समंक (१)
वि० [सं० समङ्क] एक समान प्रतिक या चिह्नों को धारण करनेवाला। समान चिह्नवाला [को०]।

समंक (२)
संज्ञा पुं० १. हुक या अंकुश। २. पीड़ा। कचट। दर्द। (लाक्ष०)। ३. खेती को नष्ट करनेवाला पशु [को०]।

समंग (१)
वि० [सं० समङ्ग] जिसके सभी अंग या अवयव पूर्ण हों। सर्वांगयुक्त।

समंग (२)
संज्ञा पुं० एक प्रकार की क्रीड़ा [को०]।

समंगल
वि० [सं० समङ्गल] मंगलयुक्त। शुभ। मंगलमय [को०]।

समंगा
संज्ञा स्त्री० [सं० समङ्गा] १. मजीठ। २. लाजवंती। लजा- धुर। ३. वाराहक्रांता। गेंठी। ४. बाला।

समंगिनी
संज्ञा स्त्री० [सं० समङ्गिनी] बौद्धों की, बोधिवृक्ष की एक देवी।

समंचन
संज्ञा पुं० [सं० समञ्चन] १. आकर्षण। झुकाना। नवाना। २. आकुंचन [को०]।

समंजन (१)
वि० [सं० समञ्जन] एक साथ मिलनेवाला। संयुक्त करनेवाला [को०]।

समंजन (२)
संज्ञा पुं० लेपन। विलेपन। अभ्यंजन [को०]।

समंजस (१)
वि० [सं० समञ्जस] १. उचित। ठीक। वाजिब। २. जिसे किसी बात का अभ्यास हो। अभ्यस्त। ३. सही। सच। यथार्थ (को०)। ४. स्पष्ट। बोधगम्य (को०)। ५. स्वस्थ (को०)। ६. अच्छा। नेक (को०)।

समंजस (२)
संज्ञा पुं० १. प्रात्रता। औचित्य। योग्यता। २. यथार्थता। ३. सत्यकथन। सचाई। सत्यता। ४. समानता। ५. उपयुक्त या ठीक प्रमाण [को०]।

समंठ
संज्ञा पुं० [सं० समण्ट] वे फल जिनकी तरकारी बनती हो। तरकारी के काम आनेवाले फल। जैसे,—पपीता, ककड़ी आदि। २. गंडीर। पोय (को०)।

समंत (१)
संज्ञा पुं० [सं० समन्त] सीमा। प्रांत। किनारा। सिरा।

समंत (२)
वि० १. समस्त। सब। कुल। २. हर दिशा में मौजद। विश्व- व्यापी (को०)।

समंतकुसुम
संज्ञा पुं० [सं० समन्तकुसुम] ललितविस्तर के अनुसार एक देवपुत्र का नाम।

समंतगंध
संज्ञा पुं० [सं० समन्तगन्ध] बौद्धों के अनुसार एक देवपुत्र का नाम।

समंतदर्शी (१)
वि० [सं० समन्तदर्शिन्] जिसे सब कुछ दिखाई देता हो। सर्वदर्शी।

समंतदर्शी (२)
संज्ञा पुं० गौतम बुद्ध का एक नाम।

समंतदुग्धा
संज्ञा स्त्री० [सं० समन्तदुग्धा] स्नुही। थूहर।

समंतनेत्र
संज्ञा पुं० [सं० समन्तनेत्र] एक बोधिसत्व का नाम।

समंतपंचक
संज्ञा पुं० [सं० समन्तपञ्चक] कुरुक्षेत्र का एक नाम। विशेष—कहते हैं कि एक बार परशुराम ने समस्त क्षत्रियों को मारकर उनके लहू से यहाँ पाँच तालाब बनाए थे। और उन्हीं में उन्होंने लहू से अपने पिता का तर्पण किया था। तभी से इस स्थान का नाम समंतपंचक पड़ा।

समंतपर्यायी
वि० [सं० समन्तपर्यायी] सबका अंतर्भाव करनेवाला। सबको अपने में समेटनेवाला [को०]।

समंतप्रभ
संज्ञा पुं० [सं० समन्तप्रभ] एक बोधिसत्व का नाम।

समंतप्रभास
संज्ञा पुं० [सं० समन्तप्रभास] गौतम बुद्ध का एक नाम।

समंतप्रसादिक
संज्ञा पुं० [सं० समन्तप्रसादिक] एक बोधिसत्व का नाम।

समंतप्रासादिक
वि० [सं० समन्तप्रासादिक] जो सर्वत्र सहायता करने में समर्थ या सक्षम हो [को०]।

समंतभद्र
संज्ञा पुं० [सं० समन्तभद्र] गौतम बुद्ध का एक नाम।

समंतभद्रक
संज्ञा पुं० [सं० समन्तभद्रक] एक प्रकार का लंबा कंबल [को०]।

समंतभुज
संज्ञा पुं० [सं० समन्तभुज्] अग्नि।

समंतर
संज्ञा पुं० [सं० समन्तर] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन देश का नाम। २. इस देश का निवासी।

समंतरश्मि
संज्ञा पुं० [सं० समन्तरश्मि] एक बोधिसत्व का नाम।

समंतालोक
संज्ञा पुं० [सं० समन्तालोक] ध्यान करने का एक प्रकार।

समंतावलोकित
संज्ञा पुं० [सं० समन्तावलोकित] एक बोधिसत्व का नाम।

समंत्र
वि० [सं० समन्त्र] मन्त्रयुक्त। मंत्रों से युक्त। [को०]।

समंत्रक
वि० [सं०] १. दे० 'समंत्र'। २. इंद्रजाल का ज्ञाता [को०]।

समंत्रिक
वि० [सं० समन्त्रिक] सचिव अमात्यादी से युक्त [को०]।

समंद
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. वह बादामी रंग का वोड़ा जिसकी अयाल, दुम और पुट्ठे काले हों। उ०—लील समंद चाल जग जाने। हाँसल भौंर गियाह बखाने।—जायसी (शब्द०)। २. घोड़ा। अश्व।

समंदर
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. एक कीड़ा जिसकी उत्पत्ति अग्नि से मानी जाती। २. समुद्र [को०]।

सम्
अव्य० [सं०] दे० 'सं'।

सम (१)
वि० [सं०] १. समान। तुल्य। बराबर। २. सब। कुल। समस्त। पूरा। तमाम। ३. जिसका तल ऊबड़ खाबड़ न हो। चौरस। ४. (संख्या) जिसे दो से भाग देने पर शेष कुछ न बचे। जूस। ५. एक ही। वही। अभिन्न (को०)। ६. निष्पक्ष। तटस्थ। उदासीन। ७. ईमानदार। खरा (को०)। ८. भला। सदगुणसंपन्न (को०)। ९. सामान्य। मामूली (को०)। १०. उपयुक्त। यथार्थ। ठीक (को०)। ११. मध्यवर्ती। बीच का। १२. सीधा (को०)। १३. जो न बहुत अच्छा और न बहुत बुरा हो। मध्यम श्रेणी का (को०)। यौ०—समचक्रवाल = वृत्त। समचतुरश्र, समचतुर्भुज, सम- चतुष्कोण = जिसके चारो कोण समान हों। समतीर्थक = जिसमें ऊपर तक जल भरा हो। लबालब पानी भरा हुआ। समतुला = समान मूल्य। समतुलित = जिसका भार समान हो। समतोलन = संतुलन। तराजू के दोने पलड़े बराबर रखना। समान तौलना। समभाग। समभूमि।

सम (२)
संज्ञा पुं० १. वह राशि जो सम संख्या पर पड़े। दूसरी, चौथी, छठी आदि राशियाँ। वृष, कर्कट, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन ये छह् राशियाँ। यौ०—समक्षेत्र = नक्षत्रों की एक विशेष स्थिति। २. गणित में वह सीधी रेखा जो उस अंक के ऊपर दी जाती है जिसका वर्गमूल निकालना होता है। ३. संगीत में वह स्थान जहाँ गाने बजानेवालों का सिर या हाथ आपसे आप हिल जाता है। विशेष—यह स्थान ताल के अनुसार निश्चित होता है। जैसे, तिताले में दूसरे ताल पर और चौताल में पहले ताल पर सम होता है। वाद्यों का आरंभ और गीतों तथा वाद्यों का अंत इसी सम पर होता है। परंतु गाने बजाने के बीच बीच में भी सम बराबर आता रहता है। ४. साहित्य में एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें योग्य वस्तुओं के संयोग या संबंध का, कारण के साथ कार्य की सारूप्यता का, तथा अनिष्टबाधा के बिना ही प्रयत्नसिद्धि का वर्णन होता है। यह विषमालंकार का बिलकुल उलटा है। उ०—(क) जस दूलह तस बनी बराता। कौतुक विविध होहिं मगु जाता। (ख) चिरजीवौ जोरी जुरै क्यों न सनेह गँभीर। को कहिए वृषभानुजा वे हलधर के बीर। ५. समतल भूमि। चौरस मैदान (को०)। ६. याम्योत्तर रेखा अर्थात् दिकचक्र, आकाश- वृत्त को विभाजित करनेवाली रेखा का मध्य बिदु (को०)। ७. समान वृत्ति। समभाव। समचित्तता (को०)। ८. तुल्यता। सादृश्य। समानता (को०)। ९. तृणाग्नि (को०)। १०. धर्म के एक पुत्र का नाम (को०)। ११. धृतराष्ट्र का एक पुत्र (को०)। ११. उत्तम स्थिति। अच्छी दशा (को०)।

सम (३)
संज्ञा पुं० [अ०] विष। जहर। सम्म। उ०—सम खायँगे पर तेरी कसम हम न खायँगे।

सम पु (४)
संज्ञा पुं० [सं० शम] दे० 'शम'। उ०—तापस सम दम दया निधाना। परम रथ पथ परम सुजाना।—मानस, १। ४४।

समकक्ष
वि [सं०] बराबरी का। समान। तुल्य। जैसे,—दर्शन शास्त्र में वे तुम्हारे समकक्ष हैं।

समकक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] बराबरी। तुल्यता [को०]।

समकन्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह कन्या जो विवाह के योग्य हो गई हो। ब्याहने लायक लड़की।

समकर
वि० [सं०] १. मकर आदि समुद्री जंतुओं से युक्त। २. उचित रूप में महसूल लगानेवाला [को०]।

समकर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव का एक नाम। २. गौतम बुद्ध का एक नाम। ३. ज्यामिति में किसी चतुर्भुज के आमने सामनेवाले कोणों के ऊपर की रेखाएँ।

समकर्मा
वि० [सं० समकर्मन्] समान पेशेवाला।

समकाल
संज्ञा पुं० [सं०] एक ही काल या समय। समान क्षण [को०]।

समकालीन
वि० [सं०] जो (दो या कई) एक ही समय में हों। एक ही समय में होनेवाले। जैसे,—तुलसीदासजी जहाँगीर के समकालीन थे।

समकृत
संज्ञा पुं० [सं०] कफ। श्लेष्मा।

समकोटिक
वि० [सं०] सुडौल। (रत्न) समान पहल या कोणवाला (हीरा) [को०]।

समकोण
वि० [सं०] (त्रिभूज या चतुर्भुज) जिसके आमने सामने के दो कोण समान हों।

समकोल
संज्ञा पुं० [सं०] साँप।

समकोश
संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन देश का नाम।

समक्न
वि० [सं०] १. जानेवाला। गंता। २. एक साथ जानेवाला। एक काल में गमन करनेवाला। ३. नम्र। झुका हुआ [को०]।

समक्रम
वि० [सं०] जिसका पादविक्षेप समान दूरी पर पड़े। चलने में जिसके कदम समान दूरी पर पड़ें [को०]।

समक्रिय
वि० [सं०] समान क्रियाएँ या कार्य करनेवाला [को०]।

समक्वाथ
संज्ञा पुं० [सं०] वह क्वाथ या काढ़ा जिसका पानी आदि जलकर आछवाँ भाग रह जाय।

समक्ष (१)
अव्य० [सं०] आँखों के सामने। सामने। जैसे,—अब वह कभी आपके समक्ष न आवेगा।

समक्ष (२)
वि० जो आँखों के सामने हो रहा है। प्रत्यक्ष [को०]।

समक्षता
संज्ञा स्त्री० [सं०] दृश्यता। प्रत्यक्षता। गोचरता [को०]।

समखात
संज्ञा पुं० [सं०] घन के रूप में की गई खुदाई। वह खुदाई जिसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई समान हो [को०]।

समगंधक
संज्ञा पुं० [सं० समगन्धक] नकली धूप।

समक्षदर्शन
संज्ञा पुं० [सं०] १. आँखों देखा प्रमाण या सबूत। २. आखों देखना। प्रत्यक्ष दर्शन [को०]।

समगंधिक
संज्ञा पुं० [सं० समगान्धिक] १. वह जिसमें समान गंध हो। २. उशीर। खस।

समग
संज्ञा पुं० [अ० समण] गोंद [को०]।

समगति
संज्ञा पुं० [सं०] वायु। हवा [को०]।

समग्ग पु
वि० [सं० समग्र] दे० 'समग्र'।

समग्र
वि० [सं०] १. समस्त। कुल। पूरा। सब। जैसे,—उसे समग्र लघुकौमुदी कंठ है। २. जिसके पास सब कुछ हो। सर्वसंपन्न (को०)। यौ०—समग्रभक्षणशील = जी सब कुछ भक्षण करे या खा जाय। समग्रशक्ति = सभी शक्तियों से युक्त। समग्रसंपत् = जो सभी प्रकार के सुख या संपत्तियों से युक्त हो।

समग्रणी
वि० [सं०] लोगों में अग्रणी, श्रेष्ठ [को०]।

समग्रेंदु
संज्ञा पुं० [सं० समग्रेन्दु] चंद्रमा का पूर्ण मंडल। पूर्णचंद्र [को०]।

समचतुर्भुज
संज्ञा पुं० [सं०] वह चतुर्भुज जिसके चारो भुज समान हों।

समचर
वि० [सं०] समान आचरण करनेवाला। एक सा व्यवहार करनेवाला। उ०—नाम निठुर समचर सिखी सलिल सनेह न दूर। ससि सरोग दिनकर बड़े पयद प्रेमपथ कूर।— तुलसी (शब्द०)।

समचार पु
संज्ञा पुं० [सं० समाचार ?] दे० 'समाचार', खबर। उ०—(क) नाहर नरिंद जे दूत आइ। समचार सबै कहि ते सुनाइ।—पृ० रा०, ७।५५। (ख) सखी कहै मैं पठए चारा। आजि काल्हि ऐहैं समचारा।—नंद० ग्रं०, पृ० १३४।

समचित्त
संज्ञा पुं० [सं०] वह जिसके चित्त की अवस्था सब जगह समान रहती हो। वह जिसका चित कहीं दुःखी या क्षुब्ध न होता हो। वह जो उदासीन या तटस्थ रहे। समचेता। २. वह जो धैर्ययुक्त हो। धैर्यशाली (को०)। ३. वह जिसकी प्रज्ञा एक ही विषय पर केंद्रित हो (को०)।

समचेता
संज्ञा पुं० [सं० समचेतस्] वह जिसके चित्त की वृत्ति सब जगह समान रहती हो। दे० 'समचित्त'।

समच्छेद, समच्छेदन
वि० [सं०] वह भिन्न जिनके हर या हल समान हों [को०]।

समज
संज्ञा पुं० [सं०] १. वन। जंगल। २. पशुओं का झुंड। ३. मूर्खों का झुंड। मूर्खमंडल (को०)। ४. इंद्र (को०)।

समजाति, समजातीय
वि० [सं०] जो समान जाति का हो। समान वर्ग का [को०]।

समज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०] कीर्त्ति। यश।

समज्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सभा। गोष्ठी। वह स्थान जहाँ लोग मिलें जुलें। २. ख्याति। प्रसिद्धि। मशहूरियत [को०]।

समझ
संज्ञा स्त्री० [सं० सज्ञान] १. समझने की शकित। बुद्धि। अक्ल। जैसे,—तुम्हारी समझ की बलिहारी। मुहा०—समझ पर पत्थर पड़ना = बुद्धि नष्ट होना। अक्ल का मारा जाना। जैसे,—उसकी समझ पर तो पत्थर पड़ गए हैं, वह हिताहितज्ञानशून्य हो गया है। २. खयाल। जैसे,—(क) मेरी समझ में उसने ऐसा कोई काम नहीं किया कि जिसके लिये उसकी निंदा की जाय। (ख) मेरी समझ में उन्होंने तुमको जो उत्तर दिया, वह बहुत ठीक था।

समझदार
वि० [हिं० समझ + फा० दार] बुद्धिमान। अक्लमंद।

समझना
क्रि० अ० [सं० सम्यक् ज्ञान] १. किसी बात को अच्छी तरह जान लेना। अच्छी तरह मन में बैठाना। भले भाँति हृदयंगम करना। अच्छी तरह ध्यान में लाना। ज्ञान प्राप्त करना। बोध होना। बूझना। जैसे,—मैने जो कुछ कहा, वह तुम समझ गए होगे। २. ख्याल में आना। ध्यान में आना। विचार में आना। जैसे,—(क) मै समझता हुँ कि अब तुम्हारी समझ में यह बात आ गई होगी। (ख) तुम समझे न हो तो फिर समझ लो। संयों० क्रि०—जाना।—पड़ना।—रखना।—लेना। मुहा०—समझ बूझकर = अच्छी तरह जानकर। ज्ञानपूर्वक। जैसे,—तुमने बहुत समझ बूझकर यह काम किया है। समझ रखना = अच्छी तरह जान रखना। भली भाँति हृदयंगम करना। जैसे,—तुम समझ रखो कि अपने किए का फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा। समझ लेना = (१) बदला लेना। प्रतिशोध लेना। जैसे,—कल तुम चौक में आना; तुमसे समझ लेंगे। (२) समझौता करना। निपटारा। जैसे,—आप रुपए दे दीजिए; हम दोनों आपस में समझ लेंगे।

समझाना
क्रि० स० [हिं० समझना का सक०] कोई बात अच्छी तरह किसी के मन में बैठाना। हृदयंगम कराना। ज्ञान प्राप्त कराना। ध्यान में जमाना। बोध कराना। यौ०—समझाना बुझाना।

समझाव, समझावा
संज्ञा [हिं०/?/समझ + आव (प्रत्य०)] राजीनामा। समझौता। यौ०—समझाव बुझाव = समझाना बुझाना।

समझौता
संज्ञा पुं० [हिं० समझाना] आपस का वह निपटारा जिसमें दोनों पक्षों को कुछ न कुछ दबना या स्वार्थत्याग करना पड़े। राजीनामा। क्रि० प्र०—करना।—कराना।—होना।

समतट
संज्ञा पुं० [सं०] १. समुद्र के एक ही किनारे पर के देश। २. एक प्राचीन प्रदेश का नाम जो आधुनिक बंगाल के पूर्व में था।

समतल
वि० [सं०] जिसका तल सम हो, ऊबड़ खाबड़ न हो। जिसकी सतह बराबर हो। हमवार। जैसे,—इस पहाड़ के ऊपर बहुत दूर तक समतल भूमि चली गई है।

समता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सम या समान होने का भाव। बराबरी। तुल्यता। जैसे,—इस तरह के कामों में कोई आपकी समता नहीं कर सकता। २. तटस्थता। निष्पक्षता। औदासीन्य (को०)। ३. उदारता। औदार्य (को०)। ४. अभिन्नता। एकता। एक्य (को०)। ५. घीरता। धैर्यशलिता। धीरत्व (को०)। ६. पूर्णत्व। पूर्णता (को०) । ७. साधारण होने का भाव। साधारण्य (को०)।

समताई पु
संज्ञा स्त्री० [सं० समता + हिं० ई (प्रत्य०)] दे० 'समता'।

समतिक्रम
संज्ञा पुं० [सं०] अतिक्रमण। उपेक्षण। उल्लंघन [को०]।

समतिक्रांत (१)
वि० [सं० समतिक्रान्त] १. उल्लंघित। उपेक्षित। २. जो बीत गया हो। व्यतीत। बीता या गुजरा हुआ। ३. जिसने अपना वचन या वादा पूरा किया हो। जिसने प्रतिज्ञा के अनुसार चलकर उसे पूर्ण किया हो [को०]।

समतिक्रांत (२)
संज्ञा पुं० १. लंघन। अतिक्रमण। २. त्रुटि। दोष [को०]।

समतीत
वि० [सं०] बीता हुआ। अतीत। गत। व्यतीत [को०]।

समतूल पु
वि० [सं० सम + तुल्य] समान। सद्दश। तुल्य। उ०— एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुखमूल। तदपि समीत सकोच कवि कहहिं सीय समतूल।—मानस, १। २४७।

समत्रय
संज्ञा पुं० [सं०] हर्रे, नागरमोथा और गुड़ इन तीनों के समान भागों का समूह।

समत्रिभुज
संज्ञा पुं० [सं०] वह त्रिभुज जिसके तीनों भुज समान हों।

समत्थ पु
वि० [सं० समर्थ; प्रा० समथ्थ] दे० 'समर्थ'। उ०—दूत रामराय को सपूत पूत वाय को, समत्थ हाथ पाय को सहाय असहाय को।—तुलसी ग्रं०, पृ० २४४।

समत्व
संज्ञा पुं० [सं०] सम या समान होने का भाव। समता। तुल्यता। बराबरी।

समत्विट्
वि० [सं० समत्विष्] चारों ओर जिसका प्रकाश एक सा हो। समान रूप से दीप्तिमान् [को०]।

समथ, समथ्थ पु
[सं० समर्थ, प्रा० समथ्थ] उ०—जहँ जहँ राजन काज हुअ तहँ तहँ होइ समथ्थ।—पृ० रा०, ५। १०२।

समदंत
वि० [सं० समदन्त] जिसके दाँत समान या एक से हों [को०]।

समद
वि० [सं०] १. गर्व से उद्धत। २. नशे में मत्त या मतवाला। ३. प्रसन्न। हर्षित। ४. प्रेमोन्मत्त। प्रेम के नशे में चूर [को०]।

समदन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। लड़ाई।

समदन पु (२)
संज्ञा स्त्रीं० [सं० समादान] भेंट। उपहार। नजर। उ०— आपन देस खा सब औ चँदेरी लेहु। समुद जो समदन कीन्ह तोहि ते पायौ नग देहु।—जायसी (शब्द०)।

समदना पु (१)
क्रि० अ० [सं० समादान] प्रेमपूर्वक मिलना। भेंटना। उ०—समदि लोग पुनि चढ़ी बिवाना। जेहि दिन डरी सो आइ तुलाना।—जायसी (शब्द०)।

समदना पु (१)
क्रि० सं० १. भेंट करना। उपहार देना। नजर करना। २. विवाह करना। उ०—दुहिता समदौ सुख पाय अबै।— केशव (शब्द०)। ३. आदर सत्कार करना। उ०—सब बिधि सबहि समदि नरनाहू। रहा हृदय भरि पूरि उछाहू।— मानस, १। ३५४।

समदर्शन
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो सब मनुष्यों, स्थानों और पदार्थों को समान दृष्टि से देखता हो। सबको एक सा देखनेवाला। समदर्शी। २. समान रूप या आकृति का। एक रूप (को०)।

समदर्शी
संज्ञा पुं० [सं० समदर्शिन्] वह जो सब मनुष्यों, स्थानों और पदार्थो आदि को समान दृष्टि से देखता हो। जो देखने में किसी प्रकार का मेदभाव न रखता हो। सव को एक सा देखनेवाला।

समदाना पु
क्रि० स० [हिं० समाधान] १. सौंपना। रखना। जिम्मे करना। २. समाधान करना।

समदुःख
वि० [सं०] १. दूसरे के दुःख कष्ट को स्वयं अनुभूत करनेवाला। समवेदना प्रकट करनेवाला। २. समदुःखभाक्। सम- दुःखी। सहभोगी [को०]। यौ०—समदुःखसुख=(१) दुःख और सुख का साथी। (२) जिसमें दुःख और सुख समान रूप से हो।

समदृश्
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समदर्शी'।

समदृष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह दृष्टि जो सब अवस्थाओं में और सब पदार्थों को देखने के समय समान रहे। समदर्शी की दृष्टि। २. दे० 'समदर्शी'।

समदेश
संज्ञा पुं० [सं०] चौरस मैदान। समतल क्षेत्र [को०]।

समद्युति
वि० [सं] समान कांतिवाला [को०]।

समद्वादशास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] वह क्षेत्र आदि जिसके बारह समान भुज हों। बारह बराबर भुजाओं वाला क्षेत्र।

समद्विद्विभुज
संज्ञा पुं० [सं०] वह चतुर्भुज जिसका प्रत्येक भुज अपने सामनेवाले भुज के समान हो। वह चतुर्भुज जिसके आमने सामने के भुज बराबर हों।

समद्विभुज
वि० [सं०] वह क्षेत्र जिसकी दोनों भुजाएँ बराबर हों।

समधर्मा
वि० [सं० समधर्मंन्] समान धर्म, प्रकृति या स्वभाव का [को०]।

समधिक
वि० [सं०] अधिक। अतिशय। ज्यादा। बहुत।

समधिगत
वि० [सं०] पास पहुँचा हुआ। निकट आया हुआ। प्राप्त [को०]।

समधिगम
संज्ञा पुं० [सं०] पूरी तरह समझना या अनुभव करना [को०]।

समधिगमन
संज्ञा पुं० [सं०] आगे बढ़ जाना। पार कर लेना। जीत जाना [को०]।

समधियान †
संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'समाधियाना'।

समधियाना
संज्ञा पुं० [हिं० समधी+इयाना (प्रत्य)] वह घर जहाँ अपनी कन्या या पुत्र का विवाह हुआ हो। समधी का घर।

समधी
संज्ञा पुं० [सं० सम्बन्धी] [स्त्री० समधिन] पुत्र या पुत्री का ससुर। वह जिसकी कन्या से अपने पुत्र का अथवा जिसके पुत्र से अपनी पुत्री का विवाह हुआ हो। उ०—सकल भाँति सम साज समाजू। सम समधी देखे हम आजू।— मानस, १।३२०।

समधीत
वि० [सं०] अच्छी तरह पढ़ा हुआ। जिसने सम्यक् रूप से अध्ययन किया हो। खूब पढ़ा हुआ [को०]।

समधुर
वि० [सं०] मिठास से युक्त। मिष्ट। मीठा [को०]।

समधुरा
संज्ञा स्त्री० [सं०] द्राक्षा। अंगूर [को०]।

समधौरा †
संज्ञा पुं० [हिं० समधी+औरा (प्रत्य०)] विवाह की एक रीति जिसमें दोनों समधी परस्पर मिलते हैं।

समघ्व
वि० [सं०] सहयात्री। जो एक साथ यात्रा करे [को०]।

समनंतर
वि० [सं० समनन्तर] ठीक बगलवाला। बिलकुल सटा हुआ। बराबरी का।

समन पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० शमन] १. दे० 'शमन'। २. यम। उ०— मातु मृत्यु पितु समन समाना।—मानस, ३।२।

समन (२)
वि० दे० 'शमन'। उ०—(क) समन अमित उतपात सब भरत चरित जप जाग।—मानस, १।४१। (ख) समन पाप संताप सोक के।—मानस, १।३२।

