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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

वेग संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. प्रवाह । बहाव ।

२. शरीर में से मल पुत्र आदि निकलन की प्रवृत्ति ।

३. किसी ओर प्रवृत्त होने का जोर । तेजी ।

४. शीघ्रता । जल्दी ।

५. आनंद । प्रसन्नता । खुशी ।

६. कोई काप करने को दृढ़ प्रतिज्ञा या पक्का निश्चय ।

७. उद्योग । उद्यम ।

८. प्रवृत्त । झुकाव ।

९. वृद्धि । बढ़ती ।

१०. महाज्योतिष्मती ।

११. लाल इनारु ।

१२. शुक्र । वीर्य ।

१३. न्याय के अनुसार चौबीस गुणों में से एक गुण । विशेष—यह गुण आकाश, जल, तेज, वायु और मन में पाया जाता है । संसार में जो कुछ गति देखा जाती है, वह इसी गुण के कारण होती है और उक्त पाँचों में से किसी न किसी के द्वारा होती है ।

१४. वाण की गति या चाल (को॰) ।

१५. प्रेम । गाढ़ अनुराग (को॰) ।

१६. रोग की तीव्रता (को॰) ।

१७. विष आदि का संचार या फैलना (को॰) ।

१८. आंतरिक भावों की वाहुय अभिव्यक्ति ।

२०. भावातिरेक (को॰) ।