चन्द्रमा

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

चंद्रमा नभ में हँसना था बाज रही थी वीणा अश्रांत ।— झरना, पृ॰ ७१ ।

चंद्रमा संज्ञा पुं॰ [सं॰ चन्द्रमस्] आकाश में चमकनेवाला एक उपग्रह जो महीने में एक बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करता है और सूर्य से प्रकाश पाकर चमकता है । विशेष— यह उपग्रह पृथ्वी के सब से निकट है; अर्थात् यह पृथ्वी से २३८८०० मील की दूरी पर है । इसका व्यास २१६२ मील है और इसका परिमाण पृथ्वी का ४ १/९ है । इसका गुरुत्व पृथ्वी के गुरुत्व का ८ १/॰ वाँ भाग है । इसे पृथ्वी के चारों ओर घूसने में २७ दिन, ७ घंटे, ४३ मिनट और ११ १/२ सेकडे लगते हैं, पर व्यवहार में जो महीना आता है, वह २९ दिन, १२ घंटे, ४४ मिनट

२. ७ सेकडे का होता है । चंद्रमा के परिक्रमण की गति में सूर्य की क्रिया से बहुत कुछ अंतर पड़ता रहता है । चंद्रमा अपने अक्ष पर महीने में एक बार के हिसाब से घूमता है; इससे सदा प्राय: उसका एक ही पार्श्व पृथ्वी की ओर रहता है । इंसी विलक्षणता को देखकर कुछ लोगों को यह भ्रम हुआ था कि यह अक्ष पर घूमता ही नहीं है । चंद्रमंडल में बहुत से धब्बे दिखाइ देते हैं जिन्हें पुराणानुसार जनसाधारण कलंक आदि कहते हैं । पर एक अच्छी दूरबीन के द्वारा देखने से ये धब्बे गायब हो जाते हैं और इनके स्थान पर पर्वत , घाटी, गर्त्त, ज्वालामुखी पर्वतों से विवर आदि अनेक पदार्थ दिखाई पड़ते हैं । चंद्रमा का अधिकांश तल पृथ्वी के ज्वालामुखी पर्वतों से पूर्ण किसी प्रदेश का सा है । चंद्रमा में वायुमंडल नहीं जान पडता और न बादल या जल ही के कोई चिह्न दिखाई पडते हैं । चंद्रमा में गरमी बहुत थोडी दिखाई पडती है । प्राचीन भारतीय ज्योतिषियों के मत से भी चद्रमा एक ग्रह है, जो सुर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है । भास्कराचार्य के मत से चंद्रमा जलमय है । उसमें निज का कोई तेज नहीं है । उसका जितना भाग सूर्य के सामने पडता है, उतना दिखाई पडता है — ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार धूप में घडा रखने से उसका एक पार्श्व चमकता है और दूसरा पार्श्व उसी की छाया से अप्रकाशित रहता है । जिस दिन चंद्रमा के नीचे के भाग पर अर्थात् उस भाग पर जो हम लोगों की ओर रहता है, सूर्य का प्रकाश बिलकुल नहीं पडता, उस दिन अमावस्या होती है । ऐसा तभी होता है, जब सूर्य और चंद्र एक राशिस्थ अर्थात् समसूत्र में होते हैं । चंद्रमा बहुत शीघ्र सूर्य की सीध मे पूर्व की ओर हट जाता हैं और उसकी एक एक कला क्रमश: प्रकाशित होने लगती है । चंद्रमा सुर्य की सीध (समसूत्र पात) से जितना ही अधिक हट जायगा, उसका उतना ही अधिक भाग प्रकाशित होता जायगा । द्वितीया के दिन चंद्रमा के पश्चिमांश पर सूर्य का जितना प्रकाश पडता है, उतना भाग प्रकाशित दिखाई पडता हैं । सूर्य सिद्धांत के मतानुसार जब चंद्रमा सूर्य की सीध से ६ राशि पर चला जाता है तब उसका समग्र आधा भाग प्रकाशित हो जाता हैं और हमें पूर्णिमा का पूरा चंद्रमा दिखाई पडता हैं । पूर्णिमा के अनंतर ज्यों ज्यों चंद्रमा बढ़ता जाता हैं, त्यों त्यो सूर्य की सीध से उसेका अंतर कम होता जाता है; अर्थात् वह सूर्य की सीध की ओर आता जाता हैं और प्रकाशित भाग क्रमश: अंधकार में पड़ता जाता हैं । अनुपात के