समन (३)
संज्ञा स्त्री० [फा़०] चमेली का पुष्प [को०]। यौ०—समनअंदाम, समनपैकर=चमेली के फूल की तरह सुकु- मार शरीरवाला। समनइजार, समनखद=चमेली के फूल जैसे कपोलवाला। समनजार=चमेली का बाग। समनबू= चमेली की गंधवाला। समनरू=चमेली के फूल जैसा कांति- मान। समनसाक=वह सुंदरी जिसकी पिंडलियाँ चमेली जैसी सफेद हों।

समन (४)
संज्ञा पुं० [अ०] कीमत। दाम। मूल्य [को०]।

समन (५)
संज्ञा पुं० [अं० समन्स] न्यायालय द्वारा प्रतिवादी या गवाहों को इजलास के संमुख नियत तिथि पर उपस्थित रहने के लिये भेजी गई लिखित सूचना या बुलावा। दे० 'सम्मन'। जैसे,— समन बगरज इनफिसाल मुकदमा।

समनगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बीजली। विद्युत्। २. सूर्य की किरण।

समनीक
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। लड़ाई। यौ०—समनीक मूर्धा=युद्ध का अग्रिम मोर्चा।

समनुकीर्तन
संज्ञा पुं० [सं०] अत्यंत प्रशस्ति करना। खूब प्रशंसा करना [को०]।

समनुज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. इजाजत। अनुमति। २. पूर्ण सहमति या स्वीकृति [को०]।

समनुज्ञात
वि० [सं०] १. जो (जाने के लिये) आज्ञप्त हो। आज्ञा- प्राप्त। २. अधिकार प्राप्त। ३. अनुगृहीत। पूरी तरह सहमत। पूर्णतः स्वीकृत।

समनुज्ञान
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समनुज्ञा'।

समनुवर्ती
वि० [सं० समनुवर्तिन्] [वि० स्त्री० समनुवर्तिंनी] आज्ञाकारी। अनुगत [को०]।

समनुव्रत
वि० [सं०] पूरी तरह अनुगत। पूर्णतः आज्ञापालन करनेवाला [को०]।

समन्मथ
वि० [सं०] कामयुक्त। कामपीड़ित [को०]।

समन्यु (१)
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम।

समन्यु (२)
वि० १. क्रोध से भरा हुआ। कोपयुक्त। २. दुःख पूर्ण वेदनामय [को०]।

समन्वय
संज्ञा पुं० [सं०] १. नियमित परंपरा या क्रमबद्घता। २. मिलन। मिलाप। सयोग। संसर्ग। संश्लेष। ३. कार्य कारण का प्रवाह या निर्वाह होना। ४. विरोध का अभाव। विरोध का न होना।

समन्वयन
संज्ञा पुं० [सं०] समन्वय करने की क्रिया या भाव। मेल बैठाना। क्रमबद्ध रूप में करना।

समन्वित
वि० [सं०] १. मिला हुआ। संयुक्त। २. जिसमें कोई रुकावट न हो। ३. अनुगत (को०)। ४. सहित। युक्त। भरा हुआ (को०)। ५. प्रभावित। ग्रस्त (को०)।

सभपद
संज्ञा पुं० [सं०] १. धनुष चलानेवालों का एक प्रकार का खड़े होने का ढंग जिसमें वे अपने दोनों पैर बराबर रखते हैं। २. कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का रतिबंध या आसन।

समपाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. दे० 'समपद'। २. नृत्य में पादन्यास की एक गति (को०)। ३. वह छंद या कविता जिसके चारो चरण समान या बराबर हों।

समप्पन पु
संज्ञा पुं० [सं० समर्पण, प्रा० समप्पण] दे० 'समर्पण'।

समप्रभ
वि० [सं०] समान प्रभावाला। तुल्य कांतिवाला [को०]।

समबुद्घि
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसकी बुद्धि सुख और दुःख, हानि और लाभ सबमें समान रहती हो। २. वह जो निष्पक्ष या तटस्थ हो (को०)।

समभाग (१)
संज्ञा पु० [सं०] समान भाग। बराबर हिस्सा।

समभाग (२)
वि० समान भाग या अंश पानेवाला। बराबर के हिस्से का हकदार [को०]।

समभाव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] तुल्यता। समता। समत्व।

समभाव (२)
वि० समान प्रकृति या भाववाला [को०]।

समभिद्रुत
वि० [सं०] १. ग्रस्त। बाधित। २. झपटनेवाला। किसी की ओर वेग से टूट पड़नेवाला [को०]।

समभिधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] नाम। आख्या।

समभिप्लुत
वि [सं०] १. जलप्लावित। २. उपसृष्ट। ग्रस्त। अभिभूत। आक्रांत। ३. किसी वस्तु से सना या लिपटा हुआ [को०]।

समभिव्याहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ साथ उल्लेख या वर्णन करना। २. सामीप्य। साथ। संगति। सहयोग। ३. ऐसे शब्द का सामीप्य, सन्निधि या संगति जिसके द्रारा किसी शब्द का अर्थ निर्धारित या सुस्पष्ट हो सके [को०]।

समभिसरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. पाने की चेष्टा या यत्न करना। प्राप्तिकाम होना। २. किसी ओर बढ़ना। पहुँचना [को०]।

समभिहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. साथ करना। एकत्रीकरण। एक साथ ग्रहण। २. बार बार होने का भाव। आवृत्ति। ३. अघिकता। ज्यादती। बहुतायत।

समभूमि
संज्ञा पुं० [सं०] समतल भूलि। चौरस या हमवार जमीन [को०]।

समभ्यर्चन
संज्ञा पुं० [सं०] पूजन। समादरण [को०]।

समभ्याश
संज्ञा पुं० [सं०] सान्निघ्य। सामीप्य। नैकटच [को०]।

समभ्यास
संज्ञा पुं० [सं०] नियमित रूप से करना। अभ्यसन [को०]।

समभ्याहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. समीप करना। निकट लाना। २. सामीप्य। निकटता।

सममंडल
संज्ञा पुं [सं०] ज्यौतिष में प्रधान लंब रेखा [को०]।

सममति
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'समबुद्धि'।

सममय
वि० [सं०] समान मूल का। जिसका एक ही मूल हो।

सममात्र
वि० [सं०] १. समान परिमाण या नाप का। २. समान मात्राओं का। सममात्रिक [को०]।

सममिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] समान परिमाण।

समय
संज्ञा पुं० [सं०] १. वक्त। काल। जैसे,—समय परिवर्तन- शील है। मुहा०—समय पर=ठीक वक्त पर। २. अवसर। मौका। उ०—का बरषा सब कृषी सुखाने। समय चुकें पुनि का पछिताने।—मानस १। २६१। ३. अवकाश। फुरसत। जैसे,—तुम्हें इस काम के लिये थोड़ा समय निकालना चाहिए। क्रि० प्र०—निकालना। ४. अंतिम काल। जैसे,—अनका समय आ गया था; उन्हें बचाने का सब प्रयत्न व्यर्थ गया। ५. शपथ। प्रतिज्ञा। ६. आकार। ७. सिद्धांत। ८. संविद। ९. निर्देश। १०. भाषा। ११. संकेत। १२. व्यवहार। १३. संपद। १४. कर्तव्य पालन। १५. व्याख्यान। प्रचार। घोषण। १६. उपदेश। १७. दुःख का अवसान। १८. नियम। १९. धर्म। २०. संन्यासियों, वैदिकों, व्यापारियों आदि के संघों में प्रचलित नियम। (स्मूति)। २१. योग्य काल। उपयुक्त काल या ऋतु (को०)। २२. रूढ़ि। प्रथा (को०)। २३. लोकप्रचलन (को०)। २४. कवि- समय। २५. नियुक्ति। स्थिरीकरण (को०)। २६. आपत्काल। संकटकाल (को०)। २७. सीमा। हद (को०)। २७. सफलता। समृद्धि (को०)। यों०—समयकाम। समयकार।

समयकाम
वि० [सं०] प्रतिज्ञा या ठहराव चाहनेवाला [को०]।

समयकार
संज्ञा पुं० [सं०] १. समय, नियम या सिद्धांत निश्चित करनेवाला। २. संकेत। इशारा [को०]।

समयक्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शिल्पियों या व्यापारियों का परस्पर व्यवहार के लिये नियम स्थिर करना। (बृहस्पति)। २. समय या काल निश्चित करना। करार करना (को०)। २. परीक्षा (दिव्य) की तैयारी। ४. निश्चित कर्म में लगना (को०)।

समयच्युति
संज्ञा स्त्री० [सं०] समय चूकना। मौका या अवसर खो देना [को०]।

समयज्ञ
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो समय का ज्ञान रखता हो। २. विष्णु का एक नाम।

समयधर्म
संज्ञा पुं० [सं०] प्रतिज्ञा या इकरार संबंधी कर्तव्य [को०]।

समयपरिरक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] प्रतिज्ञा, समझौता, संधि या इकरार को मानना [को०]।

समयबंधन
संज्ञा पुं० [सं० समयबन्धन] १. वह जो प्रतिज्ञाबद्ध हो। २. प्रतिज्ञा का बंधन।

समयभेद
संज्ञा पुं० [सं०] प्रतिज्ञा भंग करना। करार या वादा तोड़ना [को०]।

समयविद्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] ज्योतिष विद्या [को०]।

समयवेला
संज्ञा स्त्री० [सं०] समय की सीमा, परिमाण या अवधि [को०]।

समयव्यभिचार
संज्ञा पुं० [सं०] प्रतिज्ञा, करार, समझौता या वादे को न मानना [को०]।

समयव्यभिचारी
वि० [सं० समयव्यभिचारिन्] प्रतिज्ञा, इकरार या वचन भंग करनेवाला [को०]।

समयाचार
संज्ञा पुं० [सं०] धर्म।

समयाध्युषित
संज्ञा पुं० [सं०] वह समय जब कि न सूर्य ही दिखाई देता हो और न नक्षत्र ही द्दष्टिगोचर होते हों। संध्या का समय।

समयानंद
संज्ञा पुं० [सं० समयानन्द] तांत्रिकों के एक भैरव का नाम जिनका पूजन कालीपूजा के समय होता है।

समयानुकूल
वि० [सं०] जो अवसर या काल के उपयुक्त हो।

समयानुवर्ती
वि० [सं० समयानुवर्तिन्] समय के अनुसार चलनेवाल। प्रचलित रीति का अनुगमन करनेवाला [को०]।

समयोचित
वि० [सं०] जो समय के अनुकूल हो [को०]।

समरंजित
वि० [सं० समरञ्जित] जिसका वर्ण या रंग एक समान हो [को०]।

समर पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० स्मर] काम के देवता। कामदेव।

समर (२)
संज्ञा पुं० [अ०] १. अच्छे कामों का सुफल। सत्कर्म का फल। २. सुंदर फल। अच्छा फल, मेवा आदि (को०)।

समर (३)
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। संग्राम। लड़ाई। उ०—सूर समर करनी करहि कहि न जनावहिं आप।—मानस, १।२७४। यौ—समरकर्म=लड़ाई का काम। समरक्षिति। समरभू= युद्धभूमि। समरविजयी। समरव्यसनी=युद्धप्रिय। समर- शूर=योद्धा।

समरकंद
संज्ञा पुं० [अ० समरकन्द] तुर्किस्तान का एक प्रसिद्ध नगर जो तैमूर की राजधानी था। अब यह उजबेक (सोवियत संघ) प्रजातंत्र का एक प्रांत है।

समरक्षिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] युद्धक्षेत्र। लड़ाई का मैदान।

समरज्जु
संज्ञा स्त्री० [सं०] बीजगणित में वह रेखा जिससे दूरी या गहराई जानी जाती है।

समरत
संज्ञा पुं० [सं०] कामशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का रतिबंध या आसन।

समरत्थ
वि० [सं० समर्थ] दे० 'समर्थ' (क) लोकन की रचना रुचिर रुचिबे को समरत्थ।—केशव (शब्द०)। (ख) तुलसी या जग आइ कै कौन भयो समरत्थ।—तुलसी (शब्द०)।

समरथ पु
वि० [सं० समर्थ] दे० 'समर्थ'। उ०—(क) सब बिधि समरथ राजै राजा दशरथ भगीरथ पथगामी गंगा केसो जल है।—केशव (शब्द०)।(ख) समरथ कै नहिं दोस गुसाई।—तुलसी (शब्द०)।

समरना †
क्रि० सं० [सं० स्मरण] स्मरण करना।

समरपोत
संज्ञा पुं० [सं०] लड़ाई का जहाज। सैनिक जहाज।

समरभ
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समरत' [को०]।

समरभूमि
संज्ञा स्त्री० [सं०] युद्ध क्षेत्र। लड़ाई का मैदान। उ०— सरबस खाई भोग करि नाना। समरभूमि भा दुर्लभ प्राना।—तुलसी (शब्द०)।

समरमर्दन
संज्ञा पुं० [सं०] शिव का एक नाम [को०]।

समरमूर्द्धा
संज्ञा पुं० [सं० समरमूर्द्धन्] लड़नेवाली सेना का अगला भाग।

समरवसुधा
संज्ञा स्त्री० [सं०] लड़ाई का मैदान। युद्धक्षेत्र।

समरविजयी
संज्ञा [सं० समरविजयिन्] युद्घ क्षेत्र में जीतनेवाला। युद्ध जीतनेवाला [को०]।

समरशायी
संज्ञा पुं० [सं० समरशायिन्] वह जो युद्ध में मारा गया हो। वीरगति को प्राप्त।

समरस
वि० [सं०] [भाव० समरसता] १. समान रस या भाव से युक्त। उ०—समरस है जो कि जहाँ है।—का/?/यनी,पृ० २८८। २. समान रस या स्वादवाला। ३. जो एक समान हो। जिसके भाव या विचारों में परिवर्तन न हो [को०]।

समरसता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समरस होने का भाव। समान रस या भावों से युक्त होना। उ०—नित्य समरसता का अधिकार उमड़ता कारण जलघि अपार।—कामायनी, पृ० ५४।२. एक समान होना। भावों या विचारों में परिवर्तन न होना। उ०—(क) समरसता है संबंध बनी अधिकार और अधिकारी की।—कामयनी, पृ० १६२। (ख) सबकी समरसता का प्रचार।—कामायनी, पृ० २४४।

समरांगण
संज्ञा पुं० [सं० समराङगण] लड़ाई का मैदान। युद्धक्षेत्र। संग्रामांगण।

समरा
संज्ञा पुं० [अ०] १. बदला। २. नतीजा। परिणम। फल [को०]।

समराख्य
संज्ञा पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का ताल [को०]।

समरागम
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध आरंभ होना [को०]।

समराना †
क्रि० स० [हिं० सँवारना] । सजाना। सँवारना। पहनाना।

समराजिर
संज्ञा पुं० [सं०] समरांगण। युद्धभूमि [को०]।

समरु पु
संज्ञा पुं० [सं० स्मर] कामदेव। उ०—मकराकृति गोपाल कै सोहत कुंडल कान। धरचौ मनो हियधर समरु डचौढ़ी लसत निसान।—बिहारी र०, दी १०३।

समरोवित
वि० [सं०] युद्ध में प्रयुक्त करने लायक। युद्धोपयुक्त [को०]।

समरोद्देश
संज्ञा पुं० [सं०] लड़ाई का मैदान। युद्धक्षेत्र।

समरोद्यत
वि० [सं०] युद्ध के लिये उद्यत या प्रस्तुत [को०]।

समर्घ
वि० [सं०] कम दाम का। सस्ता। महर्घ या महँगा का उलटा।

समर्चक
वि० [सं०] उपासना करनेवाला। अर्चना करनेवाला। अर्चक। पूजक [को०]।

समर्चन
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० समर्चना] अच्छी तरह अर्चन या पूजन करना।

समर्चना
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'समर्चन'।

समर्ण
वि० [सं०] १. कष्टग्रस्त। पीड़ित। २. प्रार्थित। याचित [को०]।

समर्थ
वि० [सं०] १. जिसमें कोई काम करने का सामर्थ्य हो। कोई काम करने की योग्यता या ताकत रखनेवाला। उपयुक्त। योग्य। जैसे,—आप सब कुछ करने में समर्थ हैं। २. लंबा चौड़ा। प्रथस्त। ३. जो अभिलषित हो। अभीष्ट। ४. युक्ति के अनुकुल। ठीक। ५. बलवान्। शक्त (को०)। ६. योग्य या उपयुक्त बनाया हुआ (को०)। ७. समान अर्थवाला। समानार्थी (को०)। ८. सार्थक (को०)। ९. अत्यंत बलशाली (को०)। १०. पास पास विद्यमान (को०)। ११. अर्थतः या अर्थ द्वारा संबद्ध (को०)।

समर्थ (२)
संज्ञा पुं० १. हित। भलाई। २. व्याकरण में सार्थक शब्द (को०)। ३. सार्थक वाक्य में मिलाकर रखे हुए शब्दों की संसक्ति (को)। ४. योग्यता (को०)। ५. बोधगम्यता (को०)।

समर्थक (१)
वि० [सं०] जो समर्थन करता हो। समर्थन करनेवाला। २. सक्षम। योग्य (को०)।

समर्थंक (२)
संज्ञा पुं० चंदन की लकड़ी।

समर्थता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समर्थन होने का भाव या धर्म। सामर्थ्य। शक्ति। ताकत। ३. अर्थ आदि की समानता।

समर्थत्व
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समर्थता' [को०]।

समर्थन
संज्ञा पुं० [सं०] १. यह निश्चय करना कि अमुक बात उचित है या अनुचित। वाजिब और गैरवाजिब का औसला करना। २. यह कहना कि अनुक बात ठीक है। किसी विषय में सहमत होता। किसी के मत का पोषण करना। जैसे,—मैं आपके इस कथन का समर्थन करता हुँ। ३. विवेचन। मीमांसा। ४. निषेध। वर्जन। मनाही। ५. संभावना।६. उत्साह। ७. सामर्थ्य। शक्ति। ताकत। ७. विवाद की समाप्ति या अंत करना। ९. आपत्ति (को०)। १०. योग्यता (को०)। ११. अध्यवसाय (को०)। १२. किसी हानि या अपराध की क्षतिपूति करना (को०)।

समर्थना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसो ऐसे काम के लिये प्रयत्न करना जो असंभव हो। व होने योग्य काम के लिये प्रयत्न। २. दे० 'समर्थन'। ३. अनुरोध। आमंत्रण (को०)।

समर्थनीय
वि० [सं०] १. समर्थन करने के योग्य। जिसका समर्थन किया जा सके। २. जो निश्चित या प्रमाणित करने योग्य हो (को०)।

समर्थित
वि० [सं०] १. जिसका समर्थन किया गया हो। समर्थन किया हुआ। २. जिसकी विवेचना हो चुकी हो। जिसपर अच्छी तरह विचार हो चुका हो। ३. जो निश्चित हो चुका हो। स्थिर किया हुआ। ४. प्रमाणित (को०)। ५. जो हो सकता हो। जो संभव हो। संभावित।

समर्थ्य
वि० [सं०] जिसका समर्थन किया जा सके। समर्थन करने योग्य।

समर्द्धक, समर्धक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वरदान देनेवाले, देवता आदि। २. वह जो उन्नत या समृद्ध करनेवाला हो (को०)।

समर्पक
वि० [सं०] जो समर्पण करता हो। समर्पण करनेवाला।

समर्पण
संज्ञा पुं० [सं०] १. किसी को कोई चीज आदरपूर्वक भेट करना। प्रतिष्ठापूर्वक देना। जैसे,—वे यह पुस्तक किसी राजा या रईस को समर्पण करना चाहते हैं। २. दान देना। जैसे— आत्मसमर्पण करना। ३. स्थापित करना। स्थापना। ४. नाटक में पात्रों द्वारा पारस्परिक भर्त्सना (को०)।

समर्पना पु
क्रि० स० [सं० समर्पण] देना। समर्पण करता। भेट करना। अपित करना।

समर्पयिता
वि० [सं० समर्पयित] भेंट करने या प्रदान करनेवाला। समर्पक [को०]।

समर्पित
वि० [सं०] १. जो समर्पण किया गया हो। समर्पण किया हुआ। २. जिसकी स्थापना की गई हो। स्थापित। ३. पूर्ण या भरा हुआ (को०)। ४. निक्षिप्त (को०)।

समर्प्य
वि० [सं०] जो समर्पण किया जा सके। जो समर्पण करने के योग्य हो।

समर्यद (१)
वि० [सं०] १. निकट। पास। करीब। २. जिसकी चाल चलन अच्छी हो। अच्छे चरित्रवाला। ३. जो सीमा या मर्यादा में हो। ४. संमानपूर्ण। शिष्ट [को०]।

समर्याद (२)
संज्ञा पुं० सीमित। परिमित। २. नैकट्य। सामीप्य [को०]।

समर्याद (३)
अव्य० निश्चित रूप से [को०]।

समर्हण
संज्ञा पुं० [सं०] १. आदर। संमान। २. भेंट। उपहार [को०]।

समलंकृत
वि० [सं० समलङ्कृत] भलीभाँति अलंकृत। अच्छी तरह सज्जित। सुसज्जित [को०]।

समलंब
संज्ञा पुं० [सं० समलम्ब] विषम चतुर्भुज। रेखागाणित में वह चतुर्भुज जिसकी भुजाएँ समानांतर न हों [को०]।

समल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] मल। विष्ठा। पुरीष। गू।

समल (२)
वि० १. मलीन। मैला। मंदा। २. अशुचि। अशुद्ध (को०)। ३. पापात्मा। पापी (को०)।

समलेपनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजगीरों का एक उपकरण जिससे वे सतह बराबर करते हैं [को०]।

समलोष्ठकांचन
वि० [सं० समलोष्ठकाञ्चन] जिसकी दृष्टि लोहे और सोने को समान देखती हो [को०]।

समलोष्ठाश्मकांचन
वि० [सं० समलोष्ठाश्मकाञ्जन] लिसकी दृष्टि में लोहा, पत्थर और सोना समान हों।

समवकार
संज्ञा पुं० [सं०] रूपक के दस भेदों में से एक का नाम। एक प्रकार का नाटक। विशेष—इसकी कथावस्तु का आधार किसी प्रसिद्ध देवता या असुर आदि के जीवन की कोई घटना होती है। साहित्य दर्पण के अनुसार यह वीर रस प्रधान होता है और इसमें प्रायः देवताओं और असुरों के युद्ध का वर्णन होता है। इसमें तीन अंक होते हैं और विमर्ष संधि के अतिरिक्त शेष चारों संधियाँ रहती हैं। इसमें विंदु या प्रवेशक नहीं होता।

समवच्छन्न
वि० [सं०] पूर्णतः ढका हुआ। आबृत [को०]।

समवतार
संज्ञा पुं० [सं०] १. उतरने की जगह। उतार। २. तीर्थ। घाट (को०)। ३. उतरने की क्रिया। अवतरण।

समवत्त
वि० [सं०] जिसे काटकर टुकड़े टुकड़े कर दिया गया हो। छिन्न भिन्न [को०]।

समवधान
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ होना। एकत्र होना। जुटना। २. पूरा मन लगाना या ध्यान देना। ३. तैयारी करना [को०]।

समवन
संज्ञा पुं० [सं०] सम्यक् रक्षण [को०]।

समवयस्क
वि० [सं०] तुल्यया समान उम्र का। समान अवस्था का। हम उम्र।

समवर्ण
वि० [सं०] १. एक ही वर्ण या जाति का। २. एक या समान रंगवाला।

समवर्णोपधान
संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार बढ़िया और कीमती माल में घटिया माल मिलाना। विशेष—चंद्रगुप्त के समय में धान्य, घी क्षार, नमक, औषध आदि में इस प्रकार की मिलावट करने पर १२ पण जुरमाना होता था।

समवर्त्ती (१)
संज्ञा पुं० [सं० समवर्तिन्] यम का एक नाम।

समवर्त्ती (२)
वि० १. जो समान रूप से स्थित हो। २. समान व्यवहार करनेवाला। पक्षपात रहित। ३. जो पास में स्थित हो। ४. समान दुरी पर स्थित (को०)।

समवलंब
संज्ञा पुं० [सं० समवलम्व] वह चतुर्भुज जिसकी दोनों लंबी रेखाएँ समान हों।

समवबोधन
संज्ञा पुं० [सं०] सम्यक् बोध। पूर्ण ज्ञान [को०]।

समवश्यान
वि० [सं०] नष्ट। बर्बाद [को०]।

समवसरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ किसी प्रकार का धार्मिक उपदेश होता हो। सभा। २. उद्देश्य। लक्ष्य (को०)। ३. अवतरण या उतरने का स्थान (को०)। ४. उतरना। अवतरण। जैसे,—स्वर्ग से देवताओं का (को०)।

समवस्कंद
संज्ञा पुं० [सं० समवस्कन्द] किले का प्राकार।

समवस्था
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. न डिगनेवाली अवस्था। समान रहनेवाली स्थिति। २. अवस्था। दशा। स्थिति [को०]।

समवस्थित
वि० [सं०] १. दृढ। २. एक स्थान पर स्थिर या रुका हुआ। ३. अच्छी तरह प्रस्तुत। उद्यैत। ४. जो किसी स्थान या अवस्था में स्थित हो [को०]।

समवहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. ढेर। राशि। २. अधिकता। प्रचुरता। ३. मिलावट। घालमेल। ४. परिमाण [को०]।

समवाप्त
वि० [सं०] जो प्राप्त हो। उपलब्ध [को०]।

समवाप्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राप्ति। उपलब्धि [को०]।

समवाय
संज्ञा पुं० [सं०] १. समूह। झुंड। २. न्यायशास्त्र के अनुसार तीन प्रकार के संबंधों में से एक प्रकार का संबंध। न्याय शास्त्रा- नुसार नित्य संबंध। वह संबंध जो अवयवी के साथ अवयव का, गुणी के साथ गुण का अथवा जाति के साथ व्यक्ति का होता है। विशेष—इस प्रकार का संबंध एक प्रकार का धर्म या गुण माना गया है। ऐसा संबंध नष्ट नहीं होता; इसी से इसको नित्य संबध भी कहते हैं। विशेष दे० 'संबंध'। ३. संमिश्रण। संयोग। समष्टि (को०)। ४. संख्या। समुच्चय। राशि। (को०)। ५. घनिष्ट संबंध वा लगाव। संसक्ति (को०)। यौ०—समवाय संबंध=नित्य संबंध।

समवायता
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'समवायता'।

समवायत्व
संज्ञा पुं० [सं०] समवाय का भाव या धर्म। समवायता।

समवायन
संज्ञा पुं० [सं०] संपर्क होना। एकत्र होना। एक साथ आ मिलना [को०]।

समवायिक
वि० [सं०] जिसके साथ नित्य संबंध हो। समवाय संबंधवाला [को०]।

समवायिकारण
संज्ञा पुं० [सं०] वैशेषिक के अनुसार वह कारण या हेतु जो पृथक् न हो सके। संश्लिष्ट हेतु। उपादान कारण [को०]।

समवायिपुरुष
संज्ञा पुं० [सं०] आत्मा [को०]।

समवायो (१)
वि० [सं० समवायिन्] जिसमें समवाय या नित्य संबंध हो। २. अभेद्य या घनिष्ट रूप से संबद्ध (को०)। ३. राशि- मय। बहुसंख्यक (को०)।

