दाम
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
दाम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दामन्]
१. रस्सी । रज्जु । यौ॰— दामोदर ।
२. माला । हार । लड़ी । उ॰—(क) तोहि के रचि रचि बंध बनाए । बिच बिच मुकुता दाम सुहाए ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) कहुँ क्रीड़त कहुँ दाम बनावत कहूँ करत श्रृंगार ।— सूर (शब्द॰) ।
३. समूह । राशि ।
४. लोक । विश्व ।
दाम ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ मिलाओ सं॰] जाल । फंदा । पाश । उ॰— लोचन चोर बाँधे श्याम । जात ही उन तुरत पकरे कुटिल ललकनि दाम ।—सूर (शब्द॰) ।
दाम ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ दमड़ी]
१. पैसे का चौबीसवाँ या पचीसवाँ भाग । एक दमड़ी का तीसरा भाग । उ॰— कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगो इतो उदोत । बंक विकारी देत जिमि दाम रुपैया होता ।— बिहारी (शब्द॰) । मूहा॰ —दाम दामभर देना = कौड़ी कौड़ी चुका देना । कुछ (ऋण) बाकी न रखना । दाम दाम भर लेना = कौड़ी कौड़ी ले लेना । कुछ बाकी न छोड़ना ।
२. वह धन जो किसी वस्तु के बदले में बेचनेवाले को दिया जाय । मूल्य । कीमत । मोल । उ॰— बिन दामन हित हाट में नेही सहज बिकात ।— रसनिधि (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना । —लेना । मुहा॰—दाम उठना = किसी वस्तु की कीमत वसूल हो जाना । बिक जाना । दाम करना = (किसी वस्तु का) मोल ठहराना । मूल्य निश्चित करना । कीमत तै करना । मोल भाव करना । दाम खड़ा करना = कीमत वसूल करना । दाम चुकाना = (१) मूल्य दे देना । (२) कीमत ठहरना । मोल भाव तै करना । दाम देने आना = मूल्य देने के लिये विवश होना । किसी वस्तु को नष्ट करने पर उसका मूल्य देना पड़ना । नुकसानी देना पड़ना । दाम भरना = किसी वस्तु को नष्ट करने पर दंडस्वरूप उसका मूल्य दे देना । नुकसानी देना । डाँड़ देना । दाम भर पाना = सारा मूल्य पा जाना ।
३. धन । रुपया पैसा । जैस, दाम करे काम । उ॰— कामिहिं नारि पियारे लिमि लोभिहिं प्रिय जिमि दाम ।— तुलसी (शब्द॰) ।
४. सिक्का । रुपया । उ॰— जो पै चेराई राम की करतो न लजाते । तो तू दाम कुदाम ज्यों कर कर न बिकातो ।— तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—चाम के दाम चलाना = अधिकार या अवसर पाकर मनमाना अधेर करना । दे॰ 'चाम' । उ॰—दिन चारिक तू पिय प्यारे के प्यार सों चाम के दाम चलाया ले री ।—परमेश (शब्द॰) ।
५. दाननीति । राजनीति की एक चाल जिसमें शत्रु को धन द्वारा वश में करते हैं । उ॰— साम दाम अरु दंड बिभेदा । नृप उर बसहिं नाथ कह बेदा ।— तूलसी (शब्द॰) ।
दाम ^४ वि॰ [सं॰] देनेवाला । दाता ।