प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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हलदी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ हरिद्रा]

३. डेढ़ दो हाथ ऊँचा एक पौधा जिसमें चारों ओर टहनियाँ नहीं निकलतीं, कांड के चारो हाथ पौन हाथ लंबे और तीन चार अंगुल चौड़े पत्ते निकलते हैं । विशेष—इसकी जड़, जो गाँठ के रूप में होती है, व्यापार की एक प्रसिद्ध वस्तु है, क्योंकि वह मसाले के रूप में नित्य के व्यवहार की भी वस्तु है और रँगाई तथा औषध के काम में भी आती है । गाँठ पीसने पर बिलकुल पीली हो जाती है । इससे दाल, तरकारी आदि में भी यह डाली जाती है और इसका रंग भी बनता है । इसकी खेती हिंदुस्तान में प्रायः सब जगह होती है । हलदी की कई जातियाँ होती हैं । साधारणतः दो प्रकार की हलदी देखने में आती है—एक बिलकुल पीली, दूसरी लाल या लला ई लिए जिसे रोचनी हलदी कहते हैं । वैद्यक में यह गरम, पाचक, अग्निवर्धक और कृमिघ्न मानी जाती है । रँगाई में काम आनेवाली हलदी की जातियाँ ये हैं—लोकहाँड़ी हलदी, मोयला हलदी, ज्वाला हलदी और आँबा हलदी ।

२. उक्त पौधे की गाँठ जो मसाले आदि के रूप में व्यवहार में लाई जाती है । मुहा॰—हलदी उठना या चढ़ना = विवाह के तीन या पाँच दिन पहले दूल्हे और दुलहन के शरीर में हलदी और तिल लगाने की रस्म होना । हलदी लगना = विवाह होना । हलदी लगा के बैठना = (३) कोई काम न करना, एक जगह बैठा रहना । (२) घमंड में फूला रहना । अपने को बहुत लगाना । हलदी लगी न फिटकिरी = बिना कुछ खर्च किए । मुफ्त में ।