समवायी (२)
संज्ञा पुं० १. भागीदार। २. अंग। अवयब [को०]।

समविभाग
संज्ञा पुं० [सं०] १. बराबर हिस्सा। २. जायदाद, संपत्ति आदि का समान रूप से बँटवारा।

समविषम
वि० [सं०] १. नतोन्नत। ऊबड़खाबड़। जैसे,—भूमि। २. संतुलित असंतुलित। उचित अनुचित। जैसे,—आहार- बिहार।

समवीर्य
वि० [सं०] समान शक्ति का। तुल्यबल।

समवृत्त
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह छंद जिसके चारों चरण समान हों। २. वह वृत्त, घेरा या गोलाई जो समान हो।

समवृत्ति (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] मनःस्थैर्य। धीरता।

समवृत्ति (२)
वि० समान वृत्तिवाला। धीर। स्थिर।

समवेक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] निरीक्षण।

समवेक्षित
वि० [सं०] ठीक तरह से देखा परखा हुआ। सुवि- चारित [को०]।

समवेत (१)
वि० [सं०] १. एक में मिला या इकट्ठा किया हुआ। एकत्र। २. जमा किया हुआ। संचित। ३. किसी के साथ एक श्रेणी में आया हुआ। ४. जो किसी के साथ नित्य संबंध द्वारा संबद्ध हो। नित्य संबंध से बँधा हुआ।

समवेत (२)
संज्ञा पुं० १. संबंध। लगाव। ताल्लुक। २. दे० 'संभूयकारी'—२।

समव्यूह
संज्ञा पुं० [सं०] वह सेना जिसमें २२५ सवार, ६७५ सिपाही तथा इतने ही घोड़े और रथ आदि के पादगोप हों।

समशंकु
संज्ञा पुं० [सं० समशङ्कु] वह समय जब कि सुर्य ठीक सिर पर आते हों। ठीक दोपहर का समय। मध्याह्न।

समशशी
संज्ञा पुं० [सं० समशशिन्] समान कोण या शृंगवाला चंद्रमा।

समशीतोष्ण
वि० [सं०] जहाँ न तो बहुत गर्मी हो और न शीत। मात दिल [को०]।

समशीतोष्ण कटिबंध
संज्ञा पुं० [सं० समशीतोष्ण कटिबन्ध] पृथ्वी के वे भाव जो उष्ण कटिबंध के उत्तर में कर्क रेखा से उत्तर वृत्त तक और दक्षिण में मकर रेखा से दक्षिण वृत्त तक पड़ते हैं। विशेष—पृथ्वी के इन भूभागों में न तो बहुत अधिक सरदी पड़ती है और न बहुत अधिक गरमी; दोनों प्रायः समान भाव में रहती हैं।

समश्रुति
वि० [सं०] जिसकी श्रुति या विराम समान हो। संगीत में में समान श्रुतियुक्त [को०]।

समश्रेणि
संज्ञा स्त्री० [सं०] समान श्रेणि या पंक्ति। वह पंक्ति या रेखा जो सीधी हो [को०]।

समष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] सब का समूह। कुल एक साथ। व्यष्टि का उलटा या विलोम। जैसे,—आप सब लोगों की अंलग अलग बात जानें दे; समष्टि का विचार करें। २. संयुक्त अधिकार। समान अधिकार। सत्ता जो समवेत संयुक्त हो। ३. सामूहिक होने का भाव। संपूर्णता।

सर्माष्ठल
संज्ञा पुं० [सं०] १. कोकुआ नाम का कँटीला पौधा जो प्रायः पश्चिम में नदियों के किनारो होता है। 11 विशेष—वैद्यक में इसे कटु, उष्ण, रुचिर, दीपन और कफ तथा वात का नाशक माना है। २. गंडीर या गिंडनी नाम का साग।

समष्ठिला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समष्ठिल। कोकुआ। २. जमी- कंद। सूरन। ३. गिंडनी या गंडीर नाम का साग।

समष्ठीला
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'समष्ठिला'।

समसंख्यात
वि० [सं० समसङ्ख्यात] जिसकी संख्या समान या बरा- बर हो।

समसंधि
संज्ञा स्त्री० [सं० समसन्धि] १. कौटिल्य के अनुसार वह संधि जिसमें संधि करनेवाला राजा या राष्ट्र अपनी पूरी शक्ति के साथ सहायता करने को तैयार हो। २. समानता के स्तर पर होनेवाली संधि या समझौता (को०)।

समसंस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] योग के अनुसार आसन का एक प्रकार [को०]।

समसन
संज्ञा पुं० [सं०] १. इकटठा करने का काम। जोड़ना। मिलाना संघटित करना। २. छोटा या संक्षिप्त करना। ३. व्याकरण के अनुसार समास करना। समास के रूप में ले आना [को०]।

समसमयवर्ती
वि० [सं० समसमयवर्तिन्] जो एक साथ हो। साथ साथ या युगपत् होनेवाला।

समसरि पु (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० समस्तर या सरिस, हिं० सरि १] बरा- बरी। तुल्यता। समानता। उ०—दुहन देहु कछु दिन अरु मोकौं तब करिहौ मो समसरि आई।—सूर०, १०।६६८।

समसरि पु (२)
वि० बराबर। समान। उ०—सहस सकट भरि कमल चलाए। अपनी समसरि और गोप जे तिनकौ साथ पठाए।—सूर०, १०।५८३।

समसान पु
संज्ञा पुं० [सं० श्मशान] श्मसान [को०]।

समसामयिक
वि० [सं०] एक हो समय में होनेवाला। समकालिक (अं० कंटेंपोररी)।

समसूत्र, समसूत्रस्थ
वि० [सं०] एक ही व्यास में अवस्थित [को०]।

समसिद्धांत
वि० [सं० समसिद्धान्त] जिसका लक्ष्य एक हो। समान सिद्धांत को लेकर चलनेवाला।

समसुप्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] कल्पांत में होनेवाली विश्व की निद्रा। प्रलय [को०]।

समसेर
संज्ञा स्त्री० [फा० शमशेर] तलवार। कृपाण।

समस्त
वि० [सं०] १. सब। कुल। समग्र। जैसे,—(क) उन्हें समस्त रामायण कंठ है। (ख) इस समय समस्त देश में एक नए प्रकार की जाग्रति हो रही है। २. एक में मिलाया हुआ। संयुक्त। ३. जो समास द्वारा मिलाया गया हो। समासयुक्त। ४. जो थोड़ें में किया गया हो। जो संक्षेप में हो। संक्षिप्त। ५. जो समग्र में व्याप्त हो (को०)।६. संमिश्रित (को०)।

समस्तधाता
संज्ञा पुं० [सं० समस्तधातृ] वह जो सबका धारण- पोषण करनेवाला हो। विष्णु।

समस्थ
वि० [सं०] १. बराबर। समान। २. समतल। ३. अनुरूप। ४. जो फलने फूलने की या समृद्ध स्थिति में हो [को०]।

समस्थल
संज्ञा पुं० [सं०] समतल भूमि [को०]।

समस्थली
संज्ञा स्त्री० [सं०] गगा और यमुना के बीच का देश। गंगा यमुना का दोआबा। अंतर्वेद।

समस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] योग की एक विशेष मुद्रा जिसमें दोनों पैर सटा लिए जाते हैं।

समस्य
वि० [सं०] १. जो समास करने योग्य हो। छोटा या संक्षिप्त करने लायक। २. (श्लोक आदि) जिसके पद या चरण पूर्ण करने योग्य हों। पूरणीय [को०]।

समस्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. संघटन। २. मिलाने की क्रिया। मिश्रण। ३. किसी शलोक या छंद आदि का वह अंतिम पद या टुकड़ा जो पूरा श्लोक या छंद वनाने के लिये तैयार करके दूसरों को दिया जाता है और जिस के आधार पर पूरा श्लोक या छंद बनाया जाता है। क्रि० प्र०—देना।—पूर्ति करना। ४. कठिन अवसर या प्रसंग। कठिनाई। जैसे,—इस समय तो उनके सामने कन्या के विवाह की एक बड़ी समस्या उपस्थित है।

समस्यापूर्त्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] किसी समस्या के आधार पर कोई छंद या श्लोक आदि बनाना।

समह्मा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ख्याति। प्रसिद्धि [को०]।

समांघ्रिक
वि० [सं० समाङ् घ्रिक] अपने पैरों पर सम भाव से खड़ा रहनेवाला [को०]।

समांजन
संज्ञा पुं० [सं० समाञ्जन] सुश्रुत के अनुसार आँखों में लगाने का एक प्रकार का अंजन जो कई ओषधियों के योग से बनता है।

समांत
संज्ञा पुं० [सं० समान्त] १. प्रतिवेशी। वह जो पड़ोसी हो। २. साल का अंत या समाप्ति [को०]।

समांतक
संज्ञा पुं० [सं० समान्तक] कामदेव।

समांतर
वि० [सं० समान्तर] समानांतर। समनि अंतरवाला [को०]।

समांश
संज्ञा पुं० [सं०] सम या बराबर का हिस्सा।

समांशक
वि० [सं०] बराबर का हिस्सेदार। समान भाग का हकदार [को०]।

समांशिक
वि० [सं०] दे० 'समांशक'।

समांशी
वि० [सं० समांशिन्] बराबरी का। समान अंशवाला [को०]।

समांस
वि० [सं०] १. जिसमें मांस हो। मांसयुक्त। २. पुष्ट। भरा हुआ। मांसल [को०]।

समांसमीना
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह गौ जो हर साल बछड़ा ब्याती हो [को०]।

समाँ (१)
संज्ञा पुं० [सं० समय] समय। वक्त। मुहा०—समाँ बँधना =(संगीत आदि कार्यों का) इतनी उत्तमता से होना कि सब लोग स्तब्ध हो जायँ। समाँ बाँधना= (संगीत आदि में) रंग जमाना या श्रोताओं पर प्रभाव डालना। २. मौसिम। ऋतु। ३. बहार। आनंद। ४. चमक दमक। सजधज।

समाँ (२)
संज्ञा पुं० [अ०] नजारा। दृश्य [को०]।

समा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वर्ष। साल।

समा (२)
संज्ञा पुं० [सं० समय] दे० 'समाँ'।

समा (३)
संज्ञा पुं० [अ०] अंबर। आकाश। गगन [को०]।

समाअ
संज्ञा पुं० [अ० समाअ] १. संगीत के स्वरों की तन्मयता में झूमना। २. संगीत श्रवण। गान सुनना [को०]।

समाअत
संज्ञा स्त्री० [अ० समाअत] १. श्रवण करना। सुनना। कान देना। २. सुनने की शक्ति। ३. मुकदमें की सुनवाई या विचार [को०]।

समाई (१)
संज्ञा स्त्री० [हिं० समाना (=अंटना)] १. सामर्थ्य। शक्ति। बूता। समर्थता। २. समाने की क्रिया या भाव।

समाई (२)
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. सुनी हुई वार्ता। श्रुति पर आधारित बात। २. सामान्य लोगों द्वारा बोलने में सुना गया वह शब्द जिसकी व्युत्पत्ति व्याकरण के नियमों से सिद्ध न हो [को०]।

समाउ पु
संज्ञा पुं० [हिं० समाना] १. दे० 'समाई' (१)। २. निर्वाह। समाव। अटने की जगह। गुंजाइश।

समाकरण
संज्ञा पुं० [सं०] आहुत करना। बुलाना [को०]।

समाकर्णितक
संज्ञा पुं० [सं०] वह आह्वान, संकेत या इशारा जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करे।

समाकर्ष
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समाकर्षण' [को०]।

समाकर्षण
संज्ञा पु० [सं०] [वि० समाकृष्ट] अपनी ओर खींचना या आकृष्ट करना [को०]।

समाकर्षिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुत दूर तक फैलनेवाली गंध [को०]।

समाकर्षी (१)
वि० [सं० समाकर्षन्] [स्त्री० समाकर्षिणी] १. खींचनेवाला। जो अपनी ओर आकृष्ट करे। २. दूर तक सुगंध फैलानेवाला या प्रसार करनेवाला। जैसे,—समाकर्षी पुष्प या समाकर्षी गंध्र [को०]।

समाकर्षी (२)
संज्ञा पुं० [सं०] प्रसरणशील सुगंध। दूर तक फैलनेवाली सुगंध [को०]।

समाकार
वि० [सं०] एक समान आकारवाला [को०]।

समाकुचन
संज्ञा पुं० [सं० समाकुञ्जन] सिकोड़ना। सीमित करना।

समाकुचित
वि० [सं० समाकुञ्जित] १. सोमित। २. समाप्त किया हुआ। जैसे,—समाकुंचित वक्तव्य या भाषण [को०]।

समाकुल
वि० [सं०] १. जिसकी अक्ल ठिकाने न हो। बहुत अधिक घबराया हुआ। २. भरा हुआ। पूर्ण। आकार्ण। भाड़भाड़ स युक्त (को०)।

समाकृष्ट
वि० [सं०] १. पास खींचा हुआ। निकट लाया हुआ। २. पूर्णतः आकृष्ट। खीचा हुआ [को०]।

समाक्रमण
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुचलना। रौंदना। २. कदम रखना डग भरना। ३. आक्रमण। धावा। हमला। चढ़ाई [को०]।

समाक्रांत
वि० [सं० समाक्रान्त] १. कुचला हुआ। रौंदा हुआ। २. जिसपर आक्रमण हुआ हो। आक्रात। ३. पालन किया हुआ हो। आक्रांत पूरा किया हुआ [को०]।

समाक्षिक
वि० [सं०] मधु या शहद से युक्त। शहद के साथ [को०]।

समाख्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ख्याति। यश। कीर्ति। २. उपाधि। संज्ञा। नाम। ३. विश्लेषण। स्पष्टीकरण। व्याख्या (को०)।

समाख्यात
वि० [सं०] १. जो प्रसिद्ध या ख्यात हो। २. अच्छी तरह जिसका वर्णन या विवेचन किया गया हो। ३. जिसे गिन लिया गया हो। ४. अभिहित। घोषित (को०)।

समाख्यान
संज्ञा पुं० [सं०] १. नाम लेना। उल्लेख करना। २. विवरण। व्याख्या। ३. आख्या। नाम [को०]।

समागत (१)
वि० [सं०] १. जिसका आगमन हुआ हो। आगत। आया हुआ। जैसे,—उन्होंने समस्त समागत सज्जनों की यथेष्ट अभ्यर्थना की। २. प्रत्यावर्तित। वापस आया हुआ (को०)। ३. जो संयुक्त स्थिति में हो (को०)। ४. मिला हुआ। संमिलित (को०)।

समागत (२)
संज्ञा पुं० गोष्ठी। समिति। समूह। दल [को०]।

समागता
संज्ञा स्त्री० [सं०] प्रहेलिका का एक भेद [को०]। विशेष—इमसें पहेली का अर्थ शब्दों की संधि में छिपा होता है।

समागति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. संयोग। मिलन। एकत्र होना। २. पहुँचना। उपगमन। ३. समान दशा या गति [को०]।

समागम
संज्ञा पुं० [सं०] १. आगमन। आना। जैसे,—इस बार यहाँ बहुत से विद्वानों का समागम होगा। २. मिलना। मिलन। भेंट। जैसे,—इसी बहाने आज सब लोगों का समागम हो गया। ३. स्त्री के साथ संभोग करना। मैथुन। ४. (ग्रहों का) योग। ५. संघ। समूह (को०)। यौ०—समागम क्षण=समागम काल। समागम प्रार्थना=समागम की इच्छा। समागम मनोरथ=मिलन की इच्छा।

समागमकारी
वि० [सं० समागमकारिन्] जो मिलाने या समागम कराने में सहायक हो [को०]।

समागमन
संज्ञा पुं० [सं०] १. समागम की क्रिया या भाव। मिलने की स्थिति। २. आगमन। आना। ३. संभोग। मैथुन [कौ०]।

समागमी
वि० [सं० समागमिन्] १. मिलने या समागम करनेवाला। २. आसन्न या उपस्थित भविष्य [को०]।

समागलित
वि० [सं०] जो गिरा हुआ हो। च्युत। पतित [को०]।

समागाढ़
वि० [सं० समागाढ़] प्रगाढ़। सुदृढ।

समाघात
संज्ञा पुं० [सं०] १. युद्ध। लड़ाई। २. जान से मार डालना। हत्या। बध [को०]।

समाघ्राण
संज्ञा पुं० [सं०] सूँघने की क्रिया। खूब अच्छी तरह से सूँघना [को०]।

समाघ्रात
वि० [सं०] खूब सूँघा हुआ। जिसे अच्छी तरह सूँघा गया हो। अनाघ्रात का उलटा [को०]।

समाचक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] १. ठीक ढंग से कहना। अच्छी तरह कहना। २. विवृत करना या विवरण उपस्थित करना [को०]।

समाचयन
संज्ञा पुं० [सं०] संग्रहण। चयन की क्रिया [को०]।

समाचरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. सम्यक् आचरण। २. पूर्ण करना। पूरा करना। ३. सेवन करना। व्यवहार में लाना। अमल करना।

समाचरित
वि० [सं०] जिसका अच्छी तरह व्यवहार या सेवन किया गया हो। सम्यक् रूप से आचरित [को०]।

समाचार
संज्ञा पुं० [सं०] १. संवाद। खबर। हाल। जैसे,—क्या नया समाचार है। उ०—समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ।—मानस २।५७। यौ०—समाचारपत्र। समाचार प्रसारण=रेडियों या समाचारपत्रों द्वारा खबर फैलाना। खबर प्रसारित करना। समाचार बुलेटिन=खबर की छोटी विवरणिका, सूचना या इश्तहार। २. शिष्टाचार। अच्छा व्यवहार (को०)। ३. रीति। प्रथा (को०)। ४. गति। आगे बढ़ना (को०)। ५. आचरण। व्यव- हार (को०)।

समाचारपत्र
संज्ञा पुं० [सं० समाचार+पत्र] वह पत्र जिसमें सब देशों के अनेक प्रकार के समाचार रहते हों। खबर का कागज। अखबार।

समाचीर्ण
वि० [सं०] १. जिसे पूरा कर लिया गया हो। २. व्यव- हार में लाया हुआ [को०]।

समाचेष्टित (१)
वि० [सं०] १. जिसके लिये प्रयत्न किया जा चुका हो। २. जो व्यवहार में लाया गया हो [को०]।

समाचेष्टित (२)
संज्ञा पुं० १. व्यवहार। आचरण। चरित्र। २. अंग- संचालन का ढंग। भंगिमा [को०]।

समाज
संज्ञा पुं० [सं०] १ समूह। संघ। गरोह। दल। २. सभा। ३. हाथी। ४. एक ही स्थान पर रहनेवाले अथवा एक ही प्रकार का व्यवसाय आदि करनेवाले वे लोग जो मिलकर अपना एक अलग समूह बनाते हैं। समुदाय। जैसे,—शिक्षित समाज, ब्राह्मण समाज। ५. वह संस्था जो बहुत से लोगों ने एक साथ मिलकर किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिये स्थापित की हो। सभा। जैसे,—संगीत समाज, साहित्य समाज। ६. प्राचुर्य। समुच्चय। संग्रह (को०)। ७. एक प्रकार का ग्रहयोग। ८. मिलना। एकत्र होना (को०)।

समाजत
संज्ञा स्त्री० [अ०] खुशामद। अनुनय। विनय [को०]।

समाजवाद
संज्ञा पुं० [सं० समाज+वाद] एत राजनीतिक सिद्धांत। विशेष—यह शब्द अंग्रेजी 'सोशलिज्म' का हिंदी रूप है। इस सिद्धांत के अनुसार उत्पादन और उसके समान वितरण पर पूरे समाज का अधिकार स्वीकार किया जाता है।

समाजवादी
वि० [सं० समाज+वादिन्] समाजवाद के सिद्धांत का अनुगमन करनेवाला।

समाजशास्त्र
संज्ञा पुं० [सं० समाज+शास्त्र] वह शास्त्र जो मानव समाज का उसे सामाजिक प्राणी मानकर अध्ययन- विवेचन करता है।

समाजशास्त्री
वि० [सं० समाज+शास्त्रिन्] समाजशास्त्र का पंडित।

समाज सन्निवेशन
संज्ञा पुं० [सं०] समाज या जनसमूह के बैठने के उपयुक्त स्थान।

समाजसेवक
वि० [सं० समज+सेवक] समाज की सेवा करनेवाला।

समाजसेवा
संज्ञा स्त्री० [सं० समाज+सेवा] वह सेवा जो सामाजिक हित की द्दष्टि से की जाय।

समाजसेवी
संज्ञा पुं० [सं० समाजसेविन्] दे० 'समाजसेवक'।

समाजिक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सामाजिक' [को०]।

समाजी
संज्ञा पुं० [हिं० समाज+ई (प्रत्य०)] १. वह व्यक्ति जो वेश्याओं के यहाँ तबला, सारंगी आदि बजाता है। सपरदाई। २. किसी समाज का अनुयायी (विशेषतः आर्यसमाज का)। जैसे-आर्य- समाजी। ३. वह व्यक्ति जो सामाजिक हो।

समाज्ञप्त
वि० [सं०] जिसे आदेश दिया गया हो [को०]।

समाज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. यश। कीर्ति। बड़ाई। २. आख्या। संज्ञा। नाम (को०)।

समाज्ञात
वि० [सं०] १. भली भाँति जाना हुआ। पूर्णतः ज्ञात। २. मान्य। माना हुआ।

समातत
वि० [सं०] १. जिसका सिलसिला टूटा न हो। लगातार क्रमवाला। २. जिसे फैला दिया गया हो। पूर्णतः विस्तारित। ३. आकृष्ट। खींचा या ताना हुआ। जेसे-धनुष [को०]।

समाता
संज्ञा स्त्री० [सं० समातृ] १. वह जो माता के समान हो २. माता की विपत्नी। विमाता। सौतेली माँ।

समातीत
वि० [सं०] एक वर्ष से अधिक आयु का। जो एक वर्ष पूरा कर चुका हो [को०]।

समातृक
वि० [सं०] सातासहित। माता के साथ। मातृयुक्त [को०]।

समादत्त
वि० [सं०] प्राप्त। गृहीत। जिसे ले लिया गया हो [को०]।

समादर
संज्ञा पुं० [सं०] आदर। संमान। खातिर।

समादरणीय
वि० [सं०] समादार करने के योग्य। आदर सत्कार करने के लायक।

समादना (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बौद्धों का सौगताह्निक नामक नित्य कर्म। २. ग्रहण किए हुए व्रतों या आचारों की उपेक्षा (जैन)। ३. पूर्णतः स्वीकार या ग्रहण (को०)। ४. उचित दान स्वीकार करना। उपयुक्त उपहार लेना (को०)। ५. निश्चय। संकल्प (को०)। ६. प्रारंभ। आरंभ (को०)।

समादान (२)
संज्ञा पुं० [फा० शमादान] दे० 'शमादान'।

समादापक
वि० [सं०] उत्तेजक। विक्षोभक [को०]।

समादापन
संज्ञा पुं० [सं०] उकसावा। बढ़ावा। उत्तेजन [को०]।

समादिष्ट
वि० [सं०] आदिष्ट। आज्ञप्त। निर्दिष्ट [को०]।

समादृत
वि० [सं०] जिसका अच्छी तरह आदर हुआ हो। संमानित।

समादेय
वि० [सं०] १. आदर या प्रतिष्ठा करने योग्य। २. स्वागत या अभ्यर्थना करने योग्य। ३. ग्रहण या स्वीकरण योग्य [को०]।

समादेश
संज्ञा पुं० [सं०] आज्ञा। आदेश। हुकुम। यौ०—समादेश याचिका=(राजाज्ञा प्राप्त करने के लिये) प्रार्थना पत्र (अं० रिट अप्लिकेशन)।

समाधा
संज्ञा पुं० [सं०] १. निराकरण। निपटारा। २. विरोध करना। ३. सिद्धांत। ४. दे० 'समाधान'।

समाधान
संज्ञा पुं० [सं] [वि० समाधानीय] १. चित्र को सब ओर से हटाकर ब्रह्म की ओर लगाना। मन को एकाग्र करके ब्रह्म में लगाना। समाधि। प्रणिधान। २. किसी के शंका या प्रश्न करने पर दिया जानेवाला वह उत्तर जिससे जिज्ञासु या प्रश्न- कर्ता का संतोष हो जाय। किसी के मन का सदेह दूर करनेवाली बात। ३. इस प्रकार कोई बात कहकर किसी को संतुष्ट करने की क्रिया। ४. किसी प्रकार का विरोध दूर करना। ५. निष्पत्ति। निराकरण। ६. नियम। ७. तपस्या। ८. अनुसंधान। अन्वेषण। ९. ध्यान। १०. मत की पुष्टि। सहमति। समर्थन। ११. मिलाना। मेल बैठाना। साथ रखना (को०)। १२. उत्सुकता। औत्सुक्य (को०)। १३. मन की स्थिरता। मनःस्थैर्य (को०)। १४. नाटक की मुखसंधि के उपक्षेप, परिकर आदि १२ अंगों में से एक अंग। बीज को ऐसे रूप में पुनः प्रदर्शित करना जिससे नायक अथवा नायिका का अभिमत प्रतीत हो।

समाधानना पु
क्रि० स० [सं० समाधान+हिं० ना (प्रत्य०)] समाधान करना। संतोष देना। सांत्वना प्रदान करना।

समाधि (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समर्थन। २. नियम। ३. ग्रहण करना। अंगीकार। ४. ध्यान। ५. आरोप। ६. प्रतिज्ञा। ७. प्रतिशोध। बदला। ८. विवाद का अंत करना। झगड़ा मिटाना। ९. कोई असंभव या असाध्य कार्य करने के लिये उद्योग करना। कठिनाइयों में धैर्य के साथ उद्योग करना। १०. चुप रहना। मौन। ११. निद्रा। नींद। १२. योग। १३. योग का चरम फल, जो योग को आठ अंगों में से अंतिम अंग है और जिसकी प्राप्ति सबके अंत में होती है। विशेष—इस अवस्था में मनुष्य सब प्रकार के क्लेशों से मुक्त हो जाता है, चित्त की सब वृत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं, बाह्य जगत् से उसका कोई संबंध नहीं रहता, उसे अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं और अंत में कैवल्य की प्राप्ति होती है। योग दर्शन में इस समाधि के चार भेद बतलाए हैं—संप्रज्ञात समाधि, सवितर्क समाधि, सविचार समाधि ओर सानंद समाधि। समाधि की अवस्था में लोग प्रायः पद्मासन लगाकर और आँखें बंद करके बैठते हैं, उनके शरीर में किसी प्रकार की गति नहीं होती; और ब्रह्म में उनका अवस्थान हो जाता है। विशेष दे० 'योग' ३६ और ३८। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। १४. किसी मृत व्यक्ति की अस्थियाँ या शव जमीन में गाड़ना। क्रि० प्र०—देना। १५. वह स्थान जहाँ इस प्रकार शव या अस्थियाँ आदि गाड़ी गई हों। छतरी। १६. काव्य का एक गुण जिसके द्वारा दो घटनाओं का दैवसंयोग से एक ही समय में होना प्रकट होता है और जिसमें एक हो क्रिया का दोनों कर्त्ताओं के साथ अन्वय होता है। १७. एक प्रकार का अर्थालंकार जो उस समय माना जाता है जब किसी आकस्मिक कारण से कोई कार्य बहुत ही सुगमतापूर्वक हो जाता है। उ०— (क) हरि प्रेरित तेहि अवसर चले पवन उनचास। (ख) मीत गमन अवरोध हित सोचत कछू उपाय। तब ही आकस्मात तें उठी घटा घहराय। १८. साथ मिलाना या करना (को०)। १९. गरदन का जोड़ या उसकी एक विशेष अवस्था (को०)। २०. दुर्भिक्ष के समय अनाज बचाकर रखना। अन्न संचय (को०)। २१. तपस्या (को०)। २२. पूर्ति। संपन्नता (को०)। २३. प्रतिदान (को०)। २४. सहारा। आश्रय (को०)। २५. इंद्रियनिरोध (को०)। २६. सत्तरहवाँ कल्प (को०)। यौ०—समाधिनिष्ट=समाधिस्थ। समाधिभंग=समाधि टूटना। समाधिभृत्=समाधि में लीन। समाधिभेद=(१) समाधि के चार भेद। (२) समाधि भंग होना।

