मूल्य
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
मूल्य ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. किसी वस्तु के बदले में मिलनेवाला धन । दाम । कीमत आदि । जैसे,—एक सेर चाय का मूल्य दस रुपए । उ॰—वास्तव में अर्थ प्रायः सर्वदा द्रव्य के रूप में ही व्यक्त किया जाता है । और तब उसे मूल्य कहते हैं ।—अर्थ॰ (वै॰), पृ॰ १८ ।
२. वेतन । भृति (को॰) ।
३. मूल । मूलधन (को॰) ।
४. लाभ । प्राप्ति । अर्जन ।
५. उपयोगिता (को॰) । यौ॰—मूल्यरहित=(१) बिना मूल्य का । जिसका कुछ मूल्य न हो । निकम्मा (२) व्यर्थ । वेकार । मूल्यवृद्ध=बाजार में वस्तुओं का दाम बढ़ जाना । मूल्यहीन=दे॰ 'मूल्यरहित' ।
मूल्य ^२ वि॰
१. प्रतिष्टा का योग्य । कदर के लायक ।
२. रोपने या लगाने योग्य (पौधा) ।
३. मूल में होनेवाला । जो मूल में हो (को॰) ।
४. जड़ से उखाड़ने योग्य । (खेत की फसल, जैसे, उर्द, मूँग आदि) ।