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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

शकुन संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी काम के समय दिखाई देनेवाले लक्षण जो उस काम के संबंद में शुभ या अशुभ माने जाते हैं । वे चिह्न आदि जो किसी काम के संबंद में शुभ या अशुभ माने जाते हैं । विशेष—प्रायः लोग कुछ घटनाओं को देखकर उनका शुभ या अशुभ फल होना मानते हैं, और उन घटानाओं को शकुन कहते हैं । जैसे,—कहीं जाते समय रास्ते में बिल्ली का रास्ता काट जाना अशुभ शकुन समझा जाता है और जलपूर्ण कलश या मृतक आदि का मिलना शुभ शकुन माना जाता है । इसी प्रकार अंगों का फड़कना, विशिष्ट पशुओं या पक्षियों आदि का बोलना या कुछ विशिष्ट वस्तुओं का दिखाई पड़ना भी शकुन समझा जाता है । हमारे यहाँ इस विषय का एक अलग शास्त्र ही बन गया है; और उसके अनुसार दही, घी, दुब, चंदन, शीशा, शंख मछली, देवमूर्ति, फल, फूल, पान, सोना, चाँदी, रत्न, वेश्या आदि का दिखाई पड़ना शुभ और साँप, चमड़ा, नमक, खाली बरतन आदि दिखाई पड़ना अशुभ समझा जाता है । प्रायः लोग अशुभ शकुन देखकर काम रोक या टाल देते हैं । साधाणतः बोलचाल में लोग शकुन से प्राय; शुभ शकुन का ही अभिप्राय लेते हैं; अशुभ शकुन को अपशकुन, असगुन कहते हैं । मुहा॰—शकुन विचारना या देखना = कोई कार्य करने से पहले किसी उपाय से लक्षण आदि देखकर यह निश्चय करना कि यह काम होगा या नहीं; अथवा काम अभी करना चाहिए या नहीं ।

२. शुभ मुहुर्त या उसमें होनेवाला कार्य ।

३. पक्षी । चिड़िया ।

४. गिद्ध नामक शिकारी पक्षी ।

५. मंगल अवसरों पर गाए जानेवाले गीत (को॰) ।