समाधि (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० समाधित या समाधान] दे० 'समाधान'। (क्व०)। उ०—ब्याधि भूत जनित उपाधि काहू खल की समाधि कीजै तुलसी को जानि जन फुर कै। —तुलसी (शब्द०)।

समाधिक्षेत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जहाँ योगियों आदि के मृत शरीर गाड़े जाते हैं। २. साधारण मुरदे गाड़ने की जगह। कब्रिस्तान।

समाधिमर्भ
संज्ञा पुं० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम।

समाधित
वि० [सं०] १. जिसने समाधि लगाई हो। समाधि अवस्था को प्राप्त। २. तुष्ट या प्रसन्न किया हुआ (को०)।

समाधित्व
संज्ञा पुं० [सं०] समाधि का भाव या धर्म।

समाधिदशा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह दशा जब योगी समाधि में स्थित होता है और परमात्मा में प्रेमबद्घ होकर निमग्न और तन्मय होता है तथा अपने आप को भूलकर चारों ओर ब्रह्म ही ब्रह्म देखता है।

समाधिमत्
वि० [सं०] दे० 'समाधी' [को०]।

समाधिमोक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] पुरानी संधि तोड़ना। समझौता तोड़ना। संधिभंग। (कौटि०)। विशेष—चारक्य ने इसके अनेक नियम दिए हैं। संधि के समय किसी पक्ष को दूसरी पक्ष से जो वस्तुएँ मिली हों, उन्हें किस प्रकार लौटाना चाहिए, किस प्रकार सूचना देनी चाहिए आदि बातों का उसने पूर्ण वर्णन किया है।

समाधियोग
संज्ञा पुं० [सं०] १. समाधियुक्त होना। २. ध्यान या विचार का प्रभाव या गुणवत्ता [को०]।

समधिविग्रह
संज्ञा पुं० [सं०] ध्यान की प्रतिमूर्ति [को०]।

समाधिशिला
संज्ञा स्त्री० [सं० समाधि+शिला] किसी की समाधि पर लगाई जानेवाली वह शिला जिसपर समाधिस्थ व्यक्ति का नाम, जन्म और मृत्युतिथि अंकित हो।

समाधिसमानता
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों के अनुसार ध्यान का एक भेद।

समाधिस्थ
वि० [सं०] जो समाधि में स्थित हो। जो समाधि लगाए हुए हो।

समाधिस्थल
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समाधिक्षेत्र'।

समाधी
वि० [सं० समाधिन्] १. समाधिस्थ। जो समाधि में हो। २. धर्मनिष्ठ। धार्मिक। उपासक [को०]।

समाधूत
वि० [सं०] जिसे दूर या तितर बितर कर दिया गया हो। भगाया हुआ [को०]।

समाधेय
वि० [सं०] १. समाधान करने के योग्य। जिसका समाधान हो सके। २. निर्देश योग्य। जिसे निर्देश किया जा सके (को०)। ३. अंगीकार योग्य। स्वीकरणीय (को०)। ४. जो क्रम- युक्त या व्यवस्थित किया जा सके (को०)।

समाध्मात
वि० [सं०] १. फूला हुआ। जैसे,—समाध्मात उदर। २. गर्वयुक्त। फूला हुआ। ३. फुलाया हुआ। जिसमें हवा भर दी गई हो [को०]।

समान (१)
वि० [सं०] जो रूप, गुण, मान, मूल्य, महत्व आदि में एक से हों। जिनमें परस्पर कोई अंतर न हो। सम। बराबर। सदृश। तुल्य। एकरूप। जैसे,—वे दोनों समान विद्वान् हैं; उनमें कोई अंतर नहीं है। मुहा०—एक समान=एक सा। एक जैसा। यौ०—समान वर्ण=ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण एक ही स्थान से होता हो। जैसे,—क, ख, ग, घ ल समान वर्ण हैं। २. सामान्य। साधारण (को०)। ३. मध्यवर्ती। उभयनिष्ठ। वीच का (को०)। ४. क्रोधी। कोपाविष्ट। क्रोधयुकत (को०)। ५. सज्जन। भला (को०)। ६. समादरणीय। समादृत। संमा- नित (को०)। ७. साकल्य। समग्रता। समास। जैसे, संख्या का (को०)।

समान (२)
संज्ञा पुं० १. सत्। २. शरीर के अंतर्गत पाँच वायुओं में से एक वायु जिसका स्थान नाभि माना गया है। ३. मित्र। साथी (की०)। ४. व्याकारण के अनुसार एक ही स्थान से उच्चरित होनेवाले वर्ण (को०)।

समानकरण
वि० [सं०] (स्वर) जिनका करण या उच्चारण स्थान एक हो [को०]।

समानकर्तृक
वि० [सं०] एक कर्तृक। (वाक्य आदि) जिनका कर्ता एक हो हो [को०]।

समानकर्म
संज्ञा पुं० [सं० समानकर्मन्] १. वे जो एक ही तरह का काम करते हों। एक ही तरह का व्यवसाय या कार्य करनेवाले। हमपेशा। २. समान काम। एक ही काम (को०)। ३. वे वाक्य जिनके कर्म कारक समान या एक ही हों।

समानकर्मक
वि० [सं०] १. व्याकरण में एक ही कर्मवाला। २. समान कर्म करनेवाला [को०]।

समानकाल, समानकालीन
संज्ञा पुं० [सं०] वे जो एक ही समय में उत्पन्न हुए या अवस्थित रहे हों। समकालीन।

समानक्षेत्र
वि० [सं०] समान क्षेत्रवाला। आपस में एक दूसरी को सतुलित करनेवाला [को०]।

समानगति
वि० [सं०] एकमत, एक राय होनेवाले [को०]।

समानगोत्र
संज्ञा पुं० [सं०] वे जो एक ही गोत्र में उत्पन्न हुए हों। सगोत्र।

समानग्रामीय
वि० [सं०] एक ही गाँव में निवास करनेवाले [को०]।

समानजन्मा
संज्ञा पुं० [सं० समानजन्मन्] १. वे जो प्रायः एक साथ ही, अथवा एक ही समय में उत्पन्न हुए हों। जो अवस्था या उम्र में बराबर हों। समवयस्क। २. वे जिनका उत्पत्तिस्थान एक हो [को०]।

समानतंत्र
संज्ञा पुं० [सं० समानतन्त्र] १. वे जो एक ही काम करते हों। समान कर्म। हमपेशा। २. वे जो वेद की किसी एक ही शाखा का अध्ययन करते हों और उसी के अनुसार यज्ञ आदि कर्म करते हों।

समानता
संज्ञा स्त्री० [सं०] समान होने का भाव। तुल्यता। बरा- बरी। जैसे,—इन दोनों में बहुत कुछ समानता देखने में आती है।

समानतेजा
वि० [सं० समानतेजस्] समान दिप्ति या कीर्तिवाले। जिनकी कांति या कीर्ति समान हो [को०]।

समानतोर्थापद
संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार एक ही साथ चारों ओर अर्थ सिद्धि।

समानत्व
संज्ञा पुं० [सं०] समान होने का भाव। समानता। तुल्यता। बराबरी।

समानदुःख
वि० [सं०] समान कष्ट या या दुःखवाला। समान वेदना- युक्त। समवेदना व्यक्त करनेवाला [को०]।

समदेवत, समदैवत्य
वि० [सं०] जो एक ही या समान देवता संबंधी हो [को०]।

समानधर्मा
वि० [सं०] समान गुण, धर्म, प्रकृतिवाला। तुल्य गुणवाला [को०]।

समाननामा
संज्ञा पुं० [सं० समाननामन्] वे जिनके नाम एक ही हों। एक ही नामवाले। नामरासी।

समानयन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह अथवा आदरपूर्वक ले आने की क्रिया। २. एक साथ करना। एकत्र करना। संग्रह करना (को०)।

समाननिधन
वि० [सं०] जिनका निधन या परिणाम एक सा हो [को०]।

समानप्रतिपत्ति
वि० [सं०] समान मेधावाला। विवेकशील [को०]।

समानप्रेमा
वि० [सं० समानप्रेमन्] जिसका प्रेम सदा एक समान हो [को०]।

समानमान
वि० [सं०] तुल्य सम्मान प्राप्त करनेवाला। जो किसी के समान सम्मान का भागी हो [को०]।

समानयम
संज्ञा पुं० [सं०] एक ही या समान ऊँचाई का स्वर। समान तार स्वर (संगीत)।

समानयोगित्व
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो समान स्तर या योग का हो [को०]।

समानयोनि
संज्ञा पुं० [सं०] वे जो एक ही योनि या स्थान से उत्पन्न हुए हों।

समानरुचि
वि० [सं०] जिनकी रुचि एक समान हो [को०]।

समानरूप
वि० [सं०] जिनका रूप, रंग समान हो [को०]।

समानर्ष, समानर्षि
संज्ञा पुं० [सं०] वे जो एक ही ऋषि के गोत्र या वंश में उत्पन्न हुए हों।

समानवयस्क
वि० [सं०] दे० 'समानवया'।

समानवया
वि० [सं० समानवयस्] तुल्य वय का समान उम्रवाला। हमउम्र [को०]।

समानवर्चस
वि० [सं० समानवर्चस्] समान कांतिवाला। जिनकी कांति एक सदृश हो [को०]।

समानवर्ण
वि० [सं०] १. दे० 'समान रूप'। २. समान वर्णवाला। समानाक्षर युक्त [को०]।

समानवसन, समानवस्त्र
वि० [सं०] जिनका पहनावा एक सा हो। समान वस्त्र, परिधानवाले [को०]।

समानविद्य
वि० [सं०] किसी के समान ज्ञानवाला। समान विद्या से युक्त। समकक्ष (विद्वान्)।

समानशब्दत्व
संज्ञा पुं० [सं०] एक समान शब्दों द्वारा भाव या विचारों को अभिव्यक्त करने की स्थिति [को०]।

समानशब्दा
संज्ञा स्त्री० [सं०] प्रहेलिका का एक भेद [को०]।

समानशील
वि० [सं०] जिनका शील स्वभाव समान या एक सा हो [को०]।

समानसंख्य
वि० [सं० समानसड़्ख्य] जिसकी संख्याएँ समान हों। समान संख्यावाला [को०]।

समानसलिल
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समानोदक' [को०]।

समानस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] वह स्थान जहाँ दिन और रात दोनों बराबर होते हैं।

समानांतर
वि० [सं० समानान्तर] १. जो हमेशा एक समान अंतर पर रहे। जैसे,—समानांतर रेखा। २. साथ साथ चलने या काम करनेवाला। जैसे,—समानांतर सरकार। ३. समकक्ष। तुल्य। बराबर (को०)।

समाना (१)
क्रि० अ० [सं० समाविष्ट] अंदर आना। भरना। अटना। जैसे,—यह समाचार सुनते ही सबके हृदय में आनंद समा गया। उ०—तासु तेज प्रभु बदन समाना। सुर मुनि सबहि अचंभौ माना।—मानस, ६।७०।

समाना (२)
क्रि० स० किसी के अंदर रखना। भरना। अटाना। जैसे— ये सब चीजें इसी बक्स के अंदर समा दो।

समानाधिकरण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] व्याकरण में वह शब्द या वाक्यांश जो वाक्य में किसी समानार्थी शब्द का अर्थ स्पष्ट करने के लिये आता है। जैसे,—लोगों से लड़ते फिरना, यही आपका काम है। इसमें 'यही' शब्द 'लड़ते फिरना' का समानाधिकरण है। २. समान स्थान या परिस्थिति (को०)। ३. एक ही कारक- विभाक्ति से युकत होना (को०)। ४. समान आधार। समान वर्ग या श्रेणी।

समानाधिकरण (२)
वि० १. समान आधारवाला। २. एक ही श्रेणी या वर्ग का। ३. एक ही कारक विभक्ति से युक्त [को०]।

समानाधिकार
संज्ञा पुं० [सं०] समानता का अधिकार। बराबरी का दरजा [को०]।

समानाभिहार
संज्ञा पुं० [सं०] समान या एक ही प्रकार की वस्तुओं का संमिश्रण [को०]।

समानार्थ
संज्ञा पुं० [सं०] १. वे शब्द आदि जिनका अर्थ एक ही हो। पर्याय। २. वे जिनका प्रयोजन या उद्देश्य समान हो।

समानार्थक
वि० [सं०] दे० 'समानार्थ' [को०]।

समानिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की वर्णवृत्ति जिसमें रगण, जगण और एक गुर होता है। समानी। उ०—देखि देखि कै सभा। विप्र मोहियो प्रभा। राजमंडली लसै। देव लोक को हँसै।—केशव (शब्द०)।

समानी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वर्ण वृत्त। दे० 'समानिका'।

समानोदक
संज्ञा पुं० [सं०] जिनकी ग्यारहवीं से चौदहवीं पीढ़ी तक के पूर्वज एक हों। इन्हें साथ साथ तर्पण करने का अधिकार होता है।

समानोदर्य
संज्ञा पुं० [सं० समानोदर्य्य] वे जिनका जन्म एक ही माता के गर्भ से हुआ हो। सहोदर भाई। सगा भाई।

समानोपमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] उपमा अलंकार का एक भेद। विशेष—इसमें संधिविच्छेद से एक ही उपमा दूसरी उपमा का भी काम दे जाती है। जैसे,—'सालकानन' में दो उपमाएँ छिपी हैं—(क) सालक + आनन अर्थात् अलकावली से युक्त आनन और (ख) साल + कानन अर्थात् वह जंगल जिसमें साल के ही वृक्ष हों।

समाप
संज्ञा पुं० [सं०] इष्ट देवता की सपर्या या पूजा [को०]।

समापक
संज्ञा पुं० [सं०] समाप्त करनेवाला। खतम करनेवाला। पूरा करनेवाला।

समापतित
वि० [सं०] सामने आया हुआ। जो घटित हो [को०]।

समापत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक ही समय में और एक ही स्थान पर उपस्थित होना। मिलना। २. संयोग। मौका। अवसर (को०)। ३. पूर्ति। समाप्ति (को०)। ४. मूल रूप का गुहण या प्राप्ति (को०)। यो०—समापत्तिदृष्ट = संयोग से दिखाई पड़नेवाला।

समापन
संज्ञा पुं० [सं०] १. समाप्त करने की क्रिया। खतम करना। पूरा करना। २. मार डालना। हत्या करना। वध। ३. सूक्ष्म चिंतन। गूढ़ चिंतन (को०)। ४. खंड। अध्याय। विभाग (को०)। ५. अवाप्ति। उपलब्धि। अभिग्रहण (को०)। ६. समाधान।

समापना
संज्ञा स्त्री० [सं०] संपन्न होने का भाव। निष्पत्ति। परिणति। सिद्धि। संपन्नता [को०]।

समापनोय
वि० [सं०] १. समाप्त करने योग्य। खतम करने के लायक। २. मार डालने योग्य। वध्य।

समापन्न (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मार डालना। हत्या करना। वध। २. मरण। मृत्यु। ३. अंत। समाप्ति। पूर्ति (को०)।

समापन्न (२)
वि० १. खतम किया हुआ। समाप्त किया हुआ। २. बध किया हुआ। मारा हुआ। निहत (को०)। ३. आगत। पहुँचा हुआ (को०)। ४. घटित। गुजरा हुआ (को०)। ५. निष्णात। प्रवीण। कुशल (को०)। मिला हुआ। प्राप्त। ६. यक्त। अन्वित। उपेत (को०)। ७. आर्त। दुखित। अभिभूत (को०)। ८. क्लिष्ट। कठिन।

समापादन
संज्ञा पुं० [सं०] पूर्ण करना। रूप या आकार देना। संपादित करना [को०]।

समापादनीय
वि० [सं०] पूरा करने योग्य। आकारित करने योग्य। रूप देने योग्य [को०]।

समापाद्य
संज्ञा पुं० [सं०] व्याकरण के अनुसार विसर्ग का 'स' और 'ष' में परिवर्तन।

समापिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] व्याकरण में दो प्रकार की कियाओं में से एक प्रकार की क्रिया जिससे किसी कार्य का समाप्त हो जाना सूचित होता है। जैसे,—वह परसों यहाँ से चला गया। इस वाक्य में 'चला गया' समापिका क्रिया है।

समापित
वि० [सं०] समाप्त किया हुआ। खतम या पूरा किया हुआ।

समापी
संज्ञा पुं० [सं० समापिन्] वह जो समाप्त करता हो। खतम करनेवाला।

समापूर्ण
वि० [सं०] पूरा पूरा भरा हुआ। सम्यक् आपूरित। लबरेज [को०]।

समाप्त
वि० [सं०] १. जिसका अंत हो गया हो। जो खतम या पूरा हो। जैसे,—(क) जब आप अपनी सब बातें समाप्त कर लीजिएगा, तब मैं भी कुछ कहूँगा। (ख) आपका यह ग्रंथ कबतक समाप्त होगा। २. निपुण। कुशल। चतुर (को०)। ३. परिपूर्ण (को०)। क्रि० प्र०—करना।—होता। यौ०—समाप्तप्राय = जो लगभग समाप्त या पूर्ण हो। समा- प्तभूयिष्ठ = जो प्रायः पूरा हो गया हो। समाप्तशिक्ष = जिसने शिक्षा पूर्ण कर ली हो।

समाप्तलंभ
संज्ञा पुं० [सं० समाप्तलम्भ] बौद्धों के अनुसार एक बहुत बड़ी संख्या का नाम।

समाप्ताल
संज्ञा पुं० [सं०] पति। स्वामी। मालिक। खाविंद।

समाप्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. किसी कार्य या बात आदि का अंत होना। उस अवस्था को पहुँचना जब कि उस संबंध में और कुछ भी करने को बाकी न रहे। खतम या पूरा होना। २. प्राप्त होने या मिलने का भाव। प्राप्ति। ३. निष्पन्नता। पूर्णता (को०)। ४. अंतर या मतभेद दूर करना (को०)। ५. शरीर आदि का विभिन्न तत्वों में विघटन। मृत्यु (को०)।

समाप्तिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो समाप्त करता हो। खतम या पूरा करनेवाला। २. वह जो वेदों का अध्ययन समाप्त कर चुका हो।

समाप्तिक (१)
वि० समाप्ति का। अंत का। २. जिसने काम पूरा कर दिया हो [को०]।

समाप्य
वि० [सं०] समाप्त करने के योग्य। खतम या पूरा करने के लायक।

समाप्यायित
वि० [सं०] जो अच्छी तरह तृप्त, पोषित, संतुष्ट किया गया हो [को०]।

समाप्लव, समाप्लाव
संज्ञा पुं० [सं०] स्नान करने की क्रिया। नहाना। गोता लगाना।

समाप्लुत
वि० [सं०] १. जो गोता लगा चुका हो। नहाया हुआ। २. बाढ़ग्रस्त। बाढ़ में डूबा हुआ। ३. भरा हुआ। पूर्ण [को०]।

सभाभाषण
संज्ञा पुं० [सं०] बातचीत। वार्तालाप [को०]।

समाम्नात
वि० [सं०] १. जिसे बार बार कहा गया हो। दोहराया हुआ। २. परंपरागत। परंपरा से प्राप्त [को०]।

समाम्नाता
संज्ञा पुं० [सं० समाम्नातृ] १. वह जो बारबार कहता हो। दुहरानेवाला। २. वह जो मूल पाठ का संग्रह या संपादन करता हो [को०]।

समाम्नान
संज्ञा पुं० [सं०] १. आवृत्ति करना। दुहराना। २. गणाना। ३. परंपराप्राप्त पाठ या वर्णन [को०]।

समाम्नाय
संज्ञा पुं० [सं०] १. शास्त्र। २. समूह। समष्टि। जैसे,— अक्षर समाम्नाय। ३. परंपरा। अनुश्रुति (को०)। ४. पढ़ना। पाठ करना। गान करना (को०)। ५. शिव (को०)। ६. संहार। प्रलय (को०)। ७. पवित्र ग्रंथ (को०)। ८. (शब्दों या वचनों का) परंपरागत संग्रह। जैसे, पशु समाम्नाय (को०)।

समाम्नायिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वह जिसे शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो। शास्त्रवेत्ता।

समाम्नायिक (२)
वि० शस्त्र संबंधी। शास्त्र का।

समाय
संज्ञा पुं० [सं०] १. पहुँचना। आना। २. यों ही देखने के लिये आना [को०]।

समायत
वि० [सं०] जिसे फैला दिया गया हो। पूरा पूरा लंबा। विस्तृत [को०]।

समायत्त
वि० [सं०] जो किसी के सहारे टिका हो। पूर्णतः अधीन या वशीभूत [को०]।

समायस्त
वि० [सं०] दुःखी। खिन्न। पीड़ित। विषादग्रस्त [को०]।

समायात
वि० [सं०] १. लौटा हुआ। प्रत्यावर्तित। २. साथ साथ या समीप आया हुआ [को०]।

समायी
वि० [सं० समायिन्] १. समकाल में घटनेवाला। एक ही समय में होनेवाला। २. एक के बाद दूसरा तक्ताल होने या घटनेवाला [को०]।

समायुक्त
वि० [सं०] १. साथ जोड़ा हुआ। संघटित। संयुक्त। २. तैयार किया हुआ। निर्मित। ३. कृतसंकल्प। संलग्न। ४. युक्त। सज्जित। सहित। ५. जिसे कोई कार्यभार सौंपा गया हो। नियुक्त किया हुआ [को०]।

समायुत
वि० [सं०] १. संयुक्त। साथ मिलाया हुआ। २. संग्रहीत। एकत्रित किया हुआ। ३. सहित। युक्त। अन्वित [को०]।

समायोग
संज्ञा पुं० [सं०] १. संयोग। २. बहुत से लोगों का एक साथ एकत्र होना। ३. तैयारी (को०)। ४. (धनुष पर) बाण संधान करना (को०)। ५. कारण। प्रयोजन। उद्देश्य (को०)। ६. राशि। ढेर (को०)।

समारंभ
संज्ञा पुं० [सं० समारम्भ] १. अच्छी तरह आरंभ होना। २. समारोह (क्व०)। ३. दे० 'समालंभ'। अंगलेप। ४. उद्योग। साहसिक कार्य (को०)। ५. उद्योग का उत्साह। साहस- पूर्ण कार्य करने का उत्साह या भावना (को०)।

समारंभण
संज्ञा पुं० [सं० समारम्भण] १. गले लगाना। आलिंगन। २. अंगलेपन। समालंभन (को०)।

समारब्ध
वि० [सं०] १. शुरू किया हुआ। २. जो हो चुका हो। घटित। ३. जिसने आरंभ किया हो। आरंभक [को०]।

समारभ्य
वि० [सं०] समारंभ करने योग्य।

समाराधन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह आराधना या उपासना करना। २. सेवा। टहल (को०)। ३. संतुष्टि या प्रसादन का साधन (को०)।

समारूढ़
वि० [सं० समारूढ़] १. किसी पर चढ़ने या आरूढ़ होनेवाला। २. चढ़ा हुआ। आरूढ़। सवार। ३. जिसने स्वीकार कर लिया हो। राजी। ४. बढ़ा हुआ। वर्द्धित। ५. (घाव) जो भरा हुआ हो [को०]।

समारोप
संज्ञा पुं० [सं०] १. चढ़ाना। रोपण करना। जैसे,—धनुष। २. स्थानांतरण। स्थल परिवृत्ति (को०)। ३. दे० 'आरोप'।

समारोपक
वि० [सं०] १. वर्धन करनेवाला। वर्धक। २. समारोप करनेवाला। ३. रोपने या उपजानेवाला [को०]।

समारोपण
संज्ञा पुं० [सं०] १. तानना या चढ़ाना। जैसे,—धनुष (को०)। २. दे० 'आरोपण'।

समारोपित
वि० [सं०] १. चढ़ाया हुआ। ताना हुआ। जैसे,—धनुष। २. किसी को दिया हुआ। प्रदत्त। ३. दे० 'आरोपित' [को०]।

समारोह
संज्ञा पुं० [सं०] १. आडंबर। तड़क भड़क। धूम धाम। २. कोई ऐसा कार्य या उत्सव जिसमें बहुत धूमधाम हो। ३. स्वीकरण। स्वीकार (को०)। ४. चढ़ना। दे० 'आरोह'।

समारोहण
संज्ञा पुं० [सं०] १. केंशों का बढ़ाना। बाल बढ़ना। २. आरोहण या सवार होने की क्रिया। ३. यज्ञ की अग्नि का स्थानांतरण [को०]।

समार्थ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] समान अर्थवाला शब्द। पर्य्याय।

समार्थ (२)
वि० जो समान अर्थवाला हो [को०]।

समार्थक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] समान अर्थवाला शब्द। पर्य्याय।

समार्थक (२)
वि० दे० 'समार्थ (२)' [को०]।

समार्थी
वि० [सं० समार्थिन्] १. समता या बराबरी की इच्छुक। २. शांति का अन्वेषक। शांति की कामनावाला [को०]।

समार्ष
वि० [सं०] एक ही प्रवर से संबंधित। जो समान प्रवरवाला हो [को०]।

समालंब
संज्ञा पुं० [सं० समालम्ब] रोहिष तृण। रूसा नामक घास।

समालंबन
संज्ञा पुं० [सं० समालम्बन] आलंबन करना। टेक लेना। सहारा लेना [को०]।

समालंबित
वि० [सं० समालम्बित] किसी के सहारे टिका हुआ। आश्रित। टँगा हुआ। लगा हुआ [को०]।

समालंबिनी
संज्ञा स्त्री० [सं० समालम्बिनी] एक तृण [को०]।

समालंबी (१)
संज्ञा पुं० [सं० समालम्बिन्] भू तृण।

समालंबी (२)
वि० पराश्रयी। परावलंबी [को०]।

समालंभ
संज्ञा पुं० [सं० समालम्भ] १. शरीर पर केशर आदि का लेप करना। २. मार डालना। हत्या करना। ३. ग्रहण करना। पकड़ना (को०)। ४. (यज्ञ में) पशु को बलि के लिये पकड़ना (को०)।

