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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

सेमल संज्ञा पुं॰ [सं॰ शिम्बल ( = शाल्मलि (सायण)] पत्ते झाड़नेवाला एक बहुत बड़ा पेड़ जिसमें बड़े आकार और मोटे दलों के लाल फूल लगते है, और जिसके फलों या डोडों में केवल रूई होती है गूदा नहीं होता । विशेष—इस पेड़ के धड़ और डालों में दूर दूर पर काँटे होते हैं; पत्ते लंबे और नुकीले होते हैं तथा एक एक डाँड़ी में पंजे की तरह पाँच पाँच छह छह लगे होते हैं । फूल मोटे दल के, बड़े बड़े और गहरे लाल रंग के होते हैं । फूलों में पाँच दल होते हैं और उनका घेरा बहुत बड़ा होता है । फागुन में जब इस पेड़ की पत्तियाँ बिल्कुल झड़ जाती हैं । और यह ठूँठा ही जाता है तब यह इन्हीं लाल फूलों से गुछा हुआ दिखाई पड़ता है । दलों के झड़ जाने पर डोडा या फल रह जाता है जिसमें बहुत मुलायम और चमकीली रूई या घूए के भीतर बिनौले से बीज बंद रहते हैं । सेमल के डोड या फलों की निस्सारता भारतीय कविपरंपरा में बहुत काल से प्रसिद्ध है और यह अनेक अन्योक्तियों का विषय रहा है । 'सेमर सेइ सुवा पछ्ताने' यह एक कहावत सी हो गई है । सेमल की रूई रेशम सी मुलायम और चमकीली होती है और गद्दों तथा तकियों में भरने के काम में आती है, क्योंकि काती नहीं जा सकती । इसकी लकड़ी पानी में खूब ठहरती है और नाव बनाने के काम में आती है । आयुर्वेद में सेमल बहुत उपकारी ओषधि मानी गई है । यह मधुर, कसैला, शीतल, हलका, स्निग्ध, पिच्छिल तथा शुक्र और कफ को बढ़ानेवाला कहा गया है । सेमल की छाल कसैली और कफनाशक; फूल शीतल, कड़वा, भारी, कसैला, वातकारक, मलरोधक, रूखा तथा कफ, पित्त और रक्तविकार को शांत करनेवाला कहा गया है । फल के गुण फूल ही के समान हैं । सेमल के नए पौधे की जड़ को सेमल का मूसला कहते हैं, जो बहुत पुष्टिकारक, कामोद्दीपक और नपुंसकता को दूर करनेवाला माना जाता है । सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है । यह अतिसार को दूर करनेवाल ा और बलकारक कहा गया है । इसके बीज स्निग्धताकारक और मदकारी होते है; और काँटों में फोड़े, फुंसी, घाव, छीप आदि दूर करने का गुण होता है । फलों के रंग के भेद से सेमल तीन प्रकार का माना गया है—एक तो साधारण लाल फूलोंवाला, दूसरा सफेद फूलों का और तीसरा पीले फूलों का । इनमें से पीले फूलों का सेमल कहीं देखने में नहीं आता । सेमल भारतवर्ष के गरम जंगलों में तथा बरमा, सिंहल और मलाया में अधिकता से होता है । पर्या॰—शाल्मलि । शाल्मली । पिच्छला । मोचा । स्थिराह । तूलिफला । दुरारोहा । शाल्मलिनी । शाल्मल । अफूरणी । पूरणी । निर्गधपुष्पी । तुलनी । कुक्कुटी । रक्तपुष्पा । कंटकारी । मोचनी । शीमूल । कदला । चिरजीवी । पिच्छल । रक्तपुष्पक । लूलवृक्ष । मोचाख्य । कंटकद्रुम । कुकुटी । रक्तोत्पल । वन्यष्प । बहुवीर्य । यमद्रुम । दीर्घद्रुम । स्थूलफल । दीर्घायु । कंटकाष्ठ । निस्सारा । दीर्घपादपा ।