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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

हंसराज संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक बूटी जो पहाड़ में चट्टानों से लगी हुई मिलती है । समलपत्ती । विशेष—यह एक छोटी घास होती है जिसमें चारों ओर आठ दस अंगुल के सूत के से डंठल फैलते हैं । इन डंठलों के दोनों ओर बंद मुट्ठी के आकार की छोटी छोटी कटावदार पत्तियाँ गुछी होती हैं । यह बुटी देखने में बड़ी सुंदर होती है, इससे बगीचों में कंकड़ पत्थर के ढेर खड़े करके इसे लगाते हैं । वैद्यक में यह गरम मानी जाती है और ज्वर में दी जाती है । कहते हैं, इससे बवासीर से खून जाना भी बंद हो जाता है ।

२. एक प्रकार का अगहनी धान ।

३. हंसों का राजा । बड़ा हंस (को॰) ।