समालंभन
संज्ञा पुं० [सं० समालम्भन] दे० 'समालंभ'।

समालक्ष्य
वि० [सं०] जो दिखाई पड़े। दिखाई पड़नेवाला। व्यक्त। गोचर [को०]।

समालब्ध
वि० [सं०] १. जो पकड़ में आ गया हो। गृहीत। २. संपर्क में आया हुआ [को०]।

समालाप
संज्ञा पुं० [सं०] अच्छी तरह बातचीत करना।

समालिंगन
संज्ञा पुं० [सं० समालिङ्गन] [वि० समालिंगित] कसकर आलिंगन करना। गाढ़ालिंगन [को०]।

समालिप्त
वि० [सं०] अच्छी तरह लिप्त या पुता हुआ। लेप किया हुआ [को०]।

समाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] पुष्पगुच्छ। फूलों का गुच्छा। कुसुम का स्तबक। गुलदस्ता [को०]।

समालोक
संज्ञा पुं० [सं०] १. अवलोकना। देखना। २. कल्पना। चिंतन। मनन [को०]।

समालोकन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह देखना। निरीक्षण। २. सोचना। विचारना। मनन। चिंतन (को०)।

समालोकी (१)
संज्ञा पुं० [सं० समालोकिन्] १. वह जो किसी चीच को अच्छी तरह देखता हो।

समालोकी (२)
वि० १. किसी वस्तु का अच्छी तरह निरीक्षण करनेवाला। २. सोचने विचारनेवाला। चिंतन मनन करनेवाला [को०]।

समालोच
संज्ञा पुं० [सं०] बातचीत। संभाषण। संलाप [को०]।

समालोचक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो किसी चीज के गुण और दोष देखकर बतलाता हो। २. वह जो कृति के दोष गुण आदि को विवेचित करता हो। समालोचना करनेवाला। ३. अच्छी तरह देखनेवाला।

समालोचन
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समालोचना'।

समालोचना
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अच्छी तरह देखने की क्रिया। खूब देखना भालना। २. किसी पदार्थ के दोषों और गुणों को अच्छी तरह देखना। यह देखना कि किसी चीज में कौनसी बातें अच्छी और कौन सी खराब हैं; विशेषतः किसी पुस्तक के गुण और दोष आदि देखना। ३. वह कथन लेख या निबंध आदि जिसमें इस प्रकार गुणों और दोषों की विवे- चना हो। आलोचना।

समालोची
संज्ञा पुं० [सं० समालोचिन्] वह जो किसी चीज के गुण और दोष देखता हो। समालोचना करनेवाला।

समावर्जन
संज्ञा पुं० [सं०] वशीभूत करना। अपनी ओर करना या खींचना। आकृष्ट करना [को०]।

समावर्जित
वि० [सं०] झुकाया हुआ। जिसे झुका दिया गया हो। कृतनम्र [को०]।

समावर्त्त
संज्ञा पुं० [सं०] १. वापस आना। लौटना। २. दे० 'समा- वर्तन'। ३. विष्णु (को०)।

समावर्त्तन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० समावर्तनीय] १. वापस आना। लौटना। २. गुरुकुल में विद्याध्ययन करके ब्रह्मचारी का गुरु की अनुमति से अपने घर वापस जाना। ३. प्राचीन वैदिक काल का एक प्रकार का संस्कार। समावर्तन संस्कार। विशेष—यह संस्कार उस समय होता था जब बालक या ब्रह्म- चारी नियत समय तक गुरुकुल में रहकर और वेदों तथा अन्यान्य विद्याओं का अच्छी तरह अध्ययन करने के उपरांत स्नातक बनकर घर लौटता था। इस संस्कार के समय कुछ हवन आदि होते थे। यौ०—समावर्तन संस्कार = दे० 'समावर्तन'-३।

समावर्तनीय
वि० [सं०] १. लौटने योग्य। वापसी के लायक। २. जो समावर्तन संस्कार करने योग्य हो गया हो।

समावर्तमान
वि० [सं०] दे० 'समावर्त्तीं'।

समावर्त्ती
वि० [सं० समावर्त्तिन्] १. अध्ययन समाप्त कर गुरुकुल से लौटनेवाला। २. लौटने या वापस होनेवाला।

समावह
वि० [सं०] १. जो उत्पन्न या प्रस्तुत करे। २. जो किसी (कार्य या व्याधि) का कारणभूत हो [को०]।

समावाय
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समवाय'।

समावास
संज्ञा पुं० [सं०] १. निवास स्थान। घर। २. ठहरने का स्थान। ३. शिबिर। पड़ाव [को०]।

समावासित
वि० [सं०] १. ठहराया या टिकाया हुआ। २. बसाया हुआ [को०]। यौ०—समावासित कटक = वह जिसने सेना को शिबिर करने का आर्दश दिया हो।

समाविग्न
वि० [सं०] १. भीत या डर हुआ। २. उद्वेल्लित। क्षुब्ध। विह्वल। कंपित [को०]।

समाविद्ध
वि० [सं०] १. जिसका संयोग या संघटन हुआ हो। २. विह्वल। क्षोभयुक्त। आकुल (को०)। ३. क्षीण (को०)।

समाविष्ट
वि० [सं०] १. जिसका समावेश हुआ हो। समाया हुआ। २. जिसका चित्त किसी एक ओर लगा हुआ हो। एकाग्र चित्त। ३. गृहीत। ग्रहण किया हुआ (को०)। ४. भूतप्रेते आदि के आवेश से ग्रस्त। भूताविष्ट (को०)। ५. संयुक्त। युक्त। संपन्न। सहित (को०)। ६. निश्चित। स्थिर किया हुआ (को०)। ७. पूर्णतः शिक्षित या सुनिर्दिष्ट (को०)। ८. पूर्णतः आच्छादित, प्रभावित या आवेष्टित (को०)।

समावी
वि० [अ०] आकस्मिक। आसमानी। दैवी।

समावृत्त
वि० [सं०] १. अच्छी तरह ढका या छाया हुआ। २. घिरा हुआ। लपेटा हुआ। वलयित (को०)। ३. सुरक्षित। अवरुद्ध या बंद किया हुआ (को०)। ४. रोका हुआ (को०)। ५. आकीर्ण। विकीर्ण (को०)।

समावृत्त (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो विद्या अध्ययन करके, समावर्तन संस्कार के उपरांत, घर लौट आया हो। जिसका समावर्तन संस्कार हो चुका हो।

समावृत्त (२)
वि० [सं०] १. पूर्ण या किया हुआ। २. लौटा हुआ। वापस (को०)। ३. जुटना। एकत्र होना। ४. जो गुरुकुल से लौटा हो [को०]।

समावृत्तक
संज्ञा पुं० [सं०] गुरुकुल से शिक्षा समाप्त कर लौटा हुआ स्नातक। दे० 'समावृत्त' [को०]।

समावृत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दे० 'समावर्त्तन'। २. पूर्णता। समाप्ति (को०)।

समावेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ या एक जगह रहना। २. एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ के अंतर्गत होना। जैसे,—इस एक ही आपत्ति में आपकी सब आपत्तियों का समावेश हो जाता है। ३. चित्त को किसी एक ओर लगाना। मनोनिवेश। ४. मिलना। साहचर्य (को०)। ५. घुसना। प्रवेश करना (को०)। ६. प्रेतावेश (को०)। ७. प्रणयोन्माद। भावावेश (को०)। ८. मतैक्य (को०)। ९. व्याप्त होना (को०)।

समावेशन
संज्ञा पुं० [सं०] १. घुसना। बैठना। २. विवाह की संसिद्धि, संपन्नता या पूर्णावस्था [को०]।

समावेशित
वि० [सं०] १. जिसका समावेश किया गया हो (को०)। २. खचित। जड़ा हुआ। जटित (को०)। ३. दे० 'समाविष्ट'।

समाश
संज्ञा पुं० [सं] अशन। खाना। भोजन [को०]।

समाश्रय
संज्ञा पुं० [सं०] १. आश्रय। सहारा। २. सहायता। मदद। ३. आश्रय स्थान। शरण। शरण गृह (को०)। ४. निवास। घर (को०)। ५. शरण या सहारा ढूँढना (को०)।

समाश्रयण
संज्ञा पुं० [सं०] १. 'समाश्रय'। २. चयन। चुनना [को०]।

समाश्रित (१)
वि० [सं०] १. जिसने किसी स्थान पर अच्छी तरह आश्रय ग्रहण किया हो। २. जो सहारे पर हो। अवलंबित (को०)। ३. निवसित। बसा हुआ। अधिष्ठत (को०)। ४. सज्जित किया हुआ। जैसे,—कक्ष या घर (को०)। ५. एकत्रित (को०)।

समाश्रित (२)
संज्ञा पुं० सेवक। भृत्य [को०]।

समाश्लिष्ट
वि० [सं०] १. भली भाँति आलिंगित। २. संलग्न। चिपका या लगा हुआ [को०]।

समाश्लेष
संज्ञा पुं० [सं०] गाढ़ आलिंगन [को०]।

समाश्वस्त
वि० [सं०] जिसे तसल्ली हो गई हो। सांत्वना प्राप्त। आश्वस्त। २. प्रोत्साहित [को०]।

समाश्वास
संज्ञा पुं० [सं०] १. संतोष होना। जी में जी आना। ढाढ़स बँधना। २. आस्था। भरोसा। विश्वास। ३. प्रोत्साहन। बढ़ावा [को०]।

समाश्वासन
संज्ञा पुं० [सं०] १. ढाँढ़स बँधाना। संतोष देना। २. उत्साह बढ़ानाः [को०]।

समासंग
संज्ञा पुं० [सं० समासङ्ग] १. मिलन। मिलाप। मेल। २. लगाव। साहचर्य (को०)। ३. किसी के जिम्मे करना। काम सौंपना (को०)।

समासंजन
संज्ञा पुं० [सं० समासञ्जन] १. मिलाना। संयुक्त करना। २. खचित करना। जड़ना या रखना। ३. लगाव। मेल। संपर्क। संयोग [को०]।

समास
सं० पुं० [सं०] १. संक्षेप। २. समर्थन। ३. संग्रह। ४. पदार्थों का एक में मिलाना। संमिलन। ५. व्याकरण में दो या अधिक शब्दों का संयोग। शब्दों का कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार आपस में मिलकर एक होना। जैसे,—'प्रेमसागर' शब्द प्रेम और सागर का, 'पराधीन' शब्द पर और अधीन का, 'लंबोदर' शब्द लंब और उदर का सामासिक रूप है। विशेष—शब्दों का यह पारस्परिक संयोग संधि के नियमों के अनुसार होता है। हिंदी में चार प्रकार के समास होते हैं—(१) अव्ययी भाव जिसमें पहला शब्द प्रधान होता है और जिसका प्रयोग क्रियाविशेषण के समान होता है। जैसे,—यथाशक्ति, यावज्जीवन, प्रतिदिन आदि; (२) तत्पुरुष जिसमें पहला शब्द संज्ञा या विशेषण होता है और दूसरे शब्द की प्रधानता रहती है। जैसे,—ग्रंथकर्ता, निशाचर, राजपुत्र आदि; (३) समाना- धिकरण तत्पुरुष या कर्मधारय जिसमें दोनों या तो विशेष्य और विशेषण के समान या उपमान और उपमेय के समान रहते हैं और जिनका विग्रह होने पर परवर्ती एक ही विभक्ति से काम चलता है। जैसे,—छुटभैया, अधमरा, नवरात्र, चौमासा आदि और (४) द्वंद्व जिसमें दोनों शब्द या उनका समाहार प्रधान होता है। जैसे,—हरिहर, गायबैल, दालभात, चिट्ठी- पत्नी, अन्नजल, आदि। ६. मतभेद दूर करना। अंतर दूर करना। विवाद मिटाना (को०)। ७. संग्रह। संघात (को०)। ८. पूर्णता। समष्टि (को०)। ९. संधि। दो शब्दों का व्याकरण के नियमानुसार एक में मिलना (को०)। १०. संक्षेपण (को०)। यौ०—समासप्राय। समासबहुल।

समासक्त
वि० [सं०] १. लगा हुआ। जुड़ा हुआ। अनुस्यूत। २. अनुरागयुक्त। आसक्त। ३. पहुँचा हुआ। प्राप्त। ४. प्रभावित। ५. रुका हुआ। ठहरा हुआ। (प्रभाव या असर करने में) जैसे, विष [को०]।

समासक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लगाव। संबंध। २. अनुरक्ति। आसक्ति। ३. दे० 'समासंग' [को०]।

समासत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] नजदीक होने का भाव। समीपता [को०]।

समासन
संज्ञा पुं० [सं०] १. पटपर या सम भूमि पर बैठने की क्रिया। २. (कई लोगों का) एक साथ बैठना [को०]।

समासन्न
वि० [सं०] १. प्राप्त। पहुँचा हुआ। जो आ गया हो। २. नजदीकवाला। जो पास हो [को०]।

समासपर
संज्ञा पुं० [सं०] १. भोजराजा के एक प्राचीन नगर का नाम। २. दे० 'समासप्राय'।

समासप्राय
वि० [सं०] पद या छंद आदि जिसमें समास की बहुलता हो।

समासबहुल
वि० [सं०] दे० 'समासप्राय'।

समासम
वि० [सं०] जो सम और असम हो [को०]।

समासर्जन
संज्ञा पुं० [सं०] १. पूर्णतः परित्याग या छोड़ना। २. दे देना। अर्पित करना। न्यस्त या सुपुर्द करना [को०]।

समासवान् (१)
वि० [सं० समासवत्] जिनमें समास हो। समास युक्त। समासवाला [को०]।

समासवान् (२)
संज्ञा पुं० [सं०] एक बहुत बड़ा पेड़। तुन नामक वृक्ष। विशेष दे० 'तुन' [को०]।

समासादन
संज्ञा पुं० [सं०] १. निकट होना या पहुँचना। २. प्राप्त करना या होना। मिल जाना। ३. संपन्न करना। पूर्ण करना [को०]।

समासादित
वि० [सं०] १. निकटस्थ। समीपस्थ। २. जो पहुँच गया हो। ३. आसादित। प्राप्त। लब्ध। ४. पूर्ण या सिद्ध किया हुआ (को०)।

समासार्था
संज्ञा स्त्री० [सं०] किसी छंद का वह अंतिमांश जिसके आधार पर छंद पूरा किया जाय। समस्या [को०]।

समासीन
वि० [सं०] १. अच्छी तरह बैठा हुआ। २. एक साथ बैठा हुआ [को०]।

समासोक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का अर्थालंकार जिसमें समान कार्य, समान लिंग और समान विशेषण आदि के द्वारा किसी प्रस्तुत वर्णन से अप्रस्तुत का ज्ञान होता है। जैसे,— 'कुमुदिनिहू प्रफुलित भई, साँझ कलानिधि जोय' यहाँ प्रस्तुत 'कुमुदिनी' से नायिका का और 'कलानिधि' से नायका का ज्ञान होता है।

समास्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कार्य काल। सत्र। २. साक्षात्कार। मुलाकात। ३. एक साथ बैठने की क्रिया [को०]।

समाहत
वि० [सं०] १. मिला हुआ। जुड़ा हुआ। २. घायल। चोट खाया हुआ। ३. आघातित। मारा हुआ। पीटा हुआ। जैसे,—नगाड़ा, धौंसा आदि। ४. एक साथ आघातित या प्रहा- रित [को०]।

समाहनन
संज्ञा पुं० [सं०] हनन या मारने की क्रिया [को०]।

समाहर
वि० [सं०] विध्वंसक। विनाशक [को०]।

समाहरण
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समाहार'।

समाहर्त्ता
संज्ञा पुं० [सं० समाहर्त्ता] १. समाहार करनेवाला। २. वह जो किसी चीज का संक्षेप करता हो। ३. मिलानेवाला। ४. कौटिल्य के अनुसार प्राचीन काल का राजकर एकत्र करनेवाला प्रधान कर्मचारी। विशेष—चंद्रगुप्त के समय में इसका मासिक वेतन २००० पण था। यह जनपद को चार भागों में विभक्त करके और ग्रामों का ज्येष्ठ, मध्यम और कनिष्ठ के नाम से विभाग करके करों के रजिस्टर में निम्नलिखित वर्गीकरण करता था— परिहारक, आयुधिक, धान्यकर, पशुकर, हिरणयकर, कुप्यकर, विशिष्टकर और प्रतिकर। इनमें से प्रत्येक के लिये वह 'गोप' नियुक्त करता था, जिनके अधिकार में पाँच से दस गाँव तक रहते थे। इन गोपों के ऊपर स्थानिक होते थे।

समाहर्त्ता (२)
वि० १. समाहार करनेवाला। संग्राहक। २. मिलानेवाला।

समाहर्तृपुरुष
संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार समाहर्ता का कारिंदा।

समाहार
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत सी चीजों को एक जगह इकट्ठा करना। संग्रह। २. समूह। राशि। ढेर। ३. मिलना। मिलाप। ४. शब्दों या वाक्यों का परस्पर संयोग (को०)। ५. द्वंद्व और द्विगु समासों का समष्टिविधायक एक उपभेद (को०)। ६. संक्षेपण। संकोचन (को०)। ७. वर्णमाला के दो अक्षरों का शब्दांश में योग। प्रत्याहार (को०)।

समाहारद्वंद्व
संज्ञा पुं० [सं० समाहारद्वन्द्व] एक प्रकार का द्वंद्व समास। वह द्वंद्व समास जिससे उसके पादों के अर्थ के सिवा कुछ और अर्थ भी सूचित होता हो। जैसे,—सेठसाहूकार, हाथपाँव, दालरोटी आदि। इनमें से प्रत्येक के उनके पादों के अर्थ के सिवा उसी प्रकार के कुछ और व्यक्तियों या पदार्थों का भी बोध होता है।

समाहित (१)
वि० [सं०] १. रोका हुआ। पकड़ा हुआ। अधिकृत। २. जोड़ा हुआ। लगाया हुआ। जैसे,—आग में ईंधन। ३. संयो- जित। ४. संकलित। ५. संचित किया हुआ। ६. व्यवस्थित। ७. प्रतिपादित किया हुआ। प्रतिपन्न। ८. स्वीकार किया हुआ। ९. समंजित। जिसमें सामंजस्य स्थापित किया गया हो। १०. दबाया हुआ। कम किय हुआ। जैसे,—उठता हुआ स्वर। ११. तै किया हुआ (को०)। १२. शांत (मन) (को०)। १३. प्रवृत्त। लीन (को०)। १४. सुपुर्द किया हुआ (को०)। १५. समान। सदृश। अनुरूप (को०)। १६. समभाव का। एक ही जैसा (को०)। १७. समध्वनित। संवादी। संगत (को०)। १८. भेजा हुआ। प्रेषित (को०)। यौ०—समाहितधी, समाहितबुद्धि, समाहितमति = स्थिर बुद्धि। समाहितमना (मनस्) = स्थिर चित्त।

समाहित (२)
संज्ञा पुं० १. एकाग्रचित्त होना। एकनिष्ठता। २. वह व्यक्ति जिसकी बुद्धि पुण्यमय हो। पुण्यात्मा [को०]।

समाहूत
वि० [सं०] [स्त्री० समाहूता] १. जिसे बुलाया या निमंत्रित किया गया हो। १. लड़ने या खेलने के लिये चुनौती दिया या पाया हुआ। जिसे ललकारा गया हो [को०]।

समाह्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो समान नाम का हो। समान नामवाला। २. ललकार। आह्वान। चुनौती। ३. आमंत्रण। बुलाना [को०]।

समाह्वय
संज्ञा पुं० [सं०] १. पशु पक्षियों (तीतर, वटेर, हाथी, शेर, भैंसे आदि) को लड़ाने और उनकी हार जीत पर बाजी लगाने का खेल। विशेष—इसके संबंध में अर्थशास्त्र तथा स्मृतियों में अनेक नियम हैं। २. चुनौती। चैलेंज। ललकार (को०)। ३. संग्राम। युद्ध (को०)। ४. द्वंद्वं युद्ध। मल्ल युद्ध (को०)। ५. नाम। अभिधान (को०)।

समाह्वा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गोजिया या बनगोभी नाम की घास। गोजिह्वा। २. आख्या। नाम। अभिधान (को०)।

समाह्वाता
वि०, संज्ञा पुं० [सं० सामाह्वातृ] १. पुकारनेवाला। बुलानेवाला। २. चैलेंज करनेवाला। चुनौती देनेवाला [को०]।

समाह्वान
संज्ञा पुं० [सं०] १. आह्वान। बुलाना। २. जूआ खेलने के लिये किसी को बुलाना या ललकारना। ३. दे० 'समाह्वय'—१। ४. चुनौती। ललकार (को०)।

समिंधन
संज्ञा पुं० [सं० समिन्धन] (आग, दीया आदि) प्रज्वलित करना। सुलगाना। २. ईंधन। ३. शोथ, सूजन या उभाड़ आदि का कारण [को०]।

समिक
संज्ञा पुं० [सं०] लंबा, और धारदार कोई भी हथियार। साँगु, कुंत, बरछा आदि [को०]।

समित्
संज्ञा पुं० [सं०] १. मेल। साथ। मिलाप (को०)। २. अग्नि (को०)। ३. युद्ध। समर। लड़ाई।

समित
वि० [सं०] १. साथ आया या मिला हुआ। २. एकत्रित। पुंजीभूत। ३. संबंधित। संयुक्त। संलग्न। ४. सन्निहित। समी- पवर्ती। समीपस्थ। ५. समानांतर। तुल्य। सदृश। ६. प्रति- श्रुत। अंगीकृत। ७. खत्म किया हुआ। पूर्ण या समाप्त किया हुआ। ८. मापा हुआ [को०]।

समिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुत महीन पीसा हुआ आटा। मैदा।

समितिंजय
संज्ञा पुं० [सं० समितिञ्जय] वह जिसने युद्ध में विजय प्राप्त की हो। युद्धजयी। २. वह जिसने किसी सभा आदि में विजय प्राप्त की हो। ३. यम। ४. विष्णु।

समिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सभा। समाज। २. प्राचीन वैदिक काल की एक प्रकार की संस्था जिसमें राजनीतिक विषयों पर विचार हुआ करता था। ३. किसी विशिष्ट कार्य के लिये नियुक्त की हुई कुछ आदमियों की सभा। ४. युद्ध। संमर। लड़ाई। ५. समानता। साम्य। ६. सन्निपात नामक रोग। ७. इकट्ठा होना। जुटना। मिलना (को०)। ८. झुंड। रेवड़(को०)। ९. संतुलित करना। मर्यादित करना (को०)। १०. आचारपद्धति। आचारसंहिता (जैन)। यौ०—समितिमर्दन = युद्ध में परेशान करनेवाला। समिति- शाली = वीर। योद्धा। समितिशोभन = युद्ध में प्रमुख या श्रेष्ठ।

समित्कलाप
संज्ञा पुं० [सं०] लकड़ियों, ईंधन का गट्ठर [को०]।

समित्काष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] ईंधन। चैला। लकड़ी [को०]।

समित्पांथ
संज्ञा पुं० [सं० समित्पान्थ] अनल। आग। पावक [को०]।

समित्पूल
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समित्कलाप'।

समिथ
संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि। २. आहुति। ३. युद्ध। समर। लड़ाई। ४. जुटाव। सभा। समिति (को०)।

समिदाधान
संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि में ईंधन डालना। २. अग्नि में समिधा डालना जो ब्रम्हचारी का दैनिक कृत्य है [को०]।

समिद्ध
वि० [सं०] १. जलता हुआ। प्रज्वलित। प्रदीप्त। २. उत्तेजनायुक्त। उत्तेजित (को०)। ३. अग्नि में डाला हुआ। अग्नि में न्यस्त (को०)। ४. आढय। पूर्ण (को०)। यौ०—समिद्धकांति = जिसकी कांति दीप्त हो। समिद्धदर्प = अभिमान के कारण उत्तेजित। गर्व से स्फीत। समिद्धहोम = हवन। आहुति।

समिद्धन
संज्ञा पुं० [सं०] १. जलाने की लकड़ी। ईंधन। २. जलाने की क्रिया। सुलगाना। ३. उत्तेजना देना। उद्दीपन।

समिध्
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. आग जलाने की लकड़ी। ईंधन। २. यज्ञकुंड में जलाने की लकड़ी। समिधा।

समिध
संज्ञा पुं० [सं०] १. अग्नि। २. दे० 'समिध्' (को०)।

समिधा
संज्ञा स्त्री० [सं० समिध्] दे० 'समिध्', 'समिधि'।

समिधि पु
संज्ञा स्त्री० [सं० समिध] लकड़ी विशेषतः यज्ञकुंड में जलाने की लकड़ी। उ०—(क) प्रेम वारि तरपन भलो घृत सहज सनेह। संसय समिधि अगिनि छमा समता बलि देह।—तुलसी (शब्द०)। (ख) समिधि सेन चतुरंग बिहाई। महा महीप भए पसु आई।—मानस, १।२८३।

समिर
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समीर'।

समिश्र
वि० [सं०] मिला हुआ। मिश्रित होनेवाला [को०]।

समिष्
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र।

समीक
संज्ञा पुं० [सं०] युद्ध। समर। लड़ाई।

समीकरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. समान करने की क्रिया। तुल्य या बराबर करना। २. आत्मसात् करना (को०)। ३. गणित में एक विशेष प्रकार की क्रिया जिससे किसी व्यक्त या ज्ञात राशि की सहायता से किसी अव्यक्त या अज्ञात राशि का पता लगाया जाता है। ४. गणित में (भिन्न या किसी सवाल को) हल करना या सरल करना। ५. भूमि समतल करने का साधन। पाटा या हेंगा जिससे क्षेत्र समतल किया जाता है (को०)।

समीकार
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो छोटी बड़ी, ऊँची नीची या अच्छी बुरी चोजों को समान करता हो। बराबर करनेवाला। २. समान करने की क्रिया (को०)। ३. गणित में समीकरण।

समीकृत
वि० [सं०] १. समान किया हुआ। बराबर किया हुआ। २. जोड़ा या योग किया हुआ (को०)।

समीकृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. समान या तुल्य करने की क्रिया। समीकरण। २. वजन करना। तौलना।

समीक्रिया
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'समीकरण'।

समीक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह देखने की क्रिया। २. दर्शन। ३. अन्वेषण। जाँच पड़ताल। ४. विवेचन। ५. सांख्य शास्त्र जिसके द्वारा प्रकृति और पुरुष का ठीक ठीक स्वरूप दिखाई देता है। ६. पूर्ण ज्ञान (को०)।

समीक्षक
वि० [सं०] १. समीक्षा करनेवाला। समालोचक। २. निरीक्षक। अच्छी तरह देखनेवाला।

समीक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] १. दर्शन। देखना। २. अनुसंधान। अन्वेषण। जाँच पड़ताल। ३. आलोचना।

समीक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] [वि० समीक्षित, समीक्ष्य] १. अच्छी तरह देखने की क्रिया। २. देखने की आकांक्षा। दिदृक्षा (को०)। ३. दृष्टि। चितवन। निगाह। नजर (को०)। ४. आलोचना। समालोचना। ५. प्रज्ञा। बुद्धि। मति। ६. यत्न। कोशिश। ७. विचार। संमति। राय (को०)। ८. अनुसंधान। अन्वेषण (को०)। ९. आत्मविद्या। आत्मा संबधी ज्ञान (को०)। १०. सत्य का आधारभूत या मौलिक रूप (को०)। ११. मूल- भूत सिद्धांत (को०)। १२. मीमांसा शास्त्र। १३. सांख्य में बतलाए हुए पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, अहंकार आदि तत्व।

