौंड (२)
वि० १. मद्यप। शराबी। २. उत्तेजित। नसे में चूर। ३. (समास में) कुशल। दक्ष [को०]।
⋙ शौडता
संज्ञा स्त्री० [सं० शौण्डता] मत्तता। बदमस्ती।
⋙ शौंडा
संज्ञा स्त्री० [सं० शौण्डा] मद्य। शराब [को०]।
⋙ शौंडायन
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डायन] प्राचीन काल की एक योद्धा जाति का नाम।
⋙ शौंडि
वि० [सं० शौण्डि] १. चतुर। दक्ष। कुशल। २. आसक्त। अनुरक्त [को०]।
⋙ शौंडिक
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डिक] [स्त्री० शौण्डिकी] १. प्राचीन काल की एक प्रसिद्ध जाति जिसका व्यवसाय मद्य बनना और बेचना था। विशेष—पराशरपद्धति में इस जाति की उत्पत्ति कैवर्त पिता और गांधिक माता से लिखी है; और मनु ने कहा है कि इस जाति के आदमी के घर भोजन नहीं करना चाहिए। २. पिप्पलीमूल।
⋙ शौंडिकप्रिय
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डिकप्रिय] आम।
⋙ शौंडिकागार
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डिकागार] शराब की दूकान। शराबखाना। हौली। कलवरिया।
⋙ शौडिकी
संज्ञा स्त्री० [सं० शौण्डिकी] शौंडिक जाति की स्त्री [को०]।
⋙ शौंडिनी
संज्ञा स्त्री० [सं० शौंण्डिनी] दे० 'शौंडिकी'।
⋙ शौंडी (१)
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डिन्] प्राचीन काल की शौडिक नामक जाति।
⋙ शौंडी (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० शौण्डी] १. पीपल। पिप्पली। २. चव्य। चविका। कटभी वृक्ष। ३. मिर्च।
⋙ शौंडिर
वि०, संज्ञा पुं० [सं० शौण्डिर] दे० 'शौंडीर'।
⋙ शौंडीर (१)
वि० [सं० शौण्डीर] १. बहुत घमंड करनेवाला। अहंकारी। अभिमानी। २. उत्तुंग। उन्नत (को०)। ३. समर्थ (को०)।
⋙ शौडीर (२)
संज्ञा पुं० अभिमान। गर्व। घमंड [को०]।
⋙ शौंडीर्य
संज्ञा पुं० [सं० शौण्डीर्य] १. शूरत्व। नायकत्व। २. अभि- मान। घमंड। गर्व। शान [को०]।
⋙ शौक
संज्ञा पुं० [अ० शौक़] १. किसी वस्तु की प्राप्ति या निरंतर भोग के लिये अथवा कोई कार्य करते रहने के लिये होनेवाली तीव्र अभिलाषा या कामना। प्रबल लालसा। जैसे,—मोटर का शौक, सफर का शौक, खाने पीने का शौक, जूए का शौक, किताबौं का शौक। क्रि० प्र०—करना।—रखना।—होना। मुहा०—शौक करना = किसी वस्तु या पदार्थ का भोग करना। जैसे,—तंबाकू आ गया, शौक कीजिए। शौक चर्राना या पैदा होना = मन में प्रबल कामना होना। तीव्र लालसा होना (व्यंग्य)।जैसे—अब आप को भी घोड़े पर चढ़ने का शौक चर्राया है। शौक पूरा करना या मिटाना = किसी बात की प्रबल इच्छा की पूर्ति करना। जैसे,—जाइए, आप भी शतरंज का शौक पूरा कर (मिटा) लीजिए। शौक फरमाना = दे० 'शोक करना'। शौक से = प्रसन्नतापूर्वक। आनंद से। जैसे—हाँ हाँ, आप भी शौक से चलिए। २. आकांक्षा। लालसा। हौसिला। जैसे,—मुझे आज तक इस बात का शौक ही रहा कि लोग तुम्हारी तारीफ करते। ३. व्यसन। चसका। चाट। जैसे,—(क) आजकल उसे शराब का शोक हो गया है। (ख) आपका गंगास्नान का शौक कब से हुआ ? क्रि० प्र०—लगना।—लगाना।—होना। ४. प्रवृत्ति। झुकाव। जैसे,—जरा आपका शौक तो देखिए, पेड़ पर चढ़ने चले हैं।
⋙ शौक (२)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शुकसमूह। तोतों का झुंड। २. रतिबंध का एक प्रकरा (को०)। ३. शोक की अवस्था। शोक- दशा। शोकपूर्णता (को०)।
⋙ शौकत
