क्षेत्र
संज्ञा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
क्षेत्र संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह स्थान जहाँ अन्न बोया जाता हो । खेत ।
२. समतल भूमि ।
३. वह जगह जहाँ कोई चीज पैदा हो । उत्पत्तिस्थान ।
४. स्थान । प्रदेश । जैसे, —हरिहर क्षेत्र । कुरुक्षेत्र ।
५. पुण्यस्थान । तीर्थस्थान ।
६. राशि (मेष आदि) ।
७. स्त्री । जोरू ।
८. शरीर । बदन ।
९. गीता के अनुसार पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ, पाँचों कर्मेंद्रियाँ, मन, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, संस्कार चेतनता और धृति ।
१०. अंतः— करण ।
११. वह स्थान जो रेखाओं से घिरा हुआ हो । यौ॰—क्षेत्रभक्ति = खेतों का बँटवारा । क्षेत्रमिति = क्षेत्रगणित । क्षेत्ररुहा = एक तरह की ककड़ी । क्षेत्रव्यवहार = किसी क्षेत्र का वर्गफल आदि निकलना । क्षेत्रसंन्यास = किसी स्थानविशेष की सीमा के अंदर रहने का व्रत ।
१२. बाड़ा । घेरा (को॰) ।
१३. गृह । घर (को॰) ।
१२. रेखाचित्र । रेखांकन (को॰) ।
१४. अन्नसत्र (को॰) ।