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संज्ञा

स्मरण पु॰

  1. किसी देखी, सुनी बीती या अनुभव में आई बात का फिर से मन में आना। याद आना। आध्यान। जैसे,—(क) मुझे स्मरण नहीं आता कि आपने उस दिन क्या कहा था। (ख) वे एक एक बात भली भाँति स्मरण रखते हैं। मुहा०—स्मरण दिलाना=भूली हुई बात याद कराना। जैसे,—उनके स्मरण दिलाने पर मैं सब बातें समझ गया।
  2. नौ प्रकार की भक्तियों में से एक प्रकार की भक्ति जिसमें उपासक अपने उपास्यदेव को बराबर याद किया करता है। उपास्य का अनवरत चिंतन। उ०—श्रवण, कीर्तन स्मरणपाद- रत, अरचन बंदन दास। सख्य और आत्मानिवेदन, प्रेम लक्षणा जास। —सूर (शब्द०)
  3. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें कोई बात या पदार्थ देखकर किसी विशिष्ट पदार्थ या बात का स्मरण हो आने का वर्णन होता है। जैसे,— कमल को देखकर किसी के सुंदर नेत्रों के स्मरण हो आने का वर्णन। उ०—(क) सूल होत नवनीत निहारी। मोहन के मुख जोग बिचारी। (ख) लखि शशि मुख की होत सुधि तन सुधि धन को जोहि।
  4. स्मृतिशक्ति। याददाश्त। स्मरणाशक्ति (को०)।
  5. परंपराप्राप्त विधान। परंपरागत विधि (को०)।
  6. किसी देव का मानसिक जाप (को०)।
  7. खेद के साथ याद करना (को०)।

उदाहरण

  1. उम्र बढ़ने से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  2. क्या आपको कल कहे किसी भी वार्ता का स्मरण नहीं है?

शब्द

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

स्मरण संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी देखी, सुनी बीती या अनुभव में आई बात का फिर से मन में आना । याद आना । आध्यान । जैसे,—(क) मुझे स्मरण नहीं आता कि आपने उस दिन क्या कहा था । (ख) वे एक एक बात भली भाँति स्मरण रखते हैं । मुहा॰—स्मरण दिलाना=भूली हुई बात याद कराना । जैसे,—उनके स्मरण दिलाने पर मैं सब बातें समझ गया ।

२. नौ प्रकार की भक्तियों में से एक प्रकार की भक्ति जिसमें उपासक अपने उपास्यदेव को बराबर याद किया करता है । उपास्य का अनवरत चिंतन । उ॰—श्रवण, कीर्तन स्मरणपाद- रत, अरचन बंदन दास । सख्य और आत्मानिवेदन, प्रेम लक्षणा जास । —सूर (शब्द॰)

३. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें कोई बात या पदार्थ देखकर किसी विशिष्ट पदार्थ या बात का स्मरण हो आने का वर्णन होता है । जैसे,— कमल को देखकर किसी के सुंदर नेत्रों के स्मरण हो आने का वर्णन । उ॰—(क) सूल होत नवनीत निहारी । मोहन के मुख जोग बिचारी । (ख) लखि शशि मुख की होत सुधि तन सुधि धन को जोहि ।

४. स्मृतिशक्ति । याददाश्त । स्मरणाशक्ति (को॰) ।

५. परंपराप्राप्त विधान । परंपरागत विधि (को॰) ।

६. किसी देव का मानसिक जाप (को॰) ।

७. खेद के साथ याद करना (को॰) ।