समीक्षित
वि० [सं०] १. भली भाँति देखा परखा हुआ। २. जिसकी समीक्षा या समालोचना की गई हो।

समीक्ष्य
वि० [सं०] समीक्षा करने के योग्य। भली भाँति देखने के योग्य।

समीक्ष्यकारी
वि० [सं० समीक्ष्यकारिन्] अच्छी तरह सोच समझ कर काम करनेवाला [को०]।

समीक्ष्यवादी
संज्ञा पुं० [सं० समीक्ष्यवादिन्] वह जो किसी विषय को अच्छी तरह जाँच या समझ कर कोई बात कहता हो।

समीच
संज्ञा पुं० [सं०] १. जलनिधि। समुद्र। सागर। २. शशि। चंद्रमा [को०]।

समीचक
संज्ञा पुं० [सं०] प्रसंग। मैथुन। संभोग।

समीची
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. स्तव। गुणगान। वंदना। २. हरिणी। मृगी (को०)।

समीचीन (१)
वि० [सं०] १. यथार्थ। ठीक। २. उचित। वाजिब। ३. न्यायसंगत। ४. सत्य। सही (को०)।

समीचीन (२)
संज्ञा पुं० १. सत्य। २. गरिमा [को०]।

समीचीनता
संज्ञा स्त्री० [सं०] समीचीन होने का भाव या धर्म।

समीचीनत्व
संज्ञा पु० [सं०] दे० 'समीचीनता'।

समीति, समीती
संज्ञा स्त्री० [सं० समिति] दे० 'समिति'। उ०—राग रोष इरषा बिमोह बस रुची न साधु समीति।—तुलसी (शब्द०)।

समीद
संज्ञा पुं० [सं०] मैदा। गेहूँ का बहुत महीन आटा [को०]।

समीन
वि० [सं०] १. वार्षिक। सालाना। २. जो एक वर्ष के लिये भाड़े पर लिया गया हो। ३. एक साल का (को०)।

समीनिका
संज्ञा [सं०] वह गौ जो प्रति वर्ष बच्चा देती हो। हर साल ब्यानेवाली गाय।

समीप (१)
वि० [सं०] दूर का उलटा। पास। निकट। नजदीक।

समीप (२)
संज्ञा पुं० सामीप्य। निकटता [को०]।

समीपता
संज्ञा स्त्री० [सं०] समीप का भाव या धर्म।

समीपवर्ती
वि० [सं० समीपवर्त्तिन्] समीप का। पास का। नजदीक।

समीपसप्तमी
संज्ञा पुं० [सं०] समीपता का व्यंजक कारक। सप्तमी विभक्ति।

समीपस्थ
वि० [सं०] जो समीप में हो। पास का।

समीभाव
संज्ञा पुं० [सं०] सहज स्थिति। सम भाव में होना [को०]।

समय
वि० [सं०] १. तुल्य। समान। २. समान कारण होने से एक सा समझा जानेवाला। ३. जो एक ही मूल का हो। ४. समान या तुल्य संबंधी। सम सबंधी [को०]।

समीर
संज्ञा पुं० [सं०] १. वायु। हवा। २. वायु देवता (को०)। ३. शमी वृक्ष। ४. प्राणवायु जिसे योगी वश में रखते हैं। उ०—कछु न साधन सिधि जानौं न निगम विधि नहिं जप तप बस न समीर।—तुलसी (शब्द०)।

समीरण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वायु। हवा। २. गंध तुलसी। मरुआ। ३. रास्ता चलनेवाला। पथिक। बटोही। ४. प्रेरणा। ५. श्वास। साँस (को०)। ६. शरीरस्थ प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान नामक पाँच वायु (को०)। ७. पाँच की संख्या (को०)। ८. वायु देवता (को०)। ९. भेजना। प्रेषण (को०)।

समीरण (२)
वि० गतिशील या प्रेरित करनेवाला। उद्दीप्त करनेवाला [को०]।

समीरसूनु
संज्ञा पुं० [सं०] वायुपुत्र। हनुमान। उ०—राम की रजाय तें रसायनी समीरसूनु उतरि पयोधि पार सोधि सखाक सो।— तुलसी ग्रं०, पृ० १७१।

समीरित
वि० [सं०] १. क्षुब्ध। उत्प्रेरित। २. उच्चारित (शब्द या स्वर)।

समीसर पु †
संज्ञा पुं० [सं० शनैश्चर, हिं० सनीचर] शनैश्चर। शनि। उ०—रा० रू०, पृ० २७२।

समीहन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु का एक नाम।

समीहन (२)
वि० लालायित। ईर्ष्यालु। उत्सुक [को०]।

समोहा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. उद्योग। प्रयत्न। चेष्टा। कोशिश। २. इच्छा। ख्वाहिश। ३. अनुसंधान। तलाश। जाँच पड़ताल।

समीहित (१)
वि० [सं०] अभिलषित। आकांक्षित। इच्छित। २. प्रारंभ किया हुआ। शुरू किया हुआ। ३. जिसके लिये चेष्टा या प्रयत्न किया गया हो [को०]।

समीहित (२)
संज्ञा पुं० अभिलाषा। आकांक्षा। स्पृहा। २. प्रयत्न। कोशिश। चेष्टा [को०]।

समुंद पु
संज्ञा पुं० [सं० समुद्र] समुद्र।

समुंदन
संज्ञा पुं० [सं० समुन्दन] १. गीलापन। सीलन। तरी। २. पूरी तरह आर्द्र या तर होना [को०]।

समुंदर
संज्ञा पुं० [सं० समुद्र] दे० 'समुद्र'।

समुंदरफल
संज्ञा पुं० [हिं० समुंदर + फल] मझोले आकार का एक प्रकार का वृक्ष। इंजर। विशेष—यह वृक्ष रुहेलखंड और अवध के जंगलों में झरनों के किनारे और नम जमीन पर होता है। बंगाल में भी यह अधिकता से होता है और दक्षिण भारत में लंका तक पाया जाता है। कहीं कहीं लोग इसे शोभा के लिये बागों में भी लगाते हैं। इसकी लकड़ी से प्रायः नावें बनती हैं। ओषध में भी इसकी पत्तियों और छाल आदि का व्यवहार होता है।

समुंदरफूल
संज्ञा पुं० [हिं० समुंदर + फूल] एक प्रकार का विधारा। वृद्धदारुक। विशेष—वैद्यक के अनुसार यह मधुर, कसैला, शीतल और कफ, पित्त तथा रुधिरविकार को दूर करनेवाला और गर्भिणी की पीड़ा हटनेवाला होता है।

समुंदरसोख
संज्ञा पुं० [हिं० समुंदर + सोखना] एक प्रकार का क्षुप जो प्रायः सारे भारत में थोड़ा बहुत पाया जाता है। विशेष—समुंदरसोख के पत्ते तीन चार अंगुल लंबे, अंडाकार और नुकीले होते हैं। इसकी डालियों के अंत में छोटे छोटे बीज होते हैं। वैद्यक में यह वातकारक, मलरोधक, पित्तकारक तथा कफकारक कहा गया है ।

समुक्त
वि० [सं०] १. जिसे कहा गया हो। उक्त। कथित। २. जिसकी लानत मलामत की गई हो। तिरस्कृत। भर्त्सित। निंदित [को०]।

समुक्षण
संज्ञा पुं० [सं०] १. सींचने या जल आदि छिड़कने की क्रिया। तरबतर करना। २. नाँखना। ढुलकाना। गिराना [को०]।

समुक्षित
वि० [सं०] १. अच्छी तरह छिड़का या सींचा हुआ। तर किया हुआ। २. जिसे उत्तेजना या बढ़ावा दिया गया हो। उत्साहित [को०]।

समुख (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो अच्छी तरह बातें करना जानता हो। वाग्मी। वाक्पटु।

समुख (२)
वि० १. भाषणपटु। २. बकवादी। बातूनी। ३. मुखवाला। मुख-युक्त [को०]।

समुचित
वि० [सं०] १. यथेष्ट। उचित। योग्य। ठीक। वाजिब। २. जैसा चाहिए, वैसा। उपयुक्त। जैसे,—आपने उनकी बातों का समुचित उत्तर दिया। ३. जो रुचि या विचार के अनुकूल हो। जो पसंद हो।

समुच्च
वि० [सं०] जो बहुत ऊँचा हो [को०]।

समुच्चय
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत सी चीजों का एक में मिलना। समाहार। मिलन। २. समूह। राशि। ढेर। ३. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसके दो भेद माने गए हैं। एक तोवह जहाँ आश्चर्य, हर्ष, विषाद आदि बहुत से भावों के एक साथ उदित होने का वर्णन हो। जैसे,—हे हरि तुम बिनु राधिका सेज परी अकुलाति। तरफराति, तमकति, तचति, सुसकति, सुखी जाति। दूसरा वह जहाँ किसी एक ही कार्य के लिये बहुत से कारणों का वर्णन हो। जैसे,—गंगा गीता गायत्री गनपति गरुड़ गोपाल। प्रातःकाल जे नर भजैं ते न परैं भव- जाल। ४. वाक्य या शब्दों का समाहार। शब्दों का परस्पर मिलन या योग (को०)। ५. कौटिल्य के मत से वह आपत्ति जिसमें यह निश्चय हो कि इस उपाय के अतिरिक्त और उपायों से भी काम हो सकता है।

समुच्चयन
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत सी चीजों का एक में समाहार करना। एकत्र करना [को०]।

समुच्चयालंकार
संज्ञा पुं० [सं० समुच्चयालङ्कार] समुच्चय नामक अलंकार। दे० 'समुच्चय'—३।

समुच्चयोपमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुच्चयालंकार से बनी उपमा [को०]।

समुच्चर
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ आना जाना। २. ऊपर की ओर उठना या चढ़ना। आरोह। ३. लाँघ जाना। पार हो जाना [को०]।

समुच्चार
संज्ञा पुं० [सं०] १. स्पष्ट बोलना। उच्चारण करना। २. विसर्जन। त्याग [को०]।

समुच्चित
वि० [सं०] १. ढेर लगाया हुआ। राशि के रूप में रखा हुआ। २. एकत्र किया हुआ। जमा किया हुआ। संगृहीत। ३. क्रम से लगाया हुआ (को०)।

समुच्छन्न
वि० [सं०] १. खुला हुआ। नग्न। अनावृत। २. उद्ध्वस्त। विनष्ट। तितर बितर किया हुआ [को०]।

समुच्छित्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पूर्णतः उच्छेद या उत्पाटन। २. ध्वंस। नाश। बरबादी।

समुच्छिन्न
वि० [सं०] १. जड़ से उखाड़ा हुआ या उत्पाटित। पूर्णतः नष्ट या बर्बाद किया हुआ। २. तार तार। फटा हुआ [को०]। यौ०—समुच्छिन्न वासन = (१) जिसके वस्त्र फटे हुए या उच्छिन्न हों। (२) जिसकी वासना या भ्रम दूर हो गया हो।

समुच्छेद
संज्ञा पुं० [सं०] १.जड़ से उखाड़ना। उन्मूलन। २. ध्वंस। नाश। बरबादी।

समुच्छेदन
संज्ञा पुं० [सं०] १. जड़ से उखाड़ना। २. नष्ट करना। बरबाद करना।

समुच्छय
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्तुंगता। ऊँचाई। २. वैर। विरोध। शत्रुता। ३. संग्रह। संचय। ढेर। ४. युद्ध। लड़ाई। ५. पहाड़। पर्वत। ६. वृद्धि। विकास। ७. जन्म। (बौद्ध)। ८. ऊपर उठना। उत्थान। ९. उच्च पद [को०]।

समुच्छाय
सं० पुं० [सं०] १. ऊँचाई। उच्चता। २. उन्नति। उत्थान। ३. बढ़ती। वृद्धि [को०]।

समुच्छित
वि० [सं०] १. ऊँचा। उन्नत। उठा हुआ। २. शक्तिशाली। ३. लहरें लेता हुआ। ४. ऊपर किया या उठाया हुआ [को०]।

समुच्छिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] उन्नति। बढ़ती। वृद्धि [को०]।

समुच्छ्वसित
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसने गंभीर एवम् दीर्घ श्वास छोड़ा हो। २. गहरी साँस [को०]।

समुच्छ्वास
संज्ञा पुं० [सं०] दीर्घ श्वास। लंबी साँस [को०]।

समुज्ज्वल
वि० [सं०] खूब उज्ज्वल। चमकता हुआ।

समुज्जृंभण
संज्ञा पुं० [सं० समुज्जृम्भण] १. जँभाई लेना। २. ऊपर की ओर बढ़ना। निकलना। ३. प्रयत्न करना [को०]।

समुज्झित (१)
वि० [सं०] १. छोड़ा हुआ। परित्यक्त। २. गया हुआ। ३. मुक्त [को०]।

समुज्झित (२)
संज्ञा पुं० परित्याग [को०]।

समुझ पु †
संज्ञा स्त्री० [हिं० समझ] दे० 'समझ'। विशेष—इसके यौगिक और क्रियाओं आदि के लिये दे० 'समझ' शब्द के यौगिक और क्रियाएँ।

समुझना
क्रि० अ० [सं० सम्यक् ज्ञान] दे० 'समझना'। उ०— जाको बालविनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोर को।—तुलसी ग्रं०।

समुझनि पु
संज्ञा स्त्री० [हिं० समझना] समझने की क्रिया या भाव।

समुझाना
क्रि० स० [हिं० समझना] दे० 'समझाना'। उ०—पुनि रघुपति बहु विधि समुझाए। लै पादुका अवधपुर आए।—मानस, ७।६५।

समुत्कंटकित
वि० [सं० समुत्कण्टकित] जिसके रोएँ खड़े हो गए हों। रोमहर्ष से युक्त।

समुत्कंठा
संज्ञा स्त्री० [सं० समुत्कण्ठा] तीव्र इच्छा। गहरी चाह या लालसा [को०]।

समुत्क
वि० [सं०] अत्यंत उत्सुक। लालायित [को०]।

समुत्कट
वि० [सं०] १. उत्तुंग। उन्नत। ऊँचा। २. अत्यंत। अत्याधिक। प्रगाढ़। ३. महान्। गौरवयुक्त। ४. अत्याधिक। अनगिनत [को०]।

समुत्कर्ष
संज्ञा पुं० [सं०] १. आत्म उन्नति। अपना उत्कर्ष। अपनी संपन्नता या वृद्धि। २. गौरव। ३. (आभूषण आदि) उतार कर एक ओर रख देना [को०]।

समुत्कीर्ण
वि० [सं०] १. भली भाँति उत्कीर्ण। २. छेदा हुआ। छिद्रित [को०]।

समुत्क्रम
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऊपर उठना। २. प्रतिबंध को न मानना। सीमा का अतिक्रमण। हद पार करना [को०]।

समुत्क्रोश
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुरर नाम का पक्षी। २. जोर से चिल्लाना (को०)। ३. भारी कोलाहल (को०)।

समुत्तेजक
वि० [सं०] उत्तेजना करनेवाला। जो उत्तेजित करे [को०]।

समुत्तेजन
संज्ञा पुं० [सं०] उत्तेजित करने की क्रिया। बढ़ावा या उत्तेजना देना [को०]।

समुत्थ
वि० [सं०] १. उठा हुआ। उन्नत। २. उत्पन्न। जात। घटित। उद्भूत।

समुत्थान
संज्ञा पुं० [सं०] १. उठने की क्रिया। २. उत्पत्ति। ३. आरंभ। ४. रोग का निदान या निर्णय। ५. पुनर्जीवन प्राप्त करना। जीवित होकर पुनः उठना। रोग का पूरी तरह शांत होना। ६. परिश्रम। उद्यम। उद्योग (को०)। ७. वृद्धि। विकास (को०)। ८. उत्तोलन। फहराना। जैसे,—ध्वजा, पताका (को०)। ९. (नाभि का) उभड़ना। फूलना (को०)।

समुत्थापक
वि० [सं०] जमाने या उठानेवाला। उत्थापन करनेवाला [को०]।

समुत्थित
वि० [सं०] १. एक साथ उठा हुआ। जैसे,—समुत्थित धूलि। २. अत्यंत ऊँचा। जैसे,—समुत्थित शैल शिखर। ३. एकत्रित। घनीभूत। जैसे,—बादल। ४. उद्यत। प्रस्तुत। ५. जो फूला या सूज आया हो। ६. जो स्वास्थ्यलाभ कर चुका हो। ७. उत्पन्न। जात। उद्भूत [को०]।

समुत्पतन
संज्ञा पुं० [सं०] १. उड़ना। ऊपर उठना। २. प्रयत्न। कोशिश। चेष्टा [को०]।

समुत्पत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. उत्पत्ति। पैदाइश। २. जड़। मूल। ३. होना। घटित होना [को०]।

समुत्पन्न
वि० [सं०] उत्पन्न। उद्रूत। घटित [को०]।

समुत्परिवर्त्रिम
संज्ञा पुं० [सं०] कौटिल्य के अनुसार बेचे हुए पदार्थों में चालाकी से दूसरा पदार्थ मिला देना [को०]।

समुत्पाट
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्पाटन। उन्मूलन। २. अलगाव। पृथक्करण [को०]।

समुत्पात
संज्ञा पुं० [सं०] संकट की सूचना देनेवाला उपद्रव [को०]।

समुत्पादन
संज्ञा पुं० [सं०] उत्पादन करना। उत्पन्न करना। पैदा करना [को०]।

समुत्पिंज (१)
वि० [सं० समुत्पिञ्ज] अत्यंत घबराया हुआ [को०]।

समुत्पिंज (२)
संज्ञा पुं० १. इतस्ततः अस्तव्यस्त या तितर बितर हुई सेना। २. भारी अव्यवस्था [को०]।

समुत्पिंजल, समुत्पिंजलक
वि०, संज्ञा पुं० [सं० समुत्पिञ्जल, समु- त्पिञ्जलक] दे० 'समुत्पिंज' [को०]।

समुत्पुंसन
संज्ञा पुं० [सं०] अपनयन। दूरीकरण [को०]।

समुत्सन्न
वि० [सं०] पूरी तौर से उच्छिन्न। विनष्ट। ध्वस्त [को०]।

समुत्सर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] १. छोड़ना। त्याग। २. देना। प्रदान करना। ३. मल त्याग। ४. उत्सर्ग करना। निर्गमन। जैसे,— पुंवीर्य [को०]।

समुत्सर्पण
संज्ञा पुं० [सं०] आगे बढ़ना। अग्रसरण [को०]।

समुत्सव
संज्ञा पुं० [सं०] वृहत् उत्सव। बड़ा जलसा [को०]।

समुत्सारण
संज्ञा पुं० [सं०] १. भगाना। हाँक देना। २. पीछे लगना। दौड़ाना। ३. हाँके का शिकार करना [को०]।

समुत्साह
संज्ञा पुं० [सं०] उत्साह या इच्छाशक्ति [को०]।

समुत्सुक
वि० [सं०] १. अत्यंत बेचैन। आतुर। अधीर। २. उत्कंठित। उत्सुक। ३. दुःखपूर्ण। शोकपूर्ण। खेदजनक [को०]।

समुत्सेध
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऊँचाई। उत्तुंगता। २. मोटापा। स्थुलता। ३. घनता। सांद्रता [को०]।

समुदंत
वि० [सं० समुदन्त] १. कोर। तट या किनारे के ऊपर उठा २. जो उफनकर या उमड़कर बहने की स्थिति में हो।

समुद (१)
वि० [सं०] आनंदयुक्त। हृष्ट। खुशी के साथ। प्रसन्नता युक्त। [को०]।

समुद पु (२)
संज्ञा पुं० [सं० समुद्र; प्रा० समुद्द] समुद्र।

समुदक्त
वि० [सं०] खींचकर ऊपर लाया या उठाया हुआ। जैसे,— कूप से जल [को०]।

समुदय
संज्ञा पुं० [सं०] १. उठने या उदित होने की क्रिया। उदय। २. दिन। ३. युद्ध। समर। लड़ाई। ४. ज्योतिष में लग्न। ५. सूर्य का उगना (को०)।६. समुव्वय। ढेर (को०)। ७. संमिश्रण। मेल (को०)।८. राजस्व (को०)।९. प्रयत्न। चेष्टा (को०)।१०. सेना का पिछला भाग (को०)। ११. वित्त। धन (को०)।१२. उत्पत्ति का हेतु (को०)। १३. नक्षत्रोदय (को०)।

समदाय (२)
वि० समस्त। सब। कुल।

समुदाइ, समुदाई पु
संज्ञा पुं० [सं० समुदाय] समूह। समुदाय। उ०—(क) राका पति षोडस उअहि तारागन समुदाइ। सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रवि राति न जाइ।—मानस, ७।७८। (ख) काटत बढ़हि सीस समुदाई।—मानस, ६।१०१।

समुदागम
संज्ञा पुं० [सं०] पूर्ण ज्ञान [को०]।

समुदाचार
संज्ञा पुं० [सं०] १. शिष्टाचार। भलमनसहत का व्यवहार। सदाचार। २. नसस्कार, प्रणाम आदि। अभिवादन। ३. आशय। अभिप्राय। मतलब।

समुदानय
संज्ञा पुं० [सं०] एक साथ लाना। साथ लाना [को०]।

समुदाय
संज्ञा पुं० [सं०] १. समूह। ढेर। २. झुंड। गरोह जैसे,—विद्वानों का समुदाय। ३. युद्ध। समर। लड़ाई। ४. पोछे को ओर को सेता। ५. उदय। ६. उन्नति। तरक्की। ७. संयोग (को०)।८. शरीर के तत्वों का समाहार (को०)। ९. एक नक्षत्र (को०)।

समुदायवाचक
वि० [सं०] वस्तुओं के संग्रह को प्रकट करनेवाला शब्द [को०]।

समुदायशब्द
संज्ञा पुं० [सं०] संग्रह की अभिव्यक्ति करनेवाला शब्द [को०]।

समुदायि पु
संज्ञा पुं० [सं० समुदाय] झुंड। समूह। गिरोह।

समुदाव
संज्ञा पुं० [सं० समुदाय] दे० 'समुदाय'। उ०—रुचौ एक सब गुनिन को, बर बिरंचि समुदाव।—केशव (शब्द०)।

समुदाहरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. घोषण करना। २. निदर्शन। उदाहरण देना [को०]।

समुदाहार
संज्ञा पुं० [सं०] बातचीत। वार्तालाप [को०]।

समुदित
वि० [सं०] १. उठा हुआ। २. उन्नत। ३. उत्पन्न। जात। ४. एकत्रित। संचित (को०)।५. अन्वित। युक्त।सज्जित (को०)।६. जो राजी या सहमत हो (को०)। ७. प्रचलित (को०)।८. जिससे बात की गई हो (को०)।

समुदीरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. बोलना। कहना। उच्चारण करना। २. दुहराना। बार बार करना।

समुदीर्ण
वि० [सं०] १. दीप्तिमान्। अत्यंत चमकदार। २. उन्नत [को०]।

समुद् ग (१)
वि० [सं०] १. उगनेवाला। ऊपर चढ़नेवाला। २. पूर्णतः व्यापक। ३. आवरण या ढक्कन से युक्त। ४. फलियों से युक्त [को०]।

समुद् ग (२)
संज्ञा पुं० १. ढका हुआ संदूक। मंजुषा। गोल पेटारी। २. कली की नोक। ३. मंदिर की गोल आकृति। ४. एक प्रकार की चमक [को०]।

समुद् गक
संज्ञा पुं० [सं०] १. ढक्कनदार पेटारी। २. एक प्रकार का छंद [को०]।

समुद् गत
वि० [सं०] १. जो उदय हुआ हो। उदित। २. उत्पन्न। जात।

समुद् गम
संज्ञा पुं० [सं०] १. उठान चढ़ाई। २. उगना। निक- लना। ३. जन्म [को०]।

समुद् गार
संज्ञा पुं० [सं०] १. बहुत अधिक वमन होना। ज्यादा कै होना। २. भाषण। कथन (को०)।३. ऊपर खींचना। उठाना (को०)।

समुद् गिरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वमन करना। कै करना। २. उगली हुई वस्तु। ३. उठाना। ऊपर करना [को०]।

समुद् गीत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] उच्च स्वर से गाया जानेवाला गीत [को०]।

समुद् गीत (२)
वि० १. उच्च स्वर से या भली भाँति गाया हुआ [को०]।

समुद् गीर्ण
वि० १. वमित। २. उक्त। कथित। ३. उठाया या ऊपर किया हुआ [को०]।

सम् द्दंड
वि० [सं० समुद् दण्ड] १. ऊपर उठाया हुआ। जैसे,—हाथ। २. (लाक्ष०) खौफनाक। भयानक [को०]।

समुद्देश
संज्ञा पुं० [सं०] १. भली भाँति निर्देश करना। २. पूर्ण विवरण ३. अभिप्राय। ४. सिद्धांत [को०]।

समद्धत
वि० [सं०] १. ऊपर उठाया हुआ। उन्नीत। २. उत्तेजित। ३. घमंडी। अभिमानी। ४. अशिष्ट। असभ्य। ढीठ। धृष्ट। ५. तीव्र। उग्र। प्रखर [को०]।

समुद्धरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह अन्न जो वमन करने पर पेट से निकला हो। २. ऊपर की ओर उठाने, खींचने या बाहर निकालने की क्रिया। ३. उद्धार। ४. दूरीकरण। निवारण (को०)।५. उच्छेद। उन्मूलन (को०)।

समुद्धर्त्ता
संज्ञा पुं० [सं० समुद्धर्त्तृ] १. वह जो ऊपर की ओर उठाता या निकालता हो। २. उद्धार करनेवाला। ३. ऋण चुकानेवाला। कर्ज अदा करनेवाला।

समुद्धार
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समुद्धरण'।

समुद्धृत
वि० [सं०] १. ऊपर उठाया हुआ। २. बचाया हुआ। मुक्त किया हुआ। ३. वमित। कै किया हुआ। ४. अपसारित। हटाया हुआ। ५. विभक्त। ६. ग्रसित। ग्रस्त। ७. दुष्ट। उददंड [को०]।

समुदबोधन
संज्ञा पुं० [सं०] १. भली भाँति जगाना। होश में लाना २. उत्साह देना। पुनः जीवित करना [को०]।

समुद्भव
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्पत्ति। जन्म। २. होम के लिये जलाई हुई अग्नि। ३. पुनरुद्धार। पुनरुज्जीवन (को०)।

समुद्भूत
वि० [सं०] जात। उत्पन्न [को०]।

समुद्भूति
संज्ञा स्त्री० [सं०] उत्पन्न होने की किया। उत्पत्ति। जन्म।

समुद्भेद
संज्ञा पुं० [सं०] १. उत्पत्ति। २. विकास। ३. फाड़कर निकलना (को०)। ४. व्यक्त होना (को०)।

समुद्यत
वि० [सं०] १. जो भली भाँति उद्यत हो। अच्छी तरह से तैयार। २. ऊपर को उठा या उठाया हुआ (को०)। ३. जो दिया गया हो। प्रदत्त (को०)। ४. किसी कार्य में लगा हुआ। प्रवृत्त (को०)।

