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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

सगर ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ तगर] तगर का फूल और उसका पौधा ।

सगर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा जो बहुत धर्मात्मा तथा प्रजारंजक थे । विशेष—इनका विवाह विदर्भराजकन्या केशिनी से हुआ था । इनकी दूसरी स्त्री का नाम सुमति था । इन स्त्रियों सहित सगर ने हिमालय पर कठोर तपस्या की । इससे संतुष्ट होकर महर्षि भृगु ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पहली स्त्री से तुम्हारा वंश चलानेवाला पुत्र होगा, और दूसरी स्त्री से ६० हजार पुत्र होंगे । सगर की पहली स्त्री से असमंजस नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो बड़ा उद्धत था । उसे सगर ने अपने राज्य से निकाल दिया । इसके पुत्र का नाम अंशुमान था । सगर की दूसरी स्त्री से साठ हजार पुत्र हुए । एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ करना चाहा । अश्वमेध का घोड़ा इंद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल में जा छिपाया । सगर के पुत्र उसे ढुँढ़ते ढुँढ़ते पाताल में जा पहुँचे । वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बँधा पाकर उन्होंने उनका अपमान किया । मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप देकर भस्म कर डाला । अपने पुत्रों के न आने पर सगर ने अंशुमान को उन्हे ढूँढ़ने के लिये भेजा । अंशुमान ने पाताल में पहुँच कर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँसे घोड़ा लेकर अयोध्या पहुँचा । अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तीस सहस्र वर्ष राज्य किया । राजा भगीरथ इन्हीं के वंश के थे ।

सगर ^३ वि॰ विष मिला हुआ । विषाक्त [को॰] ।

सगर ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सागर] सागर । तालाब ।

सगर पु ^२ वि॰

१. चतुर । कुशल ।

२. सुंदर कंठ या गलेवाला ।

३. सुडौल । सुघर ।