प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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होली ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. हिंदुओं का एक बड़ा त्योहार जो फाल्गुन के अंत में बसंत ऋतु के आरंभ पर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है और जिसमें लोग एक दूसरी पर रंग, अबीर आदि डालते तथा अनेक प्रकार के विनोद करते हैं । उ॰ — लगे गुलशन पे अजबस गम के होल्याँ । हुए पुरखून कुल मेंहदी के फूलाँ ।— दक्खिनी॰, पृ॰ १९१ । विशेष—प्राचीन काल में जो मदनोत्सव या वसंतोत्सव होता था, उसी की यह परंपरा है । इसकी साथ होलिका राक्षसी की शांति का कृत्य भी मिला हुआ है । वसंत पंचमी के दिन से लकड़ियों आदि का ढेर एक मैदान में इकट्ठा किया जाता है जो वर्ष के अंतिम दिन फाल्गुन की पूर्णिमा को जलाया जाता है । इसी को 'होली जलाना' या 'संवत् जलाना' कहते हैं । बीते हुए वर्ष का अंतिम दिन और आनेवाले वर्ष का प्रथम दिन दोनों इस उत्सव में संमिलित रहते हैं । मुहा॰—होली खेलना = होली का उत्सव मनाना । एक दूसरे पर रंग, अबीर आदि डालना । उ॰—थे कैयाँ होली खेलौ भोरा कान्ह जी । औराँ काँ धोखा सू म्हारी आँख्याँ बूकौ मेलौ ।—घनानंद॰, पृ॰ ४४५ । होली का भँड़वा = बेढंगा पुतला जो विनोद के लिये खड़ा किया जाता है ।

२. लकड़ी, घास फूस आदि का ढेर जो होली के दिन जलाया जाता है । उ॰—त्रिबिध सूल होलिय जरै खेलिय अस फागु । जो जिय चहसि परम सुख तो यहि मारग लागु ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ५६१ ।

३. एक प्रकार का गीत जो होली के उत्सव में गाया जाता है ।

होली ^२ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक कँटीला झाड़ या पौधा ।