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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

हठ संज्ञा स्त्री॰, पुं॰ [सं॰] [वि॰ हठी, हठीला]

१. किसी बात के लिये अड़ना । किसी बात पर जम जाना कि ऐसा हो हो । टेक । जिद । दुराग्रह । जैसे,—(क) नाक कटी, पक हठ न हटी । (ख) तुम तो हर बात के लिये हठ करने लगते हो । (ग) बच्चों का हठ ही तो है । उ॰—जौं हठ करहु प्रेम बस बामा । तौ तुम्ह दुख पाउब परिनामा ।—मानस, २ । ६२ । यौ॰—हठधर्म । हठधर्मी । मुहा॰—'हठ पकड़ना = किसी बात के लिये अड़ जाना । जिद करना । दुराग्रह करना । हठ रखना = जिस बात के लिये कोई अड़े, उसे पूरा करना । हठ में पड़ना = हठ करना । उ॰—मन हठ परा न मान सिखावा ।—तुलसी (शब्द॰) । हठ बाँधना = हठ पकड़ना । हठ माँड़ना = हठ ठानना । उ॰—क्यों हठ माँड़ि रही री सजनी! टेरत श्याम सुजान ।—सूर (शब्द॰) ।

२. दृढ़ प्रतिज्ञा । अटल संकल्प । दृढ़तापूर्वक किसी बात का ग्रहण । उ॰—(क) जो हठ राखै धर्म की तेहि राखै करतार । (ख) तिरिया तेल, हमीर हठ चढ़ै न दूजी बार । (शब्द॰) । मुहा॰—हठ करना = दे॰ 'हठ ठानना' । उ॰—जौं हठ करहु प्रेम बस बामा । तौ तुम्हें दुख, पाउब परिनामा ।—मानस, २ ।६२ । हठ ठानना = दृढ़ प्रतिज्ञा या अटल संकल्प करना । उ॰—अहह तात दारुनि हठ ठानी । समुझत नहि कछु लाभ न हानी ।—मानस, १ । २५८ ।

३. बलात्कार । जबरदस्ती ।

४. शत्रु पर पीछे से आक्रमण ।

५. अवश्य होने की क्रिया या भाव । अवश्यंभाविता । अनि- वार्यता ।

६. आकाशमूली । जलकुंभी (को॰) ।

७. अचिंतित या अतर्कित की प्राप्ति । आकस्मिक लाभ (को॰) ।

८. शक्तिमत्ता । प्रचंडता । बल (को॰) ।