प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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संचार संज्ञा पुं॰ [सं॰ सञ्चार]

१. गमन । चलना ।

२. फेलने या विस्तृत होने की क्रिया ।

३. कष्ट । विपत्ति ।

४. मार्ग प्रद- र्शन । नेतृत्व । रास्ता दिखलाने की क्रिया ।

५. चलाने की क्रिया । संचालन ।

६. साँप की मणि ।

७. देश ।

८. ग्रहों या नक्षत्रों का एक राशि से दूसरी राशि में जाना । विशेष—ज्योतिष के अनुसार संचार समय में चंद्र जिस रूप का होता है, उसी प्रकार का फल भी होता है । यदि चंद्र शुद्ध होता है, तो साथ में जिस ग्रह का शुभ भाव होता है, उस ग्रह के शुभ फल को वृद्धि होती है । यदि संचार काल में इंदु शुद्ध नहीं होता, तो शुभ भाववाले शुभ ग्रह के शुभ फल में न्यूनता होती है । यदि कोई अशुभ ग्रह शुद्ध चंद्र के साथ होता है, तो अशुभ फल की कमी होती है । फलित ज्योतिष में संचार के संबंध में इसी प्रकार की और भी बहुत सी बातें दी हुई हैं ।

९. उत्तेजन । बढ़ावा देना ।

१०. कष्टमय यात्रा (को॰) ।

११. मार्ग । पथ । राह (को॰) ।

१२. दूत । गुप्तचर । संदेशवाहक (को॰) ।

१३. दर्शन एवं श्रवण द्वारा दूसरे का मोहन करना ।

१४. रतिमंदिर की अवधि । यौ॰—संचारजीवी = खानाबदोश । संचारपथ = घूमने टहलने की जगह । संचारव्याधि = संक्रामक रोग ।