मतानुसार प्राकाशित और अप्रकाशित भागों के इस ह्वास और वृद्धि का हिसाब जाना जा सकता है । यही मत आर्यभट्ट, श्रीपति, ज्ञानराज लल्ल, ब्रह्मपुत्र, आदि सभी पुराने ज्योतिषियों का है । चंद्रमा में जो धब्बे दिखाई पडते हैं, उनके विषय में सूर्यसिद्धांत, सिद्धांतशिरोमणि, बृहत्संहिता इत्यादि में कुछ नहीं लिखा है । हरिवश में लिखा हैं कि ये धब्बे पृथ्वी की छाया हैं । कवि लोगों ने चकोर और कुमुद को चंद्रमा पर अनुरक्त वर्णन किया हैं । पुराणा- नुसार चंद्रमा समुद्रमंथन के समय निकले हुए चोदह रत्नों में से है और देवताओं में गिना जाता है । जब एक असुर देवताओं की पंक्ति में चुपचाप बैठकर अमुत पी गया, तब चंद्रमा ने यह वृत्तांत विष्णु से कह दिया । विष्णु ने उस असुर के दो खंड कर दिए जो राहु और केतु हुए । उसी पुराने वैर के कारण राहु ग्रहण के समय चंद्रमा को ग्रसा करता हैं । चंद्रमा के धब्बे के विषय में भी भिन्न भिन्न कथाएँ प्रसिद्ध हैं । कुछ लोग कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के शाप से चंद्रमा को राजपक्ष्मा रोग हुआ; उसी की शांति के लिये वे अपनी गोद में एक हिरन लिए रहते हैं । किसी किसी के मत से चंद्रमा ने अपनी गुरुपत्नी के साथ गमन किया था; इसी कारण शापवश उनके शरिर पर काला दाग पड गया है । कहीं कहीं यह भी लिखा हैं कि जब इंद्र ने अहल्या का सतीत्व भंग किया था, तब चंद्रमा ने इंद्र को सहायता दी थी । गौतम ऋषि ने क्रोधवश उन्हें अपने कमडल और मृगचर्म से मारा, जिसका दाग उनके शरीर पर पड गया । रुस और अमेरिका चंद्रमा संबंधी अभियान और अनुसंधान में लगे हैं । १९५९ के ४ अक्तूबर के दिन रुस ने एक स्वयंचालित अंतर्ग्रही स्टेशन चंद्रमा की ओर छोडा जिसने चंद्रमा के अदृश्य भाग के फोटो ४० मिनट तक लिये । अमेरिका भी यह काम कर चुका हैं । दोनों के मानवहीन अंतरिक्ष यान मंदतम गति से चंद्रतल पर अवतरण कर चुके हैं । मान व को वहाँ उतारने की चेष्टा में दोनो देश लगे हैं । यह हो जाने पर अनेक नवीन तथ्यों का पता लगेगा । पर्या॰—हिमाशु । इंदु । कुमुदबांधव । विधु । सुधांशु । शुभ्रांशु । ओषधीश । निशाब्जति । अज । जैवातृक । सोम । ग्लौ । मृगांक । कलानिधि । द्विजराज । शशधर । नक्षत्रराज । क्षपाकर ।दोषाकर । निशानाथ । शर्वरीश । एणांक । शीत- रश्मि । सारस । श्वेतवाहन । नक्षत्रनेमि । उडुप । क्षुधासूति । तिथिप्रणी । अमति । चंदिर । चित्राचीर । पक्षधर । रोहि- णीश । अत्रिनेत्रज । पत्रज । सिंधुजन्मा । दशास्य । तारापीड- निशामणि । मृगलांछन । दाक्षायणीपति । लक्ष्मीसहज । सुधाकर । सुधाधार । शीतभानु तमोहर । तुषारकिरण । हरि । हिमद्युति । द्विजपत्ति । विश्वस्पा । अमृतदीधिति । हरिणांक । रोहिणीपति । सिंधुनंदन । तमोनुद् । एणतिलक । कुमुदेश । क्षीरोदनंदन । कांत कलावान् । यामिनीपति । सिप्र । सुधानिधि । तुंगी । पक्षजन्मा । समुद्रनवनीत । पीयूषू- महा । शीतमरीचि । त्रिनेत्रचूडामणि । सुधाँग । परिज्ञा । तु गीपति । पर्ब्बधि । क्लेदु । जयंत । तपस । खचमस । विकस । दशवाजी । श्वेतवाजी । अमृतसू । कौमुदीपति । कुमुदिनीपति । दक्षजापति । कलामृत । शशभृत् । चणभृत् । छरयाभृत् । निशारत्न । निशाकर । रजनीकर । क्षपाकर । अमृत । श्वेतद्युति । शशलांछन । मृगलांछन ।

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