"परदेशी": अवतरणों में अंतर

परदेशी यह जाती महाराष्ट्र मे है. ..
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महाराष्ट्र परदेशी राजपूत (राजस्थान के मीना)
महाराष्ट्र में भी परदेशी,राजपूत, नाम से राजस्थान से
करीब 400 साल पहले 1600-1700 ई० के बीच राजा
मानसिंह, महासिंह, भावसिंह और जयसिंह से साथ
सेनिकों के रूप में दक्षिण के खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर,
और गोलकुंडा विजय करने गए।
जयपुर के राजाओ को वहा की सुबेदारी मिलने पर लम्बे
समय रहने के गए सेनिक व सहयोगी की जरूरत थी इसलिए वो
वही बस गए।
जयसिंह के देहांत के बाद मुग़ल सूबेदारों ने आर्थिक संकट के
कारन सेना कम कर दी। उन सेनिको को छत्रपति
शिवाजी महाराजाने अपनी सेना में भर्ती कर लिए, वो
ही मीणा लोग परदेशी राजपूत है |
महाराष्ट्र में बसे परदेशी राजपूत (मीना) वहां आपस में
कावच्या,
भातरया, और सपाटया नाम से एक दुसरे को संबोधित करते
है |
संयोगवश यह नाम राजस्थान में भी प्रचलित है |
जब यहाँ (राजस्थान ) के मीना महाराष्ट्र में गए तब आज
का पचवारा, नागरचाल, खैराड, तलेटी, बवान्नी,
बयालिसी, के क्षेत्र को कवाच्या कहते थे इसलिए
महाराष्ट्र में कवाच्या शब्द का प्रयोग हुवा |
मेवात (अलवर-भरतपुर),
डूंगरवाड,
काठेड (नरौली बैर भरतपुर),
जगरोटी (हिंडौन करोली),
आंतरी,
नेहडा (अलवर),
डांग (करोली धोलपुर ) इस क्षेत्र को 350-400 वर्ष पूर्व
भातर प्रदेश कहते थे। जिसकी राजधानी माचाड़ी थी।
राजस्थान के भातर प्रदेश निकले मीना माहाराष्ट्र में
भातर्या, बहदुरिया (करोली की प्राचीन राजधानी
बहादुरपुर थी ), बहतारिया, कहलाते है |
सपाट (सपाड) प्रदेश से गए हुए राजस्थान के मीना लोगो
को मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में सापडया (सपाट्या) कहते है |
खंडार तहसील का क्षेत्र श्योपुर का क्षेत्र, चम्बल, और
पार्वती नदी के बीच का क्षेत्र और समस्त हाड़ोती
(कोटा, बारां, झालावाड) सापडया क्षेत्र कहलाता था
| ये लोग महाराष्ट्र के 15 जिलों की 35 तहसीलों के लगभग
325 गाँवो में रहते है |
राम सिंह नोरावत जी भी 1949 में वहा गए लोगो से मिले
जिसका विवरण अपनी डायरी में लिखा और उस समय की
मीणा वीर पत्रिका में छपवाया ओरंगाबाद में मीणा
खोखड़ सरदार रामो जी खोखड़ के युध्द में शहीद होने पर
उनके नाम से एक गाँव बसा हुवा है, जो औरंगाबाद की एक
कोलोनी बन चूका है ।
खंडिप गंगापुर के उदय सिंह लकवाल वैजापुर /बीजापुर के
युद्ध में वीरगति पाई थी।
जागा उनके परिवार का महाराष्ट्र से संवत 1730 में आना
बताते है जिनको उस गाँव में आज भी मराठा थोक कहते है |
कुरहा (अमरावती, बरार ) महाराष्ट्र में एक प्राचीन
पपलाज माता जी का बहुत बड़ा मंदिर है पास ही 4
किलोमीटर दूर तिउसा गाँव में एक प्रसिद्ध ताजी गोत्र
का मीना परिवार के लोग रहते है, जिसमे नारायण सिंह
ताजी ख्याति प्राप्त रहे है उनके वन्सजो का निकास
भगवतगढ, सवाई माधोपुर से होना बताते है। करीब 300
साल पूर्व यहाँ से ले जाकर कुरहा में माता जी की
स्थापना की गई है।
नारायण सिंह ताजी की शादी भी करीब 100 साल पहले
जयपुर के किसी बड़दावत गोत्री मीणा के यहाँ हुई थी |
विट्टल सिंह जी डाडरवाल और प्रताप सिंह जी पैडवाल
अपनी वन्सवाली जानने डिगो लालसोट के जागाओ के
पास 50 साल पहले आये थे |
पुराने लोगो का पहनावा,भाषा रीतिरिवाज सब अपने
जैसे ही है, उनको अपनी मूल भूमि से जोड़ने के लिए सभी का
सहयोग अपेक्षित है |
सभी के प्रयास से राजस्थान में महाराष्ट्र से अब तक 18
शादिया
लालसोट,
गंगापुर,
निवाई,
उनियारा,
नैनवा,
कोटा,
बोंली,
मालपुरा,
जयपुर में हो चुकी है |
किसी समय प्राचीन राजस्थान के अधिकांश हिस्से पर
मीना राजाओ का अधिकार था। आमेर उनमे प्राचीन
था, जो मं गणों का संघ था कच्छावा राजपूत नरवर प्रदेश
मध्यदेश से जाकर आमेर धोखे से मिनाओ से छिना काफी
लम्बे समय तक मीना संघर्ष करते रहे आखिर भारमल कछावा
के अकबर की अधीनता स्वीकार करने और वैवाहिक सम्बन्ध
स्थापित करने के बाद उसकी शक्ति बढ़ गई थी तथा मीना
पूर्णरूपेण अपनी शक्ति खो चुके थे, फिर भी निरंतर संघर्ष
जारी रखे हुए थे परन्तु इस मनोमालिन्य को पूरी तरह से
मिटने के लिए भारमल ने कूटनीति का प्रयोग किया तथा
मीनों को जागीरे, राज्य का पुलिस सुरक्षा प्रबंध,
खजांची, सेना के कई प्रमिख ओदे, तोपखाना आदि की
जिम्मेदारी दी तह कई किलों नाहरगढ़,जैगढ़ की
किलेदारी भी दी 21 जागीरे और प्रमुख दरबारी सरदारों
में भी स्थान दिया था।
उस समय जागीरदार राजा को सेनिक सहायता दिया
करते थे। यहाँ यह कहा जा सकता है की इस बहादुर और
लड़ाकू कौम मीना के सेनिक दस्ते भी राजा मानसिंह की
सेना में थे | क्योकि मुग़ल दरबार से आदेश मिलने पर राजा
मानसिंह ने एक विशेष सेनिक दल भर्ती किया था जिसमे
मीना और मेवाती थे |
6 जनवरी 1601 ई० में असीरगढ़ पर पूर्ण विजय मिलने पर अकबर
ने दानियाल को दक्षिण का जिसके अंतर गत खानदेश,
बरार और अहमदनगर का कुछ भाग था। जिसकी राजधानी
दोलताबाद थी |
संकलन कर्ता - भागीरथ मीणा।।
 
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