शौच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनशौच संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. शुचि होने का भाव । शुद्धता । पवित्रता । पाकीजगी ।
२. शास्त्रीय परिभाषा में पवित्रतापूर्वक धर्माचरण करना, शरीर और मन शुद्ध रखना, सत्य बोलना और निषिद्ध पदार्थों तथा कार्यों आदि का त्याग करना । सब प्रकार से शुद्धतापूर्वक जीवन व्यतीत करना । विशेष—मनु के अनुसार यह धर्म के दस लक्षणों में से पाँचवाँ लक्षण है; और योगशास्त्र के पाँच नियमों में से पहला नियम है । कुछ लोगों ने इसके बाह्य और आभ्यंतर ये दो भेद माने हैं । शरीर का बाह्य शौच मिट्टी और जल आदि से होता है; और अपने चित्त का भाव सब प्रकार से शुद्ध रखने से आभ्यंतर शौच होता है । जैनों के अनुसार संयमवृत्ति को निष्कलंक रखना शौच कहलाता है ।
३. वे कृत्य जो प्रातःकाल उठकर सबसे पहले किए जाते है । जैसे,—पाखाने जाना, मुँह हाथ धोना, नहाना, संध्या वंदन करना आदि ।
४. पाखाने जाना । जंगल जाना । ट्टी जाना ।
५. दे॰ 'अशौच' ।
६. खरापन । ईमानदारी (को॰) ।
७. तर्पण का जल (को॰) ।