संज्ञा स्त्री० [अ० शौक़त] ठाठ बाट। शान। उ०—हशमत व शौकत थिर नहीं मत देख हो मगरूर।—चरण०, बानी, पृ० ११४। यौ०—शान शौकत। २. आतंक। दबदबा। वि० दे० 'शान'।
⋙ शौकर
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शूकरक्षेत्र'।
⋙ शौकरव
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शूकरक्षेत्र।
⋙ शौकरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वाराहीकंद। गेंठी।
⋙ शौकि
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल के एक गोञप्रवर्तक ऋषि का नाम।
⋙ शौकिया (१)
क्रि० वि० [अ० शौक़ियह] शौक के कारण। शौक पूरा करने के लिये। प्रवृत्ति के वश होकर। जैसे,—(क) मुझे तंबाकू पीने की आदत तो नहीं है; पर हाँ कभी कभी शौकिया पी लिया करता हूँ। (ख) उन्हे कोई जरूरत तो न थी; सिर्फ शौकिया फारसी सीख ली थी।
⋙ शौकिया (२)
वि० शौक से भरा हुआ। जैसे,—शौकिया सलाम।
⋙ शौकीन
संज्ञा पुं० [अ० शौक + हिं० ईन (प्रत्य०)] १. वह जिसे किसी बात का बहुत शौक हो। शौक करनेवाला। चाव रखनेवाला। जैसे,—आप गाने बजाने के बड़े शौकीन हैं। २. वह जो सदा छैला बना रहता हो। सदा बना ठना रहनेवाला। ३. रंडीबाज। ऐयाश। तमाशबीन।
⋙ शौकीनी
संज्ञा स्त्री० [हिं० शौकीन + ई (प्रत्य०)] १. शौकीन होने का भाव या काम। क्रि० प्र०—करना।—छाँटना।—दिखाना।—बघारना। २. तमाशबीनी। रंडीबाजी। ऐयाशी।
⋙ शौकेय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि का नाम।
⋙ शौक्त (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक साम का नाम।
⋙ शौक्त (२)
वि० १. अम्लयुक्त। क्षारयुक्त। तेजाबी। २. शुक्ति का बना हुआ [को०]।
⋙ शौक्तिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शुक्तिका या सीपी से उत्पन्न, मोती। मुक्ता।
⋙ शौक्तिक (२)
वि० १. सीपी से या मोती से संबंधित। २. क्षार या अम्ल युक्त। तेजाबी [को०]।
⋙ शौक्तिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] सीप।
⋙ शौक्तिकेय, शौक्तेय
संज्ञा पुं० [सं०] मोती, जो शुक्ति या सीपी से उत्पन्न होता है।
⋙ शौक्र
वि० [सं०] १. शुक्र ग्रह संबंधी। शुक्र का। २. वीर्य संबंधी (को०)।
⋙ शौक्ल (१)
वि० [सं०] शुक्ल संबंधी। शुक्ल का।
⋙ शौक्ल (२)
संज्ञा पुं० दे० 'शौक्त (१)'।
⋙ शौक्लिकेय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का हलका विष [को०]।
⋙ शौक्ल्य
संज्ञा पुं० [सं०] सफेदी। उज्वलता [को०]।
⋙ शौंग्र
संज्ञा पुं० [सं०] सिग्रु, सहिंजन का बीज।
⋙ शौच
संज्ञा पुं० [सं०] १. शुचि होने का भाव। शुद्धता। पवित्रता। पाकीजगी। २. शास्त्रीय परिभाषा में पवित्रतापूर्वक धर्माचरण करना, शरीर और मन शुद्ध रखना, सत्य बोलना और निषिद्ध पदार्थों तथा कार्यों आदि का त्याग करना। सब प्रकार से शुद्धतापूर्वक जीवन व्यतीत करना। विशेष—मनु के अनुसार यह धर्म के दस लक्षणों में से पाँचवाँ लक्षण है; और योगशास्त्र के पाँच नियमों में से पहला नियम है। कुछ लोगों ने इसके बाह्य और आभ्यंतर ये दो भेद माने हैं। शरीर का बाह्य शौच मिट्टी और जल आदि से होता है; और अपने चित्त का भाव सब प्रकार से शुद्ध रखने से आभ्यंतर शौच होता है। जैनों के अनुसार संयमवृत्ति को निष्कलंक रखना शौच कहलाता है। ३. वे कृत्य जो प्रातःकाल उठकर सबसे पहले किए जाते है। जैसे,—पाखाने जाना, मुँह हाथ धोना, नहाना, संध्या वंदन करना आदि। ४. पाखाने जाना। जंगल जाना। ट्टी जाना। ५. दे० 'अशौच'। ६. खरापन। ईमानदारी (को०)। ७. तर्पण का जल (को०)।
