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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

सिंहावलोकन संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. सिंह के समान पीछे देखते हुए आगे बढ़ना ।

२. आगे बढ़ने के पहले पिछली बातों का संक्षेप में कथन ।

३. पद्यरचना की एक युक्ति जिसमें पिछले चरण के अंत के कुछ शब्द या वाक्य लेकर अगला चरण चलता है । उ॰— गाय गोरी सोहनी सुराग बाँसुरी के बीच कानन सुहाय मार मंत्र को सुनायगो । नायगो री नेह डोरी मेरे गर में फँसाय हिरदै थल बीच चाय वेलि को बँधायगो ।—दीनदयाल (शब्द॰) ।