"भाषा": अवतरणों में अंतर

(re)add sanskritnlp.dictionary.BabylonDictionary@75c56eb9
छो बॉट: az, eo, et, sa जोड़ रहा है
पंक्ति १:
 
== {{हिन्दी}} ==
 
Line २२ ⟶ २१:
* [[w:भाषा|भाषा]] (विकिपीडिया)
 
=== प्रकाशितकोशों से अर्थ ===
 
==== शब्दसागर ====
भाषा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] <br><br>१. व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं । मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है । बोली । जबान । वाणी । विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं । अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती । भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं, और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है । जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं । पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं । यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है । संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है । भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है । क्रि॰ प्र॰—जानना ।—बोलना ।—सीखना ।—समझना । <br><br>२. किसी विशेष जनसमुदाय में प्रचलित बातचीत करने का ढंग । बोली । जैसे, ठगों की भाषा, दलालों की भाषा । <br><br>३. वह अव्यक्त नाद जिससे पशु, पक्षी आदि अपने मनोविकार या भाव प्रकट करते हैं । जैसे, बंदरों की भाषा । <br><br>४. आधुनिक हिंदी । <br><br>५. वह बोली जो वर्तमान समय में किसी देश में प्रचलित हो । उ॰— जे प्राकृत कवि परम सयाने । भाषा जिन्ह हरि चरित बखाने ।—मानस, पृ॰ ११ । <br><br>६. एक प्रकार की रागिनी । <br><br>७. ताल का एक भेद । (संगीत) । <br><br>८. वाक्य । <br><br>९. वाणी । सरस्वीत । <br><br>१०. निर्वचन । परिभाषा । व्याख्या । (को॰) । <br><br>११. अर्जीदावा । अभियोगपत्र ।
 
[[श्रेणी: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ-शब्दसागर]]
 
[[az:भाषा]]
[[chr:भाषा]]
[[en:भाषा]]
[[eo:भाषा]]
[[et:भाषा]]
[[fj:भाषा]]
[[fr:भाषा]]
Line ३९ ⟶ ४८:
[[pl:भाषा]]
[[ru:भाषा]]
[[sa:भाषा]]
[[sm:भाषा]]
[[ta:भाषा]]
Line ४४ ⟶ ५४:
[[tr:भाषा]]
[[zh:भाषा]]
 
=== प्रकाशितकोशों से अर्थ ===
 
==== शब्दसागर ====
भाषा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] <br><br>१. व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं । मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है । बोली । जबान । वाणी । विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं । अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती । भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं, और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है । जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं । पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं । यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है । संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है । भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है । क्रि॰ प्र॰—जानना ।—बोलना ।—सीखना ।—समझना । <br><br>२. किसी विशेष जनसमुदाय में प्रचलित बातचीत करने का ढंग । बोली । जैसे, ठगों की भाषा, दलालों की भाषा । <br><br>३. वह अव्यक्त नाद जिससे पशु, पक्षी आदि अपने मनोविकार या भाव प्रकट करते हैं । जैसे, बंदरों की भाषा । <br><br>४. आधुनिक हिंदी । <br><br>५. वह बोली जो वर्तमान समय में किसी देश में प्रचलित हो । उ॰— जे प्राकृत कवि परम सयाने । भाषा जिन्ह हरि चरित बखाने ।—मानस, पृ॰ ११ । <br><br>६. एक प्रकार की रागिनी । <br><br>७. ताल का एक भेद । (संगीत) । <br><br>८. वाक्य । <br><br>९. वाणी । सरस्वीत । <br><br>१०. निर्वचन । परिभाषा । व्याख्या । (को॰) । <br><br>११. अर्जीदावा । अभियोगपत्र ।
 
[[श्रेणी: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ-शब्दसागर]]
"https://hi.wiktionary.org/wiki/भाषा" से प्राप्त