सर्वनाम

  1. पास में किसी (व्यक्ति, वस्तु आदि) को दिखाने के लिए उपयोग किया जाता है।

विरुद्धार्थ

  1. वह

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

यह कभी अपने शरीर को सिकोड़ लेता है, और कभी लंबा कर देता है । यह मिट्टी ही खाता है । इससे पीले रंग की एक लसदार वस्तु निकलती है, जो रात को चमकती है ।

२. केंचुए के आकार का सफेद कीड़ा जो पेट से मल द्वारा बाहर निकलता है । क्रि॰ प्र॰—गिरना । पड़ना ।

यह ना तो सूर्य से कभी बहुत पहले उदय होता है और न कभी उसके बहुत बाद अस्त होता है । इसमें स्वयं अपना कोई प्रकाश नहीं है और यह केवल सूर्य के प्रकाश के प्रतिबिंब से ही चमकता है । यह आकार में पृथ्वी का प्रायः १८ वाँ अंश है ।

२. भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नो ग्रहों में से चौथा ग्रह जो पुराणानुसार देवताओं के गुरु बृहस्पति की स्त्री तारा के गर्भ से चंद्रमा के वीर्य से उत्पन्न हुआ था । विशेष— कहते हैं, चंद्रमा एक बार तारा को हरण कर ले गया था । ब्रह्मा तथा दूसरे देवताओं के बहुत समझाने पर भी जब चंद्रमा ने तारा को नहीं लौटाया तब बृहस्पति और चंद्रमा में युद्ध हुआ । बाद में ब्रह्मा ने बीच में पड़कर बृहस्पति को तारा दिलवा दी । पर उस समय तक तारा चंद्रमा से गर्भवती हो चुकी थी । बृहस्पति के बिग़ड़ने पर तारा ने तुरंत प्रसव कर दिया जिससे बुध की उत्पत्ति हुई । इसके अतिरिक्त काशीखंड तथा दूसरे अनेक पुराणों में भी बुध के संबंध की कई कथाएँ हैं । यह नपुंसक, शूद्र, अथर्ववेद का ज्ञाता, रजोगुणी, मगध देश का अधिपति, बालस्वभाव, धनु के आकार का और दूर्वाश्याम वर्ण का माना जाता है । रवि और शुक्र इसके मित्र और चंद्रमा इसका शत्रु माना जाता है । किसी किसी का मत है कि इसने वैवस्वत मनु की कन्या इला से विवाह किया था जिसके गर्भ से पुरूरवा का जन्म हुआ था । यह भी कहा जाता है कि ऋग्वेद के मंत्रों का इसी ने प्रकाश किया था ।

३. पंडित, विद्वान्, शास्त्रज्ञ ।

४. अग्निपुराण के अनुसार एक सूर्यवंशी राजा का नाम ।

५. भागवत के अनुसार वेगवानु राजा के पुत्र का नाम जो तृणविंदु का पिता था ।

६. देवता ।

७. कुत्ता ।

यह सर्व॰ [सं॰ यः (पुं॰) या एपः] निकट की वस्तु का निर्देश करनेवाला एक सर्वानाम, जिसका, प्रयोग वक्ता और श्रोता को छोड़कर और सब मनुष्यों, जीवों तथा पदार्थो आदि के लिये होता है । जैसे,— (क) यह कई दिनों से बीमार है ।(ख) यह तो अभी चला जायगा । विशेष— (क) जब इसमें विभक्ति लगाती है, तब 'यह' का रूप खड़ी बोली में 'इसी' (बहुव॰ इन) और ब्रजभाषा में 'या' हो जाता है । जैसे, इसको, (इनको) याकों (ख) पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनामों को छोड़कर शेष सर्वनामों की भाँति इसका प्रयोग प्रायः विशेषण के समान होता है । जब 'यह' अकेला रहता है, तब तो सर्वनाम होता है; और जब इसके साथ कोई संज्ञा आती है, तब यह विशेषण हो जाता है । जैसे,—'यह बाहर जायगा' में यह सर्वनाम है; और 'यह लड़का पाजी है' में 'यह' विशेषण' है ।

यह फागुन चैत में फलता है । इसके फल खटमीठे होते है और कहीं कहीं खाए जाते है ।