सेव

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

सेव संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का ऊँचा पेड़ जिसकी लकड़ी कुछ पीलापन या ललाई लिए सफेद रंग की, नरम, चिकनी, चमकीली और मजबूत होती है । कुमार । विशेष—इसकी आलमारी, मेज, कुरसी और आरायशी चीजें बनती हैं । बरमा में इसपर खुदाई का काम अच्छा होता है । इसकी छाल और जड़ औषध के काम आती है और फल खाया जाता है । इसकी कलम लगती है और बीज भी बोया जाता है । यह वृक्ष पहाड़ों पर तीन हजार फुट की ऊँचाई तक मिलता है । यह बरमा, आसाम, अवध, बरार और मध्य प्रांत में बहुत होता है ।

सेव ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सेविका] सूत या डोरी के रुप में बेसन का एक पकवान । विशेष—गुँधे हुए बेसन को छेददार चौकी या झरने में दबाते हैं । जिससे उसके तार से बनकर खौलते घी या तेल की कढ़ा ई में गिरते और पकते जाते हैं । यह अधिकतर नमकीन होता है । पर गुड़ में पागकर मीठे सेव भी बनाते हैं ।

सेव पु ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ सेवा] दे॰ 'सेवा' उ॰—करै जो सेव तुम्हारी सो सेइ भो विष्णु, शिव, ब्रह्म मम रुप सारे ।—सुर (शब्द॰) ।

सेव ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सेव, सेवि, मि॰ फ़ा॰ सेब] दे॰ 'सेब' । उ॰— कहुँ दारब दाड़िम सेव कटहल तूत अरु जंभीर हैं ।—भूषण ग्रं॰, पृ॰ १५ ।

सेव ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'सेवन' [को॰] ।