संज्ञा

  1. आत्मा, रूह

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

साया ^१ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ सायह्]

१. छाया । छाँह । उ॰—छाँव सूँ मेरे हुए हैं बादशाह । साया परवरदा हैं मेरे सब मलूक ।— दक्खिनी॰, पृ॰ १८६ । यौ॰—सायेदार ।

२. आश्रय । संरक्षण । सहारा । मुहा॰—साये में रहना = शरण में रहना । संरक्षण में रहना । साय उठना = संरक्षक का न रहना । देखभाल और परवरिश करनेवाले का मर जाना ।

३. परछाई । अक्स । प्रतिबिंव । मुहा॰—साये से भागना = बहुत दूर रहना । बहुत बचना ।

४. जिन, भूत, प्रेत, परी आदि । मुहा॰—साया उतरना = भूत, प्रेत का प्रभाव समाप्त होना । साया होना = प्रेताविष्ट होना । भूत, प्रेत का प्रभाव होना । साये में आना = भूत, प्रेतादि से प्रभावान्वित होना ।

५. असर । प्रभाव । मुहा॰—साया पड़ना = किसी की संगत का असर होना । साया डालना = (१) कृपा करना । (२) प्रभाव डालना ।

साया ^२ संज्ञा पुं॰ [अं॰ शेमीज]

१. घाघरे की तरह का एक पहनावा जो प्रायः पाश्चात्य देशों की स्त्रियाँ पहनती हैं ।

२. एक प्रकार का छोटा लहँगा जिसे स्त्रियाँ प्रायः महीन साड़ियों के नीचे पहनती हैं ।