सार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनसार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. किसी पदार्थ में का मूल, मुख्य, काम का, या असली भाग । तत्व । सत्त ।
२. कथन आदि से निकलनेवाला मुख्य अभिप्राय । निष्कर्ष । उ—तत्त सारं इहै आहै अवर नाहीं जान ।—जग॰ बानी, पृ॰१४ ।
३. किसी पदार्थ में से निकला हुआ निर्यास या अर्क आदि । रस ।
४. चरक के अनुसार शरीर के अंतर्गत आठ स्थिर पदार्थ जिनके नाम इस प्रकार हैं ।—त्वक्, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और सत्व (मल) ।
५. जल । पानी ।
६. गूदा । मग्ज ।
७. वह भूमि जिसमें दो फसलें होती हों ।
८. गोशाला । बाड़ा ।
९. खाद ।
१०. दूहने के उपरांत तुरंत औटाया हुआ दूध ।
११. औटाए हुए दूध पर की साड़ी । मलाई ।
१२. लकड़ी का हीर ।
१३. परिणाम । फल । नतीजा ।
१४. धन । दौलत ।
१५. नवनीत । मक्खन ।
१६. अमृत ।
१७. लोहा ।
१८. वन । जंगल ।
१९. बल । शक्ति । ताकत ।
२०. मज्जा ।
२१. वज्र- क्षार ।
२२. वायु । हवा ।
२३. रोग । बीमारी ।
२४. जूआ खेलने का पासा ।
२५. अनार का पेड़ ।
२६. पियाल वृक्ष । चिरौंजी का पेड़ ।
२७. वंग ।
२८. मुद्ग । मूँग ।
२९. क्वाथ । काढ़ा ।
३०. नीली वृक्ष । नील का पौधा ।
३१. साल । सार ।
३२. पना । पतला शरबत ।
३३. कपूर ।
३४. तलवार । (डिं॰) ।
३५. द्रव्य । (डिं॰) ।
३६. हाड़ । अस्थि । (डिं॰) ।
३७. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसमें २८ मात्राएँ होती है और सोलहवीं मात्रा पर विराम होता है । इसके अंत में दो गुरु होते है । प्रभाती नामक गीत इसी छंद में होता है ।
३८. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसमें एक गुरु और एक लघु होता है । इसे 'ग्वाल' और 'शानु' भी कहते है । विशेष दे॰ 'ग्वाल' ।
३९. एक प्रकार का अर्थालंकर जिसमें उत्तरोत्त र वस्तुओं का उत्कर्ष या अपकर्ष वर्णित होता है । इसे 'उदार' भी कहते हैं । उ॰—(क) सब मम प्रिय सब मम उपजाए । सब ते अधिक मनुज मोहि भाए । तिन महँ द्विज, द्विज महँ श्रुतिधारी । तिन महँ निगम निति अनुसारी । तिन महँ पुनि विरक्त पुनि ज्ञानी । ज्ञानहु ते अति प्रिय विज्ञानी । तिनतें मोह अति प्रिय निज दासा । जैहि गति मोरि न दूसरी आसा । (ख) हे करतार बिनै सुनो 'दास' की लोकनि को अवतार करयो जनि । लोकनि को अवतार करयो तो मनुष्यन को तो सँवार करयो जनि । मानुष हू को सँवार करयो तो तिन्हैं बिच प्रेम पसार करयौ जनि । प्रेम पसार करयो तो दयानिधि कैहूँ बियोग बिचार करयौ जनि ।
४०. वस्त्र । कपड़ा । उ॰—बगरे बार झीनें सार में झलकति अधर नई अरुनई सरसानि ।—धनानंद, पृ॰५०६ ।
४१. गमन । क्रमण । गति (को॰) ।
४२. मवाद । पस (को॰) ।
४३. गोबर । गोमय (को॰) ।
४४. प्रसार । फैलाव । विस्तृति (को॰) ।
४५. दृढ़ता । मजबूती । धैर्य । धीरता ।
सार ^२ वि॰
१. उत्तम । श्रेष्ठ ।
२. ठोस । दृढ़ । मजबूत ।
३. न्याय्य ।
४. आवश्यक । अनिवार्य (को॰) ।
५. सही । वास्तविक (को॰) ।
६. अनेक प्रकार का । रंग बिरंगा । चितकबरा (को॰) ।
७. भगानेवाला । दूर करनेवाला ।
सार पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सारिका] सारिका । मैना । उ॰—गहबर हिय शुक सों कहेँ सारो ।—तुलसी (शब्द॰) ।
सार ^४ संज्ञा पुं॰ [हि॰ सारना]
१. पालन । पोषण । रक्षा । उ॰— जड़ पंच मिलै जिहि देह करी करनी लषु धौं धरनीधर की । जनु को कहु क्यों करिहैं न सँभार जो सार करै सचराचर की ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. शय्या । पलंग । उ॰—रची सार दोनों इक पासा । होय जुग जुग आवहिं कैलासा ।—जायसी (शब्द॰) ।
३. खबरदारी । सँभाल । हिफाजत । उ॰—भरत सौगुनी सारकरत हैं अति प्रिय जानि तिहारे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
४. सुधबुध । अवसान । होश हवास ।
५. खोजखबर ।
सार ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ श्याल, हि॰ साला] पत्नी का भाई । साला । विशेष—इस श्ब्द का प्रयोग प्राय: गाली के रुप में भी किया जाता है ।
सार ^६ संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰]
१. उष्ट्र । ऊँट ।
२. एक चिड़िया [को॰] ।
सार ^७ प्रत्य॰ पदांत में प्रयुक्त होकर यह फारसी प्रत्यय निम्नांकित अर्थ देता है—
१. वाला । जैसे,—शर्मसार ।
२. बहुतायत । जैसे,—कोहसार ।
३. मानिंद । तुल्य । समान । जैसे,—देव सार [को॰] ।