ज
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ए | ऐ | ओ | औ | अं | क | ख | ग | घ | ङ | च | छ | ज | झ | ञ | ट | ठ | ड | ढ | ण | |
त | थ | द | ध | न | प | फ | ब | भ | म | य | र | ल | व | श | ष | स | ह | क्ष | त्र | ज्ञ | ऋ | ॠ | लृ | ऑ | श्र | अः |
यूनिकोड नाम | देवनागरी अक्षर ज |
---|---|
देवनागरी | U+0905 |
उच्चारण
सम्पादन(file) |
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनज हिंदी वरणमाला में चवर्ग के अंतर्गत एक व्यंजन वर्ण । यह स्पर्श वर्ण है और चवर्ग का तीसरा अक्षर है । इसका बाह्म प्रयत्न संवार और नाद घोष है । यह अल्पप्राण माना जाता है । 'झ' इस वर्ण का महाप्राण है । 'च' के समान ही इसका उच्चारण तालु से होता है ।
ज ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. मृत्युंजय ।
२. जन्म ।
३. पिता ।
४. विष्णु ।
५. विष ।
६. भुक्ति ।
७. तेज ।
८. पिशाच ।
९. वंन ।
१. छंदशास्त्रानुसार एक गण जो तीन अक्षरों का होता है । /?/वनण । विशेष—इसके आदि और अंत के वर्ण लघु और मध्य का वर्ण गुरु होता है । (/?/) । जैसे, महेश, रमेश, सुरेश आदि । इस का देवता साँप और फल रोग माना गया है ।
ज ^२ वि॰
१. वेगवान । वेगित । तेज ।
२. जीतनैवाला । जेता ।
ज ^३ प्रत्य॰ उत्पन्न । जात । जैसे,—देशज, पित्तज, वातज, आदि । विशेष—वह प्रत्यय मायः तत्पुरुष समास के पदों के अंत में आता है । पंचमी तत्पुरुष आदि में पंचम्यंत पदों की विभक्ति लुप्त हो जाती है, जँसे, पादज, द्विज इत्यादि । पर सप्तमी तत्पुरुष में '/?/ 'शरत्', 'काल' और /?/ इन चार शब्दों के अतिरिक्त , जहाँ विभक्ति बनी रहती है (जैसे, प्रावृषिज, शरदिज, कालेज, दिविज) शेष स्थलों में विभक्ति का लोप विवक्षित होता है, जैसे, मनसिज, मनोज, सरसिज, सरोज इत्यादि ।
ज पु ^४ अव्य॰ पादपूर्ति के लिये प्रयुक्त । उ॰—चंद्र सूर्य का गम नहीं जहाँ ज दर्शन पावै दास ।—रामानंद॰ पृ॰ १० ।