समुद्यम
संज्ञा पुं० [सं०] १. उद्यम। चेष्टा। २. आरंभ। शुरू। ३. ऊपर करना। उठाना। (को०)। ४. आक्रमण। ५. तैयारी (को०)।

समुद्योग
संज्ञा पुं० [सं०] १. सक्रिय चेष्टा। पूरी तैयारी। २. प्रयोग। व्यवहार। ३. (कई कारणों का) समवेत होना।

समुद्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जलराशि जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है और जो इस पृथ्वीतल के प्रायः तीन चतुर्थांश में व्याप्त है। सागर। अंबुधि। विशेष—यद्यपि समस्त संसार एक ही समुद्र से घिरा हुआ है, तथापि सुभीते के लिये उसके पाँच बड़े भाग कर लिए गए हैं; और इनमें से प्रत्येक भाग सागर या महासागर कहलाता है। पहला भाग जो अमेरिका से यूरोप और अफ्रिका के मध्य तक विस्तृत है, एटलांटिक समुद्र (सागर या महासागर भी) कहलाता है। दूसरा भाग जो अमेरिका और एशिया के मध्य में है, पैसिफिक या प्रशांत समुद्र कहलाता है। तीसरा भाग जो अफ्रिका से भारत और आस्ट्रेलिया तक है, इंडियन या भारतीय समुद्र हिंद महासागर कहलाता है। चौथा समुद्र जो एशिया, यूरोप और अमेरिका, उत्तर तथा उत्तरी ध्रुव के चारो ओर है, आर्कटिक या उत्तरी समुद्र कहलाता है और पाँचवा भाग जो दक्षिणी ध्रुव के चारो और है, एंटार्कटिक या दक्षिणी समुद्र कहलाता है। परंतु आजकल लोग प्रायः उत्तरी और दक्षिणी ये दो ही समुद्र मानते हैं, क्योंकि शेष तीनों दक्षिणी समुद्र से बिलकुल मिले हुए है; दक्षिण की ओर उनकी कोई सीमा नहीं है। समुद्र के जो छोटे छोटे टुकड़े स्थल में अंदर की ओर चले जाते हैं, वे खाड़ी कहलाते हैं। जैसे,—बंगाल की खाड़ी। समुद्र की कम से कम गहराई प्रायः बारह हजार फुट और अधिक से अधिक गहराई प्रायः तीस हजार फुट तक है। समुद्र में जो लहरें उठा करती हैं, उनका स्थल की ऋतृओं आदि पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है।भिन्न भिन्न अक्षांशों में समुद्र के ऊपरी जल का तापमान भी भिन्न होता है। कहीं तो वह ठंढा रहता है, कहीं कुछ गरम और कहीं बहुत गरम। ध्रुवों के आसपास उसका जल बहुत ठंढा और प्रायः बरफ के रूप में जमा हुआ रहता है। परंतु प्रायः सभी स्थानों में गहराई की ओर जाने पर अधिकाधिक ठंढा पानी मिलता है। गुण आदि की दृष्टि से समुद्र के सभी स्थानों का जल बिलकुल एक सा और समान रूप से खारा होता है। समुद्र के जल में सब मिलाकर उन्तीस तरह के भिन्न भिन्न तत्व हैं, जिनमें क्षार या नमक प्रधान है। समुद्र के जल से बहुत अधिक नमक निकाला जा सकता है, परंतु कार्यतः अपेक्षाकृत बहुत ही कम निकाला जाता है। चंद्रमा के घटने बढ़ने का समुद्र के जल पर विशेष प्रभाव पड़ता है और उसी के कारण ज्वार भाटा आता है। हमारे यहाँ पुराणों में समुद्र की उत्पत्ति के संबंध में अनेक प्रकार की कथाएँ दी गई हैं और कहा गया है कि सब प्रकार के रत्न समुद्र से ही निकलते हैं; इसी लिये उसे 'रत्नाकर' कहते हैं। पर्या०—समुद्र। अब्धि। अकूपार। पारावार। सरित्पति। उदन्वान्। उदधि। सिंधु। सरस्वान्। सागर। अर्णव। रत्नाकर। जलनिधि। नदीकांत। नदीश। मकरालय। नीरधि। नीरनिधि। अंबुधि। पाथोधि। निधि। इंदुजनक तिमिकोष। क्षीराब्धि। मितद्रु। वाहिनीपति। जलधि। गंगाधर। तोयनिधि। दारद। तिमि। महाशय। वारिराशि। शैलशिविर। महीप्राचीर। कंपति। पयोधि। नित्य। आदि आदि। २. किसी विषय या गुण आदि का बहुत बड़ा आगार। ३. बहुत बड़ी संख्या का वाचक शब्द (को०)। ४. शिव का एक नाम (को०)। ५. चार की संख्या (को०)। ६. नक्षत्रों और ग्रहों की एक विशेष प्रकार स्थिति (को०)। ७. एक प्राचीन जाति का नाम।

समुद्रकटक
संज्ञा पुं० [सं०] जलपोत। जहाज [को०]।

समुद्रकफ
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्रफेन।

समुद्रकांची
संज्ञा स्त्री० [सं० समुद्राकाञ्ची] पृथ्वी, जिसकी मेखला समुद्र है।

समुद्रकांता
संज्ञा स्त्री० [सं० समुद्रकान्ता] १. नदी, जिसका पति समुद्र माना जाता है और जो समुद्र में जाकर मिलती है। २. अस- बरग। पृक्का (को०)।

समुद्रकुक्षि
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र का किनारा [को०]।

समुद्रग (१)
वि० [सं०] १. समुद्र की ओर जानेवाला। २. समुद्री कार्य करनेवाला [को०]।

समुद्रग (२)
संज्ञा पुं० १. माँझी। २. समुद्री व्यापारी [को०]।

समुद्रगमन
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र का किनारा [को०]।

समुद्रगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नदी जो समुद्र की ओर गमन करती है। २. गंगा का एक नाम।

समुद्रगामी
वि० [सं० समुद्रगामिन्] दे० 'समुद्र'।

समुद्रगुप्त
संज्ञा पुं० [सं०] गुप्त राजवंश के एक बहुत बड़े, प्रसिद्ध वीर सम्राट् का नाम जिनका समय सन् ३३५ से ३७५१ ई० तक माना जाता है। विशेष—अनेक बड़े बड़े राज्यों को जीतकर गुप्त साम्राज्य हुगली से चंबल तक और हिमालय से नर्मदा तक विस्तृत था। पाटलिपुत्र में इनकी राजधानी थी, परंतु अयोध्या और कौशांबी भी इनकी राजधानियाँ थीं। इन्होंने एक बार अश्वमेध यज्ञ भी किया था।

समुद्रगृह
संज्ञा पुं० [सं०] १. ग्रीष्म ताप से त्राण के लिये जल के बीच में बना हुआ भवन। २. नहाने का कक्ष। स्नान- गृह [को०]।

समुद्रचुलुक
संज्ञा पुं० [सं०] अगस्त्य मुनि जिन्होंने चुल्लुओं से समुद्र पी डाला था।

समुद्रज (१)
वि० [सं०] समुद्र से उत्पन्न। समुद्रजात।

समुद्रज (२)
संज्ञा पुं० मोती, हीरा, पन्ना आदि रत्न जिनकी उत्पत्ति समुद्र से सानी जाती है।

समुद्रझाग
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्रफेन।

समुद्रतट, समुद्रतीर
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र का किनारा।

समुद्रदयिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] नदी। दरिया।

समुद्रनवनीत
संज्ञा पुं० [सं०] १. अमृत। २. चंद्रमा।

समुद्रनवनीतक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समुद्रनवनीत'।

समुद्रनेमि, समुद्रनेमी
संज्ञा स्त्री [सं०] पृथ्वी।

समुद्रपत्नी
संज्ञा स्त्री० [सं०] नदी। दरिया।

समुद्रपर्यंत
वि० [सं० समुद्रपर्यन्त] जिसकी सीमा समुद्रतक हो। आसमुद्र [को०]।

समुद्रपात
संज्ञा पुं० [सं० समुद्र+हिं० पात (=पत्ता)] एक प्रकार की झाड़दार लता जो प्रायः सारे भारत में पाई जाती है। समुंदर का पत्ता। समुंदरसोख। विशेष—इसके डंठल बहुत मजबूत और चमकीले होते हैं और पत्ते प्रायः पान के आकार के होते हैं। पत्ते ऊपर की ओर हरे ओर मुलायम होते हैं। इन पत्तों में एक विशेष गुण यह होता है कि यदि घाव आदि पर इनका ऊपरी चिकना तल रखकर बाँधा जाय, तो वह घाव सूख जाता है। और यदि नीचे का रोएँदार भाग रखकर फोड़े आदि पर बाँधा जाय, तो वह पककर बह जाता है। वसंत के अंत में इसमें एक प्रकार के गुलाबी रंग के फूल लगते हैं जो नली के आकार के लंबे होते हैं। ये फूल प्रायः रात के समय खिलते हैं ओर इनमें से बहुत मीठी गंध निकलती है। इसमें एक प्रकार के गोल, चिकने, चमकीले और हलके भूरे रंग के फल भी लगते हैं। वैद्यक के अनुसार इसकी जड़ बलकारक और आमवात तथा स्नायु संबंधी रोगों को दूर करनेवाली मानी गई है; और इसके पत्ते उत्तेजक, चर्मरोग के नाशक और घाव को भरनेवाले कहे गए हैं।

समुद्रफल
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष जो अवध, मध्य भारत आदि में नदियों के किनारे और तर भूमि में तथा कोंकण में समुद्र के किनारे बहुत अधिकता से पाया जाता है। विशेष—यह प्रायः ३० से ५० फुट तक ऊँचा होता है। इसकी लकड़ी सफेद और बहुत मुलायम होती है और कुछ भूरी या काली होती है। इसके पत्ते प्रायः तीन इंच तक चौड़े और दस इंच तक लंबे होते हैं। शाखाओं के अंत में दो ढाई इंच के घेरे के गोलाकार सफेद फूल लगते हैं। फल भी प्रायः इतने ही बड़े होते हैं जो पकने पर नीचे की ओर से चिपटं या चौपहल हो जाते है। वैद्यक के अनुसार यह चरपरा, गरम, कड़वा और त्रिदोषनाशक होता है तथा सन्निपात, भ्रांति, सिर के रोग और भूतबाधा आदि को दूर करता है।

समुद्रफेन
संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र के पानी का फेन या झाग जो उसके किनारे पर पाया जाता है और जिसका व्यवहार ओषधि के रूप में होता है। समुंदरफेन। समुंदर झाग। विशेष—समुद्र में लहरें उठने के कारण उसके खारे पानी में एक प्रकार का झाग उत्पन्न होता है जो किनारे पर आकार जम जाता है। यही झाग समुद्रफेन के नाम से बाजारों में बिकता है। देखने में यह सफेद रंग का, खरखरा, हलका और जालीदार होता है। इसका स्वाद, फोका, तोखा और खारा होता है। कुछ लोग इसे एक प्रकार की मछली की हडि्डयों का पंजर भी मानते हैं। वैद्यक के अनुसार यह कसैला, हलका, शीतल, सारक, रुचिकारक, नेत्रों को हित कारी, विष तथा पित्तविकार का नाशक और नेत्र तथा कंठ आदि के रोगों को दूर करनेवाला होता है।

समुद्रभव
वि० [सं०] जो समुद्र में उत्पन्न हो। समुद्रजात [को०]।

समुद्रमडूकी
संज्ञा स्त्री० [सं० समुद्रमणडूकी] पुराणनुसार एक दानव का नाम।

समुद्रमंथन
संज्ञा पुं० [सं० समुद्रमन्थन] समुद्र को मथना।

समुद्रमथन
संज्ञा पुं० [सं०] १. सिंधु का मंथन। समुद्रमंथन। २. एक दैत्य का नाम [को०]।

समुद्रमहिषी
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र की पत्नी। गंगा नदी [को०]।

समुद्रमालिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी, जो समुद्र को अपने चारों ओर माला की भाँति धरिण किए हुए है।

समुद्रमेखला
सज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी, जो समुद्र को मेखला के समान धारण किए हुए है।

समुद्रयात्रा
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र के द्वारा दूसरे देशों की यात्रा।

समुद्रयात्री
वि० [सं० समुयात्रिन्] समुद्रयात्रा करनेवाला।

समुद्रयान
संज्ञा पुं० [सं०] १. समुद्र यात्रा। २. समुद्र पर चलने की सवारी। जैसे,—जहाज, स्टीमर आदि।

समुद्रयायो
वि० [सं० समुद्रयायिन्] दे० 'समुद्रग' [को०]।

समुद्रयोषित्
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरिता। नदी [को०]।

समुद्ररसना
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी।

संमुद्रलवण
संज्ञा पुं० [सं०] करकच नाम का लवण जो समुद्र के जल से तैयार किया जाता है। वैद्यक के अनुसार यह लघु, हृद्य, पित्तवर्धक, विदाही, दीपन, रुचिकारक ओर कफ तथा वात का नाशक माना जाता है।

समुद्रवल्लभा
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र की पत्नी, नदी [को०]।

समुद्रवसना
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी।

समुद्रवह्नि
संज्ञा पुं० [सं०] बड़वानल।

समुद्रवास
संज्ञा पुं० [सं० समुद्रवासस्] अग्नि।

समुद्रवासी
संज्ञा पुं० [सं० समुद्रवासिन्] १. वह जो समुद्र में रहता हो। २. वह जो समुद्र के तट पर रहता हो।

समुद्रवेला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सागर की तरंग। समुद्र की लहर। २. समुद्रतट। सागरतट। ३. ज्वार भाटा [को०]।

समुद्रव्यवहारी
संज्ञा पुं० [सं० समुद्रव्यवहारिन्] वह जो समुद्रयात्रा करके व्यापार करता है। समुद्री व्यापारी [को०]।

समुद्रशुक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] समुद्र की सीपी। समुद्रोत्पन्न सीपी।

समुद्रसार
संज्ञा पुं० [सं०] मोती।

समुद्रसुभगा
संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा।

समुद्रशोष
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समुद्रपात'।

समुद्रस्थली
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन तीर्थ का नाम जो समुद्र के तट पर था।

समुद्रांत (१)
संज्ञा पुं० [सं० समुद्रांन्त] १. समुद्र का किनारा। २. जातीफल। जायफल।

समुद्रांत (२)
वि० जो समुद्र तक विस्तृत हो।

समुद्रांता
संज्ञा स्त्री० [सं० समुद्रांन्ता] १. दुरालभा। २. कपास। कर्पासी। ३. पृक्का। ४. जवासा। ५. पृथ्वी, जो समुद्र तक विस्तृत है (को०)।

समुद्रांबरा
संज्ञा स्त्री० [सं० समुद्रांम्बरा] पृथ्वी।

समुद्रां
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शमी। २. कचूर (को०)।

समुद्रांभिसारिणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह कल्पित देवबाला जो समुद्र- देव की सहचरी मानी जाती है।

समुद्रांयणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] नदी।

समुद्रारु
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुंभीर नामक जलजंतु। २. सेतबंध। ३. एक प्रकार की मछली जिसे तिमिंगिल कहते हैं।

समुद्रार्था
संज्ञा स्त्री० [सं०] नदी।

समुद्रावरणा
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी।

समुद्रावरोहण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की समाधि। समाधि का एक ढंग [को०]।

समुद्रिय
वि० [सं०] १. समुद्र संबंधी। समुद्र का। २. समुद्र से उत्पन्न। समुद्रजात। ३. एक प्रकार का वृत्त (को०)।

समुद्री
वि० [सं० समुद्रिय] १. दे० 'समुद्रिय'। २. जो समुद्र की ओर से आता हो। जैसे,—वायु। ३. जो समुद्रयान द्वारा की जाय। जैसे,—यात्रा। ३. जलसेना संबंधी।

समुद्रीय
वि० [सं०] समुद्र संबंधी। समुद्र का। समुद्रिय।

समुद्रीन्मादन
संज्ञा पुं० [सं०] कार्त्तिकेय के एक अनुचर का नाम।

समुद्र्य
वि० [सं०] दे० 'समुद्रीय' [को०]।

समुद्वह
वि० [सं०] १. श्रेष्ट। उत्तम। बढ़िया। २. वहन करनेवाला। ३. नीचे ऊपर जानेवाल (को०)।

समुद्वाह
संज्ञा पुं० [सं०] १. बिवाह। शादी। पाणिग्रहण। २. धारण करना। ऊपर उठाना (को०)।

समुद्वाहित
वि० [सं०] ऊपर उठाया हुआ या धारण किया हुआ।

समुद्वेग
संज्ञा पुं० [सं०] १. घबड़ाहट की स्थिति। बैचैनी। २. डर। भय। त्रास [को०]।

समुन्न
वि० [सं०] १. आर्द्र। गीला। २. गदा। मलिन [को०]।

समुन्नत (१)
वि [सं०] १. जिसकी यथेष्ट उन्नति हुई हो। खूब बढ़ा हुआ। २. बहुत ऊँचा। ३. ऊपर उठाया हुआ (को०)। ४. गौरवान्वित (को०)। ५. अभिमानी। घमंडी। गर्वयुक्त (को०)। ६. खरा। सच्चा। ७. जो आगे की ओर बढ़ा या निकला हो।

समुन्नत (२)
संज्ञा पुं० वास्तु विद्या के अनुसार एक प्रकार का स्तंभ या खंभा।

समुन्नति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. यथेष्ट उन्नति। काफी तरक्की। २. महत्व। बड़ाई। ३. उच्चता। ४. श्रेष्ठ पद या ओहदा। उच्च पद (को०)। ५. ऊपर की ओर करना या उठाना (को०)। ६. घमंड। अभिमान (को०)।

समुन्नद
संज्ञा पुं० [सं०] रामायण के अनुसार एक राक्षस का नाम।

समुन्नद्ध (१)
वि० [सं०] १. जो अपने आपको बड़ा पंडित समझता हो। २. अभिमानी। घमंडी। ३. उत्पन्न। उदभूत। जात। ४. उन्नत। उच्छ्रित (को०)। ५. सुजा हुआ। फूला हुआ (को०)। ६. पूर्ण। पूरा (को०)। ७. विकृत। बुरे चेहरे मोहरे का (को०)। ८. बंधनमुक्त। ९. सर्वोंत्कृष्ट। सर्वश्रेष्ठ। सर्वप्रधान (को०)।

समुन्नद्ध (२)
संज्ञा पुं० प्रभु। स्वामी। मालिक।

समुन्नमन
संज्ञा पुं० [सं०] उठाना। चढ़ाना। जैसे, भौंह का [को०]।

समुन्नय
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्राप्ति। लाभ। २. वृत्तांत। घटना। ३. नतीजा। निष्कर्ष। ४. अनुमान [को०]।

समुन्नयन
संज्ञा पुं० [सं०] १. ऊपर की ओर उठाने या ले जाने की क्रिया। २. प्राप्ति। लाभ।

समुन्नाद
संज्ञा पुं० [सं०] एक साथ होनेवाली चिल्लाहट [को०]।

समुन्नीत
वि० [सं०] उन्नत किया हुआ। ऊपर किया हुआ [को०]।

समुन्मीलन
संज्ञा सं० [सं०] १. खोलना या खुलना। जैसे,—फल की पंखुड़ियों या नेत्र की पलकों का। २. फैलाना। ३. दिखाना। प्रदर्शन।

समुन्मीलित
वि० [सं०] १. खोला हुआ। खुला हुआ। २. फैलाया हुआ। ३. दिखाया हुआ। प्रदर्शित [को०]।

समुन्मूलन
संज्ञा पुं० [सं०] जड़ से उखाड़ फेकना। बिल्कूल नष्ट कर देना [को०]।

समुपकरण
संज्ञा पुं० [सं०] उपकरण। साधन। सामान। सामग्री। उ०—पार कर जीवन प्रलोभन, समुपकरण।—अपरा, पृ० ११।

समुपक्रम
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्ररंभ। शुरुआत। २. दवा शरू करना। आरंभिक चिकित्सा [को०]।

समुगपगम
संज्ञा पुं० [पुं०] लगाव। सपर्क। पहुँव [क्रो०]।

समुपचार
संज्ञा पुं० [सं०] आदर संमान करना। ध्यान रखना या देना।

समुपद्रुत
वि० [सं०] जिसे आक्रांत किया गया हो। रौदा हुआ [को०]।

समुपनयन
संज्ञा पुं० [सं०] पास ले जाना [को०]।

समुपभुवत
वि० [सं०] १. खाया हुआ। भोग किया हुआ। २. कृत मैथुन [को०]।

समुपभोग
संज्ञा पुं० [सं०] उपभोग करना। व्यबहार में लाना। २. मैथुन। संभोग। ३. खाना। भक्षण [को०]।

समुपयुवत
वि० [सं०] १. ठीक और वाजिव। उचित। उपयुक्त। २. भोगा हुआ। व्यवहृत। भुक्त [को०]।

समुपवेश
संज्ञा पुं० [सं०] १. विनोद। तोष। आनंद। २. एक साथ बैठना। ३. आदर। सत्कार। अभ्यर्थना [को०]।

समुपवेशन
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छी तरह बैठने की क्रिया। २. आसन (को०)। ३. अभ्यर्थना। ४. भवन। आवास। निवास।

समुपष्टभ
संज्ञा पुं० [सं० समुपष्टम्भ] सहारा। आश्रय [को०]।

सभुपस्तंभ
संज्ञा पुं० [सं० समुपस्तम्भ] आश्रय। भरोसा। सहारा।

समुपस्था, समुपस्थान
संज्ञा पुं० [सं०] १. पहुँच। प्रवेश। २. निकटता। सामीप्य। ३. घटित होना। आ पड़ना। घटना [को०]।

समुपस्थित
वि० [सं०] १. पहुँचा हुआ। उपस्थित। २. बैठा हुआ। ३. व्यक्त। जाहिर। ४. समय के अनूकूल। ५. हिस्से में आया हुआ। जो आ पड़ा हो। प्राप्त। ६. सन्नद्ध। तैयार। ७. जिसका निश्चय कर लिया गया हो [को०]।

समुपस्थिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. उपस्थिति। २. नजदीक होने का भाव। ३. पहुँच। ४. घटित होने की क्रिया [को०]।

समुपहत
वि० [सं०] खंडित। जिसे काट दिया गया हो। जैसे,— समुपहत सिद्धांत [को०]।

समुपहव
संज्ञा पुं० [सं०] १. होम आदि के द्वारा देवताओं का आमंत्रण करना। २. बहुत से लोगों को एक साथ आमंत्रित करना।

समुपह्वर
संज्ञा पुं० [सं] शरण गृह। छिपने का स्थान। गुप्त स्थान [को०]।

समुपागत
वि० [सं०] पास आया या पहुँचा हुआ। प्राप्त [को०]।

समुपाजन
संज्ञा पुं० [सं०] सम्यक् अर्जन करना। एक साथ प्राप्त करना [को०]।

समुपेत
वि० [सं०] १. समवेत रूप से आगत। एकत्रित। २. पहुँचा हुआ। ३. सज्जित। युक्त। ४. आबाद। बसा हुआ [को०]।

समुपेक्षक
वि० [सं०] ध्यान न देनेवाला। उपेक्षा करनेवाला [को०]।

समुपोढ़
वि० [सं० समुपोढ] १. उन्नत। उन्थित। उठा हुआ। २. बढ़ा हुआ। वृद्धि प्राप्त। ३. आकृष्ट। ४. नियंत्रित। रोका हुआ। ५. आरंभ किया हुआ [को०]।

समुपोषक
वि० [सं०] जो उपवास करता हो। उपवासी [को०]।

समुल्लसित
वि० [सं०] १. जो चमक रहा हो। उद्भासित। आभायुक्त। सुंदर। कांतिमान्। २. जो खेल रहा हो। क्रीड़ा करनेवाला। आनंद मनाता हुआ [को०]।

समुल्लास
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० समुल्लसित] १. उल्लास। आनंद। प्रसन्नता। खुशी। २. ग्रंथ आदि का प्रकरण या परिच्छेद।

समुल्लेख
संज्ञा पुं० [सं०] १. उन्मूलन। उच्छेद। उत्पाटन। २. उत्खनन। उल्लेखन। ३. चर्चा। जिक्र।

समुहा † (१)
वि० [सं० सम्मुख, प्रा० सम्मुह, हिं० सामुहें] १. सामने का आगे का। २. सामना। सीधा।

समुहा पु (२)
क्रि० वि० सामने। आगे। उ०—मरिबे को साहसु ककै बढ़ै बिरह की पीर दौरति है समुही ससी सरसिज सुरभि समीर।—सं० सप्तक, पृ० १०६।

समुहाना †
क्रि० अ० [सं० सम्मुख, पु० हिं० सामुहें] सामने आना। संमुख होना। उ०—सबहीं त्यों समुहाति छिनु चलति सबनु दै पीठि। वाही त्यौं ठहराति यह कबिल नबी लौं दीठि।—बिहारी (शब्द०)।

समुहैं पु
क्रि० वि० [हिं०] सामने। आगे।

समुचा
वि० [सं० समुच्चय] [स्त्री० समूची] समग्र। संपूर्ण। सब का सब। कुल।

समुढ़
वि० [सं० समूढ़] १. ढेर लगाया हुआ। २. एकत्र किया हुआ। संचित। संगृहीत। ३. पकड़ा हुआ। ४. भोगा हुआ। भुक्त। ५. जिसका विवाह हा चुका हो। विवाहित। ६. जो अभी उत्पन्न हुआ हो। सद्यः जात। ७. संगत। ठीक। ८. ढँका हुआ। आवृत (को०)। ९. सहित। युक्त (को०)। ११. वक्र। झुका हुआ (को०)। १२. निर्मल । स्वच्छ (को०)। १३. संचालित किया हुआ। जिसका नेतृत्व किया गया हो (को०)।

समूर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मृग। शंबंर या साबर नामक हिरन।

समूर (२)
वि० [सं० समूल] दे० 'समूल'।

समूरक
संज्ञा पुं० [सं०] सं० 'समूर' १।

समूरु, समूरुक
संज्ञा पुं० [सं०] समूर मृग। संबर मूग।

समूल (१)
वि० [सं०] १. जिसमें मूल या जड़ हो। २. जिसका कोई हेतु हो। कारण सहित।

समूल (२)
क्रि० वि० जड़ से। मूल सहित। जैसे,—किसी का कार्य समूल नष्ट कर देना।

समूह
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक हो तरह की बहुत सी चोजों का ढेर। राशि। २. समुदाय। झुंड। गरोह।

समूहक्षारक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'समूहगंध' [को०]।

समूहगंध
संज्ञा पुं० [सं० समूहगन्ध] १. मोतिया नामक फूल। गंधराज। २. गंध बिलाव (को०)।

समूहन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक साथ मिलाना। २. संग्रह। राशि। ३. धनुष पर बाण चढ़ाना [को०]।

समूहन
वि० १. बुहारनेवाला। २. एकत्र करनेवाला [को०]।

समूहनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] झाड़ू। बुहारी।

समूह हितवादो
संज्ञा पुं० [सं०] जनता के हित के साधन में तत्पर रहनेवाला। जनता का प्रतिनिधि। विशेष—याज्ञवल्क्य ने लिखा है कि किसी स्थान का शासन धर्मज्ञ, निर्लोभ और पवित्र समूह हितवादियों के हाथ में देना चाहिए।

