वृद्धि का अर्थ होता है बढ़ती।

उदाहरण

  • पिछले दिनों इंटरनेट में हिंदी के वेब साइट्स में अच्छी वृद्धि हुई है।

मूल

  • वृद्धि संस्कृत मूल का शब्द है।

अन्य अर्थ

  • बढ़ोत्तरी
  • इजाफा

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

वृद्धि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. बढ़ने या अधिक होने की क्रिया या भाव । बढ़ती । ज्यादता । अधिकता । जैसे,—धन धान्य की वृद्धि, संतान की वृद्धि, यश की वृद्धि ।

२. ब्याज । सूद ।

३. वह अशौच जो घर में संतान उत्पन्न होने पर होता है ।

४. अभ्युदय । समृद्धि ।

५. एक प्रसिद्ध लता । विशेष—यह लता अष्टवर्ग के अंतर्गत मानी गई है । कहते हैं, यह कोशयामल देश में कोशल पर्वत पाई जाती है । इसके कद पर सफेद राएँ और कहीं कहीं छेद होते हैं । इसका फल कपास की गाँठ के समान होता है, आजकल यह ओषधि नहीं मिलती । वैद्यक में यह मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक, गर्भ धारण करानेवाली और रक्तपित्त, खाँसी तथा क्षय रोग को नष्ट करनेवाली मानी गई है । प्रर्या॰—योग्या । ऋद्धि । सिद्धि । लक्ष्मि । पुष्टिदा । वृद्धदात्री । मगल्या । श्रा । सपद् । जनेष्टा । भूति । सुख । जावभद्रा ।

६. राजनीति में कृष, वाणिज्य, दुर्ग, सेतु, कुंजरबंधन, कन्याकर बलादान, ओर सन्यसंनिवेश इन आठो बर्गों का उपचय । बंधन । स्फाति ।

७. फलित ज्योतिष के विष्कम आदि २७ योगो के अंतर्गत ग्यारहवाँ योग । विशेष—कहते हैं, इस योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति विनयो, धन का अच्छा उपयोग करनेवाला और माल खरीदने तथा बेचने में बहुत चतुर होता है ।

८. संस्कृत व्याकरण में सीधि का एक प्रकार जिसके अनुसार अ अथवा आ के पश्चात् दूसरे शब्द के आरंभ में ए, ऐ, तथा ओ, ओ के आने पर दोनो मिलकर क्रमशः ऐ और औ हो जाते है ।—जैसे,—पुत्र + एषणा से 'पुत्रंषणा' तथा शुद्ध + औदन से 'शुद्धोदन' । उ॰—संस्कृत व्याकरणों ने भा संस्कृत भाषा में धातु के स्वर में इसी प्रकार के परिवर्तन को लक्ष्य करके इन तान क्रमा का गुण, बृद्धि, एवं संप्रसारण नामकरण किया था ।