"शूद्र": अवतरणों में अंतर
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→शब्दसागर: शुद्र किसी जाति विशेष का शब्द नहीं है और जन्म से सब शुद्र होता है कुछ वर्ग को शुद्र उनके कार्य की वजह से समझा जाने लगा जैसे नाव चलाने वाला समाज केवट और मल्लाह किसी को उसके गंतव्य तक पहुंचाने का काम करते थे जो की वस्तुत: एक सेवा देना था वह शुद्र समझे जाने लगें और मन्दिर के पुजारी भी शुद्र ही है क्योंकि वह मन्दिर की सेवा में लगे हैं और पंडित जो शादी ब्याह या अन्य अनुष्ठान कराता है वह भी शुद्र ही है भारत में समस्या तब शुरू हुई जब भारत में विदेशी शक्तियों का दखल हुआ और भारतीयों में... टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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=== शब्दसागर ===
शूद्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ शूद्रा, शूद्री] <br><br>१. प्राचीन आर्यों के लोकविधान के अनुसार चार वर्णों में से चौथा और अंतिम वर्ण । विशेष—इनका कार्य अन्य तीन वर्णों की सेवा
[[श्रेणी: हिन्दी-प्रकाशितकोशों से अर्थ-शब्दसागर]]
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