प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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विहार संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. मनबहलाव के लिए धीरे धीरे चलना । टहलना । धूमना । फिरना ।

२. रतिक्रीड़ा । संभोग ।

३. रतिक्रीड़ा करने का स्थान ।

४. बौद्ध वा जैन श्रमणों के रहने का मठ । संघाराम ।

५. दूर करना । हटाना (को॰) । क्रीड़ा । खेल (को॰) ।

६. गतिशीलता । गतिमयता । जैसे, चरणविहार, पाणिविहार (को॰) ।

७. उद्यान । उपवन । क्रीड़ोंद्यान (को॰) ।

८. स्कंध । कंधा (को॰) ।

९. देवालय । मंदिर (को॰) ।

१०. इंद्र का प्रासाद (को॰) ।

११. इंद्र की ध्वजा । वैजयंत (को॰) ।

१२. महल । प्रासाद (को॰) ।

१३. एक प्रकार का पक्षी । बिंदुरेखक पक्षी (को॰) ।

१४. मीमांसकों के अनुसार अग्नित्रय—गाईपत्य आहवनीय और दक्षिणाग्नि (को॰) ।

१५. यजमान का गृह (को॰) ।

१६. विस्तार । प्रसार (को॰) ।

१७. वागिंद्रिय का प्रसार (को॰) ।

१८. मगध का एक नाम । आधुनिक बिहार प्रदेश (को॰) । यो॰—विहारगृह = क्रीड़ाभवन । विहारदेश = मनोरंजन का स्थान । विहारदासी = सन्यासिनी । भिक्षुणी । विहारभूमि = (१) मनोरंजन का स्थान । (२) चरागाह । विहारवन = क्रीड़ोद्यान । विहारवापी = क्रीड़ा के लिये बना हुआ । तालाब । विहार- स्थली = क्रीड़ाभूमि ।