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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

हद संज्ञा स्त्री॰ [अ॰]

१. किसी वस्तु के विस्तार का अंतिम सिरा । किसी चीज की लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई या गहराई की सबसे अधिक पहुँच । सीमा । मर्यादा । जैसे,—सड़क की हद, गाँव की हद । यौ॰—हदबंदी । हदसमाअत । मुहा॰—हद बाँधना = सीमा निर्धारित होना । यह ठहराया जाना कि किसी चीज का घेरा अथवा लंबाई, चौड़ाई यहाँ तक है । हद बाँधना = सीमा निर्धारित करना । हद तोड़ना = सीमा के बाहर जाना या कुछ करना । सीमा का अतिक्रमण करना । हद से बाहर = ठहराई हुई सीमा के आगे । हद कायम करना = दे॰ 'हद बाँधना' ।

२. किसी वस्तु या बात का सबसे अधिक परिमाण जो ठहराया गया हो । अधिक से अधिक संख्या या परिमाण जो साधारणतः माना जाता हो या उचित हो । पराकाष्ठा । जैसे,—(क) उस मेले में हद से ज्यादा आदमी आए । (ख) उसने मिहनत की हद कर दी । उ॰—क्वैला करी कोकिल कुरंग बार कारे करे, कुढ़ि कुढ़ि केहरी कलंक लंक हद ली ।—केशव (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना = अति कर देना ।—होना = पराकाष्ठा हो जाना । मुहा॰—हद से ज्यादा = गहुत अधिक । अत्यंत । हद व हिसाब नहीं = बहुत ही ज्यादा । अत्यंत अपार । अपरिमेय ।

३. ओट । आड़ (को॰) ।

४. मुसलिम धर्मशास्त्र द्बारा विहित दंड (को॰) ।

५. किसी बात की उचित सीमा या निश्चित स्थान । कोई बात कहाँ तक करनी चाहिए, इसका नियत मान । कोई काम, व्यवहार या आचरण कहाँ तक ठीक है, इसका अंदाज । मर्यादा । जैसे,—तुम तो हर एक बात में हद से बाहर चले जाते हो ।