प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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स्नातक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह जिसने ब्रह्मचर्य व्रत की समाप्ति पर स्नान करके गुहस्थ आश्रम में प्रवेश किया हो । विशेष—प्राचीन काल में बालक गुरुकुलों में वेदों तथा अन्यान्य विद्याओं का अध्ययन समाप्त करके २५ वर्ष की अवस्था में जब घर को लौटते थे, तब वे स्नातक कहलाते थे । ये स्नातक तीन प्रकार के होते थे । जो स्नातक २५ वर्ष की अवस्था तक ब्रह्मचर्य का पालन करके बिना वेदों का पूरा अध्ययन किए ही घर लौटते थे, वे व्रतस्नातक कहलाते थे । जो लोग २५ वर्ष की अवस्था हो जाने पर भी गुरु के यहाँ ही रहकर वेदों का अध्य- यन करते थे और गृहस्थ आश्रम में नहीं आते थे, वे विद्यास्नातक कहलाते थे । और जो लोग ब्रह्मचर्य का पूरा पूरा पालन करके गृहस्थ आश्रम में आते थे, वे उभयस्नातक या विद्याव्रतस्नातक कहलाते थे । इधर हाल में भारत में थोड़े से गुरुकुल और ऋषिकुल आदि स्थापित हुए हैं । उनकी अवधि और परीक्षाएँ समाप्त करके जो युवक निकलते हैं, वे भी स्नातक ही कहलाते हैं ।

२. किसी धार्मिक उद्देश्य से भिक्षु बना हुआ ब्राह्मण ।

३. ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति का वह व्यक्ति जो गृहस्थाश्रमी हो (को) ।

४. किसी विद्यालय की शिक्षा समाप्त कर उपाधि पानेवाला छात्र । ग्रैजुएट ।