"जा": अवतरणों में अंतर
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जा ^३ पु † सर्व॰ [हिं॰ जो] जो । जिस । उ॰— (क) जाकर जापर स्तय सनेहू । सो तेहि मिलहि न कछु संबेहू । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) इक समान जब ह्वै रहत लाज काम ये दोइ । जा तिय के तन में तवहिं मध्या कहिए सोइ ।—पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ ८७ । (ग) मेरी भवबाधा हरौ राधा नागरि सोइ । जा तन की झाँइं परै स्यामु हरितदुति होइ ।—बिहारी र॰, वो॰ १ ।
जा ^४ वि॰ [फा॰]
जा ^५ संज्ञा पुं॰ स्थान । जगह । उ॰—कुछ देर रहा हक्का बक्का भौचक्का सा आ गया कहाँ । क्या करुँ यहाँ जाऊँ किस जा । मिलन॰, पृ॰ १९० ।
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