हिन्दी सम्पादन

प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

हंसाल संज्ञा पुं॰ [सं॰ हंसालि] ३७ मात्राओं का एक प्रकार का छंद । दे॰ 'हंसालि' । छंदः प्रभाकर के अनुसार इसका लक्षण है 'बीसौ सत्रह यति धरि निरसंक रचौ, सबै या छंद हंसाल भायौ' । उ॰—तो सो ही चतुर सुजान परबीन अति, परे जिन पींजरे मोह कूँआ । पाय उत्तम जनम लायके चपल मन, गोय गोबिंद गुन जीत जूआ । आप हो आप अज्ञान नलिनी बँधो, बिना प्रभु भजे कइ बार मुआ । दास सुंदर कहै परमपद तो लहै, राम हरि राम हरि बोल सूआ ।—छंदः॰, पृ॰ ७० तथा सुंदर॰ ग्रं॰ (भू॰), भा॰ १, पृ॰ ५१ ।