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=== शब्दसागर ===
लक्षण संज्ञासज्ञा पुं॰ [सं॰] <br><br>१. किसी पदार्थ की वह विशेषता जिसके द्वारा वह पहचाना जाय । वे गुण आदि जो किसी पदार्थ में विशिष्ट रूप से हों और जिनके द्वारा सहज में उसका ज्ञान हो सके । चिह्न । निशान । आसार । जैसे,—आकाश के लक्षण से जान पड़ता है कि आज पानी बरसेगा । <br><br>२. नाम । <br><br>३. परिभाषा । <br><br>४. शरीर में दिखाई पड़नेवाला वे चिह्न आदि जो किसी रोग के सूचक हों । जैसे,—इस रोगी में क्षय के सभी लक्षण दिखाई देते हैं । <br><br>५. दर्शन । <br><br>६. सारस पक्षी । <br><br>७. सामु- द्रिक के अनुसार शरीर के अँगों में होनेवाले कुछ विशेष चिह्न । जो शुभ या अशुभ माने जाते हैं । जैसे,—चक्रवर्ती और बुद्ध के लक्षण एक से होते हैं । <br><br>८. शरीर में होनेवाला एक विशेष प्रकार का काला दाग जो बालक के गर्भ में रहने के समय सूर्य या चंद्रग्रहण लगने के कारण पड़ जाता है । लच्छन । <br><br>९. चाल- ढाल । तौर तरीका । रंग ढंग । जैसे,—आजकल तुम्हारे लक्षण अच्छे नहीं जान पड़ते । <br><br>१०. दे॰ 'लक्ष्मण' । <br><br>११. पुरुषेद्रिय । शिश्न [को॰] । <br><br>१२. योनि । भग (को॰) । <br><br>१३. अध्याय । परिच्छेद । स्कंध (को॰) । <br><br>१४. व्याज । छल छद्म (को॰) । <br><br>१५. लक्ष्य । उद्देश्य (को॰) । <br><br>१६. बँधी हुई सीमा । दर (को॰) । <br><br>१७. प्रस्तुत प्रसंग । उपस्थित विषय (को॰) । <br><br>१८. कारण (को॰) । <br><br>१९. नतीजा । परिणाम । असर (को॰) ।
 
लक्षण ग्रंथ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लक्षण + ग्रंथ] काव्य या साहित्य के लक्षणों का विवेचन करनेवाला ग्रंथ । साहित्यिक समीक्षा की पुस्तक । समालोचना शास्त्र । उ॰—पहली बात तो ध्यान देने की यह है कि लक्षण ग्रंथों के बनने के बहुत पहले से कविता होती आ रही थी । चिंतामणि, भा॰ २, पु॰ ९२ ।
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