संकीर्ण
विशेषण
- तंग, संकुचित, अनुदार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
संकीर्ण ^१ वि॰ [सं॰ सङ्कीर्ण]
१. जो अधिक चौड़ या विस्तृत न हो । संकुचित । तंग । सँकरा ।
२. मिश्रित । मिला हुआ ।
३. क्षुद्र । छोटा ।
४. नीच । तुच्छ ।
५. वर्णसंकर ।
६. बिखरा हुआ । छिटकाया हुआ (को॰) ।
७. मदमत्त (हाथी) (को॰) ।
८. अव्यवस्थित । क्रमहीन । अस्पष्ट (को॰) । यौ॰—संकीर्णजाति = (१) वर्ण की संकरता से उत्पन्न व्यक्ति । (२) दोगली नस्ल का । जैसे, खच्चर । संकीर्णयुद्ध = वह युद्ध जिसमें अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग किया जाय । संकीर्णयोनि = दे॰ संकीर्णजाति ।
संकीर्ण ^२ संज्ञा पुं॰
१. वह राग या रागिनी जो दो अन्य रागों या रागिनियों को मिलाकर बने । विशेष—इसके १६ भेद कहे गए हैं —चैत्र, मंगलक, नगनिका, चर्च्चा, अतिनाठ, उन्नवी, दोहा, बहुला, गुरुबला, गीता, गोवि, हेम्ना, कोपी, कारिका, त्रिपदिका, और अधा ।
२. संकट । विपत्ति ।
३. अंतर्जातीय संबंध से उत्पन्न या संकर जाति का व्यक्ति [को॰] ।
४. मतवाला हाथी [को॰] ।
संकीर्ण ^३ संज्ञा पुं॰ साहित्य में एक प्रकार का गद्य जिसमें कुछ वृत्तिगंधि और कुछ अवृत्तिगंधि का मेल होता है ।