⋙ शौचकर्म
संज्ञा पुं० [सं०] लोकव्यहार या शास्त्रानुसार शुद्ध होने की क्रिया [को०]।
⋙ शौचकल्प
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शौचकर्म' [को०]।
⋙ शौचकूप
संज्ञा पुं० [सं०] शौचगृह। संडास [को०]।
⋙ शौचगृह
संज्ञा पुं० [सं०] पाखाना [को०]।
⋙ शौचविधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] मल मूत्र आदि का त्याग करना। शौच आदि से निवृत्त होना। निपटना।
⋙ शौचागार
संज्ञा पुं० [सं०] शौचगृह। पाखाना।
⋙ शौचाचार
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शौचकार्य' [को०]।
⋙ शौचादिरेय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि का नाम।
⋙ शौचालय
संज्ञा पुं० [सं० शौच+ आलय] शौचगृह। शौचागार।
⋙ शौचिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल की एक वर्णसंकर जाति जिसकी उत्पत्ति शौडिक पिता और कैवर्त माता से कही गई है। २. शुद्ध, पवित्र या साफ करनेवाला (को०)।
⋙ शौची
वि० [सं० शौचिन्] विशुद्ध। पवित्र।
⋙ शौचेय
संज्ञा पुं० [सं०] रजक। धोबी।
⋙ शौटीर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वीर। बहादूर। २. शौर्य। पराक्रम। साहस (को०)। ३. संन्यासी वा त्यागी व्यक्ति। ४. अभिमानी। मनुष्य।
⋙ शौटीर (२)
वि० १. गर्वयुक्त। गर्वीला। प्रगल्भ। २. उदार [को०]।
⋙ शौटीरता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शौटीर का भाव या धर्म। २. वीरता। बहादुरी। ३. त्याग। ४. अभिमान। अहंकार। गर्व।
⋙ शौटीर्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. वीर्य। शुक्र। २. गर्व। अभिमान। ३. वीरता। बहादूरी।
⋙ शौत पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० सौत] दे० 'सौत'। उ०—मेरे आगे की यह गढ़ी। अब भइ शौत बदन पर चढ़ी।—लल्लूलाल (शब्द०)।
⋙ शौद्धौदनि
संज्ञा पुं० [सं०] बुद्धदेव, जो शुद्धोदन के पुत्र थे।
⋙ शौद्र (१)
संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य के वीर्य से शूद्रा से उत्पन्न पुत्र। विशेष—यह बारह प्रकार के पुत्रों में से एक प्रकार का पुत्र माना जाता है। ऐसा पुत्र अपने पिता के गोत्र का नहीं होता और न उसकी संपत्ति का अधिकारी ही हो सकता है।
⋙ शौद्र (२)
वि० शूद्र या शूद्र जाति से संबंधित [को०]।
⋙ शौध पु (१)
वि० [सं० शुद्ध] निर्मल। पवित्र (को०)। उ०—कटि कांती पगवंतिका नाभि द्धारिका शौध। हृदमाया कँठ मधुपुरी काशि घ्राण शिर औध।—विश्राम (शब्द०)।
⋙ शौध पु (२)
संज्ञा स्त्री० दे० 'सुध'।
⋙ शौधिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] रक्तकंगु। लाल कँगनी।
⋙ शौन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वघालय में रखा हुआ मांस। वह मांस जो बिक्री के लिये रखा हो।
⋙ शौन (२)
वि० श्वास संबंधी। कुत्ते का।
⋙ शौनक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। विशेष—ये नैमिषारण्य में तपस्या करते थे और इन्होंने एक बार एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था जो बारह वर्षों तक होता रहा। ये बड़े तदस्वी थे। इनके नाम से ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा अन्य कई ग्रंथ प्रसिद्ध हैं।
⋙ शौनकायन
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो शुनक ऋषि के गोत्र में उत्पन्न हुआ हो।
