संज्ञा

  1. समाप्ति
  2. मरना

क्रिया

  1. मारना, अन्त करना

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अंत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्त] [वि॰ अंतिम, अंत्य]

१. वह स्थान जहाँ से किसी वस्तु का अंत हो । सामाप्ति । आखीर । अवसान । इति । उ॰— बन कर अंत कतहुँ नहिँ पावहिँ ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. वह समय जहाँ के किसी वस्तु की समाप्ति हो । उ॰— दिन के अंत फिरी दोउ अनी— तुलसी (शब्द॰) । विशेष— इस शब्द में 'में और 'को' विभक्ति लगने से आखिरकार', 'निदान' अर्थ होता है । क्रि॰ प्र॰— करना । —होना ।

३. शोष भाग । अंतिम भाग । पिछला अंश । उ॰— 'रजनी सु अंत महुरत्त बंभ' । —पृ॰ रा॰, ६६ । १६६२ । मुहा॰— अंत बनना = अंतिम भाग का अच्छा होना । अंत बिगड़ना । = अंतिम वा पिछले भाग का बुरा होना ।

४. पार । छोर । सीमा । हद । अवधि । पराकाष्ठा । उ॰— 'अस अँवराउ सधन बन, बरनि न पारौ अंत । —जायसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— करना = हद करना । उ॰— तुमने तो हँसी का अंत कर दिया (शब्द॰) ।-पाना । —होना ।

५. अतंकाल । मरण । मृत्य । उ॰— (क) 'जान्यों सुअंत प्रथि राज अप्प । भिन्नौ जगति द्रुग्ग सुजप्प । —पृ॰ रा॰, ३७ । ४५७ । (ख) 'अंत राम कहि आवत नाहीं' । —तुलसी (शब्द॰) ।

६. नाशा । विनाश । उ॰— 'कहै पदमाकर त्निकूट ही की ढाहि ड़ारौ ड़ारत करेई जातुधानन को अंत हौ । -पदमाकर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— करना ।— होना ।

७. परिणाम । फल । नतीजा । उ॰— (क) अंत भले का भला ।—कहावत (शब्द॰) । (ख) 'बुरे काम का अंत बुरा होता है' (शब्द॰) ।

८. प्रलय (ड़ि॰)

९. सामीत्य । निकटता । (को॰)

१०. प्रतिवेश । पड़ोस (को॰) ।

११. निबटारा । निबटाव (को॰) ।

१२. किसी समस्या का समाधान या निर्णय (को॰) ।

१३. निश्चय (को॰) ।

१४. समास का अंतिम शब्द (को॰) ।

१५. शब्द का अंतिम अक्षर (को॰) ।

१६. प्रकृति । अवस्था (को॰) ।

१७. स्वभाव (को॰) ।

१८. पूर्ण योग या राशि (को॰) ।

१९. वह संख्या जिसे लिखने में १२ अंक लिखने पड़े । एक खरब या सौ अरब की संख्या ।— भा॰ प्रा॰, लि॰, पृ॰ १२ । २० भीतरी भाग (को॰) ।

अंत ^२ वि॰

१. समीप । निकट ।

२. बाहर । दूर ।

३. अंतिम (को॰) ।

४. सुंदर । प्यारा (को॰) ।

५. सबसे छोटा (को॰) ।

६. निम्न । भ्रष्ट (को॰) ।

अंत पु ^३ क्रि॰ वि॰ अंत में अखिरकार । निदान । उ॰— (क) उघरे अंत न होहि निबाहू । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) कोटि जतन कोऊ करौ परै न प्रकृतिहि बीच । नल बल जल ऊँचौ चढै़ अंत नीच कौ नीच । —बिहारी (शब्द॰) ।

अंत पु ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्तस्]

१. अंतःकरण । ह्वॉदय़ । जी । मन । जैसे 'तुम अपने अंत की बात कहों'; 'मै तुम्हे अंत से चाहता हूँ' (शब्द॰) ।

२. भेद । रहस्य । छिपा हुआ भाव । मन की बात । उ॰— 'काहू को न देती इन बातन को अंत लै इकंत कंत मानि कै अनंत सुख ठानती' । —भिखारी,॰ ग्रं॰ भा॰

१. पृ॰ १५६ । मुहा॰— अंत पाना = भैद पाना । पता पाना । अंत लेना = भेद लेना । मन का भाव जानना । मन छूना । उ॰— हे द्बिज मैं ही धर्म लेन आयों तव अंता । —विश्राम॰ (शब्द॰) ।

अंत पु ^७ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्त्र॰, प्र॰ अंत] । आँत , अंतड़ी । उ॰— (क) जिमि जिमि अंत रुलंच लप्ष दल तिन गनि तिम तिम । —पृ॰ रा॰, ६१ । २२७३ । (ख) झरे शोन धारा परै पेट ते अंत । —सुजान (शब्द॰) ।

अंत पु ^६ क्रि॰ वि॰[सं॰ अन्यत्त, प्रा॰ अष्णात्त, अन्नत हिं॰ अनत- अंत] और जगह । और ठौर । दूसरी जगह । और कहीं । दूर । अलग । जुदा ।उ॰— (क) कुंज कुंज में क्रीड़ा वरि करि गोपिन को सुख दैहौं । गोप सखन सँग खेलत डोलौं ब्रज तजि अंत न जैहौं —सूर (शब्द॰) । (ख) एक ठाँव यहि थिर न नहाहीं । रस लै खेलि अंत कहुँ जाही । —जायसी (शब्द॰) । (ग) धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय । जियत कंज तजि अंत बसि कहा भौंर कौ भाय ।— रहीम (शब्द॰) ।

अंत में जब युधष्ठिर के मुख से 'अश्वत्थामा मारा गया हाथी' यह सुना तब पुत्रशोक में नीचा सिर करके वे डूब गए । इसा अवसर पर धृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट लिया ।