संज्ञा

पु.

अनुवाद


प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

व्याकरण संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह विद्या या शास्त्र जिसमें किसी भाषा के शब्दों के शुद्ध रूपों और वाक्यों के प्रयोग के नियमों आदि क निरूपण होता है । भाषा का शुद्ध प्रयोग और नियम आदि बतलानेवाला शास्त्र । विशेष—व्याकरण में वर्णों, शब्दों और वाक्यों का विचार होता है; इसीलिये इसके वर्णविचार, शब्दसाधन और वाक्यविन्यास, ये तीन मुख्य विभाग होते हैं । व्याकरण के नियम प्रायः लिखी हुई और प्रचलित भाषा के आधार पर निश्चित किए जाते है; क्योंकि बोलने में लोग प्रायः प्रयागों की शुद्धता पर उतना अधिक ध्यान नहीं रखते । व्याकरण में शब्दों के अलग भेद कर लिए जाती हैं; जैसे, क्रिया, विशेषण, सर्वनाम आदि, और तब इस बात का विचार किया जाता है कि इन शब्दभेदों का ठीक ठीक और शुद्ध प्रयोग क्या है । हमारे यहाँ व्याकरण की गणना वेदांग में को गई है ।

२. विग्रह । विश्लेषण (को॰) ।

३. ब्याख्या । स्पष्ट करना । प्रकाशन (को॰) ।

४. अंतर । विभेद । भेद (को॰) ।

५. धनुष की टंकार (को॰) ।

६. भविष्यकथन । अनागत कथन (को॰) ।

७. विस्तार (को॰) ।