⋙ शौनकीपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] वैदिक काल के एक प्राचीन आचार्य का नाम।
⋙ शौनायण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम।
⋙ शौनिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. मांस बेचनेवाला। कसाई। २. शिकार। आखेट। मृगया। ३. शिकारी। व्याध। बहेलिया (को०)।
⋙ शौनिकशास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमें शिकार खेलने, घोड़ों आदि पर चढ़ने और पशुओं आदि को लड़ाने की विद्या का वर्णन हो।
⋙ शौभ
संज्ञा पुं० [सं०] १. चिकनी सुपारी। २. देवता। ३. राजा हरिश्चंद्र की वह कल्पित नगरी जो आकाश में मानी जाती है।
⋙ शौभनेय
संज्ञा पुं० [सं०] १. शोभना अर्थात् सुंदरी स्त्री का पुत्र। २. वह जो शोभन संबंधी हो [को०]।
⋙ शौभांजन (१)
संज्ञा पुं० [सं० शौभाञ्जन] सहिजन नामक वृक्ष। शोभांजन। विशेष दे० 'सहिजन'।
⋙ शौभायन
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल की एक योद्धा जाति का नाम।
⋙ शौभिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्रजाल का तमाशा करनेवाला। इंद्र- जालिक। जादूगर। २. शिकारी। व्याध (को०)। ३. यज्ञ का युप या स्तंभ (को०)।
⋙ शौभ्रायण
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल के एक देश का नाम। २. इस देश के निवासी।
⋙ शौभ्रेय
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो शुभ्र वस्तु वा व्यक्ति से संबद्ध हो। २. एक युद्धक जाति।
⋙ शौर पु
संज्ञा पुं० [फ़ा० शोर] शोर। चखचख। उ०—ऋषि शौर सूनौ जब काना। मन में उपज्यो तब ज्ञाना।—सुंदर० ग्रं०, भा० १, पृ० १३६।
⋙ शौरसेन (१)
संज्ञा पु० [सं०] आधुनिक ब्रजमंडल का प्राचीन नाम जहाँ पहले राजा शूरसेन का राज्य था।
⋙ शौरसेन (२)
वि० शूरसेन संबंधी। शूरसेन का।
⋙ शौरसेनिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शौरसेनी'।
⋙ शौरसेनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्राचीन काल की एक प्रसिद्ध प्राकृत भाषा जो शूरसेन (वर्तमान ब्रजमंडल) प्रदेश में बोली जाती थी। विशेष—यह मध्य देश की प्राकृत थी और शूरसेन देश में इसका प्रचार होने के कारण यह शौरसेनी कहलाई। मध्यदेश में ही साहित्यिक संस्कृत का अभ्युदय हुआ था और यहीं की बोलचाल की भाषा से साहित्य की शौरसेनी प्राकृत का जन्म हुआ। इसपर संस्कृत का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था और इसी लिये इसमें तथा संस्कृत में बहुत समानता है। यह अपेक्षाकृत अधिक पुरानी, विकसित और शिष्ट समाज की भाषा थी। वर्तमान हिंदी का जन्म शौरेसेनी औरर अर्धमागधी प्राकृतों तथा शौर- सेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से हुआ है।२. प्राचीन काल की एक प्रसिद्ध अपभ्रंश भाषा जिसका प्रचार मध्यदेश के लोगों और सहित्य में था। यह नागर भी कहलाती थी।
⋙ शौरि
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. कृष्ण। ३. बलदेव। ४. शनैश्चर ग्रह।
⋙ शौरिप्रिय
संज्ञा पुं० [सं०] हीरा।
⋙ शौरिरत्न
संज्ञा पुं० [सं०] नीलम।
⋙ शौर्प
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शौर्पी] १. सूप संबंधी। सूप से नापा हुआ। सूप के बराबर [को०]।
⋙ शौर्पारक
संज्ञा पुं० [सं०] काले रंग का एक प्रकार का हीरा जो प्राचीन काल में शूपरिक प्रदेश में पाया जाया था।
