रेखा
संज्ञा
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अनुवाद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
रेखा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. सूत के आकार का लंबा गया हुआ चिह्न । दंडाकार चिह्न । डंड़ी । लकीर । उ॰—रेखा रुचिर कंबु कल ग्रीवा ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—खींचना ।
२. किसी वस्तु का सूचक चिह्न । दृढ़ अंक । यौ॰—कर्मरेखा = भाग्य की लिपि जो प्राणियों के मस्तक पर पहले से ही अंकित मानी जाती है । भाग्य का लेख । उ॰— नेम प्रेम शंकर कर देखा । अविचल हृदय भगति कै रेखा ।— तुलसी (शब्द॰) ।
३. गणना । शुमार । गिनती । उ॰— साधु समाज न जाकर लेखा । राम भगत महँ जासु न रेखा ।— तुलसी (शब्द॰) ।
४. आकृति । आकार । सूरत । यौ॰—रूपरेखा ।
५. हथेली, तलवे आदि में पड़ी हुई लकीरें जिनसे सामुद्रिक में मनुष्य के शुभाशुभ का निर्णय किया जाता है । जैसे,—कमल रेखा, अंकुश रेखा, उर्ध्व रेखा आदि । विशेष दे॰ 'सामुद्रिक' ।
६. हीरे के बीच में दिखाई पड़नेवाली लकीर जो एक दोष मानी जाती है । विशेष—रत्नपरीक्षा में रेखाएँ चार प्रकार की कहीं गई हैं—सव्य रेखा, अपसव्य रेखा, ऊर्ध्व रेखा और दीक्षाविद्धि रेखा । इसमें से सव्य रेखा को छोड़कर और सबका फल अशुभ माना गया है ।
७. पंक्ति । कतार । सिलसिला (को॰) ।
८. छद्म (को॰) ।
९. थोड़ा अंश । किंचिन्मात्र अंश ।