सूना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनसूना ^१ वि॰ [सं॰ शून्य] [वि॰ स्त्री॰ सूनी] जिसमें या जिसपर कोई न हो । जनहीन । निर्जन । सुनसान । खाली । जैसे— सूना घर, सूना रास्ता, सूना सिंहासन । उ॰—(क) जात हुती निज गोकुल में हरि आवै तहाँ लखिकै मग सूना । तासों कहौं पदमाकर यों अरे साँवरौ बावरे तै हमैं छू ना ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) राम कहाँ गए री माता । सून भवन सिंहासन सूनो नाहीं दशरथ ताता ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।—करना ।—होना । मुहा॰—सूना लगना या सूना सूना लगना = निर्जीव मालूम होना । उदास मालूम होना ।
सूना ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ शून्य] एकांत । निर्जन स्थान ।
सूना ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. पुत्री । बेटी ।
२. वह स्थान जहाँ पशु मारे जाते हैं । बूचड़खाना । कसाईखाना ।
३. मांस का विक्रय । मांस की बिक्री ।
४. गृहस्थ के यहाँ ऐसा स्थान या चूल्हा, चक्की, ओखली, घड़ा, झाड़ में से कोई चीज जिससे जीवहिंसा की संभावना रहती है । विशेष दे॰ 'पंचसूना' ।
५. गलशुंडी । जीभी ।
६. हाथी के अंकुश का दस्ता ।
७. हत्या । घात । विध्वंसन ।
८. प्रकाश की किरण (को॰) ।
९. नदी । सरिता (को॰) ।
१०. गले की ग्रंथियों का शोथ (को॰) ।
११. हाथी की सूँड़ (को॰) ।
१२. मेखला । श्रृंखला (को॰) । यौ॰—सूनाध्यक्ष—बूचड़खाने का निरीक्षक । सूनावत् = बूचड़खाने का मालिक ।