विराग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनविराग ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. अनुराग का अभाव । चाह का न होना । लगन न होना ।
२. किसी वस्तु से न विशेष प्रेम होना न द्बेष । उदासीन भाव ।
३. सांसारिक सुखों की चाह न करना । विषयभोग आदि से निवृत्ति । वैराग्य । उ॰— राजमोग्य के योग्य, विपिन में बैठा आज विराग लिए ।—पंचवटी, पृ॰ ६ ।
४. एक में मिले हुए दो राग । विशेष—एक राग में जब दुसरा राग मिल जाता है, तब उसे विराग कहते हैं ।
५. वर्ण या रंग का परिपर्तन (को॰) ।
६. असंतुष्टि । असंतोष (को॰) ।
विराग ^१ वि॰
१. राग से रहित । उदासीन । विरागो ।
२. वर्ण या रंगहीन [को॰] ।