प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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शुद्ध ^२ संज्ञा पुं॰

१. सेंधा नमक । काली मिर्च ।

३. चाँदी । रूपा ।

४. गुंडा नाम की घास ।

५. संगीत में राग के तीन भेदों में से एक भेद । वह राग जिसमें और किसी राग का मेल न हो जैसे,—भैरव, मेघ ।

६. शिव का एक नाम ।

७. चौदहवें मन्वंत के सप्तर्षियों में से एक ।

८. शुद्घ वस्तु (को॰) ।

९. शुक्ल पक्ष । सुदी (को॰) ।

१०. वह मकान जो किसी एक ही वस्तु से निर्मित हो और जिसमें नाममात्र के लिये लकड़ी, ईट, प्रस्तर का उपयोग किया हो (को॰) ।

शुद्ध निसाणी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ शुद्ध + हिं॰ निसाणी] एक प्रकार का डिंगल छंद जिसमें पहले तेरह मात्राएं और फिर दस मात्राएँ इस प्रकार २३ मात्राएँ प्रत्येक पद में होती है और तुकांत में दो गुरु होते हैं । उ॰—कल तेरह फिर दशकला, दे मोहरे गुरु दोय । कली एक ते वीस कल, शुद्ध निसाणी सीय ।— रघु॰ रू॰, पृ॰ २६९ ।