नारी

व्युत्पत्ति १

संस्कृत नारी (नारी) से

संज्ञा

  1. स्त्रीऔरतमहिला
  2. तीन गुरु वर्णों की एक वृत्ति।
    जैसे – माधो ने दी तारी, गोपों की है

व्युत्पत्ति २

हिन्दी नार से

संज्ञा

  1. वह रस्सी जिससे जुए में हल बाँधते हैं। नार।
  2. रथ और अश्व को युक्त करने वाली रज्जु या चमड़े का तस्मा।
    उदाहरण – सुंदर रथ न चलै बिन

व्युत्पत्ति ३

हिन्दी नाली से

संज्ञा

  1. नाली

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

नारी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. स्त्री ।

२. तीन गुरु वर्णों की एक वृत्ति । जैसे—माधो ने । दी तारी । गोपों की । है नारी ।

नारी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ नाडि] पानी के किनीरे रहनेवाली एक चिड़िया जिसके पैर ललाई लिए भूरे होते हैं । पीठ और पूँछ भी भूरी होती है ।

नारी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ नार]

१. वह रस्सी जिससे जुए में हल बाँधते हैं । नार ।

२. रथ और अश्व को युक्त करने वाली रज्जु या चमड़े का तस्मा । उ॰—सुंदर रथ न चलै बिन नारी ।—सुंदर॰, भा॰ १, पृ॰ ३५३ ।

नारी पु † ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ नाड़ी] दे॰ 'नाड़ी' ।

नारी पु † ^५ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'नाली' ।