संज्ञा

स्वाद पु॰

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

स्वाद संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी पदार्थ के खाने या पीने से रसनेंद्रिय को होनेवाला अनुभव । जायका । जैसे,—(क) इसका स्वाद खट्टा है या मीठा, यह तुम क्या जानो ।(ख) आज भोजन में बिलकुल स्वाद नहीं है ।

२. काव्यगत रसाननभूति या आनंद । काव्य में चमत्कार सौंदर्य । जैसे,—उनकी कविता ऐसी सरस और सरल होती है कि सामान्य जन भी उसका स्वाद ले सकते हैं ।

३. मजा । जैसे,—जान पड़ता है,आपको लड़ाई झगड़े मे बड़ा स्वाद मिलता है । क्रि॰ प्र॰—लेना ।—मिलना । मुहा॰—स्वाद चखाना=किसी को उसके किए हुए अपराध का दंड देना । बदला लेना । जैसे,—मैं तुम्हें इसका स्वाद चखाऊँगा ।

४. चाह । इच्छा । कामना । उ॰—(क) गंधमाद रन स्वाद चल्यो घन सरिस नाद करि । लै द्विज आसिरवाद परम अहलाद हृदय भरि ।—गोपाल (शब्द॰) । (ख) द्विज अरपहिं आसिरबाद पढ़ि । नमत तिन्है अहलाद मढ़ि । नृप लसेउ सुरथ जय स्वाद चढ़ि । करत सिंह सम नाद बढ़ि ।—गोपाल (शब्द॰) ।

५. मीठा रस । (डिं॰) ।