⋙ शौर्पिक
वि० [सं०] दे० 'शौर्प' [को०]।
⋙ शौर्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. शूर का भाव। शूरता। पराक्रम। वीरता। बहादुरी। शूर का धर्म। ३. नाटक में आरभटी नाम की वृत्ति। विशेष दे० 'आरभटी'-२।
⋙ शौल
संज्ञा पुं० [सं०] हल के एक भाग का नाम [को०]।
⋙ शौलायन
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल के एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम जो कौलायन भी कहलाते थे।
⋙ शौलिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल के एक देश का नाम जो शूलिका भी कहालाता था। २. इस देश का निवासी।
⋙ शौलिकि
संज्ञा पुं० [सं०] योगशास्त्र के अनुसार धौति, नेति आदि छह प्रकार के कर्मों में से एक कर्म। इसमें दाहिने नथने से धीरे धीरे साँस खींचते हुए बाएँ नथने से छोड़ते हैं; और फिर बाएँ नथने से खींचते हुए दाहिने नथने से छोड़ते हैं। कहते हैं, इस क्रिया द्वारा कफ के दोष का शमन होता है।
⋙ शौल्क (१)
वि० [सं०] शुल्क संबंधी। शुल्क का।
⋙ शौल्क (२)
संज्ञा पुं० एक साम का नाम।
⋙ शौल्कशालिक
संज्ञा पुं [सं० ] वे अधिकारी जो प्रत्येक माल की संख्या, परिमाण, गुण आदि की जाँच पड़ताल करते थे। उ०—रात्रि के समय भी शौल्कशालिक अधिकारी नियुक्त रहते थे।—हिंदु० सभ्यता, पृ० १६९।
⋙ शौल्कायनि
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि का नाम जो वेददर्श के शिष्य थे और जिनका उल्लेख भागवत में आया है।
⋙ शौल्किक
संज्ञा पुं० [सं०] वह अधिकारी जो लोगों से शुल्क लेता हो। कर या महसुल आदि वसूल करनेवाला अफसर। शुल्का- ध्यक्ष।
⋙ शौल्किकेय
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का विष।
⋙ शौल्फ
संज्ञा पुं० [सं०] १. शौंफ। शतपुष्पा। २. शुलफा नाम का साग।
⋙ शौल्विक
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राचीन काल की एक वर्णसंकर जाति का नाम। २. ठठेरा। कसेरा।
⋙ शौव (१)
वि० [सं०] [स्त्री० शौवी] १. कुक्कुर संबंधी २. पर या उत्तर दिवस संबंधी। आगामी कल का। आनेवाले कल से संबंध रखनेवाला [को०]।
⋙ शौव (२)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुत्तों का समूह। २. कुत्ते की प्रकृति, स्वभाव या स्थिति [को०]।
⋙ शौवन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कृत्ते का मांस। २. कु्त्तों का झुंड। ३. कुत्ते का पिल्ला (को०)। ४. कुत्ते की प्रकृति या स्वभाव (को०)।
⋙ शौवन (२)
वि० [वि० स्त्री० शौवनी] १. श्वान संबंधी। कुत्ते का। २. जिसकी प्रकृति या स्वभाव कुत्ते की तरह हो (को०)।
⋙ शौवस्तिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शौवस्तिकी] वह पदार्थ जो भविष्य में व्यवहार करने के विचार से संग्रह करके रखा गया हो।
⋙ शौवस्तिक (२)
वि० १. जो दूसरे दिन तक टिक सके या खराब न हो। २. परेद्यु संबंधी [को०]।
⋙ शौवापद
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शौवापदी] १. श्वापद या वन्य पशु से संबंध रखनेवाला। २. जंगली।
⋙ शौष्कल
संज्ञा पुं० [सं०] १. मांस का विक्रेता। मांस बेचनेवाला। २. जिसका स्वभाव मांस खाने का हो। मांसभक्षी। मत्स्य- मांस-भक्षी। ३. सूखे मांस का मूल्य [को०]।
⋙ शौहर (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा०] स्त्री का पति। स्वामी। खाविंद। मालिक। विशेष दे० 'पति—२'।