सुरत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनसुरत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. रतिक्रीड़ा । कामकेलि । संभोग । मैथुन । उ॰— मुरत ही सब रैन बीती कोक पूरण रंग । जलद दामिनि संग सोहत भरे आलस संग । — सूर (शब्द॰) । यौ॰— सुरतकेलि, सुरतक्रीड़ा=रतिक्रीड़ा । सुरतगुप्ता । सुरत- गुरु=पति । शौहर । सुरतगोपना । सुरतग्लानि । सुरत- तांडव=तीव्रतम कामवेग । प्रचंड संभोग । सुरतताली । सुरत- प्रसंग=कामक्रीड़ा में आसक्ति । सुरतभेद =एक प्रकार का रतिबंध । सूरतमृदित = रतिक्रीड़ा में मसल दिया हुआ । सुरतरंगी =संभोग चमें आसक्त । सुरतवाररात्रि=सुरतक्रीड़ा की रात । सुरतविशेष =एक रतिबंध । सुरतस्थ ।
२. उत्कृष्ट आनंद की अनुभूति (को॰) ।
३. एक बौद्ध भिक्षु का नाम ।
सुरत ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ स्मृति] ध्यान । याद । सुध । उ ।— (क) धीर मढ़त चमन धन नहीं कढ़त चबदन में बैन । तुरत सुरत की सुरत चकै जुरत मुरत हंसि नैन । — श्रृंगार सतसई (शब्द॰) । (ख) करत महातम विपिन वधि चलो गयो करतार । तहँ अखेड लगी सुरत तथा तैल की धार । — रघुराज (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰ —करना ।—दिलाना ।— होना ।—लगना । मुहा॰— सुरत बिसारना = भूल जाना । विस्मृत होना । सुरत सँभालना =होश सँभालना ।