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कुंडलिनी
मेरुदण्ड के अंतिम छोर पर जहां बहुत सारी शिराओं का जाल है वहीं निचले भाग में इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियाँ होती हैं जो सामान्यतः सुसुप्त अवस्था में रहती हैं। सहस्त्रआर से अर्थ शिव परमात्मा से माना जाता है । एक विशेष प्रकार की दिव्य ज्योति आलोकित होती है। कुंडलिनी शक्ति का अर्थ एक ऐसी दिव्य शक्ति के रूप में लिया जाता है तो कुंडल के रूप में शरीर में स्थित है जो मेरुदंड के अंतिम छोर में स्थित नाड़ी जो साढ़े तीन लपेटे लगाकर नागिन की तरह कुंडली मारकर बैठी रहती है यही कुंडलिनी कहलाती है।