भार
संज्ञा
अनुवाद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
भार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. एक परिमाण जो बीस पसेरी का होता है ।
२. विष्णु ।
३. बोझ । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—ढोना ।—रखना ।—लादना ।
४. वह बोझ जिसे बहँगी के दोनों पल्लों पर रखकर कंधे पर उठाकर ले जाते हैं । उ॰— मीन पीन पाठीन पुराना । मरि भरि भार कहाँरन आना ।— तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—काँधना ।—ढोना ।—भरना ।
५. सँभाल । रक्षा । उ॰— पर घर गोपन ते कहेउ कर भार जुरावहु । सूर नृपति के द्वार पर उठि प्रात चलावहु ।— सुर (शब्द॰) ।
६. किसी कर्तव्य के पालन का उत्तरदायित्व । जिम्मेदारी । मुहा॰—किसी का भार उठाना =किसी का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेना । भार उतारना =(१) कर्तव्य पूरा करना । (२) ज्यों त्यों किसी काम को पूरा करना । बला टालना । बेगार टालना । भर देना व डालना=बोझ रखना । बोझ डालना । उ॰— मंजुल मंजरी पै हो मनिंद विचारि के भार सम्हारि कै दीजिए ।—प्रताप (शब्द॰) ।
७. ढोल या नगाड़ा बजाने की एक पद्धति (को॰) ।
८. बहँगी जिसपर बोझ उठाते हैं (को॰) ।
९. कठिन काम (को॰) ।
१०. आश्रय । सहारा । बल । उ॰— दोहूँ खंभ ठेक सब मही । दुहुँ के भार सृष्टि सभ रही — जायसी (शब्द॰) ।
भार ^२ संज्ञा सं॰ [हिं॰ भाड़] दे॰ 'भाड़' ।