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संज्ञा

  1. ऋण, किसी से लिया हुआ धन, जिसे वापस लौटाना होता है।


प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

उधार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ उद्वार = बिना ब्याज का ऋण]

१. कर्ज । ऋण । जैसे,—उसमे मुझसे १०० ) उधार लिए । क्रि॰ प्र॰ —करना । जैसे,—वह १०) बनिए का उधार कर गया है ।—खाना = ऋण लेना । ऋण लेकर काम चलाना ।—देना ।—लेना । मुहा॰ —उधार खाए बैठना = (१) किसी अपने अनुकूल होनेवाली बात के लिये अत्यंत उत्सुक रहना । जैसे,—कभी न कभी रियासत हाथ आएगी, इसी बात पर तो वे उधार खाए बैठे हैं ।

२. किसी की मृत्यु के आसरे में रहना । किसी का नाश चाहना । जैसे,—वह बहुत दिनों से तुमपर उधार खाए बैठा है (महापात्र लोग इस आशा पर उधार लेते हैं कि अमुक धनी आदमी मरेगा तो खूब रुपया मिलेगा) ।

२. मँगनी । किसी एक वस्तु का दूसरे के पास केवल कुछ दिनों के व्यवहार के लिये जाना । जैसे,—हलवाई ने बरतन उधार लाकर दुकान खोली है । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पर लेना ।—लेना ।

३. उद्धार । छुटकारा ।