समूह्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. यज्ञ की अग्नि। २. यज्ञाग्नि रखने के लिये बना हुआ स्थान [को०]।

समूह्य (२)
वि० १. तर्क करने के योग्य। ऊहा करने के योग्य। २. बुहारने योग्य (को०)।

समृत पु
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति] दे० 'स्मृति'। उ०—समृत पुराणाँ कहत श्रुत न्यायादिक मतनेक।—बाँकी० ग्रं०, भा० २, पृ० २९। यौ०—समृतवेताह पु=स्मृतिवेत्ता। स्मृतियों का जानकार। उ०—कीधा माजी न्याव किल जग माँझल जेताह। काजी सुँण धिन धिन कहैं विप्र ससृतवेताह।—बाँकी० ग्रं०, भा० २, पृ० २५।

समृति पु
संज्ञा स्त्री० [सं० स्मृति] दे० 'स्मृति'—उ०—पढ़त सुनत मन दै निगम, आगम, समृति, पुरान।—मति० ग्रं०, पृ० ३६।

समृद्ध (१)
वि० [सं०] १. जिसके पास बहुत अधिक संपत्ति हो। संपन्न। धनवान। २. उत्पन्न। जात। ३. प्रसन्न। भाग्य- शाली (को०)। ४. भरा पूरा। बढ़ा चढ़ा (को०)। ५. फल- युक्त। ६. समग्र। पूर्ण (को०)। ७. पूर्णतः विकसित (को०)। ८. प्रभूत। भूरि। प्रचुर (को०)। ९. गतिशील (को०)।

समृद्ध (२)
संज्ञा पुं० महाभारत के अनुसार एक नाग का नाम।

समृद्धि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. बहुत अधिक संपन्नता। ऐश्वर्य। अमीरी। २. कृतकार्यता। सफलता। ३. प्रभाव। ४. बहुलता। प्रचुरता (को०)। ५. प्रधानता। प्रमुखता। सर्वोंपरित्व (को०)। ६. अभिवृद्धि। वृद्धि। बढ़ती।

समृद्धी (१)
संज्ञा पुं० [सं० समृद्धिन्] १. वह जो बार बार अपनी समृद्धि बढ़ाता रहता हो। २. उन्नतिशील। संपन्न व्यक्ति। भरा पूरा (को०)।

समृद्धी (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० समृद्धि] दे० 'समृद्धि'।

समेटना
क्रि० स० [हिं० सिमटना] १. बिखरी हुई चीजों की इकट्ठा करना। २. अपने ऊपर लेना। जैसे,—किसी का सब्र समेटना। ३. बिछौना आदि लपेटना या तह करके रखाना।

समेड़ो
संज्ञा स्त्री० [सं० समेडी] कर्त्तिकेय की एक मातृका का नाम।

समेत (१)
वि० [सं०] १. संयुक्त। मिला हुआ। २. साथ साथ आया हुआ। सह आगत (को०)। ३. निकट आया हुआ। पहुँचा हुआ (को०)। ४. सज्जित। युक्त (को०)। ५. संघृष्ट। संघ- र्षित। भिड़ा हुआ (को०)। ६. स्वीकृत। सहमत (को०)।

समेत (२)
अव्य० सहित। साथ।

समेत (३)
संज्ञा पुं० पुराणनुसार एक पर्वत का नाम।

समेध
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणनुसार मेरु के अंतर्गत एक पर्वत का नाम।

समेधन
संज्ञा पुं० [सं०] विकास। वृद्धि [को०]।

समेधित
वि० [सं०] १. अत्यधिक बढ़ा हुआ। प्रचुर। बहुल। प्रभूत। २. शक्तिशाली। मजबूत। ३. जुटा हुआ। मिला हुआ। संयुक्त [को०]।

समै, समैया, समो पु
संज्ञा पुं० [सं० समय] काल। अवसर। मौका। दे० 'समय'। उ०—(क) तुलसी तिन्ह सरिस तेऊ भूरिभाग जेऊ सुनि कै सुचित तेहि समै समैहैं।—तुलसी ग्रं०, पृ० ३४२। (ख) देहि गारि लहकौरि समौ सुख पावहिं।—तुलसी ग्रं०, पृ० ५९।

समोखना पु
क्रि० स० [सं० सम्बोघन, सन्तोषण, पुं० हिं० समोख] समझा कर कहना। जोर देकर कहना।

समोद
वि० [सं०] समुद। आनंदित। प्रसन्न। उ०—कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद, बैठी नानी की स्नेह गोद।— अपरा, पृ०, १८३।

समोदक (१)
वि० [सं०] जिसमें जल आधी मात्रा में हो। जिसमें आधा जल मिला हो [को०]।

समोदक (२)
संज्ञा पुं० मट्ठा। घोल [को०]।

समोध पु
संज्ञा पुं० [सं० सम्बोध] संबोध। ज्ञान। उ०—रुंधी सु गाय बन व्याघ्र कोध। आयौ सु राज राजन समोध। कुरुलाय करिय करुना सुधेन। छंडाय राज राजन बलेन।—पृ० रा० १।१९४।

समोधना पु
क्रि० स० [सं० सम्बोधन] बोध देना। समझाना बुझाना। प्रबोधन करना। ढाढ़स बँधाना। उ०—नंद समोधत ताकौ चित्त। सब अदिष्ट बस होतु है मित्त।—नंद० ग्रं०, पृ० २३६।

समोना पु (१)
क्रि० स० [हिं० समाना] १. समन्वित करना। एक में करना या मिलाना। २. समेटना। उ०—पूरन दया सद् गुरु की होई। वंश आपु में लेहि समोई।—कबीर सा०, पृ० ९५५।

समोना पु (२)
क्रि० अ० [सं० समुद] आनंदित होना। प्रसन्न होना। अनुरक्त होना। उ०—जोति बरै साहेब के निसु दिन तकि तकि रहत समोई।—कबीर० श, भा० ३, पृ० ६।

समोसा
संज्ञा पुं० [फा़० संबोसह्] एक प्रकार का प्रसिद्ध व्यंजन। सिंघाड़ा। तिकोना। विशेष—यह मैदे से बनाया जाता है। मैदा गूँथ कर छोटी पतली रोटी की तरह बेल लेते हैं। इसी बेली हुई रोटी को बीच से काट कर दो अर्द्धवृत्त की शक्ल में कर लेते हैं। फिर एक हिस्सा लेकर उसके बीच मसालेदार आलू मटर आदि भरकर तिकोने के आकार में लपेट लेते हैं और घी या तेल में छान लेते हैं। यह नमकीन और मीठा दोनों प्रकार का बनाया जाता है।

समोह
संज्ञा पुं० [सं०] समर। युद्ध। लड़ाई।

समौ पु
संज्ञा पुं० [सं० समय, पु हिं० समउ]दे० 'समय'।

समौरिया †
वि० [हिं० सम + उमरिया] बराबर उम्रवाला। सम- वयस्क।

सम्मंत्रण
संज्ञा पुं० [सं० सम्मन्त्रण] राय लेना। मंत्रणा करना [को०]।

सम्मंत्रणीय
वि० [सं० सम्मन्त्रणीय] दे० 'सम्मंत्रव्य'।

सम्मंत्रव्य
वि० [सं० सम्मन्त्रव्य] १. मंत्रण करने योग्य। २. भली भाँति मनन करने योग्य।

सम्मंत्रित
वि० [सं० सम्मन्त्रित] अच्छी तरह विचार किया हुआ। भली भाँति समझा बूझा हुआ [को०]।

सम्म
संज्ञा पुं० [अ०] विष। गरल [को०]।

सम्मग्न
वि० [सं०] पूर्णतः निमग्न। डूबा हुआ। तल्लीन। खोया हुआ [को०]।

सम्मत (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. राय। संमति। सलाह। २. अनुमति। ३. धारणा (को०)। ४. सावर्णि मनु का एक पुत्र (को०)।

सम्मत (२)
वि० १. जिसकी राय मिलती हो। सहमत। अनुमत। २. पसंद। प्रिय (को०)। ३. सोचा विचारा हुआ (को०)। ४. समान। तुल्य (को०)। ५. संमानित। प्रतिष्ठित (को०)। ६. युक्त। सहित (को०)।

सम्मति (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सलाह। राय। २. अनुमति। आदेश। अनुज्ञा। ३. मत। अभिप्राय। ४. सम्मान। प्रतिष्ठा। ५. इच्छा। वासना। ६. आत्मबोध। आत्मज्ञान। ७. सहमति। समर्थन (को०)। ८. प्रेम। स्नेह (को०)। ९. एक नदी का नाम (को०)।

सम्मति (२)
वि० [सं० सम मति] समान मति या एक राय का।

सम्मत्त
वि० [सं०] १. मतवाला। नशे में धुत। २. जिसके गंडस्थल से मद बहता हो (हाथी)। ३. जो आनंदातिरेक से मस्त हो। आनंदविह्वल (को०)।

सम्मद (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. हर्ष। आमोद। आह्लाद। २. एक ऋषि (को०)। ३. एक प्रकार की मछली। विशेष—विष्णुपुराण में लिखा है कि यह मछली अधिक जल में रहती है और बहुत बड़ी होती है। इसके बहुत बच्चे होते हैं।

सम्मद (२)
वि० सुखी। आनंदित। हर्षयक्त। प्रसन्न।

सम्मदी
वि० [सं० सम्मदिन्] आनंदयुक्त। प्रसन्न [को०]।

सम्मन
संज्ञा पुं० [अं० समन्स] अदालत का वह सूचनापत्र या आदेश पत्र जिसमें किसी को निदिष्ट समय पर अदालत में उपस्थित या हाजिर होने की सूचना या आदेश लिखा रहता है। तलबीनाम। इत्तिलानामा। आह्वानपत्र। क्रि० प्र०—आना।—देना।—निकलना।—निकलवाना।—जारी कराना।—जारी होना।—तामील होना।—तामील कराना।

सम्मर पु (१)
संज्ञा पुं० [सं० स्मर]दे० 'स्मर'। उ०—छुटि समाधि ऋषि नैन उघारे। अति सकोपि सम्मर उर मारे।—ह० रासो, पृ० २७।

सम्मर पु
संज्ञा पुं० [सं० समर] युद्ध। राण। लड़ाई।

सम्मर्द
संज्ञा पुं० [सं०] १. युद्ध। लडाई। २. समूह। भीड़। ३. परस्पर का विवाद। लड़ाई झगड़ा। ४. रगड़। घिंसना। घर्षण (को०।)। ५. कुचलना। रौंदना (को०)। ६. (लहरों की) टक्कर या मुठभेड़।

सम्मर्दन
संज्ञा पुं० [सं०] १. भली भाँति मर्दन करने का व्यापार। रौंदना। २. वसुदेव के पुत्रों में एक पुत्र। ३. रगड़ना। घिसना। संघर्षण (को०)। ४. लड़ाई। युद्ध (को०)। ५. वह जो भली भाँति मर्दन करता हो। अच्छी तरह मर्दन करनेवाला।

सम्मर्दी
संज्ञा पुं० [सं० सम्मर्दिन्] १. भली भाँति मर्दन करनेवाला। २. रगड़ने या घिसनेवाला।

सम्मर्शन
संज्ञा पुं० [सं०] थपथपाना। सहलाने की क्रिया [को०]।

सम्मर्शी
वि० [सं० सम्मर्शिन्] भले बुरे, सत् असत् का निर्णय कर सकनेवाला [को०]।

सम्मर्ष
संज्ञा पुं० [सं०] मर्ष। सहन। धैर्य।

सम्महा
संज्ञा पुं० [सं० शुष्मा] अग्नि। आग। पावक। (डि०)।

सम्मा
संज्ञा स्त्री० [सं०] संख्या, आकार आदि की तुल्यता या समानता। २. एक छंद का नाम (को०)।

सम्मातृ
वि० [सं०] जिसकी माता पतिव्रता हो। सती मातावाला।

सम्मातुर
वि० [सं०] सती साध्वी मातावाला। सन्मातुर [को०]।

सम्माद
संज्ञा पुं० [सं०] १. नशा। मद। २. उन्माद। पागलपन।

सम्मान (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. समादर। इज्जत। मान। गौरव। प्रतिष्ठा। २. माप। मान (को०)। ३. तुलना। समा- नता (को०)।

सम्मान (२)
वि० १. मान सहित। २. जिसका मान पूरा हो। ठीक मानवाला।

सम्मानन
संज्ञा पुं० [सं०] १. समादर करना। २. सीख देना। सिखलाना। शिक्षा देना [को०]।

सम्मानना (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] सम्मानन। दे० 'सम्मान'।

सम्मानना पु (२)
क्रि० स० संमान करना। आदर करना।

सम्माननीय
वि० [सं०] सम्मान के योग्य [को०]।

सम्मानित
वि० [सं०] जिसका संमान हुआ हो। प्रतिष्ठित। इज्जतदार।

सम्मानी
वि० [सं० सम्मानिन्] जिसमें संमान करने की भावना हो [को०]।

सम्मान्य
वि० [सं०] दे० 'संमाननीय'।

सम्मार्ग
संज्ञा पुं० [सं०] १. अच्छा मार्ग। सत्मार्ग। श्रेष्ट पद प्राप्त कराने का रास्ता। २. वह मार्ग जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ३. माँजना। प्रक्षालन। धोना। साफ करना (को०)। ४. बीझ बाँधने की रस्सी। गतार। जून (को०)।

सम्मार्ज्जक
संज्ञा पुं० [सं०] १. बुहारन। झाड़। कूचा। २. भंगी। मेहतर (को०)।

सम्मार्जन
संज्ञा पुं० [सं०] १. झाड़ना बुहारना। २. माजना। रगड़ कार साफ करना। ३. झाड़ू। कूँचा। ४. कुशकंडिका में यज्ञारंभ के समय स्रुवा को साफ करने के लिए रखा हुआ कुश- समूह। ५. गुझना। उबसन। उसकन। जूना। ६. भोजन के बाद थाली में शेष उच्छिष्ट अन्न। ७. मूर्ति या प्रतिमा का स्नान [को०]।

सम्मार्जनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] झाड़ू। बुहारी। कूचा।

सम्मार्जित
वि० [सं०] जिसका सम्मार्जन किया गया हो।

सम्मार्ष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] सम्मार्जन। सफाई [को०]।

सम्मित (१)
वि० [सं०] १. समान। सदृश। अनुरूप। मिलता जुलता। २. मापा या नापा हुआ (को०)। ३. समान माप, विस्तार या मूल्य का (को०)। ४. युक्त। सज्जित (को०)। ५. समान महत्व का (को०)। ६. समानुपातिक। समरूप। समनुकूल (को०)। ७. दूर तक फैलाया हुआ (को०)।

सम्मित (२)
संज्ञा पुं० [सं०] १. दूरी। फासला। २. वशिष्ठ के एक पुत्र का नाम। ३. एक योनि [को०]।

सम्मिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ऊँची और बड़ी कामना। उच्चाकाँक्षा। २. तुलना। बराबरी (को०)।

सम्मियात
संज्ञा स्त्री० [अ० सम्म का बहु व०] विषाक्त वस्तुएँ [को०]।

सम्मिलन
संज्ञा पुं० [सं०] १. मिलन। मिलाप। मेल। २. इकट्ठा होना। जुटना। एकत्र होना।

सम्मिलित
वि० [सं०] १. मिला हुआ। मिश्रित। युक्त। २. एकत्र। इट्ठा।

सम्मिश्र
वि० [सं०] १. मिला हुआ। संबद्ध। २. संयुक्त। युक्त। संपन्न।

सम्मिश्रण
संज्ञा पुं० [सं०] १. मिलाने की क्रिया। मिश्रण। २. मेल। मिलावट।

सम्मिश्रित
वि० [सं०] मिलाया हुआ। मिश्रित। मिलावटी [को०]।

सम्मिश्ल
संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र [को०]।

सम्मीयत
संज्ञा स्त्री० [अ०] जहरीलापन। विषत्व [को०]।

सम्मीलन
संज्ञा पुं० [सं०] १. संकोचन। मुँदना (आँख या पुष्प आदि का)। २. आवृत करना। आच्छादित करना। ३. पूरा ग्रहण लगना। खग्रास। ४. क्रिया का अंत या समाप्ति। अक्रियता [को०]।

सम्मीलित
वि० [सं०] बंद। ढँका हुआ। मुँदा हुआ। आच्छन्न [को०]। यौ०—सम्मीलित द्रुम = लाल गदहपूरना।

सम्मुख (१)
अव्य० [सं०] सामने। समक्ष। आगे। जैसे,—बड़ों के सम्मुख इस प्रकार की बातें नहीं कहनी चाहिए।

सम्मुख (२)
वि० [वि० स्त्री० संमुखा, संमुखी] १. आगे आनेवाला। सामने आनेवाला। आँखें मिलानेवाला। २. मुकाबला करने या भिड़नेवाला। ३. जो अनुकूल हो। ४. ठीक। उचित। उपयुक्त। ५. अभिमुख। प्रवृत्त [को०]।

सम्मुखी
संज्ञा पुं० [सं० सम्मुखिन्] १. वह जो सामने हो। २. वह जिसमें मुख देखा जाय। दर्पण। मुकुर। आइना।

सम्मुखीन
वि [सं०] जो संमुख हो। सामने का। दे० 'सम्मुख'।

सम्मुग्ध
वि० [सं०] १. जो रास्ते से भटक गया हो। रास्ता भूला हुआ। पथभ्रष्ट। २. बौखलाया या घबड़ाया हुआ। जिसने भली भाँति न समझा हो। साफ साफ न समझा हुआ। ३. सलोना। सुंदर [को०]।

सम्मूढ़
वि० [सं० सम्मूढ] १. मोहयुक्त। मुग्ध। २. निर्बोंध। अज्ञान। ३. टूटा हुआ। भग्न। ४. ढेर लगाया हुआ। ५. किंकर्तव्यमूढ़। व्याकुल। घबड़ाया हुआ (को०)। ६. अस्त- व्यस्त। अव्यवस्थित (को०)। ७. तीव्रता से उत्पन्न (को०)।

सम्मूढ़चेता
वि० [सं० सम्मूढचेतस्] हमबुद्धि। हक्का बक्का।

सम्मूढ़ पोड़िका
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्मूढपीडिका] एक प्रकार का शुक्र रोग। विशेष—इस रोग में लिंग टेढ़ा हो जाता है और उसपर फुंसियाँ निकल आती हैं। कहते हैं कि वायु के कुपित होने से इसकी उत्पत्ति होती है।

सम्मूढा
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की पहेली [को०]।

सम्मूर्छ
संज्ञा पुं० [सं०] घना होना। बढ़ना या फैलना [को०]।

सम्मूर्छज
संज्ञा पुं० [सं०] घास पात। तृण [को०]।

सम्मूर्छन
संज्ञा पुं० [सं० सम्मूर्च्छन] [वि० सम्मूर्छित] १. भली भाँति व्याप्त होने की क्रिया। अभिव्याप्ति। २. मोह। मूर्छा। बेहोशी। ३. वृद्धि। बढ़ती। ४. विस्तार। ५. घना होना। गाढ़ा होना। जम जाना (को०)। ६. उच्चता। ऊँचाई (को०)। ७. मिश्रण (को०)।

सम्मूर्छनोद्भव
संज्ञा पुं० [सं० सम्मूर्च्छनोद्भव] मछली, नक्र आदि जलजंतु [को०]।

सम्मूर्छित
वि० [सं० सम्मूर्च्छित] १. चेतनाहीन। बेहोश। २. घनी- भूत। गाढ़ा। ३. मिलाया हुआ। मिश्रित [को०]।

सम्मृत
वि० [सं०] जिसमें बिलकुल जान न हो। बेजान। मृत [को०]।

सम्मृष्ट
वि० [सं०] १. जिसका संशोधन भली भाँति हुआ हो। २. अच्छी तरह साफ किया हुआ। ३. भली भाँति झाड़ा बुहारा हुआ।

सम्मेघ
संज्ञा पुं० [सं०] वह मौसम जिसमें बादल घिर आए हों। घिरी घटाओं वाला दिन। मेघाच्छन्न दिन [को०]।

सम्मेत, सम्मेद
संज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम।

सम्मेलन
संज्ञा पुं० [सं०] १. मनुष्यों का किसी निमित्त एकत्र हुआ समाज। २. जमावड़ा। जमघट। ३. मेल। मिलाप। संगम। ४. मिश्रण (को०)।

सम्मोचित
वि० [सं०] छोड़ा हुआ। मुक्त [को०]।

सम्मोद
संज्ञा पुं० [सं०] १. प्रीति। प्रेम। २. हर्ष। प्रसन्नता। आनंद। ३. सुगंध। महक (को०)।

सम्मोदिक
संज्ञा पुं० [सं०] साथी। सहचर [को०]।

सम्मोह
संज्ञा पुं० [सं०] १. मोह। प्रेम। २. भ्रम। संदेह। ३. मूर्च्छा। बेहोशी। ४. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में एक तगण और एक गुरु होता है। ५. घबराहट। अव्यवस्था (को०)। ६. अज्ञान। मूर्खता (को०)। ७. आकर्षण। वशीकरण (को०)। ८. संग्राम। कोलाहल (को०)। ९. ज्योतिष में एक विशेष ग्रह योग (को०)।

सम्मोहक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो मोह लेता हो। मोहक। लुभा- वना। २. एक प्रकार का सन्निपात ज्वर, जिसमें वायु अति प्रबल होती है। इसके कारण शरीर में वेदना, कंप, निद्रानाश आदि होता है। ३. अचेत करनेवाला। संज्ञाहीन करनेवाला (को०)।

सम्मोहन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मोहित करने की क्रिया। मुग्ध करना। २. वह जिसमें मोह उत्पन्न होता हो। मोहकारक। ३. प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र जिससे शत्रु को मोहित कर लेते थे। ४. कामदेव के पाँच बाणों में एक बाण का नाम।

सम्मोहन (२)
वि० दे० 'सम्मोहक'।

सम्मोहनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] माया [को०]।

सम्मोहित
वि० [सं०] १. वशीभूत। वश में किया हुआ। २. घब- ड़ाया हुआ। ३. पथभ्रष्ट। हतबुद्धि। ४. अचेत किया हुआ। बेहोश (को०)।

सम्यक् (१)
संज्ञा पुं० [सं०] समुदाय। समूह।

सम्यक् (२)
वि० १. पूरा। समस्त। सब। २. साथ जाने या रहनेवाला (को०)। ३. सही। युक्त। ठीक। उचित (को०)। ४. शुद्ध। सत्य। यथार्थ (को०)। ५. सुहावना। रुचिकर (को०)। ६. एकरूप (को०)।

सम्यक् (३)
क्रि० वि० १. सब प्रकार से। २. अच्छी तरह। भली- भाँति। उचित रूप से। सही ढंग से। ३. स्पष्ट रूप से (को०) ४. सम्मानपूर्वक। ससम्मान (को०)। ५. यथार्थतः। वस्तुतः। सचमुच (को०)।

सम्यक्कर्मांत
संज्ञा पुं० [सं० सम्यक्कर्मान्त] सत्कार्य। अच्छा काम। सत्कर्म [को०]।

सम्यक्चारित्र
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के अनुसार धर्मत्रय में से एक धर्म। बहुत ही धर्म तथा शुद्धतापूर्वक आचरण करना।

सम्यक्ज्ञान
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के धर्मत्रय में से एक। न्याय- प्रसाण द्वारा प्रतिष्ठित सात या नौ तत्त्वों का ठीक और पूरा ज्ञान।

सम्यक्दर्शन
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के अनुसार धर्मत्रय में से एक। रत्नत्रय, सातो तत्वों और आत्मा आदि में पूरी पूरी श्रद्धा होना।

सम्यक्दर्शी
संज्ञा पुं० [सं० सम्यक्दर्शिन्] वह जिसे सम्यक्दर्शन प्राप्त हो।

सम्यक्द्दष्टि
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'सम्यक्दर्शन' [को०]।

सम्यक्वृत्त
संज्ञा स्त्री० [सं०] कर्तव्य का ठीक ठीक पालन। अनवरत अभ्यास या उद्योग [को०]।

सम्यक्पाठ
संज्ञा पुं० [सं०] शुद्ध उच्चारण। ठीक ठीक पढ़ना [को०]।

सम्यक्प्रणिधान
संज्ञा पुं० [सं०] प्रगाढ़ समाधि [को०]।

सम्यक्प्रयोग
संज्ञा पुं० [सं०] उचित या उपयुक्त उपयोग। ठीक प्रयोग करना [को०]।

सम्यक्प्रवृत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] इंद्रियों की उचित प्रवृत्ति [को०]।

सम्यक्प्रहाण
संज्ञा पुं० [सं०] ठीक प्रयत्न। उचित चेष्टा। (बौद्ध)।

सम्यक्श्रद्धान
संज्ञा पुं० [सं०] ठीक विश्वास। उचित श्रद्धा [को०]।

सम्यक् संबुद्ध
संज्ञा पुं० [सं० सम्यक् सम्बुद्ध] [संज्ञा स्त्री० सम्यक्संबुद्धि] १. वह जिसे सब बातों का पूरा और ठीक ज्ञान प्राप्त हो। २. बुद्ध का एक नाम।

सम्यक्संबोध
संज्ञा पुं० [सं० सम्यक् सम्बोध] एक बुद्ध का नाम।

सम्यक्समाधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] बौद्धों के अनुसार एक प्रकार की समाधि।

सम्यक् स्थिति
संज्ञा स्त्री० [सं०] साथ साथ रहने की स्थिति।

सम्यक् स्मृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] ठीक ठीक स्मरण। सही स्मृति [को०]।

सम्यगवबोध
संज्ञा पुं० [सं०] उचित बोध। ठीक ज्ञान। सही समझ [को०]।

सम्यगाजीव
संज्ञा पुं० [सं०] उचित रहन सहन।

सम्याना पु
संज्ञा पुं० [फा़० शामियाना] दे० 'शामियाना'।

सम्यीची
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. प्रशंसा। स्तुति। २. हरिनी। मृगी [को०]।

सम्रथ पु
वि० [सं० समर्थ, हिं० समरथ] दे० 'समर्थ'।

सम्राज्ञी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सम्राट् की पत्नी। २. साम्राज्य की अधीश्वरी।

सम्राट्
संज्ञा पुं० [सं० सम्राज्] वह बहुत बड़ा राजा जिसके अधीन बहुत से राजा महाराज आदि हों और जिसने राजसूय यज्ञ भी किया हो। महाराजाधिराज। शाहंशाह।

सम्हरना, सम्हलना †
क्रि० अ० [हिं० सँभलना] दे० 'सँभलना'।

सम्हार, सम्हाल †
संज्ञा स्त्री० [सं० सम्भार] दे० 'सँभाल'।

सम्हारना, सम्हालना †
क्रि० स० [सं० सम्भार] दे० 'सँभालना'। उ०—(क) हीरा जनम दियौ प्रभु हमकौं दीनी बात सम्हार।—सूर०, १।१९६। (ख) आनँद उर अंचल न सम्हारति सीस सुमन बरषावति।—सूर०, १०।२३।