प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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सागू संज्ञा पुं॰ [अं॰ सैगो]

१. ताड़ की जाति का एक प्रकार का पेड़ जो जावा, सुमात्रा, बौर्निओ आदि में अधिकता से पाया जाता है और बंगाल तथा दक्षिण भारत में भी लगाया जाता है । विशेष—इसके कई उपभेद है जिनमें से एक को माड़ भी कहते हैं । इसके पत्ते ताड़ के पत्तों की अपेक्षा कुछ लंबे होते हैं और फल सुडौल गोलाकार होते हैं । इसके रेशों से रस्से, टोकरे और बुरुश आदि बनते हैं । कहीं कहीं इसमें से पाछकर एक प्रकार का मादक रस भी निकाला जाता है और उस रस से गुड़ भी बनता है । जब यह पंद्रह वर्श का हो जाता है तब इसमें फल लगते हैं और इसके मोटे तने में आटे की तरह का एक प्रकार का सफेद पदार्थ उत्पन्न होकर जम जाता है । यदि यह पदार्थ निकाला न जाय, तो पेड़ सूख जाता है । यही पदार्थ निकालकर पीसते हैं और तब छोटे छोटे दानों के रूप में सुखाते हैं । कुछ वृक्ष ऐसे भी होते हैं जिनके तने के टुकड़े टुकड़े करके उनमें से गूदा निकाल लिया जाता है और पानी में कूटकर दानों के रूप में सुखा लिया जाता है । इन्हीं को सागूदाना या साबूदाना कहते हैं । इस वृक्ष का तना पानी में जल्दी नहीं सड़ता; इसलिये उसे खोखला करके उससे नली का काम लेते हैं । यह वृक्ष वर्षा ऋतु में बीजों से लगाया जाता है ।

२. दे॰ 'सागूदाना' ।